Monday, November 24, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में दीपक गुप्ता के साथ खिंची अपनी तस्वीर को सार्वजनिक करने के लिए मुकेश अरनेजा ने रोटरी क्लब वैशाली के रमणीक तलवार को नोटिस दिया

नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा ने दीपक गुप्ता के साथ खिंची/खिंचवाई अपनी तस्वीर को फेसबुक की अपनी टाइमलाइन पर डालने के लिए रोटरी क्लब वैशाली के वरिष्ठ सदस्य रमणीक तलवार को बौद्धिक संपदा अधिकार कानून के तहत जो नोटिस दिया, उसका करारा जबाव देकर रमणीक तलवार ने मामले को खासा दिलचस्प बना दिया है । मुकेश अरनेजा का कहना रहा कि दीपक गुप्ता चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार हैं इसलिए दीपक गुप्ता के साथ उनकी यह तस्वीर लोगों को चुनाव के संदर्भ में प्रभावित करेगी । रमणीक तलवार को लिखे पत्र में मुकेश अरनेजा ने यह तो माना कि यह तस्वीर उनके साथ-साथ दीपक गुप्ता की भी बौद्धिक संपदा है, किंतु साथ ही यह दावा भी किया कि उनकी बिना अनुमति के इस तस्वीर को फेसबुक पर लाना गैरकानूनी है । रमणीक तलवार ने इसी तथ्य का हवाला देकर मुकेश अरनेजा को करारा जबाव दिया है । रमणीक तलवार का कहना रहा कि इस तस्वीर पर चूँकि दोनों का बौद्धिक संपदा अधिकार है, इसलिए दोनों यदि इसे हटाने की माँग करेंगे तो वह इसे तुरंत हटा लेंगे ।
मुकेश अरनेजा ने दीपक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार होने का हवाला देते हुए इस तस्वीर के उपयोग को जिस तरह अनुचित बताया है, उसमें उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उन्हें आपत्ति आखिर किस बात की है - इस बात की कि इस तस्वीर के कारण वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में संलग्न दिखते हैं जो कि वह नहीं हैं; और या उनकी आपत्ति इस बात के लिए है कि वह तो दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन नहीं कर रहे हैं जबकि यह तस्वीर उन्हें दीपक गुप्ता के 'साथ' दिखा रही है और लोगों को यह आभास दे रही है कि वह तो दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं । मुकेश अरनेजा की आपत्ति का कारण यदि पहला वाला है तो यह मुकेश अरनेजा के पाखंड और उनकी धूर्तता को प्रदर्शित करता है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दीपक गुप्ता के प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार शरत जैन के साथ तो उनकी बहुत से तस्वीरें फेसबुक पर विभिन्न टाइमलाइन पर देखी जा सकती हैं; लेकिन शरत जैन के साथ अपनी उन तस्वीरों को हटाने की माँग करते हुए मुकेश अरनेजा को कभी भी नहीं सुना गया है । रमणीक तलवार ने बाकायदा सुबूत देकर शरत जैन के साथ उनकी संलग्नता को जाहिर किया है ।
आपत्ति का कारण यदि दूसरा वाला है तो फिर सवाल यह उठता है कि मुकेश अरनेजा को यदि एक तस्वीर से दीपक गुप्ता को फायदा हो जाने का डर है तो फिर उन्होंने दीपक गुप्ता के साथ तस्वीर खिंचवाई ही क्यों ? रमणीक तलवार के दावे के अनुसार, उक्त तस्वीर डिस्ट्रिक्ट दीवाली मेले में खिंची थी - जहाँ बहुत से लोगों की तस्वीरें खिंची थीं । मुकेश अरनेजा, दीपक गुप्ता के साथ खिंची इस एक तस्वीर से इतना भयभीत क्यों हो गए हैं कि इसे लोगों के सामने आने से रोकने के लिए उन्हें रमणीक तलवार को नोटिस देना पड़ा है ।
तस्वीर को देखें तो पहली ही नजर में यह स्पष्ट हो जाता है कि इस तस्वीर को खिंचवाते समय मुकेश अरनेजा ज्यादा उत्साहित हैं, न की दीपक गुप्ता । मुकेश अरनेजा ने जिस तरह दीपक गुप्ता को अपनी बाँह के घेरे में कसा हुआ है, उससे साफ आभास मिल रहा है कि दीपक गुप्ता को अपने नजदीक पाकर मुकेश अरनेजा बहुत खुश, गर्व से भरे हुए और उत्साह व आश्वस्ति से परिपूर्ण महसूस कर रहे हैं । मुकेश अरनेजा को हालाँकि झूठी मुस्कराहट का बड़ा ऊँचा खिलाड़ी माना जाता है, और उनके इस खिलाड़ीपने ने लोगों के बीच उनकी भूमिका को संदेहास्पद ही बनाया है और लोगों के लिए यह समझना मुश्किल होता है कि वह दिखा क्या रहे हैं और उनके मन में क्या होगा ? इसीलिए इस तस्वीर को देख कर यह समझना आसान नहीं है कि वह खुद को दीपक गुप्ता के नजदीक पाकर सचमुच उल्लास से भर गए और विभोर हो उठे या उनके जो भाव नजर आ रहे हैं, वह उनका एक नाटक भर है । तस्वीर को सार्वजनिक करने पर नोटिस दे कर मुकेश अरनेजा ने मामले को और रहस्यपूर्ण बना दिया है ।
रमणीक तलवार को नोटिस देने के साथ ही मुकेश अरनेजा ने कुछेक लोगों के बीच दावा किया है कि अब वह ऐसे लोगों को सबक सिखाना शुरू करेंगे जो रोटरी में उनके विरोधी हैं । मुकेश अरनेजा ने कुछेक लोगों को कहा/बताया है कि वकील आशीष माखीजा को उन्होंने जेके गौड़ की डिस्ट्रिक्ट टीम में महत्वपूर्ण पद दिलवाया ही इसलिए है ताकि वह लोगों को सबक सिखाने की अपनी कार्रवाई में उनकी मदद ले सकें । रमणीक तलवार को नोटिस देकर मुकेश अरनेजा ने लगता है कि अपने कहे हुए पर अमल करना शुरू कर दिया है । रमणीक तलवार ने मुकेश अरनेजा को जबाव तो तगड़ा दिया है, जिसके बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि मुकेश अरनेजा इस मामले को अब आगे कैसे बढ़ाते हैं ?

Sunday, November 23, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में समर्थकों की प्रभावी टीम और कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के समर्थन तथा अनुकूल रणनीतिक पहलुओं के बावजूद सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए संदीप सहगल की उम्मीदवारी को अशोक अग्रवाल से तगड़ी चुनौती मिलती दिख रही है

लखनऊ । संदीप सहगल की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी की बागडोर थामने/थमाने को लेकर उनके समर्थक नेताओं के बीच जिस तरह की अफरातफरी मची हुई है, उसे देख/जान कर संदीप सहगल की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच खासी चिंता पैदा हुई है और उन्होंने हालात को सँभालने की जरूरत पर ध्यान दिया है । गुरनाम सिंह की प्रेशर-टैक्टिक से निपटने के लिए भी संदीप सहगल के समर्थक/शुभचिंतक कच्चे खिलाड़ी साबित हो रहे हैं, जिसके चलते उनका अभियान अपनी संगठित शक्ति को संचालित करने के मामले में न सिर्फ पिछड़ रहा है, बल्कि अपनी शक्ति को बिखरता हुआ भी पा रहा है । गुरनाम सिंह ने पिछले दिनों इस बात को जोर-शोर से प्रचारित किया कि नीरज बोरा अगले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी के लिए समर्थन लेने के बदले में मौजूदा लायन वर्ष में अशोक अग्रवाल का समर्थन करने के लिए तैयार हो गए हैं । उनकी इस बात को सच माना जाये, इसके लिए गुरनाम सिंह ने 'सुबूत' भी दे दिया और वह यह कि - इसीलिए तो संदीप सहगल के लिए नीरज बोरा न तो कहीं आ जा रहे हैं और न ही किसी को फोन कर रहे हैं । गुरनाम सिंह की यह दूसरी बात चूँकि सच है, इसलिए पहली वाली झूठी बात भी लोगों को सच-सी दिखने लगी । एके सिंह के समर्थन का सौदा तो गुरनाम सिंह ने पिछले वर्ष विशाल सिन्हा के लिए ही कर लिया था; लेकिन फिर भी उन्होंने अगले वर्ष प्रस्तुत होने वाली एके सिंह की उम्मीदवारी के समर्थन के बदले में अशोक अग्रवाल के लिए समर्थन जुटाने का जो दाँव चला है, तो यह उनकी तरकीब का ही एक नमूना है । गौरतलब है कि गुरनाम सिंह इसी तरह की बातों से लोगों को उलझाये रखते हैं । यह तो उनके प्रतिद्धंद्धियों को देखना है कि वह उनकी  इस तरह की तरकीबों से कैसे निपटें ?
नीरज बोरा को लेकर गुरनाम सिंह ने जो दाँव चला उसके चलते संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता जिस तरह बचाव करते हुए दिखे हैं, उससे साबित सिर्फ यह हुआ है कि वह गुरनाम सिंह की राजनीतिक तरकीबों को समझ नहीं रहे हैं, और उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहे हैं - और इसीलिए उनसे निपटने की उन्होंने कोई व्यवस्था ही नहीं की है । अब यदि यह सच है कि नीरज बोरा, संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं तो साथ ही साथ सच यह भी है कि नीरज बोरा समर्थन में कुछ करते हुए 'दिख' नहीं रहे हैं । नीरज बोरा की व्यस्तताएँ चूँकि अलग हैं और लायन राजनीति में उनकी ज्यादा सक्रियता नहीं रहती है, इसलिए वह यदि कुछ करते हुए नहीं 'दिख' रहे हैं तो यह बहुत स्वाभाविक ही है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को चाहिए था कि वह इस हकीकत को पहचानें और यह तय करें कि वह किस तरह नीरज बोरा का समर्थन संदीप सहगल के साथ 'दिखाएँ' - वह ऐसा करने में चूक गए, जिसका फायदा उठाने में गुरनाम सिंह ने कोई चूक नहीं की । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक/शुभचिंतक यह मानते/समझते रहे कि जहाँ वीएस दीक्षित और शिव कुमार गुप्ता खड़े दिखेंगे, वहाँ नीरज बोरा को ही खड़ा देखा जायेगा, क्योंकि लायन राजनीति की पॉवर ऑफ अटॉर्नी नीरज बोरा ने इन्हें सौंप दी हुई हुई है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक/शुभचिंतक नेता यह समझने में चूक कर बैठे कि लायन राजनीति पॉवर ऑफ अटॉर्नी के भरोसे नहीं हो सकती है; और यहाँ सीधी सक्रियता ही काम करती है : सीधी सक्रियता यदि संभव नहीं हो पा रही हो तो उसका आभास या प्रतीकात्मक संकेत तो कम-अस-कम हो ।
चूँकि यह नहीं हो सका, तो उसका फायदा गुरनाम सिंह ने उठाया । गुरनाम सिंह ने गफलत पैदा करने का काम किया, तो अशोक अग्रवाल ने उस गफलत के बीच अपने लिए पैठ बनाने और समर्थन जुटाने का काम किया । अशोक अग्रवाल का लोगों के साथ चूँकि पुराना परिचय है; अशोक अग्रवाल लोगों को और लोग अशोक अग्रवाल को चूँकि नजदीक से जानते/पहचानते हैं और समय समय पर एक दूसरे को बरतते/परखते रहे हैं, इसलिए लोगों के साथ विश्वास का संबंध बना लेना उनके लिए आसान पड़ता है । शाहजहाँपुर चूँकि लखनऊ से ज्यादा दूर नहीं है, इसलिए भी लखनऊ के लोगों के बीच पैठ बनाना उनके लिए आसान पड़ता है । संदीप सहगल के नजदीकी और समर्थक भी मानते/समझते तथा कहते हैं कि भौगोलिक दूरी के कारण उनके लिए लखनऊ के लोगों के साथ वैसी कैमिस्ट्री बना पाना मुश्किल हो रहा है, जैसे कैमिस्ट्री अशोक अग्रवाल की लखनऊ के लोगों के साथ है । इससे जाहिर है कि संदीप सहगल के नजदीकियों और समर्थकों को यह तो पता है कि समस्या और चुनौतियाँ क्या क्या हैं - लेकिन उनसे निपटने की कोई कारगर कोशिश उनकी तरफ से होती हुई नहीं दिख रही है ।
यह कारगर कोशिश इसलिए भी होती हुई नहीं दिख रही है क्योंकि अभी तक इसी बात को लेकर असमंजस बना हुआ है कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी की बागडोर हो किसके हाथ में ? एक तरह से देखें तो नजारा यह दिख रहा है कि संदीप सहगल की सेना बिना सेनापति के लड़ रही है । संदीप सहगल के समर्थकों का ही नहीं, दूसरे कई लोगों का भी मानना और कहना है कि रणनीतिक पहलुओं से संदीप सहगल की स्थिति बहुत अच्छी है, लेकिन इस अच्छी स्थिति का फायदा उठाने के लिए जिस कार्य योजना को अपनाने की और जिस तरह का तंत्र निर्मित किए जाने की जरूरत है - उस पर या तो ध्यान नहीं दिया जा पा रहा है और या उसे क्रियान्वित नहीं किया जा पा रहा है । अशोक अग्रवाल के साथ उनके समर्थकों की टीम भले ही न दिख रही हो, लेकिन उनके और उनके समर्थक नेताओं के बीच जो तालमेल बना है और उस तालमेल के साथ वह अपना अपना काम करते हुए जिस तरह दिख रहे हैं, उससे उनकी उम्मीदवारी संदीप सहगल की उम्मीदवारी के लिए गंभीर चुनौती तो बनी ही है । संदीप सहगल के साथ समर्थकों की एक प्रभावी टीम लगी हुई दिख रही है और कई एक पूर्व गवर्नर का समर्थन भी उन्हें मिल रहा है, किंतु उनके बीच तालमेल के अभाव के चलते वह ऐसा असर बनाते हुए अभी तो नहीं दिख रहे हैं जैसा असर अनुकूल स्थितियों को देखते हुए उनका होना चाहिए । दरअसल इसीलिए गुरनाम सिंह को गफलत पैदा करने का मौका मिल रहा है और यही बात संदीप सहगल तथा उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के लिए गंभीर चुनौती की तरह तो है ही - साथ ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को दिलचस्प भी बनाये हुए है ।

