Sunday, August 30, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की कामकाजी समस्याओं को हल करने की जिम्मेदारी दूसरों पर छोड़ने तथा खुद नाच दिखाने में लगे गौरव गर्ग से लोगों का पूछना यह है कि वह रीजनल काउंसिल के सदस्य हैं क्यों ?

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य के रूप में गौरव गर्ग ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की भूमिका के लिए ज्ञान पेलते हुए एक बार फिर मुँह खोला, और अपनी फजीहत करा बैठे । गौरव गर्ग ने सोशल मीडिया में आज इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों से गुहार लगाई कि उन्हें नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की भूमिका के बारे में विचार करना चाहिए - जो सिर्फ सेमिनार्स कराने का प्लेटफॉर्म बनी हुई है । मजे की बात यह है कि इससे पहले, नबंवर महीने में सोशल मीडिया में ही गौरव गर्ग ने रीजन के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से गुहार लगाई थी कि वह रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों पर दबाव बनाये कि वह प्रोफेशन के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें । लोगों का पूछना/कहना है कि गौरव गर्ग को यदि यह लगता है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की दशा-दिशा सुधारने की जिम्मेदारी या तो रीजन के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की है, और या इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों की - तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि इस संदर्भ में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में उनकी खुद की जिम्मेदारी क्या है ? लोगों का पूछना/कहना है कि गौरव गर्ग को ऐसा क्यों लगता है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए बड़े बड़े वायदों के साथ चुनाव तो वह लड़ेंगे और काउंसिल के सदस्य बनेंगे - उसके बाद वह तो भौंडा सा नाच नाचेंगे और फूहड़ से ठुमके लगायेंगे/दिखायेंगे, तथा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की दशा-दिशा सुधारने का काम करने के लिए वह दूसरे लोगों से कहेंगे ।
गौरव गर्ग ने पिछले दिनों एक बेहूदा नाच नाचते हुए अपना एक वीडियो सोशल मीडिया में लगाया/दिखाया था, उसका संदर्भ देकर ही लोग गौरव गर्ग को निशाना बना रहे हैं । अन्य कई लोगों का भी कहना है कि गौरव गर्ग ने चूँकि नाचने की कोई शिक्षा या ट्रेनिंग नहीं ली है, इसलिए उनके नाच के भौंडे, फूहड़ व बेहूदा होने पर टीका-टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए - लेकिन एक वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट तथा रीजनल काउंसिल सदस्य होने के नाते उनसे कुछ मैच्योर व्यवहार की उम्मीद तो की ही जाती है, जिसे दिखाने/जताने में वह पूरी तरह असफल रहे हैं । इंस्टीट्यूट की 'व्यवस्था' से थोड़ा सा भी परिचित चार्टर्ड एकाउंटेंट जानता/समझता है कि रीजनल काउंसिल्स की भूमिका बहुत सीमित है; ऐसे में, करीब डेढ़ वर्ष रीजनल काउंसिल में रहने के बाद यदि गौरव गर्ग को अब यह पता चला है कि रीजनल काउंसिल्स की तो ज्यादा कोई भूमिका ही नहीं है - तो लोगों का यह पूछना स्वाभाविक ही है कि अभी तक क्या वह सो रहे थे, और रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में कर क्या रहे थे ? लोगों का यह भी कहना है कि अब जब उन्हें समझ में आ गया है कि रीजनल काउंसिल की सेमिनार्स करने/करवाने के अलावा कोई भूमिका ही नहीं है, और उसकी भूमिका के बारे में पुनर्विचार करने का काम इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों को ही करना है, तब रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में वह खुद क्या करेंगे - उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए; और नाचने का प्रशिक्षण लेना चाहिए, ताकि लोग उन्हें अच्छे से नाचते हुए देख सकें । 
कुछेक लोगों का हालाँकि कहना/बताना है कि ऐसा नहीं है कि गौरव गर्ग ने रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के हालात सुधारने के लिए प्रयास नहीं किए हैं । रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के तौर-तरीकों तथा उनके रवैये के विरोध में गौरव गर्ग ने पिछले वर्ष मई महीने में रीजनल काउंसिल के कार्यालय में धरना देने की घोषणा की थी - और जोरदार तरीके से उसकी तैयारी की थी । लेकिन जब धरना देने का समय आया, तो उनके धरने के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पहुँचे उनके समर्थक यह देख कर हक्के-बक्के रह गए कि गौरव गर्ग धरना देने की बजाए - पदाधिकारियों के साथ बैठ कर चाय पी रहे हैं और हँसी-मजाक कर रहे हैं । गौरव गर्ग की धरना देने की घोषणा तो नौटंकी साबित हुई ही, गौरव गर्ग ने कभी यह स्पष्ट करने की भी जरूरत नहीं समझी कि जिन मुद्दों को लेकर उन्होंने धरना देने की घोषणा की थी, उन मुद्दों का आखिर हुआ क्या ? हुआ सिर्फ यह कि उसके बाद गौरव गर्ग रीजनल काउंसिल की कामकाजी समस्याओं को लेकर कभी रीजन के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से तो कभी इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों से कुछ करने की गुहार लगाने लगे - और खुद नाच दिखाने में लग गए । 

Saturday, August 29, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के अभियान को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से आयोजित की गई दीपक गुप्ता की हापुड़ की पार्टी बदइंतजामी के आरोपों में फँसी, तो गाजियाबाद की पार्टी बहुत कम उपस्थिति के चलते खासी फजीहत का शिकार बनी

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए गाजियाबाद में समर्थन जुटाने/बनाने तथा 'दिखाने' के उद्देश्य से दीपक गुप्ता द्वारा आयोजित की गई पार्टी के बुरी तरह फ्लॉप होने से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के अभियान को जोर का झटका लगा है । कल शाम आयोजित हुई पार्टी के लिए दीपक गुप्ता ने करीब सौ रोटेरियंस का जमाबड़ा करने और दिखाने की तैयारी की थी, लेकिन पार्टी में कुल दो प्रेसीडेंट्स सहित 15 से 20 रोटेरियंस ही जुटे - जिनमें से 4/5 रोटेरियंस तो सोनीपत से दीपक गुप्ता के साथ ही आए थे । 'कोढ़ में खाज' वाली बात यह हुई कि जो लोग पार्टी में समय से पहुँच गए थे, उन्हें बहुत देर इंतजार करने के बाद भी जब ड्रिंक्स खुलती हुई नहीं दिखीं - तो वह नाराजगी दिखाते हुए लौट गए । दीपक गुप्ता का कहना था कि कुछ और लोग आ जाएँ, तब पार्टी को आगे बढ़ाया जाए - लेकिन डेढ़/दो घंटे तक इंतजार करने के बाद तक भी जब दीपक गुप्ता को रोटेरियंस का इंतजार ही करते हुए देखा/पाया गया, तो पार्टी करने पहुँचे रोटेरियंस नाराज हो गए और अपना गुस्सा प्रकट करते हुए पार्टी से वापस लौटे । दीपक गुप्ता ने रोटेरियंस के पार्टी में न पहुँचने के लिए कोरोना के कारण बने डर के माहौल को बहानेबाजी की तरह इस्तेमाल करते हुए जिम्मेदार ठहराया है ।
मजे की बात लेकिन यह है कि दीपक गुप्ता के संभावित समर्थकों को ही उनका यह तर्क हजम नहीं हो रहा है । उनका कहना है कि दीपक गुप्ता ने जब इस पार्टी की योजना बनाई थी, तब कोरोना के कारण बने डर के माहौल को देखते हुए उन्हीं रोटेरियंस को पार्टी में बुलाने के लिए चिन्हित किया गया था, जो काफी सक्रिय रहते हैं तथा जिन्हें संभावित सहयोगी/समर्थक के रूप में पहचाना गया है । दीपक गुप्ता के लिए झटके वाली बात यह रही कि जिन रोटेरियंस ने पार्टी के निमंत्रण को खूब उत्साह के साथ स्वीकार किया था, वह भी पार्टी में नहीं पहुँचे । दीपक गुप्ता के नजदीकियों का ही मानना और कहना है कि इससे आभास मिलता है कि बात करने पर जो रोटेरियंस दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर उत्साह दिखाते हैं, वह जरूरत पड़ने पर उनके साथ खड़े होने/दिखने से बचते हैं - और इसलिए दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी उनके उत्साह के भरोसे नहीं रह सकती है । कुछेक लोगों का यह भी मानना/कहना है कि दीपक गुप्ता की हापुड़ में की गई पार्टी की बदइंतजामी की सूचना के चलते भी रोटेरियंस ने गाजियाबाद की पार्टी से दूर रहने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । 

कल शाम गाजियाबाद में आयोजित हुई पार्टी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के अभियान को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से खासी महत्त्वपूर्ण थी, और इसलिए दीपक गुप्ता ने उसके लिए अच्छे से तैयारी की थी । उन्होंने गाजियाबाद क्षेत्र के कुछेक ऐसे वरिष्ठ व प्रमुख रोटेरियंस की पार्टी में उपस्थिति सुनिश्चित करने की तैयारी की थी, जो चुनावी राजनीति को कुछ हद तक प्रभावित सकते थे । लेकिन सहमति देने के बाद भी उनके पार्टी में न पहुँचने से दीपक गुप्ता की सारी तैयारी पर पानी फिर गया है, जिसे कोरोना के कारण बने हालात की बहानेबाजी से छिपाने की दीपक गुप्ता की कोशिश भी छिपा नहीं पा रही है । हापुड़ की पार्टी बदइंतजामी के आरोपों में फँसी, तो गाजियाबाद की पार्टी रोटेरियंस के न पहुँचने तथा पहुँचे गिने-चुने रोटेरियंस के भी नाराज होकर वापस लौटने से खासी फजीहत शिकार बनी । इस तरह, पहले हापुड़ में और फिर गाजियाबाद में पार्टी का आयोजन करके दीपक गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी के अभियान को आगे बढ़ाने की जो तैयारी की थी, उसने उनके अभियान को वास्तव में पीछे धकेलने का ही काम किया है ।

Friday, August 28, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा वरिष्ठ पूर्व गवर्नर दीपक तलवार पर लगाए आरोप का सुबूत प्रस्तुत करने की चुनौती से बचने/छिपने के कारण एक बार फिर रोटेरियंस के बीच फजीहत का शिकार हुए 

नई दिल्ली । संजीव राय मेहरा सिर्फ डाँट खाने, लताड़ सुनने और फजीहत झेलने के लिए ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने हैं क्या ? लोगों के बीच यह सवाल दरअसल इसलिए चर्चा में है, क्योंकि अभी उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार संभाले दो महीने भी नहीं हुए हैं - कि तीन बड़े कांड में उन्हें डाँट खाना पड़ी है और फजीहत झेलना पड़ी है । ताजा प्रकरण में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक तलवार ने उन्हें चुनौती दी है कि रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड से उन्हें चेतावनी मिलने की जो बात उन्होंने कही/लिखी है, वह उसके सुबूत दें - अन्यथा माफी माँगे । संजीव राय मेहरा अपनी ही कही/लिखी बात का न कोई सुबूत दे रहे हैं, और न माफी माँग रहे हैं - बल्कि मुँह छिपाते फिर रहे हैं । इस प्रकरण पर वरिष्ठ पूर्व गवर्नर विनय अग्रवाल ने मजे लेते हुए संजीव राय मेहरा को बड़ी मीठी मीठी सी 'पिटाई' करते हुए चिट्ठी लिखी है । फजीहत के पिछले मामलों की तरह इस मामले में भी संजीव राय मेहरा ने मुसीबत खुद ही बुलाई और एक बार फिर साबित किया कि उम्र में वह भले ही बड़े हो गए हैं, लेकिन सोच/समझ और व्यवहार में वह बहुत 'छोटे' हैं ।
दीपक तलवार अगले रोटरी वर्ष, यानि वर्ष 2021-22 के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर हैं । इस नाते काम करते हुए उन्होंने क्लब्स के पदाधिकारियों से संपर्क किया । संपर्क करते हुए उन्होंने जो पत्र लिखा, उसमें उन्होंने अपने आप को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर तो लिखा/बताया - लेकिन वर्ष नहीं लिखा/बताया । इस तरह की चूक और या लापरवाही रोटरी में अधिकतर पदाधिकारी करते रहते हैं, और इसे प्रायः अनदेखा किया जाता है । अपनी सोच/समझ व व्यवहार के 'छोटेपन' को दर्शाते हुए संजीव राय मेहरा लेकिन दीपक तलवार की इस चूक और या लापरवाही पर जैसे आगबबूला हो गए, और बात का बतंगड़ बनाते हुए उन्होंने दीपक तलवार को तो बुरा-भला कहते हुई चिट्ठी लिख ही दी - और उससे भी जैसे उनका मन नहीं भरा, तो दीपक तलवार को लिखी अपनी चिट्ठी उन्होंने तमाम छोटे/बड़े पदाधिकारियों को भी भेज दी । संजीव राय मेहरा चाहते तो अपनी, अपने पद की, डिस्ट्रिक्ट की और रोटरी की गरिमा बनाये रखते हुए दीपक तलवार को उनकी चूक और या लापरवाही के प्रति आगाह करते हुए उसमें सुधार करवा सकते थे - लेकिन तब वह अपनी फजीहत का मौका कैसे बनाते ? संजीव राय मेहरा यदि दीपक तलवार को उनकी चूक और या लापरवाही पर ही घेरने तक टिकते, तब भी गनीमत होती और वह फजीहत से बच जाते । संजीव राय मेहरा लेकिन दीपक तलवार पर आरोप लगा बैठे कि वर्ष 2015-16 में डिस्ट्रिक्ट की कार्रवाई में हस्तक्षेप करने के लिए रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड उन्हें चेतावनी दे चुका है । दीपक तलवार ने इसी बात को मुद्दा बना कर संजीव राय मेहरा पर पलट वार किया है और आरोप लगाया है कि संजीव राय मेहरा झूठे आरोप लगा कर उन्हें बदनाम करने का प्रयास कर रहे हैं, तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की और डिस्ट्रिक्ट की गरिमा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं । दीपक तलवार ने संजीव राय मेहरा को चुनौती दी है कि वह रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड द्वारा उन्हें चेतावनी देने वाला सुबूत प्रस्तुत करें । सुबूत प्रस्तुत करने की बजाये संजीव राय मेहरा लेकिन मुँह छिपाते फिर रहे हैं ।
दीपक तलवार पर झूठा आरोप लगाने के मामले में फजीहत का शिकार हो रहे संजीव राय मेहरा, इससे पहले रोटरी इंटरनेशनल के नियमों का मजाक बनाते हुए रंजन ढींगरा की जगह विनय भाटिया को डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन बनाने के मामले में पहले रोटरी इंटरनेशनल के साउथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों से और फिर इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या से लताड़ खाकर फजीहत करा चुके हैं । उससे भी पहले, रोटरी ब्लड बैंक की एक मीटिंग में एक्स-ऑफिसो सदस्य के रूप में संजीव राय मेहरा को अनाप-शनाप बोलने पर ब्लड बैंक के वरिष्ठ पदाधिकारी रूपक जैन द्वारा लगभग डाँटते/फटकारते हुए चुप कराने का मामला सुना/बताया गया था । इस तरह, अपने दो महीने से भी कम के अभी तक के गवर्नर-काल में संजीव राय मेहरा ने तीन बड़े मामलों में डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ पूर्व गवर्नर्स से लेकर रोटरी के बड़े पदाधिकारियों तक से डाँट, लताड़ और फटकार खा ली है - और सभी मामलों में उनका बचकाना रवैया ही जिम्मेदार रहा है । इसी को देखते हुए डिस्ट्रिक्ट में तथा बड़े रोटरी नेताओं के बीच चर्चापूर्ण सवाल है कि संजीव राय मेहरा क्या डाँट, लताड़, फटकार खाने और फजीहत का शिकार बनने के लिए ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने हैं ?

