Saturday, August 12, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में 'अधिकृत उम्मीदवार' नहीं, तो 'चेलैंज' का जुमला उछाल कर अशोक गुप्ता ने फुल रौनक का माहौल बनाया

जयपुर । अशोक गुप्ता की तरफ से नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार न चुने जाने की स्थिति में चेलैंज करने की बात आने से जोन 4 में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव का परिदृश्य खासा रोमांचक हो गया है । अशोक गुप्ता की तरफ से इस तरह की बात आने से लोगों को लगा है कि अशोक गुप्ता ने नोमीनेटिंग कमेटी में अपनी पराजय अभी से स्वीकार कर ली है, और उन्होंने उसके आगे की तैयारी शुरू कर दी है । अशोक गुप्ता के नजदीकियों का हालाँकि यह भी कहना है कि चेलैंज करने की बात फैला/फैलवा कर अशोक गुप्ता ने वास्तव में नोमीनेटिंग कमेटी में अपने लिए समर्थन बनाने/बढ़ाने की चाल चली है । इन नजदीकियों का कहना है कि नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों से बात करने में मिले/हुए अनुभवों से अशोक गुप्ता को इस बात का आभास तो हो ही गया है कि नोमीनेटिंग कमेटी में उनकी दाल नहीं गलने वाली है; ऐसे में उन्हें लगा है कि चेलैंज करने की बात करके वह नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों को 'प्रभावित' कर सकते हैं । अशोक गुप्ता को लगता है कि उनके द्वारा चेलैंज करने की बात सुन कर नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्यों को अपनी अपनी निरर्थकता का अहसास होगा; उन्हें लगेगा कि उनके द्वारा चुना गया अधिकृत उम्मीदवार यदि इंटरनेशनल डायरेक्टर बन ही नहीं पायेगा, तो फिर वह इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए किसी और की बजाए अशोक गुप्ता को ही अधिकृत उम्मीदवार क्यों न चुनें ?
अशोक गुप्ता की यह चाल सफल होगी या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा - चाल के तहत अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज करने की बात फैला/फैलवा कर अशोक गुप्ता ने लेकिन अभी चुनावी माहौल को गर्म जरूर कर दिया है । अशोक गुप्ता के कुछेक अन्य नजदीकियों का मानना/कहना यह भी है कि चेलैंज करने की बात एक झाँसापट्टी ही है, क्योंकि अपने डिस्ट्रिक्ट में वह भले ही बड़े तुर्रमखाँ हों - लेकिन दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में उनकी कोई पहचान ही नहीं है; और यह बात खुद अशोक गुप्ता को भी समझ में आ रही है । नोमीनेटिंग सदस्यों के बीच अपने लिए अजनबीपन पाकर अशोक गुप्ता को तगड़ा झटका लगा है; नोमीनेटिंग कमेटी में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ही हैं - इसलिए विचार करने की बात यही है कि जब जोन के डिस्ट्रिक्ट्स के पूर्व गवर्नर्स ही अशोक गुप्ता को ज्यादा नहीं जानते/पहचानते हैं, तो क्लब्स के लोग ही उन्हें क्या और कितना जानते होंगे ? अशोक गुप्ता की सक्रियता व उनकी गतिविधियों से परिचित लोगों का कहना है कि अशोक गुप्ता ने रोटरी के बड़े बड़े नेताओं को डॉक्टरेट की टोपी पहना पहना कर उनके बीच तो अपने आप को परिचित करवाया है, लेकिन बाकी रोटेरियंस को उन्होंने कभी कोई तवज्जो नहीं दी; अपने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति और व्यवस्था में पकड़ बनाए रखने की चालबाजियों में तो अशोक गुप्ता ने खूब मन लगाया है, लेकिन रोटरी में वह ऐसा कोई योगदान नहीं दे/कर सके हैं - जो दूसरों को प्रभावित और प्रेरित कर सके ।
दरअसल इसीलिए इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के संभावित उम्मीदवारों में अशोक गुप्ता को सबसे कमजोर 'व्यक्तित्व' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के संभावित उम्मीदवारों में सुरेंद्र सेठ जोन के डिस्ट्रिक्ट्स के खास और आम लोगों के बीच एक प्रभावी वक्ता के रूप में जाने/पहचाने जाते हैं; दीपक कपूर का पोलियो के काम के चलते नाम है; रंजन ढींगरा ने जल-संरक्षण के काम के जरिए तथा एक अच्छे वक्ता के रूप में अपनी पहचान और साख तो बनाई हुई है ही, पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के समर्थन के चलते भी लोगों के बीच उन्हें गंभीरता से लिया जाता है; भरत पांड्या के साथ पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर अशोक महाजन - और अशोक महाजन के कारण पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू का समर्थन है । एक अकेले अशोक गुप्ता ऐसे हैं, जिनका न तो कोई 'काम' है और न जिनके समर्थन में कोई नेता है । वास्तव में यह अशोक गुप्ता के छोटे नजरिए और अव्यावहारिक रवैए का परिणाम है । अशोक गुप्ता ने यूँ तो रोटरी को अपना बहुत समय, अपनी बहुत एनर्जी और अपने बहुत 'साधन' दिए हैं - लेकिन उनका नजरिया और उनका रवैया ऐसा रहा है कि सब कुछ 'लुटाने' के बाद भी वह रोटरी समुदाय में किसी को प्रभावित नहीं कर सके हैं - और यही कारण है कि रोटरी के बड़े नेताओं के साथ-साथ दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों के बीच उनकी न तो कोई पहचान बन सकी, और न वह अपना कोई खैरख्वाह बना सके हैं ।
इस सच्चाई से सामना होते ही अशोक गुप्ता को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की अपनी उम्मीदवारी के अभियान में पैंतरा बदलने की जरूरत महसूस हुई; और लगता है कि इसी जरूरत के चलते उन्होंने 'अधिकृत उम्मीदवार' नहीं - तो 'चेलैंज' का जुमला उछाल दिया है । उनकी दशा को जानने/पहचानने वाले लोगों का कहना है कि चेलैंज करना - यानि चेलैंज करने के लिए जरूरी समर्थन जुटा पाना तो अशोक गुप्ता के लिए असंभव ही होगा और यह बात वह भी जानते/समझते हैं; इसलिए लगता यही है कि चेलैंज की बात दरअसल उनकी तरफ से गीदड़ भभकी ही है - अशोक गुप्ता उम्मीद कर रहे हैं कि उनकी इस गीदड़ भभकी से 'डर' कर नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्य उन्हें ही अधिकृत उम्मीदवार चुन लेंगे । मजे की बात यह सुनने/देखने को मिल रही है कि अशोक गुप्ता की देखादेखी दूसरे उम्मीदवार भी चेलैंज करने की बात करने लगे हैं - यानि जोन 4 में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में फुल रौनक देखने को मिलेगी ।