Saturday, November 22, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी क्लब फरीदाबाद एनआईटी के वरिष्ठ सदस्य विनय भाटिया की तैयारी ने अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी सुगबुगाहट को शुरू कर दिया है

नई दिल्ली । सुधीर मंगला के गवर्नर-काल की होने जा रही पेम वन के आयोजन की जिम्मेदारी निभाने के साथ-साथ फरीदाबाद के क्लब्स ने जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए रोटरी क्लब फरीदाबाद एनआईटी के वरिष्ठ सदस्य विनय भाटिया की मुट्ठियाँ बँधवा/तनवा दी हैं, उससे फरीदाबाद के सक्रिय और प्रभावी रोटेरियंस के मैच्योर होने का संकेत मिला है । उल्लेखनीय है कि पेम वन से अगले रोटरी वर्ष के कार्यकलापों का एक आभासी परिचय मिलना शुरू हो जाता है । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का कार्यभार सँभालने वाले - अगले रोटरी वर्ष में क्लब अध्यक्ष पद का कार्यभार सँभालने वाले लोगों से पेम वन में जब एक साथ मिलते हैं, तो अगले रोटरी वर्ष में होने वाले आयोजनों का एक खाका-सा तैयार होने लगता है । इस मौके का फायदा अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की इच्छा रखने वाले रोटेरियंस भी उठाते हैं और वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों को अपनी संभावित प्रस्तावित उम्मीदवारी से परिचित तो कराते ही हैं, साथ ही लोगों पर यह छाप भी छोड़ते हैं कि वह अपने काम, अपनी आकांक्षाओं और अपने सपनों के प्रति वास्तव में कितने गंभीर हैं । 
अगले रोटरी वर्ष में विनय भाटिया की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने की दबी-छुपी सी चर्चा यूूँ तो पहले से थी, लेकिन विनय भाटिया या उनके क्लब या फरीदाबाद के रोटेरियंस की तरफ से कोई साफ संकेत नहीं मिल रहे थे । इस कारण विनय भाटिया की उम्मीदवारी को लेकर संशय भी बना हुआ था । इस संशय को फरीदाबाद के रोटेरियंस के बीच चलती रहने वाली उठापटक की खबरों से भी हवा मिल रही थी । प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 के कुछेक लोग अपने अपने राजनीतिक स्वार्थों के चलते और कुछेक लोग अपने अपने स्वभावों से 'मजबूर' होने के कारण इस संशय को हवा दे भी रहे थे । हालाँकि यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं थी कि दूसरे लोग क्या कर रहे हैं, या क्या नहीं कर रहे हैं; महत्वपूर्ण बात यह थी कि खुद विनय भाटिया क्या कर रहे हैं ? प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 की पेम वन की घोषणा होते ही लेकिन जिस तरह विनय भाटिया की संभावित उम्मीदवारी की तैयारी की बात सामने आई है, उससे एक बात तो साबित हुई ही है कि विनय भाटिया और उनके समर्थक व शुभचिंतक उनकी उम्मीदवारी को लेकर सचमुच में गंभीर हैं और टाइमिंग का पूरा-पूरा ध्यान रखे हुए हैं ।
पेम वन से पहले, अपनी उम्मीदवारी को लेकर विनय भाटिया ने न सिर्फ अपनी पक्की राय बना ली; बल्कि अपनी उम्मीदवारी को लेकर फरीदाबाद में भी सभी लोगों से हरी झंडी प्राप्त कर ली । फरीदाबाद में चूँकि कुछेक और रोटेरियंस को संभावित उम्मीदवारों के रूप में देखा/पहचाना जाता है, इसलिए विनय भाटिया ने यह स्पष्टता कर लेना जरूरी समझा कि अगले रोटरी वर्ष में फरीदाबाद से कोई और तो उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के बारे में नहीं सोच रहा है । विनय भाटिया का कहना था कि फरीदाबाद से एक ही उम्मीदवार आना चाहिए जिससे कि फरीदाबाद के रोटेरियंस बँटे हुए न दिखाई दें । विनय भाटिया ने इस सच्चाई को भी अच्छे से समझ लिया कि उन्हें सिर्फ फरीदाबाद के लोगों का या सिर्फ उनके ही भरोसे गवर्नर नहीं बनना है, बल्कि दिल्ली और गुड़गाँव क्षेत्र के लोगों का भी सहयोग और समर्थन चाहिए होगा - लिहाजा उन्होंने दिल्ली और गुड़गाँव क्षेत्र के प्रमुख लोगों से भी सहयोग और समर्थन का आश्वासन ले लिया । विनय भाटिया की पिछले चार-पाँच वर्षों में डिस्ट्रिक्ट में जिस तरह की सक्रियता रही है उसके चलते डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनकी अच्छी पहचान और साख बनी ही है और इसका फायदा उन्हें अपनी उम्मीदवारी के लिए सहयोग व समर्थन का आश्वासन लेने में मिला भी । 
रोटरी फाउंडेशन के लिए पिछले दिनों फरीदाबाद में उम्मीद और लक्ष्य से ज्यादा रकम इकठ्ठा करवाने में विनय भाटिया की जिस तरह की संलग्नता रही, पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता उससे परिचित थे ही - इसलिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी की बात ने उन्हें उत्साहित ही किया । पिछले रोटरी वर्ष में हुए सीओएल के चुनाव में विनय भाटिया ने जिस तरह से आशीष घोष की उम्मीदवारी के लिए फील्डिंग की, उससे उन्हें आशीष घोष वाले खेमे में स्वीकार्यता मिली है । अमित जैन ने तो उन्हें अपना असिस्टेंट गवर्नर ही बनाया था । विनय भाटिया की विनोद बंसल के साथ जैसी जो कैमिस्ट्री रही है, उसके कारण तो उन्हें विनोद बंसल के 'ब्ल्यू आईड बॉय' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । विनोद बंसल ने तो विनय भाटिया की उम्मीदवारी का झंडा बाकायदा उठा लिया है । लोगों को कहते हुए सुना भी गया है कि विनय भाटिया की उम्मीदवारी को लेकर विनय भाटिया से ज्यादा उत्साहित और सक्रिय तो विनोद बंसल हैं । पेम वन के आयोजन तक, अगले रोटरी वर्ष में प्रस्तुत होने वाली उम्मीदवारी को लेकर विनय भाटिया ने इस तरह जैसी जो तैयारी की है उससे वह अपने आप को एक गंभीर उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत करने में कामयाब रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों का लेकिन मानना और कहना है कि यह तो अभी तैयार होने भर का मामला है - असली खेल तो अभी शुरू होना है । असली खेल तब शुरू होगा, जब दूसरे उम्मीदवार सामने आयेंगे । अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वर्ष होने वाले दो चुनावों में जो दो लोग सफल नहीं हो पायेंगे, उनसे विनय भाटिया का मुकाबला हो सकता है । रोटरी क्लब दिल्ली मेगापोलिस के रवि दयाल का नाम भी अगले रोटरी वर्ष के संभावित उम्मीदवार के रूप में सुना जाता है । हालाँकि उनके नाम को लेकर लोगों के बीच कोई विश्वसनीयता नहीं बन पा रही है - क्योंकि पिछले वर्षों में उनका नाम तो कई बार आया, लेकिन उनकी उम्मीदवारी नहीं आई । रवि दयाल से परिचित लोगों का मानना और कहना है कि रवि दयाल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए पूरी तरह परफेक्ट हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद तक पहुँचने के लिए पहले उम्मीदवार बनना पड़ेगा - जो 'बनने' की वह हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं । रवि दयाल के कुछेक नजदीकियों का हालाँकि दावा है कि अब की बार वह अवश्य ही उम्मीदवार बनने की हिम्मत करेंगे । रवि दयाल के अन्य कुछेक नजदीकियों तथा समर्थकों/शुभचिंतकों का लेकिन मानना और कहना है कि रवि दयाल के लिए उम्मीदवार हो सकना बड़ा मुश्किल है । सचमुच क्या होगा, यह जल्दी ही पता लग जायेगा । किंतु इतना पक्का हो गया है कि अगले रोटरी वर्ष में रोटरी क्लब फरीदाबाद एनआईटी के वरिष्ठ सदस्य विनय भाटिया अवश्य ही उम्मीदवार होंगे । विनय भाटिया की तैयारी ने डिस्ट्रिक्ट 3011 में अगले रोटरी वर्ष की चुनावी सुगबुगाहट को शुरू कर दिया है ।

Friday, November 21, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर तथा भावी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई के द्धारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी को लिखे धमकी भरे पत्र से दीपक बाबू एंड कंपनी को कॉलिज ऑफ गवर्नर्स को 'ब्लैकमेल' करने का मौका मिला

