Thursday, August 31, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अमित गुप्ता की उम्मीदवारी की तैयारी को उनके अपने ही क्लब में तगड़ा झटका लगा

गाजियाबाद । अमित गुप्ता को अपने क्लब की बोर्ड मीटिंग में अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात करने पर जो रिएक्शन मिला, उसने उनके लिए 'फिंगर्स क्रॉस्ड' वाली स्थिति पैदा कर दी है । अमित गुप्ता को उम्मीद थी कि क्लब की बोर्ड मीटिंग में उनकी उम्मीदवारी की बात को उत्साहपूर्ण समर्थन मिलेगा, लेकिन उन्हें यह देख कर झटका लगा कि मीटिंग में उपस्थित अधिकतर लोगों ने उन्हें हतोत्साहित ही किया । लोगों का कहना रहा कि अगले रोटरी वर्ष में चूँकि क्लब के सदस्य सुभाष जैन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर होंगे, इसलिए क्लब के सदस्य उनके गवर्नर-काल को महत्त्वपूर्ण बनाने की जिम्मेदारी निभाने में व्यस्त होंगे, और इसलिए वह अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए काम नहीं कर सकेंगे । इस पर अमित गुप्ता की तरफ से उन्हें सुनने को मिला कि उम्मीदवार के रूप में वह खुद ही सारा काम कर लेंगे, और क्लब के सदस्यों को उनकी उम्मीदवारी के लिए कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी - दरअसल अगला वर्ष उनकी उम्मीदवारी के लिए बहुत ही अनुकूल है । अमित गुप्ता का कहना रहा कि इस वर्ष सतीश सिंघल के साथ उन्होंने जो काम किया है, उसके कारण लोगों के बीच उनकी अच्छी गुडबिल बनी है, जिसका फायदा उन्हें अगले वर्ष ही मिल सकता है; इसके अलावा सतीश सिंघल ने अगले वर्ष में उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने का आश्वासन उन्हें दिया है; अगले वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के क्लब के सदस्य के रूप में उम्मीदवार होने का भी उन्हें मनोवैज्ञानिक फायदा मिल सकेगा - इसलिए अगला वर्ष ही उनकी उम्मीदवारी के लिए परफेक्ट है । अमित गुप्ता के लिए राहत की बात यह रही कि उनके यह तर्क सुन कर उनके अपने क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल की बोर्ड मीटिंग में मौजूद लोगों ने फिर अगले वर्ष की उनकी उम्मीदवारी को लेकर विरोध के स्वर धीमे जरूर कर लिए ।
अमित गुप्ता को नसीहतें हालाँकि फिर भी मिलीं । उन्हें महत्त्वपूर्ण नसीहत यह मिली कि सतीश सिंघल पर ज्यादा भरोसा न करना - उन्होंने तो आशीष मखीजा और अजय गर्ग को भी अगले वर्ष अपना उम्मीदवार बनाने का आश्वासन दिया हुआ है । इसके अलावा, सतीश सिंघल ने यह घोषणा भी की हुई है कि वह यदि आलोक गुप्ता को इस वर्ष चुनाव नहीं जितवा सके, तो अगले वर्ष आलोक गुप्ता को जरूर ही उम्मीदवार बनाये/बनवायेंगे और जितवायेंगे - जैसा कि उन्होंने दीपक गुप्ता के साथ किया । दीपक गुप्ता को अपने समर्थन के बावजूद जब वह पहली बार चुनाव नहीं जितवा सके थे, तो उन्होंने तुरंत ही दीपक गुप्ता को अगले वर्ष उम्मीदवार बनाया/बनवाया और जितवाया । अमित गुप्ता का इस तथ्य की तरफ भी ध्यान दिलाया गया कि आलोक गुप्ता इस वर्ष यदि जीत गए, तो अगले वर्ष 'हर बार गाजियाबाद से ही गवर्नर क्यों' जैसा सवाल उनके  लिए मुसीबत बनेगा, और यदि आलोक गुप्ता नहीं जीते तो सतीश सिंघल उन्हें फिर से उम्मीदवार बनाये/बनवायेंगे - ऐसे में, उन्हें दिए गए सतीश सिंघल के आश्वासन का क्या होगा ? अमित गुप्ता को यह बताने/समझाने की भी कोशिश की गयी कि इस वर्ष के चुनाव में अब हालाँकि ज्यादा दिन नहीं बचे हैं, लेकिन फिर भी अमित गुप्ता यदि हिम्मत करें तो यह वर्ष अगले वर्ष की तुलना में उनकी उम्मीदवारी के लिए ज्यादा 'आसान' रहेगा । इस बात पर अमित गुप्ता लेकिन कोई तवज्जो देते हुए नहीं दिखे । बोर्ड मीटिंग में कुल मिलाकर दोनों 'पक्षों' ने अमित गुप्ता की अगले वर्ष की उम्मीदवारी के मामले को आगे के लिए छोड़ दिया । अमित गुप्ता को क्लब की बोर्ड मीटिंग के नजारे को देख कर तगड़ा झटका तो लगा कि अगले वर्ष की अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह अपने ही क्लब में अकेले और अलग-थलग पड़ गए हैं, लेकिन उनके लिए 'फिंगर्स क्रॉस्ड' वाली स्थिति यह रही कि उनकी 'तैयारी' का कोई मुखर और स्पष्ट विरोध नहीं हुआ ।
अमित गुप्ता पिछले कुछ समय से अगले वर्ष की अपनी उम्मीदवारी को लेकर इधर-उधर बातें तो कर रहे हैं, और उनके क्लब के लोगों को भी निजी स्तर पर होने वाली बातचीत के आधार पर अमित गुप्ता की 'योजना' और 'तैयारी' की जानकारी थी - और इस पर लोगों की मिलीजुली राय थी । इस आधार पर अमित गुप्ता को उम्मीद थी कि क्लब में जब वह औपचारिक रूप से अपनी उम्मीदवारी की बात रखेंगे, तो उन्हें क्लब के सदस्यों की तरफ से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिलेगी । अभी दो-तीन दिन पहले ही संपन्न हुई क्लब की बोर्ड मीटिंग में अगले वर्ष की उनकी उम्मीदवारी की बात पर लेकिन जो हुआ, उससे अमित गुप्ता को यह तो समझ में आ गया है कि अगले वर्ष को वह अपनी उम्मीदवारी के लिए जितना अनुकूल समझ रहे हैं, उतना अनुकूल वह है नहीं - तथा इस मामले में सबसे बड़ी चुनौती उन्हें अपने ही क्लब में मिलने वाली है ।

Wednesday, August 30, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में वोटों की खरीद के जरिए दीपक जैन को चुनाव जितवाने की तैयारी करने वाले पूर्व गवर्नर्स की असली मंशा कहीं अपनी अपनी जेबें भरना तो नहीं हैं ?

मेरठ । दीपक जैन की उम्मीदवारी के लिए वोट जुटाने हेतु पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर योगेश मोहन गुप्ता तथा एमएस जैन ने वोटों की खरीद-फरोख्त का रास्ता अपनाने के जो संकेत दिए हैं, उसने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को रोचक तो बना दिया है, लेकिन साथ ही डिस्ट्रिक्ट को फिर से पहले वाली दलदल की ओर धकेलना भी शुरू कर दिया है । उल्लेखनीय है कि दीपक जैन की उम्मीदवारी के इन दोनों सक्रिय समर्थकों ने पहले श्रीहरी गुप्ता और राजकमल गुप्ता को चुनावी मुकाबले से बाहर करने के लिए तिकड़में की थीं, लेकिन उनकी तिकड़में बुरी तरह फेल रही हैं । श्रीहरी गुप्ता को डराने तथा दबाव में लेने के लिए इन्होंने दावा किया कि मेरठ के अधिकतर पूर्व गवर्नर्स दीपक जैन की उम्मीदवारी के साथ हैं, इसलिए मेरठ में श्रीहरी गुप्ता को खास समर्थन नहीं मिलेगा - और जब उन्हें मेरठ में समर्थन नहीं मिलेगा, तो फिर दूसरी जगह कहाँ/क्या समर्थन मिलेगा ? श्रीहरी गुप्ता और उनके समर्थकों ने लेकिन इस दावे को कोई तवज्जो नहीं दी; उनका कहना रहा कि रोटरी में नेतागिरी और रोटरी के नाम पर धंधा करने वाले पूर्व गवर्नर्स नेताओं की पोल पूरी तरह खुल गई है, और दीपक जैन की उम्मीदवारी को समर्थन देने की आड़ में अपनी राजनीति जमाने की कोशिश करने वाले पूर्व गवर्नर्स नेताओं को मेरठ में अपने ही क्लब्स का समर्थन मिल जाए - तो बहुत समझा जाए ।
दरअसल, दीपक जैन की उम्मीदवारी के समर्थक पूर्व गवर्नर्स नेताओं के क्लब्स के पदाधिकारियों को भी लगने लगा है कि दीपक जैन से पैसे ऐंठने के लिए इन पूर्व गवर्नर्स ने अपने-अपने क्लब्स को बेचने का सौदा कर लिया है । वास्तव में किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल बना हुआ है कि दीपक जैन की जब रोटरी में और डिस्ट्रिक्ट में ज्यादा सक्रियता और संलग्नता नहीं रही है, जब न वह लोगों को जानते हैं और न लोग उन्हें जानते हैं - तब फिर कुछेक पूर्व गवर्नर्स उन्हें डिस्ट्रिक्ट का गवर्नर क्यों चुनवाना/बनवाना चाहते हैं ? डिस्ट्रिक्ट की अभी जो हालत है, उसमें डिस्ट्रिक्ट को एक ऐसे गवर्नर की जरूरत है जिसकी रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में लंबी सक्रियता और संलग्नता रही हो, तथा जो डिस्ट्रिक्ट की तथा डिस्ट्रिक्ट के लोगों की जरूरतों व समस्याओं को जानता/पहचानता हो । इस लिहाज से लोगों को श्रीहरी गुप्ता और चक्रेश लोहिया ही उचित उम्मीदवार लग रहे हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट की बर्बादी के लिए जिम्मेदार रहे पूर्व गवर्नर्स इन दोनों की बजाए अपने अपने 'कठपुतली-उम्मीदवार' लेकर चुनावी मैदान में आ डटे हैं ।
इसके चलते सबसे रोचक स्थिति राजकमल गुप्ता और उनके समर्थकों की बनी है । बेचारे राजकमल गुप्ता के समर्थकों को ही उनके मुकाबले में होने का कोई भरोसा नहीं है, और उनका साफ कहना है कि राजकमल गुप्ता की उम्मीदवारी तो उन्होंने चक्रेश लोहिया को नुकसान पहुँचाने के लिए प्रस्तुत की हुई है - उनका मानना/कहना है कि राजकमल गुप्ता की उम्मीदवारी के न रहने पर मुरादाबाद क्षेत्र के सभी वोट चक्रेश लोहिया को मिल जायेंगे । मजे की बात यह है कि राजकमल गुप्ता और उनके समर्थकों को उन पूर्व गवर्नर्स के नजदीक देखा/समझा जाता है, जो दीपक जैन की उम्मीदवारी का झंडा उठाए हुए हैं - इसके बावजूद उक्त पूर्व गवर्नर्स राजकमल गुप्ता की उम्मीदवारी को वापस नहीं करवा सके हैं । राजकमल गुप्ता और उनके समर्थकों का कहना है कि ऐन मौके पर वह अपना समर्थन उसे देंगे, जो चक्रेश लोहिया को हरा सकने में समर्थ दिखेगा । अभी चूँकि श्रीहरी गुप्ता के मुकाबले दीपक जैन की चुनावी स्थिति उन्हें बहुत ही कमजोर नजर आ रही है, इसलिए अभी से वह दीपक जैन की उम्मीदवारी का समर्थन करने की घोषणा करके अपने वोटों को खराब नहीं कर सकते हैं ।   
इस तरह दीपक जैन की उम्मीदवारी के समर्थक पूर्व गवर्नर्स को 'अपने' लोगों को ही दीपक जैन की उम्मीदवारी की मजबूती को लेकर आश्वस्त करना मुश्किल हो रहा है । उनकी यह मुश्किल इसलिए भी बढ़ी है, क्योंकि वह अपनी गवर्नरी को लेकर रोटरी इंटरनेशनल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे डीके शर्मा का समर्थन पाने के अपने दावे को भी सच साबित करने में विफल रहे हैं । दीपक जैन की उम्मीदवारी के समर्थक पूर्व गवर्नर्स का दावा था कि कानूनी लड़ाई की तैयारी करने/करवाने में उन्होंने चूँकि डीके शर्मा की बहुत मदद की है, इसलिए डीके शर्मा का समर्थन उन्हें ही मिलेगा । डीके शर्मा के कहने में छह से आठ वोटों का अनुमान लगाया जा रहा है; और डीके शर्मा की तरफ से लोगों को जो संकेत मिल रहे हैं - उनमें यह तो साफ नहीं है कि उनका समर्थन किसे मिलेगा, लेकिन यह बहुत साफ है कि उनका समर्थन दीपक जैन को तो नहीं ही मिलेगा ।
दीपक जैन की उम्मीदवारी के समर्थक पूर्व गवर्नर्स को जिस तरह हर तरफ से धक्का और निराशा ही मिल रही है, उसके चलते उन्हें अब वोटों की खरीद-फरोख्त का ही विकल्प सूझ रहा है । उनके नजदीकियों का कहना है कि उन्होंने दीपक जैन को बता दिया है कि चुनाव जीतना है तो अब वोटों की खरीदारी ही करनी पड़ेगी । दीपक जैन के कुछेक शुभचिंतकों ने दीपक जैन को आगाह भी किया है कि वोटों की खरीदारी के नाम पर उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स अपनी अपनी जेबें भरने का काम कर सकते हैं, इसलिए जो भी करना - सोच/समझ कर और आँखें खोल कर करना । वोट खरीद कर दीपक जैन को चुनाव जितवाने की तैयारी शुरू हो जाने से रोटरी के बुनियादी सिद्धांतों तथा आदर्शों के साथ डिस्ट्रिक्ट में एक बार फिर खिलवाड़ तो शुरू हो ही गया है, साथ ही साथ डिस्ट्रिक्ट में चुनावी परिदृश्य खासा दिलचस्प हो उठा है ।

Monday, August 28, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 के मेंबरशिप सेमीनार में अशोक गुप्ता के चीफ गेस्ट बनने में चुनावी आचारसंहिता का उल्लंघन देख रहे केआर रवींद्रन ने दीपक कपूर द्वारा पोलियो मीट कराए जाने पर अपनी आँखें बंद क्यों कर ली हैं ?