Thursday, August 27, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अश्वनी काम्बोज के समर्थन के दावे के साथ उम्मीदवारी की तैयारी करके विनय शिशोदिया ने सुस्त पड़े पंकज बिजल्वान को दौड़भाग के लिए मजबूर किया और डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में खासी गर्मी पैदा की 

नोएडा । विनय शिशोदिया ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की तैयारी शुरू करके पहले से ही मुश्किलों से जूझ रहे पंकज बिजल्वान की मुसीबतों को और बढ़ा दिया है । मजे की बात यह है कि विनय शिशोदिया पिछले लायन वर्ष की चुनावी लड़ाई में पंकज बिजल्वान के समर्थन में थे - और खासे आक्रामक तरीके से उन्हें चुनाव जितवाने के अभियान में लगे हुए थे । पिछले लायन वर्ष की चुनावी लड़ाई में पंकज बिजल्वान को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की पगड़ी बँधवाने के लिए विनय शिशोदिया ने उन्हें ठीक पीछे से कस कर पकड़ा हुआ था, फिर भी वह पगड़ी लेकिन बँध गई रजनीश गोयल के सिर पर । विनय शिशोदिया को पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि वह पंकज बिजल्वान को तो सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव नहीं जितवा सके, लेकिन वह खुद सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन सकते हैं ! विनय शिशोदिया के नजदीकियों का कहना/बताना है कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अश्वनी काम्बोज से शह मिली है, और उसी शह के चलते विनय शिशोदिया ने पंकज बिजल्वान का साथ छोड़ कर अपनी उम्मीदवारी के लिए प्रयास तेज कर दिया है । विनय शिशोदिया के सक्रिय होने की जानकारी मिलने के बाद, सुस्त पड़े पंकज बिजल्वान ने भी करवट ली है और दौड़भाग तेज की है । 
पंकज बिजल्वान और विनय शिशोदिया ने हाल ही में सत्ता खेमे के पूर्व गवर्नर्स से मुलाकातें की हैं, और दोनों की ही तरफ से दावे सुने गए हैं कि पूर्व गवर्नर्स की तरफ से उन्हें उचित प्रोत्साहन मिला है । मजे की बात यह है कि यह दोनों ही पिछले लायन वर्ष में सत्ता खेमे के खिलाफ थे; लेकिन अब दोनों की ही तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि पिछले वर्ष जो हुआ, सो हुआ - अब इस वर्ष उन्होंने सत्ता खेमे के नेताओं के बीच अपना समर्थन बना लिया है । विनय शिशोदिया ने तो कुछेक लोगों को अपनी 'घर वापसी' की सूचना भी दी है । उल्लेखनीय है कि विनय शिशोदिया को डिस्ट्रिक्ट में विनय मित्तल ने ही 'आगे बढ़ाया' है, लेकिन पिछले वर्ष की चुनावी राजनीति में वह विनय मित्तल को चुनौती देने वाले लोगों के साथ थे । विनय शिशोदिया को लगता है कि सत्ता खेमे के कुछेक नेता अलग अलग कारणों से पंकज बिजल्वान को 'स्वीकार' नहीं कर सकेंगे, इसलिए सत्ता खेमे में उनकी दाल गल सकती है । हालाँकि सत्ता खेमे के कुछेक नेताओं को लगता है और उनका मानना/कहना है कि यदि इन दोनों में से ही किसी एक को चुनना है तो पंकज बिजल्वान को चुनना चाहिए - क्योंकि डिस्ट्रिक्ट में उनकी 'पहचान' ज्यादा है, विनय शिशोदिया को तो डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोग अभी जानते/पहचानते भी नहीं हैं । सत्ता खेमे के कुछेक नेताओं का यह भी मानना और कहना है कि इन दोनों में से चुनने की बजाये, उन्हें 'अपना' कोई उम्मीदवार लाना चाहिए ।  
सत्ता खेमे में अभी चूँकि किसी एक पर एकराय बनती नहीं दिख रही है, इसलिए वह जल्दबाजी में फैसला नहीं लेना चाहते हैं - और इंतजार करना चाहते हैं कि अपनी अपनी उम्मीदवारी को लेकर पंकज बिजल्वान और विनय शिशोदिया का कैसा क्या 'रवैया' रहता है । वह विरोधी खेमे के नेताओं की चाल का भी इंतजार करना चाहते हैं, जो बड़ी तेजी से उम्मीदवार की खोज में हैं - लेकिन जो उन्हें मिल नहीं रहा है । विरोधी खेमे के नेता उम्मीद कर रहे हैं कि सत्ता खेमे के नेता किसी एक को अपने उम्मीदवार के रूप में चुनें - तो दूसरा खुद-ब-खुद उनके पास आ जाए । पंकज बिजल्वान और विनय शिशोदिया तथा अन्य संभावित उम्मीदवार भी मान/समझ रहे हैं कि विरोधी खेमे के नेताओं से जुड़ने पर तो उन्हें सिर्फ पराजय ही मिलेगी - इसलिए हर कोई सत्ता खेमे का ही उम्मीदवार होना/बनना चाहता है, और विरोधी खेमे के नेताओं की छाया से भी बच रहा है । सत्ता खेमे के नेताओं के अभी फैसला न करने के रवैये ने पंकज बिजल्वान और विनय शिशोदिया के सामने चुनौती व समस्या यह खड़ी कर दी है कि वह सत्ता खेमे के नेताओं की हरी झंडी मिलने तक चुप बैठे रहें और या अपनी अपनी 'ताकत' दिखाते हुए पलड़ा अपने पक्ष में झुकाने के लिए प्रयास करें । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अश्वनी काम्बोज के समर्थन का दावा करते हुए विनय शिशोदिया ने अपनी उम्मीदवारी में 'वजन' तो पैदा किया है, लेकिन फिर भी यह देखना दिलचस्प होगा कि इस वर्ष वह पंकज बिजल्वान को पीछे से पकड़ेंगे या आगे से ?

Wednesday, August 26, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में तरुण अग्रवाल और पीके जैन की उम्मीदवारी को एक साथ आगे बढ़ाने की जिस रणनीति के भरोसे विश्वदीप सिंह खेमे के नेता डिस्ट्रिक्ट की राजनीति पर छा जाने की उम्मीद लगाए हुए हैं, जितेंद्र चौहान खेमे के नेता उनकी उसी रणनीति में अपनी जीत देख रहे हैं


आगरा । विश्वदीप सिंह और उनके समर्थक गवर्नर्स ने तरुण अग्रवाल और पीके जैन की उम्मीदवारी के जरिये डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जितेंद्र चौहान की राजनीति को 'घेरने' के लिए जाल तो अच्छा बिछाया है, लेकिन जितेंद्र चौहान खेमे के नेताओं का मानना और कहना है कि इस जाल में विश्वदीप सिंह तथा उनके समर्थक खुद ही फँसेंगे/गिरेंगे ।
 उल्लेखनीय है कि पिछले लायन वर्ष में सुनीता बंसल को 'रास्ते पर' लाने की मधु सिंह की योजना के अनुसार पहले उम्मीदवारी प्रस्तुत करने तथा फिर वापस ले लेने वाले तरुण अग्रवाल इस वर्ष विश्वदीप सिंह खेमे के समर्थन के भरोसे उम्मीदवार बने हैं, तो पीके जैन की उम्मीदवारी के समर्थक पूर्व गवर्नर्स नेताओं को भरोसा है कि विश्वदीप सिंह उनके साथ/समर्थन में रहेंगे । पीके जैन और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता इस वर्ष आगरा से बाहर के उम्मीदवार को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने की वकालत कर रहे हैं, और उन्हें विश्वास है कि विश्वदीप सिंह उनका समर्थन करेंगे । पीके जैन की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों का तो दावा है कि पीके जैन वास्तव में विश्वदीप सिंह से हरी झंडी मिलने के बाद ही उम्मीदवार 'बने' हैं । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवारों में चूँकि अकेले पीके जैन ही आगरा से बाहर के हैं, जिससे लगता है कि जितेंद्र चौहान खेमे के पास आगरा से बाहर कोई उम्मीदवार नहीं है - और ऐसे में, विश्वदीप सिंह तथा उनके साथी गवर्नर्स को लगता है कि वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनाव में 'आगरा से बाहर के' मुद्दे पर जितेंद्र चौहान खेमे को आसानी से मात दे देंगे ।
विश्वदीप सिंह तथा उनके साथी गवर्नर्स को पीके जैन से बस एक ही बात का डर है, और वह यह कि पीके जैन एक उम्मीदवार के रूप में 'चुनावी जरूरतों' को पूरा कर सकेंगे या नहीं ? चुनावी जरूरतों को पूरा करने के मामले में पीके जैन के फेल होने की स्थिति के लिए विश्वदीप सिंह खेमे के नेताओं ने तरुण अग्रवाल को हवा दी हुई है । तरुण अग्रवाल चूँकि पारस अग्रवाल के क्लब के ही सदस्य हैं, और पारस अग्रवाल को जितेंद्र चौहान के सबसे नजदीकी सहयोगी के रूप में देखा/पहचाना जाता है - इसलिए तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी के जरिये विश्वदीप सिंह खेमे ने दरअसल जितेंद्र चौहान के समर्थन-आधार को तगड़ा झटका देने की तैयारी की है । माना/समझा जा रहा है कि इस तरह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में विश्वदीप सिंह तथा उनके साथी गवर्नर्स ने दोनों हाथों में लड्डू पकड़े हुए हैं, और उन्हें लग रहा है कि इसके चलते वह डिस्ट्रिक्ट में जितेंद्र चौहान की राजनीति पर लगाम कस लेंगे ।
जितेंद्र चौहान खेमे के नेता हालाँकि इसे विश्वदीप सिंह खेमे की खामख्याली ही मान/बता रहे हैं । उनका मानना और कहना है कि एक आगरा से और एक आगरा के बाहर उम्मीदवार 'बना' कर विश्वदीप सिंह खेमे के नेताओं ने जो जाल बिछाया है, उसमें वास्तव में वही फँसने वाले हैं । उनका तर्क है कि तरुण अग्रवाल और पीके जैन - दोनों को ही भरोसा है कि विश्वदीप सिंह तथा उनके साथी गवर्नर्स का सहयोग/समर्थन उन्हें मिलेगा, जबकि वास्तव में सहयोग/समर्थन तो किसी एक को ही मिलेगा; तब जिसके साथ धोखा होगा, वही विश्वदीप सिंह खेमे को उनके ही जाल में फँसायेगा ! उल्लेखनीय है कि पीके जैन पिछले दो/तीन वर्षों से उम्मीदवार होने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन आगरा के नंबर/अधिकार को देखते हुए पीछे हटते रहे - इसलिए अब की बार तो वह अपना पूरा अधिकार मान रहे हैं; दूसरी तरफ तरुण अग्रवाल पिछले लायन वर्ष में अपनी उम्मीदवारी के जरिये मधु सिंह के 'काम' आए थे - इसलिए उन्हें विश्वास है कि विश्वदीप सिंह खेमे के नेता इस बार उनका समर्थन करेंगे ही । ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मजेदार सीन यह बना है कि जिस रणनीति के भरोसे विश्वदीप सिंह खेमे के नेता डिस्ट्रिक्ट की राजनीति पर छा जाने की उम्मीद लगाए हुए हैं, जितेंद्र चौहान खेमे के नेता लेकिन उनकी उसी रणनीति में अपनी जीत देख रहे हैं । 

Monday, August 24, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3110 में पिछले कुछ समय से अपने आप को अलीगढ़ के क्लब्स के नेता के रुप में प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट मुकेश सिंघल, नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उम्मीदवार चुनने के मामले में लगे झटके के लिए शैलेन्द्र कुमार राजु को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं

अलीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट मुकेश सिंघल को अपने जोन में ही फजीहत भरी 'हार' का सामना करना पड़ा है, जिसके चलते नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे उनके 'आदमी' को उम्मीदवारी से पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा । मुकेश सिंघल की तरफ से इस हार के लिए पूर्व गवर्नर शैलेन्द्र कुमार राजु को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । मुकेश सिंघल के नजदीकियों का कहना है कि शैलेन्द्र कुमार राजु ने अलीगढ़ के रोटेरियंस को उकसा/भड़का कर उनके खिलाफ माहौल बनाया और ऐसे हालात बनाये कि उनके उम्मीदवार को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा । उल्लेखनीय है कि नोमीनेटिंग कमेटी लिए रोटरी क्लब अलीगढ़ से मधुप लहरी, रोटरी क्लब अलीगढ़ पर्ल से हरवंश सहाय तथा रोटरी क्लब अलीगढ़ मानसी से शशि पवार की उम्मीदवारी की तैयारी थी - लेकिन मुकेश सिंघल अपनी चौधराहट दिखाने/जताने के लिए अंबरीश गर्ग को उम्मीदवार बनाने की बात करने लगे । मुकेश सिंघल का तर्क रहा कि अन्य जो उम्मीदवार हैं, उन पर चूँकि राजनीतिक रूप से भरोसा नहीं किया जा सकता है इसलिए अंबरीश गर्ग उम्मीदवार होंगे । अंबरीश गर्ग उनके ही क्लब, रोटरी क्लब अलीगढ़ सिटी के सदस्य हैं । अंबरीश गर्ग की उम्मीदवारी को जोन पर जबर्दस्ती थोपने की मुकेश सिंघल की कोशिश पर जोन के क्लब्स में बबाल हो गया, और अलीगढ़ के क्लब्स के पदाधिकारियों ने साफ कह दिया कि मुकेश सिंघल की इस तरह की मनमानी तथा दादागिरी को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा ।
मुकेश सिंघल ने अपने कुछेक समर्थकों के जरिये इस बबाल के लिए पूर्व गवर्नर शैलेन्द्र कुमार राजु को जिम्मेदार बता/ठहरा कर बबाल को थामने तथा अपना काम बनाने की कोशिश की । उनकी तरफ से कहा गया कि अलीगढ़ क्षेत्र की राजनीति पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए शैलेन्द्र कुमार राजु तरह तरह से उन्हें कमजोर करने तथा 'दिखाने' का काम करते हैं, और इसीलिए वह अंबरीश गर्ग की उम्मीदवारी के खिलाफ अलीगढ़ के क्लब्स के पदाधिकारियों व नेताओं को उकसा/भड़का रहे हैं । मुकेश सिंघल को अपनी इस कोशिश का लेकिन कोई लाभ नहीं मिला - और अंततः उन्हें अंबरीश गर्ग की उम्मीदवारी वापस करवाने के लिए मजबूर होना पड़ा । जोन के क्लब्स के नेताओं की आपसी सहमति से शशि पवार अकेली उम्मीदवार बनी हैं । मजे की बात यह है कि मुकेश सिंघल ने नोमीनेटिंग कमेटी के लिए शशि पवार का रास्ता साफ हो जाने को विरोधी खेमे की जीत के रूप में व्याख्यायित किया है, और किसी का नाम लिए बिना कहा है कि खेमे के ही नेताओं के रवैये से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में 'हमें' नुकसान होता दिख रहा है । मुकेश सिंघल का कहना है कि शशि पवार का क्लब मुश्किल से आठ/दस सदस्यों का क्लब है, और इसलिए वह आसानी से सत्ता खेमे के साथ चला जायेगा । अन्य लोगों को भी लग रहा है कि अपने ही जोन में मुकेश सिंघल जब अपने 'आदमी' को नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उम्मीदवार तक नहीं बना सके हैं, तो उनसे और कोई उम्मीद करना बेवकूफी ही होगी ।               
मुकेश सिंघल के लिए यह झटका दरअसल इसलिए और भी बड़ा है, क्योंकि पिछले कुछ समय से वह अपने आप को अलीगढ़ के क्लब्स के नेता के रुप में प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे थे, और यह दिखाने/जताने की कोशिश कर रहे थे कि अलीगढ़ के रोटेरियंस तो उनके इशारे पर काम करेंगे तथा अलीगढ़ में तो फैसले उनकी मर्जी से होंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की लाइन में लगने के साथ ही, मुकेश सिंघल ने हालाँकि डिस्ट्रिक्ट का नेता बनने की कोशिश की थी - लेकिन जल्दी ही उनकी समझ में आ गया कि डिस्ट्रिक्ट के नेता की पदवी के लिए वह बहुत पीछे हैं, इसलिए उन्होंने अलीगढ़ के नेता 'होने' पर ध्यान लगाया । उन्हें उम्मीद रही कि इससे वह शैलेन्द्र कुमार राजु से बड़े नेता हो जायेंगे; शैलेन्द्र कुमार राजु अभी अलीगढ़ क्षेत्र के नेता होने के नाते डिस्ट्रिक्ट में एक बड़े नेता बने हुए हैं । अलीगढ़ में मुकेश सिंघल के राजनीतिक उद्देश्य को जो झटका लगा है, उसे लेकर लोगों के बीच यह मतभेद जरूर है कि इसके पीछे सचमुच शैलेन्द्र कुमार राजु की कोई भूमिका है, या मामले में मुकेश सिंघल से मिस-हैंडलिंग हो गई है । 

