Wednesday, January 27, 2016

रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने अपने एक फैसले के जरिए पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू तथा डिस्ट्रिक्ट 3080 के उनके संगी-साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को वास्तव में चुल्लु भर पानी दिया है, जिसमें वह यदि चाहें तो अपनी बेशर्मी को डुबो सकते हैं

चंडीगढ़ । रोटरी इंटरनेशनल की इलेक्शन रिव्यु कमेटी ने राजेंद्र उर्फ राजा साबू तथा उनके संगी-साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की सारी मेहनत पर पानी फेरते हुए वर्ष 2017-18 के गवर्नर के लिए दोबारा चुनाव कराने का आदेश पारित किया है । वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद को लेकर राजा साबू और उनके संगी-साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की डिस्ट्रिक्ट के लोगों तथा रोटरी इंटरनेशनल के हाथों जो बार-बार 'पिटाई' हुई है, वह रोटरी तथा डिस्ट्रिक्ट 3080 के इतिहास की एक अभूतपूर्व घटना बन गई है । यहाँ पूरे घटनाक्रम को एक बार फिर याद कर लेना प्रासंगिक होगा - सबसे पहले तो नोमीनेटिंग कमेटी में टीके रूबी के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के जरिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने राजा साबू तथा उनके संगी-साथी पूर्व गवर्नर्स को उनकी 'राजनीतिक औकात' दिखाई; जिससे बौखलाकर नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को ही राजा साबू की शह पर रद्द कर दिया गया । रद्द करने के इस मनमाने फैसले को रोटरी इंटरनेशनल में चेलैंज किया गया, तो रोटरी इंटरनेशनल ने रद्द करने के फैसले को रद्द करके राजा साबू तथा उनके संगी-साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को खासा तगड़ा वाला झटका दिया तथा चुनावी प्रक्रिया को पूरा करने का आदेश दिया । इस आदेश का पालन करने पर मजबूर हुए राजा साबू तथा उनके संगी-साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने चुनावी पक्षपात का नंगा नाच किया और पूरी बेशर्मी के साथ खुल कर डीसी बंसल को चुनाव जितवाने का बीड़ा उठाया और एक बेईमान किस्म की सफलता प्राप्त की । उनकी कारस्तानियों को लेकर रोटरी इंटरनेशनल में फिर शिकायत हुई, और रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने शिकायतों को सही पाते/मानते हुए उस चुनाव को निरस्त कर दिया है तथा वर्ष 2017-18 के गवर्नर के लिए दोबारा चुनाव कराने का आदेश दिया है । रोटरी के कई एक बड़े नेताओं का ही कहना है कि इस फैसले के जरिए रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ने राजा साबू तथा उनके संगी-साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को वास्तव में चुल्लु भर पानी दिया है, जिसमें वह यदि चाहें तो अपनी बेशर्मी को डुबो सकते हैं ।
राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट के लोगों को ही नहीं, राजा साबू को जानने वाले रोटरी के दूसरे बड़े नेताओं को भी हालाँकि लगता नहीं है कि राजा साबू लगातार हो रही अपनी इस फजीहत से कोई सबक लेंगे । लोगों का यह विश्वास इसलिए भी बना है कि रोटरी इंटरनेशनल के इस फैसले को राजा साबू के कुछेक नजदीकी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'अपनी' जीत के रूप में व्याख्यायित कर रहे हैं । उनका कहना है कि 'उन्हें' डर था कि रोटरी इंटरनेशनल की इलेक्शन रिव्यु कमेटी कहीं टीके रूबी को वर्ष 2017-18 के गवर्नर के रूप में स्वीकार न कर ले; ऐसा न हो जाए - इसके लिए राजा साबू ने खुद कमर कसी और इसे सुनिश्चित किया । राजा साबू के संगी-साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स