Thursday, November 13, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की चुनौती से निपटने के लिए संदीप सहगल की उम्मीदवारी की बागडोर के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा के हाथों में जा पहुँचने से उनके कुछेक समर्थक ही बिदक गए हैं

लखनऊ । संदीप सहगल की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी की बागडोर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केएस लूथरा के हाथों में जाती देख कर संदीप सहगल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों में बेचैनी फल/बढ़ रही है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के ऐसे समर्थक यह तो चाहते हैं कि केएस लूथरा अपनी पूरी ताकत के साथ संदीप सहगल की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम करें, लेकिन वह यह नहीं चाहते हैं कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी की बागडोर केएस लूथरा के हाथों में दिखाई दे । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के साथ मजेदार सीन यह बना है कि उनकी उम्मीदवारी जब प्रस्तुत हुई थी तब उन्हें पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एचएस सच्चर के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना गया था । उनकी उम्मीदवारी के प्रचार अभियान ने गति पकड़ी तो उनकी उम्मीदवारी के साथ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नीरज बोरा को तथा पर्दे के पीछे फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार गुप्ता को देखा/पहचाना जाने लगा । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के सक्रिय समर्थकों की सूची में केएस लूथरा का नाम बहुत देर बाद जुड़ा - लेकिन जब जुड़ा तो जल्दी ही ऐसा लगने लगा जैसे संदीप सहगल की उम्मीदवारी की बागडोर उन्हीं के हाथों में आ गई हो; और संदीप सहगल को केएस लूथरा के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाने लगा ।
ऐसा दरअसल इसलिए भी हुआ क्योंकि नीरज बोरा तो बहुत सक्रिय नहीं हैं; शिव कुमार गुप्ता फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते खुल कर ज्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं; एचएस सच्चर अवश्य ही संदीप सहगल के साथ खूब सक्रिय हैं - लेकिन उनकी सारी सक्रियता सिर्फ उपस्थित रहने तक है और संदीप सहगल की उम्मीदवारी को बड़ा दिखाने का काम भर करती है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी को लोगों के बीच स्वीकार्यता दिलाने का काम वास्तव में केएस लूथरा ने ही किया है और इसीलिए संदीप सहगल को केएस लूथरा के उम्मीदवार के रूप में ही देखा/पहचाना जाने लगा है । माना/समझा भी जाता है कि चुनावी लड़ाई को साधने वाले तरीके और हथकंडे केएस लूथरा को ही पता हैं और उन तरीकों को वही क्रियान्वित भी सकते हैं - इसीलिए संदीप सहगल की उम्मीदवारी के साथ जब से वह जुड़े हैं तभी से संदीप सहगल की उम्मीदवारी को लोगों ने गंभीरता से लेना शुरू किया है ।
उल्लेखनीय है कि पिछले से पिछले लायन वर्ष में विशाल सिन्हा पर शिव कुमार गुप्ता को जो जीत मिली थी उसे केएस लूथरा के चुनावी मैनेजमेंट के नतीजे के रूप में ही देखा/पहचाना गया था । पिछले लायन वर्ष में एके सिंह की स्थिति विशाल सिन्हा की तुलना में बहुत ही मजबूत थी; यूँ भी पिछली हार के कारण विशाल सिन्हा की 'कमर पूरी तरह टूटी हुई' थी - लेकिन एके सिंह की उम्मीदवारी के पक्ष में चुनावी मैनेजमेंट सँभालने वाला कोई नहीं था; सिर्फ इस कारण से एके सिंह जीतती हुई बाजी विशाल सिन्हा को दान करने के लिए मजबूर हो गए थे । पिछले लायन वर्ष में केएस लूथरा चूँकि कुछ तो अपनी निजी व्यस्तताओं के कारण और कुछ एके सिंह के प्रति निजी खुन्नस के कारण एके सिंह की उम्मीदवारी के साथ नहीं जुड़ सके थे, जिसका गुरनाम सिंह और विशाल सिन्हा ने पूरा फायदा उठाया । इन दोनों ने केएस लूथरा की भारी खुशामद कर कर के उन्हें अपनी तरफ मिला लिया - क्योंकि उन्होंने समझ लिया था कि केएस लूथरा को यदि उन्होंने एके सिंह की उम्मीदवारी से दूर रखने में सफलता प्राप्त कर ली तो फिर वह एके सिंह को भी साध लेंगे । और यही हुआ भी ।