Sunday, August 23, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए हुए एंडोर्समेंट को लेकर उड़ी एक 'फर्जी' खबर पर जितेंद्र चौहान तथा क्षितिज शर्मा द्वारा दिखाई गई बौखलाहट ने एंडोर्समेंट को लोगों के बीच संदेहपूर्ण तथा जितेंद्र चौहान को फजीहत का शिकार बनाया 

नई दिल्ली । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन क्षितिज शर्मा की ओवर-स्मार्ट बनने/दिखने तथा गैरजरूरी रूप से सक्रियता दिखाने की कोशिश ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के मल्टीपल एंडॉर्सी जितेंद्र चौहान की मल्टीपल के लोगों के बीच ही नहीं, बल्कि देश के लायन नेताओं और पदाधिकारियों के बीच खासी फजीहत कर/करवा दी है । मामला लायंस इंटरनेशनल द्वारा जितेंद्र चौहान को एंडॉर्सी रजिस्टर करने से इंकार करने की तथाकथित खबर को लेकर था । जब एक फर्जी वॉट्सऐप एकाउंट से यह खबर लोगों तक पहुँची, तब अधिकतर लोगों ने इसे झूठी खबर के रूप में ही लिया/पहचाना, और इस पर कोई ध्यान नहीं दिया । हाँ, वॉट्सऐप पर समय बिताने वाले कुछ ठलुए किस्म के लोगों ने इसे इधर-उधर फॉरवर्ड जरूर किया, लेकिन यह खबर लोगों के बीच कोई इश्यू नहीं बन पाई । किंतु मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन क्षितिज शर्मा ने जिस तत्परता के साथ उक्त खबर का संज्ञान लिया, और इसका 'आधिकारिक खंडन' किया - उसके चलते उक्त खबर अचानक से 'महत्त्वपूर्ण' हो उठी और गंभीर चर्चा के केन्द्र में आ गई । जो लोग उक्त खबर को फर्जी मान रहे थे, क्षितिज शर्मा के 'आधिकारिक खंडन' के बाद उन्हें भी लगने लगा कि दाल में जरूर कुछ काला है । फिर तो हर किसी को लगने लगा कि जितेंद्र चौहान के एंडॉर्सी 'होने' में जरूर कोई लफड़ा है - अन्यथा मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन को एक लंबी चिट्ठी लिखने और खबर का 'आधिकारिक खंडन' करने की कोई जरूरत नहीं थी ।
कई लोगों का यह भी कहना रहा कि क्षितिज शर्मा को उक्त खबर का 'आधिकारिक खंडन' करने का कोई अधिकार ही नहीं है - खबर में चूँकि लायंस इंटरनेशनल का हवाला दिया गया है, इसलिए 'आधिकारिक खंडन' करने का अधिकार तो लायंस इंटरनेशनल कार्यालय में बैठे पदाधिकारियों का है । क्षितिज शर्मा यह कर सकते थे कि उन पदाधिकारियों से खंडन लेकर उसे प्रसारित करते और या ऐसा कोई डॉक्यूमेंट प्रस्तुत करते, जिससे साबित होता कि लायंस इंटरनेशनल ने जितेंद्र चौहान को मल्टीपल एंडॉर्सी रजिस्टर कर लिया है । ऐसा न करके, और अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर क्षितिज शर्मा ने जो किया उससे वैसा ही किस्सा बना जिसमें पूछा गया कि 'आप कौन हैं', तो जबाव मिला 'मैं मिस्टर खामखाँ हूँ ।' सिर्फ इतना ही नहीं, क्षितिज शर्मा ने जिस अंदाज में संदेश लिखा उसमें उनकी खीझ, उनका चिड़चिड़ापन और उनकी बौखलाहट भी 'नजर' आई । अपनी खीझ, चिड़चिड़ाहट तथा बौखलाहट में क्षितिज शर्मा लगता है कि इस बात को पूरी तरह से भूले ही रहे कि वह मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन जैसे जिम्मेदार पद पर हैं, और आधिकारिक रूप से उनके लिखे/कहे में तथ्य व गरिमा होना ही चाहिए और उन्हें 'टू द प्वाइंट' बात लिखना/कहना चाहिए । लोगों का यह भी मानना और कहना है कि क्षितिज शर्मा को एक फर्जी अकाउंट से आने वाली झूठी खबर पर रिएक्ट ही नहीं करना चाहिए था, और उसे इग्नोर करना चाहिए था । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में क्षितिज शर्मा ने लेकिन रिएक्ट करके उक्त खबर को न सिर्फ महत्त्वपूर्ण बना दिया बल्कि एक नॉन-इश्यू को इश्यू बना दिया और जितेंद्र चौहान की खासी फजीहत करवा दी है ।
मजे की बात यह है, जैसा कि मल्टीपल में क्षितिज शर्मा के नजदीकियों का कहना है, कि क्षितिज शर्मा पर उक्त खबर का 'आधिकारिक खंडन' करने के लिए जितेंद्र चौहान ने ही दबाव बनाया था । कुछेक लोगों का कहना है कि उक्त फर्जी खबर के प्रसारित होने के बाद जितेंद्र चौहान ही बुरी तरह बौखला गए थे, और कई लोगों को फोन कर बैठे थे । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए मल्टीपल एंडोर्समेंट को लेकर हुए चुनाव में उनके प्रतिद्वंद्वी रहे दीपक तलवार के नजदीकियों का कहना/बताना है कि जितेंद्र चौहान ने बौखलाहट में दीपक तलवार को भी यह पूछते हुए फोन किया कि उक्त खबर उन्होंने तो नहीं दी है । जितेंद्र चौहान की इस फोनबाजी ने तथा उसके बाद सामने आए मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में क्षितिज शर्मा के 'आधिकारिक खंडन' ने एक बेबात की बात को लोगों के बीच मुद्दा बना दिया, और अब तो जितेंद्र चौहान के समर्थकों व शुभचिंतकों को भी लगने लगा है कि जितेंद्र चौहान के मल्टीपल एंडोर्समेंट में अवश्य ही कुछ लोचा है - जिसके चलते जितेंद्र चौहान उक्त खबर के सामने आने के बाद बुरी तरह से बौखला उठे हैं । जितेंद्र चौहान के नजदीकियों का भी मानना और कहना है कि उक्त खबर ने नहीं, बल्कि खबर पर जितेंद्र चौहान तथा क्षितिज शर्मा की तरफ से हुई 'कार्रवाई' ने जितेंद्र चौहान के एंडोर्समेंट को मल्टीपल के लोगों के बीच न सिर्फ संदेहपूर्ण बना दिया है, बल्कि जितेंद्र चौहान को फजीहत का शिकार भी बना दिया है ।  

Saturday, August 22, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए चुनाव में जगदीश अग्रवाल की पराजय से बौखलाए नेताओं ने 'खंबा नोचते हुए' आदर्श अग्रवाल के सहारे गुरनाम सिंह से निपटने की तैयारी शुरू तो कर दी है, लेकिन अपनी सफलता को लेकर वह सशंकित भी हैं  

लखनऊ । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की लड़ाई हारे नेताओं ने अब आदर्श अग्रवाल के सहारे सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में वरिष्ठ पूर्व गवर्नर गुरनाम सिंह को घेरने/हराने की तैयारी तो शुरू की है, लेकिन उनके लिए आदर्श अग्रवाल पर भरोसा करना भी मुश्किल हो रहा है । डिस्ट्रिक्ट के दो पूर्व गवर्नर्स के बीच एक-दूसरे के खिलाफ और एक-दूसरे के परिजनों को निशाना बनाते हुए जिस तरह के अशालीन व अभद्र शब्दों का आदान-प्रदान हुआ है, उसके कारण डिस्ट्रिक्ट के नेताओं के बीच की राजनीतिक होड़ एक अलग ही 'रास्ता' पकड़ती दिख रही है, जिसका डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक समीकरणों पर सीधा असर पड़ता दिख रहा है - और जिसमें गुरनाम सिंह विरोधी खेमे को नुकसान पहुँचता लग रहा है । दरअसल इसीलिए गुरनाम सिंह से लड़ने की तैयारी करने वाले नेताओं को लग रहा है कि उन्होंने आनन-फानन में आदर्श अग्रवाल को उम्मीदवार बनाने का फैसला तो कर लिया है, लेकिन कहीं ऐसा न हो कि जैसे जगदीश अग्रवाल के मामले में उन्हें फजीहत झेलना पड़ी है - वैसा ही हाल आदर्श अग्रवाल को लेकर भी हो । 
मजे की बात यह है कि आदर्श अग्रवाल के नजदीकियों को भी लग रहा है कि गुरनाम सिंह से खुन्नस निकालने के लिए विरोधी नेताओं ने आदर्श अग्रवाल को उम्मीदवार तो बना दिया है, लेकिन आदर्श अग्रवाल का हाल कहीं जगदीश अग्रवाल जैसा ही न हो ? आदर्श अग्रवाल के नजदीकियों को यह तो पता ही है कि जगदीश अग्रवाल को फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने/बनवाने के लिए उनके समर्थक नेताओं ने एड़ी-चोटी का जोर लगा लिया था, और चुनाव जीतने के लिए वह जो कुछ भी कर सकते थे - वह उन्होंने किया था, लेकिन फिर भी वह जगदीश अग्रवाल को चुनाव नहीं जितवा सके । राजनीति 'समझने' वाले लोगों का मानना और कहना है कि जगदीश अग्रवाल को लेकर डिस्ट्रिक्ट में जो राजनीति हुई, उसके कारण मामला 'जगदीश अग्रवाल बनाम गुरनाम सिंह' हो गया - और इसलिए तमाम तैयारी और राजनीतिक घेराबंदी के बावजूद जगदीश अग्रवाल चुनाव हार गए । आदर्श अग्रवाल के मामले में भी यही होता नजर आ रहा है । आदर्श अग्रवाल अभी 'ढंग से' उम्मीदवार बने भी नहीं हैं कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यह धारणा - यह सोच बन गई है कि उन्हें तो गुरनाम सिंह को नीचा दिखाने के लिए उम्मीदवार बनाया गया है - उनके समर्थक नेताओं को उन्हें यदि सचमुच (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनाना/बनवाना होता तो वह पहले से उन्हें उम्मीदवार बनाते ।
उल्लेखनीय है कि आदर्श अग्रवाल का नाम उम्मीदवार के रूप में अभी दो-तीन दिन से तब सुनने को मिला, जब उन्हें उम्मीदवार 'बनाने' वाले नेताओं को जगदीश अग्रवाल के मामले में तगड़ा झटका लगा । उससे पहले, यही नेता मानते और कहते रहे थे कि इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पर जो तेजेंद्रपाल सिंह का अधिकार है । खास बात यह थी कि जो नेता लोग अलग-अलग कारणों से तेजेंद्रपाल सिंह की उम्मीदवारी से खुश नहीं भी थे, वह भी वह मानते और कहते थे कि तेजेंद्रपाल सिंह के सामने किसी और उम्मीदवार को खड़ा करना मुश्किल क्या, असंभव ही है । इसीलिए न तो अन्य कोई उम्मीदवार आता हुआ 'दिख' रहा था, और न नेता लोग किसी उम्मीदवार को 'लाने' में सक्रियता दिखा रहे थे । वह तो फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए दोबारा हुए चुनाव में जगदीश अग्रवाल की पराजय होने के बाद, हारे हुए नेताओं ने 'खंबा नोचते हुए' अपना जो फ्रस्टेशन 'दिखाया - और जिसमें दो पूर्व गवर्नर्स एक-दूसरे के लिए तथा एक-दूसरे के परिजनों के लिए सड़कछाप किस्म की छींटाकशी करते हुए भिड़ बैठे; उसके कारण बने हालात में आदर्श अग्रवाल की उम्मीदवारी प्रकट हो गई । अक्सर देखा गया है कि जल्दबाजी में लिए गए फैसले प्रायः उलटे पड़ जाते हैं, और इसीलिए आदर्श अग्रवाल की उम्मीदवारी के साथ 'माने/समझे' जा रहे नेताओं को ही लगने लगा है कि मौजूदा लायन वर्ष में कहीं उन्हें दूसरी बार हार और फजीहत का सामना न करना पड़ जाए ।

Friday, August 21, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में पंकज बिजल्वान को भारी पराजय के साथ-साथ फजीहत का भी शिकार बनाने के जिम्मेदार रहे छुटभैय्यों ने इस वर्ष भी उनकी 'मदद' करने के लिए कमर कस ली है, लेकिन पंकज बिजल्वान उनसे बच रहे हैं