नई दिल्ली/जयपुर । अशोक गुप्ता ने दिल्ली में आयोजित हुई 'नेशनल पोलियोप्लस ओरियेंटेशन एण्ड प्लानिंग मीट' के आयोजन को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए दीपक कपूर की उम्मीदवारी को प्रमोट करने की कोशिश के रूप में रेखांकित करते हुए रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों - खासकर केआर रवींद्रन की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं । अशोक गुप्ता की शिकायत है कि डिस्ट्रिक्ट 3080 में हो रहे डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप सेमीनार में चीफ गेस्ट के रूप में शामिल होने से उन्हें तो केआर रवींद्रन ने रोक दिया, लेकिन पोलियो कमेटी के चेयरमैन के रूप में दीपक कपूर को एक ऐसी मीटिंग करने दी गयी जिसमें सभी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तथा कई डिस्ट्रिक्ट्स के दूसरे प्रमुख रोटरी नेता शामिल हुए ।
अशोक गुप्ता की यह शिकायत इसलिए और गंभीर हो गई है, क्योंकि इस मीटिंग में शामिल होने वाले अधिकतर पदाधिकारियों का अनुभव और कहना रहा कि दो दिन मीटिंग में शामिल रहने के बाद भी उन्हें यह समझ में नहीं आया कि यह मीटिंग बुलाई क्यों गई थी ? पोलियो को लेकर इसका एजेंडा आखिर था क्या ? अधिकतर लोगों ने इस मीटिंग को रोटरी के पैसे के दुरूपयोग के रूप में ही देखा/पहचाना । इसी अनुभव के आधार पर, रोटरी की चुनावी राजनीति के तानेबाने और सत्ता समीकरणों को जानने/समझने वाले रोटरी नेताओं का आरोप रहा कि इस मीटिंग के बहाने दरअसल दीपक कपूर ने रोटरी के पैसे पर इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी उम्मीदवारी का प्रमोशन किया ।
उल्लेखनीय है कि पोलियो कमेटी के चेयरमैन के रूप में दीपक कपूर पर रोटरी के संसाधनों के दुरूपयोग के गंभीर आरोप पहले से ही रहे हैं । लेकिन उनका नया  कारनाम इसलिए ज्यादा गंभीर है, क्योंकि इसमें रोटरी के पैसे पर रोटरी की ही चुनावी राजनीति करने का आरोप है । एक अकेले अशोक गुप्ता को ही नहीं, कई दूसरों को भी हैरानी है कि रोटरी की चुनावी राजनीति में होने वाली किसी भी तरह की 'बेईमानी' के प्रति सख्त रवैया दिखाने वाले पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन को दीपक कपूर की यह हरकत 'दिखाई' क्यों नहीं दी ? शायद इसका कारण यह रहा हो कि पिछले सप्ताह हुई इस आरोपी मीटिंग के लिए दीपक कपूर को पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू का साफ समर्थन और सहयोग मिला । उल्लेखनीय है कि उक्त मीटिंग से रोटरी के अधिकतर बड़े नेता और पदाधिकारी दूर ही रहे; बड़े नेताओं और पदाधिकारियों में पूर्व प्रेसीडेंट कल्याण बनर्जी, पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता तथा मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम ही थोड़े थोड़े समय के लिए मीटिंग में शामिल हुए - सिर्फ राजा साबू ही पूरे समय मीटिंग में मौजूद रहे । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के अन्य उम्मीदवारों में भी एक अकेले रंजन ढींगरा तो थोड़े समय के लिए यहाँ लोगों को दिखाई पड़े - बाकी उम्मीदवारों को लेकिन इस मीटिंग से दूर रखा गया ।
इस मीटिंग के जरिए राजा साबू का 'दोहरा चरित्र' एक बार फिर सामने आया । अपने ही डिस्ट्रिक्ट में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार अशोक गुप्ता के आने को प्रतिबंधित करवाने वाले राजा साबू इस मीटिंग में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के दूसरे उम्मीदवार दीपक कपूर को निर्लज्ज तरीके से प्रमोशन का पूरा मौका देते हुए नजर आए । उल्लेखनीय है कि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी जितेंद्र ढींगरा के क्लब - रोटरी क्लब कुरुक्षेत्र ने तीन सितंबर को डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप सेमीनार के आयोजन की तैयारी की हुई है । इस आयोजन में चीफ गेस्ट के रूप में अशोक गुप्ता को आमंत्रित किया गया था । अशोक गुप्ता की स्वीकृति मिलने के बाद उक्त सेमीनार के निमंत्रण पत्र में अशोक गुप्ता को चीफ गेस्ट दर्शाते हुए उनकी तस्वीर प्रकाशित कर दी गई । इस पर अशोक गुप्ता को केआर रवींद्रन की तरफ से आपत्ति मिली, और उक्त सेमीनार में उनके चीफ गेस्ट बनने को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव की आचारसंहिता के उल्लंघन के रूप में बताया गया । इसके बाद, अशोक गुप्ता ने उक्त सेमीनार में चीफ गेस्ट बनने से इंकार कर दिया; फलस्वरूप सेमीनार के आयोजकों को चीफ गेस्ट के लिए कोई और प्रमुख व्यक्ति खोजना पड़ा और निमंत्रण पत्र दोबारा तैयार करवाना पड़ा । अशोक गुप्ता और सेमीनार की तैयारी से जुड़े लोगों ने यह सब करवाने के लिए राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स को जिम्मेदार ठहराया । अशोक गुप्ता तथा दूसरे कई लोगों की शिकायत लेकिन यह है कि एक डिस्ट्रिक्ट के डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप सेमीनार में अशोक गुप्ता के चीफ गेस्ट बनने में चुनावी आचारसंहिता का उल्लंघन देख रहे केआर रवींद्रन ने दीपक कपूर द्वारा पोलियो मीट कराए जाने पर अपनी आँखें बंद क्यों कर ली हैं ?

Saturday, August 26, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में टीके रूबी को गवर्नर बनाए जाने के फैसले से खफा राजा साबू ने निर्णय लेने की जॉन जर्म की क्षमताओं और नीयत पर सवाल उठा कर खुद को रोटरी से ऊपर और बड़ा दिखाने की कोशिश की है क्या ?

चंडीगढ़ । टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर घोषित करने के निवर्तमान इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जॉन जर्म के फैसले को चुनौती देते हुए राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स द्वारा लिखे/ भेजे गए पत्र को आज ठीक एक महीना हो गया है, लेकिन रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय में किसी ने उसका कोई संज्ञान तक नहीं लिया है - इससे साबित है कि रोटरी इंटरनेशनल में राजा साबू का सारा 'राजा-पना' पूरी तरह झड़ चुका है । राजा साबू का राजा-पना तो हालाँकि जून माह के तीसरे सप्ताह में तभी झड़ गया था, जब इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के रूप में जॉन जर्म ने डिस्ट्रिक्ट 3080 के वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए टीके रूबी के नाम की घोषणा की थी । रोटरी इंटरनेशनल के मौजूदा सत्ता-समीकरणों को जानने/पहचानने वाले वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना है कि रोटरी इंटरनेशनल में राजा साबू की यदि जरा सी भी - जरा सी भी 'इज्जत' बची होती, तो टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनने का फैसला न हुआ होता । यह फैसला राजा साबू की खासी फजीहत करने वाला फैसला था । रोटरी के अधिकतर बड़े नेताओं को जॉन जर्म के इस फैसले में 'भिगो कर जूता मारने' वाली कहावत चरितार्थ होते हुए दिखी । कुछेक लोगों ने इस फैसले को 'पोएटिक जस्टिस' के नायाब उदाहरण के रूप में भी देखा/पहचाना । टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर घोषित करने के जॉन जर्म के फैसले में राजा साबू के लिए जो 'संदेश' था, उसे दूसरों के साथ-साथ राजा साबू ने भी 'पढ़' लिया था - और यही कारण रहा कि वह समझ ही नहीं पाए कि अपनी इस सार्वजनिक दुर्गति पर कैसे रिएक्ट करें ?
दीये में जब तेल खत्म हो रहा होता है और लौ बुझने को होती है, तब लौ बड़ी तेजी से भभकती है और यह आभास देने की कोशिश करती है कि वह बुझ नहीं रही है बल्कि और तेजी से चमकेगी - लेकिन भभकते भभकते ही वह बुझ जाती है । रोटेरियन और रोटरी लीडर के रूप में राजा साबू की भी यही दशा हो रही है - टीके रूबी को लेकर फरवरी 2015 से शुरू हुए घटना चक्र के अभी तक के 30 महीनों में घटी घटनाओं को देखें, तो राजा साबू को डिस्ट्रिक्ट से लेकर इंटरनेशनल बोर्ड तक में हर जगह लगातार मात पर मात मिली है; जॉन जर्म के फैसले से उनकी मात पर अंतिम मुहर भी लग गई है - लेकिन राजा साबू फिर भी भभक भभक उठ रहे हैं । मजे की बात है कि राजा साबू ने हाल ही में क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को लिखे पत्र में नसीहत दी है कि रोटरी को 'गुरु' के तथा एक टीचर के रूप में देखना चाहिए और रोटरी की वैल्यूज पर विश्वास करना चाहिए - पर इस नसीहत पर वह खुद अमल करते हुए नहीं दिखते हैं । 'कहना कुछ और करना कुछ' की तर्ज पर राजा साबू के व्यक्तित्व और व्यवहार का दोगलापन लोग हालाँकि पहले से देखते रहे हैं, लेकिन ज्यादा मुखर होकर यह अब रेखांकित हुआ है । क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को रोटरी की वैल्यूज पर विश्वास रखने की नसीहत देने वाले राजा साबू ने रोटरी की यह 'वैल्यू' कहाँ और कब सीखी कि एक पूर्व प्रेसीडेंट के रूप में वह मौजूदा प्रेसीडेंट और इंटरनेशनल बोर्ड के फैसले पर ऊँगली उठाएँ ?
रोटरी के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि एक पूर्व प्रेसीडेंट रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड और प्रेसीडेंट के फैसले की आलोचना कर रहा है । उल्लेखनीय है कि किसी भी समाज और संगठन में व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह जरूरी माना जाता है कि सबसे बड़ी इकाई (बॉडी) द्वारा लिए गए फैसले को स्वीकार करना ही होता है । सुप्रीम कोर्ट का फैसला किसी को भले ही न्याय करता हुआ न लगे, लेकिन फिर भी उसे मानना ही होता है । जिम्मेदार लोगों से उम्मीद की जाती है कि वह उस फैसले को शिष्टता और गरिमा के साथ स्वीकार करें । रोटरी में सर्वोच्च इकाई इंटरनेशनल बोर्ड है और सर्वोच्च पद प्रेसीडेंट है । रोटरी की तमाम वैल्यूज में एक यह भी है कि इनके फैसले को चेलैंज नहीं किया जा सकता है । डीसी बंसल ने इनके फैसले को चेलैंज किया तो उन्हें रोटरी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है । रोटरी की वैल्यूज डीसी बंसल के लिए और राजा साबू के लिए अलग अलग हैं क्या ? कोई तर्क दे सकता है कि इंटरनेशनल बोर्ड और प्रेसीडेंट के फैसले के खिलाफ डीसी बंसल 'रोटरी के बाहर' गए, इसलिए उन्हें रोटरी से बाहर कर दिया गया है; राजा साबू तो रोटरी के भीतर ही अपनी बात कह रहे हैं । यह तर्क लेकिन इस तथ्य की अनदेखी करता है कि रोटरी में ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं है, जिसमें इंटरनेशनल बोर्ड और प्रेसीडेंट के फैसले के खिलाफ कुछ किया/कहा जा सके । इस व्यवस्था के अभाव के कारण ही डीसी बंसल को रोटरी के बाहर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा । डीसी बंसल का मुख्य गुनाह यह है कि इंटरनेशनल बोर्ड और प्रेसीडेंट के जिस अंतिम फैसले को सम्मान और गरिमा के साथ स्वीकार करने की 'वैल्यू' का पालन करने की उम्मीद की जाती है, वह उसमें फेल हुए । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स भी इस 'वैल्यू' का पालन नहीं कर रहे हैं - तो उनका गुनाह कम कैसे हो गया ?
रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड और प्रेसीडेंट के अंतिम फैसले को डीसी बंसल स्वीकार नहीं कर सके, यह बात तो फिर भी समझ में आती है; लेकिन उस फैसले से राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को 'आहत' क्यों होना चाहिए - वह उस अंतिम फैसले को सम्मान और गरिमा के साथ क्यों स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं ? क्या यह इस बात का सुबूत नहीं है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स अपने आप को रोटरी से ऊपर समझ रहे हैं, और उन्हें यह बात हजम नहीं हो रही है कि फरवरी 2015 में हुए चुनाव में टीके रूबी को मिली जीत को तरह तरह की प्रपंचबाजी से हार में बदलने की उनकी सारी कोशिशें आखिर फेल कैसे हो गईं और उनके न चाहने के बावजूद टीके रूबी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कैसे बन गए ? इंटरनेशनल प्रेसीडेंट को संबोधित राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स द्वारा लिखे/भेजे गए पत्र को देखने/पढ़ने वाले लोगों में से जिस किसी से भी इन पँक्तियों के लेखक की बात हो सकी है, उन सभी ने माना और कहा है कि पत्र में इस्तेमाल हुए शब्द, पत्र की भाषा और भाषा का तेवर राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के फ्रस्ट्रेशन और उनके अहंकार को प्रदर्शित करता है । यह पत्र न केवल निवर्तमान प्रेसीडेंट जॉन जर्म की क्षमताओं तथा उनकी नीयत के प्रति संदेह जताता है, बल्कि मौजूदा प्रेसीडेंट ईयान रिसले के प्रति भी किंचित अभद्रता  प्रकट करता है । राजा साबू के इस रवैये ने लोगों को हैरान किया है । इससे पहले किसी पूर्व प्रेसीडेंट ने मौजूदा प्रेसीडेंट के साथ/प्रति इस तरह की हरकत नहीं की है । इसे राजा साबू के राजा-पने के भभकने के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । रोटरी में राजा साबू के राजा-पने की क्या हैसियत रह गई है, यह इससे भी साबित है कि 27 जुलाई के उक्त पत्र को लिखे/भेजे आज ठीक एक महीना हो गया है - लेकिन रोटरी इंटरनेशनल में उसका किसी ने संज्ञान तक नहीं लिया है । राजा साबू से हमदर्दी रखने वाले लोगों को राजा साबू की इस दशा पर दया भी आ रही है; उनका कहना है कि राजा साबू को समझ लेना चाहिए कि पहले की तरह अब उनकी मनमानियाँ नहीं चल सकेंगी । कुछेक लोगों का तो कहना है कि अपने भाषणों और अपने पत्रों में राजा साबू दूसरों को जो नसीहतें देते रहते हैं, उन पर कभी खुद भी अमल कर लिया करें; और रोटरी की वैल्यूज पर खुद भी विश्वास करना सीखें !

Friday, August 25, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल ने रोटरी नोएडा ब्लड बैंक की कमाई हड़पने के मामले में खुद को बचाने के लिए कल्याण बनर्जी और सुशील गुप्ता को छोड़ कर इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर की शरण ली