मेरठ । मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर तथा भावी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ने डिस्ट्रिक्ट 3100 के हालात पर जो संज्ञान लिया है और जिस कठोरता के साथ डिस्ट्रिक्ट लीडर्स पर समस्या( ओं ) को हल करने के लिए दबाव डाला है, उसमें दीपक बाबू एंड कंपनी को डिस्ट्रिक्ट के लीडर्स को 'ब्लैकमेल' करने का मौका मिल गया है । दीपक बाबू एंड कंपनी ने डिस्ट्रिक्ट लीडर्स को इस तरह के फिलर्स भेजे हैं कि डिस्ट्रिक्ट को यदि बचाना है तो दीपक बाबू को वर्ष 2016-17 का गवर्नर बनाओ । दीपक बाबू एंड कंपनी की यह माँग थोड़ी न्यायपूर्ण भी लगे तथा इसे दूसरे लोगों का भी समर्थन मिल सके, इसके लिए उन्होंने फार्मूला दिया है कि उनके बाद, यानि वर्ष 2017-18 में दिवाकर अग्रवाल को गवर्नर बनवा दो । वर्ष 2017-18 के लिए जिन चार लोगों की उम्मीदवारी प्रस्तुत हुई है, उनके लिए दीपक बाबू एंड कंपनी का सुझाव है कि उन्हें समझा-बुझा कर उनकी उम्मीदवारी को वापस करवा दिया जाये । दीपक बाबू एंड कंपनी का यह फार्मूला ऊपर-ऊपर से देखें तो बड़ा अच्छा लगता है और ऐसा लगता है कि इसे मान लेने के बाद डिस्ट्रिक्ट में सौहार्द की और भाईचारे की हवा बहने लगेगी - लेकिन इस फार्मूले को अपनाने में एक बड़ी समस्या यह है कि इससे रोटरी इंटरनेशनल के फैसले का अपमान होता है । उल्लेखनीय है कि रोटरी इंटरनेशनल ने हाल में लिए अपने एक फैसले में माना है कि वर्ष 2016-17 के लिए पिछले रोटरी वर्ष में हुए चुनाव में दीपक बाबू ने वोटों की खरीद-फ़रोख्त करके जीत प्राप्त की थी और इस बिना पर उस चुनाव को अमान्य घोषित करने के साथ ही यह फैसला भी दिया कि वर्ष 2016-17 के लिए दोबारा होने वाले चुनाव में दीपक बाबू उम्मीदवार नहीं होंगे । रोटरी इंटरनेशनल के इस फैसले के आलोक में वर्ष 2016-17 में दीपक बाबू गवर्नर हो ही नहीं सकते हैं ।
रोटरी के आदर्शों, रोटरी के नियम-कानूनों, रोटरी भावना को उम्मीदवार के रूप में लगातार ठेंगा दिखाते रहे दीपक बाबू रोटरी इंटरनेशनल के इस फैसले को भी ठेंगा दिखाने के तेवर दिखा रहे हैं । उनके द्धारा प्रस्तुत फार्मूले में उन्हें एक संशोधन सुझाया गया कि वर्ष 2016-17 में दिवाकर अग्रवाल को और उसके अगले वर्ष में उन्हें, यानि दीपक बाबू को गवर्नर बना लिया जाये - जिससे कि रोटरी इंटरनेशनल का मान भी रह जायेगा । दीपक बाबू एंड कंपनी ने लेकिन इस सुझाव को सिरे से नकार दिया है । दीपक बाबू एंड कंपनी ने साफ कर दिया है कि वर्ष 2016-17 के लिए दीपक बाबू को यदि गवर्नर नहीं 'चुना' गया तो वह डिस्ट्रिक्ट को ही बंद करवा देंगे । डिस्ट्रिक्ट को बंद करवा देने का हौंसला उन्हें मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर तथा भावी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई द्धारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी को लिखे धमकी भरे उस पत्र से मिला है, जिसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी को साफ साफ बता दिया गया है कि अब यदि उनके डिस्ट्रिक्ट से रोटरी इंटरनेशनल को चुनाव संबंधी कोई शिकायत मिली तो डिस्ट्रिक्ट के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी - जिसमें डिस्ट्रिक्ट को बंद कर देना भी हो सकता है । दीपक बाबू एंड कंपनी का कहना है कि यदि दीपक बाबू को वर्ष 2016-17 के लिए डिस्ट्रक्ट गवर्नर मंजूर नहीं किया गया तो वह वर्ष 2016-17 के लिए दोबारा होने वाले चुनाव में दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को रोकने के लिए रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करेंगे, जिसके बाद डिस्ट्रिक्ट बंद होता हो तो उनकी बला से बंद हो जाये ।
दीपक बाबू एंड कंपनी को शिकायत करने से रोकने के लिए कुछेक लोगों की तरफ से यह सुझाव भी आया कि वर्ष 2016-17 के लिए दीपक बाबू की उम्मीदवारी पर तो रोटरी इंटरनेशनल ने प्रतिबन्ध लगा दिया है; ऐसे में यदि दोबारा होने वाले चुनाव में दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को भी प्रस्तुत न होने दिया जाये या उसे न मंजूर किया जाये तो हो सकता है कि दीपक बाबू के कलेजे को ठंडक मिले और उनकी तरफ से शिकायत दर्ज न हो । दीपक बाबू एंड कंपनी को यह सुझाव भी मंजूर नहीं है - उनका कहना है कि दोबारा होने वाले चुनाव में दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को रोकने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पास चूँकि कोई वैधानिक अधिकार नहीं है इसलिए इस सुझाव का अमल में आ पाना ही संभव नहीं है; और यह सुझाव सिर्फ उन्हें झाँसा देने के लिए ही दिया जा रहा है । दीपक बाबू को यह डर भी है कि दिवाकर अग्रवाल यदि अभी गवर्नर नहीं बने तो आगे उनके साथ उन्हें चुनाव में फिर जूझना पड़ सकता है; दिवाकर अग्रवाल  के साथ वह दोबारा चुनाव के पचड़े में पड़ना नहीं चाहते हैं । लगता ऐसा है कि दिवाकर अग्रवाल भी दोबारा से उनके साथ चुनाव से बचना चाहते हैं - इसीलिए उनकी तरफ से दीपक बाबू एंड कंपनी द्धारा प्रस्तुत किए जा रहे फार्मूले को स्वीकार करने के संकेत दिए जा रहे हैं । इससे दीपक बाबू एंड कंपनी के हौंसले और बुलंद हुए हैं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी लेकिन ऐसे किसी फार्मूले को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं, जो रोटरी इंटरनेशनल के फैसले की अवमानना करता दिख रहा हो । कुछेक लोगों को लगता है कि संजीव रस्तोगी कोई ऐसा फैसला होने ही नहीं देना चाहते हैं जिससे कि चुनाव की संभावना ख़त्म होती हो; वह चुनाव होते हुए देखना चाहते हैं ताकि उनकी कॉन्फ्रेंस अच्छे से हो सके । लेकिन बात सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी की ही नहीं है, डिस्ट्रिक्ट का कोई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर भी ऐसे किसी फार्मूले को समर्थन देता हुआ नहीं नजर आ रहा है जो रोटरी इंटरनेशनल के फैसले के खिलाफ जाता दिखता हो । मौजूदा इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर तथा भावी इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ने कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग बुलाने का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी को जो निर्देश दिया है, उस पर अमल करते हुए संजीव रस्तोगी ने 23 नवंबर को मेरठ में कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग बुला ली है तथा यह संकेत दे दिया है कि डिस्ट्रिक्ट के हालात को लेकर कॉलिज ऑफ गवर्नर्स जो तय करेंगे, उस पर रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों की सलाहानुसार वह कार्रवाई करेंगे । कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों - यानि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से अभी जो कुछ सुनने को मिल रहा है, उससे तो लग रहा है कि सारे मामले को लेकर वह खुद असमंजस में हैं । उन्हें असमंजस में पा/देख कर ही दीपक बाबू एंड कंपनी ने अपने तेवर और कड़े कर लिए हैं तथा यह दबाव बनाने में जुट गए हैं कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स उनके द्धारा बताये जा रहे फार्मूले को स्वीकार करे और रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों को इस बात के लिए राजी करे कि डिस्ट्रिक्ट को बचाये रखने के लिए यही एक फार्मूला है । कॉलिज ऑफ गवर्नर्स दीपक बाबू एंड कंपनी की इस 'ब्लैकमेलिंग' के आगे झुकेंगे या नहीं और डिस्ट्रिक्ट को बचाने के लिए क्या फैसला करेंगे - यह 23 नवंबर की शाम तक पता चलेगा ।

Wednesday, November 19, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में चार्टर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने जा रहे जेके गौड़ के पूरी तरह समर्पण कर देने से मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के लिए शरत जैन की उम्मीदवारी को सफल बनाने वास्ते डिस्ट्रिक्ट टीम के पदों की सौदेबाजी करना आसान हुआ

गाजियाबाद । शरत जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद का चुनाव जितवाने के लिए मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल जैसे उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने जो व्यूह रचना की है, उसमें गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस को उपेक्षित और अपमानित होने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है । अगले रोटरी वर्ष की जेके गौड़ की गवर्नर-काल की टीम के जिन थोड़े से सदस्यों के नाम घोषित किए गए हैं, उनमें तो गाजियाबाद तथा उत्तर प्रदेश के लोगों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं ही मिला है; टीम के कुछेक और नाम घोषित करके बाकी महत्वपूर्ण लोगों को भी सम्मान देने का काम नहीं किया गया । आरोप है कि ऐसा इसलिए नहीं किया गया ताकि टीम के उन पदों के जरिये शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु सौदेबाजी की जा सके ।
इस उपेक्षापूर्ण और अपमानजनक रवैये के लिए गाजियाबाद तथा उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस के बीच जेके गौड़ के प्रति खासतौर से रोष व नाराजगी है । यहाँ के रोटेरियंस याद करते हुए कहते/बताते हैं कि जेके गौड़ जब उम्मीदवार बने थे तब यहाँ के लोगों के बीच वायदा और दावा किया करते थे कि उनके गवर्नर-काल में गाजियाबाद व उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस को खास तवज्जो मिलेगी और तमाम फैसले उनसे सलाह करके ही होंगे । लेकिन अब जब अपने वायदों और दावों पर सचमुच में अमल करने का मौका आया है तो जेके गौड़ का रवैया पूरी तरह से बदला हुआ है । जेके गौड़ के गवर्नर-काल में खास तवज्जो मिलने का इंतजार कर रहे गाजियाबाद के प्रमुख लोगों की ड्यूटी अपने पहले आयोजन - पेम वन में जेके गौड़ ने खाने का इंतजाम करने/देखने में लगाई हुई थी ।
जेके गौड़ के इस व्यवहार को देख कर एक नए डिस्ट्रिक्ट के रूप में रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के बनने और इसके पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जेके गौड़ के कार्यभार सँभालने से गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस के बीच जो भारी उत्साह था, वह हवा हो गया है । जेके गौड़ ने जिस तरह से मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के आगे समर्पण कर दिया है, उसे देखकर गाजियाबाद व उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस को तगड़ा झटका लगा है । पेम वन में जिस तरह से जेके गौड़ तो कम बोले, रमेश अग्रवाल ही लोगों को यह बताने में लगे रहे कि 'यह करेंगे', 'वह करेंगे' - उससे ऐसा लगा जैसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ नहीं, बल्कि रमेश अग्रवाल हैं । गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस ने यह मान लिया है कि नए डिस्ट्रिक्ट में उनकी हिस्सेदारी का अनुपात बढ़ने के बावजूद उनकी हैसियत दोयम दर्जे की ही रहेगी और उन्हें मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल जैसे लोगों की कृपा पर ही रहना पड़ेगा । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल आज जेके गौड़ के जरिये जिस तरह डिस्ट्रिक्ट पर 'राज' कर रहे हैं, उस 'राज' को बनाये रखने के लिए उन्हें शरत जैन को जितवाना जरूरी लग रहा है - ताकि कल वह शरत जैन के जरिये डिस्ट्रिक्ट पर अपना कब्ज़ा बनाये रख सकें ।
जेके गौड़ के गवर्नर-काल के पदों पर नियुक्तियों को दरअसल इसीलिए टाला हुआ है, जिससे कि शरत जैन की जीत को सुनिश्चित किया जा सके । उनके अपने लोगों के अनुसार, इसके लिए दोतरफा रणनीति बनाई गई है । नोमीनेटिंग कमेटी में यदि शरत जैन का नाम अधिकृत उम्मीदवार के रूप में नहीं चुना गया तो चेलैंज करने के लिए कॉन्करेंस जुटाने और फिर वोट जुटाने के लिए उन पदों की सौदेबाजी की जायेगी; विपरीत स्थिति में, यानि नोमीनेटिंग कमेटी में शरत जैन के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने की स्थिति में प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार दीपक गुप्ता को कॉन्करेंस न मिल सकें उसके लिए उन पदों का सौदा किया जायेगा । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल का कहना है कि वह गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस को खूब जानते/समझते हैं; उन्हें अच्छे से पता है कि गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस के साथ चाहें जैसा व्यवहार कर लो, उन्हें चाहें कितना ही अपमानित कर लो - लेकिन फिर उन्हें कुछ दे दो, वह ठीक हो जाते हैं । इसी फार्मूले से वह अभी तक भी इस्तेमाल होते रहे हैं, और आगे भी होते रहेंगे । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने अपने अपने गवर्नर-काल में - तथा उसके बाद में भी जिन-जिन क्लब्स को और रोटेरियंस को परेशान किया और अपमानित किया, उन सभी को पदों का लॉलीपॉप दिखा कर पटा लेने का उन्हें पूरा-पूरा भरोसा है । जेके गौड़ को भी उन्होंने यही समझाया है कि गाजियाबाद में और या उत्तर प्रदेश में कोई यदि नाराज होता दिखता है तो परेशान मत होना, उसे कैसे पटाना है यह हमें पता है । जेके गौड़ को भी इस बात का पता है और इसीलिए अपनी पेम वन में उन्होंने गाजियाबाद व उत्तर प्रदेश के रोटेरियंस को उपेक्षित तथा अपमानित करने वाली स्थितियों को बनाने/रचने से जरा भी परहेज नहीं किया ।
मजे की बात यह है कि यह जो कुछ भी हो रहा है उसमें फजीहत कुल मिलाकर जेके गौड़ की ही हो रही है - उन्होंने जिस तरह से मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के सामने समर्पण किया हुआ है उसके चलते लोगों को यह कहने का मौका मिला है कि जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लायक दरअसल हैं नहीं; और इसलिए ही मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल उन्हें 'दबोच' लेने में कामयाब हुए हैं । जेके गौड़ से हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि जेके गौड़ के सामने हालाँकि सुनहरा मौका था कि वह अपनी टीम बनाते और खुद से फैसले लेते हुए 'दिखते' - ऐसा वह कर सकते थे; लेकिन पता नहीं वह क्यों इतना मजबूर हैं कि मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के सामने समर्पण ही कर बैठे हैं । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने जेके गौड़ के गवर्नर-काल को शरत जैन की उम्मीदवारी को सफल बनाने के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, जिससे जेके गौड़ के गवर्नर-काल का कबाड़ा होना तथा जेके गौड़ की फजीहत होना निश्चित ही माना जा रहा है । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के सामने समस्या यह है कि शरत जैन की उम्मीदवारी को सफल बनाने के लिए जेके गौड़ के गवर्नर-काल के पदों की सौदेबाजी का ही सहारा उनके पास बचा रह गया है ।