देहरादून । पंकज बिजल्वान इन दिनों उन छुटभैय्यों से बड़े दुखी/परेशान हैं, जो पिछले लायन वर्ष में उन्हें विनय मित्तल से लड़ने/भिड़ने के लिए उकसा/भड़का रहे थे और तथाकथित तरीके से उनकी मदद भी कर रहे थे, लेकिन अब उन पर विनय मित्तल से मिलने के लिए दबाव बना रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट के छुटभैय्यों के बीच इस बात को लेकर मजेदार किस्म की होड़ भी मची सुनी जा रही है कि पंकज बिजल्वान को विनय मित्तल के पास कौन ले जाता है, और कौन विनय मित्तल से उनकी 'सेटिंग' करा देता है । छुटभैय्यों के बीच मची इस होड़ से पंकज बिजल्वान परेशान और दुखी इसलिए हैं, क्योंकि उन्हें इनकी औकात पता है । पता क्या है, पिछले लायन वर्ष में तो पंकज बिजल्वान सीधे-सीधे भुक्तभोगी ही रहे हैं ! दरअसल, छुटभैय्यों के चक्कर में पिछले वर्ष पंकज बिजल्वान 100 वोटों से हारे भी और फजीहत का शिकार भी बने । चुनावी मुकाबले में हार-जीत का बहुत 'मतलब' नहीं होता है, क्योंकि सभी जानते हैं कि मुकाबले में जीतेगा तो कोई एक ही; मतलब इस बात का होता है कि मुकाबले में आपने भाग कैसे लिया - अपनी जीत और या अपनी हार को आपने कैसे लिया ? 'जीत की हार' या 'हार की जीत' जैसे मुहावरे इसीलिए बने हैं और सुनाए जाते हैं ।
पंकज बिजल्वान की बदकिस्मती रही कि वह चुनाव तो बुरी तरह हारे ही, उनके समर्थकों ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस तथा उससे पहले सोशल मीडिया में जो गंद मचाई - उसके चलते उन्हें डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच फजीहत का शिकार भी होना पड़ा । पंकज बिजल्वान के नजदीकियों का दावा है कि पंकज बिजल्वान किसी भी 'गंद-फैलाऊ' हरकत में न तो शामिल थे, और न उन्होंने किसी हरकत को कोई शह दी; डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में भी जो कुछ हुआ, पंकज बिजल्वान उस-सबसे अलग रहे थे । उनके नजदीकियों का तो यहाँ तक कहना है कि पंकज बिजल्वान ने विरोधी खेमे के नेताओं को लेकर कभी कोई अपशब्द तक नहीं कहा । लेकिन फिर भी, उनके समर्थकों की करतूतों का ठीकरा उनके ही सिर फूटा । यह बहुत स्वाभाविक भी था । पंकज बिजल्वान के चुनाव अभियान की कमान ऐसे छुटभैय्यों के हाथ में थी, जिनकी एकमात्र खूबी बकवास करने की थी । इन छुटभैय्यों ने पंकज बिजल्वान को विश्वास दिलाया हुआ था कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव तो बकवासबाजी व गालीगलौच करके जीता जा सकता है । लेकिन सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जब नतीजा निकला, तो पता चला कि पंकज बिजल्वान को भारी पराजय के साथ-साथ फजीहत भी मिली ।
इससे सबक लेकर पंकज बिजल्वान ने इस वर्ष सावधानी से अपना काम शुरू किया । हालाँकि सावधानी के चक्कर में वह सीन से गायब होते हुए भी लगे; लेकिन जैसा कि उनके नजदीकियों का कहना है कि इस बार वह किसी भी तरह की गंदगी के वाहक नहीं बनना चाहते हैं - इसलिए वह सावधानी के साथ ही अपनी उम्मीदवारी को लेकर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं । दरअसल पंकज बिजल्वान भी समझ रहे हैं कि इस बार भी वह यदि चुनाव हारे, तो फिर उनका गवर्नर बनने का सपना, सपना ही रह जायेगा - इसलिए इस वर्ष उनके लिए आखिरी मौका है । नजदीकियों के अनुसार, पंकज बिजल्वान हालाँकि अपनी उम्मीदवारी को लेकर तैयारी कर रहे हैं; उन्हें लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट में चुनावी राजनीति को लेकर कोई ऐसा माहौल जरूर बनेगा, जिसमें उनकी चुनावी नाव पार लग जायेगी - लेकिन हालात यदि अनुकूल नहीं बने, तो पंकज बिजल्वान इस वर्ष अपनी उम्मीदवारी से पीछे भी हट सकते हैं । पंकज बिजल्वान के नजदीकियों को लग रहा है कि पंकज बिजल्वान इस वर्ष दो बातों को लेकर स्पष्ट हैं - एक तो यह कि चुनाव में गंदगी करने वाले लोगों से वह दूर रहेंगे; और दूसरा यह कि यदि उन्हें जीतने का विश्वास नहीं होगा, तो वह चुनाव नहीं लड़ेंगे । पंकज बिजल्वान लेकिन चाहें जो सोच रहे हों, पिछले वर्ष उनकी हार तथा उनकी फजीहत के 'कारण' बने छुटभैय्ये इस वर्ष भी उनकी 'मदद' करने की तैयारियों में जुटे हैं; और मदद के नाम पर पंकज बिजल्वान को विनय मित्तल से मिलवाने के ऑफर दे रहे हैं । पंकज बिजल्वान अभी तक तो अपने सहयोगी रहे छुटभैय्यों से बच रहे हैं, लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि वह उनसे सचमुच बच पाते हैं - या एक बार फिर उनके झाँसे में फँसेंगे ? 

Tuesday, August 18, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज के लिए परेशानी खड़ी करने वाला, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जल्दी होने का अरुण मोंगिया का दावा क्या सचमुच जितेंद्र ढींगरा के आश्वासन पर निर्भर है ?

पानीपत । अरुण मोंगिया ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कोशिशों में तेजी ला कर और जल्दी चुनाव होने का दावा करके डिस्ट्रिक्ट में हलचल तो मचा दी है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज के लिए खासी परेशानी खड़ी कर दी है । रमेश बजाज के लिए लोगों को यह बता पाना मुश्किल हो रहा है कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव कब करवायेंगे; और लोगों को चूँकि सीधा जबाव नहीं मिल रहा है - तो उन्हें लग रहा है कि रमेश बजाज डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद को लेकर कोई 'खेल' करने की योजना तो नहीं बना रहे हैं ? मजे की बात यह है कि रमेश बजाज की इस मुसीबत के पीछे अरुण मोंगिया के अति-उत्साह को देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन इसका ठीकरा फूट रहा है निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा के सिर । रमेश बजाज के नजदीकियों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में अरुण मोंगिया लोगों के बीच जिस विश्वास से दावा कर रहे हैं कि जितेंद्र ढींगरा ने उन्हें जल्दी चुनाव होने की बात बता कर उम्मीदवार के रूप में सक्रिय होने के लिए कहा है, उसके चलते कोई शक नहीं रह जाता है कि जल्दी चुनाव की बात जितेंद्र ढींगरा ने ही की है - क्यों की है, इसका उन्हें कोई अंदाजा नहीं है । रमेश बजाज के नजदीकियों का दावा है कि चुनाव संबंधी नोटीफिकेशन जारी होने के अलावा, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की आगे की प्रक्रिया को लेकर अभी कुछ भी तय नहीं हुआ है, और जितेंद्र ढींगरा ने भी इस बारे में रमेश बजाज से कोई बात नहीं की है ।
रमेश बजाज और उनके नजदीकियों को यह बात भी पसंद नहीं आ रही है कि अरुण मोंगिया डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव सिर्फ जितेंद्र ढींगरा के नाम पर लड़ते नजर आ रहे हैं, और उन्हें कोई तवज्जो नहीं दे रहे हैं । दरअसल रमेश बजाज और उनके नजदीकियों को लगातार यह शिकायत रही है कि अरुण मोंगिया ने उन्हें कभी भी उचित सम्मान नहीं दिया है । रमेश बजाज और उनके नजदीकियों की इस शिकायत को जितेंद्र ढींगरा ने भी गंभीरता से लिया; और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश बजाज का कार्यकाल शुरू होने के तुरंत बाद, 9 जुलाई को सोशल मीडिया में एक करीब पाँच माह पुरानी फोटो का इस्तेमाल करते हुए अरुण मोंगिया को उन्होंने यह अहसास कराते हुए मीठी से झिड़की दी कि रमेश बजाज के साथ जब 'टीम' के बाकी सदस्य खड़े होते हैं, तब वह 'मिसिंग' होते हैं । रमेश बजाज और उनके नजदीकियों का कहना है कि अरुण मोंगिया का व्यवहार लेकिन उसके बाद भी नहीं बदला है - और अब नोटीफिकेशन जारी होने के बाद डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जल्दी होने का दावा करके तो उन्होंने हद ही कर दी है ।
रमेश बजाज के नजदीकियों का कहना/बताना है कि पिछले दिनों कुछेक मौकों पर अरुण मोंगिया की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जल्दी करवाने की बात चलवाई तो गई थी, किंतु वह बात व्यवस्थित रूप से आगे नहीं बढ़ी थी । रमेश बजाज अभी डिस्ट्रिक्ट टीम के सदस्यों के नाम फाइनल करने के ही काम में लगे हैं, ताकि पहले ही लेटलतीफी का शिकार हो चुकी डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी का काम पूरा हो तथा वह और ज्यादा लेट न हो - इसलिए बाकी कामों तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की प्रक्रिया तय करने पर वह कोई ध्यान नहीं दे पा रहे हैं । अरुण मोंगिया को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चूँकि अभी कोई और उम्मीदवार सक्रिय नहीं है, इसलिए जल्दी चुनाव होने पर वह आसानी से - संभव है कि निर्विरोध ही - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन जाएँ । अरुण मोंगिया ने लोगों के बीच उदाहरण भी दिया कि पिछले रोटरी वर्ष में जितेंद्र ढींगरा ने जल्दी चुनाव करवा कर नवीन गुलाटी के लिए चुनावी मुकाबले को आसान बना दिया था । लोगों के बीच चर्चा है कि संभव है कि अरुण मोंगिया ने इस बारे में जितेंद्र ढींगरा से बात की होगी, और जितेंद्र ढींगरा ने उन्हें आश्वस्त कर दिया होगा कि इस वर्ष भी जल्दी ही चुनाव हो जायेंगे । जितेंद्र ढींगरा के आश्वासन पर अरुण मोंगिया ने लोगों के बीच दावा कर दिया, जो रमेश बजाज के लिए मुसीबत का कारण बन गया है । अरुण मोंगिया के दावे पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यह सवाल भी उठा है कि इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट चला कौन रहा है - जितेंद्र ढींगरा या रमेश बजाज ! 

Monday, August 17, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी के पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह में, इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता की तारीफों से रंजन ढींगरा और दीपक तलवार की उम्मीदवारी को जोन तथा डिस्ट्रिक्ट में खासी चर्चा और ऊँची उड़ान मिली

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी के प्रेसीडेंट अरुण जैन तथा उनकी टीम के सदस्यों के अधिष्ठापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता ने वाटर मिशन के कामकाज का उदाहरण देते हुए रंजन ढींगरा की जैसी जोरदार तारीफ की, उससे डिस्ट्रिक्ट और जोन 4 के रोटरी नेताओं के बीच खासी हलचल मची है । शेखर मेहता की उक्त तारीफ के चलते डिस्ट्रिक्ट में दीपक तलवार तथा जोन 4 में रंजन ढींगरा की राजनीतिक स्थिति को उड़ान भरते देखा/पहचाना जा रहा है । यूँ तो किसी क्लब के कार्यक्रम में आमंत्रित वक्ता का किसी की तारीफ करने का कोई ज्यादा मतलब नहीं होता है, क्योंकि उसे प्रोटोकॉल की औपचारिकता के रूप में देखा/पहचाना जाता है । किसी भी क्लब के कार्यक्रम में वक्ता के सामने क्लब के पदाधिकारियों तथा नेताओं की तारीफ करने की 'मजबूरी' होती ही है, जिसे वह खुशी खुशी निभाता है - इसलिए उस तारीफ का कोई खास अर्थ होता नहीं है । लेकिन रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी के कार्यक्रम में शेखर मेहता का रंजन ढींगरा की तारीफ करने को इसलिए महत्त्व दिया जा रहा है, क्योंकि रंजन ढींगरा तो इस क्लब के सदस्य नहीं हैं - और इसलिए मुख्य अतिथि के रूप में शेखर मेहता के सामने रंजन ढींगरा की तारीफ करने की कोई मजबूरी नहीं थी । शेखर मेहता द्वारा की गई तारीफ को सामान्य बात मान कर अनदेखा किया जा सकता था, यदि रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी पूर्व गवर्नर दीपक तलवार का क्लब न होता और दीपक तलवार जोन 4 में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव की नोमीनेटिंग कमेटी के उम्मीदवार न होते - और जोन 4 में बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार रंजन ढींगरा के उम्मीदवार के रूप में न देखा जा रहा होता ।
मजे की बात यह देखने में आई कि दीपक तलवार के क्लब के कार्यक्रम में बोलते हुए शेखर मेहता ने दीपक तलवार की कोई तारीफ नहीं की । इस पूरे वाकये में राजनीति 'देखने'/पहचानने वाले लोगों का कहना है कि शेखर मेहता ने कुशल राजनीतिक की तरह काम किया और कोई बखेड़ा खड़ा होने का मौका छोड़े बिना उन्होंने दीपक तलवार और रंजन ढींगरा को एक साथ 'प्रोमोट' कर दिया । डिस्ट्रिक्ट 3011 में नोमीनेटिंग कमेटी में प्रतिनिधित्व के चुनाव की प्रक्रिया चूँकि शुरू हो चुकी है, और उसके लिए दीपक तलवार की उम्मीदवारी की बात भी चूँकि सभी के संज्ञान में है - इसलिए शेखर मेहता यदि दीपक तलवार के बारे में कुछ कहते, तो चुनावी आचारसंहिता के उल्लंघन के आरोपी बनते । शेखर मेहता ने होशियारी दिखाते हुए दीपक तलवार के बारे में तो कुछ नहीं कहा, लेकिन रंजन ढींगरा की जमकर तारीफ की - और उन्हें दूरदर्शिता व चाकचौबंद योजना के साथ काम करने वाला रोटेरियन बताया । शेखर मेहता ने रेखांकित किया कि केंद्र सरकार जलयोजना को लेकर अब जो रूपरेखा बना रही है, रंजन ढींगरा के नेतृत्व में रोटरी उस रूपरेखा को पहले ही तैयार कर चुकी है तथा सरकारी पदाधिकारियों व जलयोजना के विशेषज्ञों ने रंजन ढींगरा के नेतृत्व में तैयार हुई रोटरी की रूपरेखा को पूरी तरह परफेक्ट पाया है । रंजन ढींगरा की उपलब्धि के बारे में शेखर मेहता ने जिस विस्तार से बातें कीं, उसमें दीपक तलवार का नाम लिए बिना दीपक तलवार के लिए प्रशंसा के भाव छिपे नहीं रह सके - और इसी कारण से शेखर मेहता की बातों को सुनने वाले डिस्ट्रिक्ट के आम और खास रोटेरियंस का ध्यान बार-बार दीपक तलवार की उम्मीदवारी पर जाता रहा ।
शेखर मेहता यदि खुलकर रंजन ढींगरा की तारीफ कर रहे हैं, तो उसमें स्वाभाविक रूप से रंजन ढींगरा के नोमीनेटिंग उम्मीदवार दीपक तलवार की तारीफ के भाव हैं ही - जिन्हें पहचानने/पकड़ने में डिस्ट्रिक्ट 3011 ही नहीं, जोन 4 के अन्य डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों व नेताओं ने कोई चूक नहीं की । इस संदर्भ में, रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी के सदस्य और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट अनूप मित्तल की कुछेक मौकों पर शेखर मेहता द्वारा की गई तारीफ का भी लोगों ने खासा नोटिस लिया । नोटिस लेने वाले लोगों का ही कहना/बताना है कि शेखर मेहता द्वारा की गई अनूप मित्तल की तारीफ को यदि औपचारिकता मान/समझ भी लें, तो भी अनूप मित्तल की तारीफ के लिए शेखर मेहता ने जिन मौकों को 'चुना' और रंजन ढींगरा के काम के साथ उन्हें जिस तरह से 'दिखाया' - उसके राजनीतिक संकेत बहुत साफ हैं । शेखर मेहता के भाषण में रंजन ढींगरा की तारीफ का जोन 4 के रोटेरियंस के बीच जो ढिंढोरा पिटा और उसके जो राजनीतिक अर्थ निकाले गए, उसका एक बड़ा कारण यह भी रहा कि रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी के पदाधिकारियों के अधिष्ठापन कार्यक्रम में भारी संख्या में विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारी और नेता जुटे - और सिर्फ जुटे ही नहीं, बल्कि कार्यक्रम में 'शामिल' भी हुए/रहे । ऑनलाइन कार्यक्रमों में शामिल हुए लोगों को कार्यक्रम में 'बनाये' रखना एक बड़ी चुनौती होती है; उक्त चुनौती से निपटने के लिए रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी के कार्यक्रम के आयोजकों ने कार्यक्रम को इस तरह से डिजाइन किया कि वह सभी के लिए आकर्षक बना । आकर्षक प्रस्तुति के कारण विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों तथा पूर्व गवर्नर्स नेताओं की उपस्थिति में निरंतरता बनी, और इसके चलते प्रत्यक्ष रूप से रंजन ढींगरा की और अप्रत्यक्ष रूप से दीपक तलवार की शेखर मेहता द्वारा की गई तारीफ के 'राजनीतिक उद्देश्यों' को रोटेरियंस के बीच चर्चा मिली ।

Sunday, August 16, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में गुरनाम सिंह की राजनीति के सामने जगदीश अग्रवाल की तमाम कोशिशें अंततः विफल रहीं और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का चुनाव बीएम श्रीवास्तव ने जीत लिया

