नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में दिल्ली से बाहर के उम्मीदवारों का प्रवेश रोकने के लिए दिल्ली के चुनावी खिलाड़ियों ने हरियाणा-पंजाब के जीतते दिख रहे उम्मीदवारों को घेरने के लिए जो फील्डिंग लगाई/सजाई है, उससे नॉर्दर्न रीजन में चुनावी परिदृश्य खासा दिलचस्प हो गया है । उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के 22वें सत्र में दिल्ली और बाहरी दिल्ली के सदस्यों की संख्या अनुपात में एक बड़ा बदलाव होता नजर आ रहा है । मौजूदा 21वें सत्र में हरियाणा-पंजाब से विशाल गर्ग और राजिंदर नारंग के रूप में दो सदस्य हैं, किंतु अगले सत्र में यह संख्या तीन होने की तो पक्की उम्मीद की जा रही है । दिल्ली वालों को एक तरफ तो अपनी एक सीट घटती हुई दिख रही है; और दूसरी तरफ उन्हें यह डर भी सता रहा है कि बढ़ती संख्या के साथ साथ हरियाणा-पंजाब के सदस्य आपस में अच्छा तालमेल बना कर काउंसिल में प्रमुख पद भी हथियाने लगे हैं । उनका यह डर दरअसल मौजूदा सत्र में विशाल गर्ग के चेयरमैन तथा राजिंदर नारंग के सेक्रेटरी बनने से बढ़ा है । फरीदाबाद-गुडगाँव के सदस्य यूँ तो दिल्ली के ही माने जाते हैं, किंतु इनकी गिनती भी यदि दिल्ली से बाहर के सदस्यों के रूप में की जाये, तो दिल्ली और दिल्ली से बाहर के सदस्य बराबर की टक्कर के बैठते हैं - और यह टक्कर दिल्ली के बर्चस्व को चुनौती देती है । इस लिहाज से नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का अगला सत्र दिलचस्प नजारा पेश करने वाला माना जा रहा है ।
इस संभावित दिलचस्प नजारे के मुख्य किरदारों के रूप में राजिंदर नारंग, आलोक कृष्ण और पंकज पेरिवाल को देखा/पहचाना जा रहा है । राजिंदर नारंग तो मौजूद सत्र के सदस्य हैं ही; अगले सत्र में उनकी वापसी को सुनिश्चित मानते हुए आकलन किया जा रहा है कि अगले सत्र में उनके साथ आलोक कृष्ण और पंकज पेरिवाल भी काउंसिल में बैठेंगे । आलोक कृष्ण पिछली बार थोड़े से अंतर से काउंसिल में प्रवेश पाने से रह गए थे । पिछली बार चंडीगढ़ में उनका जैसा विरोध देखा जा रहा था, वैसे विरोध का सामना उन्हें इस बार नहीं करना पड़ रहा है । पिछली बार चंडीगढ़ में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति से जुड़े जो कई नेता उनका खुला विरोध कर रहे थे और दिल्ली के उम्मीदवारों को बुला बुला कर उन्हें चंडीगढ़ में वोट दिलवाने के प्रयासों में लगे थे, उनमें से कुछेक इस बार उनका खुला समर्थन कर रहे हैं, और बाकी अधिकतर चुप बैठे हैं । पिछली बार चंडीगढ़ में भारी विरोध का सामना करने के बावजूद आलोक कृष्ण का प्रदर्शन बहुत बुरा नहीं रहा था । इस नाते विश्वास किया जा रहा है कि इस बार जब आलोक कृष्ण को चंडीगढ़ में किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ रहा है, तो इस बार उनकी जीत पक्की ही है । पंकज पेरिवाल को भी जीतने वाले उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