Saturday, November 15, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में रोटरी इंटरनेशनल से हरी झंडी मिलने के फलस्वरूप डिस्ट्रिक्ट गवर्नर द्धारा स्वीकार किए जाने के बाद भी दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी जिस तरह से निरस्त हुई है, उससे योगेश मोहन गुप्ता द्धारा समर्थित राजीव सिंघल की उम्मीदवारी आशंका में घिर गई है

मेरठ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत रोटरी क्लब मेरठ साकेत के राजीव सिंघल की उम्मीदवारी को लेकर उठे विवाद ने डिस्ट्रिक्ट को एक बार फिर पिछले रोटरी वर्ष जैसी स्थितियों में पहुँचा दिया है । उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष में दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि पायलट प्रोजेक्ट के नियम का उल्लंघन करते हुए वह गवर्नर टीम का हिस्सा बने और उनका नाम-पता-फोटो डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में छपा । ठीक इसी तर्क से, इस वर्ष राजीव सिंघल की उम्मीदवारी सवालों के घेरे में है । पिछले वर्ष डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में दिवाकर अग्रवाल का नाम-पता-फोटो तो एक जगह ही छपा था; इस वर्ष की डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में राजीव सिंघल का नाम-पता-फोटो तो दो जगह छपा है । राजीव सिंघल का कहना है कि उनका मामला दिवाकर अग्रवाल के मामले से बिलकुल अलग है; और दूसरी बात यह कि उनकी उम्मीदवारी को रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने स्वीकार्यता दे दी है तथा उस स्वीकार्यता के बाद ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने उनकी उम्मीदवारी को मंजूर कर लिया है ।
चूँकि हर मामला अपने आप में अलग ही होता है, इसलिए दिवाकर अग्रवाल और राजीव सिंघल के मामले में भी बहुत कुछ अलग अलग होगा ही - किंतु दोनों मामलों में एक बात समान है और वह यह कि पिछले रोटरी वर्ष में भी दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करने से पहले तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से सलाह माँगी थी और वहाँ से हरी झंडी मिलने के बाद ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने उनकी उम्मीदवारी को स्वीकार किया था । इस बार भी ऐसा ही हुआ है । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से हरी झंडी मिलने के बाद स्वीकार होने के बावजूद दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी जिस तरह सवालों के घेरे में बनी रही थी, उसी तरह राजीव सिंघल की उम्मीदवारी भी सवालों के घेरे में हैं । दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी रोटरी इंटरनेशनल से हरी झंडी मिलने - और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर द्धारा स्वीकार किए जाने के बाद भी फजीहत में फँसी रही और फिर रोटरी इंटरनेशनल द्धारा ही जिस तरह से निरस्त हुई - उससे राजीव सिंघल की उम्मीदवारी को लेकर आशंका बनी हुई है ।
यह आशंका इसलिए और बलवती है क्योंकि देखा/माना यह जा रहा है कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को रोटरी इंटरनेशनल ने दूसरी बार के अपने फैसले में तथ्यों को मद्देनजर रखते हुए नहीं, बल्कि 'न्याय' में बैलेंस बनाने/दिखाने के लिए निरस्त किया । सीओएल के चुनाव वाले मामले में ललित मोहन गुप्ता के साथ भी इसी तरह का बैलेंस बनाने/दिखाने के चक्कर में नाइंसाफी हुई है । इसलिए ही रोटरी इंटरनेशनल से फ़िलहाल हरी झंडी मिलने के बाद भी राजीव सिंघल की उम्मीदवारी पर तलवार को लटकी हुई ही देखा/पहचाना जा रहा है । ऐसा इसलिए भी है क्योंकि राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के पीछे योगेश मोहन गुप्ता को देखा/पहचाना जा रहा है - रोटरी इंटरनेशनल के बड़े नेताओं बीच जिनकी बड़ी बदनामी है । इसीलिए राजीव सिंघल से हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में नाम-पता-फोटो प्रकाशित होने का जो झमेला है, उसके चलते राजीव सिंघल को इस वर्ष अपनी उम्मीदवारी को छोड़ ही देना चाहिए - अन्यथा हो सकता है कि पाते पाते भी उन्हें कुछ न मिले ।
राजीव सिंघल की उम्मीदवारी को पचड़े में फँसा पाकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के बाकी उम्मीदवार अपनी अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिशों में जुट गए हैं - हालाँकि उनके सामने भी समस्याएँ और मुसीबतें कम नहीं हैं । रोटरी क्लब मुरादाबाद मिडटाउन के मनोज कुमार को मुरादाबाद से अकेले उम्मीदवार होने का फायदा मिल सकता था, लेकिन उन्हें चूँकि दीपक बाबू के कैम्प का आदमी माना जाता है और दीपक बाबू के कैम्प की हालत इन दिनों चूँकि खासी पतली है इसलिए मनोज कुमार के लिए ज्यादा मौका दिख नहीं रहा है । रोटरी क्लब मेरठ कॉसमॉस के संजय अग्रवाल की बदकिस्मती यह है कि उन्हें 'अपनों' का ही साथ/समर्थन मिलता हुआ नहीं दिख रहा है । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एमएस जैन हालाँकि उन्हीं के क्लब के हैं, लेकिन उन्हें संजय अग्रवाल की बजाये रोटरी क्लब सिकंदराबाद के दिनेश शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थन में देखा/पहचाना जा रहा है । संजय अग्रवाल को इससे भी तगड़ा झटका मिला है डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुनील गुप्ता से । सुनील गुप्ता के चुनाव में संजय अग्रवाल ने काफी काम किया था, जिस नाते संजय अग्रवाल को उम्मीद थी कि उनकी उम्मीदवारी को सुनील गुप्ता का सहयोग/समर्थन मिलेगा - लेकिन सुनील गुप्ता उनकी उम्मीदवारी की किसी भी तरह से मदद करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं । सुनील गुप्ता ने यह कहते हुए उनकी उम्मीदवारी से अपने आप को दूर कर लिया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद पर होने के कारण उनके लिए किसी उम्मीदवार का सहयोग/समर्थन करना उचित नहीं होगा । दिनेश शर्मा को अभी तक किसी भी तरह के विवादों से दूर होने के कारण बेहतर स्थिति में माना/समझा जा रहा था; लेकिन अभी हाल ही में उन्हें निशाने पर लेते हुए जो पर्चेबाजी शुरू हुई है उससे लोगों को यह आभास तो हो ही गया है कि कुछेक लोग उनके पीछे लग गए हैं । इन सब स्थितियों में वर्ष 2017-18 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए होने वाले चुनाव का परिदृश्य दिलचस्प तो हो ही उठा है ।

Friday, November 14, 2014

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के दिसंबर 2015 में होने वाले चुनाव के लिए वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के लिए महेश मडखोलकर द्धारा उम्मीदवारी प्रस्तुत किए जाने की घोषणा ने मंगेश किनरे की उम्मीदवारी के लिए समस्या पैदा कर दी है

