नई दिल्ली । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे का कार्यकाल जिस तरह के विवादों और आरोपों का शिकार हो रहा है, उसमें इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों ने उनकी बात मानने से इंकार करके एक अध्याय और जोड़ दिया है । इससे
पहले शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि सेंट्रल काउंसिल के किन्हीं सदस्यों को
प्रेसीडेंट कोई जिम्मेदारी सौंपे, और सेंट्रल काउंसिल सदस्य उसे मानने और
पूरा करने से पीछे हट जाएँ । उल्लेखनीय है कि नीलेश विकमसे ने नॉर्दर्न
रीजन के सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के
पदाधिकारियों तथा दूसरे सदस्यों के बीच चल रहे टकराव को दूर करने की
जिम्मेदारी सौंपी थी, जिसे तत्परता से निभाने की कोशिश करते हुए सेंट्रल
काउंसिल सदस्यों ने पिछले सप्ताह रीजनल काउंसिल सदस्यों की एक मीटिंग
बुलाई, उस मीटिंग में तय हुए काम को आगे बढ़ाने की श्रृंखला में लेकिन कल
जो मीटिंग हुई - सेंट्रल काउंसिल सदस्य उसमें शामिल नहीं हुए, जिस कारण
पटरी पर आता दिख रहा मामला एक बार फिर पटरी से उतरता हुआ नजर आ रहा है ।
सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने अपनी अनुपस्थिति को लेकर कोई औपचारिक बयान तो
नहीं दिया है, लेकिन उनकी तरफ से लोगों को सुनने को मिला है कि चूँकि उन्हें नहीं लगता कि
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में गड़बड़ी के जिम्मेदार पदाधिकारियों के खिलाफ
प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे सचमुच कोई कार्रवाई करेंगे, इसलिए जब कुछ होना ही नहीं है - तो वही क्यों अपने आप को मुसीबत में डालें ?
सेंट्रल काउंसिल सदस्य दरअसल पिछले सप्ताह हुई मीटिंग में नितिन कँवर द्वारा अतुल गुप्ता के साथ की गयी बदतमीजी से 'डर' गए हैं । मीटिंग में निकासा चेयरमैन नितिन कँवर ने सेंट्रल काउंसिल के वरिष्ठ सदस्य अतुल गुप्ता के साथ जो बदतमीजी की, अतुल गुप्ता ने हालाँकि नितिन कँवर को उसका करारा जबाव तो मीटिंग में ही दे दिया था - लेकिन नितिन कँवर के व्यवहार ने सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को यह सोचने पर मजबूर किया कि नितिन कँवर को 'समर्थन' किसका और कहाँ से मिल रहा है, जिसके बल पर वह सेंट्रल काउंसिल के एक वरिष्ठ सदस्य के साथ भी बदतमीजी करने की हिम्मत कर रहा है । यह सवाल गंभीर इसलिए बना क्योंकि उक्त मीटिंग से पहले हुई रीजनल काउंसिल की मीटिंग में दो ऑब्जर्बर्स की उपस्थिति में नितिन कँवर और राजेंद्र अरोड़ा ने बदतमीजी की थी - जिसे लेकर दोनों ऑब्जर्बर्स ने अपनी रिपोर्ट में प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज की थी । ऑब्जर्बर्स की रिपोर्ट के आधार पर इनके खिलाफ कार्रवाई हुई होती, तो नितिन कँवर की अतुल गुप्ता के साथ बदतमीजी करने की हिम्मत नहीं होती । इस बात को 'समझ' कर सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने जान लिया कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में मनमानी बेईमानियाँ तथा बदतमीजी करने वाले पदाधिकारियों को 'ऊपर' से समर्थन प्राप्त है - जिसके बल पर उक्त पदाधिकारी उनके साथ भी बदतमीजी कर सकते हैं, नितिन कँवर ने उसका नजारा पेश कर ही दिया है; इसलिए उनसे दूर रहने में ही भलाई है ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों को सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा के समर्थन की बात जगजाहिर है । इसके साथ-साथ यह बात भी इंस्टीट्यूट के लोगों की जुबान पर रहती है कि नीलेश विकमसे पता नहीं क्यों राजेश शर्मा से बड़ा 'घबराते' हैं । समझा जाता है कि नीलेश विकमसे पर राजेश शर्मा के प्रभाव के कारण ही नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों को न सिर्फ मनमानियाँ व बेईमानियाँ करने की छूट मिली हुई है, बल्कि ऑब्जर्बर्स की उपस्थिति में भी बदतमीजी करने का अधिकार मिला हुआ है । इस अधिकार से वह इतने मस्त हैं कि उन्होंने अपने ही रीजन के सेंट्रल काउंसिल काउंसिल सदस्य अतुल गुप्ता तक का भी कोई लिहाज नहीं किया और उनके साथ भी बदतमीजी कर बैठे । ऐसे में, सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने समझ लिया कि प्रेसीडेंट से संरक्षण प्राप्त रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की बदतमीजी का शिकार होने से उन्हें यदि बचना है, तो प्रेसीडेंट द्वारा दी गयी जिम्मेदारी को उन्हें छोड़ना ही पड़ेगा - और इसीलिए कल हुई मीटिंग से वह दूर ही रहे, जिसका नतीजा रहा कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों को मनमानी तथा बदतमीजी करने की पूरी छूट मिल गयी ।