लोगों को बता रहे हैं कि राजा साबू ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड में टीके रूबी के पक्ष में फैसला नहीं होने दिया । तथ्य लेकिन ठीक इसके विपरीत है और वह यह यह है कि रोटरी इंटरनेशनल की इलेक्शन रिव्यु कमेटी के सामने शिकायत चुनाव में हुई बेईमानी को लेकर की गई थी, जिसमें टीके रूबी को पराजित किया गया था । यह सारा कुछ राजा साबू की देख-रेख में हुआ था । शिकायत टीके रूबी के क्लब की तरफ से की गई थी । ऐसे में, यदि राजा साबू के प्रभाव की बात सच है तो टीके रूबी के क्लब की तरफ से हुई शिकायत को निरस्त होना चाहिए था, तथा चुनाव के नतीजे को बहाल होना चाहिए था । इलेक्शन रिव्यु कमेटी वर्ष 2017-18 के गवर्नर पद के लिए हुए चुनाव में शुरू से आखिर तक के कदम पर सवाल उठा रही है और राजा साबू तथा उनके संगी-साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की खुली मिलीभगत से हुए चुनाव को निरस्त करने का फैसला कर रही है - तो यह सीधे-सीधे राजा साबू तथा उनके संगी-साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के 'मुँह पर करारा तमाचा' है । इस तमाचे को राजा साबू के नजदीकी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स यदि 'अपनी' जीत बता रहे हैं - तो यह बेशर्मी की पराकाष्ठा का एक अनुपम उदाहरण है ।
उल्लेखनीय है कि राजा साबू तथा उनके संगी-साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने अपनी पूरी ताकत लगा कर डीसी बंसल को तब विजयी 'बनाया' था, जब डीसी बंसल की उम्मीदवारी की पात्रता ही सवालों के घेरे में थी । लोगों के बीच से उठते सवालों पर बेशर्मीभरी चुप्पी साध लेने और/या सवाल करने वाले लोगों पर अपमानजनक टिपण्णियाँ करने वाले राजा साबू तथा उनके संगी-साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने लेकिन डीसी बंसल की उम्मीदवारी की पात्रता पर उठे सवालों की भी अनदेखी ही की - लेकिन रोटरी इंटरनेशनल की जोनल-लेबल इलेक्शन कम्प्लेंट पैनल ने डीसी बंसल की उम्मीदवारी की पात्रता को अमान्य घोषित करने का फैसला सुनाते हुए राजा साबू तथा उनके संगी-साथी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की पहले भी फजीहत ही की थी । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड की इलेक्शन रिव्यु कमेटी ने अभी हाल ही की अपनी मीटिंग में डीसी बंसल की उम्मीदवारी की पात्रता को अमान्य घोषित करने के जोनल-लेबल इलेक्शन कम्प्लेंट पैनल के फैसले को तो हालाँकि पलट दिया, किंतु उसके बावजूद डीसी बंसल को विजयी 'बनाने' वाले चुनाव को मान्य करने में उसने कोई रियायत नहीं बरती । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड की इलेक्शन रिव्यु कमेटी का यह फैसला सीधे-सीधे इस बात का सुबूत है कि राजा साबू की कारस्तानियाँ रोटरी इंटरनेशनल के शीर्ष पदाधिकारियों की निगाह में भी खटकने लगी हैं और इसलिए रोटरी इंटरनेशनल के शीर्ष पदाधिकारी भी रोटरी इंटरनेशनल के प्रेसीडेंट रह चुके राजा साबू के प्रति किसी तरह की उदारता दिखाने को तैयार नहीं हैं । पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू की बदनामियों की अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनने तथा उनके पतन का यह एक खासा फजीहतभरा दृश्य है ।

Tuesday, January 26, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के रोटरी क्लब वैशाली में मनोज भदोला व उनके संगी-साथी अब अपनी कारस्तानियों को तो 'रासलीला' समझने तथा प्रेम दास माहेश्वरी के कदम को उनके 'करेक्टर के ढीला' होने के सुबूत के तौर पर देखे जाने की माँग कर रहे हैं