मुंबई । महेश मडखोलकर ने दिसंबर 2015 में होने वाले सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के लिए अचानक से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करके मंगेश किनरे के समर्थकों व शुभचिंतकों को चिंता में डाल दिया है । वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पिछले वर्ष चेयरमैन रहे मंगेश किनरे भी उक्त चुनाव में अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी में हैं । मंगेश किनरे के समर्थकों व शुभचिंतकों की चिंता यह है कि महेश मडखोलकर की उम्मीदवारी मंगेश किनरे की उम्मीदवारी की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर डालेगी और मंगेश किनरे की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का काम करेगी । दरअसल इन दोनों का समर्थन-आधार क्षेत्र एक ही है - दोनों ही ठाणे क्षेत्र में पहचान-परिचय रखते हैं, दोनों ही महाराष्ट्रियन हैं और दोनों ही दक्षिणपंथी राजनीति में सक्रिय हैं । दक्षिणपंथी राजनीति में दोनों की सक्रियता का यह अंतर जरूर है कि महेश मडखोलकर शिव सेना के नजदीक हैं, तो मंगेश किनरे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में पैठ रखते हैं । एक सा समर्थन-आधार रखने के कारण - दोनों के उम्मीदवार होने की स्थिति में दोनों के एक-दूसरे की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का डर स्वाभाविक ही है ।
मंगेश किनरे के नजदीकी चूँकि महेश मडखोलकर की तुलना में मंगेश किनरे की स्थिति मजबूत मानते हैं, इसलिए उन्हें लगता है कि महेश मडखोलकर को अभी रीजनल काउंसिल में ही काम करना चाहिए तथा अपने समर्थन-आधार को और फैलाना चाहिए तथा फिर उसके बाद सेंट्रल काउंसिल के लिए आना चाहिए । महेश किनरे के नजदीकियों की इस बात में दम भी है । पिछली बार, वर्ष 2012 में हुए रीजनल काउंसिल के चुनाव में मंगेश किनरे को महेश मडखोलकर की तुलना में अच्छा समर्थन मिला था । उस चुनाव में मंगेश किनरे को फर्स्ट प्रिफरेंस में 1290 वोट मिले थे, जो फाइनल में 1397 तक पहुँच गए थे और मंगेश किनरे चौथे नंबर पर रहे थे । उनके मुकाबले, महेश मडखोलकर का प्रदर्शन काफी पिछड़ा हुआ था । महेश मडखोलकर को उस चुनाव में फर्स्ट प्रिफरेंस में कुल 682 वोट मिले थे, जो फाइनल तक पहुँचते हुए 1063 हो गए थे; और महेश मडखोलकर 22वें - यानि अंतिम नंबर पर रहे थे । उससे पिछले चुनाव में, यानि वर्ष 2009 में महेश मडखोलकर ने सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ा था और उसमें उन्हें इतना कम समर्थन मिला था कि अगली बार उन्होंने सेंट्रल काउंसिल का चुनाव न लड़ने में ही अपनी भलाई देखी । इसी ट्रेक रिकॉर्ड को देखते हुए महेश मडखोलकर के कुछेक नजदीकियों ने भी उन्हें सलाह दी है कि उन्हें अभी रीजनल काउंसिल में ही सक्रिय रहना चाहिए तथा यहाँ सक्रिय रहते हुए अपने प्रभाव क्षेत्र का दायरा बढ़ाना चाहिए ।
महेश मडखोलकर लेकिन किसी की नहीं सुन/मान रहे हैं और अगली बार सेंट्रल काउंसिल के लिए ही उम्मीदवारी प्रस्तुत करने पर जोर दे रहे हैं । दरअसल उन्होंने पाया है कि रीजनल काउंसिल में करने के लिए कुछ खास है ही नहीं और रीजनल काउंसिल में रहना समय बर्बाद करना है । उनके समर्थकों व शुभचिंतकों का कहना है कि पिछले चुनावों में उनकी उम्मीदवारी का प्रदर्शन भले ही कमजोर रहा हो, लेकिन उन्होंने अपनी स्थिति को और मजबूत किया है तथा अपने समर्थन-आधार को और फैलाया है । उनका दावा है कि महेश मडखोलकर ने मारवाड़ी व गुजराती चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच अच्छी पैठ बनाई है और महाराष्ट्र व गुजरात की ब्रांचेज में अपने लिए समर्थन बनाया है - जिसका फायदा उन्हें आगामी चुनाव में निश्चित ही मिलेगा । महेश मडखोलकर के कुछेक समर्थकों को यह भी लगता है और वह कहते भी हैं कि वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में मंगेश किनरे ने अपने वोटरों को बुरी तरह से निराश किया है, जिस कारण उनके समर्थन-आधार में कमी आई है; और इसलिए महेश मडखोलकर के लिए अच्छा मौका बना है ।
मंगेश किनरे और महेश मडखोलकर के समर्थकों व शुभचिंतकों के दावे-प्रतिदावे चाहें जो हों - सेंट्रल काउंसिल में वर्षों बाद दो महाराष्ट्रियन सदस्य देखने के इच्छुक लोगों को मंगेश किनरे तथा महेश मडखोलकर की एकसाथ प्रस्तुत होने वाली उम्मीदवारी से झटका लगा है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के अभी तक के इतिहास में सिर्फ 12 वर्ष ऐसे रहे हैं, जबकि मुकुंद चितले तथा वाईएम काले के रूप में दो महाराष्ट्रियन सेंट्रल काउंसिल में एक साथ रहे हैं । महाराष्ट्रियन लॉबी के प्रतिनिधि के रूप में अभी श्रीनिवास जोशी को देखा जाता है । अगले चुनाव में भी उनकी उम्मीदवारी और जीत को पक्का ही माना जा रहा है । महाराष्ट्रियन लॉबी के लोगों को लगता है कि मंगेश किनरे और महेश मडखोलकर में से यदि कोई एक उम्मीदवार होता है तो इंस्टीट्यूट की तेईसवीं काउंसिल में दो महाराष्ट्रियन हो सकते हैं, अन्यथा मुकुंद चितले और वाईएम काले का रिकॉर्ड अभी बना रह सकता है ।  

Thursday, November 13, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की चुनौती से निपटने के लिए संदीप सहगल की उम्मीदवारी की बागडोर के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा के हाथों में जा पहुँचने से उनके कुछेक समर्थक ही बिदक गए हैं

लखनऊ । संदीप सहगल की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी की बागडोर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा के हाथों में जाती देख कर संदीप सहगल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों में बेचैनी फल/बढ़ रही है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के ऐसे समर्थक यह तो चाहते हैं कि केएस लूथरा अपनी पूरी ताकत के साथ संदीप सहगल की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम करें, लेकिन वह यह नहीं चाहते हैं कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी की बागडोर केएस लूथरा के हाथों में दिखाई दे । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के साथ मजेदार सीन यह बना है कि उनकी उम्मीदवारी जब प्रस्तुत हुई थी तब उन्हें पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एचएस सच्चर के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना गया था । उनकी उम्मीदवारी के प्रचार अभियान ने गति पकड़ी तो उनकी उम्मीदवारी के साथ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नीरज बोरा को तथा पर्दे के पीछे फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार गुप्ता को देखा/पहचाना जाने लगा । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के सक्रिय समर्थकों की सूची में केएस लूथरा का नाम बहुत देर बाद जुड़ा - लेकिन जब जुड़ा तो जल्दी ही ऐसा लगने लगा जैसे संदीप सहगल की उम्मीदवारी की बागडोर उन्हीं के हाथों में आ गई हो; और संदीप सहगल को केएस लूथरा के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाने लगा ।
ऐसा दरअसल इसलिए भी हुआ क्योंकि नीरज बोरा तो बहुत सक्रिय नहीं हैं; शिव कुमार गुप्ता फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते खुल कर ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं; एचएस सच्चर अवश्य ही संदीप सहगल के साथ खूब सक्रिय हैं - लेकिन उनकी सारी सक्रियता सिर्फ उपस्थित रहने तक है और संदीप सहगल की उम्मीदवारी को बड़ा दिखाने का काम भर करती है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी को लोगों के बीच स्वीकार्यता दिलाने का काम वास्तव में केएस लूथरा ने ही किया है और इसीलिए संदीप सहगल को केएस लूथरा के उम्मीदवार के रूप में ही देखा/पहचाना जाने लगा है । माना/समझा भी जाता है कि चुनावी लड़ाई को साधने वाले तरीके और हथकंडे केएस लूथरा को ही पता हैं और उन तरीकों को वही क्रियान्वित भी सकते हैं - इसीलिए संदीप सहगल की उम्मीदवारी के साथ जब से वह जुड़े हैं तभी से संदीप सहगल की उम्मीदवारी को लोगों ने गंभीरता से लेना शुरू किया है ।
उल्लेखनीय है कि पिछले से पिछले लायन वर्ष में विशाल सिन्हा पर शिव कुमार गुप्ता को जो जीत मिली थी उसे केएस लूथरा के चुनावी मैनेजमेंट के नतीजे के रूप में ही देखा/पहचाना गया था । पिछले लायन वर्ष में एके सिंह की स्थिति विशाल सिन्हा की तुलना में बहुत ही मजबूत थी; यूँ भी पिछली हार के कारण विशाल सिन्हा की 'कमर पूरी तरह टूटी हुई' थी - लेकिन एके सिंह की उम्मीदवारी के पक्ष में चुनावी मैनेजमेंट सँभालने वाला कोई नहीं था; सिर्फ इस कारण से एके सिंह जीतती हुई बाजी विशाल सिन्हा को दान करने के लिए मजबूर हो गए थे । पिछले लायन वर्ष में केएस लूथरा चूँकि कुछ तो अपनी निजी व्यस्तताओं के कारण और कुछ एके सिंह के प्रति निजी खुन्नस के कारण एके सिंह की उम्मीदवारी के साथ नहीं जुड़ सके थे, जिसका गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ने पूरा फायदा उठाया । इन दोनों ने केएस लूथरा की भारी खुशामद कर कर के उन्हें अपनी तरफ मिला लिया - क्योंकि उन्होंने समझ लिया था कि केएस लूथरा को यदि उन्होंने एके सिंह की उम्मीदवारी से दूर रखने में सफलता प्राप्त कर ली तो फिर वह एके सिंह को भी साध लेंगे । और यही हुआ भी ।
इस वर्ष भी गुरनाम सिंह ने केएस लूथरा को संदीप सहगल की उम्मीदवारी से दूर रखने की चाल तो खेली थी - जिसके तहत उन्होंने संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों को यह संदेश दिया था कि केएस लूथरा को यदि संदीप सहगल की उम्मीदवारी से दूर रखा जायेगा तो वह संदीप सहगल को निर्विरोध सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवा देंगे । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थक गुरनाम सिंह की इस चाल में फँस भी गए थे और वह केएस लूथरा को दूर रखने की वकालत करने भी लगे थे - किंतु स्थितियाँ कुछ ऐसी बनीं कि गुरनाम सिंह की चाल की पोल भी खुल गई और संदीप सहगल के कुछेक समर्थकों के विरोध के बावजूद केएस लूथरा उनकी उम्मीदवारी के साथ जुड़ते भी चले गए ।
संदीप सहगल की उम्मीदवारी के जो नजदीकी रणनीतिकार हैं उन्हें दो बातें बहुत साफ समझ में आ रही हैं - एक तो यह कि चुनाव तो अवश्य ही होगा, क्योंकि इस बीच प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार अशोक अग्रवाल ने भी अच्छी सक्रियता दिखाई है और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता अपने अपने तरीके से उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाने और समर्थन जुटाने के काम में लगे हुए हैं; दूसरी बात यह कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी का मैनेजमेंट केएस लूथरा ही सँभाल सकते हैं । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों को अशोक अग्रवाल के साथ होने वाला मुकाबला भले ही आसान दिख रहा हो; लेकिन उनके नजदीकी रणनीतिकार समझ रहे हैं कि अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की चुनौती को कमजोर समझना आत्मघाती साबित हो सकता है और अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की चुनौती से निपटने के लिए एक बहुत ही सघन अभियान चलाये जाने की जरूरत है - जिसे केएस लूथरा ही मैनेज कर सकते हैं । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के नजदीकी रणनीतिकारों की इस समझ के फलस्वरूप ही संदीप सहगल की उम्मीदवारी की बागडोर केएस लूथरा के हाथों में जा पहुँची है ।
संदीप सहगल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों को यह बात पसंद नहीं आ रही है । उन्हें खतरा दरअसल यह हुआ है कि केएस लूथरा को अहमियत मिलने से उन्हें मिलने वाली अहमियत खत्म हो जा रही है । अपनी अहमियत बचाये रखने के लिए उन्हें जरूरी लग रहा है कि वह केएस लूथरा को मिलने वाली अहमियत को कम करवाएं और नियंत्रित करें । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच अहमियत पाने और छीनने की इस लड़ाई को अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थक खासी दिलचस्पी के साथ देख रहे हैं और इसमें अपने लिए मौका तलाश रहे हैं । कुछेक लोगों को यह भी लगता है कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच अहमियत पाने और छीनने की इस लड़ाई को गुरनाम सिंह भड़का रहे हैं और हवा दे रहे हैं । अब इस मामले में सच चाहें जो हो, इस लड़ाई को शांत करने की जिम्मेदारी तो संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों की ही है । इस लड़ाई ने लेकिन फिलहाल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अशोक अग्रवाल और संदीप सहगल के बीच होते दिख रहे चुनावी मुकाबले को दिलचस्प जरूर बना दिया है ।

