Thursday, October 22, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में सतीश सिंघल ने अपने 'माल' पर दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों की कब्जा करने की कोशिशों को फेल करके उन्हें तगड़ा झटका दिया

नोएडा । सतीश सिंघल ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों के उस दावे पर नाराजगी व्यक्त करते हुए उसे नितांत झूठा बताया है, जिसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को उनके समर्थन की बात की/कही गई है । सतीश सिंघल के इस रवैये से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के अभियान को खासा तगड़ा झटका लगा है । उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में सतीश सिंघल को कई एक लोगों से जब यह सुनने को मिला कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक नेता उनके समर्थन का दावा करते हुए, डिस्ट्रिक्ट के लोगों को उनके गवर्नर-काल के पदों का ऑफर तक दे रहे हैं - तो उनका पारा गर्म हुआ; और उन्होंने भड़कते हुए यहाँ तक कहा कि मैं कहीं किसी से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन की बात करता हुआ सुनाई/दिखाई दिया हूँ क्या ? और अपने गवर्नर-काल के लिए पद ऑफर करने की जिम्मेदारी मैंने किसी को भी नहीं दी है । सतीश सिंघल का कहना है कि दीपक गुप्ता और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता उनसे मिलते हैं, तो वह उनसे अच्छे से बात करते हैं; और कभी कभी किसी किसी से अपने गवर्नर-काल में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भी बात कर लेते हैं - लेकिन इसका मतलब यह कहा और कैसे है कि मैं दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहा हूँ, और अपने गवर्नर-काल की टीम के लिए सदस्य चुनने का अधिकार मैंने किसी को दे दिया है ? सतीश सिंघल ने लोगों को चेतावनी भी दी कि किसी की बातों में आकर मेरे गवर्नर-काल में किसी पद विशेष की उम्मीद मत करने लगना, अन्यथा बाद में निराश होना व पछताना पड़ सकता है । सतीश सिंघल के इस रवैये से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के उन समर्थकों को तगड़ा वाला झटका लगा है, जो लोगों के बीच दावा करते रहे हैं कि शरत जैन का पदों का 'गोदाम' तो खाली चुका है, इसलिए वह तो सुभाष जैन के लिए वोट खरीदने का काम नहीं कर पायेंगे; लेकिन सतीश सिंघल के पास अभी पद रूपी 'पूरा माल' पड़ा हुआ है, जिसे बेच कर हम दीपक गुप्ता के लिए वोट इकट्ठे करेंगे ।
सतीश सिंघल के आक्रामक तेवरों ने लेकिन दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों की सतीश सिंघल के गवर्नर-काल के पदों को बेच कर दीपक गुप्ता के लिए समर्थन जुटाने की योजना व तैयारियों पर पानी फेर दिया है । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों ने सतीश सिंघल के 'माल' को जैसे चाहें वैसे इस्तेमाल करने की गलतफहमी दरअसल इसलिए पाली, क्योंकि सतीश सिंघल ने पिछले दिनों अपने गवर्नर-काल की तैयारियाँ शुरू करने की प्रक्रिया में कुछेक लोगों से इस अंदाज में बात की कि लोगों को लगा जैसे कि सतीश सिंघल पूरी तरह उन पर निर्भर हैं । मजे की बात यह देखने में आई कि कई कई लोग अपने आप को सतीश सिंघल का बड़ा खास समझने लगे; कई कई लोगों को यह दावा करते हुए सुना जाने लगा कि सतीश सिंघल जो भी करते हैं, उनसे पूछ कर ही करते हैं । बस इसी से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों को गलतफहमी हो गई कि सतीश सिंघल अपनी गवर्नरी चलाने के लिए उन पर पूरी तरह निर्भर हैं, और इस निर्भरता के चलते वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए मजबूर हैं - और इसी मजबूरी में उन्होंने अपने गवर्नर-काल का पद रूपी 'माल' उन्हें जैसे चाहें वैसे 'बेचने' के लिए सौंप दिया है । उन्होंने यह देखने/जानने/समझने का जरा भी कष्ट नहीं किया कि अपने गवर्नर-काल की तैयारियाँ शुरू करने की प्रक्रिया में सतीश सिंघल ने जिन जिन लोगों से बात की है, उनमें सुभाष जैन की उम्मीदवारी के समर्थक भी बहुतायत में हैं । यह देख/जान/समझ लेते तो वह इस गलतफहमी का शिकार न होते कि सतीश सिंघल ने अपना 'माल' उन्हें सौंप दिया है; और फिर उन्हें सतीश सिंघल से लताड़ भी न सुननी पड़ती ।