लखनऊ । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आज पूर्वाह्न दोबारा हुए चुनाव का नतीजा तो वही निकला, जो अपेक्षित था - और जिसके तहत बीएम श्रीवास्तव की जीत हुई; लेकिन चुनावी जीत का अंतर अप्रत्याशित रहा । जीत का श्रेय वरिष्ठ पूर्व गवर्नर गुरनाम सिंह को दिया जा रहा है, तो जीत के अंतर के कम होने में भी गुरनाम सिंह को लगे झटके के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । आज हुए चुनाव का अप्रत्याशित दृश्य पूर्व गवर्नर नीरज बोरा की उपस्थिति का भी रहा । नीरज बोरा पिछले काफी समय से डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में नजर नहीं आए हैं, लेकिन इस चुनाव में उन्होंने खासी सक्रियता के साथ जगदीश अग्रवाल का झंडा उठाया - हालाँकि फिर भी जगदीश अग्रवाल चुनाव हार गए । जगदीश अग्रवाल के लिए विडंबना की बात यह रही कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद उन्होंने एक वोट से जीता था - नेगेटिव वोटिंग के कारण उनके फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर न बन पाने के कारण दोबारा हुआ चुनाव लेकिन वह एक वोट से हार गए । जगदीश अग्रवाल ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपने घमंडभरे रवैये के लिए प्रत्येक पूर्व गवर्नर से माफी माँगी और भविष्य में वैसा रवैया न दिखाने के लिए उन्हें आश्वस्त किया, लेकिन फिर भी वह वोट डालने वाले 23 गवर्नर्स में से 11 का ही समर्थन जुटा सके और इस तरह 12 वोट पाकर बीएम श्रीवास्तव ने उनसे अपनी हार का बदला ले लिया । 
मजे की बात यह रही कि दोनों उम्मीदवारों को उम्मीद से कम वोट मिलने की शिकायत रही, और इस तरह दोनों ही उम्मीदवारों तथा उनके नेताओं को धोखा खाने का गम हुआ । जगदीश अग्रवाल और उनके समर्थकों को 14 वोट मिलने की उम्मीद थी - लिहाजा चुनावी नतीजा घोषित होने के बाद वह उन तीन गवर्नर्स को 'खोज' रहे हैं, जिन्होंने उन्हें धोखा दिया । बीएम श्रीवास्तव और उनके समर्थकों को 16 वोट मिलने की उम्मीद थी, लेकिन चुनाव जीत जाने की खुशी व संतुष्टि में वह इस बात को लेकर ज्यादा परेशान नहीं हैं कि किन किन लोगों ने उन्हें धोखा दिया । जगदीश अग्रवाल ने चुनाव जीतने के लिए हर हथकंडा अपनाया । शुरू में लग रहा था कि उन्हें छह/सात से ज्यादा वोट नहीं मिलेंगे, लेकिन तरह तरह के हथकंडों के चलते उन्होंने अपने समर्थन को बढ़ाया । जगदीश अग्रवाल की बड़ी कामयाबी यह रही कि उन्होंने गुरनाम सिंह के सहयोग/समर्थन से गवर्नर बने तथा हाल के दिनों तक उनके खास रहे कई गवर्नर्स का समर्थन प्राप्त कर लिया । लेकिन उनके लिए गुरनाम सिंह की राजनीति से निपट पाना मुश्किल हुआ ।
दरअसल फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए दोबारा हुआ चुनाव जिस तरह से गुरनाम सिंह की राजनीति व प्रतिष्ठा के साथ जुड़ गया था, उसके कारण ही तमाम अनुकूलताओं के बावजूद जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी का भट्टा बैठ गया । जगदीश अग्रवाल की जीत को गुरनाम सिंह के लिए सीधी चुनौती के रूप में देखा जा रहा था, और इसके चलते जगदीश अग्रवाल के समर्थन में जुटे गुरनाम सिंह के नजदीकियों के बीच भरोसा नहीं बन सका - विशाल सिन्हा को हर समय संजय चोपड़ा व प्रमोद सेठ पर शक रहा, क्योंकि जगदीश अग्रवाल के खिलाफ नेगेटिव वोटिंग करवाने में इनका खासा सहयोग रहा था; तो संजय चोपड़ा व प्रमोद सेठ लगातार जगदीश अग्रवाल को आगाह करते रहे कि विशाल सिन्हा की बदनामी के कारण ही वह फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बन सके हैं, इसलिए उनसे बच कर रहना । गुरनाम सिंह के नजदीकी रहे यह लोग एचएस सच्चर के समर्थन पर संदेह करते रहे, तो एचएस सच्चर की तरफ से जगदीश अग्रवाल को सावधान किया जाता रहा कि गुरनाम सिंह के लोगों पर भरोसा मत करना । तीन दिन पहले ही मनोज रुहेला ने यह कहते/बताते हुए बीएम श्रीवास्तव और उनके समर्थकों के पसीने ला दिए थे कि इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडॉर्सी जितेंद्र चौहान ने उन्हें जगदीश अग्रवाल का समर्थन करने के लिए कहा है । मनोज रुहेला के यह 'बताने' से बीएम श्रीवास्तव तथा उनके नजदीकियों ने मान/समझ लिया था कि मनोज रुहेला भी जगदीश अग्रवाल के साथ जा मिले हैं । कुछेक लोगों को छोड़कर, अधिकतर लोगों में यह कहना/बताना तो कयास लगाना होगा कि किसने किस को वोट दिया है - तथ्य सिर्फ यह है कि गुरनाम सिंह की राजनीति के सामने जगदीश अग्रवाल की तमाम कोशिशें अंततः विफल रहीं और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का चुनाव बीएम श्रीवास्तव ने जीत लिया है ।            

Saturday, August 15, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए चार चार उम्मीदवारों की चर्चा के बीच तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी को हरी झंडी देने के लिए बुलाई गई क्लब की मीटिंग में पारस अग्रवाल के न पहुँचने के 'मामले' ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का पारा चढ़ाया

आगरा । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को क्लब से हरी झंडी दिलवा कर तरुण अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी पैदा कर दी है । क्लब की जिस मीटिंग में तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी को हरी झंडी मिली, उस मीटिंग में पारस अग्रवाल की गैरमौजूदगी ने उस गर्मी को और गर्म कर दिया है । उल्लेखनीय है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अजय भार्गव, पीके जैन तथा स्वाति माथुर के नाम की चर्चा पहले से ही है । अजय भार्गव इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट सेक्रेटरी हैं, जिस कारण अनुमान लगाया जा रहा है कि उनकी उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अजय सनाढ्य की शह होगी; पीके जैन बुलंदशहर के दो पूर्व गवर्नर्स के क्लब के सदस्य हैं, इस नाते उन्हें 'उनके' उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; स्वाति माथुर को डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ पूर्व गवर्नर्स के 'आशीर्वाद' से चुनावी मैदान में 'कूदते' हुए पहचाना गया है । मजे की बात यह रही कि अजय भार्गव, पीके जैन व स्वाति माथुर की उम्मीदवारी को लेकर होने वाली चर्चा में तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी को पूरी तरह भुला ही दिया गया - जबकि सबसे पहले उन्होंने ही अपनी उम्मीदवारी की बात कही थी । इसके लिए हालाँकि तरुण अग्रवाल को ही जिम्मेदार माना गया । दरअसल उन्होंने इस वर्ष उम्मीदवार होने की बात तो कह दी, लेकिन फिर सीन से गायब हो गए । डिस्ट्रिक्ट के लोगों को तरुण अग्रवाल चूँकि उम्मीदवार के रूप में कुछ करते हुए नजर नहीं आए, इसलिए लोगों ने इस वर्ष उम्मीदवार बनने की उनकी बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया और उसे भुला दिया ।
यह इसलिए भी हुआ, क्योंकि तरुण अग्रवाल पिछले वर्ष भी उम्मीदवार बने थे - लेकिन पिछले वर्ष जिस अचानक तरीके से वह उम्मीदवार बने थे, उसी अचानक तरीके से फिर वह पीछे भी हट गए थे । लोगों के बीच चर्चा रही कि तरुण अग्रवाल को उम्मीदवार बनना नहीं था, वह तो तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह ने सुनीता बंसल की 'बाँह मरोड़ने' के लिए उन्हें इस्तेमाल किया और उम्मीदवार बना दिया था; और सुनीता बंसल जैसे ही 'रास्ते' पर आईं, मधु सिंह ने तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी को वापस करवा दिया । लोगों के बीच चर्चा थी कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुनीता बंसल चूँकि मधु सिंह की 'डिमांड्स' पूरी करने में आनाकानी कर रही थीं, इसलिए सुनीता बंसल को 'रास्ते पर' लाने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मधु सिंह ने तरुण अग्रवाल की 'सेवा' ली - और तरुण अग्रवाल सिर्फ इस्तेमाल होने के लिए ही उम्मीदवार बने थे । इसीलिए, तरुण अग्रवाल जब इस वर्ष उम्मीदवार बनने की बात करने के बावजूद कुछ करते हुए नहीं दिखे - तो डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने भी उनकी उम्मीदवारी की बात को भुला दिया, और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवारों के रूप में चर्चा अजय भार्गव, पीके जैन तथा स्वाति माथुर तक ही सीमित रह गई ।
यह देख तरुण अग्रवाल तुरंत सक्रिय हुए और उन्होंने क्लब की मीटिंग बुलवा ली, जिसमें मौजूद सभी सदस्यों ने एकमत से तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन व्यक्त किया - और इस तरह तरुण अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी को लेकर गंभीरता दिखाई । उक्त मीटिंग में लेकिन पूर्व गवर्नर व मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पारस अग्रवाल के न पहुँचने से थोड़ी झटके वाली स्थिति बनी । पारस अग्रवाल की तरफ से हालाँकि बताया/कहा तो यह गया कि वह कुछ निजी व्यस्तता के कारण मीटिंग में नहीं पहुँच सकेंगे, लेकिन क्लब के कुछेक सदस्यों को पहले से अनुमान था कि कोई न कोई बहानेबाजी करके पारस अग्रवाल मीटिंग में नहीं आयेंगे । पारस अग्रवाल की अनुपस्थिति को 'राजनीतिक' रूप से देखते/पहचानते हुए मीटिंग में कुछेक सदस्यों ने किसी का नाम लिए बिना चेतावनी भी दी कि क्लब का कोई सदस्य यदि तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी के खिलाफ काम करता हुआ देखा/पाया गया तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जायेगी - और जरूरत पड़ी तो उसे क्लब से भी निकाल दिया जायेगा । यह चेतावनी देते हुए हालाँकि किसी का नाम नहीं लिया गया, लेकिन मीटिंग में मौजूद सभी लोगों ने यह समझने में चूक नहीं की कि यह चेतावनी पारस अग्रवाल के लिए है । पारस अग्रवाल और तरुण अग्रवाल के बीच हालाँकि अच्छे संबंध रहे हैं, लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों में दोनों की राजनीति अलग अलग रही है - जिस कारण दोनों के बीच टकरावपूर्ण संबंध बने हैं । पिछले लायन वर्ष में दोनों की तरफ से सार्वजनिक रूप से आरोप-प्रत्यारोप भी लगे थे । इसी वजह से, तरुण अग्रवाल के नजदीकियों को शक/डर है कि तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी को पारस अग्रवाल का समर्थन नहीं मिलेगा, और इसीलिए उन्होंने पारस अग्रवाल को क्लब में ही 'घेरने' की तैयारी शुरू कर दी है । दअरसल इसी कारण से तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन घोषित करने के उद्देश्य से हुई उनके क्लब की मीटिंग के बाद डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का पारा एकदम से ऊपर चढ़ता दिख रहा है । 

Thursday, August 13, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल में प्रतिनिधित्व को लेकर बिग फोर फर्म्स में चल रही उठापटक तथा गिरीश आहुजा को लेकर संजय अग्रवाल के साथ चल रही 'छीना-झपटी' के कारण संजीव सिंघल अपनी उम्मीदवारी को लेकर चौतरफा मुश्किलों में घिरे/फँसे

नई दिल्ली । अगले वर्ष होने वाले सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में संजीव सिंघल को लगता है कि मुसीबतों ने जैसे चारों तरफ से घेर लिया है - एक तरफ तो उन्हें संजय अग्रवाल के साथ गिरीश आहुजा की 'छीना-झपटी' में उलझना पड़ रहा है, और दूसरी तरफ अपनी फर्म तथा बिग फोर समूह में अपनी उम्मीदवारी को लेकर पैदा होते दिख रहे संकट से निपटने की तरकीबों को आजमाना पड़ रहा है । तीन टर्म सेंट्रल काउंसिल में सदस्य रहे संजय अग्रवाल ने अचानक से उम्मीदवारी की घोषणा करके संजीव सिंघल के लिए सीधी चुनौती खड़ी कर दी है । संजय अग्रवाल की उम्मीदवारी दरअसल वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट गिरीश आहुजा के कारण संजीव सिंघल के लिए सीधी चुनौती बनी है । उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में संजीव सिंघल को गिरीश आहुजा के सक्रिय समर्थन के कारण ही जीत मिली थी; गिरीश आहुजा को संजय अग्रवाल के 'गॉडफादर' के रूप में भी देखा/पहचाना जाता है - और माना/समझा जाता है कि गिरीश आहुजा की तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद ही संजय अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की है, अन्यथा तो वह अपनी उम्मीदवारी की संभावना से लगातार इंकार ही कर रहे थे । हालाँकि संजीव सिंघल ने तरह तरह से रीजन के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भरोसा दिलाने का प्रयास किया कि गिरीश आहुजा पिछले चुनाव की तरह अगले चुनाव में भी सक्रियता के साथ उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे, लेकिन हाल-फिलहाल के दिनों में गिरीश आहुजा का संजय अग्रवाल के साथ जिस तरह का 'गठबंधन' दिख रहा है - उसके चलते संजीव सिंघल के प्रयास फेल होते नजर आ रहे हैं ।
संजय अग्रवाल ने न सिर्फ 'अपने' आयोजनों में गिरीश आहुजा की उपस्थिति को संभव बनाया, बल्कि उनके नाम पर यू ट्यूब चैनल शुरू कर दिया और उनके साथ साप्ताहिक फीचर करने के कार्यक्रम की घोषणा कर दी । इन आयोजनों के जरिये संजय अग्रवाल लोगों को यह बताने तथा 'दिखाने' में सफल रहे हैं कि उनकी 'अनुपस्थिति' में गिरीश आहुजा भले ही किसी और के साथ चले गए हों - लेकिन वापसी करने की उनकी कोशिशों में गिरीश आहुजा उनके साथ ही हैं । संजीव सिंघल को गिरीश आहुजा के 'छिन जाने' के साथ-साथ बिग फोर समूह में तथा अपनी फर्म में भी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है । सेंट्रल काउंसिल में बिग फोर का प्रतिनिधित्व कर चुके संजीव चौधरी के बिग फोर फर्म केपीएमजी ज्वाइन करने को संजीव सिंघल के लिए खतरे की घंटी के रूप में 'सुना' जा रहा है । चर्चा है कि बिग फोर फर्म्स संजीव सिंघल की परफॉर्मेंस से खुश नहीं हैं, और उन्हें चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में दोबारा नहीं भेजना चाहती हैं - और इसी की तैयारी के तहत संजीव चौधरी को केपीएमजी में लिया गया है । 
संजीव सिंघल की फर्म ई एंड वाई भी वेस्टर्न रीजन में दीनल शाह की सेंट्रल काउंसिल में वापसी करवाने की तैयारी में सुनी जा रही है । दीनल शाह तीन टर्म सेंट्रल काउंसिल में रहे हैं, और प्रोफेशन के लोगों के बीच उनकी खासी प्रतिष्ठा है । वेस्टर्न रीजन में चर्चा है कि ई एंड वाई यदि दीनल शाह को सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनने के लिए राजी कर लेती है, तो नॉर्दर्न रीजन में संजीव सिंघल का पत्ता अपने आप कट जायेगा । वेस्टर्न रीजन में अभी एनसी हेगड़े बिग फोर फर्म्स का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, लेकिन स्वास्थ्य संबंधी कारणों से उनका अगला चुनाव लड़ने को लेकर संदेह व्यक्त किया जा रहा है; ऐसे में, ई एंड वाई में दीनल शाह को लेकर बढ़ी सक्रियता चर्चा में आ गई है । वेस्टर्न रीजन में एनसी हेगड़े की उम्मीदवारी को लेकर संदेह, दीनल शाह की उम्मीदवारी की संभावना और नॉर्दर्न रीजन में संजीव चौधरी का बिग फोर फर्म ज्वाइन करना - जैसी बातों ने संजीव सिंघल की उम्मीदवारी पर सवालिया निशान लगा दिया है । इन स्थितियों/बातों के चलते नॉर्दर्न रीजन में लोगों को अब यह भी लगने लगा है कि गिरीश आहुजा ने कहीं भविष्य का संकेत पढ़ कर ही तो संजय अग्रवाल की उम्मीदवारी को हरी झंडी नहीं दी/दिखाई है । तरह तरह की चर्चाओं में कौन सी बात सच होगी और कौन सिर्फ चर्चा तक ही सिमट कर रह जायेगी, यह तो बाद में स्पष्ट होगा - अभी लेकिन इन चर्चाओं ने संजीव सिंघल के लिए ऐसी मुसीबतें खड़ी कर दी हैं, जिनसे निपटना उनके लिए मुश्किल हो रहा है । 