Wednesday, November 12, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में शरत जैन की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को समर्थन जुटाने वास्ते जेके गौड़ के गवर्नर-काल के पदों की सौदेबाजी को चलाते रहने के लिए असिस्टेंट गवर्नर्स के नाम घोषित करने से बचना ही ठीक लग रहा है

गाजियाबाद । जेके गौड़ के गवर्नर-काल में जिन रोटेरियंस को असिस्टेंट गवर्नर बनने के संकेत मिले हैं, उनके लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि जेके गौड़ असिस्टेंट गवर्नर के रूप में उनके नाम सार्वजनिक रूप से घोषित क्यों नहीं कर रहे हैं ? जेके गौड़ जिस तरह से असिस्टेंट गवर्नर्स के नाम घोषित करने से बच रहे हैं उससे इस तरह की चर्चाओं को बल मिला है कि चुनावी फायदे के गणित से यदि अभी तय किए गए असिस्टेंट गवर्नर्स में से कुछेक के नाम काटने पड़े तो उन्हें काटने में और उनकी जगह दूसरों को असिस्टेंट गवर्नर बनाने का मौका बना रहेगा । आरोप यह है कि शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए जेके गौड़ के गवर्नर-काल के पदों का सौदा किया जा रहा है । रोटरी क्लब सोनीपत मिडटाउन के ज्ञानिंदर सचदेव को डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टर मीट और रोटरी क्लब सोनीपत सिटी के दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरार घोषित करने से इस सौदेबाजी की पोल खुल गई है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टर मीट पर दिल्ली के और डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरार पद पर गाजियाबाद के कुछेक चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की निगाह थी - उनमें से जिनकी जेके गौड़ के साथ पिछले दिनों जैसी जो बातचीत हुई थी उससे उन्हें उम्मीद बँधी थी कि उक्त पद उन्हें मिलेंगे । लेकिन उक्त पदों पर हुई घोषणा से उन्होंने अपने आप को ठगा हुआ महसूस किया है ।
डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरार पद को लेकर तो गाजियाबाद में बहुत ही तीखी प्रतिक्रिया हुई है । गाजियाबाद में कई लोगों ने खासी मुखरता के साथ इस बात को कहा है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरार का पद तो जेके गौड़ को गाजियाबाद में ही किसी को देना चाहिए था, जिससे कि उन्हें काम करने/लेने में सुविधा होती । गाजियाबाद में बहुत से रोटेरियन चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं - उनमें से कुछेक के जेके गौड़ के साथ अच्छे संबंध भी देखे/बताये जाते हैं; जेके गौड़ उनमें से ही किसी को डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरार चुन सकते थे । पर चुनते तो तब जब उन्हें चुनने का 'अधिकार' होता । उनका अधिकार तो मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने ले रखा है । डिस्ट्रिक्ट में हर किसी को लगता है और कई लोग कहते भी हैं कि जेके गौड़ गवर्नर की कुर्सी पर बैठेंगे जरूर, लेकिन गवर्नर के रूप में उनके फैसले मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ही कर रहे हैं - और इन दोनों ने शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने वास्ते जेके गौड़ के गवर्नर-काल को 'बेच' देने की तैयारी कर ली है । ज्ञानिंदर सचदेव और दीपक गुप्ता अपने अपने क्लब से नोमेनेटिंग कमेटी के लिए चुने गए हैं, इसलिए ही उन्हें उक्त पद दिए गए हैं ताकि नोमीनेटिंग कमेटी में वह शरत जैन की उम्मीदवारी का समर्थन करें ।
ज्ञानिंदर सचदेव और दीपक गुप्ता को पद देने पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जो तीखी प्रतिक्रिया हुई है उससे शरत जैन की उम्मीदवारी के पीछे लगे अरनेजा गिरोह को चिंता हुई है और इसी चिंता में उन्होंने असिस्टेंट गवर्नर्स के नाम सार्वजनिक करने की कार्रवाई को रोक दिया है । उन्हें डर हुआ है कि असिस्टेंट गवर्नर्स के नाम पर भी यदि नाराजगियाँ फैली तो मामला उल्टा पड़ जायेगा । कुछ लोगों को यह भी लगता है कि असिस्टेंट गवर्नर्स बनाने का झाँसा ज्यादा लोगों को दे दिया गया है - नाम सार्वजनिक करने से इस झाँसे की पोल खुल जायेगी; इसलिए असिस्टेंट गवर्नर्स के नाम घोषित करने से बचने की रणनीति अपनाई गई है । पेम वन होने में मुश्किल से तीन दिन बचे हैं लेकिन उसमें शामिल होने वाले लोगों को अभी तक भी यह नहीं पता है कि उनके असिस्टेंट गवर्नर कौन कौन होंगे । पिछले वर्षों में पेम वन होने तक यह स्पष्ट हो जाता था - कभी-कभी उन्हें कहा कोऑर्डिनेटर जाता था, लेकिन उन्हें भी और दूसरों को भी यह पता होता था कि यही लोग असिस्टेंट गवर्नर होंगे । जेके गौड़ ने लेकिन कोऑर्डिनेटर भी घोषित नहीं किए हैं, जिस कारण उनके गवर्नर-काल के असिस्टेंट गवर्नर्स को लेकर असमंजस बना हुआ है । यह असमंजस इसलिए और गहरा रहा है क्योंकि जेके गौड़ की तरफ से कुछेक लोगों को असिस्टेंट गवर्नर बनने का संदेश दे दिया गया है । इसीलिए जिन लोगों को संदेश मिला है, उन्हें यह आशंका होने लगी है कि उन्हें असिस्टेंट गवर्नर का पद वास्तव में मिलेगा भी या उन्हें मिला संदेश सिर्फ झाँसा ही साबित होगा । 
शरत जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन 'खरीदने' के चक्कर में जेके गौड़ के गवर्नर-काल का जैसा जो मजाक-सा बना दिया जा रहा है, उसे देखते/समझते हुए शरत जैन की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच भी कन्फ्यूजन बढ़ रहा है । शरत जैन की उम्मीदवारी के समर्थक नेता वैसे तो यह दावा करते हुए नहीं थकते हैं कि शरत जैन की उम्मीदवारी के प्रति लोगों के बीच अच्छा समर्थन है और लोग उन्हें ही चुनेंगे - लेकिन उनसे इस बात का कोई जबाव नहीं मिलता है कि शरत जैन की उम्मीदवारी की स्थिति सचमुच में यदि इतनी ही मजबूत है तो फिर उनके लिए समर्थन जुटाने वास्ते टुच्चई करने की और जेके गौड़ के गवर्नर-काल के पदों को 'बेचने' तक के स्तर पर उतरने की जरूरत क्यों पड़ रही है ? इसीलिए लोगों को लग रहा है कि शरत जैन की उम्मीदवारी के समर्थक नेता झूठे ही उनकी हवा बना रहे हैं - और मजे की बात यह है कि अपने द्धारा बनाई जा रही हवा पर उन्हें खुद ही भरोसा नहीं है और यही कारण है कि जेके गौड़ के गवर्नर-काल के पदों का ऑफर देकर वह शरत जैन के लिए वोटों को खरीदने की तिकड़मों में लगे हुए हैं । शरत जैन की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की इन हरकतों ने शरत जैन की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव रखने वाले लोगों को भी यह सोचने और कहने पर मजबूर कर दिया है कि समर्थन जुटाने के लिए की जा रही हरकतों से शरत जैन का नाम बदनाम ही हो रहा है और इससे उनकी उम्मीदवारी को मिल सकने वाला समर्थन घटेगा ही । इस तरह की बातें करने/कहने वाले लोगों के मुँह लेकिन शरत जैन की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने यह कहते हुए बंद किए हुए हैं कि शरत जैन को यदि जितवाना है तो वह जो कर रहे हैं, उन्हें करने दिया जाये । यानि जेके गौड़ के गवर्नर-काल के पदों की सौदेबाजी के नए नए रूप अभी और देखने को मिलेंगे ।

Thursday, November 6, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद सँभालने वाले काम शुरू कर चुके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुनील गुप्ता डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद क्या क्लब से निकलवाने की बृज भूषण की धमकी के कारण किसी को नहीं दे पा रहे हैं

मेरठ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुनील गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का नाम घोषित किए बिना जिस तरह प्री एजीटीएस का आयोजन कर लिया है, उससे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बृज भूषण को तगड़ा झटका लगा है । बृज भूषण को उम्मीद थी कि प्री एजीटीएस के आयोजन में सुनील गुप्ता डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में उनका नाम घोषित करेंगे, लेकिन आयोजन के दौरान सुनील गुप्ता जब उन्हें कोई तवज्जो देते हुए नहीं दिखे, तो वह आयोजन के बीच से ही उठ कर चले गए । किन्हीं किन्हीं लोगों ने जाते जाते उन्हें यह कहते हुए भी सुना कि यहाँ मैं कोई ताली बजाने थोड़े ही आया हूँ । बृज भूषण का दावा है कि बहुत पहले अलेक्जेंडर क्लब में बीस-पच्चीस रोटेरियंस के बीच सुनील गुप्ता ने उन्हें अपने गवर्नर-काल के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने की बात कही थी । बृज भूषण की शिकायत है कि लेकिन बाद में पता नहीं सुनील गुप्ता को किसने क्या भड़काया कि वह डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद को लेकर उनसे बात करने तक से बचने लगे । सुनील गुप्ता डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद को लेकर सिर्फ बृज भूषण से ही नहीं, बल्कि दूसरों से भी बात करने से बचते दिखे तो डिस्ट्रिक्ट में लोगों की समझ में आ गया कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद को लेकर सुनील गुप्ता भारी दबाव में हैं ।
सुनील गुप्ता के रवैये से एक बात तो लोगों को समझ में आ गई कि अलेक्जेंडर क्लब में बीस-पच्चीस रोटेरियंस के बीच उन्होंने भले ही बृज भूषण को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने की बात कह दी होगी, लेकिन अब वह उन्हें तो डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर नहीं बनायेंगे । लोगों के बीच जैसे जैसे यह समझ बढ़ती गई वैसे वैसे बृज भूषण का सुनील गुप्ता पर उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर घोषित करने के लिए दबाव बढ़ने लगा । लोगों के बीच यह तक चर्चा सुनी गई कि बृज भूषण ने सुनील गुप्ता को स्पष्ट शब्दों में बता दिया है कि उन्होंने उनकी बजाये यदि किसी और को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया तो वह सुनील गुप्ता को क्लब से बाहर निकलवा देंगे । उल्लेखनीय है कि दोनों ही लोग : बृज भूषण भी और सुनील गुप्ता भी एक ही क्लब - रोटरी क्लब मेरठ सम्राट के सदस्य हैं । इस क्लब के बारे में एक मजेदार बात यह है कि वैसे तो इस क्लब में बृज भूषण और सुनील गुप्ता जैसे रोटरी के बारे में बड़ी बड़ी बातें करने वाले लोग हैं लेकिन इतने महान लोगों के क्लब में सदस्य सिर्फ आठ-नौ ही हैं । बृज भूषण को हर वर्ष डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनना है, बार-बार सीओएल में जाना है लेकिन अपने क्लब की सदस्य संख्या को सम्मानजनक स्थिति तक पहुँचाने के लिए कुछ नहीं करना है । डिस्ट्रिक्ट का बुरा हाल क्यों है, इसे बृज भूषण के इस 'व्यवहार' से भी समझा जा सकता है ।
बहरहाल, बात हम सुनील गुप्ता के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर की कर रहे थे !
बृज भूषण की सुनील गुप्ता को क्लब से निकलवाने की धमकी ने लगता है कि असर किया और सुनील गुप्ता ने किसी और को भी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर नहीं बनाया । इसीलिए अभी जब उन्होंने प्री एजीटीएस का आयोजन किया तो बृज भूषण को लगा कि सुनील गुप्ता आयोजन में उन्हें ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर घोषित कर देंगे । सुनील गुप्ता ने लेकिन ऐसा नहीं किया । कुछेक लोगों को लगता है कि बृज भूषण को तो सुनील गुप्ता डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर नहीं ही बनायेंगे - उन्हें बनाना होता, तो वह अभी तक बना देते; लेकिन बृज भूषण की धमकी को देखते हुए वह किसी और को भी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर नहीं बनायेंगे । ऐसा मानने और कहने वाले लोगों का तर्क है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का कार्यभार सँभालने की प्रक्रिया में सबसे पहला काम डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने का करता है - बाकी काम का नंबर उसके बाद आता है; सुनील गुप्ता ने लेकिन प्री एजीटीएस का आयोजन करके अपना काम तो शुरू कर दिया है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद पर नियुक्ति को टाल दिया है । सुनील गुप्ता के नजदीकियों को भी लगता है कि सुनील गुप्ता डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर अब शायद ही किसी को बनाये; अब वह डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के बिना ही काम करेंगे । ऐसा मानने और कहने वाले लोगों को यह भी लगता है कि कोई आत्मसम्मानी व्यक्ति अब डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनेगा भी नहीं ।
डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद को लेकर सुनील गुप्ता के अनिर्णय और अगंभीरता पर उनकी आलोचना भी शुरू हो गई है । लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद को लेकर सुनील गुप्ता को जो भी फैसला करना है - किसे बनाना है या नहीं ही बनाना है - उसे करें और डिस्ट्रिक्ट के लोगों को बतायें । उनका रवैया देख कर लोगों को लगने लगा है कि सुनील गुप्ता कन्फ्यूज्ड हैं कि वह क्या फैसला तो करें और जो फैसला करें उसे लोगों को बतायें कैसे ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के अपने पहले ही काम में सुनील गुप्ता जिस तरह उलझ गए हैं और फैसला करने की अपनी क्षमता के प्रति लोगों को शंकाग्रस्त कर चुके हैं, उससे उनके गवर्नर-काल को लेकर लोगों के बीच सवाल उठने लगे हैं । सुनील गुप्ता से हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद को लेकर उनके ऊपर भारी दबाव है, जिसके कारण उनके लिए फैसला करना मुश्किल हुआ है । दूसरे लोगों का कहना है कि सुनील गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने जा रहे हैं - ऐसे में उन पर तरह तरह के मामलों में दबाव तो पड़ेंगे ही; उन्हें इन दबावों में ही फैसले करने होंगे; दबावों के चलते फैसलों को यदि वह टालेंगे तो आलोचनाओं का निशाना तो बनेंगे ही ।