सतीश सिंघल के मजबूर होने की बात दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को इसलिए भी लगी, क्योंकि सतीश सिंघल खुद ही कई बार रमेश अग्रवाल के प्रति अपनी खुन्नस व्यक्त करते हुए यह शिकायत करते रहे हैं कि जेके गौड़ और शरत जैन उन्हें उचित सम्मान व तवज्जो नहीं देते हैं । चूँकि इन तीनों को सुभाष जैन की उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता है, इसलिए मान लिया गया कि सतीश सिंघल इन तीनों से बदला लेने के लिए सुभाष जैन की उम्मीदवारी का विरोध करेंगे ही । जिन दिनों सुभाष जैन का चुनावी मुकाबला अशोक गर्ग से होता दिख रहा था, उन दिनों सतीश सिंघल ने सुभाष जैन की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों को तोड़ कर उन्हें अशोक गर्ग के समर्थन में लाने का प्रयास किया भी था; किंतु उन्हीं लोगों ने सतीश सिंघल को समझाया था कि चुनाव में जब सुभाष जैन का पलड़ा भारी दिख रहा है और उन्हीं के जीतने की संभावना नजर आ रही है, तो उनका विरोध करके और एक हारते दिख रहे उम्मीदवार के समर्थन में जाकर क्या हासिल करोगे ? सुभाष जैन की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे सतीश सिंघल के विश्वासपात्र लोगों का उनसे कहना/समझाना रहा कि अतीत की कुछेक बातों का बदला लेने के चक्कर में भविष्य बिगाड़ लेना, भला किस तरह की अक्लमंदी होगी ? इस कहने/समझाने का सतीश सिंघल पर असर होता हुआ दिखा भी था । 
फिर लेकिन अचानक घटनाचक्र बदला और सुभाष जैन का चुनावी मुकाबला अशोक गर्ग की बजाए दीपक गुप्ता से होता हुआ नजर आने लगा । इससे सुभाष जैन की चुनावी स्थिति और सुदृढ़ होती हुई दिखी । चुनावी राजनीति के आकलनकर्ताओं का मानना/कहना है कि अशोक गर्ग यदि मुकाबले पर होते, तो सुभाष जैन के लिए मामला टफ होता - क्योंकि तब मुकाबला दिल्ली बनाम गाजियाबाद हो सकता था; मुकाबले पर दीपक गुप्ता के आने से सुभाष जैन के लिए मामला आसान इसलिए होता हुआ दिखा है क्योंकि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक गाजियाबाद व उत्तर प्रदेश में तो ज्यादा समर्थन जुटा नहीं पाए हैं; और इस बिना पर दिल्ली व सोनीपत के लोगों को राजी करना उनके लिए और मुश्किल हुआ है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को जब उनके अपने इलाके में ही समर्थन नहीं मिल रहा है, तो फिर वह ही उन्हें क्यों समर्थन दें ? सतीश सिंघल के सामने भी यह सच्चाई आई ही होगी, और इससे उन्हें भी यह समझ में आ ही रहा होगा कि डिस्ट्रिक्ट में माहौल और हवा सुभाष जैन के पक्ष में है । इसलिए ही उन्होंने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को इस बात के लिए लताड़ लगाने में देर नहीं लगाई, कि वह दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को उनके समर्थन का दावा करें, तथा उनके गवर्नर-काल के पद रूपी 'माल' को बेच कर दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम करें । सतीश सिंघल के इस रवैये ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों को तगड़ा वाला झटका तो दिया ही है, साथ ही इस बात का सुबूत भी पेश किया है कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक निराशा/हताशा में अब झूठ का जो सहारा ले रहे हैं, वह भी उनके काम नहीं आ पा रहा है ।