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल को रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के घपलों और उन घपलों में अपनी मिलीभगत के आरोपों से बचने के लिए दिल्ली एक कार्यक्रम में आए इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम को सफाई देने के लिए मजबूर होना पड़ा । सतीश सिंघल दरअसल अपने इस ब्लड बैंक की कमाई को लेकर गंभीर आरोपों के घेरे में हैं - जो खुद उनके लिए, डिस्ट्रिक्ट के लिए तथा रोटरी के लिए बदनामी का सबब बन रहे हैं । रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी के रूप में सतीश सिंघल पर गंभीर वित्तीय आरोपों से चूँकि रोटरी के कई बड़े नेता भी परिचित हैं; और समय समय पर उक्त आरोपों के कारण रोटरी की होने वाली बदनामी के प्रति वह चिंता भी व्यक्त करते रहे हैं - इसलिए सतीश सिंघल को डर है कि इन आरोपों के कारण रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय की तरफ से वह कभी भी 'सजा' पा सकते हैं ।
उल्लेखनीय है कि रोटरी के नाम पर धंधा करने तथा पैसों की बेईमानियाँ करने के आरोप में पिछले दिनों ही डिस्ट्रिक्ट 3100 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील गुप्ता को गवर्नर-काल पूरा होने से पहले ही गवर्नर पद से हटा दिया गया है; और डिस्ट्रिक्ट 3030 में पूर्व गवर्नर निखिल किबे सहित तीन वरिष्ठ रोटेरियंस को रोटरी से ही निकाल दिया गया है । रोटरी इंटरनेशनल की इन कार्रवाइयों ने सतीश सिंघल को अपनी गवर्नरी के प्रति बुरी तरह डराया हुआ है, और उन्हें लग रहा है कि रोटरी नोएडा ब्लड बैंक की घपलेबाजियों के कारण कहीं उनके साथ भी सुनील गुप्ता और निखिल किबे जैसा सुलूक न हो जाए ?
सतीश सिंघल पहले हालाँकि पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता और पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट कल्याण बनर्जी के भरोसे थे; उन्हें उम्मीद थी कि यह दोनों उन्हें बचा लेंगे, लेकिन इन दोनों पर से उनका भरोसा तब से उठ गया है, जब से उन्हें पता चला है कि कल्याण बनर्जी की छत्रछाया के बावजूद सुशील गुप्ता अपने डिस्ट्रिक्ट में रोटरी क्लब दिल्ली राजधानी की एक मैचिंग ग्रांट में हुई बेईमानी के मामले में खुद फँस गए हैं । सतीश सिंघल ने अपने नजदीकियों से कहा है कि कल्याण बनर्जी जब सुशील गुप्ता को नहीं बचा पाए, तो उन्हें क्या और कैसे बचायेंगे; और सुशील गुप्ता पहले खुद को बचायेंगे या उन्हें बचायेंगे ? कल्याण बनर्जी और सुशील गुप्ता की तरफ से निराश होकर सतीश सिंघल ने मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम का दामन पकड़ने में ही अपनी भलाई देखी है । 
रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी के रूप में सतीश सिंघल की बेईमानीभरी भूमिका की पोल खोलने का काम दिल्ली स्थित रोटरी ब्लड बैंक के 'नतीजों' ने किया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल की देखरेख में चल रहे दिल्ली स्थित रोटरी ब्लड बैंक में प्रति माह करीब 2500 यूनिट ब्लड की बिक्री करके 15 से 20 लाख रुपए का लाभ दर्ज किया जा रहा है, जबकि सतीश सिंघल रोटरी नोएडा ब्लड बैंक में प्रति माह करीब 2500 यूनिट ब्लड की बिक्री से कुल करीब 34/35 हजार रुपए का ही लाभ 'बताते' हैं । दोनों ब्लड बैंक के हिसाब-किताब की जानकारी रखने वाले लोगों को हैरानी यह देख/जान कर हुई कि दिल्ली वाला ब्लड बैंक ढाई हजार के करीब यूनिट बेच कर जब 15 से 20 लाख रुपए के करीब का लाभ कमा लेता है, तो सतीश सिंघल की देखरेख में चलने वाले ब्लड बैंक की कमाई उतने ही यूनिट ब्लड बेचने के बाद 34/35 हजार रुपए के करीब पर ही क्यों ठहर जाती है ? यहाँ नोट करने की बात यह भी है कि दिल्ली वाला ब्लड बैंक बड़ा है, और इसलिए उसके खर्चे भी ज्यादा हैं; ब्लड के विभिन्न कंपोनेंट्स के दाम बिलकुल बराबर हैं - बल्कि एक कंपोनेंट के दाम सतीश सिंघल के ब्लड बैंक में कुछ ज्यादा ही बसूले जाते हैं । इस लिहाज से सतीश सिंघल की देखरेख में चलने वाले रोटरी नोएडा ब्लड बैंक का लाभ तो और भी ज्यादा होना चाहिए । लाभ के इस बड़े अंतर ने ब्लड बैंक के कर्ता-धर्ता के रूप में सतीश सिंघल की भूमिका को न सिर्फ संदेहास्पद बना दिया है, बल्कि गंभीर वित्तीय आरोपों के घेरे में भी ला दिया है ।
सतीश सिंघल का अपना व्यवहार व रवैया भी उनकी भूमिका के प्रति संदेह व आरोपों को विश्वसनीय बनाने का काम करता है । रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के ट्रस्टी अक्सर शिकायत करते सुने गए हैं कि सतीश सिंघल ब्लड बैंक का हिसाब-किताब देने/बताने में हमेशा आनाकानी करते हैं, और पूछे जाने पर नाराजगी दिखाने लगते हैं । सतीश सिंघल के इस व्यवहार और रवैये से लोगों को विश्वास हो चला है कि सतीश सिंघल ब्लड बैंक में ऐसा कुछ करते हैं, जिसे दूसरों से छिपाकर रखना चाहते हैं । ब्लड बैंक के कुछेक ट्रस्टियों का ही आरोप भी रहा कि सतीश सिंघल ब्लड बैंक को अपने निजी संस्थान के रूप में इस्तेमाल करते हैं, और उसकी कमाई हड़प जाते हैं । सतीश सिंघल अपना पूरा समय ब्लड बैंक में ही बिताते हैं, जिससे लगता है कि उनके पास और कोई कामधंधा नहीं है । सतीश सिंघल के इसी व्यवहार व रवैये से लोगों को यह लगता रहा है कि रोटरी ब्लड बैंक को उन्होंने अपनी कमाई का जरिया बना लिया है - और अपनी 'कमाई' भी वह बेईमानीपूर्ण तरीके से निकालते हैं ।
रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों ने पिछले कुछ समय से प्रोजेक्ट्स और समाज-सेवा करने के नाम पर बेईमानी और चोरी-चकारी करने वाले रोटेरियंस तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तक पर जिस तरह की निगरानी रखने और उनके खिलाफ कड़े फैसले लेने का रवैया अपनाया हुआ है, उससे सतीश सिंघल को डर हुआ है कि वह कभी भी रोटरी इंटरनेशनल की चपेट में आ सकते हैं । इससे बचने के लिए ही सतीश सिंघल मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम को सफाई देने के लिए मजबूर हुए । सतीश सिंघल और उनके नजदीकियों को यह डर भी है कि सतीश सिंघल के खिलाफ यदि अभी ही कार्रवाई हो गयी तो इसका डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उनके समर्थन पर निर्भर आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी पर बहुत ही बुरा असर पड़ेगा । अभी ही कई लोग सिर्फ इस कारण से आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के विरोध में हैं कि आलोक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को सफल बनाने के लिए रोटरी के नाम पर धंधा करने वाले सतीश सिंघल जैसे व्यक्ति पर निर्भर हैं; ऐसे में आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थकों को भी चिंता हुई है कि सतीश सिंघल यदि डिस्ट्रिक्ट 3100 के सुनील गुप्ता और डिस्ट्रिक्ट 3030 के निखिल किबे वाली दशा को प्राप्त हुए, तब फिर तो आलोक गुप्ता के लिए हालात और भी मुश्किल हो जायेंगे ।

Thursday, August 24, 2017

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की मनमानियों को शह मिलती 'देख' सेंट्रल काउंसिल सदस्य प्रेसीडेंट से मिली जिम्मेदारी को निभाने से पीछे हटे

नई दिल्ली । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे का कार्यकाल जिस तरह के विवादों और आरोपों का शिकार हो रहा है, उसमें इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों ने उनकी बात मानने से इंकार करके एक अध्याय और जोड़ दिया है । इससे पहले शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि सेंट्रल काउंसिल के किन्हीं सदस्यों को प्रेसीडेंट कोई जिम्मेदारी सौंपे, और सेंट्रल काउंसिल सदस्य उसे मानने और पूरा करने से पीछे हट जाएँ । उल्लेखनीय है कि नीलेश विकमसे ने नॉर्दर्न रीजन के सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों तथा दूसरे सदस्यों के बीच चल रहे टकराव को दूर करने की जिम्मेदारी सौंपी थी, जिसे तत्परता से निभाने की कोशिश करते हुए सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने पिछले सप्ताह रीजनल काउंसिल सदस्यों की एक मीटिंग बुलाई, उस मीटिंग में तय हुए काम को आगे बढ़ाने की श्रृंखला में लेकिन कल जो मीटिंग हुई - सेंट्रल काउंसिल सदस्य उसमें शामिल नहीं हुए, जिस कारण पटरी पर आता दिख रहा मामला एक बार फिर पटरी से उतरता हुआ नजर आ रहा है । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने अपनी अनुपस्थिति को लेकर कोई औपचारिक बयान तो नहीं दिया है, लेकिन उनकी तरफ से लोगों को सुनने को मिला है कि चूँकि उन्हें नहीं लगता कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में गड़बड़ी के जिम्मेदार पदाधिकारियों के खिलाफ प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे सचमुच कोई कार्रवाई करेंगे, इसलिए जब कुछ होना ही नहीं है - तो वही क्यों अपने आप को मुसीबत में डालें ?
सेंट्रल काउंसिल सदस्य दरअसल पिछले सप्ताह हुई मीटिंग में नितिन कँवर द्वारा अतुल गुप्ता के साथ की गयी बदतमीजी से 'डर' गए हैं । मीटिंग में निकासा चेयरमैन नितिन कँवर ने सेंट्रल काउंसिल के वरिष्ठ सदस्य अतुल गुप्ता के साथ जो बदतमीजी की, अतुल गुप्ता ने हालाँकि नितिन कँवर को उसका करारा जबाव तो मीटिंग में ही दे दिया था - लेकिन नितिन कँवर के व्यवहार ने सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को यह सोचने पर मजबूर किया कि नितिन कँवर को 'समर्थन' किसका और कहाँ से मिल रहा है, जिसके बल पर वह सेंट्रल काउंसिल के एक वरिष्ठ सदस्य के साथ भी बदतमीजी करने की हिम्मत कर रहा है । यह सवाल गंभीर इसलिए बना क्योंकि उक्त मीटिंग से पहले हुई रीजनल काउंसिल की मीटिंग में दो ऑब्जर्बर्स की उपस्थिति में नितिन कँवर और राजेंद्र अरोड़ा ने बदतमीजी की थी - जिसे लेकर दोनों ऑब्जर्बर्स ने अपनी रिपोर्ट में प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज की थी । ऑब्जर्बर्स की रिपोर्ट के आधार पर इनके खिलाफ कार्रवाई हुई होती, तो नितिन कँवर की अतुल गुप्ता के साथ बदतमीजी करने की हिम्मत नहीं होती । इस बात को 'समझ' कर सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने जान लिया कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में मनमानी बेईमानियाँ तथा बदतमीजी करने वाले पदाधिकारियों को 'ऊपर' से समर्थन प्राप्त है - जिसके बल पर उक्त पदाधिकारी उनके साथ भी बदतमीजी कर सकते हैं, नितिन कँवर ने उसका नजारा पेश कर ही दिया है; इसलिए उनसे दूर रहने में ही भलाई है ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों को सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा के समर्थन की बात जगजाहिर है । इसके साथ-साथ यह बात भी इंस्टीट्यूट के लोगों की जुबान पर रहती है कि नीलेश विकमसे पता नहीं क्यों राजेश शर्मा से बड़ा 'घबराते' हैं । समझा जाता है कि नीलेश विकमसे पर राजेश शर्मा के प्रभाव के कारण ही नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों को न सिर्फ मनमानियाँ व बेईमानियाँ करने की छूट मिली हुई है, बल्कि ऑब्जर्बर्स की उपस्थिति में भी बदतमीजी करने का अधिकार मिला हुआ है । इस अधिकार से वह इतने मस्त हैं कि उन्होंने अपने ही रीजन के सेंट्रल काउंसिल काउंसिल सदस्य अतुल गुप्ता तक का भी कोई लिहाज नहीं किया और उनके साथ भी बदतमीजी कर बैठे । ऐसे में, सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने समझ लिया कि प्रेसीडेंट से संरक्षण प्राप्त रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की बदतमीजी का शिकार होने से उन्हें यदि बचना है, तो प्रेसीडेंट द्वारा दी गयी जिम्मेदारी को उन्हें छोड़ना ही पड़ेगा - और इसीलिए कल हुई मीटिंग से वह दूर ही रहे, जिसका नतीजा रहा कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों को मनमानी तथा बदतमीजी करने की पूरी छूट मिल गयी ।
पिछले सप्ताह हुई मीटिंग में जब प्रेसीडेंट के निर्देश पर सेंट्रल काउंसिल सदस्य आए थे, तब रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों पर कुछ दबाव पड़ा था और उनकी मनमानियों पर रोक लग सकी थी । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के दबाव के चलते रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी रीजनल काउंसिल के दूसरे सदस्यों को एकाउंट्स दिखाने के लिए मजबूर हुए थे, जिसमें पदाधिकारियों की बेईमानियों और चोरी के सुबूत मिले थे । दरअसल इससे ही बौखला कर नितिन कँवर ने अतुल गुप्ता के साथ बदतमीजी की थी । कल की मीटिंग से सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के दूर रहने/होने से रीजनल काउंसिल में  हालात फिर से पहले जैसे ही होते नजर आए । इंस्टीट्यूट के इतिहास में शायद यह पहली बार ही हुआ होगा कि सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों ने प्रेसीडेंट द्वारा सौंपे गए काम को करने से 'इंकार' किया है ।

Wednesday, August 23, 2017

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के दो-तीन बेईमान पदाधिकारियों के सामने सेंट्रल काउंसिल सदस्य और इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट तक लाचार क्यों बने हुए हैं ?

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़, सेक्रेटरी राजेंद्र अरोड़ा और निकासा चेयरमैन नितिन कँवर ने 'चोर चोर मौसेरे भाई' वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए पिछले वर्ष की बेईमानी के आरोपों से भरी बैलेंसशीट को पास करवाने में एकता का आज की मीटिंग में बेशर्मीभरा परिचय दिया । दीपक गर्ग, पंकज पेरिवाल तथा सुमित गर्ग ने इस एकता में 'फर्स्ट कज़िन' की भूमिका निभाई । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष की बैलेंसशीट को लेकर रीजनल काउंसिल के सदस्यों के बीच काफी समय से विवाद चल रहा है । काउंसिल के ही कुछेक सदस्यों का आरोप है कि काउंसिल के पदाधिकारियों ने अनापशनाप खर्चे किए हुए हैं, और फर्जी किस्म के बिलों के जरिए काफी मोटी रकम हड़पी हुई है । इन आरोपों को तब और बल मिला, जब काउंसिल के पदाधिकारियों ने बैलेंस शीट में जुड़े खर्चों के डिटेल्स काउंसिल सदस्यों को ही दिखाने/बताने से इंकार कर दिया । 'चोर की दाढ़ी में तिनका' वाली कहावत को प्रासंगिक बनाते हुए रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के इस इंकार ने जो बबाल मचाया, उसकी गूँज इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे तक पहुँची, जिन्होंने सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व कर रहे सदस्यों से मामले को देखने और निपटाने को कहा ।
सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की उपस्थिति में पिछले सप्ताह रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी आरोप लगाने वाले काउंसिल सदस्यों को बैलेंस शीट में दिखाए गए खर्चों के डिटेल्स दिखाने के लिए मजबूर हुए । डिटेल्स देखने वाले काउंसिल सदस्यों ने खर्चों में भारी अनियमितता और बेईमानियाँ रेखांकित कीं । चेयरमैन राकेश मक्कड़ के भाई को बेईमानीपूर्ण तरीके से क्लासेस देने और तय शर्तों से ज्यादा पैसा देने का मामला पकड़ा गया; टीए/डीए के नाम पर तो अनापशनाप बिल पकड़े ही गए, हद की बात तो यह सामने आई कि किसी ब्रांच में गए, तो उसके नजदीक के मंदिर में भी गए और वहाँ हजारों रुपए का प्रसाद खरीदा और उस प्रसाद का बिल भी रीजनल काउंसिल के खाते में डाल दिया । निकासा चेयरमैन के रूप में राजेंद्र अरोड़ा ने जो कन्वेंशन की, उसमें करीब तीन-चार सौ छात्रों की उपस्थिति की बात सामने आई थी, लेकिन खर्चे करीब एक हजार छात्रों की उपस्थिति के हिसाब से डाले हुए हैं । अनापशनाप रकम के फर्जी किस्म के बिलों को पास करने और पैसे देने में तत्कालीन ट्रेजरर नितिन कँवर ने जो तत्परता दिखाई, उससे लगता है कि जैसे उन्हें इसके लिए कमीशन मिला है । गंभीर आरोप यह लगा है कि बैलेंस शीट का ऑडिट करने में भी नियमों का पालन नहीं हुआ है, और ऑडीटर ने भी इस तथ्य को लेकर अपनी आँखें बंद ही किए रखीं ।
सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की उपस्थिति में पिछले सप्ताह रीजनल काउंसिल के ही सदस्यों ने जो तमाम अनिमितताएँ पकड़ीं, उन पर काउंसिल के पदाधिकारियों को आज की मीटिंग में जबाव देना था । आज की मीटिंग में चूँकि सेंट्रल काउंसिल सदस्य नहीं पहुँचे - इसलिए राकेश मक्कड़, राजेंद्र अरोड़ा और नितिन कँवर की तिकड़ी ने मनमानी और बदतमीजी का एकबार फिर नंगानाच किया और आरोपों का संतोषप्रद जबाव देने से बचते हुए जोरजबर्दस्ती से बैलेंसशीट पास कराने का प्रयास किया । इसमें कामयाब न होने पर वह बैलेंसशीट पर वोट करवाने के लिए मजबूर हुए । मीटिंग में उपस्थित 12 काउंसिल सदस्यों में बैलेंसशीट को पास करने के पक्ष में छह सदस्यों का ही वोट मिला । सत्ता खेमे के लिए फजीहत की बात यह हुई कि काउंसिल के वाइस चेयरमैन विवेक खुराना ने भी बेईमानीपूर्ण खर्चों वाली बैलेंसशीट को पास करने का विरोध किया । बैलेंसशीट को पास कराने की जिद पर अड़े राकेश मक्कड़ ने तब चेयरमैन के रूप में अपना डिसाइडिंग वोट देते हुए बैलेंसशीट को पास कराया । न्याय का तकाजा तो यह कहता है कि जब राकेश मक्कड़ पर अपने भाई को बेईमानीपूर्ण तरीके से फायदा पहुँचाने का आरोप है, तब राकेश मक्कड़ को तो वोटिंग में हिस्सा ही नहीं लेना चाहिए था - लेकिन वोटिंग में राकेश मक्कड़ अपने दो वोट गिनवाते हैं; और इस तरह अपनी तथा दूसरों की 'चोरी' को जस्टीफाई करते हैं ।
बैलेंसशीट को पास करने का विरोध कर रहे सदस्यों ने नितिन कँवर को खूब उलाहना भी दिया कि ब्रांचेज में और दूसरी जगहों पर भाषण देते हुए तो अपनी ईमानदारी का बड़ा ढोल पीटते हो, यहाँ लेकिन बेईमानों और काउंसिल में लूट-खसोट मचाने वालों का साथ दे रहे हो - नितिन कँवर पर लेकिन किसी उलाहने का असर नहीं पड़ा और उन्होंने 'मौसेरे भाई' वाली भूमिका ही निभाई । सत्ता खेमे के लोग बैलेंसशीट को पास करा लेने में तो आज कामयाब हो गए हैं, लेकिन विवाद अभी थमता हुआ दिख नहीं रहा है । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की सक्रियता और इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट की दिलचस्पी के बाद भी नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में लूटखसोट को नियंत्रित नहीं किया जा पा रहा है, तो इससे लूटखसोट की प्रवृत्ति की जड़ों के दूर दूर तक फैले होने का आभास ही मिलता है । इस सारे विवाद से परिचित लोगों को हैरानी इस बात की भी है कि रीजनल काउंसिल के दो-तीन बेईमान पदाधिकारी-सदस्यों के सामने सेंट्रल काउंसिल सदस्य और इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट तक लाचार क्यों बने हुए हैं ?