गाजियाबाद । रोटरी क्लब वैशाली के अध्यक्ष मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों ने सेक्रेटरी प्रेम दास माहेश्वरी के खिलाफ जो मोर्चा खोला है, उसके चलते न सिर्फ मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों की दबी-छिपी कारस्तानियाँ सामने आ रही हैं, उनके बीच आपस में भी मनमुटाव पैदा हो रहे हैं - बल्कि रोटरी क्लब वैशाली का भविष्य और अनिश्चित होता जा रहा है । मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों के बीच रमणीक तलवार की भूमिका को लेकर भी मनमुटाव पैदा हो रहा है । रमणीक तलवार ने दरअसल दूसरे डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3011 में जाने का फार्मूला देकर आग में घी डालने का जो काम किया है, उससे मनोज भदोला के कुछेक साथी ही खुश नहीं हैं । क्लब के कुछेक सदस्य ही अब कहने लगे हैं कि क्लब के झगड़े को अब खत्म होना/करवाना चाहिए और एक-दूसरे के प्रति आपसी शिकायतों पर खुले मन से विचार होना चाहिए । क्लब के ही सदस्यों का मानना/कहना है कि तथ्यात्मक रूप से देखें तो गलतियाँ दोनों तरफ से हुई हैं, इसलिए कोई एक पक्ष दूसरे पक्ष के लोगों को सजा देने/दिलवाने की जिद पर अड़े - तो यह उचित नहीं होगा; ऐसे में उचित यह होगा कि क्लब में ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जिससे कि आपसी मनभेद किसी बड़े टकराव का माहौल न बना सकें । क्लब के सत्ता खेमे के कुछेक सदस्य लेकिन किसी न किसी की बलि लेकर ही मामले को खत्म करना चाहते हैं; उनका कहना है कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनकी बहुत ही फजीहत होगी । ऐसे सदस्यों ने ही अब प्रसून चौधरी तथा विकास चोपड़ा को छोड़ कर प्रेम दास माहेश्वरी को निशाने पर ले लिया है । 
मजे की बात यह है कि मनोज भदोला और उनके संगी-साथी जब प्रसून चौधरी तथा विकास चोपड़ा से लोहा ले रहे थे, तब प्रेम दास माहेश्वरी उनके ही साथ थे; लेकिन इसके साथ साथ सच यह भी है कि यह प्रेम दास माहेश्वरी ही हैं जिनके एक 'कदम' ने मामले की दशा-दिशा ही बदल दी और मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों को ऐसी पटखनी दी कि उनसे न रोते बन रहा है, और न अपनी 'चोटों' को सहलाते बन रहा है । कुछेक लोगों को प्रेम दास माहेश्वरी के 'बदले' रवैये पर हैरानी जरूर है, लेकिन क्लब के ही सदस्यों का कहना है कि क्लब के कामकाज और फैसलों को लेकर मनोज भदोला व प्रेम दास माहेश्वरी के बीच तालमेल कभी भी नहीं बन पाया; और मनोज भदोला ने हमेशा ही प्रेम दास माहेश्वरी को अलग-थलग रखने का काम किया । प्रेम दास माहेश्वरी दरअसल नियम/व्यवस्था से काम करने और फैसले लेने की बात करते, मनोज भदोला लेकिन मनमर्जी चलाते; प्रेम दास माहेश्वरी क्लब को रोटरी भावना से चलाने की बात करते, मनोज भदोला के लिए रोटरी का मतलब लेकिन तफ़रीह व मौज़-मज़ा रहा - क्लब के ही सदस्यों का आरोप रहा कि मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों ने रोटरी क्लब को शराब-बाजी का अड्डा बना रख छोड़ा था । कई मामलों में मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों की कारस्तानियों पर प्रेम दास माहेश्वरी की गहरी नाराजगी थी, किंतु क्लब-अनुशासन के चलते वह चुप रहे । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए कॉन्करेंस देने का फैसला जिस गुपचुप तरीके से हुआ, उससे भी प्रेम दास माहेश्वरी को ऐतराज था - किंतु क्लब अनुशासन के चलते वह इस मामले में भी चुप रहे । वह तो जब यह पोल खुली कि कॉन्करेंस के लिए मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों ने सौदेबाजी की है और क्लब को 'बेच' दिया है, तब प्रेम दास माहेश्वरी को लगा कि पानी अब सिर से ऊपर जा पहुँचा है - और अब चुप नहीं रहा जा सकता है । 