पिछले सप्ताह हुई मीटिंग में जब प्रेसीडेंट के निर्देश पर सेंट्रल काउंसिल सदस्य आए थे, तब रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों पर कुछ दबाव पड़ा था और उनकी मनमानियों पर रोक लग सकी थी । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के दबाव के चलते रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी रीजनल काउंसिल के दूसरे सदस्यों को एकाउंट्स दिखाने के लिए मजबूर हुए थे, जिसमें पदाधिकारियों की बेईमानियों और चोरी के सुबूत मिले थे । दरअसल इससे ही बौखला कर नितिन कँवर ने अतुल गुप्ता के साथ बदतमीजी की थी । कल की मीटिंग से सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के दूर रहने/होने से रीजनल काउंसिल में हालात फिर से पहले जैसे ही होते नजर आए । इंस्टीट्यूट के इतिहास में शायद यह पहली बार ही हुआ होगा कि सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों ने प्रेसीडेंट द्वारा सौंपे गए काम को करने से 'इंकार' किया है ।
सेंट्रल काउंसिल सदस्य दरअसल पिछले सप्ताह हुई मीटिंग में नितिन कँवर द्वारा अतुल गुप्ता के साथ की गयी बदतमीजी से 'डर' गए हैं । मीटिंग में निकासा चेयरमैन नितिन कँवर ने सेंट्रल काउंसिल के वरिष्ठ सदस्य अतुल गुप्ता के साथ जो बदतमीजी की, अतुल गुप्ता ने हालाँकि नितिन कँवर को उसका करारा जबाव तो मीटिंग में ही दे दिया था - लेकिन नितिन कँवर के व्यवहार ने सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को यह सोचने पर मजबूर किया कि नितिन कँवर को 'समर्थन' किसका और कहाँ से मिल रहा है, जिसके बल पर वह सेंट्रल काउंसिल के एक वरिष्ठ सदस्य के साथ भी बदतमीजी करने की हिम्मत कर रहा है । यह सवाल गंभीर इसलिए बना क्योंकि उक्त मीटिंग से पहले हुई रीजनल काउंसिल की मीटिंग में दो ऑब्जर्बर्स की उपस्थिति में नितिन कँवर और राजेंद्र अरोड़ा ने बदतमीजी की थी - जिसे लेकर दोनों ऑब्जर्बर्स ने अपनी रिपोर्ट में प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज की थी । ऑब्जर्बर्स की रिपोर्ट के आधार पर इनके खिलाफ कार्रवाई हुई होती, तो नितिन कँवर की अतुल गुप्ता के साथ बदतमीजी करने की हिम्मत नहीं होती । इस बात को 'समझ' कर सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने जान लिया कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में मनमानी बेईमानियाँ तथा बदतमीजी करने वाले पदाधिकारियों को 'ऊपर' से समर्थन प्राप्त है - जिसके बल पर उक्त पदाधिकारी उनके साथ भी बदतमीजी कर सकते हैं, नितिन कँवर ने उसका नजारा पेश कर ही दिया है; इसलिए उनसे दूर रहने में ही भलाई है ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों को सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा के समर्थन की बात जगजाहिर है । इसके साथ-साथ यह बात भी इंस्टीट्यूट के लोगों की जुबान पर रहती है कि नीलेश विकमसे पता नहीं क्यों राजेश शर्मा से बड़ा 'घबराते' हैं । समझा जाता है कि नीलेश विकमसे पर राजेश शर्मा के प्रभाव के कारण ही नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों को न सिर्फ मनमानियाँ व बेईमानियाँ करने की छूट मिली हुई है, बल्कि ऑब्जर्बर्स की उपस्थिति में भी बदतमीजी करने का अधिकार मिला हुआ है । इस अधिकार से वह इतने मस्त हैं कि उन्होंने अपने ही रीजन के सेंट्रल काउंसिल काउंसिल सदस्य अतुल गुप्ता तक का भी कोई लिहाज नहीं किया और उनके साथ भी बदतमीजी कर बैठे । ऐसे में, सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने समझ लिया कि प्रेसीडेंट से संरक्षण प्राप्त रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की बदतमीजी का शिकार होने से उन्हें यदि बचना है, तो प्रेसीडेंट द्वारा दी गयी जिम्मेदारी को उन्हें छोड़ना ही पड़ेगा - और इसीलिए कल हुई मीटिंग से वह दूर ही रहे, जिसका नतीजा रहा कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों को मनमानी तथा बदतमीजी करने की पूरी छूट मिल गयी ।
पिछले सप्ताह हुई मीटिंग में जब प्रेसीडेंट के निर्देश पर सेंट्रल काउंसिल सदस्य आए थे, तब रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों पर कुछ दबाव पड़ा था और उनकी मनमानियों पर रोक लग सकी थी । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के दबाव के चलते रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी रीजनल काउंसिल के दूसरे सदस्यों को एकाउंट्स दिखाने के लिए मजबूर हुए थे, जिसमें पदाधिकारियों की बेईमानियों और चोरी के सुबूत मिले थे । दरअसल इससे ही बौखला कर नितिन कँवर ने अतुल गुप्ता के साथ बदतमीजी की थी । कल की मीटिंग से सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के दूर रहने/होने से रीजनल काउंसिल में हालात फिर से पहले जैसे ही होते नजर आए । इंस्टीट्यूट के इतिहास में शायद यह पहली बार ही हुआ होगा कि सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों ने प्रेसीडेंट द्वारा सौंपे गए काम को करने से 'इंकार' किया है ।