Tuesday, August 22, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की मदद करने की कोशिश, प्रेसीडेंट्स को नाराज करने के कारण संजीव राय मेहरा का काम बनाने की बजाए बिगाड़ती दिख रही है

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ एण्ड के चार वोटों को कब्जाने को लेकर संजीव राय मेहरा और अनूप मित्तल के बीच मची होड़ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी के भी होड़ में कूद पड़ने के कारण खासी गंभीर हो गयी है । क्लब के पदाधिकारियों का ही कहना है कि रवि चौधरी ने कई बार उनसे उनकी चुनावी पक्षधरता के बारे में पूछताछ की है और उन्हें कहा है कि उन्हें किसी भी तरह के प्रेशर में आने की जरूरत नहीं है । रवि चौधरी ने उनसे अभी किसी की तरफदारी तो नहीं की है, लेकिन संकेतों में यह आभास कराने का पूरा पूरा प्रयास किया है कि उन्हें अनूप मित्तल से दूर रहना है । रवि चौधरी के इस हस्तक्षेप पर क्लब के कुछेक प्रमुख लोगों ने ऐतराज भी जताया है, और रवि चौधरी को यह 'बताने' का काम भी किया है कि वह क्लब के चुनावी फैसले को प्रभावित करने का प्रयास न करें - अपनी पक्षधरता तय करने में क्लब के पदाधिकारी पूरी तरह से सक्षम हैं । क्लब की चुनावी पक्षधरता को प्रभावित करने की रवि चौधरी की कोशिश पर क्लब के लोगों की तरफ से जो प्रतिक्रिया देखने को मिली है, उसने संजीव राय मेहरा के लिए परेशानी खड़ी करने का काम किया है । संजीव राय मेहरा की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर हुआ है कि रवि चौधरी की इस तरह की हरकत उन्हें फायदा पहुँचाने की बजाए कहीं नुकसान न पहुँचाए ।
संजीव राय मेहरा के लिए रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ एण्ड का बहुत महत्त्व है । यह क्लब उनके पक्के समर्थक के रूप में पहचाना जाता है । पिछले चुनाव में संजीव राय मेहरा इसकी हैंडलिंग ठीक से नहीं कर पाए थे । चुनाव का नतीजा आने के बाद संजीव राय मेहरा और उनके समर्थकों ने ही नहीं, बल्कि उनके विरोधियों ने भी माना कि दिल्ली साऊथ एण्ड की हैंडलिंग यदि ठीक से की गयी होती - तो सुरेश भसीन की जगह संजीव राय मेहरा चुनाव जीते होते । क्लब के कई प्रमुख सदस्य संजीव राय मेहरा के नजदीकी और शुभचिंतक हैं । पिछले चुनाव में लेकिन अनूप मित्तल ने तत्कालीन क्लब प्रेसीडेंट को अपने पक्ष में कर लिया था; हालाँकि रवि दयाल के समर्थक कुछेक नेताओं का दावा था कि प्रेसीडेंट रवि दयाल को वोट देना चाहता है । संजीव राय मेहरा और उनके समर्थकों को जब पता चला कि प्रेसीडेंट उन्हें तो वोट नहीं ही देगा, तब उन्होंने क्लब के अपने नजदीकियों व शुभचिंतकों के साथ मिल कर प्रेसीडेंट की घेराबंदी की - लेकिन घेराबंदी का दबाव इतना ज्यादा हो गया कि प्रेसीडेंट ने चुनाव का ही बहिष्कार कर दिया । चुनावी नतीजे के डिटेल्स मिलने के बाद संजीव राय मेहरा और उनके समर्थकों को महसूस हुआ कि अपने पक्के समझे जाने वाले क्लब के प्रेसीडेंट को 'साधने' के लिए वह यदि होशियारी से काम लेते, तो वरीयता क्रम में सुरेश भसीन से ऊपर होते और सुरेश भसीन की जगह वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाते ।
संजीव राय मेहरा और उनके समर्थक पिछले रोटरी वर्ष में की गयी चूक इस वर्ष नहीं दोहराना चाहते हैं; और इसलिए रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ एण्ड का समर्थन जुटाने को लेकर इस वर्ष वह सावधानी के साथ काम कर रहे हैं । एक उम्मीदवार के रूप में अनूप मित्तल भी इस क्लब का समर्थन जुटाने का प्रयास कर रहे हैं । चार वोटों का मामला होने के कारण हर उम्मीदवार की इस क्लब पर 'निगाह' होना स्वाभाविक ही है । वास्तव में इसीलिए संजीव राय मेहरा और अनूप मित्तल की कोशिशों पर कोई विवाद नहीं हुआ; विवाद तब शुरू हुआ, जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी इसमें कूदे । क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को तरह तरह की तिकड़मों से अपने 'नजदीक' करने की कोशिशों के कारण रवि चौधरी पहले से ही आरोपों के घेरे में हैं; उनकी कोशिशों से कई प्रेसीडेंट्स अपने को अपमानित महसूस कर चुके हैं और इस बारे में आपस में शिकायत करते हुए सुने गए हैं । रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ एण्ड के मामले में लेकिन रवि चौधरी कुछ ज्यादा ही 'सक्रिय' हुए हैं, क्लब के पदाधिकारियों तथा अन्य सदस्यों ने उनकी इस अतिरिक्त सक्रियता को क्लब में अनावश्यक हस्तक्षेप के रूप में देखा/पहचाना है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि चौधरी के इस रवैये के प्रति अपनी नाराजगी प्रकट की है ।
रवि चौधरी के रवैये और व्यवहार पर रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ एण्ड के सदस्यों के बीच जिस तरह की नाराजगी सुनी/देखी गई है, उसने संजीव राय मेहरा और उनके समर्थकों को डरा दिया है - उन्हें डर हुआ है कि रवि चौधरी की हरकतों और उससे पैदा होने वाली नाराजगी के चलते कहीं इस बार भी उनका काम न बिगड़ जाए, पिछली बार भी उनके समर्थकों की जोशभरी बेवकूफी ने ही उनका काम खराब किया था । इससे रवि चौधरी के सामने दोहरी फजीहत की स्थिति बनी है - उन्हें एक तरफ तो क्लब्स के प्रेसीडेंट्स की नाराजगी का शिकार होना पड़ रहा है; और दूसरी तरफ प्रेसीडेंट्स की यह नाराजगी वह जिन संजीव राय मेहरा के लिए मोल ले रहे हैं - वह संजीव राय मेहरा तथा उनके समर्थक उन पर 'काम' बिगाड़ने का आरोप लगा रहे हैं । इस तरह, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी के लिए 'हवन करते, हाथ जलने' के हालात बन गए हैं ।

Monday, August 21, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जल्दी करवाने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल की घोषणा ललित खन्ना की उम्मीदवारी के मुकाबले आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी की कमजोर स्थिति का स्वीकार है क्या ?

नोएडा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए जल्दी चुनाव कराने की घोषणा पर लोगों की, खासतौर से क्लब्स के प्रेसीडेंट्स की तरफ से मिल रही प्रतिक्रियाओं ने आलोक गुप्ता के लिए मुसीबतें खासी बढ़ा दी हैं । उन्हें लोगों के इस सवाल का सामना करना पड़ रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अपनी जीत को लेकर वह यदि सचमुच आश्वस्त हैं, तो फिर चुनाव जल्दी क्यों करवा रहे हैं - और आलोक गुप्ता का कोई भी जबाव लोगों को किसी भी तरह से संतुष्ट नहीं कर पा रहा है । गंभीर बात यह है कि आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को जो लोग मजबूत मान/समझ रहे थे, उन्होंने भी जल्दी चुनाव कराने के फैसले को आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी की कमजोरी के रूप में देखा/पहचाना है; वह स्वीकार कर रहे हैं कि वह गलतफहमी का शिकार थे और जल्दी चुनाव कराने के फैसले ने उनकी गलतफहमी को दूर कर दिया है - उन्हें भी समझ में आ रहा है कि चुनावी नजरिए से आलोक गुप्ता की स्थिति मजबूत होती, तो उनकी उम्मीदवारी की बागडोर सँभालने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल जल्दी चुनाव करवाने का फैसला भला क्यों करते ? लोगों की प्रतिक्रियाओं से लग रहा है कि आलोक गुप्ता ने अपनी मेहनत से अपनी उम्मीदवारी की मजबूती का अहसास करवाता हुआ जो गुब्बारा लोगों के बीच फुलाया हुआ था, जल्दी चुनाव करवाने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल की घोषणा ने उसकी सारी हवा एक साथ निकाल दी है ।
उल्लेखनीय है कि रोटरी वर्ष शुरू होने के कुछ ही दिन बाद सतीश सिंघल की तरफ से जल्दी चुनाव कराने के संकेत मिल रहे थे; माना/समझा जा रहा था कि आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी का झंडा थामे सतीश सिंघल और मुकेश अरनेजा ने समझ लिया था कि चुनाव यदि उचित समय पर हुए तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में आलोक गुप्ता की बजाए ललित खन्ना का पलड़ा भारी पड़ेगा - क्योंकि तब तक लोग सतीश सिंघल के कार्य-व्यवहार से लोग पक चुके होंगे और अगले वर्ष के गवर्नर सुभाष जैन के नजदीक 'दिखने' की कोशिश करने लगेंगे । इस तरह की बातें शुरू हुईं तो सतीश सिंघल ने यह कहते हुए चर्चा पर विराम लगा/लगवा दिया कि जल्दी चुनाव करवा कर मैं अपनी कॉन्फ्रेंस खराब क्यों करना चाहूँगा । रोटरी की व्यवस्था में यह एक आम समझ है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में यदि चुनाव नहीं हो रहा होता है, तो डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस बेरौनक होती है - और कोई भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अपनी कॉन्फ्रेंस को बेरौनक नहीं होने देना चाहता । इसलिए सतीश सिंघल का उक्त तर्क लोगों को जँचा और यह मान लिया गया कि जल्दी चुनाव की बात सिर्फ चर्चा में है - लेकिन हाल ही में जब एक आधी रात के करीब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की तरफ से चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ, तो पोल खुली कि जल्दी चुनाव करवाना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के एजेंडे पर था और वह 'स्थिति' पर नजर रखते हुए इस विकल्प को खुला रखे हुए थे ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव कब हो, इसे तय करने का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को विशेषाधिकार प्राप्त है - इसलिए जल्दी चुनाव करवाने के सतीश सिंघल के फैसले की आलोचना करना उनके साथ नाइंसाफी करना होगा । लेकिन इस फैसले तक पहुँचने में सतीश सिंघल ने जो तरीका अपनाया, उसमें उनकी चुनावी बेईमानी साफ नजर आ रही है । अभी कुछ दिन पहले तक तो वह कह रहे थे कि जल्दी चुनाव करवा कर वह अपनी कॉन्फ्रेंस खराब नहीं करेंगे; और फिर वह अचानक से जल्दी चुनाव की घोषणा कर देते हैं और वह भी आधी रात के नजदीक - यह चुनावी तिकड़म का जीता/जागता उदाहरण है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सतीश सिंघल को आखिरकार यह तिकड़म करने की जरूरत क्यों पड़ी - इस सवाल पर होने वाली चर्चाओं ने आलोक गुप्ता के लिए मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया है ।
दरअसल चर्चाओं में यह बात सामने आ रही है और लोगों को उचित लग रही है कि आलोक गुप्ता और उनकी उम्मीदवारी का झंडा थामे नेताओं ने अंततः इस सच्चाई को स्वीकार कर लिया कि सतीश सिंघल की कारस्तानियों के चलते लोगों की, खासतौर से क्लब्स के प्रेसीडेंट्स की नाराजगी बढ़ रही है और इस नाराजगी का खामियाजा आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को भुगतना पड़ जाएगा । इसका नजारा आलोक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में भी देखने को मिला, जिसमें भीड़ तो काफी इकट्ठी हुई, लेकिन क्लब्स के पदाधिकारियों का प्रतिनिधित्व अपेक्षा से कम रहा । 10 अगस्त को हुए आलोक गुप्ता के अधिष्ठापन समारोह का नजारा देख कर और उसमें छिपे राजनीतिक मंतव्य को 'पढ़ते' हुए सतीश सिंघल और मुकेश अरनेजा ने समझ लिया कि चुनाव में जितनी देर होगी, आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए उतनी ही मुसीबत होगी - लिहाजा आनन फानन में इन्होंने चुनाव की तैयारी को अंतिम रूप दिया और 16 अगस्त की आधी रात होने से कुछ पहले चुनाव की घोषणा करते हुए मेल डाल दी ।
आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के जो समर्थक और शुभचिंतक दावा कर रहे हैं कि जल्दी चुनाव होने से आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को फायदा मिलेगा, उनके लिए भी इस सवाल का जबाव देना मुश्किल हो रहा है कि आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को मिल रहे समर्थन के प्रति वह यदि इतने ही आश्वस्त हैं तो फिर चुनाव जल्दी क्यों करवा रहे हैं ? मजे की बात यह है कि हर किसी का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों की क्षमताओं तथा काबिलियत को पहचानने/समझने के लिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों और मतदाताओं के रूप में क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को पर्याप्त समय मिलना चाहिए; इसलिए लोगों के बीच यह सवाल मुखर बना हुआ है कि आलोक गुप्ता और उनके समर्थक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को पर्याप्त समय क्यों नहीं देना चाहते ? उन्हें डर किस बात का है ? इस तरह के सवालों के बीच कुछेक लोगों को यह कहने का मौका भी मिला है कि जल्दी चुनाव करवाने से यह स्पष्ट हो गया है कि आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में ललित खन्ना के मुकाबले आलोक गुप्ता की कमजोर स्थिति को स्वयं ही स्वीकार कर लिया है ।

Sunday, August 20, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के सारे खर्चे खुद वहन करने की घोषणा करके रोटरी के इतिहास में एक अनोखी मिसाल तो कायम की ही है, साथ ही राजा साबू की मुसीबत भी बढ़ा दी है

चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने रोटरी इंटरनेशनल से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को खर्चे के रूप में मिलने वाली सारी रकम प्रोजेक्ट्स के लिए दान कर देने की घोषणा करके रोटरी के इतिहास में एक अनोखी मिसाल कायम की है । रोटरी में, कम से कम भारत देश की रोटरी के करीब 97 वर्षों के इतिहास में इससे पहले कभी सुनने को नहीं मिला कि किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने घोषणा की हो कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनके जो भी खर्चे होंगे, उन्हें वह स्वयं वहन करेंगे और रोटरी इंटरनेशनल से मिलने वाले खर्चे को अपने लिए इस्तेमाल नहीं करेंगे । टीके रूबी की यह घोषणा इसलिए भी अनोखी है, क्योंकि उनके ही डिस्ट्रिक्ट में उनसे पहले के तीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बदनीयती और हिसाब-किताब की हेराफेरी के कारण विवाद व आरोपों के घेरे में रहे और फजीहत का शिकार बने हैं । दिलीप पटनायक के गवर्नर-काल में तो हिसाब-किताब में इतनी गड़बड़ियाँ पकड़ी गईं कि दो बैलेंसशीट लाने के लिए मजबूर होना पड़ा । उनके बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने डेविड हिल्टन के कार्यकाल में हिसाब-किताब को लेकर तमाम बबाल हुए, जिन्हें उन्होंने चुप्पी साध कर गुजारा । पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे रमन अनेजा के कार्यकाल में भी लोगों को हिसाब-किताब संबंधी सवालों के जबाव तो नहीं ही मिले, डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में हिसाब-किताब संबंधी सवालों को पूछने से भी रोका गया । गंभीर और संगीन बात यह है कि इन सभी हरकतों को पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू का कहीं छिपा तो कहीं खुला समर्थन प्राप्त रहा है ।
राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट के रूप में जाने/पहचाने जाने वाले डिस्ट्रिक्ट में हाल-फिलहाल  तक रहे ऐसे हालात में, मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने रोटरी इंटरनेशनल से खर्चे के लिए मिलने वाली रकम को प्रोजेक्ट्स में देने की घोषणा की है - तो यह इस बात का संकेत है कि डिस्ट्रिक्ट में 'हवा' बदल रही है । टीके रूबी दो वर्षों से भी अधिक समय के अथक संघर्षों के बाद जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने हैं, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की हवा के बदलने का संकेत और सुबूत तो पहले ही मिल चुका है; टीके रूबी के नए कदम ने तो यह 'बताया/दिखाया' है कि राजनीति की हवा में होने वाला बदलाव डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था में भी अपने पाँव पसार रहा है । उल्लेखनीय है कि इससे पहले किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने - यहाँ तक कि राजा साबू और पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास तक ने भी - लोगों को इस बात की हवा तक नहीं लगने दी कि उन्हें खर्चे के लिए रोटरी इंटरनेशनल से कितनी रकम मिली है । टीके रूबी को रोटरी इंटरनेशनल से खर्चे की पहली किस्त मिली है, और उन्होंने लोगों को पाई-पाई तक का विवरण दे दिया है, और घोषणा कर दी है कि यह रकम तथा आगे भी जो रकम आएगी - वह सब वह क्लब्स के प्रोजेक्ट्स के लिए दे देंगे । डिस्ट्रिक्ट में लोग याद करते हुए कह रहे हैं कि उन्होंने तो अभी तक यही देखा/पाया है कि किसी गवर्नर से यदि यह पूछ भी लो कि उन्हें खर्चे के नाम पर रोटरी से क्या मिला है, तो वह नाराज हो जाता है ।
इस सच्चाई के ताजे सुबूत के रूप में रमन अनेजा की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में राजा साबू द्वारा दिखाई गई नाराजगी का जिक्र भी किया/सुना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की पिछली ही कॉन्फ्रेंस में रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के पूर्व प्रेसीडेंट मोहिंदर पॉल गुप्ता ने एक प्रोजेक्ट की फंडिंग के बारे में सवाल पूछा, तो राजा साबू बुरी तरह तमतमा गए थे और बौखलाए गुस्से में वह अपनी सीट छोड़ कर हॉल के बीच आ गए थे और लोगों से सवाल करने लगे थे कि उन्हें प्रोजेक्ट करना चाहिए कि नहीं ? बेईमानीभरी चालाकी से पूछे गए इस सवाल में लोगों का ध्यान डायवर्ट करने की राजा साबू की कोशिश लेकिन छिपी नहीं रह सकी; क्योंकि लोगों का तुरंत ध्यान गया कि प्रोजेक्ट के होने या न होने को लेकर तो सवाल था ही नहीं - सवाल तो इस बारे में था कि किसी प्रोजेक्ट में पैसे कहाँ से आते हैं, कितने आते हैं और कैसे खर्च होते हैं ? इस सवाल का सीधा जबाव देने की बजाए, सवाल से राजा साबू का बुरी तरह बौखलाना डिस्ट्रिक्ट के लोगों को 'चोर की दाढ़ी में तिनका' वाला मुहावरा याद दिला गया ।
राजा साबू के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि अभी जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रोटरी इंटरनेशनल से मिलने वाले पैसे खुद पर खर्च करने से इंकार किया है, तभी राजा साबू के क्लब की तरफ से 24 लोगों के दल के मंगोलिया जाने के प्रोजेक्ट की बात सामने आई है, जो वहाँ के बीमार लोगों का ईलाज करेंगे । इस दल में 17 डॉक्टर्स के तथा सात वालिंटियर्स के होने की बात बताई गई है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों को पहले तो इसी बात पर हैरानी है कि राजा साबू के क्लब को चंडीगढ़ व उसके आसपास के इलाकों में और या डिस्ट्रिक्ट 3080 की भौगिलिक सीमा में ईलाज की जरूरत वाले बीमार नहीं मिले/दिखे क्या; बीमार भी उन्हें एक दूर देश में ही मिले/दिखे ? चलो, इस बात को छोड़ भी दें; तो डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह जानने का तो हक है ही कि इस प्रोजेक्ट में कितनी रकम खर्च हो रही है, वह रकम कैसे जुटी/जुटाई गई है और कहाँ/कैसे खर्च होगी ? डॉक्टर्स और वॉलिंटियर्स कौन कौन हैं और उनका चुनाव कैसे और कब हुआ है ? उल्लेखनीय है कि इस तरह के प्रोजेक्ट्स में कई बार राजा साबू, उनकी पत्नी और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधुकर मल्होत्रा वॉलिंटियर्स के रूप में गए हैं । लोगों को हैरानी है कि वॉलिंटियर्स के रूप में यह लोग क्या करते होंगे ? लोगों ने बीमार लोगों के आसपास खड़े हो कर खिंचवाई गईं इनकी तस्वीरें जरूर देखी हैं । लोग यह जानना चाहते हैं कि इन कुछेक तस्वीरों के लिए रोटरी का कितना पैसा फूँका गया है ? राजा साबू और उनके संगी-साथियों की मनमानी बेईमानियों के प्रति डिस्ट्रिक्ट के लोगों की बढ़ती जागरूकता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी की घोषणा से और बल व प्रोत्साहन मिला है, जिसका नतीजा है कि राजा साबू और मधुकर मल्होत्रा के क्लब के पदाधिकारियों से इस सवाल का सीधा जबाव नहीं मिल रहा है कि 26 अगस्त को मंगोलिया रवाना होने वाले 24 सदस्यीय दल में राजा साबू और मधुकर मल्होत्रा भी हैं या नहीं ? राजा साबू के क्लब के एक अच्छे प्रोजेक्ट को चोरी-छिपे करने के पीछे आखिर राज क्या है ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में किए जाने वाले खर्चे स्वयं वहन करने की टीके रूबी की घोषणा ने उक्त सवाल को और मुखर बना दिया है ।

Saturday, August 19, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल रोटरी फाउंडेशन से जब अपने पोते के नाम पर भी 'धोखा' कर सकते हैं, तो डिस्ट्रिक्ट 3011 के गवर्नर रवि चौधरी को उनके गच्चा देने पर आश्चर्य कैसा और क्यों ?

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट 3012 के गवर्नर सतीश सिंघल के ऐन मौके पर पीछे हट जाने से डिस्ट्रिक्ट 3011 के गवर्नर रवि चौधरी को 23 अगस्त को टीआरएफ डिनर का आयोजन अकेले ही करना पड़ रहा है । इन दोनों डिस्ट्रिक्ट्स के अस्तित्व में आने के बाद यह पहला मौका है, जब दिल्ली में हो रहे टीआरएफ डिनर में डिस्ट्रिक्ट 3012 के लोगों को शामिल होने का मौका नहीं मिलेगा । रोटरी के महत्त्वपूर्ण आयोजनों और कार्यक्रमों में मुँह छिपा लेने और पीछे हट जाने की सतीश सिंघल की प्रवृत्ति का यह नया उदाहरण है । इससे पहले, एक जुलाई को हुए अपने डिस्ट्रिक्ट के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह में सतीश सिंघल ने अपने पोते को मेजर डोनर बनाने/बनवाने की बात कही हुई थी, लेकिन जब सचमुच मेजर डोनर के पैसे देने की बात आई तो सतीश सिंघल गोता लगा गए और मासूमियत ओढ़ बैठे कि कौन पोता, कौन मेजर डोनर ? इसी बात का उदाहरण देते हुए लोग रवि चौधरी को सांत्वना दे रहे हैं कि सतीश सिंघल जब अपने पोते का नाम लेकर 'धोखाधड़ी' करने से नहीं चूके, तो फिर तुम अपने साथ ऐन मौके पर उनसे मिले धोखे से परेशान क्यों हो रहे हो ?
उल्लेखनीय है कि दिल्ली में आयोजित होने वाला टीआरएफ डिनर रोटरी का एक बड़ा प्रमुख और महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है, जो रोटरी के बुनियादी काम को मदद करने के उद्देश्य से होता है । इसमें रोटरी के बड़े पदाधिकारी मौजूद होते हैं, जिनसे डिस्ट्रिक्ट और क्लब्स के पदाधिकारियों व सदस्यों को रोटरी के मूल व बुनियादी उद्देश्यों को जानने/समझने का मौका तथा रोटरी के लिए वास्तव में कुछ करने का प्रोत्साहन मिलता है । ऐसे आयोजन हो पाना मुश्किल होता है, इसलिए दिल्ली में होने वाले आयोजन में दोनों डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारी व अन्य रोटेरियंस भागीदारी करते रहे हैं । इस बार लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3012 के गवर्नर सतीश सिंघल के 'बेईमानी' भरे रवैये के चलते डिस्ट्रिक्ट 3012 के पदाधिकारियों और सदस्यों को टीआरएफ डिनर शामिल होने का मौका नहीं मिल सकेगा । खबर है कि सतीश सिंघल ने पहले इस आयोजन में भागीदारी निभाने के लिए सहमति दे दी थी, लेकिन फिर ऐन मौके पर वह पीछे हट गए । आरोपपूर्ण चर्चा है कि सतीश सिंघल ने गणित लगाया और समझा कि वह टीआरएफ में 'अपने' लोगों से पैसे लगवाएँ भी तो उन्हें क्या मिलेगा ? अपने लोगों से वह डिस्ट्रिक्ट में पैसे लगवायेंगे तो मौज-मजा करने का मौका तो मिलेगा ही, अपनी जेब भरने का मौका भी मिलेगा । सतीश सिंघल ने रोटरी को अपनी कमाई के जरिये के रूप में बड़े बढ़िया तरीके से इस्तेमाल किया है; उनकी व्यावसायिक बुद्धि उनके काम-धंधे में उनके काम भले ही न आई हो - लेकिन रोटरी को धंधा बना लेने में उनके खूब काम आई है । रोटरी नोएडा ब्लड बैंक इसका ठोस उदाहरण है ।
टीआरएफ डिनर के आयोजन में शामिल होने से पीछे हटने में सतीश सिंघल के सामने कुछ मजबूरियाँ भी रहीं : सतीश सिंघल यूँ कुछेक महत्वाकांक्षी तथा रोटरी के संबंध में बड़ी बड़ी बातें करने और बड़ा ज्ञान बताने वाले लोगों से घिरे हुए हैं - उम्मीद की जाती है कि सतीश सिंघल इन लोगों को बातों के अलावा रोटरी के लिए सचमुच कुछ करने के लिए भी प्रेरित करेंगे; लेकिन लगता है कि इन लोगों ने सतीश सिंघल को साफ साफ बता दिया है कि हमसे बकवास तो चाहें जितनी करवा लो, पर रोटरी के लिए सचमुच में कुछ करने के लिए मत कहना । इस तरह, सतीश सिंघल को अपने अधिकतर संगी-साथी भी अपने जैसे ही मिले हैं । इसके बावजूद, सतीश सिंघल कुछेक लोगों को तो टीआरएफ डिनर में 'कुछ उल्लेखनीय' करने के लिए तैयार कर ही सकते थे - लेकिन लगता है कि उसमें उनकी बेईमान और स्वार्थी नीयत आड़े आ गयी । दरअसल, दिल्ली में हो रहे टीआरएफ डिनर के आयोजन से जुड़े पदाधिकारियों को पूरी पूरी उम्मीद थी कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए 'अपने' उम्मीदवार आलोक गुप्ता से अवश्य ही टीआरएफ डिनर में बड़ी घोषणा करवायेंगे । इस उम्मीद का कारण यह रहा कि लोग देख/जान रहे हैं कि सतीश सिंघल तमाम कार्यक्रमों के खर्चों के लिए आलोक गुप्ता पर निर्भर हैं और उनसे बेहिसाब पैसे खर्च करवा रहे हैं । पर अब लोगों को लग रहा है कि सतीश सिंघल को डर हुआ होगा कि वह आलोक गुप्ता से यदि टीआरएफ में पैसे खर्च करवा देंगे, तो कहीं आलोक गुप्ता उनके खर्चों में कटौती न कर दें - इसलिए सतीश सिंघल ने दोनों डिस्ट्रिक्ट्स के संयुक्त प्रयासों से दिल्ली में होने वाले रोटरी के महत्त्वपूर्ण आयोजन टीआरएफ डिनर से पीछा छुड़ा लेने में ही अपनी 'मलाई' देखी है ।
सतीश सिंघल अपनी बेईमान और स्वार्थी नीयत के चलते अपने पोते के नाम पर भी धोखाधड़ी करने से नहीं चूके । सतीश सिंघल ने एक जुलाई के डिस्ट्रिक्ट के अधिष्ठापन समारोह में अपने पोते को मेजर डोनर बनाने/बनवाने की तैयारी की हुई थी । उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार ललित खन्ना को भी इस बात के लिए राजी कर लिया था कि उनके साथ वह भी अपने पोते को मेजर डोनर बनवाएँ । एक जुलाई के आयोजन में ललित खन्ना तो जरूरी रकम का चेक ले आए, लेकिन सतीश सिंघल गोता 'लगा' गए । दो दिन बाद ही एक कार्यक्रम में सतीश सिंघल की यह हरकत पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के सामने आई, तो सुशील गुप्ता ने उन्हें रोटरी को लेकर तमाम नसीहतें दीं - लेकिन सतीश सिंघल पर उनका कोई असर नहीं पड़ा । अपने पोते का नाम लेकर भी सतीश सिंघल धोखाधड़ी करते नजर आए तो ललित खन्ना ने अपना तैयार किया हुआ चेक शरत जैन के गवर्नर-काल के खाते में दे दिया । सतीश सिंघल की इस हरकत से परिचित लोगों का कहना है कि सतीश सिंघल जब अपने पोते के नाम पर रोटरी के साथ धोखाधड़ी कर सकते हैं, तो फिर रवि चौधरी को ऐन मौके पर गच्चा क्यों नहीं दे सकते हैं ?

Wednesday, August 16, 2017

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की इंदौर ब्रांच में अपने मनमाने कार्य-व्यवहार को लेकर अपने खिलाफ बन रहे नाराजगी के माहौल के बावजूद केमिशा सोनी सेंट्रल काउंसिल के अगले चुनाव में अपनी जीत को लेकर आश्वस्त क्यों हैं ?