मनोज भदोला व उनके संगी-साथी प्रेम दास माहेश्वरी की भलमनसाहत को उनकी कमजोरी समझ बैठे थे; किंतु प्रेम दास माहेश्वरी ने जैसे भी अपने अधिकार का प्रयोग किया, वैसे ही मनोज भदोला और उनके संगी-साथी जमीन सूँघते नजर आए । दरअसल इसीलिए मनोज भदोला और उनके संगी-साथी चाहते हैं कि प्रेम दास माहेश्वरी के खिलाफ अवश्य ही कार्रवाई हो । मनोज भदोला व उनके संगी-साथी चाहते हैं कि क्लब में गड़बड़ी की शुरुआत वहाँ से देखी जाए, जहाँ से प्रेम दास माहेश्वरी ने सेक्रेटरी के रूप में अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए मनोज भदोला के खिलाफ कार्रवाई की - और उससे पहले की सारी घटनाओं को अनदेखा कर दिया जाए । मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों की बातों से लगता है जैसे कि वह चाहते हैं कि उनकी कारस्तानियों को तो 'रासलीला' समझा जाए, तथा प्रेम दास माहेश्वरी के कदम को उनके 'करेक्टर के ढीला' होने का सुबूत माना जाए । क्लब के कुछेक सदस्यों का हालाँकि यह भी कहना है कि जिन तर्कों के आधार पर प्रेम दास माहेश्वरी के खिलाफ कार्रवाई करने की बात की जा रही है, उन तर्कों के आधार पर तो मनोज भदोला के खिलाफ भी कार्रवाई बनती है - इसलिए बेहतर यही होगा कि जो हुआ उसे भुलाकर मामले को ख़त्म किया जाए । 
रोटरी क्लब वैशाली में कुछेक लोगों को लेकिन लगता है कि रमणीक तलवार मामले को खत्म नहीं होने देंगे, और वह मामले को तरह-तरह से भड़काए हुए हैं । उल्लेखनीय है कि रमणीक तलवार क्लब के संस्थापक सदस्यों में हैं, लेकिन पिछले काफी समय से क्लब में अलग-थलग बने हुए थे - जिस कारण वह क्लब के कार्यक्रमों व मीटिंग्स में कम ही शामिल हो रहे थे; किंतु क्लब में झगड़ा शुरू होने के बाद से वह अचानक से खूब सक्रिय हो गए हैं । समझा जाता है कि मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों के गाइड आजकल रमणीक तलवार ही बने हुए हैं । रमणीक तलवार ने मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों में यह कहते/बताते हुए हवा भरी हुई है कि यदि डिस्ट्रिक्ट 3012 में उनकी नहीं सुनी गई, तो वह डिस्ट्रिक्ट 3011 में उनका क्लब बनवा देंगे । क्लब के कई एक सदस्यों के बीच इस बात पर नाराजगी है; उनका कहना है कि उनकी डिस्ट्रिक्ट 3011 के पदाधिकारियों से बात हुई है - जिनका कहना है कि नया क्लब तो किसी का भी बन जायेगा, उसके लिए रमणीक तलवार की सिफारिश की जरूरत थोड़े ही पड़ेगी । मुकेश अरनेजा के विरोध के बावजूद मुकेश अरनेजा के क्लब से निकले लोगों का नया क्लब यहाँ बन ही रहा है; वैशाली के भी जो भी लोग यहाँ नया क्लब बनाना चाहेंगे, उनका क्लब भी बन जायेगा; ऐसे में रमणीक तलवार नाहक ही अपनी नेतागिरी दिखा रहे हैं । क्लब के कई एक सदस्यों का कहना है कि क्लब के जिन सदस्यों को लगता है कि उनके लिए क्लब में और डिस्ट्रिक्ट 3012 में रहना संभव नहीं है, उन्हें यहाँ से निकल कर डिस्ट्रिक्ट 3011 में अपना नया क्लब बना लेना चाहिए - तथा यहाँ और गंदगी नहीं करना/फैलाना चाहिए । मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों को भी यह बात तो समझ में आने लगी है कि मामला उनके हाथ से निकल गया है, तथा उनके पास अब बहुत सीमित विकल्प ही बचे हैं - और यह भी कि मामले को वह जितना खींचेंगे, उतना ही अपनी फजीहत और ज्यादा करवायेंगे ।

Saturday, January 23, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दीपक गुप्ता की पुनर्प्रस्तुत उम्मीदवारी की संभावना के कारण ललित खन्ना तथा मनोज लाम्बा के लिए मामला चुनौतीपूर्ण हुआ

