Monday, August 21, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जल्दी करवाने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल की घोषणा ललित खन्ना की उम्मीदवारी के मुकाबले आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी की कमजोर स्थिति का स्वीकार है क्या ?

नोएडा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए जल्दी चुनाव कराने की घोषणा पर लोगों की, खासतौर से क्लब्स के प्रेसीडेंट्स की तरफ से मिल रही प्रतिक्रियाओं ने आलोक गुप्ता के लिए मुसीबतें खासी बढ़ा दी हैं । उन्हें लोगों के इस सवाल का सामना करना पड़ रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अपनी जीत को लेकर वह यदि सचमुच आश्वस्त हैं, तो फिर चुनाव जल्दी क्यों करवा रहे हैं - और आलोक गुप्ता का कोई भी जबाव लोगों को किसी भी तरह से संतुष्ट नहीं कर पा रहा है । गंभीर बात यह है कि आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को जो लोग मजबूत मान/समझ रहे थे, उन्होंने भी जल्दी चुनाव कराने के फैसले को आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी की कमजोरी के रूप में देखा/पहचाना है; वह स्वीकार कर रहे हैं कि वह गलतफहमी का शिकार थे और जल्दी चुनाव कराने के फैसले ने उनकी गलतफहमी को दूर कर दिया है - उन्हें भी समझ में आ रहा है कि चुनावी नजरिए से आलोक गुप्ता की स्थिति मजबूत होती, तो उनकी उम्मीदवारी की बागडोर सँभालने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल जल्दी चुनाव करवाने का फैसला भला क्यों करते ? लोगों की प्रतिक्रियाओं से लग रहा है कि आलोक गुप्ता ने अपनी मेहनत से अपनी उम्मीदवारी की मजबूती का अहसास करवाता हुआ जो गुब्बारा लोगों के बीच फुलाया हुआ था, जल्दी चुनाव करवाने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल की घोषणा ने उसकी सारी हवा एक साथ निकाल दी है ।
उल्लेखनीय है कि रोटरी वर्ष शुरू होने के कुछ ही दिन बाद सतीश सिंघल की तरफ से जल्दी चुनाव कराने के संकेत मिल रहे थे; माना/समझा जा रहा था कि आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी का झंडा थामे सतीश सिंघल और मुकेश अरनेजा ने समझ लिया था कि चुनाव यदि उचित समय पर हुए तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में आलोक गुप्ता की बजाए ललित खन्ना का पलड़ा भारी पड़ेगा - क्योंकि तब तक लोग सतीश सिंघल के कार्य-व्यवहार से लोग पक चुके होंगे और अगले वर्ष के गवर्नर सुभाष जैन के नजदीक 'दिखने' की कोशिश करने लगेंगे । इस तरह की बातें शुरू हुईं तो सतीश सिंघल ने यह कहते हुए चर्चा पर विराम लगा/लगवा दिया कि जल्दी चुनाव करवा कर मैं अपनी कॉन्फ्रेंस खराब क्यों करना चाहूँगा । रोटरी की व्यवस्था में यह एक आम समझ है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में यदि चुनाव नहीं हो रहा होता है, तो डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस बेरौनक होती है - और कोई भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अपनी कॉन्फ्रेंस को बेरौनक नहीं होने देना चाहता । इसलिए सतीश सिंघल का उक्त तर्क लोगों को जँचा और यह मान लिया गया कि जल्दी चुनाव की बात सिर्फ चर्चा में है - लेकिन हाल ही में जब एक आधी रात के करीब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की तरफ से चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ, तो पोल खुली कि जल्दी चुनाव करवाना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के एजेंडे पर था और वह 'स्थिति' पर नजर रखते हुए इस विकल्प को खुला रखे हुए थे ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव कब हो, इसे तय करने का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को विशेषाधिकार प्राप्त है - इसलिए जल्दी चुनाव करवाने के सतीश सिंघल के फैसले की आलोचना करना उनके साथ नाइंसाफी करना होगा । लेकिन इस फैसले तक पहुँचने में सतीश सिंघल ने जो तरीका अपनाया, उसमें उनकी चुनावी बेईमानी साफ नजर आ रही है । अभी कुछ दिन पहले तक तो वह कह रहे थे कि जल्दी चुनाव करवा कर वह अपनी कॉन्फ्रेंस खराब नहीं करेंगे; और फिर वह अचानक से जल्दी चुनाव की घोषणा कर देते हैं और वह भी आधी रात के नजदीक - यह चुनावी तिकड़म का जीता/जागता उदाहरण है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सतीश सिंघल को आखिरकार यह तिकड़म करने की जरूरत क्यों पड़ी - इस सवाल पर होने वाली चर्चाओं ने आलोक गुप्ता के लिए मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया है ।
दरअसल चर्चाओं में यह बात सामने आ रही है और लोगों को उचित लग रही है कि आलोक गुप्ता और उनकी उम्मीदवारी का झंडा थामे नेताओं ने अंततः इस सच्चाई को स्वीकार कर लिया कि सतीश सिंघल की कारस्तानियों के चलते लोगों की, खासतौर से क्लब्स के प्रेसीडेंट्स की नाराजगी बढ़ रही है और इस नाराजगी का खामियाजा आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को भुगतना पड़ जाएगा । इसका नजारा आलोक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में भी देखने को मिला, जिसमें भीड़ तो काफी इकट्ठी हुई, लेकिन क्लब्स के पदाधिकारियों का प्रतिनिधित्व अपेक्षा से कम रहा । 10 अगस्त को हुए आलोक गुप्ता के अधिष्ठापन समारोह का नजारा देख कर और उसमें छिपे राजनीतिक मंतव्य को 'पढ़ते' हुए सतीश सिंघल और मुकेश अरनेजा ने समझ लिया कि चुनाव में जितनी देर होगी, आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए उतनी ही मुसीबत होगी - लिहाजा आनन फानन में इन्होंने चुनाव की तैयारी को अंतिम रूप दिया और 16 अगस्त की आधी रात होने से कुछ पहले चुनाव की घोषणा करते हुए मेल डाल दी ।
आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के जो समर्थक और शुभचिंतक दावा कर रहे हैं कि जल्दी चुनाव होने से आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को फायदा मिलेगा, उनके लिए भी इस सवाल का जबाव देना मुश्किल हो रहा है कि आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को मिल रहे समर्थन के प्रति वह यदि इतने ही आश्वस्त हैं तो फिर चुनाव जल्दी क्यों करवा रहे हैं ? मजे की बात यह है कि हर किसी का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों की क्षमताओं तथा काबिलियत को पहचानने/समझने के लिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों और मतदाताओं के रूप में क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को पर्याप्त समय मिलना चाहिए; इसलिए लोगों के बीच यह सवाल मुखर बना हुआ है कि आलोक गुप्ता और उनके समर्थक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को पर्याप्त समय क्यों नहीं देना चाहते ? उन्हें डर किस बात का है ? इस तरह के सवालों के बीच कुछेक लोगों को यह कहने का मौका भी मिला है कि जल्दी चुनाव करवाने से यह स्पष्ट हो गया है कि आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में ललित खन्ना के मुकाबले आलोक गुप्ता की कमजोर स्थिति को स्वयं ही स्वीकार कर लिया है ।