इंदौर । इंदौर ब्रांच के कार्यक्रमों में चेयरमैन सोमदत्त सिंघल को किनारे लगा कर एक्सऑफिसो सदस्य के रूप में इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल की सदस्य केमिशा सोनी द्वारा जिस तरह की मनमानियाँ करने की चर्चाएँ हैं, उससे इंदौर के वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उनके प्रति नाराजगी लगातार बढ़ती और मुखर होती जा रही है - जिसे देख कर उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को भी डर हुआ है कि यह नाराजगी केमिशा सोनी को अगले चुनाव में कहीं भारी न पड़ जाए । केमिशा सोनी के कुछेक समर्थकों व शुभचिंतकों को हालाँकि यह भी लगता है कि उनके विरोधी जिस तरह बिखरे पड़े हैं और निराश हैं, उसके कारण तमाम बदनामी के बाद भी केमिशा सोनी को कोई चुनावी नुकसान शायद ही हो ! इन लोगों का तर्क है इंदौर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में वर्षों 'राज' करते रहे विष्णु झावर उर्फ़ काका जी और मनोज फडनिस को करीब बीस महीने पहले केमिशा सोनी की तरफ से जो तगड़ा चुनावी झटका लगा है, उससे वह अभी तक भी उबर नहीं पाए हैं - जिसका नतीजा है कि करीब पंद्रह महीने बाद होने वाले चुनाव के लिए वह इंदौर में 'अपना' कोई उम्मीदवार तक नहीं खोज पाए हैं । पिछली बार जो विकास जैन उनके भरोसे उम्मीदवार बने थे और चुनाव हार गए थे, उनके रंग-ढंग अगली बार उम्मीदवार बनने के दिख नहीं रहे हैं; विकास जैन नहीं, तो उनकी जगह कौन उम्मीदवार बनेगा - विष्णु झावर और मनोज फडनिस की तरफ से उम्मीदवार बनने को लेकर अभी तक कोई अपनी दिलचस्पी व सक्रियता दिखाता हुआ नजर नहीं आया है । इस स्थिति को विष्णु झावर और मनोज फडनिस खेमे की राजनीतिक बदहाली के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
विष्णु झावर और मनोज फडनिस खेमे की इस राजनीतिक बदहाली ने केमिशा सोनी को मनमानी करने की जैसे खुली छूट दे दी है । नजारा यहाँ तक देखा/सुना जा रहा है कि ब्रांच द्वारा आयोजित सेमिनारों में आमंत्रित किए जाने वाले वक्ता यदि केमिशा सोनी को पसंद नहीं होते हैं, तो वह उनका कार्यक्रम ही रद्द करवा देती हैं । केमिशा सोनी की इस कार्रवाई के चलते इंदौर के कई वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को पिछले दिनों अपमानित होना पड़ा और इंदौर ब्रांच के चेयरमैन सोमदत्त सिंघल को उन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सामने शर्मिंदा होना पड़ा । ब्रांच के कामकाज और फैसलों में केमिशा सोनी का इस हद तक दखल बताया और सुना जाता है कि लोगों को सोमदत्त सिंघल तो बस एक कठपुतली चेयरमैन ही लगते हैं । मजे की बात यह देखने को मिल रही है कि जो लोग पहले विष्णु झावर और मनोज फडनिस के 'व्यवहार' से नाराज रहते/होते थे, वह अब कहने/बताने लगे हैं कि केमिशा सोनी तो उनकी भी 'गुरु' साबित हो रही हैं । उनका कहना है कि विष्णु झावर और मनोज फडनिस मनमानी और पक्षपात तो करते थे, लेकिन ऐसा करते हुए दूसरों को बेइज्जत नहीं करते थे; आरोप है कि केमिशा सोनी विरोधियों को तो छोड़िये, अपने समर्थकों तक का लिहाज नहीं करतीं हैं और वह यदि उनकी बात मानते हुए नहीं दिखते हैं तो उन्हें भी बुरी तरह झिड़क देती हैं और अपमानित करती हैं ।
केमिशा सोनी ने इंदौर ब्रांच के कामकाज और फैसलों में अपना जैसा हस्तक्षेप बना रखा है, उससे लोगों को लगा है कि जैसे इंदौर ब्रांच को वह अपना निजी ऑफिस मान रही हैं और ब्रांच के पदाधिकारियों व सदस्यों को अपने ऑफिस के कर्मचारी के रूप में देख रही हैं । पिछले वर्ष ब्रांच में चेयरपर्सन रहीं गर्जना राठौर को शुरू में केमिशा सोनी के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता था, लेकिन केमिशा सोनी के निरंतर बने रहने वाले हस्तक्षेप व दबाव से वह इतनी परेशान हो उठीं कि फिर जल्दी ही वह केमिशा सोनी के विरोधियों के नजदीक दिखाई देने लगीं । सबसे दिलचस्प मामला सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल में इंदौर का प्रतिनिधित्व कर रहे चर्चिल जैन और निलेश गुप्ता का है : चर्चिल जैन रीजनल काउंसिल में वाइस चेयरमैन हैं, लेकिन इंदौर ब्रांच में एक्सऑफिसो सदस्य के रूप में उन्हें केमिशा सोनी की मनमानियों के सामने चुप ही बने रहना पड़ता है । उन्हें और निलेश गुप्ता को कई मौकों पर केमिशा सोनी के रवैये और व्यवहार पर इर्रीटेट होते हुए और मनमसोस कर अपमानित होते हुए देखा गया है । केमिशा सोनी के कार्य-व्यवहार को लेकर इंदौर में उनके खिलाफ नाराजगी का जो माहौल बन रहा है, उसने विष्णु झावर तथा मनोज फडनिस व उनके नजदीकियों को खासा उत्साहित तो किया हुआ है - और उन्हें उम्मीद बंध रही है कि केमिशा सोनी की जिस तेजी से लोगों के बीच बदनामी बढ़ रही है, और उनके समर्थक ही उनसे खफा और दूर होते जा रहे हैं; उससे केमिशा सोनी को अगले चुनाव में नुक्सान उठाना पड़ सकता है, और केमिशा सोनी के नुक्सान के चलते विष्णु झावर और मनोज फडनिस खेमे को इंदौर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में अपनी वापसी करने का मौका मिल सकेगा । यह अभी सिर्फ उम्मीद और अनुमान भर है, क्योंकि इस उम्मीद और अनुमान के पूरा होने की कोई रूपरेखा बनती हुई अभी तो नहीं नजर आ रही है । शायद इसी कारण से केमिशा सोनी लोगों के बीच अपने प्रति बढ़ती नाराजगी को लेकर बेपरवाह बनी हुई हैं ।

Monday, August 14, 2017

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के वाइस चेयरमैन विवेक खुराना को निशाना बना कर चेयरमैन राकेश मक्कड़ का समर्थन जुटाने की अविनाश गुप्ता की कोशिश से उन्हें चुनाव में सचमुच फायदा होगा क्या ?

नई दिल्ली । वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट अविनाश गुप्ता नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के वाइस चेयरमैन विवेक खुराना की शिकायत करने के चलते खुद बड़े विवाद में फँस गए हैं । अविनाश गुप्ता पर गंभीर आरोप यह लग रहा है कि वह रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की अंदरूनी लड़ाई में एक मोहरा बन गए हैं और रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ को खुश करने के लिए उनके कहने पर उन्होंने विवेक खुराना पर निशाना साधा है । उल्लेखनीय है कि वाइस चेयरमैन के रूप में विवेक खुराना इस समय राकेश मक्कड़ के लिए भारी परेशानी का सबब बने हुए हैं । राकेश मक्कड़ के लिए मुसीबत की बात यह हो रही है कि रीजनल काउंसिल में कुछेक सदस्य उन पर चालबाजियाँ रचने तथा बेईमानियाँ करने के जो आरोप लगा रहे हैं, विवेक खुराना उन्हें समर्थन देते नजर आ रहे हैं - जिसके कारण न सिर्फ आरोपों को विश्वसनीयता मिलती दिख रही है, बल्कि राकेश मक्कड़ के लिए अपना बचाव करना भी मुश्किल हो रहा है । इसके अलावा, विवेक खुराना को विरोधी खेमे के नजदीक खिसकता देख राकेश मक्कड़ को अपना पॉवर ग्रुप भी बिखरता नजर आ रहा है - जिसके चलते पॉवर ग्रुप के सदस्यों को अगले वर्ष सत्ता छिनने का डर हो गया है । अगले वर्ष भी सत्ता अपने हाथ में बनाए रखने खातिर विवेक खुराना को अपने खेमे में बनाए रखने के लिए राकेश मक्कड़ ने हर संभव तरीके आजमाना शुरू कर दिया है । इंस्टीट्यूट में शिकायत करके जाँच में फँसाने और बचाने के विकल्प देकर विवेक खुराना को ब्लैकमेल करने के प्रयास तो चर्चा में हैं ही, मीटिंग्स में भी विवेक खुराना को अपमानित किया जा रहा है । हाल ही में संपन्न हुई रीजनल काउंसिल की मीटिंग में सेक्रेटरी राजिंदर अरोड़ा ने विवेक खुराना को यह कहते हुए धमकी-सी दी कि तुम चेयरमैन बनना चाहते हो न, हम देखेंगे कि कैसे बनते हो ! इसी दौरान विवेक खुराना को निशाना बनाती अविनाश गुप्ता की शिकायत सामने आयी तो लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि यह शिकायत करवाने के लिए चाबी राकेश मक्कड़ ने भरी है । यह बात इसलिए चर्चा में आई - क्योंकि राकेश मक्कड़ और उनके भाई राजेश मक्कड़ के साथ अविनाश गुप्ता की नजदीकियत जगजाहिर है ।
अविनाश गुप्ता ने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को लिखे पत्र में विवेक खुराना पर अपने राजनीतिक प्रचार के लिए जीएमसीएस क्लासेस को डिस्टर्ब करने का आरोप लगाया है । उनके आरोप को बड़े बचकाने किस्म के आरोप के रूप में देखा गया है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट के चुनावबाज नेताओं के द्वारा जीएमसीएस क्लासेस का दुरूपयोग करना एक बड़ी आम सी बात हो गयी है, और लोगों ने इसे एक आवश्यक बुराई के रूप में 'स्वीकार' कर लिया है । मजे की बात यह है कि जीएमसीएस क्लासेस को डिस्टर्ब करने की शिकायत फैकल्टी और या छात्रों ने नहीं की है - यानि अविनाश गुप्ता बेगानी शादी में अब्दुल्ला बनने की कोशिश कर रहे हैं । लोगों का कहना है कि लेकिन फिर भी यदि अविनाश गुप्ता वास्तव में इस बुराई को दूर करना ही चाहते हैं तो उन्हें पहले रीजनल काउंसिल के चेयरमैन को तथा रीजनल काउंसिल की जीएमसीएस कमेटी को जीएमसीएस क्लासेस में व्यवस्था बनाए रखने का सुझाव देना चाहिए था; उनके कुछ न करने पर प्रेसीडेंट को लिखना चाहिए था और उनकी कार्रवाई का इंतजार करना चाहिए था । ऐसा कुछ न करके, प्रेसीडेंट को लिखी चिट्ठी सोशल मीडिया में डाल कर अविनाश गुप्ता ने यही जताया है कि उनका उद्देश्य जीएमसीएस क्लासेस में व्यवस्था बनवाना नहीं, बल्कि राजनीति करना है । इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा तक ने अविनाश गुप्ता की इस कार्रवाई पर ऐतराज जताया है । 
अविनाश गुप्ता पर आरोप लग रहा है कि रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने अपने भाई के जरिए इंस्टीट्यूट में जो लूट मचा रख्खी है, उस पर तो उनके मुँह से कोई शब्द नहीं फूट रहे हैं, उस पर इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को पत्र लिखने की वह कोई जरूरत नहीं समझ रहे हैं - और एक बड़े मामूली से मुद्दे पर वह शोर मचाने का प्रयास कर रहे हैं; इससे जाहिर है कि वह खुद एक बड़ी टुच्ची राजनीति कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि रीजनल काउंसिल के पिछले चुनाव में सफल न हो पाने वाले अविनाश गुप्ता अगले चुनाव में फिर उम्मीदवार बनने की तैयारी करते हुए सुने जा रहे हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि अगले चुनाव में उन्हें राकेश मक्कड़ और उनके भाई का समर्थन मिलने की उम्मीद है, अपनी इस उम्मीद को और पक्का करने के लिए ही उन्होंने राकेश मक्कड़ के लिए अभी मुसीबत बने हुए विवेक खुराना को निशाने पर ले लिया है । इस कार्रवाई पर राकेश मक्कड़ और उनके भाई ने जिस तरह से उनकी पीठ थपथपाई है, उससे अविनाश गुप्ता को विश्वास हो चला है कि अगले चुनाव में इनका समर्थन उन्हें अवश्य ही मिल जाएगा और तब वह अपनी चुनावी वैतरणी आराम से पार कर लेंगे ।
अविनाश गुप्ता वैसे खुशकिस्मत भी हैं कि 'बड़े लुटेरों' को छोड़ कर छोटी-मोटी हरकतें करने वालों को निशाना बनाने की उनकी कार्रवाई को सिर्फ आलोचना का ही शिकार नहीं होना पड़ा है - बल्कि रतन सिंह यादव, गौरव गर्ग, अजय सिंघल आदि नेताओं का समर्थन भी उन्हें मिला है । मजेदार संयोग लेकिन यह है कि यह लोग भी पिछले चुनावों में हारे हुए नेता हैं, और अगले चुनाव में उम्मीदवार होने की तैयारी करते सुने जा रहे हैं; तथा इन्होंने भी राकेश मक्कड़ और उनके भाई की लूट-खसोट पर चुप्पी साधी हुई है । दरअसल यह लोग भी राकेश मक्कड़ और उनके भाई का समर्थन लेने/पाने की जुगाड़ में हैं । इसलिए विवेक खुराना को निशाना बनाती अविनाश गुप्ता की कार्रवाई पर जोर जोर से ताली बजाते हुए इन्होंने राकेश मक्कड़ और उनके भाई को खुश करने का प्रयास किया है । इन संभावित उम्मीदवारों के इस रवैये से लोगों के बीच चर्चा छिड़ी है कि यह लोग अगले चुनाव में यदि जीत भी गए तो काउंसिल में सांपनाथों की बजाए नागनाथों के आने के अलावा और क्या बदलेगा ?

Saturday, August 12, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में 'अधिकृत उम्मीदवार' नहीं, तो 'चेलैंज' का जुमला उछाल कर अशोक गुप्ता ने फुल रौनक का माहौल बनाया

जयपुर । अशोक गुप्ता की तरफ से नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार न चुने जाने की स्थिति में चेलैंज करने की बात आने से जोन 4 में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव का परिदृश्य खासा रोमांचक हो गया है । अशोक गुप्ता की तरफ से इस तरह की बात आने से लोगों को लगा है कि अशोक गुप्ता ने नोमीनेटिंग कमेटी में अपनी पराजय अभी से स्वीकार कर ली है, और उन्होंने उसके आगे की तैयारी शुरू कर दी है । अशोक गुप्ता के नजदीकियों का हालाँकि यह भी कहना है कि चेलैंज करने की बात फैला/फैलवा कर अशोक गुप्ता ने वास्तव में नोमीनेटिंग कमेटी में अपने लिए समर्थन बनाने/बढ़ाने की चाल चली है । इन नजदीकियों का कहना है कि नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों से बात करने में मिले/हुए अनुभवों से अशोक गुप्ता को इस बात का आभास तो हो ही गया है कि नोमीनेटिंग कमेटी में उनकी दाल नहीं गलने वाली है; ऐसे में उन्हें लगा है कि चेलैंज करने की बात करके वह नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों को 'प्रभावित' कर सकते हैं । अशोक गुप्ता को लगता है कि उनके द्वारा चेलैंज करने की बात सुन कर नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों को अपनी अपनी निरर्थकता का अहसास होगा; उन्हें लगेगा कि उनके द्वारा चुना गया अधिकृत उम्मीदवार यदि इंटरनेशनल डायरेक्टर बन ही नहीं पायेगा, तो फिर वह इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए किसी और की बजाए अशोक गुप्ता को ही अधिकृत उम्मीदवार क्यों न चुनें ?
अशोक गुप्ता की यह चाल सफल होगी या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा - चाल के तहत अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज करने की बात फैला/फैलवा कर अशोक गुप्ता ने लेकिन अभी चुनावी माहौल को गर्म जरूर कर दिया है । अशोक गुप्ता के कुछेक अन्य नजदीकियों का मानना/कहना यह भी है कि चेलैंज करने की बात एक झाँसापट्टी ही है, क्योंकि अपने डिस्ट्रिक्ट में वह भले ही बड़े तुर्रमखाँ हों - लेकिन दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में उनकी कोई पहचान ही नहीं है; और यह बात खुद अशोक गुप्ता को भी समझ में आ रही है । नोमीनेटिंग सदस्यों के बीच अपने लिए अजनबीपन पाकर अशोक गुप्ता को तगड़ा झटका लगा है; नोमीनेटिंग कमेटी में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ही हैं - इसलिए विचार करने की बात यही है कि जब जोन के डिस्ट्रिक्ट्स के पूर्व गवर्नर्स ही अशोक गुप्ता को ज्यादा नहीं जानते/पहचानते हैं, तो क्लब्स के लोग ही उन्हें क्या और कितना जानते होंगे ? अशोक गुप्ता की सक्रियता व उनकी गतिविधियों से परिचित लोगों का कहना है कि अशोक गुप्ता ने रोटरी के बड़े बड़े नेताओं को डॉक्टरेट की टोपी पहना पहना कर उनके बीच तो अपने आप को परिचित करवाया है, लेकिन बाकी रोटेरियंस को उन्होंने कभी कोई तवज्जो नहीं दी; अपने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति और व्यवस्था में पकड़ बनाए रखने की चालबाजियों में तो अशोक गुप्ता ने खूब मन लगाया है, लेकिन रोटरी में वह ऐसा कोई योगदान नहीं दे/कर सके हैं - जो दूसरों को प्रभावित और प्रेरित कर सके ।
दरअसल इसीलिए इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के संभावित उम्मीदवारों में अशोक गुप्ता को सबसे कमजोर 'व्यक्तित्व' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के संभावित उम्मीदवारों में सुरेंद्र सेठ जोन के डिस्ट्रिक्ट्स के खास और आम लोगों के बीच एक प्रभावी वक्ता के रूप में जाने/पहचाने जाते हैं; दीपक कपूर का पोलियो के काम के चलते नाम है; रंजन ढींगरा ने जल-संरक्षण के काम के जरिए तथा एक अच्छे वक्ता के रूप में अपनी पहचान और साख तो बनाई हुई है ही, पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के समर्थन के चलते भी लोगों के बीच उन्हें गंभीरता से लिया जाता है; भरत पांड्या के साथ पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर अशोक महाजन - और अशोक महाजन के कारण पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू का समर्थन है । एक अकेले अशोक गुप्ता ऐसे हैं, जिनका न तो कोई 'काम' है और न जिनके समर्थन में कोई नेता है । वास्तव में यह अशोक गुप्ता के छोटे नजरिए और अव्यावहारिक रवैए का परिणाम है । अशोक गुप्ता ने यूँ तो रोटरी को अपना बहुत समय, अपनी बहुत एनर्जी और अपने बहुत 'साधन' दिए हैं - लेकिन उनका नजरिया और उनका रवैया ऐसा रहा है कि सब कुछ 'लुटाने' के बाद भी वह रोटरी समुदाय में किसी को प्रभावित नहीं कर सके हैं - और यही कारण है कि रोटरी के बड़े नेताओं के साथ-साथ दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों के बीच उनकी न तो कोई पहचान बन सकी, और न वह अपना कोई खैरख्वाह बना सके हैं ।
इस सच्चाई से सामना होते ही अशोक गुप्ता को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी उम्मीदवारी के अभियान में पैंतरा बदलने की जरूरत महसूस हुई; और लगता है कि इसी जरूरत के चलते उन्होंने 'अधिकृत उम्मीदवार' नहीं - तो 'चेलैंज' का जुमला उछाल दिया है । उनकी दशा को जानने/पहचानने वाले लोगों का कहना है कि चेलैंज करना - यानि चेलैंज करने के लिए जरूरी समर्थन जुटा पाना तो अशोक गुप्ता के लिए असंभव ही होगा और यह बात वह भी जानते/समझते हैं; इसलिए लगता यही है कि चेलैंज की बात दरअसल उनकी तरफ से गीदड़ भभकी ही है - अशोक गुप्ता उम्मीद कर रहे हैं कि उनकी इस गीदड़ भभकी से 'डर' कर नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्य उन्हें ही अधिकृत उम्मीदवार चुन लेंगे । मजे की बात यह सुनने/देखने को मिल रही है कि अशोक गुप्ता की देखादेखी दूसरे उम्मीदवार भी चेलैंज करने की बात करने लगे हैं - यानि जोन 4 में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में फुल रौनक देखने को मिलेगी ।