Monday, August 10, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट अशोक अग्रवाल के चुनावी राजनीति के पचड़े में न पड़ने तथा अपनी गवर्नरी पर ध्यान देने के रवैये के चलते अजय सिन्हा और दीपक गुप्ता की उम्मीदों पर पानी फिरा, तथा प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए रास्ता साफ हुआ

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कोशिशों का कोई फायदा न मिलता देख अजय सिन्हा के साथ जुड़े लोगों ने अब उनसे दूर हटना और 'दिखना' शुरू कर दिया है । इन पंक्तियों के लेखक से अजय सिन्हा की उम्मीदवारी को लेकर बेहद उत्साह के साथ बात करते रहने वाले लोगों ने सुर/स्वर बदलते हुए कहना/बताना शुरू किया है कि अजय सिन्हा ने हालाँकि पिछले दिनों अच्छा संपर्क अभियान चलाया, लेकिन वह लोगों के बीच अपनी उम्मीदवारी को लेकर कोई जोश पैदा करने में विफल रहे हैं - और कारण से उनका हौंसला भी टूटता हुआ लग रहा है । अजय सिन्हा को सबसे बड़ा झटका डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट अशोक अग्रवाल के रवैये से लगा है । अजय सिन्हा को उम्मीद थी कि डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में जिस तरह का समीकरण बन रहा है, उसमें अशोक अग्रवाल का समर्थन उन्हें मिल जायेगा - और फिर अशोक अग्रवाल ही उन्हें कुछेक अन्य गवर्नर्स का समर्थन दिलवा देंगे । अजय सिन्हा को ऐसी उम्मीद इसलिए भी थी, क्योंकि उन्हें लगता था कि उन्होंने अशोक अग्रवाल के बहुत कुछ किया है - इसलिए अशोक अग्रवाल अवश्य ही उनका साथ देंगे । अजय सिन्हा को लेकिन यह देख कर खासा झटका लगा है कि उनकी उम्मीद के विपरीत अशोक अग्रवाल उनकी उम्मीदवारी में कोई दिलचस्पी ही नहीं ले रहे हैं ।
अशोक अग्रवाल के नजदीकियों का कहना/बताना है कि अशोक अग्रवाल का सारा ध्यान दरअसल अपनी गवर्नरी पर है, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति के चक्कर में वह अपनी गवर्नरी खराब करने का खतरा नहीं उठाना चाहते हैं । कोरोना प्रकोप के चलते बने हालात के कारण अशोक अग्रवाल के लिए गवर्नरी 'करना' और गवर्नर पद की जिम्मेदारियाँ निभाना वैसे भी खासा चुनौतीपूर्ण हो गया है, और इस चुनौती से निपटने के लिए उन्हें डिस्ट्रिक्ट में हर किसी का सहयोग व समर्थन चाहिए होगा: अशोक अग्रवाल भी समझ रहे हैं कि ऐसे में वह यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति के चक्कर में पड़े - तो उन्हें अपनी गवर्नरी को ही दाँव पर लगाना होगा । अशोक अग्रवाल के नजदीकियों के ही अनुसार, अशोक अग्रवाल को यह भी 'दिख' रहा है तथा समझ में आ रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ में प्रियतोष गुप्ता चूँकि काफी आगे हैं, तथा बाकी अन्य उम्मीदवारों के लिए उनका मुकाबला कर पाना मुश्किल क्या - असंभव ही लग रहा है, इसलिए भी अशोक अग्रवाल ने अजय सिन्हा की उम्मीदवारी को तवज्जो देने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है । इस कारण से, अशोक अग्रवाल के समर्थन का दावा करके अजय सिन्हा ने अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में जो गुब्बारा फुलाने की तैयारी की थी, उसकी सारी हवा निकल गई है । 

मजे की बात यह सुनने/देखने में आ रही है कि अजय सिन्हा की उम्मीदवारी के गुब्बारे की हवा निकलते देख डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के तीसरे उम्मीदवार दीपक गुप्ता को सबसे ज्यादा निराशा हो रही है, और उन्हें अपना 'खेल' बिगड़ता नजर आ रहा है । दरअसल दीपक गुप्ता को अजय सिन्हा की उम्मीदवारी में अपना फायदा दिख रहा था; उनका सोचना था कि अशोक अग्रवाल के समर्थन के सहारे अजय सिन्हा गाजियाबाद में प्रियतोष गुप्ता के वोट काटेंगे - और उस स्थिति में उनका फायदा होगा । दिलचस्प बात यह हुई कि अजय सिन्हा के चुनावी मुकाबले में कूद पड़ने से पहले प्रियतोष गुप्ता के सामने दीपक गुप्ता जब अकेले थे, तब दीपक गुप्ता ने अपने आप को प्रियतोष गुप्ता का मुकाबला करने में असमर्थ पाया और वह चुनावी सीन से हटते हुए लगे थे - किंतु अचानक से प्रस्तुत हुई अजय सिन्हा की उम्मीदवारी दीपक गुप्ता को संजीवनी की तरह लगी और वह पुनः चुनावी ताल ठोकने लगे । लेकिन अशोक अग्रवाल के चुनावी राजनीति के पचड़े में न पड़ने तथा अपनी गवर्नरी पर ध्यान देने के चलते अजय सिन्हा की उम्मीदों पर पानी पड़ने से प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए रास्ता जिस तरह से साफ हुआ है - उससे दीपक गुप्ता का 'फायदे का गणित' गड़बड़ा गया है और उनके लिए पहले वाली स्थिति ही बन गई है - जहाँ कि वह प्रियतोष गुप्ता का मुकाबला करने में अपने को असमर्थ पा रहे थे । 

Saturday, August 8, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए पंकज बिजल्वान का समर्थन करने वाले लोग उन्हें निष्क्रिय व सीन से गायब देख कर अब उनसे जिस तरह मुँह मोड़ते दिख रहे हैं, उससे लग रहा है कि इस वर्ष भी पंकज बिजल्वान की राह आसान नहीं होगी

देहरादून । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में पंकज बिजल्वान का अभी तीन/चार महीने पहले समर्थन करने वाले लोगों को अब अचानक से सुर/स्वर बदलते हुए सुना/देखा जा रहा है, और इससे पंकज बिजल्वान का रास्ता मुश्किल होता हुआ लग रहा है । उल्लेखनीय है कि तीन-चार महीने पहले सत्ता खेमे से जुड़े कई आम और खास लोगों ने पंकज बिजल्वान के लिए सहानुभूति और समर्थन दिखाना शुरू किया था, जिससे लगा था कि पंकज बिजल्वान ने सत्ता खेमे में अपनी पैठ बना ली है - और सत्ता खेमे के नेताओं का समर्थन भी वह अंततः प्राप्त कर लेंगे । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर निगाह रखने वाले नेताओं का मानना और कहना था कि पंकज बिजल्वान ने होशियारी दिखाते हुए सत्ता खेमे के नेताओं के नजदीकियों को अपने पक्ष में किया, और उनके जरिये नेताओं पर दबाव बनाने की कोशिश की । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में जितेंद्र चौहान का समर्थन करने के जरिये भी उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के सत्ताधारियों तक पहुँचने की पगडंडी बनाई । पंकज बिजल्वान की कोशिशों को 'स्मार्ट राजनीतिक मूव' के रूप में देखा/पहचाना गया, और उनके विरोधियों को भी मानते तथा कहते हुआ सुना गया कि पंकज बिजल्वान को राजनीति करना आता है । हालाँकि कई लोगों का कहना यह भी है कि पंकज बिजल्वान को यदि सचमुच राजनीति करना आता, तो वह सेकेंड वाइस गवर्नर बनने के लिए अभी भी भटक नहीं रहे होते ! मानने को तो कोई भी यह नहीं मानेगा कि गौरव गर्ग तथा रजनीश गोयल में पंकज बिजल्वान से ज्यादा राजनीतिक कुशलता है और वह ज्यादा दाँवपेंच कर सकते हैं - लेकिन सच्चाई यह है कि यह दोनों डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की कुर्सी तक पहुँचने की लाइन में लग गए हैं, और पंकज बिजल्वान बेचारे उक्त लाइन में लगने के लिए अभी भी जुगाड़ खोज रहे हैं ।  
पंकज बिजल्वान को जानने व 'समझने' का दावा करने वालों का कहना है कि पंकज बिजल्वान को राजनीतिक दाँवपेंच तो आते हैं, लेकिन उन दाँवपेंचों में निरंतरता बनाये रखने तथा उन्हें उचित तरीके से क्रियान्वित करने का हुनर उनमें नहीं है - वास्तव में अपनी खूबियों को बढ़ाते और अपनी कमजोरियों को छिपाते हुए रास्ता बनाने की कला उन्हें नहीं आती है, और इसीलिए तमाम अनुकूलताओं के बावजूद वह अभी भी घाटे में हैं । उनकी तुलना में गौरव गर्ग और रजनीश गोयल ने अपनी अपनी खूबियों और कमजोरियों के बीच तालमेल बनाते हुए अपने अपने 'काम' आसानी से बना लिए । पंकज बिजल्वान जल्दी से संबंध तो बना लेते हैं, लेकिन संबंध में विश्वास नहीं बनाये रख पाते हैं - जिस कारण  संबंधों का फायदा नहीं ले पाते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अश्वनी काम्बोज के साथ तीन वर्ष पहले, अश्वनी काम्बोज जब उम्मीदवार थे, उनके कैसे संबंध थे - और अब कैसे हैं, यह डिस्ट्रिक्ट में किसी से छिपी हुई बात नहीं है । यह बात भी हर किसी को पता व याद है कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तथा पूर्व मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय मित्तल पर पहले तो पंकज बिजल्वान ने इतना विश्वास दिखाया कि कोरे कागज पर अपने हस्ताक्षर करके कागज उन्हें दे दिया, लेकिन फिर जल्दी ही उस कागज के आधार पर ही उन्होंने विनय मित्तल को फँसाने की कोशिश की । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीवा अग्रवाल से पहले तो उन्होंने अच्छे संबंध बनाये, और फिर उनसे हुई एक बातचीत को टेप करके उसे सार्वजनिक करके उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश की । पंकज बिजल्वान ने वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मुकेश गोयल को पहले तो अपनी उम्मीदवारी का झंडा थमाया, और फिर उम्मीदवार के रूप में उन्हें कोई तवज्जो भी नहीं दी और उन पर पैसों में घपले करने तक के आरोप लगाए ।
अलग-अलग 'तरह' के लोगों से जुड़े इन कुछेक प्रसंगों से जाहिर है कि पंकज बिजल्वान ने विश्वास किसी पर नहीं किया, और हर किसी को सिर्फ इस्तेमाल ही करने की कोशिश की । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में भी, डिस्ट्रिक्ट की राजनीति के अपने 'साथियों' को छोड़ कर पंकज बिजल्वान ने जितेंद्र चौहान का समर्थन किया । माना/समझा गया था कि जितेंद्र चौहान के मार्फत वह वास्तव में डिस्ट्रिक्ट के सत्ताधारियों के नजदीक आने का तानाबाना बुन रहे हैं । जितेंद्र चौहान के लिए वोट जुटाने के बहाने से उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के सत्ताधारियों के नजदीक आने के कुछेक मौके बनाये भी थे, लेकिन उन मौकों को लेकर वह निरंतरता नहीं बनाये रख सके । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की चाबी रखने वाले सत्ता खेमे के नेताओं के नजदीकियों के बीच पैठ बना कर भी पंकज बिजल्वान ने अच्छी चाल चली थी; सत्ता खेमे के नेताओं के कुछेक नजदीकियों ने जिस तरह से पंकज बिजल्वान की तरफदारी करना शुरू किया था - उससे लगा था कि पंकज बिजल्वान अब की बार अन्य किसी के लिए कोई मौका जैसे नहीं छोड़ेंगे । लेकिन वही नजदीकी अब पंकज बिजल्वान को सीन से गायब देख कर कहते सुने जा रहे हैं कि पंकज बिजल्वान विश्वास करने योग्य व्यक्ति नहीं हैं । उधर पंकज बिजल्वान के नजदीकियों का कहना है कि अभी चूँकि डिस्ट्रिक्ट में कहीं कुछ हो ही नहीं रहा है, इसलिए पंकज बिजल्वान भी क्या करें - सो, वह भी चुप बैठे हैं । लोगों का कहना किंतु यह है कि डिस्ट्रिक्ट में अन्य किसी को कुछ पाना नहीं है, इसलिए वह यदि कुछ नहीं करते नजर आ रहे हैं तो उन्हें कोई नुकसान नहीं है - पंकज बिजल्वान को तो लेकिन सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनना है, इसलिए उनका सक्रिय न होना उन्हें चोट पहुँचा सकता है । 
पंकज बिजल्वान दरअसल इसलिए भी निश्चिंत हैं, क्योंकि अभी सत्ता खेमे के नेता भी किसी को आगे बढ़ाते नहीं दिख रहे हैं । पंकज बिजल्वान के कुछेक शुभचिंतकों को इसमें हालाँकि सत्ता खेमे के नेताओं की चाल भी दिखती है; उन्हें लगता है कि सत्ता खेमे के नेता जानबूझ कर अभी किसी को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं - क्योंकि वह देख रहे हैं कि इसके चलते पंकज बिजल्वान भी कुछ करने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं । सत्ता खेमे के नेताओं को लगता होगा कि पंकज बिजल्वान कुछ समय लोगों के बीच से गायब रहे, तो फिर अपने लिए हमदर्दी खो देंगे और चुनावी मुकाबले में टिक नहीं पायेंगे । अभी तीन/चार महीने पहले तक पंकज बिजल्वान का समर्थन करने वाले लोग अब जिस तरह से उनसे मुँह मोड़ते दिख रहे हैं, उससे लग रहा है कि पंकज बिजल्वान अपने खुद के दुश्मन बने हुए हैं, और वह खुद ही अपनी संभावनाओं को नष्ट कर रहे हैं ।

Wednesday, August 5, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए दोबारा होने वाले चुनाव में पूर्व गवर्नर्स एचएस सच्चर, प्रमोद सेठ तथा संजय चोपड़ा की तरफ से जगदीश अग्रवाल को 'धोखा' मिलने का डर क्यों है ?