इनकी संभावित जीत में लेकिन दिल्ली वालों ने गोपाल बंसल, भरत कुमार, राघव गोयल रूपी काँटे बिछा दिए हैं । दरअसल ऐन मौके पर इनकी उम्मीदवारी जिस अप्रत्याशित तरीके से प्रकट हुई है, उससे लोगों के बीच शक पैदा हुआ है कि यह वास्तव में वोट कटवा उम्मीदवार हैं, जो जीतने के लिए नहीं बल्कि जीतते दिख रहे उम्मीदवारों को हरवाने के लिए उम्मीदवार बने हैं । चुनावी राजनीति में डमी उम्मीदवार और/या वोट कटवा उम्मीदवार एक जानी-पहचानी सच्चाई है । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स अपने बिजनेस नेटवर्किंग को बढ़ाने के लिए भी उम्मीदवार बन जाते हैं, और ऐसे उम्मीदवार डमी या वोट कटवा उम्मीदवार की तलाश में रहने वाले नेताओं के आसान शिकार भी हो जाते हैं । कुछेक लोगों ने बताया है कि असीम पाहवा तो कहने भी लगे हैं कि वह तो अपना बिजनेस नेटवर्क बढ़ाने के लिए उम्मीदवार बने हैं । असीम पाहवा की उम्मीदवारी के पीछे सेंट्रल काउंसिल के सदस्य अतुल गुप्ता का हाथ होने की चर्चा भी बड़ी आम रही है । गोपाल बंसल, भरत कुमार और राघव गोयल जिस अचानक तरीके से उम्मीदवार के रूप में सामने आए हैं, उससे लोगों को लगा है कि यह उम्मीदवार बने नहीं हैं - बल्कि इन्हें उम्मीदवार बनाया गया है । लोगों के बीच की चुनावी चर्चा के अनुसार गोपाल बंसल के जरिए राजिंदर नारंग को; तथा भरत कुमार व राघव गोयल के जरिए आलोक कृष्ण व पंकज पेरिवाल को घेरने की तरकीब लगाई गई है ।
हरियाणा-पंजाब के नॉन-सीरियस उम्मीदवारों के पीछे दिल्ली के नेताओं का हाथ होने की जितनी व्यापक चर्चा हो रही है, उससे लग रहा है कि हरियाणा-पंजाब के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स में भी जागरूकता बढ़ रही है - और वह दिल्ली के नेताओं की चालबाजियों को जानने/समझने लगे हैं । चंडीगढ़ में पिछली बार आलोक कृष्ण की उम्मीदवारी के खिलाफ सक्रिय लोगों को भी यह बात समझ में लगता है कि आई है कि उनके बीच के छोटे छोटे मतभेदों का दिल्ली वाले कैसे फायदा उठा लेते हैं; तथा दिल्ली से बाहर के लोगों को सिर्फ इस्तेमाल करना चाहते हैं । दिल्ली के नेताओं ने राजिंदर नारंग की जैसी घेराबंदी करने की तैयारी दिखाई है, उससे भी हरियाणा-पंजाब के लोगों को लगा है कि दिल्ली वाले कैसे उनकी सक्रियता व उपलब्धियों को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं । काउंसिल में राजिंदर नारंग का कार्यकाल खासा सक्रियता भरा रहा है, और कई मौकों पर उनकी भूमिका को निर्णायक माना/पाया गया । अपनी उम्मीदवारी के लिए चुनाव अभियान पर निकले राजिंदर नारंग से कई जगह कहा गया कि अगली बार उन्हें सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनना होगा । भविष्य की राजनीति का संकेत देते राजिंदर नारंग के प्रति व्यक्त हो रहे इस समर्थन ने दिल्ली के चुनावी नेताओं के सामने दोहरा संकट खड़ा कर दिया है । इस संकट से निपटने के लिए दिल्ली के नेताओं को राजिंदर नारंग को अभी ही घेरना जरूरी लगा है । हरियाणा-पंजाब से जीतते दिख रहे तीन उम्मीदवारों में पंकज पेरिवाल को तो दोनों तरफ से घेरने के लिए जाल डाला गया है । दरअसल दिल्ली के नेताओं को लगता है कि राजिंदर नारंग व आलोक कृष्ण को जीतने से वह भले ही न रोक पाएँ, किंतु पंकज पेरिवाल को शायद रोक सकते हैं । दिल्ली के नेताओं की इस हरकत के खिलाफ हरियाणा-पंजाब में लेकिन बड़ी तीखी प्रतिक्रिया है, जो जीतते दिख रहे तीनों उम्मीदवारों को और बल दे रही है । इस घटना-चक्र ने नॉर्दर्न रीजन में रीजनल काउंसिल के चुनावी परिदृश्य को खासा रोचक जरूर बना दिया है ।