Friday, August 11, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पारस अग्रवाल पर लायनिज्म को पिकनिक मनाने का जरिया तथा दूसरों के पैसे पर अपने और अपने संगी-साथियों के मौज-मजे का इंतजाम कर लेने को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की ड्यूटी समझ लेने का आरोप

आगरा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पारस अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट का अधिष्ठापन समारोह दुबई में करने तथा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी को शह देने के मामले में डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोगों की आलोचना का शिकार बन रहे हैं । कुछेक लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि इन दोनों मामलों में पारस अग्रवाल ने जो रवैया दिखाया है, उससे लगता है कि वह भी निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल के पदचिन्हों पर हैं; उन्हें डर है कि पारस अग्रवाल कहीं सीपी सिंघल से भी गए-गुजरे न साबित हों ! इन दोनों ही मामलों में पैसों के 'घपलेबाज' इस्तेमाल को प्रेरक तत्त्व के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । मजे की बात है कि डिस्ट्रिक्ट के दो वरिष्ठ और नियम-कानून की फिक्र करने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जगदीश मेहरा और अशोक कपूर इस बात की लगातार वकालत करते रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट का अधिष्ठापन समारोह डिस्ट्रिक्ट की भौगोलिक सीमा में ही होना चाहिए, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में पारस अग्रवाल ने उनकी बात का भी मान रखने की कोई परवाह नहीं की । पारस अग्रवाल की इस हरकत पर परिवार में उपेक्षा का शिकार होते और असहाय पड़ते बड़े-बुजुर्गों की तरह इन दोनों ने तो चुप्पी साध ली है; किंतु दूसरे कुछेक पूर्व गवर्नर्स पारस अग्रवाल की हरकत पर बुरी तरह नाराज हैं । हालाँकि पारस अग्रवाल को उनकी नाराजगी की कोई परवाह नहीं है; उनकी तरफ से सुनने को मिला है कि जिन पूर्व गवर्नर्स को मुफ़्त में दुबई जाने का मौका नहीं मिल रहा है, वही लोग दुबई में अधिष्ठापन समारोह किए जाने का विरोध कर रहे हैं ।
दुबई में हो रहे अधिष्ठापन समारोह के विवाद में फँसने का कारण दरअसल इसी तरह के आरोप-प्रत्यारोप हैं । पारस अग्रवाल ने दुबई के जिस पैकेज के लिए हरी झंडी दी, उसे महँगा बताते हुए आरोप लगाया गया है कि पारस अग्रवाल ने अपने कुछेक चहेतों को मुफ़्त में दुबई ले जाने की व्यवस्था करने के लिए ही महँगे पैकेज को स्वीकार किया और अपनाया । इस तरह की बातों के चलते दुबई में होने वाले अधिष्ठापन समारोह में जाने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स भी निशाने पर आ गए हैं - उन पर आरोप लग रहे हैं कि मुफ़्त में दुबई जाने के चक्कर में उन्होंने पारस अग्रवाल को यह समझाने/बताने की जरूरत भी नहीं समझी कि पिकनिक मनाने दुबई जाना ही है तो कभी भी चले जाना और लोगों को ले जाना; लेकिन डिस्ट्रिक्ट का अधिष्ठापन समारोह ऐसी जगह पर करो, जहाँ कि डिस्ट्रिक्ट के ज्यादा से ज्यादा लोग शामिल हो सकें । आरोपपूर्ण चर्चाएँ हैं कि लगता है कि पारस अग्रवाल ने लायनिज्म को पिकनिक मनाने का ही जरिया मान/समझ लिया है और दूसरों के पैसे पर अपने और अपने संगी-साथियों के मौज-मजे का इंतजाम कर लेने को ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की ड्यूटी समझ लिया है ।
पारस अग्रवाल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी को शह देने के कारण भी आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है । दरअसल श्याम बिहारी अग्रवाल की नजदीकियत सीपी सिंघल के साथ देखते हुए कोई भी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने को तैयार नहीं हो रहा है । हर किसी का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जिस तरह से सीपी सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट का और लायनिज्म का नाम खराब किया है, श्याम बिहारी अग्रवाल तो उनसे भी बुरे साबित होंगे । इसी कुख्याति के चलते श्याम बिहारी अग्रवाल को अपने ही शहर - हाथरस के अकेले पूर्व गवर्नर अशोक कपूर का भी समर्थन नहीं मिल पा रहा है । श्याम बिहारी अग्रवाल लेकिन खुशकिस्मत हैं कि उन्हें पारस अग्रवाल के रूप में एक समर्थक मिल गया है । पारस अग्रवाल ने अपने बॉन वॉएज में फैलोशिप का मौका श्याम बिहारी अग्रवाल को देकर उनके प्रति अपने समर्थन का सार्वजनिक प्रदर्शन पहले ही कर दिया था । इसके बाद वृन्दावन में हुई स्कूलिंग में भी लोगों को शराब पिलवाने की जिम्मेदारी पारस अग्रवाल ने श्याम बिहारी अग्रवाल को ही सौंपी । धार्मिक नगरी होने के कारण वृन्दावन में शराब पिलवाने का काम खुले में तो नहीं हो सकता था, लिहाजा पारस अग्रवाल ने श्याम बिहारी अग्रवाल को सलाह दी कि कुछेक नेताओं के गले के नीचे जब तक शराब नहीं उतरेगी तब तक उनका लायनिज्म तो पूरा नहीं होगा - इसलिए अपनी गाड़ी में शराब का पूरा पूरा इंतजाम रखो और अच्छे से लायनिज्म की सेवा करो । स्कूलिंग में शामिल हुए लोग बताते हैं कि श्याम बिहारी अग्रवाल ने सेवा में वास्तव में कोई कमी नहीं रहने दी ।
उल्लेखनीय है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अलीगढ़ के अजय सनाढ्य को कई पूर्व गवर्नर्स का खुला समर्थन मिल रहा है; और माना/समझा जा रहा था कि वह निर्विरोध ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुन लिए जायेंगे । लेकिन श्याम बिहारी अग्रवाल को शह देकर पारस अग्रवाल ने चुनावी मुकाबले की स्थिति बना दी है । पारस अग्रवाल के नजदीकियों का ही कहना है कि चुनाव के नजदीक आते आते हो सकता है कि पारस अग्रवाल भी अजय सनाढ्य के समर्थक बन जाएँ - अभी लेकिन वह श्याम बिहारी अग्रवाल को इसलिए शह दे रहे हैं ताकि उन्हें दोनों से ही खर्चे करवाने का मौका मिलता रहे । पारस अग्रवाल को डर है कि यदि अजय सनाढ्य अकेले उम्मीदवार रहे, तो वह उनकी परवाह नहीं करेंगे और उनकी नहीं सुनेंगे । अजय सनाढ्य की गर्दन पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए ही पारस अग्रवाल ने श्याम बिहारी अग्रवाल को शह देकर उम्मीदवार बना दिया है ।
पारस अग्रवाल की इस तरह की चालबाजियों को देख कर ही लोगों को लग रहा है कि पारस अग्रवाल की भी सोच बिलकुल निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सीपी सिंघल जैसी ही है और चालाकियों व बेईमानियों में लगता है कि वह सीपी सिंघल के भी गुरु साबित होंगे ।

Thursday, August 10, 2017

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में पूजा अग्रवाल बंसल के जबावी पत्र से चेयरमैन राकेश मक्कड़ और सेक्रेटरी राजिंदर अरोड़ा की मुश्किलें और बढ़ीं

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की पूर्व कार्यकारी चेयरपरसन पूजा अग्रवाल बंसल ने अपने ऊपर लगे आरोपों का करीब 350 पृष्ठों में जो जबाव दिया है, वह मौजूदा चेयरमैन राकेश मक्कड़ और सेक्रेटरी राजिंदर अरोड़ा की कारस्तानियों के साथ-साथ बेवकूफियों की भी अच्छे से पोल खोलता है । पूजा अग्रवाल बंसल ने अपने जबाव में जो तथ्य प्रस्तुत किए हैं, वह काउंसिल के पदाधिकारी के रूप में राकेश मक्कड़ और राजिंदर अरोड़ा के निकम्मेपन का तो सुबूत पेश करते ही हैं, यह भी दिखाते हैं कि बातों और तथ्यों के मामले में यह लोग झूठ और बेवकूफी की चरमसीमा को प्राप्त हैं । पूजा अग्रवाल बंसल ने इनके द्वारा लगाए गए हर आरोप का प्वाइंट टू प्वाइंट जबाव दिया है और अपने हर प्वाइंट का सुबूत प्रस्तुत किया है । उन्होंने राकेश मक्कड़ और राजिंदर अरोड़ा को चुनौती दी है कि वह उनके द्वारा दिए गए तथ्यों को गलत साबित करें, अन्यथा अपने आरोप वापिस लें । पूजा अग्रवाल बंसल ने साफ कहा है कि राकेश मक्कड़ और राजिंदर अरोड़ा ने यदि ऐसा नहीं किया, तो वह इनके खिलाफ उचित कार्रवाई करेंगी । 
पूजा अग्रवाल बंसल के जबावी हमले ने राकेश मक्कड़ और राजिंदर अरोड़ा को गिड़गिड़ाने के लिए मजबूर कर दिया है और अब वह लोगों से कहते फिर रहे हैं कि पूजा अग्रवाल बंसल ने अपने जबाव की कॉपी सेंट्रल काउंसिल और पाँचों रीजनल काउंसिल के सभी सदस्यों के साथ-साथ इंस्टीट्यूट के सभी पूर्व प्रेसीडेंट्स तथा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सभी पूर्व चेयरमैन्स को भेज कर प्रोफेशन के लोगों के बीच उनकी सार्वजनिक रूप से बेइज्जती की है । इस पर पूजा अग्रवाल बंसल की तरफ से सुनने को मिला है कि इन्होंने उन पर आरोप लगाते हुए जो मेल लिखा था, उसकी कॉपी भी इन्होंने काउंसिल के कई सदस्यों को भेजी थी - इसलिए उनके लिए भी जरूरी हुआ कि वह इंस्टीट्यूट से संबद्ध सभी लोगों को सच्चाई से अवगत कराएँ और सभी लोगों को यह जानकारी उपलब्ध करवाएँ कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में आखिर हो क्या रहा है ? जाहिर है कि आरोपों के जरिए विरोधी को बदनाम करने का खेल राकेश मक्कड़ और राजिंदर अरोड़ा की जोड़ी ने शुरू किया था - लेकिन उन्होंने इतनी बेवकूफी से इस खेल में हाथ डाला कि पूजा अग्रवाल बंसल ने पलटवार करते हुए खेल में उनकी ही गर्दन फँसा दी है ।
राकेश मक्कड़ और राजिंदर अरोड़ा ने पूजा अग्रवाल बंसल को आरोपों की जो फेहरिस्त दी, वह इतनी बेवकूफी से तैयार की गयी थी कि उनके आरोप झूठ का पुलिंदा बन कर रह गए - इसीलिए पूजा अग्रवाल बंसल को पलटवार करने का बढ़िया मौका मिला और उन्होंने राकेश मक्कड़ व राजिंदर अरोड़ा के आरोपों की तथ्यों और सुबूतों के साथ धज्जियाँ उड़ा दीं । राकेश मक्कड़ और राजिंदर अरोड़ा ने अपने आरोप पत्र में सबसे गंभीर आरोप लगाया कि पूजा अग्रवाल बंसल बेकार की बातों को लेकर मेल लिखती रहती हैं और इस तरह नॉन-कंस्ट्रक्टिव बातों में अपना और दूसरों का समय खराब करती हैं । इसके जबाव में पूजा अग्रवाल बंसल ने सिलसिलेबार तरीके से अपनी 26 मेल्स का जिक्र किया है और पूछा है कि इनमें जिन भी विषयों पर बात की गयी है, उनमें कौन सी बात बेकार की और या नॉन-कंस्ट्रक्टिव है ? काउंसिल को समय न देने के आरोप पर पूजा अग्रवाल बंसल ने रिकॉर्ड बताते हुए दावा किया कि काउंसिल की मीटिंग्स में पिछले वर्ष उनकी नब्बे प्रतिशत और इस वर्ष अभी तक सौ प्रतिशत उपस्थिति है - जाहिर है कि काउंसिल को समय न देने का आरोप पूरी तरह झूठ है ? मीटिंग्स में देर से आने और जल्दी चले जाने के आरोप पर पूजा अग्रवाल बंसल ने दावा किया कि काउंसिल की मीटिंग्स के रिकॉर्ड देखे जा सकते हैं जिनके अनुसार अधिकतर मीटिंग्स में 'वोट ऑफ थैंक्स' उन्होंने दिया है, जो मीटिंग का अंतिम एजेंडा होता है । राकेश मक्कड़ और राजिंदर अरोड़ा द्वारा लगाए गए अन्य आरोपों को भी प्वाइंट टू प्वाइंट झूठा साबित करते हुए पूजा अग्रवाल बंसल ने जो तथ्य प्रस्तुत किए हैं, उनसे साबित होता है कि राकेश मक्कड़ और राजिंदर अरोड़ा रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी होने के बावजूद दूसरों को बदनाम करने के लिए किसी भी हद तक झूठ बोल सकते हैं ।
राकेश मक्कड़ और राजिंदर अरोड़ा की फितरत को न जानने/पहचानने वाले लोगों को हैरानी है कि यह कैसे लोग हैं; इन्हें इतनी भी अक्ल नहीं है कि काउंसिल के ही सदस्य के खिलाफ झूठे आरोप लगाओगे तो वह पलभर में ही झूठ की पोल खोल देगा । इनके नजदीकियों का कहना है कि 4 अगस्त की रीजनल काउंसिल की मीटिंग में पूजा अग्रवाल बंसल पर चुप रहने का दबाव बनाने के उद्देश्य से राकेश मक्कड़ और राजिंदर अरोड़ा ने एक अगस्त को उन्हें आरोप पत्र थमा दिया था । रीजनल काउंसिल के इन दोनों पदाधिकारियों ने उम्मीद की थी कि आरोप पत्र से पूजा अग्रवाल बंसल दबाव में आ जायेंगी और मीटिंग में चुप रहेंगी । लेकिन हुआ उल्टा ही । पूजा अग्रवाल बंसल ने 4 अगस्त की मीटिंग में तो राकेश मक्कड़ और राजिंदर अरोड़ा की कारस्तानियों को लेकर मोर्चा संभाला ही, आरोप पत्र का प्वाइंट टू प्वाइंट जबाव देकर भी इनके लिए मुसीबत और बढ़ा दी है । झूठे आरोपों को लेकर पूजा अग्रवाल बंसल ने तो कार्रवाई करने की चेतावनी दी ही हुई है; दूसरे लोगों का भी कहना है कि राकेश मक्कड़ और राजिंदर अरोड़ा में यदि जरा सी भी शर्महया हो और उनकी औकात हो तो उन्हें जल्दी से जल्दी पूजा अग्रवाल बंसल के द्वारा प्रस्तुत तथ्यों का उन्हीं की ही तरह प्वाइंट टू प्वाइंट जबाव देना चाहिए अन्यथा झूठे आरोप लगाने के लिए उनसे माफी माँगनी चाहिए । राकेश मक्कड़ और राजिंदर अरोड़ा को जानने/पहचानने वाले लोगों का मानना और कहना लेकिन यह है कि समझदारी के मामले में इनकी 'औकात' ऐसी नहीं है कि यह प्वाइंट टू प्वाइंट जबाव दे सकें; यह निहायत बेशर्म लोग हैं, इसलिए अपने झूठे आरोपों पर यह माफी भी नहीं माँगेंगे - यह तो बस अपनी हरकतों से काउंसिल, प्रोफेशन और इंस्टीट्यूट को बदनाम करने के साथ-साथ अपनी खुद की फजीहत भी करवाते रहेंगे । यानि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अभी और तमाशे देखने/सुनने को मिलते रहेंगे ।

