Sunday, November 23, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में समर्थकों की प्रभावी टीम और कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के समर्थन तथा अनुकूल रणनीतिक पहलुओं के बावजूद सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए संदीप सहगल की उम्मीदवारी को अशोक अग्रवाल से तगड़ी चुनौती मिलती दिख रही है

लखनऊ । संदीप सहगल की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी की बागडोर थामने/थमाने को लेकर उनके समर्थक नेताओं के बीच जिस तरह की अफरातफरी मची हुई है, उसे देख/जान कर संदीप सहगल की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच खासी चिंता पैदा हुई है और उन्होंने हालात को सँभालने की जरूरत पर ध्यान दिया है । गुरनाम सिंह की प्रेशर-टैक्टिक से निपटने के लिए भी संदीप सहगल के समर्थक/शुभचिंतक कच्चे खिलाड़ी साबित हो रहे हैं, जिसके चलते उनका अभियान अपनी संगठित शक्ति को संचालित करने के मामले में न सिर्फ पिछड़ रहा है, बल्कि अपनी शक्ति को बिखरता हुआ भी पा रहा है । गुरनाम सिंह ने पिछले दिनों इस बात को जोर-शोर से प्रचारित किया कि नीरज बोरा अगले लायन वर्ष में एके सिंह की उम्मीदवारी के लिए समर्थन लेने के बदले में मौजूदा लायन वर्ष में अशोक अग्रवाल का समर्थन करने के लिए तैयार हो गए हैं । उनकी इस बात को सच माना जाये, इसके लिए गुरनाम सिंह ने 'सुबूत' भी दे दिया और वह यह कि - इसीलिए तो संदीप सहगल के लिए नीरज बोरा न तो कहीं आ जा रहे हैं और न ही किसी को फोन कर रहे हैं । गुरनाम सिंह की यह दूसरी बात चूँकि सच है, इसलिए पहली वाली झूठी बात भी लोगों को सच-सी दिखने लगी । एके सिंह के समर्थन का सौदा तो गुरनाम सिंह ने पिछले वर्ष विशाल सिन्हा के लिए ही कर लिया था; लेकिन फिर भी उन्होंने अगले वर्ष प्रस्तुत होने वाली एके सिंह की उम्मीदवारी के समर्थन के बदले में अशोक अग्रवाल के लिए समर्थन जुटाने का जो दाँव चला है, तो यह उनकी तरकीब का ही एक नमूना है । गौरतलब है कि गुरनाम सिंह इसी तरह की बातों से लोगों को उलझाये रखते हैं । यह तो उनके प्रतिद्धंद्धियों को देखना है कि वह उनकी  इस तरह की तरकीबों से कैसे निपटें ?
नीरज बोरा को लेकर गुरनाम सिंह ने जो दाँव चला उसके चलते संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता जिस तरह बचाव करते हुए दिखे हैं, उससे साबित सिर्फ यह हुआ है कि वह गुरनाम सिंह की राजनीतिक तरकीबों को समझ नहीं रहे हैं, और उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहे हैं - और इसीलिए उनसे निपटने की उन्होंने कोई व्यवस्था ही नहीं की है । अब यदि यह सच है कि नीरज बोरा, संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं तो साथ ही साथ सच यह भी है कि नीरज बोरा समर्थन में कुछ करते हुए 'दिख' नहीं रहे हैं । नीरज बोरा की व्यस्तताएँ चूँकि अलग हैं और लायन राजनीति में उनकी ज्यादा सक्रियता नहीं रहती है, इसलिए वह यदि कुछ करते हुए नहीं 'दिख' रहे हैं तो यह बहुत स्वाभाविक ही है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को चाहिए था कि वह इस हकीकत को पहचानें और यह तय करें कि वह किस तरह नीरज बोरा का समर्थन संदीप सहगल के साथ 'दिखाएँ' - वह ऐसा करने में चूक गए, जिसका फायदा उठाने में गुरनाम सिंह ने कोई चूक नहीं की । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक/शुभचिंतक यह मानते/समझते रहे कि जहाँ वीएस दीक्षित और शिव कुमार गुप्ता खड़े दिखेंगे, वहाँ नीरज बोरा को ही खड़ा देखा जायेगा, क्योंकि लायन राजनीति की पॉवर ऑफ अटॉर्नी नीरज बोरा ने इन्हें सौंप दी हुई हुई है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थक/शुभचिंतक नेता यह समझने में चूक कर बैठे कि लायन राजनीति पॉवर ऑफ अटॉर्नी के भरोसे नहीं हो सकती है; और यहाँ सीधी सक्रियता ही काम करती है : सीधी सक्रियता यदि संभव नहीं हो पा रही हो तो उसका आभास या प्रतीकात्मक संकेत तो कम-अस-कम हो ।
चूँकि यह नहीं हो सका, तो उसका फायदा गुरनाम सिंह ने उठाया । गुरनाम सिंह ने गफलत पैदा करने का काम किया, तो अशोक अग्रवाल ने उस गफलत के बीच अपने लिए पैठ बनाने और समर्थन जुटाने का काम किया । अशोक अग्रवाल का लोगों के साथ चूँकि पुराना परिचय है; अशोक अग्रवाल लोगों को और लोग अशोक अग्रवाल को चूँकि नजदीक से जानते/पहचानते हैं और समय समय पर एक दूसरे को बरतते/परखते रहे हैं, इसलिए लोगों के साथ विश्वास का संबंध बना लेना उनके लिए आसान पड़ता है । शाहजहाँपुर चूँकि लखनऊ से ज्यादा दूर नहीं है, इसलिए भी लखनऊ के लोगों के बीच पैठ बनाना उनके लिए आसान पड़ता है । संदीप सहगल के नजदीकी और समर्थक भी मानते/समझते तथा कहते हैं कि भौगोलिक दूरी के कारण उनके लिए लखनऊ के लोगों के साथ वैसी कैमिस्ट्री बना पाना मुश्किल हो रहा है, जैसे कैमिस्ट्री अशोक अग्रवाल की लखनऊ के लोगों के साथ है । इससे जाहिर है कि संदीप सहगल के नजदीकियों और समर्थकों को यह तो पता है कि समस्या और चुनौतियाँ क्या क्या हैं - लेकिन उनसे निपटने की कोई कारगर कोशिश उनकी तरफ से होती हुई नहीं दिख रही है ।
यह कारगर कोशिश इसलिए भी होती हुई नहीं दिख रही है क्योंकि अभी तक इसी बात को लेकर असमंजस बना हुआ है कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी की बागडोर हो किसके हाथ में ? एक तरह से देखें तो नजारा यह दिख रहा है कि संदीप सहगल की सेना बिना सेनापति के लड़ रही है । संदीप सहगल के समर्थकों का ही नहीं, दूसरे कई लोगों का भी मानना और कहना है कि रणनीतिक पहलुओं से संदीप सहगल की स्थिति बहुत अच्छी है, लेकिन इस अच्छी स्थिति का फायदा उठाने के लिए जिस कार्य योजना को अपनाने की और जिस तरह का तंत्र निर्मित किए जाने की जरूरत है - उस पर या तो ध्यान नहीं दिया जा पा रहा है और या उसे क्रियान्वित नहीं किया जा पा रहा है । अशोक अग्रवाल के साथ उनके समर्थकों की टीम भले ही न दिख रही हो, लेकिन उनके और उनके समर्थक नेताओं के बीच जो तालमेल बना है और उस तालमेल के साथ वह अपना अपना काम करते हुए जिस तरह दिख रहे हैं, उससे उनकी उम्मीदवारी संदीप सहगल की उम्मीदवारी के लिए गंभीर चुनौती तो बनी ही है । संदीप सहगल के साथ समर्थकों की एक प्रभावी टीम लगी हुई दिख रही है और कई एक पूर्व गवर्नर का समर्थन भी उन्हें मिल रहा है, किंतु उनके बीच तालमेल के अभाव के चलते वह ऐसा असर बनाते हुए अभी तो नहीं दिख रहे हैं जैसा असर अनुकूल स्थितियों को देखते हुए उनका होना चाहिए । दरअसल इसीलिए गुरनाम सिंह को गफलत पैदा करने का मौका मिल रहा है और यही बात संदीप सहगल तथा उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के लिए गंभीर चुनौती की तरह तो है ही - साथ ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को दिलचस्प भी बनाये हुए है ।