Tuesday, November 4, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में रोटरी इंटरनेशनल द्धारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की कुर्सी से उतारे जाने से मिले झटके से निराश व हताश दीपक बाबू और उनके समर्थकों ने दावा करना शुरू किया है कि वह दिवाकर अग्रवाल को भी वर्ष 2016-2017 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की दौड़ से बाहर करवायेंगे

मुरादाबाद । रोटरी इंटरनेशनल ने दीपक बाबू से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद न सिर्फ छीन लिया है, बल्कि इस पद के लिए उनके दोबारा उम्मीदवार हो सकने के मौके पर भी रोक लगा दी है । पिछले रोटरी वर्ष में संपन्न हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में दीपक बाबू द्धारा वोटों की खरीद के सहारे जीत प्राप्त करने का आरोप लगाते हुए रोटरी क्लब मुरादाबाद हैरिटेज द्धारा की गई शिकायत को सही ठहराते हुए रोटरी इंटरनेशनल की तीन सदस्यीय कमेटी ने उस चुनाव को निरस्त करते हुए उस चुनाव को दोबारा कराने का फैसला सुनाया है । दीपक बाबू के लिए इससे भी ज्यादा बुरी बात यह हुई है कि उक्त कमेटी ने दोबारा होने वाले चुनाव में दीपक बाबू के उम्मीदवार होने पर रोक लगा दी है ।
रोटरी इंटरनेशनल के इस फैसले के जरिये नियति ने दीपक बाबू के साथ बहुत ही क्रूर तरीके से बदला लिया है, और दीपक बाबू की करनी ही नहीं - उनकी कथनी का भी उन्हें करारा जबाव दिया है । जो स्थिति बनी है, उसे 'बनाने' का श्रेय खुद दीपक बाबू को ही है ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में वोटों की खरीद-फ़रोख्त के आरोप पहले भी लगते रहे हैं - लेकिन दीपक बाबू पहले उम्मीदवार हैं जिन्होंने यह आरोप लगाने के लिए लोगों को बाकायदा 'मौका' दिया । दीपक बाबू ने कई बार लोगों के बीच 'वोटों की खरीद' को चुनाव जीतने की अपनी तरकीब के रूप में व्याख्यायित किया था । उन्होंने कई मौकों पर लोगों को बताया था कि चुनाव के समय, यानि वोट देने के समय वह क्लब-अध्यक्षों को मोटी मोटी रकम ऑफर करेंगे और बदले में उनसे वोट पा लेंगे और इस तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन जायेंगे । वही नहीं, उन्हें ऐन-केन-प्रकाणेन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने पर आमादा रहे तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल भी इसी तरह के दावे किया करते थे । दीपक बाबू और तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल जब खुद ही इस तरह की बातें करते थे, तो दीपक बाबू के जीत जाने के बाद लोगों को यह कहने का मौका मिला ही कि उनकी जीत तो वोटों की खरीद के जरिये मिली जीत है । कुछेक क्लब्स के पदाधिकारियों ने हलफनामे देकर दीपक बाबू द्धारा की गई वोटों की खरीद-फ़रोख्त के सुबूत भी दे दिए, जिन्हें आधार बना कर दिवाकर अग्रवाल के क्लब - रोटरी क्लब मुरादाबाद हैरिटेज ने रोटरी इंटरनेशनल में दीपक बाबू की जीत को चेलैंज कर दिया ।
दीपक बाबू द्धारा की गई वोटों की खरीद-फ़रोख्त के जो किस्से लोगों के बीच चर्चा में रहे, उनसे पता चला कि दीपक बाबू ने वोटों को 'खरीदने' के लिए बड़ी हार्ड बारगेनिंग की । कुछेक क्लब के पदाधिकारियों को वोट के बदले साठ हजार रुपये के ऑफर से सौदा करना शुरू किया गया, जो फिर दस-दस हजार रुपये बढ़ता हुआ एक लाख रुपये और उससे भी अधिक तक पहुँचा । कुछेक क्लब के पदाधिकारियों ने मौके की नजाकत से फायदा उठाने की कोशिश करते हुए ज्यादा 'मुँह खोले', तो दीपक बाबू को फिर वह सौदे बीच में ही छोड़ने पड़े । जीत का नतीजा आने के बाद दीपक बाबू ने कुछेक लोगों के बीच बड़े घमंड के साथ कहा भी था कि कुछेक क्लब्स से बात बनते बनते 'रह गई', अन्यथा उनकी जीत का अंतर और बड़ा होता ।
दीपक बाबू की इसी तरह की बातें उन पर अब भारी पड़ गई हैं; और इसका नतीजा यह हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की कुर्सी से उतार दिए जाने के बाद दीपक बाबू के साथ किसी को हमदर्दी भी नहीं हो रही है । लोगों का यही कहना है कि दीपक बाबू ने जो किया, उन्हें उसी की 'कीमत' चुकानी पड़ रही है । दीपक बाबू का इसे बड़ा दुर्भाग्य ही माना/बताया जा रहा है कि बुरी खबर के साथ-साथ उन्हें एक 'अच्छी' खबर भी मिली है - लेकिन वह उस अच्छी खबर का कोई मजा ही नहीं ले पा रहे हैं । दीपक बाबू के क्लब - रोटरी क्लब मुरादाबाद मिडटाउन ने दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को मान्य करने को लेकर जो शिकायत की थी, उसे रोटरी इंटरनेशनल ने सही पाया और दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को अमान्य घोषित कर दिया । रोटरी क्लब मुरादाबाद हैरिटेज की शिकायत पर पिछले वर्ष हुए चुनाव को ही जब अमान्य घोषित कर दिया गया है, तो दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को अमान्य घोषित करने वाला फैसला निरर्थक ही साबित हुआ है और दीपक बाबू को मिल सकने वाली खुशी भी नसीब नहीं हो सकी है ।
रोटरी इंटरनेशनल से जो झटका मिला है उससे दीपक बाबू और उनके समर्थक व शुभचिंतक अभी तो निराश और हताश हैं, लेकिन उनमें से कुछेक यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि दिवाकर अग्रवाल और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को इस फैसले से ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए क्योंकि वह कोशिश करेंगे कि जैसे दीपक बाबू को वर्ष 2016-2017 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की दौड़ से बाहर किया गया है, वैसे ही वह दिवाकर अग्रवाल को भी उस दौड़ से बाहर करवायेंगे । उनका कहना है कि वर्ष 2016-2017 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाले चुनाव के लिए दिवाकर अग्रवाल के नामांकन को रोटरी इंटरनेशनल ने अमान्य घोषित करने का जो फैसला किया है उसी का हवाला देते हुए वह अपील करेंगे कि वर्ष 2016-2017 के लिए दोबारा से होने वाले चुनाव में दिवाकर अग्रवाल के नामांकन को न स्वीकार किया जाए । दीपक बाबू के समर्थकों के इस तेवर को देख/जान कर लगता है कि दीपक बाबू और दिवाकर अग्रवाल के बीच चल रहा झगड़ा अभी भी शांत नहीं होने वाला है तथा अभी इसमें और आतिशवाजी देखने को मिलेगी । हालाँकि कई लोगों का कहना यह भी है कि दीपक बाबू और राकेश सिंघल ने अपनी हरकतों से डिस्ट्रिक्ट का नाम बहुत खराब कर लिया है और खुद उन्हें भी उससे कुछ हासिल नहीं हुआ है - इसलिए अभी तक जो कुछ भी हुआ है उससे सबक लेते हुए दीपक बाबू को अपनी नकारात्मक सोच को अब विराम दे देना चाहिए ।

Monday, November 3, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए सुरेश भसीन की अचानक प्रकट हुई सक्रियता को, आशंका और डर के साथ देखते हुए डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है