Wednesday, August 9, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल की बातों और हरकतों के प्रति क्लब्स के पदाधिकारियों के बीच बढ़ती नाराजगी के आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी पर भारी पड़ने का खतरा बढ़ता दिखा

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में उत्तर प्रदेश के क्लब्स की एकजुटता बनाने की जो कोशिश की है, उसे अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे उत्तर प्रदेश के संभावित उम्मीदवारों की तरफ से तगड़ा झटका लग रहा है । अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवारी की तैयारी करने वाले संभावित उम्मीदवारों को डर है कि इस बार यदि आलोक गुप्ता जीतते हैं तो 'हर वर्ष उत्तर प्रदेश से ही गवर्नर क्यों' की भावना के चलते उनके लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है । अगले वर्ष की अपनी मुसीबत को टालने के लिए ही अगले वर्ष उम्मीदवार होने की तैयारी कर रहे संभावित उम्मीदवारों और उनके समर्थकों ने आलोक गुप्ता के पक्ष में उत्तर प्रदेश के क्लब्स को एक करने के लिए चलाई जा रही सतीश सिंघल की मुहिम में पंक्चर करने का काम शुरू कर दिया है । मजे की बात यह है कि ललित खन्ना की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए दिल्ली के कुछेक क्लब्स पहले से ही 'हर वर्ष उत्तर प्रदेश से ही गवर्नर क्यों' की मुहिम चलाए हुए थे, जिसका मुकाबला करने के लिए ही सतीश सिंघल ने उत्तर प्रदेश के क्लब्स को एकजुट करने की कोशिशें शुरू की - उनके यह कोशिशें सिरे चढ़तीं, कि उत्तर प्रदेश के ही अगले संभावित उम्मीदवारों ने उनकी कोशिशों को झटका दे दिया है ।
आलोक गुप्ता के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए सतीश सिंघल की एक अन्य तरकीब का दिल्ली के क्लब्स पहले ही कबाड़ा कर चुके हैं । उक्त तरकीब के तहत सतीश सिंघल ने क्लब्स के पदाधिकारियों को फरमान जारी किया कि अपने अधिष्ठापन कार्यक्रम में वह डिस्ट्रिक्ट टीम के प्रमुख सदस्यों को भी आमंत्रित करें और उनका स्वागत करें । आलोक गुप्ता चूँकि डिस्ट्रिक्ट टीम के प्रमुख सदस्य हैं - इसलिए उक्त फरमान के जरिए सतीश सिंघल ने क्लब्स को दरअसल आलोक गुप्ता को आमंत्रित करने तथा उनका स्वागत करने के लिए मजबूर करने का काम किया । क्लब्स ने खासकर दिल्ली के क्लब्स ने सतीश सिंघल की इस तरकीब का तोड़ यह निकाला कि उन्होंने अपने अधिष्ठापन कार्यक्रमों में आलोक गुप्ता के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवार ललित खन्ना को भी आमंत्रित किया और उनका स्वागत किया - इससे सतीश सिंघल की तरकीब पूरी तरह पिट गयी ।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली के क्लब्स और उनके पदाधिकारी राजनीतिक उठापटक के खेल में ज्यादा नहीं फँसते हैं और ज्यादा राजनीति करने वालों को बड़ी नीची निगाह से देखते हैं । सतीश सिंघल ने डेढ़ महीने से भी कम के अभी तक के अपने गवर्नर-काल में 'काम कम, बातें ज्यादा' करने वाले गवर्नर की पहचान बनायी है; अपने भाषणों में वह इतनी लंबी-लंबी फेंकते हैं कि लोग उन्हें 'फेंकू' कहने लगे हैं - ऐसे में, सतीश सिंघल जब राजनीतिक चालबाजी दिखाते हैं तब क्लब्स के पदाधिकारी उनके प्रति और ज्यादा नकारात्मक भाव से भर जाते हैं । क्लब्स के पदाधिकारी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के प्रति सीधा सीधा विरोध तो प्रकट नहीं करते हैं, इसलिए कोई भी सतीश सिंघल से सामने सामने तो विरोध और नाराजगी की बात नहीं करता है - लेकिन पीठ पीछे अधिकतर क्लब्स के पदाधिकारी सतीश सिंघल का मजाक बनाते/उड़ाते हैं ।
सतीश सिंघल के प्रति क्लब्स के पदाधिकारियों के इस रवैये को देखते/समझते हुए आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों व शुभचिंतकों ने डर भी व्यक्त किया है कि सतीश सिंघल की कारस्तानियाँ कहीं आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी पर भारी न पड़ें । उनका कहना है कि आलोक गुप्ता अपनी सक्रियता, अपने व्यवहार और अपने रवैये से लोगों के बीच पैठ बनाते हुए अपने लिए समर्थन का भाव बनाते हैं - लेकिन सतीश सिंघल की बेवकूफीभरी बातें और उनकी हरकतें लोगों को इर्रिटेट कर देती हैं । आलोक गुप्ता के लिए समर्थन जुटाने हेतु सतीश सिंघल ने जो जो कदम उठाए हैं, उनका उल्टा ही असर देखने को मिला है । उत्तर प्रदेश के क्लब्स को आलोक गुप्ता के पक्ष में एकजुट करने की सतीश सिंघल की कोशिशों का भी नकारात्मक असर देखने को मिल रहा है : जब तक आलोक गुप्ता अपने लिए समर्थन जुटाने का प्रयत्न कर रहे थे, तब तक उन्हें उत्तर प्रदेश के क्लब्स से अच्छा समर्थन मिलने की बातें सुनी जा रही थीं; लेकिन जैसे ही सतीश सिंघल ने उत्तर प्रदेश की एकजुटता का राग आलापना शुरू किया, वैसे ही आलोक गुप्ता के लिए मामला उल्टा पड़ने लगा ।
सतीश सिंघल ने उत्तर प्रदेश में आलोक गुप्ता के लिए समर्थन मजबूत करने/बनाने के लिए एकजुटता की जो तरकीब लगाई, उसे पहला झटका नोएडा के क्लब्स की तरफ से मिला - जिन्होंने अपने आप को उत्तर प्रदेश में 'मानने' को लेकर ऐतराज जताया । नोएडा के लोग यूँ भी अपने आप को उत्तर प्रदेश की बजाए दिल्ली के ज्यादा 'नजदीक' समझते हैं । आलोक गुप्ता अपने प्रयत्नों से नोएडा के क्लब्स में अपने लिए समर्थन जुटाने का जो प्रयास कर रहे थे, उसका सकारात्मक असर होता हुआ दिख रहा था - लेकिन सतीश सिंघल की कारस्तानी ने सब गुड़ गोबर कर दिया । सतीश सिंघल की कारस्तानी ने ही अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों को उकसाया है - उन्हें लगा है कि उत्तर प्रदेश को एकजुट करके यदि आलोक गुप्ता के लिए समर्थन जुटाया गया, तो अगले वर्ष उनके लिए मुसीबत हो जाएगी । सतीश सिंघल, सुभाष जैन, दीपक गुप्ता के रूप में उत्तर प्रदेश से ही जिस तरह से गवर्नर्स की लाइन है - उसे लेकर दिल्ली के क्लब्स के लोगों में पहले ही बेचैनी है और वह डिस्ट्रिक्ट में स्वयं को उपेक्षित स्थिति में पा रहे हैं । ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सतीश सिंघल की आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में की जा रही हरकतें दिल्ली के क्लब्स के पदाधिकारियों तथा वरिष्ठ सदस्यों के जले पर नमक रगड़ने जैसा काम कर रही हैं । अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे उत्तर प्रदेश के संभावित उम्मीदवारों ने इस स्थिति को अपने लिए गंभीर खतरे के रूप में देखा/पहचाना है - और इस कारण से उत्तर प्रदेश को आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में एकजुट करने की सतीश सिंघल की योजना पानी फिरता नजर आ रहा है ।

Saturday, August 5, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में पुलिस कार्रवाई की धमकी के बाद राजेंद्र अरोड़ा और नितिन कँवर की बदतमीजी पर विराम लगा और राकेश मक्कड़ विरोधी सदस्यों की माँगे मानने के लिए मजबूर हुए

नई दिल्ली । राजेंद्र अरोड़ा और नितिन कँवर ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग में जो निर्लज्ज किस्म का लफंगापन प्रदर्शित किया, उसे रोकने के लिए काउंसिल सदस्यों को पुलिस बुलाने की धमकी देनी पड़ी - और तब मीटिंग में शांति स्थापित हो सकी और उसमें सदस्यों को अपनी अपनी बात कहने/रखने का मौका मिल सका । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल क्या, चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि पदाधिकारियों के रवैये के खिलाफ काउंसिल  सदस्यों को ही पुलिस बुलाने की जरूरत महसूस हुई । मीटिंग में राजेंद्र अरोड़ा और नितिन कँवर के व्यवहार के बारे में जिस किसी ने भी सुना, उसकी यही प्रतिक्रिया रही कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में इन्हें वोट देने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने काउंसिल के लिए सदस्य चुने हैं या लफंगे चुने हैं ? राजेंद्र अरोड़ा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सेक्रेटरी हैं और नितिन कँवर निकासा चेयरमैन हैं; यह दोनों यूँ तो मीटिंग में चीख-चिल्लाहट के जरिए और मेजें थपथपा कर शोर-शराबा करने तथा अपशब्दों व गालियों के जरिये दूसरों को चुप करने का काम करने के लिए कुख्यात रहे हैं, लेकिन कल की मीटिंग में तो इन दोनों ने हद ही कर दी - अपने लफंगई व्यवहार से यह दूसरे सदस्यों को लगातार अपमानित करते जा रहे थे और उन्हें बोलने ही नहीं दे रहे थे; इनके व्यवहार से दो-तीन बार तो ऐसे हालात बने कि लगा कि मीटिंग में मार-पिटाई हो जाएगी ।
इंस्टीट्यूट प्रशासन द्वारा मीटिंग में भेजे गए ऑब्जर्वर्स की उपस्थिति की भी इन्होंने परवाह नहीं की । इनके व्यवहार से तंग आकर काउंसिल के कुछेक सदस्यों ने इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर से इनकी शिकायत की, उन्होंने लेकिन यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिए कि मीटिंग में उन्होंने ऑब्जर्वर्स भेज दिए हैं और इससे ज्यादा वह कुछ नहीं कर सकते हैं । शिकायत करने गए काउंसिल सदस्यों ने तब वी सागर को दो-टूक शब्दों में बता दिया कि आप कुछ नहीं कर सकते हैं, तो हम पुलिस में रिपोर्ट कर रहे हैं और पुलिस बुला रहे हैं । यह बात कही तो गयी थी इंस्टीयूट के सेक्रेटरी वी सागर से उनके ऑफिस में, लेकिन यह बात तुरंत राजेंद्र अरोड़ा और नितिन कँवर तक पहुँची - जिसका नतीजा यह देखने में आया कि फिर इन्होंने मीटिंग में कोई बदतमीजी नहीं की और मीटिंग में सचमुच कुछ महत्त्वपूर्ण फैसले हुए । लगता है कि इनके रिंग मास्टर राजेश शर्मा, जो मीटिंग के दौरान मीटिंग-स्थल के आसपास ही बने हुए थे और इन्हें लगातार निर्देश दे रहे थे, ने इन्हें चेता दिया होगा कि पुलिस को 'बेस' पसंद है और वह 'बेस' सुजा देती है, इसलिए अब कोई ऐसी हरकत न करना कि अपने अपने 'बेस' को सुजवा लो और बैठने लायक न रहो । राजेंद्र अरोड़ा और नितिन कँवर ने पॉवर ग्रुप के रिंग मास्टर राजेश शर्मा की चेतावनी को गंभीरता से लिया और अपने अपने 'बेस' की चिंता करते हुए मीटिंग में अपनी बदतमीजी पर ब्रेक लगाया ।
इसके बाद मीटिंग का पूरा नजारा बदल गया । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने अपनी बेईमानीपूर्ण हरकतों के लिए बार-बार माफी माँगी; अपने भाई को काउंसिल की कोचिंग क्लास देने के लिए उन्होंने मासूम-सा तर्क दिया कि उन्हें उस नियम के बारे में पता नहीं था जिसके अनुसार वह अपने भाई को क्लास नहीं दे सकते हैं । पिछले वर्ष के एकाउंट काउंसिल सदस्यों को ही दिखाने से लगातार इंकार करते रहे राकेश मक्कड़ फिर एकाउंट दिखाने के लिए भी राजी हो गए । रीजनल काउंसिल के हर उस फैसले के पूरे विवरण देने के लिए भी उन्होंने सहमति व्यक्त की, जिसमें पैसों का लेन-देन होता है । कल हुई नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग दरअसल इसीलिए महत्त्वपूर्ण थी, क्योंकि उसमें पॉवर ग्रुप की बेईमानियों के हिसाब-किताब के बारे में फैसला होना था । राजेश शर्मा द्वारा नियंत्रित और राकेश मक्कड़ द्वारा संचालित काउंसिल का पॉवर ग्रुप इसीलिए काउंसिल की मीटिंग करने से बच रहा था । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे को बार बार मेल लिखे जा रहे थे कि वह हस्तक्षेप करें और रीजनल काउंसिल की मीटिंग करवाएँ, लेकिन इसके बावजूद मीटिंग करने से बचा जा रहा था । रीजनल काउंसिल की पूर्व चेयरपरसन पूजा अग्रवाल बंसल ने रीजनल काउंसिल की मीटिंग करवाने की माँग करते हुए प्रेसीडेंट को मेल लिखना लगातार जारी रखा और उनकी बारहवीं मेल के बाद मीटिंग करने का फैसला हुआ ।
मीटिंग के लिए मजबूर होने के बाद भी राजेश शर्मा और राकेश मक्कड़ की जोड़ी अपनी हरकत से बाज नहीं आई और उसने मीटिंग का एजेंडा तय नहीं होने दिया । काउंसिल के विरोधी सदस्यों को आभास था कि मीटिंग में हुड़दंगबाजी करके यह अपनी बेईमानियों के मामलों को एजेंडा नहीं बनने देंगे, इसलिए उन्होंने ऑब्जर्वर की माँग की । इंस्टीट्यूट प्रशासन ने दो ऑब्जर्वर नियुक्त कर दिए । राजेश शर्मा की शह पर राजेंद्र अरोड़ा और नितिन कँवर ने ऑब्जर्वर्स की मौजूदगी की भी परवाह नहीं की और अपनी बदतमीजियों से मीटिंग में कोई बात ही नहीं होने दी । अपनी बदतमीजियों का निशाना बनाने से उन्होंने अपने ग्रुप के महत्त्वपूर्ण सदस्य और वाइस चेयरमैन विवेक खुराना तक को नहीं छोड़ा; विवेक खुराना का 'कुसूर' सिर्फ इतना था कि वह लगातार नियमानुसार काम करने की वकालत कर रहे थे - जो राजेंद्र अरोड़ा और नितिन कँवर को पसंद नहीं आ रहा था और इसलिए उन्होंने विवेक खुराना को कई बार धमकाया । उनकी हरकतों के कारण एक-डेढ़ घंटे की मीटिंग छह घंटे चली - और छह घंटे की मीटिंग में भी कई-एक फैसले तब संभव हो सके जब पुलिस कार्रवाई की धमकी के बाद राजेंद्र अरोड़ा और नितिन कँवर ने अपने अपने 'बेस' की चिंता करते हुए अपनी बदतमीजियों पर ब्रेक लगाया ।
चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने कल हुई मीटिंग में काउंसिल के विरोधी खेमे के सदस्यों की कई माँगों को सिद्धांततः स्वीकार तो कर लिया है, लेकिन विरोधी खेमे के कुछेक सदस्यों को शक है कि उन्हें सचमुच अमल में लाने से बचने के लिए वह कोई हरकत न कर दें, इसलिए वह राकेश मक्कड़ और उनके संगी-साथियों की हरकतों पर नजर रखने की जरूरत भी समझ रहे हैं । राकेश मक्कड़ अपनी हरकतों से अपनी और काउंसिल की खासी फजीहत करवा चुके हैं, और अपनी हरकतों पर पर्दा डालने की उनकी हर कोशिश लगातार फेल होती जा रही है - इससे उम्मीद हालाँकि यह भी की जा रही है कि इससे सबक लेते हुए राकेश मक्कड़ अब अपनी बात पर ईमानदारी से अमल करेंगे । देखना दिलचस्प होगा कि राकेश मक्कड़ लगातार हो रही अपनी फजीहत से सचमुच सबक लेंगे या अपनी बेईमानीपूर्ण हरकतों को जारी रखेंगे ?