Friday, October 23, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल में एनसी हेगड़े को भेजने के लिए डेलॉयट मैनेजमेंट द्वारा की गई 'तैयारी' ही लेकिन एनसी हेगड़े की मुसीबत भी बनती दिख रही है

मुंबई । एनसी हेगड़े की सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी को सफल बनाने के लिए डेलॉयट मैनेजमेंट ने चुनाव अभियान में अपनी पूरी मशीनरी को जिस तरह से झोंक दिया है, उसके चलते वेस्टर्न रीजन में चुनावी परिदृश्य खासा दिलचस्प हो गया है । लगता है कि डेलॉयट मैनेजमेंट अपने माथे पर लगे कलंक को इस बार धो देना चाहता है कि पिछली बार उसका सक्रिय सहयोग न मिलने के कारण ही एनसी हेगड़े चुनाव में पिछड़ गए थे । गौर करने वाली बात यह है कि वर्ष 2009 में रीजनल काउंसिल के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करने वाले एनसी हेगड़े तीन वर्ष बाद, वर्ष 2012 में सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में हार गए । एनसी हेगड़े की यह हार इसलिए भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में रीजनल काउंसिल के चुनाव में जिन जय छैरा को उनके मुकाबले आधे से भी कम वोट मिले थे, वह जय छैरा वर्ष 2012 में सेंट्रल काउंसिल का चुनाव जीत गए थे । पिछली बार एनसी हेगड़े की पराजय के लिए डेलॉयट मैनेजमेंट को ही जिम्मेदार माना/ठहराया गया था - आरोप था कि मैनेजमेंट ने उनके चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं ली थी और चुनावी समर में उन्हें अकेला छोड़ दिया गया था ।
समझा जाता है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में डेलॉयट का प्रतिनिधित्व महेश सारडा से छीन कर जिस तरह से एनसी हेगड़े को सौंपा गया था, उससे डेलॉयट मैनेजमेंट का एक बड़ा तबका नाखुश था - और उस नाखुशी में ही उन्होंने एनसी हेगड़े की उम्मीदवारी से अपने आप को दूर रखा । मैनेजमेंट से मिले इस धोखे के कारण ही एनसी हेगड़े इस बार उम्मीदवार बनने को राजी नहीं थे । ऐन मौके पर वह राजी हुए, तो तब जब मैनेजमेंट से उन्हें पूर्ण सहयोग का वायदा मिला । इसी चक्कर में एनसी हेगड़े की उम्मीदवारी बहुत देर से प्रस्तुत हुई । 
देर से प्रस्तुत होने के कारण एनसी हेगड़े की उम्मीदवारी को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई के लिए डेलॉयट मैनेजमेंट ने पूरी तरह कमर कस ली है और एनसी हेगड़े की उम्मीदवारी के बाबत अपने पुराने से पुराने तथा नए से नए स्टाफ-सदस्य को खटखटाना शुरू कर दिया है । डेलॉयट मैनेजमेंट अपने स्टाफ-सदस्य को इस बात के लिए भी प्रेरित कर रहा है कि वह फर्म से बाहर के अपने परिचित चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच भी एनसी हेगड़े की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास करे । खुद एनसी हेगड़े ने भी अपने रवैये में बड़ा बदलाव किया है । पिछली बार उनकी इस बात के लिए बहुत तारीफ हुई थी कि उन्होंने एसएमएस, ईमेल, फोन कॉल्स के जरिए लोगों को 'परेशान' नहीं किया - और बहुत ही 'सज्जनता' के साथ अपना चुनाव अभियान चलाया; किंतु इस बार एनसी हेगड़े अपनी पिछली बार वाली सज्जनता दिखाने के मूड में नहीं हैं । एनसी हेगड़े की तरफ से तथा डेलॉयट मैनेजमेंट की तरफ से एसएमएस व ईमेल्स का जो तूफान खड़ा किया गया है, उससे साबित है कि एनसी हेगड़े इस बार चुनाव जीतने के लिए हर हथकंडा आजमाने के लिए तैयार हैं । उनकी इस तैयारी में लेकिन डेलॉयट के स्टाफ-सदस्य अपने आप को भारी मुसीबत में पा रहे हैं ।            
