इंदौर । मनोज फडनिस ने विकास जैन के चुनाव कार्यालय जाकर उनकी चुनावी तैयारी का जायेजा लेने का काम करके एक बार फिर साबित किया कि जब एक छोटी सोच, टुच्ची मानसिकता और पक्षपातपूर्ण व्यवहार का आदी व्यक्ति किसी संस्था का मुखिया बन जाता है, तो वह कैसे 'द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया' जैसी प्रतिष्ठित संस्था को भी मटियामेट कर दे सकता है । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के रूप में मनोज फडनिस ने अपनी मौन स्वीकृतियों, अपनी धृतराष्ट्रीय कार्रवाइयों और अपनी हरकतों से इंस्टीट्यूट की छवि को खासा नुकसान पहुँचाया है । ताजा हरकत के लिए तो उन्हें इंस्टीट्यूट के एक पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा तक से सार्वजनिक रूप से फटकार सुनने को मिली है । प्रेसीडेंट के रूप में मनोज फडनिस के पक्षपातपूर्ण फैसलों व कार्रवाईयों को लेकर जो शिकायत व आलोचना होती रही है, उसे एक बार को यदि भूल भी जाएँ - तो क्या इस तथ्य को भूल पाना किसी के लिए भी संभव होगा कि इंस्टीट्यूट के 66 वर्षीय इतिहास में मनोज फडनिस ऐसे पहले प्रेसीडेंट हुए, जिनकी कारस्तानी पर इंस्टीट्यूट के एक पूर्व प्रेसीडेंट को सार्वजनिक रूप से उनके कान उमेठने के लिए मजबूर होना पड़ा । 'रंगे हाथ' पकड़े जाने के बाद मनोज फडनिस की तरफ से सुबूत मिटाने के प्रयास तो खूब हुए, लेकिन उनकी हरकतों से परिचित लोग उनसे ज्यादा होशियार साबित हुए ।
मनोज फडनिस की ताजा हरकत उनका सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ रहे विकास जैन के चुनाव-कार्यालय जाना रहा । यूँ तो विकास जैन की उम्मीदवारी को मनोज फडनिस के समर्थन की चर्चा आम है । मनोज फडनिस की तरफ से इस आम चर्चा को झुठलाने की कोशिश चूँकि कभी नहीं हुई, इसलिए माना गया कि इस आम चर्चा से लोगों के बीच उनकी जो पक्षपातपूर्ण छवि बन रही है - उससे उन्हें कोई परेशानी नहीं है । अपनी छवि, अपनी गरिमा और अपनी प्रतिष्ठा को धूल में मिलता देख चुप रहने वाले मनोज फडनिस के इस रवैये ने उन लोगों को हैरान जरूर किया - जो उन्हें नहीं जानते हैं । जो उन्हें जानते हैं, उन्हें तो पता है कि मनोज फडनिस ऐसे ही हैं । जो उन्हें जानते हैं, उनमें कईयों को लेकिन यह नहीं पता कि मनोज फडनिस इससे भी ज्यादा घटियापन कर सकते हैं । कई लोगों को इस बात पर आश्चर्य है कि विकास जैन के चुनाव कार्यालय जाते समय मनोज फडनिस को क्या यह ख्याल बिलकुल भी नहीं
आया होगा कि वह इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट जैसे जिम्मेदार व प्रतिष्ठित पद पर हैं, और इस पद की गरिमा को बनाए रखने की जिम्मेदारी उनकी ही है; और इस जिम्मेदारी को निभाने के तहत उन्हें एक उम्मीदवार के चुनाव कार्यालय तो नहीं जाना चाहिए । मनोज फडनिस अपने पद की गरिमा और प्रतिष्ठा को ताक पर रख कर जिस तरह एक उम्मीदवार के चुनाव कार्यालय गए और वहाँ उन्होंने चुनावी तैयारियों पर खासी दिलचस्पी के साथ चर्चा की, उससे यही पता चलता है कि उन्हें या तो अपने पद की गरिमा व प्रतिष्ठा का ख्याल नहीं रहा; और या उन्हें ख्याल तो आया होगा, किंतु उन्होंने उसकी परवाह नहीं की ।
इस मामले में मूर्खता की पराकाष्ठा यह रही कि एक उम्मीदवार के चुनाव-कार्यालय में मनोज फडनिस ने अपनी उपस्थिति व अपनी संलग्नता की तस्वीरें भी खिंचवाईं । तस्वीरें न खिंची होतीं, तो मनोज फडनिस रंगे हाथ पकड़े नहीं गए होते और न उन्हें पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा से फटकार सुननी पड़ती । कुछेक लोगों को लगता है कि यह मूर्खता नहीं, मनोज फडनिस का आत्मविश्वास था । उन्होंने सोचा होगा कि तस्वीरें उनका क्या बिगाड़ लेंगी ? लेकिन तस्वीरों के कारण पोल खुलने और बबाल मचना शुरू