इस वर्ष भी गुरनाम सिंह ने केएस लूथरा को संदीप सहगल की उम्मीदवारी से दूर रखने की चाल तो खेली थी - जिसके तहत उन्होंने संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों को यह संदेश दिया था कि केएस लूथरा को यदि संदीप सहगल की उम्मीदवारी से दूर रखा जायेगा तो वह संदीप सहगल को निर्विरोध सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवा देंगे । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थक गुरनाम सिंह की इस चाल में फँस भी गए थे और वह केएस लूथरा को दूर रखने की वकालत करने भी लगे थे - किंतु स्थितियाँ कुछ ऐसी बनीं कि गुरनाम सिंह की चाल की पोल भी खुल गई और संदीप सहगल के कुछेक समर्थकों के विरोध के बावजूद केएस लूथरा उनकी उम्मीदवारी के साथ जुड़ते भी चले गए ।
संदीप सहगल की उम्मीदवारी के जो नजदीकी रणनीतिकार हैं उन्हें दो बातें बहुत साफ समझ में आ रही हैं - एक तो यह कि चुनाव तो अवश्य ही होगा, क्योंकि इस बीच प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार अशोक अग्रवाल ने भी अच्छी सक्रियता दिखाई है और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेता अपने अपने तरीके से उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाने और समर्थन जुटाने के काम में लगे हुए हैं; दूसरी बात यह कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी का मैनेजमेंट केएस लूथरा ही सँभाल सकते हैं । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों को अशोक अग्रवाल के साथ होने वाला मुकाबला भले ही आसान दिख रहा हो; लेकिन उनके नजदीकी रणनीतिकार समझ रहे हैं कि अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की चुनौती को कमजोर समझना आत्मघाती साबित हो सकता है और अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी की चुनौती से निपटने के लिए एक बहुत ही सघन अभियान चलाये जाने की जरूरत है - जिसे केएस लूथरा ही मैनेज कर सकते हैं । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के नजदीकी रणनीतिकारों की इस समझ के फलस्वरूप ही संदीप सहगल की उम्मीदवारी की बागडोर केएस लूथरा के हाथों में जा पहुँची है ।
संदीप सहगल की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों को यह बात पसंद नहीं आ रही है । उन्हें खतरा दरअसल यह हुआ है कि केएस लूथरा को अहमियत मिलने से उन्हें मिलने वाली अहमियत खत्म हो जा रही है । अपनी अहमियत बचाये रखने के लिए उन्हें जरूरी लग रहा है कि वह केएस लूथरा को मिलने वाली अहमियत को कम करवाएं और नियंत्रित करें । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच अहमियत पाने और छीनने की इस लड़ाई को अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थक खासी दिलचस्पी के साथ देख रहे हैं और इसमें अपने लिए मौका तलाश रहे हैं । कुछेक लोगों को यह भी लगता है कि संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच अहमियत पाने और छीनने की इस लड़ाई को गुरनाम सिंह भड़का रहे हैं और हवा दे रहे हैं । अब इस मामले में सच चाहें जो हो, इस लड़ाई को शांत करने की जिम्मेदारी तो संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों की ही है । इस लड़ाई ने लेकिन फिलहाल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अशोक अग्रवाल और संदीप सहगल के बीच होते दिख रहे चुनावी मुकाबले को दिलचस्प जरूर बना दिया है ।