लखनऊ । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स एचएस सच्चर, प्रमोद सेठ तथा संजय चोपड़ा के लिए जगदीश अग्रवाल के नजदीकियों व शुभचिंतकों को यह विश्वास दिलाना मुश्किल हो रहा है कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए दोबारा होने वाले चुनाव में वह सचमुच जगदीश अग्रवाल का सहयोग/समर्थन करेंगे - और ऐन मौके तक उनका साथ देंगे । मजे की, और इन तीनों के लिए मुसीबत की बात यह बनी हुई है कि जगदीश अग्रवाल के समर्थन की स्पष्ट घोषणा करने के बावजूद जगदीश अग्रवाल और उनके नजदीकी व शुभचिंतक लगातार इनके प्रति संदेह बनाये हुए हैं, और वह अलग अलग तरह के बहानों से इनके मन व असली इरादे को पढ़ने तथा जाँचने/परखने की कोशिश करते रहे हैं । ऐसा दरअसल इसलिए है क्योंकि जगदीश अग्रवाल तथा उनके नजदीकी व शुभचिंतक इन तीनों पर यह भरोसा नहीं कर पा रहे हैं, कि अभी उनके समर्थन की बात करने वाले यह पूर्व गवर्नर्स वोटिंग तक उनके समर्थन में बने रहेंगे और पलट नहीं जायेंगे । इन तीनों के प्रति अविश्वास का कारण यह है कि पिछले मौकों पर यह तीनों जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के विरोध में रह चुके हैं ।
उल्लेखनीय है कि पिछले से पिछले लायन वर्ष में जगदीश अग्रवाल और बीएम श्रीवास्तव के बीच हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में एचएस सच्चर ने बीएम श्रीवास्तव का समर्थन किया था; और पिछले लायन वर्ष में हुए चुनाव में प्रमोद सेठ व संजय चोपड़ा ने जगदीश अग्रवाल के खिलाफ नेगेटिव वोट करवाने में सक्रिय भूमिका निभाई थी । बात हालाँकि सिर्फ इतनी ही नहीं है - क्योंकि चुनावी राजनीति में समर्थक और विरोधी अदलते/बदलते रहते हैं, और यह किसी को भी हैरान नहीं करता है; असली बात वह तरीका है जो इन्होंने अपनाया । एचएस सच्चर जब बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी के समर्थन में थे, तब उन्होंने अपने क्लब के तीन वोट बीएम श्रीवास्तव के पक्ष में डलवाने में कोई दिलचस्पी नहीं ली थी - और जिसका नतीजा यह रहा कि बीएम श्रीवास्तव एक वोट से चुनाव हार गए थे । इस तरह, बीएम श्रीवास्तव की हार का प्रमुख कारण ऐन मौके पर एचएस सच्चर से गच्चा मिलना रहा । प्रमोद सेठ और संजय चोपड़ा का किस्सा तो और भी गंभीर है । पिछले वर्ष हुए चुनाव में उन्होंने अपने अपने समर्थक क्लब्स के वोट जगदीश अग्रवाल के खिलाफ डलवाये और यह जानकारी उन्होंने तुरंत ही गुरनाम सिंह तथा अन्य कुछेक प्रमुख पदाधिकारियों को दी भी - और बाद में नाटक करते हुए कहते रहे कि जगदीश अग्रवाल के साथ बहुत बुरा हुआ । प्रमोद सेठ व संजय चोपड़ा का रवैया कई मौकों पर 'कहना कुछ और करना कुछ' जैसा रहा है । इसी कारण से, जगदीश अग्रवाल और उनके नजदीकी व शुभचिंतक इन पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं ।
भरोसा नहीं कर पाने का एक कारण और है - तथा वह यह कि तमाम कोशिशों के बावजूद जगदीश अग्रवाल के पक्ष में जीतने लायन समर्थन नहीं जुट पा रहा है । जगदीश अग्रवाल तथा उनके नजदीकियों को डर है कि ऐसे में, उनके समर्थक यह सोच सकते हैं कि जगदीश अग्रवाल को जब जीतना नहीं है - तो उनके समर्थन में रहने का क्या फायदा ? जगदीश अग्रवाल के लिए समर्थन दरअसल इसलिए भी नहीं जुट पा रहा है क्योंकि - फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए दोबारा होने वाले चुनाव में जगदीश अग्रवाल वास्तव में जीतने के लिए नहीं, बल्कि गुरनाम सिंह को 'हराने' के लिए उम्मीदवार बन रहे हैं । उन्होंने और उनके नजदीकियों ने कहा है कि वह दिखाना चाहते हैं कि गुरनाम सिंह के समर्थन के बिना - और उनके विरोध के बावजूद डिस्ट्रिक्ट में चुनाव जीता जा सकता है । डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोग अलग अलग कारणों से लेकिन गुरनाम सिंह के साथ तथा उनके नजदीक रहना चाहते हैं, इसलिए गुरनाम सिंह को 'हराने' की जगदीश अग्रवाल की कोशिशों को समर्थन नहीं मिल पा रहा है । हालाँकि जगदीश अग्रवाल का समर्थन कर रहे प्रमोद सेठ व संजय चोपड़ा ने लोगों को फार्मूला सुझाया है कि वह गुरनाम सिंह को तो बताएँ/दिखाएँ कि वह जगदीश अग्रवाल के साथ नहीं हैं, और गुपचुप रूप से वोट जगदीश अग्रवाल को दे दें । इस पर लोगों से उन्हें सुनने को मिला है कि इस तरह से धोखा देने का काम वह कर लेते हैं, लेकिन हर कोई नहीं कर सकता है । मजे की बात यह हो रही है कि फार्मूला सुझा कर प्रमोद सेठ और संजय चोपड़ा ने जगदीश अग्रवाल तथा उनके नजदीकियों व शुभचिंतकों के बीच शक/संदेह को और मजबूत कर दिया है । दरअसल, पिछले व्यवहार तथा रवैये के चलते एचएस सच्चर, प्रमोद सेठ व संजय चोपड़ा को लेकर जगदीश अग्रवाल तथा उनके नजदीकियों व शुभचिंतकों के बीच जो शक है, उसने इन तीनों पूर्व गवर्नर्स की स्थिति को विडंबनापूर्ण बना दिया है । 

Tuesday, August 4, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता द्वारा अपने अकाउंट से दी गई डिस्ट्रिक्ट ग्रांट्स की रकम के फँसने के मामले में शरत जैन के कूद पड़ने से, इस चर्चा को हवा मिली है कि डिस्ट्रिक्ट ग्रांट्स कहीं शरत जैन को सीओएल का चुनाव जितवाने में तो इस्तेमाल नहीं हुई है ? 

नई दिल्ली । बैंक में अटकी/फँसी पड़ी डिस्ट्रिक्ट ग्रांट की रकम को लेकर लंबी-चौड़ी सफाई देती ईमेल लिख/भेज कर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन रोटेरियंस के बीच न सिर्फ मजाक का विषय बन गए हैं, बल्कि खासी फजीहत के शिकार हो बैठे हैं । एक तरफ लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि शरत जैन को दीपक गुप्ता के 'फटे में अपना पैर घुसाने' की जरूरत आखिर क्यों पड़ी, तो दूसरी तरफ उनके नजदीकियों का कहना/बताना है कि शरत जैन ने उक्त ईमेल इसलिए लिखी है ताकि दीपक गुप्ता अपनी जेब से खर्च की गई डिस्ट्रिक्ट ग्रांट की रकम उनसे लेने पर जोर न दें । शरत जैन के नजदीकियों का कहना है कि अपनी जेब से खर्च की गई रकम को डूबता देख कर दीपक गुप्ता ने शरत जैन से तकादा करना शुरू किया है कि डिस्ट्रिक्ट ग्रांट को चूँकि उन्हें सीओएल का चुनाव जितवाने के लिए 'खर्च' किया गया था, इसलिए वह रकम उन्हें चुकाना चाहिए । दीपक गुप्ता ने यहाँ तक ऑफर दिया है कि पूरी न सही, तो कम से कम आधी रकम तो शरत जैन को देना ही चाहिए । दीपक गुप्ता का तर्क है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीतने के लिए जिस तरह से ललित खन्ना ने मोटी रकम खर्च की है, वैसे ही शरत जैन को भी सीओएल प्रतिनिधि बनने की कुछ तो कीमत चुकाना ही चाहिए । दीपक गुप्ता ने भी कुछेक लोगों के बीच रोना रोया है कि शरत जैन के लिए वोट पक्के करने के लिए ही उन्हें डिस्ट्रिक्ट ग्रांट की रकम अपने अकाउंट से देने की जरूरत पड़ी थी, अन्यथा उन्हें क्या जरूरत थी कि वह डिस्ट्रिक्ट ग्रांट की रकम अपने अकाउंट से देते ?
दीपक गुप्ता की तरफ से होने वाली इस तरह की बातों ने शरत जैन को डरा दिया कि कहीं दीपक गुप्ता उनसे रकम बसूलने पर जोर न देने लगें - इसलिए वह दीपक गुप्ता की मदद करने के नाम पर बीच में कूद पड़े हैं । शरत जैन के नजदीकियों के अनुसार, शरत जैन ने देखा/जाना है कि दीपक गुप्ता ने ललित खन्ना से किस किस तरह से पैसे लिए/बसूले थे । हर काम के लिए पैसों का बोझ दीपक गुप्ता जिस तरह से ललित खन्ना के सिर पर डाल दिया करते थे, उसके कारण ललित खन्ना के नजदीकियों को कुछेक मौकों पर कहते हुए सुना गया था कि दीपक गुप्ता की डिमांड्स के चक्कर में ललित खन्ना को कहीं अपनी फैक्ट्री न बेचनी पड़ जाए ! दीपक गुप्ता को बड़ा अफसोस रहा कि शरत जैन को सीओएल का चुनाव जितवाने के ऐवज में वह शरत जैन से पैसे नहीं ले पाए । अब जब, दीपक गुप्ता को अपनी जेब से दिए गए डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के पैसे डूबते हुए दिख रहे हैं तो उन्हें यह जरूर लग रहा है कि उक्त पैसे शरत जैन को देने चाहिए । मजे की बात यह है कि शरत जैन के कुछेक नजदीकियों को दीपक गुप्ता की 'मांग' उचित भी लगती है; उनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में 105 क्लब हैं, लेकिन शरत जैन के लिए वोट जुटाने के उद्देश्य से दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट ग्रांट की रकम कुल 18 क्लब्स में ही बाँट/निपटा दी - डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का करीब 70 लाख रुपया भी दीपक गुप्ता ने अपनी जेब से दिया । शरत जैन के नजदीकियों का भी मानना और कहना है कि दीपक गुप्ता अब यदि यह चाहते हैं कि उक्त रकम पूरी न सही, कम से कम आधी तो शरत जैन दे हीं - तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है ।

शरत जैन ने लेकिन रकम देने से बचने के लिए दीपक गुप्ता के प्रति हमदर्दी दिखाती हुई ईमेल लिखने व तमाम लोगों को भेजने का 'रास्ता' पकड़ा है । शरत जैन की ईमेल ने दीपक गुप्ता की बेवकूफी के चलते गंभीर होते गए एक सामान्य से मामले को और भी ज्यादा गंभीर बना दिया है, जिसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आलोक गुप्ता से भी उन्हें लताड़ सुनने को मिली है । मामले की क्रोनोलॉजी बड़ी सामान्य सी है, जो शरत जैन ने भी अपनी ईमेल में बताई है - पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता ने कुछेक क्लब्स के लिए डिस्ट्रिक्ट ग्रांट्स के प्रस्ताव स्वीकार किए, जिन्हें रोटरी फाउंडेशन ने भी मंजूर कर लिया और ग्रांट्स का पैसा डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अकाउंट में आ गया; डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अकाउंट से पैसे क्लब्स को दिए जाने थे, लेकिन दीपक गुप्ता ने चूँकि डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अकाउंट में अपने हस्ताक्षर मान्य नहीं करवाए थे और न उक्त अकाउंट की केवाईसी प्रक्रिया पूरी करवाई थी - इसलिए डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अकाउंट से पैसे ट्रांसफर नहीं हो सकते थे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में इसे दीपक गुप्ता के निकम्मेपन की हद ही कहा जायेगा कि 365 दिन के अपने गवर्नर-काल में वह डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अकाउंट में अपना नाम नहीं डलवा सके । विडंबना यह है कि जब यह बात सामने आई, तब भी दीपक गुप्ता ने बैंक अकाउंट में अपने हस्ताक्षर मान्य करवाने में दिलचस्पी नहीं ली । दरअसल उस समय वह शरत जैन की सीओएल की उम्मीदवारी के पक्ष में वोटों की सौदेबाजी करने में व्यस्त थे । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के पदाधिकारियों को झूठे ही 'अर्जेन्टली रिक्वायर्ड' का वास्ता देकर दीपक गुप्ता ने पैसों के ऐडजस्टमेंट का आश्वासन ले लिया था । लेकिन अब पोल खुल रही है कि उनके लिए 'अर्जेन्टली रिक्वायर्ड' दरअसल सीओएल के चुनाव के लिए वोटों का सौदा करना था, और वह बैंक अकाउंट को नियमानुसार लाने/बनाने में समय बर्बाद नहीं कर सकते थे । मामले में शरत जैन द्वारा गैरजरूरी रूप से दखल देने से लोगों को यह और 'नजर' आ रहा है कि डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का पैसा उनके चुनाव में ही 'इस्तेमाल' हुआ है ।         

Monday, August 3, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3110 में जोन्स निर्धारण के मामले को मुद्दा बना कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिनेश शुक्ला को दबाव में लेने की कोशिश में फजीहत का शिकार बनने से, आईएस तोमर खेमे के नेताओं ने वास्तव में अपनी ही कमजोरी को साबित किया है और अपनी मुश्किलों को बढ़ा लिया है

