Wednesday, August 23, 2017

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के दो-तीन बेईमान पदाधिकारियों के सामने सेंट्रल काउंसिल सदस्य और इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट तक लाचार क्यों बने हुए हैं ?

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़, सेक्रेटरी राजेंद्र अरोड़ा और निकासा चेयरमैन नितिन कँवर ने 'चोर चोर मौसेरे भाई' वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए पिछले वर्ष की बेईमानी के आरोपों से भरी बैलेंसशीट को पास करवाने में एकता का आज की मीटिंग में बेशर्मीभरा परिचय दिया । दीपक गर्ग, पंकज पेरिवाल तथा सुमित गर्ग ने इस एकता में 'फर्स्ट कज़िन' की भूमिका निभाई । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष की बैलेंसशीट को लेकर रीजनल काउंसिल के सदस्यों के बीच काफी समय से विवाद चल रहा है । काउंसिल के ही कुछेक सदस्यों का आरोप है कि काउंसिल के पदाधिकारियों ने अनापशनाप खर्चे किए हुए हैं, और फर्जी किस्म के बिलों के जरिए काफी मोटी रकम हड़पी हुई है । इन आरोपों को तब और बल मिला, जब काउंसिल के पदाधिकारियों ने बैलेंस शीट में जुड़े खर्चों के डिटेल्स काउंसिल सदस्यों को ही दिखाने/बताने से इंकार कर दिया । 'चोर की दाढ़ी में तिनका' वाली कहावत को प्रासंगिक बनाते हुए रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के इस इंकार ने जो बबाल मचाया, उसकी गूँज इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे तक पहुँची, जिन्होंने सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व कर रहे सदस्यों से मामले को देखने और निपटाने को कहा ।
सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की उपस्थिति में पिछले सप्ताह रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी आरोप लगाने वाले काउंसिल सदस्यों को बैलेंस शीट में दिखाए गए खर्चों के डिटेल्स दिखाने के लिए मजबूर हुए । डिटेल्स देखने वाले काउंसिल सदस्यों ने खर्चों में भारी अनियमितता और बेईमानियाँ रेखांकित कीं । चेयरमैन राकेश मक्कड़ के भाई को बेईमानीपूर्ण तरीके से क्लासेस देने और तय शर्तों से ज्यादा पैसा देने का मामला पकड़ा गया; टीए/डीए के नाम पर तो अनापशनाप बिल पकड़े ही गए, हद की बात तो यह सामने आई कि किसी ब्रांच में गए, तो उसके नजदीक के मंदिर में भी गए और वहाँ हजारों रुपए का प्रसाद खरीदा और उस प्रसाद का बिल भी रीजनल काउंसिल के खाते में डाल दिया । निकासा चेयरमैन के रूप में राजेंद्र अरोड़ा ने जो कन्वेंशन की, उसमें करीब तीन-चार सौ छात्रों की उपस्थिति की बात सामने आई थी, लेकिन खर्चे करीब एक हजार छात्रों की उपस्थिति के हिसाब से डाले हुए हैं । अनापशनाप रकम के फर्जी किस्म के बिलों को पास करने और पैसे देने में तत्कालीन ट्रेजरर नितिन कँवर ने जो तत्परता दिखाई, उससे लगता है कि जैसे उन्हें इसके लिए कमीशन मिला है । गंभीर आरोप यह लगा है कि बैलेंस शीट का ऑडिट करने में भी नियमों का पालन नहीं हुआ है, और ऑडीटर ने भी इस तथ्य को लेकर अपनी आँखें बंद ही किए रखीं ।
सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की उपस्थिति में पिछले सप्ताह रीजनल काउंसिल के ही सदस्यों ने जो तमाम अनिमितताएँ पकड़ीं, उन पर काउंसिल के पदाधिकारियों को आज की मीटिंग में जबाव देना था । आज की मीटिंग में चूँकि सेंट्रल काउंसिल सदस्य नहीं पहुँचे - इसलिए राकेश मक्कड़, राजेंद्र अरोड़ा और नितिन कँवर की तिकड़ी ने मनमानी और बदतमीजी का एकबार फिर नंगानाच किया और आरोपों का संतोषप्रद जबाव देने से बचते हुए जोरजबर्दस्ती से बैलेंसशीट पास कराने का प्रयास किया । इसमें कामयाब न होने पर वह बैलेंसशीट पर वोट करवाने के लिए मजबूर हुए । मीटिंग में उपस्थित 12 काउंसिल सदस्यों में बैलेंसशीट को पास करने के पक्ष में छह सदस्यों का ही वोट मिला । सत्ता खेमे के लिए फजीहत की बात यह हुई कि काउंसिल के वाइस चेयरमैन विवेक खुराना ने भी बेईमानीपूर्ण खर्चों वाली बैलेंसशीट को पास करने का विरोध किया । बैलेंसशीट को पास कराने की जिद पर अड़े राकेश मक्कड़ ने तब चेयरमैन के रूप में अपना डिसाइडिंग वोट देते हुए बैलेंसशीट को पास कराया । न्याय का तकाजा तो यह कहता है कि जब राकेश मक्कड़ पर अपने भाई को बेईमानीपूर्ण तरीके से फायदा पहुँचाने का आरोप है, तब राकेश मक्कड़ को तो वोटिंग में हिस्सा ही नहीं लेना चाहिए था - लेकिन वोटिंग में राकेश मक्कड़ अपने दो वोट गिनवाते हैं; और इस तरह अपनी तथा दूसरों की 'चोरी' को जस्टीफाई करते हैं ।
बैलेंसशीट को पास करने का विरोध कर रहे सदस्यों ने नितिन कँवर को खूब उलाहना भी दिया कि ब्रांचेज में और दूसरी जगहों पर भाषण देते हुए तो अपनी ईमानदारी का बड़ा ढोल पीटते हो, यहाँ लेकिन बेईमानों और काउंसिल में लूट-खसोट मचाने वालों का साथ दे रहे हो - नितिन कँवर पर लेकिन किसी उलाहने का असर नहीं पड़ा और उन्होंने 'मौसेरे भाई' वाली भूमिका ही निभाई । सत्ता खेमे के लोग बैलेंसशीट को पास करा लेने में तो आज कामयाब हो गए हैं, लेकिन विवाद अभी थमता हुआ दिख नहीं रहा है । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की सक्रियता और इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट की दिलचस्पी के बाद भी नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में लूटखसोट को नियंत्रित नहीं किया जा पा रहा है, तो इससे लूटखसोट की प्रवृत्ति की जड़ों के दूर दूर तक फैले होने का आभास ही मिलता है । इस सारे विवाद से परिचित लोगों को हैरानी इस बात की भी है कि रीजनल काउंसिल के दो-तीन बेईमान पदाधिकारी-सदस्यों के सामने सेंट्रल काउंसिल सदस्य और इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट तक लाचार क्यों बने हुए हैं ?