नई दिल्ली । सुरेश भसीन की अचानक से 'दिखने' लगी सक्रियता ने डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों को चिंता में डाल दिया है और इसके चलते उन्होंने यह समझने का प्रयास करना शुरू किया है कि सुरेश भसीन को सहयोग और समर्थन आखिर मिल कहाँ से रहा है, जिसके भरोसे अपनी उम्मीदवारी के लिए उन्होंने अभियान लगातार चलाया हुआ है । डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों का निरंतर यह दावा बना हुआ है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में हर किसी का एकतरफा समर्थन मिला हुआ है । प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में जो भी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, उन सभी का समर्थन डॉक्टर सुब्रमणियन को मिलने का दावा भी लगातार किया जा रहा है । पिछले दिनों चूँकि सुरेश भसीन कहीं ज्यादा 'दिख' भी नहीं रहे थे, इसलिए डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों द्धारा किए जा रहे इन दावों को लोगों के बीच सच भी मान लिया जा रहा था । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों ने लगभग स्वीकार कर लिया था और वह कहने लगे थे कि प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के लिए कहीं कोई चुनौती नहीं है ।
लेकिन सुरेश भसीन की अचानक से 'दिखने' लगी सक्रियता ने डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के लिए कहीं कोई चुनौती न देखने वाले उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को हैरान और परेशान कर दिया है । उनकी हैरानी का कारण यह कि जब पूरा डिस्ट्रिक्ट डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थन में है तो फिर सुरेश भसीन किस उम्मीद में और किसके भरोसे उम्मीदवार बने हुए हैं ? उनकी परेशानी का कारण यह है कि सुरेश भसीन की सक्रियता देख कर उन्हें आशंका हुई है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की स्थिति को लेकर उनकी आश्वस्ति कहीं धोखा तो नहीं है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के उम्मीदवार के रूप में डॉक्टर सुब्रमणियन की स्थिति उतनी मजबूत नहीं है जितनी मजबूत वह समझ रहे हैं और इसीलिए सुरेश भसीन को अपने लिए मौका दिख रहा है । डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर यह भी हुआ है कि सुरेश भसीन को कहीं किसी या किन्हीं लोगों से समर्थन का ठोस भरोसा तो नहीं मिला है, जिससे उत्साहित होकर एक उम्मीदवार के रूप में उन्होंने अपनी सक्रियता को बढ़ाया भी है और उसे 'दिखाना' भी शुरू किया है ।
डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर दरअसल यह जानकर भी लगा है कि पिछले दिनों सुरेश भसीन जब ज्यादा कहीं 'दिख' नहीं रहे थे, तब वह वास्तव में रोटेरियंस से वन-टू-वन लगातार मिल रहे थे । अपनी इन वन-टू-वन मुलाकातों को सुरेश भसीन चूँकि प्रचारित नहीं कर रहे थे इसलिए दूसरों ने - खासकर डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों ने मान लिया था कि सुरेश भसीन तो कुछ कर ही नहीं रहे हैं और इस तरह वह चुनावी मुकाबले से खुद ही बाहर हो गए हैं । यह जानकारी पा कर डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगने लगा है कि चुपचाप से वन-टू-वन मुलाकात करना सुरेश भसीन की कहीं कोई चाल तो नहीं थी - जिसका उद्देश्य डॉक्टर सुब्रमणियन को धोखे में रखना था । दरअसल हर कोई यह मान रहा है कि सुरेश भसीन को चुनावी मुकाबले से बाहर मान कर डॉक्टर सुब्रमणियन भी शांत बैठ गए और एक उम्मीदवार के रूप में अपनी सक्रियता को उन्होंने स्थगित कर दिया । डॉक्टर सुब्रमणियन के घनघोर समर्थकों का भी मानना और कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने जिस तरह से अपने आप को लोगों से मिलने-जुलने से अलग कर लिया है, उससे लोगों के बीच उनके प्रति एक नकारात्मक प्रतिक्रिया तो बनी ही है - और सुरेश भसीन ने इसी का फायदा उठाने के लिए अब अपनी सक्रियता को खुले तौर पर दिखाना शुरू कर दिया है । डॉक्टर सुब्रमणियन के नजदीकियों को भी लग रहा है कि सुरेश भसीन को मुकाबले से बाहर मानकर डॉक्टर सुब्रमणियन ने एक उम्मीदवार के रूप में अपनी सक्रियता को थाम कर सचमुच में आत्मघाती काम किया है ।
डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगता है कि जो हुआ, वह यदि यूँ ही हुआ है तब तो कोई ज्यादा गंभीर बात नहीं है और जो कोई नुकसान हुआ होगा उसकी भरपाई कर ली जाएगी; लेकिन जो हुआ वह यदि सुरेश भसीन की सुनियोजित योजना के तहत हुआ है तब मामला गंभीर है और इसे गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है । उन्हें दरअसल इस बात का पता है कि सुरेश भसीन को एक कुशल रणनीतिकार के रूप में देखा/पहचाना जाता है; और प्रतिकूल स्थितियों में भी अपने लिए मौके बनाने का हुनर उन्हें खूब आता है । डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों को भी लगता है कि पहले चुपचाप से वन-टू-वन मुलाकात के जरिये संपर्क अभियान चलाने और अब अपनी सक्रियता को 'दिखाने' का जो खेल सुरेश भसीन ने किया है, वह उनकी सोची-विचारी रणनीति का ही हिस्सा होगी । सुरेश भसीन की इस रणनीति ने उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार डॉक्टर सुब्रमणियन को पहले गलती करने के लिए 'प्रेरित' किया और अब उन्हें तथा उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को हक्का-बक्का कर दिया है । डिस्ट्रिक्ट के नेताओं के समर्थन-आधार पर देखें तो अभी भी डॉक्टर सुब्रमणियन का ही पलड़ा भारी दिखेगा; लेकिन चुनावी लड़ाई सिर्फ समर्थन-आधार के भरोसे नहीं जीती जाती - उसके लिए एक कुशल रणनीति अपनाने की भी जरूरत होती है । कुशल रणनीति अपनाने के मामले में सुरेश भसीन ने अपने आपको डॉक्टर सुब्रमणियन से इक्कीस ही साबित किया है । कुशल रणनीति के कारण ही सुरेश भसीन ने अपने आपको एक ऐसे मुकाबले में मजबूती के साथ बनाये रखा हुआ है, जिस मुकाबले में माना जा रहा है कि उनके पास कुछ है ही नहीं ।
प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के चुनाव में स्थितियाँ ऊपर ऊपर से पूरी तरह डॉक्टर सुब्रमणियन के अनुकूल लग रही हैं, लेकिन फिर भी सुरेश भसीन की सक्रियता को देख कर उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच आशंका और डर पैदा हुआ है, तो इसका अर्थ यही है कि सुरेश भसीन की उम्मीदवारी को डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।


Saturday, November 1, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में आशीष घोष के लगातार दूसरी बार डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने का संकेत मिलने से निराश और परेशान हुए रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा ने सुधीर मंगला पर किसी और को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने के लिए दबाव डालना शुरू किया

नई दिल्ली । आशीष घोष के लगातार दूसरी बार डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने की आहट ने मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल की नींद उड़ा दी है और उन्होंने सुधीर मंगला पर आशीष घोष को अपने गवर्नर-काल के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर न बनाने के लिए दबाव डालना तेज कर दिया है । सुधीर मंगला पर दबाव बनाने के लिए मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने उन्हें उलाहना दिया है और याद दिलाया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव जीतने के लिए तो वह उनकी मदद लेने आये थे और अब उनकी बात नहीं मान रहे हैं । यह दोनों हालाँकि अभी कुछ दिन पहले तक लोगों के बीच यह दावा करते हुए नहीं थकते थे कि 'इधर' जेके गौड़ के जरिये और 'उधर' सुधीर मंगला के जरिये - वह दोनों तरफ अपना ही राज चलायेंगे । पर अब जो सीन दिख रहा है उसमें 'इधर' भले ही जेके गौड़ उनका राज चलाने का जरिया बने हुए हों, लेकिन 'उधर' के मामले में लगता है कि राज चलाने का मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल का सपना सुधीर मंगला ने ध्वस्त कर दिया है । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के लिए बड़ी चिंता इस बात की नहीं है कि 'उधर' वाले डिस्ट्रिक्ट में उनका सपना पूरा होने नहीं जा रहा है, उनकी बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि अभी कल तक वह जिन लोगों के सामने डींगे मार रहे थे, उन्हें वह अब कैसे मुँह दिखायेंगे ? अपनी इस हालत के लिए वह अब सुधीर मंगला को कोस रहे हैं ।
मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने हालाँकि अभी भी उम्मीद नहीं छोड़ी है - उन्हें अभी भी लगता है कि वह सुधीर मंगला को इस बात के लिए राजी कर लेंगे कि वह आशीष घोष को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर घोषित न करें; तथा किसी और को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बना लें । उल्लेखनीय है कि इन दोनों की आशीष घोष से पुरानी खुंदक है । इसी खुंदक के चलते पिछले रोटरी वर्ष में सीओएल के चुनाव में आशीष घोष को हराने के लिए इन्होंने हर तरह का हथकंडा अपनाया था । गौर करने की बात यह है कि सीओएल के लिए आशीष घोष के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के बाद तमाम लोगों ने रमेश अग्रवाल को समझाया था कि अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज करने का काम उन्हें नहीं करना चाहिए; लेकिन आशीष घोष के प्रति खुंदक रखने के चलते रमेश अग्रवाल ने किसी की नहीं सुनी/मानी । रमेश अग्रवाल ने इस सच्चाई से मुँह चुराया कि सिर्फ खुंदक रखने से जीत प्राप्त नहीं की जा सकती और नतीजा रहा कि सीओएल के लिए हुए सीधे चुनाव में भी वह आशीष घोष से हार गए । उस हार से रमेश अग्रवाल को जो घाव मिला था, सुधीर मंगला ने आशीष घोष को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने का संकेत देकर उस घाव को और कुरेद दिया है । इसीलिए रमेश अग्रवाल - और खुद को रमेश अग्रवाल का गुरु समझने वाले - मुकेश अरनेजा ने सुधीर मंगला को इस बात के लिए राजी करने के लिए सारे घोड़े खोले हुए हैं कि वह किसी को भी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बना लें, लेकिन आशीष घोष को न बनाएँ ।
सुधीर मंगला यदि मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल के दबाव में नहीं आते हैं और आशीष घोष को ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर घोषित करते हैं तो यह रोटरी के इतिहास में लगातार दो वर्ष डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने का आशीष घोष के नाम अनोखा रिकॉर्ड होगा । यह अनोखा रिकॉर्ड एक और अनोखापन प्रस्तुत करेगा और वह यह कि आशीष घोष रोटरी के सौ से अधिक वर्षों के इतिहास में संभवतः पहले और अकेले डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर होंगे जो एक डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3010 के अंतिम; तथा एक अन्य डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3011 के पहले डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर होंगे । उल्लेखनीय है कि सुधीर मंगला के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने के लिए नाम हालाँकि रमेश चंद्र और अमित जैन का चल रहा था । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने वीरेंद्र 'बॉबी' जैन और दीपक तलवार का नाम आगे बढ़ाया हुआ था । इन चारों में अमित जैन के नंबर ज्यादा माने/देखे जा रहे थे ।
डिस्ट्रिक्ट विभाजन के समय-निर्धारण को लेकर चूँकि अनिश्चय बना हुआ था; और उसके कारण यह निश्चित नहीं हो पा रहा था कि सुधीर मंगला आखिर कब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद संभा सँभालेंगे - इसलिए उनकी तैयारियाँ भी ढीली चल रही थीं । सुधीर मंगला के नजदीकियों के अनुसार, लेकिन यह तय कर लिया गया था कि उन्हें यदि अगले रोटरी वर्ष में ही गवर्नर पद की जिम्मेदारी सँभालने का मौका मिलेगा तो डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर वह आशीष घोष को चुनेंगे । इसके पीछे सोच और समझ यह रही कि आशीष घोष चूँकि अभी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद की जिम्मेदारी सँभाल ही रहे हैं इसलिए उनके ताजा ताजा अनुभवों का फायदा लिया जा सकेगा । डिस्ट्रिक्ट विभाजन के झमेले में सुधीर मंगला को चूँकि काम करने के लिए कम समय मिला है इसलिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद के लिए आशीष घोष को ही उपयुक्त माना/समझा गया । सुधीर मंगला के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद के लिए जिन अमित जैन का नाम सबसे आगे चल रहा था, उन्होंने भी बदली परिस्थितियों में चूँकि आशीष घोष को ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने का समर्थन किया, तो फिर सुधीर मंगला के लिए आशीष घोष का नाम तय करना और आसान गया ।
रोटरी इंटरनेशनल के निदेशक मंडल द्धारा अगले रोटरी वर्ष से विभाजित डिस्ट्रिक्ट्स के गठन को हरी झंडी मिलने के साथ जैसे ही यह तय हो गया कि सुधीर मंगला को अगले रोटरी वर्ष में ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद संभालना है, तो आशीष घोष के लगातार दूसरे वर्ष डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने की संभावना बलवती हो गई है । सुधीर मंगला के नजदीकियों का कहना है कि इस बारे में फैसला लिया जा चुका है और किसी भी क्षण इस फैसले की औपचारिक घोषणा की जा सकती है । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने भी लेकिन अपनी कोशिशें नहीं छोड़ी हैं और वह सुधीर मंगला पर तरह-तरह से दबाव बनाये हुए हैं कि वह आशीष घोष को छोड़कर और चाहें जिसे डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बना लें ।