बरेली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन/चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए जोन्स के निर्धारण को लेकर अपनी शिकायत इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी तक पहुँचा कर आईएस तोमर खेमे के नेताओं ने अपनी अच्छी फजीहत करवा ली है - और इस तरह उक्त मामले में बबाल मचाना उनके लिए न सिर्फ निरर्थक साबित हुआ, बल्कि उनके गले की फाँस और बन गया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिनेश शुक्ला ने त्वरित गति से काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग बुला कर तथा उस मीटिंग में कमल सांघवी को भी आमंत्रित करके आईएस तोमर खेमे की मुहिम का बीच रास्ते में ही जिस तरह से दम निकाल दिया, उससे आईएस तोमर खेमे को खासा तगड़ा झटका लगा है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों का कहना है कि आईएस तोमर खेमे के लिए सारा मामला 'खाया-पिया कुछ नहीं, गिलास तोड़ा बारह आना' टाइप का रहा है । इस पूरे मामले से आईएस तोमर खेमे की बौखलाहट और हताशा का भी डिस्ट्रिक्ट के आम और खास लोगों को आभास मिला है, तथा डिस्ट्रिक्ट में उनके विरोधियों को कहने का मौका मिला है कि यह पूरा प्रसंग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में आईएस तोमर खेमे का अभी से अपनी हार स्वीकारने जैसा बन  गया है ।
उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिनेश शुक्ला ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन/चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए जोन्स निर्धारित किए । आईएस तोमर खेमे के नेता लोग तुरंत सक्रिय हुए और उन्होंने घोषित निर्धारण को डिस्ट्रिक्ट बायलॉज के नियमों का उल्लंघन बताते हुए बबाल मचाना शुरू कर दिया और धड़ाधड़ जहाँ/तहाँ ईमेल लिखना/भेजना शुरू कर दिया । मामले को बड़ा बनाने के उद्देश्य से उन्होंने शिकायती ईमेल की कॉपी शेखर मेहता और कमल सांघवी को भी भेज दी । उन्हें उम्मीद थी कि शिकायत मिलते ही शेखर मेहता और कमल सांघवी तुरंत से दिनेश शुक्ला के कान उमेठेंगे और उनके द्वारा घोषित किए गए निर्धारण को रद्द करवा देंगे । दिनेश शुक्ला लेकिन तुरंत एक्शन में आ गए, और उन्होंने काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की जूम मीटिंग बुला ली, और मीटिंग में कमल सांघवी को भी शामिल होने के लिए राजी कर लिया । कमल सांघवी ने सभी की बातें सुन कर अपना पक्ष दिया कि पूर्व गवर्नर्स का काम सुझाव/सलाह देना है, और फैसला डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को ही करना है - पूर्व गवर्नर्स अपनी कोई बात डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पर थोप नहीं सकते हैं । कमल सांघवी के यह कहने के साथ ही, आईएस तोमर खेमे की दिनेश शुक्ला को दबाव में लेने तथा जोन्स के निर्धारण की घोषणा को रद्द करवाने की सारी तैयारी की हवा निकल गई ।
इस मामले में दरअसल आईएस तोमर खेमे के नेताओं की बदनामी ने अहम् रोल निभाया । उल्लेखनीय है कि शेखर मेहता और कमल सांघवी कई मौकों पर डिस्ट्रिक्ट के नेताओं को 'सिर्फ और सिर्फ राजनीति करने के लिए' लताड़ चुके हैं । वास्तव में इसीलिए जोन्स के निर्धारण को लेकर आईएस तोमर खेमे के नेताओं की शिकायत को न शेखर मेहता ने कोई तवज्जो दी, और न कमल सांघवी ने उसे गंभीरता से लिया । आईएस तोमर खेमे के ही कुछेक वरिष्ठ सदस्यों का कहना है कि मामले में जिस तरह का उतावलापन तथा आक्रामकता दिखाई गई, उससे मामला बिगड़ गया - और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिनेश शुक्ला ने जिस तत्परता व होशियारी से मामले को अपने पक्ष में कर लिया, उससे लगता है कि उन्हें जोन्स निर्धारण के मामले में आईएस तोमर खेमे द्वारा बबाल करने का आभास था और उन्होंने उनके बबाल से निपटने के तरीके के बारे में पहले से सोचा हुआ था । पूरे प्रकरण से यह साबित हुआ कि आईएस तोमर खेमे के नेताओं के पास डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की राजनीति को लेकर कोई सुनियोजित योजना नहीं है, और वह सिर्फ शोरगुल मचा कर ही चुनाव जीतने की उम्मीद में हैं । मजे की बात यह है की कि खेमे के ही कुछेक नेताओं को लगता है कि इस वर्ष उनके लिए मौका अच्छा है - उनके उम्मीदवार के रूप में देवप्रिया उक्सा का पलड़ा सत्ता खेमे के उम्मीदवार विवेक गर्ग के मुकाबले भारी देखा/पहचाना जा रहा है, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट  के रूप में मुकेश सिंघल अपने गवर्नर वर्ष के पद बाँट कर वोट जुटाने की स्थिति में भी हैं; लेकिन एक व्यवस्थित रणनीति के अभाव में आईएस तोमर खेमे के सक्रिय नेता अनुकूल स्थितियों का लाभ उठा पाने में सक्षम नहीं दिख रहे हैं । जोन्स निर्धारण के मामले में, अपने ही बिछाये जाल में खुद ही फँस कर खेमे के नेताओं ने अपनी जो फजीहत करवाई है, उससे वास्तव में उन्होंने अपनी ही कमजोरी को जाहिर किया है ।

Sunday, August 2, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में बहुमत वोटर्स का विश्वास खो चुके तथा उनके द्वारा नकार दिए गए जगदीश अग्रवाल की फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद वापस पाने तथा गुरनाम सिंह से बदला लेने की तैयारी ने डिस्ट्रिक्ट के चुनावी नजारे को खासा दिलचस्प बनाया


लखनऊ । नेगेटिव वोटिंग के कारण फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से वंचित रह गए जगदीश अग्रवाल ने वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरनाम सिंह से बदला लेने तथा फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद वापस पाने के लिए पुनः कमर कस ली है, और इस कारण डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का पारा अचानक से खासा गर्म हो उठा है । पारा दरअसल इसलिए भी गर्म हो उठा है, क्योंकि इस काम में जगदीश अग्रवाल को गुरनाम सिंह के नजदीकियों और सहयोगियों का ही सहयोग/समर्थन मिल रहा है; और इस तरह डिस्ट्रिक्ट के लोगों को - गुरनाम सिंह को अपने ही नजदीकी व सहयोगी रहे पूर्व गवर्नर्स की राजनीति का निशाना व शिकार बनते देखने का मौका मिल रहा है । अभी तक तो जगदीश अग्रवाल को विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल का ही सहयोग/समर्थन मिलता दिख रहा था, लेकिन अब प्रमोद सेठ व संजय चोपड़ा को भी जगदीश अग्रवाल के समर्थन में देखा/पहचाना जा रहा है । प्रमोद सेठ व संजय चोपड़ा असल में इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए लायंस क्लब शाहजहाँपुर विशाल के वरिष्ठ सदस्य तेजेंद्रपाल सिंह की उम्मीदवारी को समर्थन देने के कारण गुरनाम सिंह से नाराज हुए हैं; उन्होंने बहुत कोशिश की कि तेजेंद्रपाल सिंह की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी को गुरनाम सिंह का समर्थन न मिल सके - लेकिन अपनी कोशिशों को असफल होता देख प्रमोद सेठ व संजय चोपड़ा ने गुरनाम सिंह से बदला लेने की तैयारी कर रहे जगदीश अग्रवाल का सहयोग/समर्थन करने का फैसला कर लिया है ।
विशाल सिन्हा, अनुपम बंसल, प्रमोद सेठ, संजय चोपड़ा का खुल्ला समर्थन मिलने से उत्साहित जगदीश अग्रवाल ने अपने नजदीकियों को कहा/बताया है कि उन्होंने अन्य कुछेक पूर्व गवर्नर्स का भी समर्थन हासिल कर लिया है, जो खाली पड़े फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद को भरने के लिए 16 अगस्त को होने वाली विशेष मीटिंग में उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे - और इस तरह वह न सिर्फ फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद पा लेंगे, बल्कि गुरनाम सिंह से अपना बदला भी ले लेंगे । उल्लेखनीय है कि जगदीश अग्रवाल अपने खिलाफ हुई नेगेटिव वोटिंग के लिए गुरनाम सिंह को ही दोषी ठहराते हैं । नेगेटिव वोटिंग के कारण फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद गवाँ देने के बाद जगदीश अग्रवाल ने हालाँकि गुरनाम सिंह को मनाने के लिए खूब प्रयास किए, लेकिन अपने प्रयासों में असफल रहने के बाद उन्होंने घोषणा की कि वह गुरनाम सिंह के समर्थन के बिना ही फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद वापस लेंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कमल शेखर गुप्ता ने खाली पड़े फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद को भरने के लिए 16 अगस्त को मीटिंग तथा वोटिंग कराने की घोषणा की है, जिसमें गवर्नर्स भाग लेंगे । जगदीश अग्रवाल ने अपने नजदीकियों को आश्वस्त किया है कि उक्त मीटिंग में उनके समर्थक गवर्नर्स उनकी उम्मीदवारी प्रस्तावित करेंगे तथा उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में वोट करेंगे - जिसके बाद वह पुनः मालाएँ पहनेंगे 
जगदीश अग्रवाल के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर वापसी करने के दावे ने डिस्ट्रिक्ट में खासी हलचल मचा दी है, और लोगों के बीच यह चर्चा गर्म हो उठी है कि डिस्ट्रिक्ट के बहुमत वोटर्स का विश्वास खो चुके तथा उनके द्वारा नकार दिए गए जगदीश अग्रवाल को फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डिस्ट्रिक्ट पर थोपने का काम पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स सचमुच करेंगे क्या - और इस तरह डिस्ट्रिक्ट के वोटर्स का अपमान करेंगे क्या ? लोगों का कहना है कि जगदीश अग्रवाल ने वोटर्स का विश्वास खो दिया है, जिसके कारण उनके खिलाफ नेगेटिव वोटिंग हुई और उनकी दावेदारी को नकार दिया गया; लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों ने भी डिस्ट्रिक्ट के वोटर्स के फैसले पर मोहर लगाई और साफ फैसला दिया कि वोटर्स का विश्वास खो चुके जगदीश अग्रवाल को फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का अधिकार नहीं है - इसके बाद भी यदि कोई पूर्व गवर्नर्स 16 अगस्त की मीटिंग व वोटिंग में जगदीश अग्रवाल को फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाते/चुनवाते हैं, तो यह डिस्ट्रिक्ट के वोटर्स के साथ-साथ लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों का भी अपमान होगा । लोगों का कहना है कि जगदीश अग्रवाल के समर्थक पूर्व गवर्नर्स को डिस्ट्रिक्ट के वोटर्स व लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के फैसले का सम्मान करते हुए, अगले वर्षों में जगदीश अग्रवाल को वोटर्स के बीच ले जाने की तैयारी करना चाहिए और वोटर्स के समर्थन के साथ उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की लाइन में लगवाना चाहिए । 
जगदीश अग्रवाल और उनके समर्थकों ने लेकिन जिस तरह से गुरनाम सिंह, डिस्ट्रिक्ट के वोटर्स तथा लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों को एक साथ नीचा दिखाने की तैयारी की है - उससे डिस्ट्रिक्ट का चुनावी नजारा खासा दिलचस्प हो उठा है ।

Saturday, August 1, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3110 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट मुकेश सिंघल की आगामी रोटरी वर्ष की गवर्नर-टीम के पदों के बदले वोट जुटाने तथा डीएन रायजादा को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का उम्मीदवार बना देने जैसे जुगाड़ों के भरोसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीतने की तोमर खेमे की तैयारी सचमुच कामयाब हो सकेगी क्या ?

कानपुर । वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डीएन रायजादा को आईएस तोमर ग्रुप ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उम्मीदवार तो 'बना' दिया है, लेकिन उनकी उम्मीदवारी को 'मजबूती' देने के लिए ग्रुप के लोग कोई प्रयास करते हुए नहीं दिख रहे हैं । यहाँ तक कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन/चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए वह अपने बीच से कोई उम्मीदवार तक तय नहीं कर पा रहे हैं । ग्रुप के लोगों के अनुसार, नोमीनेटिंग कमेटी के लिए हालाँकि पूर्व गवर्नर अरुण जैन का नाम लिया जा रहा है, लेकिन अरुण जैन उक्त उम्मीदवारी के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं । दरअसल अरुण जैन भी जान/समझ रहे हैं कि नोमीनेटिंग कमेटी के लिए होने वाले चुनाव में वह जीतेंगे तो नहीं ही, इसलिए फालतू में हार की फजीहत का सामना क्यों करना ? नोमीनेटिंग कमेटी के लिए रवि प्रकाश अग्रवाल खेमे की तरफ से शरत चंद्रा का नाम सुना जा रहा है, जो डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन हैं । आईएस तोमर ग्रुप की राजनीति के अगुआ बने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट मुकेश सिंघल भी नहीं चाहते हैं कि अरुण जैन नोमीनेटिंग कमेटी की उम्मीदवारी के चक्कर में पड़े । मुकेश सिंघल दरअसल सारा ध्यान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव पर लगाना चाहते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति में पिछले रोटरी वर्ष में आईएस तोमर ग्रुप की और ग्रुप के सक्रिय सदस्य बने मुकेश सिंघल की जैसी जो किरकिरी हुई थी, उसका वह इस वर्ष बदला लेना चाहते हैं - और इसलिए इस वर्ष वह सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को जीतने पर मेहनत करना चाहते हैं ।
मुकेश सिंघल के नजदीकियों का कहना/बताना है कि अगले रोटरी वर्ष में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के लिए डीएन रायजादा को उम्मीदवार बनाने के पीछे भी वास्तविक कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की तैयारी ही है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में जब तक आईएस तोमर की राजनीति चली, उन्होंने डीएन रायजादा को आगे नहीं बढ़ने दिया । डीएन रायजादा हालाँकि आईएस तोमर के नजदीकी रहे हैं, और उन्हीं के समर्थन से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने थे - लेकिन आईएस तोमर को हमेशा यह डर रहा कि डीएन रायजादा को यदि मौका मिला, तो वह उनसे आगे निकल जायेंगे; और इसीलिए उन्होंने डीएन रायजादा की कमान खींच कर रखी और उन्हें अलग-थलग करते/रखते हुए डिस्ट्रिक्ट में तवज्जो नहीं लेने/मिलने दी । डीएन रायजादा ने भी आईएस तोमर द्वारा तय की गई नियति को स्वीकार कर लिया और किनारे लग लिए । लेकिन अब जब आईएस तोमर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में वापसी करने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं, तब उन्हें डीएन रायजादा की याद आई है । असल में, आईएस तोमर खेमे के लोग कानपुर में अपनी स्थिति को कमजोर पा रहे हैं, और कानपुर में उन्हें कोई ऐसा नेता नहीं मिल पा रहा है - जिसके कंधे पर पैर रख कर वह कानपुर में अपनी राजनीति जमा सकें । डीएन रायजादा को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उन्होंने उम्मीदवार दरअसल इसी उम्मीद में बनाया है कि इससे डीएन रायजादा में करंट पैदा होगा, और वह कानपुर में आईएस तोमर खेमे के लिए जगह बनाने का काम करेंगे । आईएस तोमर खेमे के लोगों को अच्छी तरह पता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में डीएन रायजादा का कुछ होना/हवाना तो है नहीं, और उन्हें उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में कुछ करना भी नहीं है - वह तो बस डीएन रायजादा को 'झाड़' पर चढ़ा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में फायदा लेना चाहते हैं ।
आईएस तोमर खेमे की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अभी तक रोटरी क्लब झाँसी रानी की पूर्व अध्यक्ष देवप्रिया उक्सा का नाम है, जबकि रवि प्रकाश अग्रवाल खेमे की तरफ से रोटरी क्लब कानपुर इंडस्ट्रियल के पूर्व अध्यक्ष विवेक गर्ग तैयारी करते देखे/सुने जा रहे हैं । सक्रियता के लिहाज से देवप्रिया उक्सा का पलड़ा भारी देखा/बताया जा रहा है; विवेक गर्ग को लेकर आरोप सुने जा रहे हैं कि उन्होंने तो अपने आप को जीता हुआ मान लिया है - और इसलिए वह सक्रिय होने की तथा लोगों से संपर्क करने की कोई जरूरत नहीं समझ रहे हैं । उम्मीदवार के रूप में विवेक गर्ग के प्रति बनने वाली नाराजगी का लेकिन देवप्रिया उक्सा राजनीतिक फायदा उठाने का कोई 'मैकेनिज्म' बनाती नहीं दिख रही हैं - और उनका चुनाव पूरी तरह आईएस तोमर खेमे के नेताओं, खासकर मुकेश सिंघल पर निर्भर नजर आ रहा है । मुकेश सिंघल को लग रहा है कि आगामी रोटरी वर्ष की अपनी गवर्नर-टीम के पदों का ऑफर देकर वह वोट जुटा लेंगे, लेकिन सिर्फ इसी जुगाड़ के भरोसे चुनाव जीतने की उनकी तैयारी उनके काम आती नहीं दिख रही है । असल में, पिछले रोटरी वर्ष में आईएस तोमर खेमे के नेताओं की तरह तरह की जुगाड़बाजियों को जिस तरह की मात मिली है, उसने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में उनकी हालत पतली की हुई है - जिससे उबरने के लिए वह योजनाएँ तो खूब बना रहे हैं, लेकिन उनकी योजनाएँ अभी तो काम करती नजर नहीं आ रही हैं ।