होते ही मनोज फडनिस की तरफ से जिस तरह से छिपना/भागना शुरू हुआ, उससे साबित होता है कि तस्वीरें खिंचवाने का फैसला मूर्खता के चलते ही हुआ । उन्हें पता होता कि तस्वीरों के कारण वह रंगे हाथ पकड़े जायेंगे, तो शायद तस्वीरें न खिंचवाते । विकास जैन के चुनाव कार्यालय में चुनावी चर्चा करते हुए मनोज फडनिस की तस्वीरें सोशल मीडिया में आईं, तो बबाल मच गया । इस बबाल को शुरू करने/करवाने तथा भड़काने में अमरजीत चोपड़ा के एक कॉमेंट ने उत्प्रेरक का काम किया । बबाल भड़कने की खबर मनोज फडनिस को मिली तो वह तुरंत हरकत में आए तथा सुबूत मिटाने की तत्परता दिखाते हुए आनन-फानन में उन्होंने सोशल मीडिया से उक्त सारी तस्वीरें हटवाईं । मनोज फडनिस एंड कंपनी की हरकतों से परिचित होने के कारण कुछेक लोगों को पता था कि यह लोग पकड़े जाने पर सुबूत मिटाने की कोशिश करेंगे - इसलिए उन्होंने सुबूतों को मिटाये जाने से पहले ही सहेज लिया और सुरक्षित कर लिया ।
मनोज फडनिस का यह कारनामा इंस्टीट्यूट के लिए, प्रोफेशन के लिए और खुद उनके लिए (वह यदि समझें तो) शर्मनाक तो है ही - साथ ही उम्मीदवार के रूप में विकास जैन के लिए भी मुसीबत बढ़ाने वाला है । रीजन में चर्चा है कि इस मामले को चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन के मामले के रूप में लाकर विकास जैन की उम्मीदवारी को निरस्त कराने का प्रयास किया जा सकता है । गाजियाबाद व जयपुर के कुछेक उम्मीदवार इस मामले में दिलचस्पी लेते सुने गए हैं । विकास जैन के नजदीकियों को हालाँकि भरोसा है कि मनोज फडनिस के होते हुए विकास जैन की उम्मीदवारी निरस्त तो नहीं करवाई जा सकेगी; लेकिन उनकी चिंता/समस्या यह है कि इस प्रकरण से विकास जैन के चुनाव अभियान पर पड़े नकारात्मक असर से कैसे निपटा जायेगा ? इस प्रकरण से विकास जैन के चुनाव अभियान पर दरअसल दोहरी मार पड़ी है । इस प्रकरण से एक तरफ तो यह साबित हुआ कि उनकी टीम में कोई समन्वय नहीं है, और उनकी अपनी हरकतें ही उनकी पोल खोल रही हैं तथा उन्हें मुसीबत में डाल रही हैं; दूसरी तरफ यह बात सामने आई कि अपने चुनाव अभियान व अपनी जीत को लेकर वह खुद आश्वस्त नहीं हैं, जिसके चलते उनके पक्ष के बड़े नेताओं को विचार-विमर्श करने के लिए चुनाव-कार्यालय में इकट्ठा होना पड़ा । विकास जैन के नजदीकियों का ही कहना है कि अब उन्हें समझ में आ रहा है कि विकास जैन के लिए लिए चुनाव उतना आसान नहीं है, जितना पहले समझा जा रहा था । इंदौर में उनकी उम्मीदवारी को लेकर कई कारणों से विरोध के स्वर मुखर हुए हैं - जिसके चलते इंदौर में सेंट्रल काउंसिल के दूसरे उम्मीदवार के रूप में केमिषा सोनी को अच्छा समर्थन मिलता नजर आ रहा है । मजे की बात यह है कि कुछ समय पहले तक केमिषा सोनी की उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से लेता हुआ नहीं दिख रहा था । इंदौर में जो लोग विकास जैन की उम्मीदवारी के साथ नहीं हैं और किसी वैकल्पिक उम्मीदवार की तलाश में थे, उन्हें भी यह संशय था कि केमिषा सोनी अपनी उम्मीदवारी को बनाये/टिकाये रख भी पायेंगी या नहीं ? विकास जैन के नजदीकी भी मानते और कहते हैं कि उन्होंने केमिषा सोनी की उम्मीदवारी की ताकत को कम आँकने की चूक की । हालाँकि कई लोग यह भी मानते/कहते हैं कि केमिषा सोनी की उम्मीदवारी इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गई है, क्योंकि विकास जैन अपनी उम्मीदवारी के अभियान को ठीक तरीके से सँभाल नहीं पा रहे हैं, तथा अपनी उम्मीदवारी के विरोधियों को मैनेज करने में विफल साबित हो रहे हैं । दरअसल इसी समस्या पर विचार के लिए उनके कार्यालय में हाई लेबल मीटिंग रखी गई थी, जिसमें मनोज फडनिस की उपस्थिति ने किंतु विकास जैन के लिए हालात और बिगाड़ दिए हैं ।