डेलॉयट के स्टाफ-सदस्य की यह मुसीबत कहीं एनसी हेगड़े की मुसीबत तो नहीं बन जायेगी ? कुछेक लोगों को लगता है कि इंस्टीट्यूट की राजनीति के संदर्भ में डेलॉयट मैनेजमेंट ने महेश सारडा के साथ जो अन्याय किया है, उसकी नाराजगी डेलॉयट के कई प्रमुख लोगों में अभी बनी हुई है, और वह मुसीबत में फँसे स्टाफ-सदस्यों को एनसी हेगड़े की उम्मीदवारी के खिलाफ भड़का सकते हैं । हालाँकि अधिकतर लोगों को इस तरह का कोई डर प्रासंगिक नहीं लगता है; उनका कहना है कि महेश सारडा वाला किस्सा अब पुराना पड़ गया है - तथा इस समय जबकि डेलॉयट मैनेजमेंट खुल कर एनसी हेगड़े की उम्मीदवारी के पक्ष में सक्रिय है, तब कोई भी उस पुराने किस्से के कारण एनसी हेगड़े की उम्मीदवारी के खिलाफ काम नहीं करेगा ।
डेलॉयट मैनेजमेंट ने एनसी हेगड़े की उम्मीदवारी को लेकर इस बार जिस तरह की आक्रामक सक्रियता दिखाई है, उसके चलते चुनावी राजनीति के आकलनकर्ताओं को उनकी जीत सुनिश्चित जान पड़ रही है । उनका तर्क है कि पिछली बार डेलॉयट मैनेजमेंट ने उनकी उम्मीदवारी के लिए काम करने में कोई दिलचस्पी नहीं ली थी, उसके बावजूद उनका प्रदर्शन कोई बहुत बुरा नहीं था, और वह बारहवें नंबर पर थे ही । इसलिए इस बार इस एक वजह से ही एनसी हेगड़े की स्थिति सुरक्षित हो जाती है कि डेलॉयट मैनेजमेंट का इस बार उन्हें पूरा पूरा और सक्रिय समर्थन मिल रहा है । डेलॉयट मैनेजमेंट ने दूसरी बिग फोर कंपनियों के साथ इस तरह का समझौता करने की संभावनाओं को भी तलाशना शुरू किया है, जिसके तहत दूसरे रीजन में उनके उम्मीदवारों को डेलॉयट के लोग समर्थन देंगे - और बदले में वेस्टर्न रीजन में उनके लोग डेलॉयट के एनसी हेगड़े को समर्थन देंगे ।  
इतने सब इंतजामों के बावजूद, एनसी हेगड़े के लिए डेलॉयट से ही रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत राकेश अलशि की उम्मीदवारी जरूर एक बड़ी चुनौती है । डेलॉयट मैनेजमेंट ने एनसी हेगड़े के साथ-साथ राकेश अलशि की उम्मीदवारी के लिए भी समर्थन जुटाने का अभियान छेड़ा हुआ है । इससे लोगों के बीच एक नकारात्मक फीलिंग पैदा होने का खतरा है । लोगों को लग सकता है कि बिग फोर कंपनियाँ हर जगह काबिज होना चाहती हैं ! बिग फोर कंपनियों के खिलाफ लोगों के बीच एक विरोधी किस्म की फीलिंग होती ही है । लोगों को लगता है कि बिग फोर के उम्मीदवार उनकी परवाह नहीं करते हैं । एनसी हेगड़े के खिलाफ ही एक बड़ा आरोप यह है कि मुंबई के बाहर की ब्रांचेज में शायद ही उनकी कोई सक्रियता रही है । पिछली बार ग्यारहवीं सीट के लिए हुए गंभीर मुकाबले में प्रफुल्ल छाजेड़ से उन्हें मिली हार का एक कारण यह भी माना गया था, कि लोगों के बीच उनकी बजाए प्रफुल्ल छाजेड़ की वर्किंग चूँकि ज्यादा अच्छी थी - इसलिए दूसरी/तीसरी वरीयता के वोट उनकी बजाए प्रफुल्ल छाजेड़ को मिले और वह जीते । लोगों के बीच सक्रियता के अभाव में एनसी हेगड़े के सामने जो चुनौती है, वह रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत राकेश अलशि की उम्मीदवारी के कारण पड़ सकने वाले नकारात्मक प्रभाव के कारण और बढ़ जाती है । दरअसल इसीलिए कई लोगों को लगता है कि डेलॉयट मैनेजमेंट द्वारा एनसी हेगड़े के चुनाव को लेकर पूरी तरह कमर कस लेने के बावजूद, एनसी हेगड़े के सामने मुश्किलें कम नहीं हैं ।