नई दिल्ली । सुरेश भसीन की अचानक से 'दिखने' लगी
सक्रियता ने डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों को चिंता में डाल
दिया है और इसके चलते उन्होंने यह समझने का प्रयास करना शुरू किया है कि सुरेश भसीन को सहयोग और समर्थन आखिर मिल कहाँ से रहा है, जिसके भरोसे अपनी उम्मीदवारी के लिए उन्होंने अभियान लगातार चलाया हुआ है ।
डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों का निरंतर यह
दावा बना हुआ है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट 3010
के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में हर किसी का एकतरफा समर्थन मिला
हुआ है । प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में जो भी पूर्व
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, उन सभी का समर्थन डॉक्टर सुब्रमणियन को मिलने का
दावा भी लगातार किया जा रहा है । पिछले दिनों चूँकि सुरेश भसीन कहीं
ज्यादा 'दिख' भी नहीं रहे थे, इसलिए डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व
शुभचिंतकों द्धारा किए जा रहे इन दावों को लोगों के बीच सच भी मान लिया जा
रहा था । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों ने लगभग स्वीकार
कर लिया था और वह कहने लगे थे कि प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के लिए डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के
लिए कहीं कोई चुनौती नहीं है ।
लेकिन सुरेश भसीन की अचानक से 'दिखने' लगी सक्रियता ने डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के लिए कहीं कोई चुनौती न देखने वाले उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को हैरान और परेशान कर दिया है । उनकी हैरानी का कारण यह कि जब पूरा डिस्ट्रिक्ट डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थन में है तो फिर सुरेश भसीन किस उम्मीद में और किसके भरोसे उम्मीदवार बने हुए हैं ? उनकी परेशानी का कारण यह है कि सुरेश भसीन की सक्रियता देख कर उन्हें आशंका हुई है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की स्थिति को लेकर उनकी आश्वस्ति कहीं धोखा तो नहीं है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के उम्मीदवार के रूप में डॉक्टर सुब्रमणियन की स्थिति उतनी मजबूत नहीं है जितनी मजबूत वह समझ रहे हैं और इसीलिए सुरेश भसीन को अपने लिए मौका दिख रहा है । डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर यह भी हुआ है कि सुरेश भसीन को कहीं किसी या किन्हीं लोगों से समर्थन का ठोस भरोसा तो नहीं मिला है, जिससे उत्साहित होकर एक उम्मीदवार के रूप में उन्होंने अपनी सक्रियता को बढ़ाया भी है और उसे 'दिखाना' भी शुरू किया है ।
डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर दरअसल यह जानकर भी लगा है कि पिछले दिनों सुरेश भसीन जब ज्यादा कहीं 'दिख' नहीं रहे थे, तब वह वास्तव में रोटेरियंस से वन-टू-वन लगातार मिल रहे थे । अपनी इन वन-टू-वन मुलाकातों को सुरेश भसीन चूँकि प्रचारित नहीं कर रहे थे इसलिए दूसरों ने - खासकर डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों ने मान लिया था कि सुरेश भसीन तो कुछ कर ही नहीं रहे हैं और इस तरह वह चुनावी मुकाबले से खुद ही बाहर हो गए हैं । यह जानकारी पा कर डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगने लगा है कि चुपचाप से वन-टू-वन मुलाकात करना सुरेश भसीन की कहीं कोई चाल तो नहीं थी - जिसका उद्देश्य डॉक्टर सुब्रमणियन को धोखे में रखना था । दरअसल हर कोई यह मान रहा है कि सुरेश भसीन को चुनावी मुकाबले से बाहर मान कर डॉक्टर सुब्रमणियन भी शांत बैठ गए और एक उम्मीदवार के रूप में अपनी सक्रियता को उन्होंने स्थगित कर दिया । डॉक्टर सुब्रमणियन के घनघोर समर्थकों का भी मानना और कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने जिस तरह से अपने आप को लोगों से मिलने-जुलने से अलग कर लिया है, उससे लोगों के बीच उनके प्रति एक नकारात्मक प्रतिक्रिया तो बनी ही है - और सुरेश भसीन ने इसी का फायदा उठाने के लिए अब अपनी सक्रियता को खुले तौर पर दिखाना शुरू कर दिया है । डॉक्टर सुब्रमणियन के नजदीकियों को भी लग रहा है कि सुरेश भसीन को मुकाबले से बाहर मानकर डॉक्टर सुब्रमणियन ने एक उम्मीदवार के रूप में अपनी सक्रियता को थाम कर सचमुच में आत्मघाती काम किया है ।
डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगता है कि जो हुआ, वह यदि यूँ ही हुआ है तब तो कोई ज्यादा गंभीर बात नहीं है और जो कोई नुकसान हुआ होगा उसकी भरपाई कर ली जाएगी; लेकिन जो हुआ वह यदि सुरेश भसीन की सुनियोजित योजना के तहत हुआ है तब मामला गंभीर है और इसे गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है । उन्हें दरअसल इस बात का पता है कि सुरेश भसीन को एक कुशल रणनीतिकार के रूप में देखा/पहचाना जाता है; और प्रतिकूल स्थितियों में भी अपने लिए मौके बनाने का हुनर उन्हें खूब आता है । डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों को भी लगता है कि पहले चुपचाप से वन-टू-वन मुलाकात के जरिये संपर्क अभियान चलाने और अब अपनी सक्रियता को 'दिखाने' का जो खेल सुरेश भसीन ने किया है, वह उनकी सोची-विचारी रणनीति का ही हिस्सा होगी । सुरेश भसीन की इस रणनीति ने उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार डॉक्टर सुब्रमणियन को पहले गलती करने के लिए 'प्रेरित' किया और अब उन्हें तथा उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को हक्का-बक्का कर दिया है । डिस्ट्रिक्ट के नेताओं के समर्थन-आधार पर देखें तो अभी भी डॉक्टर सुब्रमणियन का ही पलड़ा भारी दिखेगा; लेकिन चुनावी लड़ाई सिर्फ समर्थन-आधार के भरोसे नहीं जीती जाती - उसके लिए एक कुशल रणनीति अपनाने की भी जरूरत होती है । कुशल रणनीति अपनाने के मामले में सुरेश भसीन ने अपने आपको डॉक्टर सुब्रमणियन से इक्कीस ही साबित किया है । कुशल रणनीति के कारण ही सुरेश भसीन ने अपने आपको एक ऐसे मुकाबले में मजबूती के साथ बनाये रखा हुआ है, जिस मुकाबले में माना जा रहा है कि उनके पास कुछ है ही नहीं ।
प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के चुनाव में स्थितियाँ ऊपर ऊपर से पूरी तरह डॉक्टर सुब्रमणियन के अनुकूल लग रही हैं, लेकिन फिर भी सुरेश भसीन की सक्रियता को देख कर उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच आशंका और डर पैदा हुआ है, तो इसका अर्थ यही है कि सुरेश भसीन की उम्मीदवारी को डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
लेकिन सुरेश भसीन की अचानक से 'दिखने' लगी सक्रियता ने डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी के लिए कहीं कोई चुनौती न देखने वाले उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को हैरान और परेशान कर दिया है । उनकी हैरानी का कारण यह कि जब पूरा डिस्ट्रिक्ट डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थन में है तो फिर सुरेश भसीन किस उम्मीद में और किसके भरोसे उम्मीदवार बने हुए हैं ? उनकी परेशानी का कारण यह है कि सुरेश भसीन की सक्रियता देख कर उन्हें आशंका हुई है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की स्थिति को लेकर उनकी आश्वस्ति कहीं धोखा तो नहीं है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के उम्मीदवार के रूप में डॉक्टर सुब्रमणियन की स्थिति उतनी मजबूत नहीं है जितनी मजबूत वह समझ रहे हैं और इसीलिए सुरेश भसीन को अपने लिए मौका दिख रहा है । डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर यह भी हुआ है कि सुरेश भसीन को कहीं किसी या किन्हीं लोगों से समर्थन का ठोस भरोसा तो नहीं मिला है, जिससे उत्साहित होकर एक उम्मीदवार के रूप में उन्होंने अपनी सक्रियता को बढ़ाया भी है और उसे 'दिखाना' भी शुरू किया है ।
डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर दरअसल यह जानकर भी लगा है कि पिछले दिनों सुरेश भसीन जब ज्यादा कहीं 'दिख' नहीं रहे थे, तब वह वास्तव में रोटेरियंस से वन-टू-वन लगातार मिल रहे थे । अपनी इन वन-टू-वन मुलाकातों को सुरेश भसीन चूँकि प्रचारित नहीं कर रहे थे इसलिए दूसरों ने - खासकर डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों ने मान लिया था कि सुरेश भसीन तो कुछ कर ही नहीं रहे हैं और इस तरह वह चुनावी मुकाबले से खुद ही बाहर हो गए हैं । यह जानकारी पा कर डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगने लगा है कि चुपचाप से वन-टू-वन मुलाकात करना सुरेश भसीन की कहीं कोई चाल तो नहीं थी - जिसका उद्देश्य डॉक्टर सुब्रमणियन को धोखे में रखना था । दरअसल हर कोई यह मान रहा है कि सुरेश भसीन को चुनावी मुकाबले से बाहर मान कर डॉक्टर सुब्रमणियन भी शांत बैठ गए और एक उम्मीदवार के रूप में अपनी सक्रियता को उन्होंने स्थगित कर दिया । डॉक्टर सुब्रमणियन के घनघोर समर्थकों का भी मानना और कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन ने जिस तरह से अपने आप को लोगों से मिलने-जुलने से अलग कर लिया है, उससे लोगों के बीच उनके प्रति एक नकारात्मक प्रतिक्रिया तो बनी ही है - और सुरेश भसीन ने इसी का फायदा उठाने के लिए अब अपनी सक्रियता को खुले तौर पर दिखाना शुरू कर दिया है । डॉक्टर सुब्रमणियन के नजदीकियों को भी लग रहा है कि सुरेश भसीन को मुकाबले से बाहर मानकर डॉक्टर सुब्रमणियन ने एक उम्मीदवार के रूप में अपनी सक्रियता को थाम कर सचमुच में आत्मघाती काम किया है ।
डॉक्टर सुब्रमणियन के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगता है कि जो हुआ, वह यदि यूँ ही हुआ है तब तो कोई ज्यादा गंभीर बात नहीं है और जो कोई नुकसान हुआ होगा उसकी भरपाई कर ली जाएगी; लेकिन जो हुआ वह यदि सुरेश भसीन की सुनियोजित योजना के तहत हुआ है तब मामला गंभीर है और इसे गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है । उन्हें दरअसल इस बात का पता है कि सुरेश भसीन को एक कुशल रणनीतिकार के रूप में देखा/पहचाना जाता है; और प्रतिकूल स्थितियों में भी अपने लिए मौके बनाने का हुनर उन्हें खूब आता है । डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों को भी लगता है कि पहले चुपचाप से वन-टू-वन मुलाकात के जरिये संपर्क अभियान चलाने और अब अपनी सक्रियता को 'दिखाने' का जो खेल सुरेश भसीन ने किया है, वह उनकी सोची-विचारी रणनीति का ही हिस्सा होगी । सुरेश भसीन की इस रणनीति ने उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार डॉक्टर सुब्रमणियन को पहले गलती करने के लिए 'प्रेरित' किया और अब उन्हें तथा उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को हक्का-बक्का कर दिया है । डिस्ट्रिक्ट के नेताओं के समर्थन-आधार पर देखें तो अभी भी डॉक्टर सुब्रमणियन का ही पलड़ा भारी दिखेगा; लेकिन चुनावी लड़ाई सिर्फ समर्थन-आधार के भरोसे नहीं जीती जाती - उसके लिए एक कुशल रणनीति अपनाने की भी जरूरत होती है । कुशल रणनीति अपनाने के मामले में सुरेश भसीन ने अपने आपको डॉक्टर सुब्रमणियन से इक्कीस ही साबित किया है । कुशल रणनीति के कारण ही सुरेश भसीन ने अपने आपको एक ऐसे मुकाबले में मजबूती के साथ बनाये रखा हुआ है, जिस मुकाबले में माना जा रहा है कि उनके पास कुछ है ही नहीं ।
प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट पद के चुनाव में स्थितियाँ ऊपर ऊपर से पूरी तरह डॉक्टर सुब्रमणियन के अनुकूल लग रही हैं, लेकिन फिर भी सुरेश भसीन की सक्रियता को देख कर उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच आशंका और डर पैदा हुआ है, तो इसका अर्थ यही है कि सुरेश भसीन की उम्मीदवारी को डॉक्टर सुब्रमणियन के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।