Friday, November 14, 2014

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के दिसंबर 2015 में होने वाले चुनाव के लिए वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के लिए महेश मडखोलकर द्धारा उम्मीदवारी प्रस्तुत किए जाने की घोषणा ने मंगेश किनरे की उम्मीदवारी के लिए समस्या पैदा कर दी है

मुंबई । महेश मडखोलकर ने दिसंबर 2015 में होने वाले सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के लिए अचानक से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करके मंगेश किनरे के समर्थकों व शुभचिंतकों को चिंता में डाल दिया है । वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पिछले वर्ष चेयरमैन रहे मंगेश किनरे भी उक्त चुनाव में अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी में हैं । मंगेश किनरे के समर्थकों व शुभचिंतकों की चिंता यह है कि महेश मडखोलकर की उम्मीदवारी मंगेश किनरे की उम्मीदवारी की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर डालेगी और मंगेश किनरे की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का काम करेगी । दरअसल इन दोनों का समर्थन-आधार क्षेत्र एक ही है - दोनों ही ठाणे क्षेत्र में पहचान-परिचय रखते हैं, दोनों ही महाराष्ट्रियन हैं और दोनों ही दक्षिणपंथी राजनीति में सक्रिय हैं । दक्षिणपंथी राजनीति में दोनों की सक्रियता का यह अंतर जरूर है कि महेश मडखोलकर शिव सेना के नजदीक हैं, तो मंगेश किनरे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में पैठ रखते हैं । एक सा समर्थन-आधार रखने के कारण - दोनों के उम्मीदवार होने की स्थिति में दोनों के एक-दूसरे की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का डर स्वाभाविक ही है ।
मंगेश किनरे के नजदीकी चूँकि महेश मडखोलकर की तुलना में मंगेश किनरे की स्थिति मजबूत मानते हैं, इसलिए उन्हें लगता है कि महेश मडखोलकर को अभी रीजनल काउंसिल में ही काम करना चाहिए तथा अपने समर्थन-आधार को और फैलाना चाहिए तथा फिर उसके बाद सेंट्रल काउंसिल के लिए आना चाहिए । महेश किनरे के नजदीकियों की इस बात में दम भी है । पिछली बार, वर्ष 2012 में हुए रीजनल काउंसिल के चुनाव में मंगेश किनरे को महेश मडखोलकर की तुलना में अच्छा समर्थन मिला था । उस चुनाव में मंगेश किनरे को फर्स्ट प्रिफरेंस में 1290 वोट मिले थे, जो फाइनल में 1397 तक पहुँच गए थे और मंगेश किनरे चौथे नंबर पर रहे थे । उनके मुकाबले, महेश मडखोलकर का प्रदर्शन काफी पिछड़ा हुआ था । महेश मडखोलकर को उस चुनाव में फर्स्ट प्रिफरेंस में कुल 682 वोट मिले थे, जो फाइनल तक पहुँचते हुए 1063 हो गए थे; और महेश मडखोलकर 22वें - यानि अंतिम नंबर पर रहे थे । उससे पिछले चुनाव में, यानि वर्ष 2009 में महेश मडखोलकर ने सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ा था और उसमें उन्हें इतना कम समर्थन मिला था कि अगली बार उन्होंने सेंट्रल काउंसिल का चुनाव न लड़ने में ही अपनी भलाई देखी । इसी ट्रेक रिकॉर्ड को देखते हुए महेश मडखोलकर के कुछेक नजदीकियों ने भी उन्हें सलाह दी है कि उन्हें अभी रीजनल काउंसिल में ही सक्रिय रहना चाहिए तथा यहाँ सक्रिय रहते हुए अपने प्रभाव क्षेत्र का दायरा बढ़ाना चाहिए ।
महेश मडखोलकर लेकिन किसी की नहीं सुन/मान रहे हैं और अगली बार सेंट्रल काउंसिल के लिए ही उम्मीदवारी प्रस्तुत करने पर जोर दे रहे हैं । दरअसल उन्होंने पाया है कि रीजनल काउंसिल में करने के लिए कुछ खास है ही नहीं और रीजनल काउंसिल में रहना समय बर्बाद करना है । उनके समर्थकों व शुभचिंतकों का कहना है कि पिछले चुनावों में उनकी उम्मीदवारी का प्रदर्शन भले ही कमजोर रहा हो, लेकिन उन्होंने अपनी स्थिति को और मजबूत किया है तथा अपने समर्थन-आधार को और फैलाया है । उनका दावा है कि महेश मडखोलकर ने मारवाड़ी व गुजराती चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच अच्छी पैठ बनाई है और महाराष्ट्र व गुजरात की ब्रांचेज में अपने लिए समर्थन बनाया है - जिसका फायदा उन्हें आगामी चुनाव में निश्चित ही मिलेगा । महेश मडखोलकर के कुछेक समर्थकों को यह भी लगता है और वह कहते भी हैं कि वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में मंगेश किनरे ने अपने वोटरों को बुरी तरह से निराश किया है, जिस कारण उनके समर्थन-आधार में कमी आई है; और इसलिए महेश मडखोलकर के लिए अच्छा मौका बना है ।
मंगेश किनरे और महेश मडखोलकर के समर्थकों व शुभचिंतकों के दावे-प्रतिदावे चाहें जो हों - सेंट्रल काउंसिल में वर्षों बाद दो महाराष्ट्रियन सदस्य देखने के इच्छुक लोगों को मंगेश किनरे तथा महेश मडखोलकर की एकसाथ प्रस्तुत होने वाली उम्मीदवारी से झटका लगा है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के अभी तक के इतिहास में सिर्फ 12 वर्ष ऐसे रहे हैं, जबकि मुकुंद चितले तथा वाईएम काले के रूप में दो महाराष्ट्रियन सेंट्रल काउंसिल में एक साथ रहे हैं । महाराष्ट्रियन लॉबी के प्रतिनिधि के रूप में अभी श्रीनिवास जोशी को देखा जाता है । अगले चुनाव में भी उनकी उम्मीदवारी और जीत को पक्का ही माना जा रहा है । महाराष्ट्रियन लॉबी के लोगों को लगता है कि मंगेश किनरे और महेश मडखोलकर में से यदि कोई एक उम्मीदवार होता है तो इंस्टीट्यूट की तेईसवीं काउंसिल में दो महाराष्ट्रियन हो सकते हैं, अन्यथा मुकुंद चितले और वाईएम काले का रिकॉर्ड अभी बना रह सकता है ।