नई दिल्ली/गाजियाबाद । दीपक गुप्ता और मनोज लाम्बा की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए संभावित अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए रमेश अग्रवाल के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे का समर्थन पाने के लिए की जा रही कोशिशों ने डिस्ट्रिक्ट की ठंडी पड़ी चुनावी राजनीति में कुछ कुछ गर्मी पैदा करने का काम तो शुरू किया है । रमेश अग्रवाल के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के विरोध के कारण दीपक गुप्ता को पिछले चुनाव में जिस तरह से पराजित होना पड़ा है, उससे उन्होंने ही नहीं - बल्कि मनोज लाम्बा ने भी सबक लिया है कि मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल के भरोसे चुनाव जीतना तो मुश्किल ही है । मनोज लाम्बा ने सतीश सिंघल के भरोसे अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी की हुई थी - किंतु उनकी तैयारी को दो झटके लगे हैं : एक तो यही कि सतीश सिंघल के ऐड़ी-चोटी के जोर के बावजूद दीपक गुप्ता चुनाव में बुरी तरह हार गए; और दूसरा यह कि दीपक गुप्ता फिर से उम्मीदवार होने की तैयारी करने लगे । अन्य दूसरे लोगों की तरह मनोज लाम्बा को भी लगता था कि हारने के बाद दीपक गुप्ता उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर हो जायेंगे; दीपक गुप्ता ने लेकिन तिबारा से अपनी उम्मीदवारी के संकेत देकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अगले चुनावी परिदृश्य को दिलचस्प बना दिया है । मनोज लाम्बा की तरफ से होशियारी यह दिखाई गई कि जैसे ही दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने के संकेत उन्हें मिले, वैसे ही उनकी तरफ से रमेश अग्रवाल से तार जोड़ने के प्रयास शुरू हो गए । लोगों को उनके प्रयासों की भनक उनके क्लब के वरिष्ठ सदस्य सतीश गुप्ता की सक्रियता से मिली । 
दरअसल सतीश गुप्ता को सतीश सिंघल के कामकाज के तौर-तरीकों पर प्रतिकूल टिपण्णियाँ करते हुए लोगों ने जब सुना, तो लोगों को आश्चर्य हुआ और उनके कान खड़े हुए । इसका कारण यह है कि सतीश गुप्ता को सतीश सिंघल के बड़े घनघोर किस्म के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है । सतीश गुप्ता को कुछेक लोगों ने समझाया भी था कि सतीश सिंघल के ज्यादा नजदीक होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि सतीश सिंघल अपने सामने किसी को कुछ समझते नहीं हैं और सामने वाले को कभी भी अपमानित कर दे सकते हैं - लेकिन सतीश गुप्ता ने किसी की नहीं सुनी/मानी । इसीलिए अब अचानक से सतीश गुप्ता को सतीश सिंघल के खिलाफ टिपण्णियाँ करते सुन लोगों का माथा ठनका । सतीश गुप्ता कभी भी किसी के भी खिलाफ बहुत नकारात्मक बात करते हुए चूँकि नहीं सुने गए हैं, इसलिए भी सतीश सिंघल को लेकर कही गयी उनकी प्रतिकूल टिपण्णियों में राजनीति - मनोज लाम्बा की उम्मीदवारी से जुड़ी राजनीति को पहचानने की कोशिश की गई है । यह कोशिश इसलिए भी हुई, क्योंकि रमेश अग्रवाल को दिल्ली में कोई उम्मीदवार खोजते हुए 'देखा/पाया' गया । रमेश अग्रवाल को कुछेक मौकों पर कहते हुए सुना गया है कि उनका अगला उम्मीदवार दिल्ली से होगा । रमेश अग्रवाल की इस कहन में मनोज लाम्बा और उनकी उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को अपनी दाल गलती हुई दिख रही है - और इसीलिए उन्होंने सतीश सिंघल से अपनी दूरियाँ बनानी तथा 'दिखानी' शुरू कर दी है । 
रमेश अग्रवाल खेमे से हालाँकि ललित खन्ना की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने की चर्चा भी है - चर्चा तो जोरदार है, लेकिन ललित खन्ना की उम्मीदवारी को लेकर कोई भरोसे का माहौल नहीं बन पा रहा है । चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों व जानकारों के बीच दरअसल चुनावी राजनीति के प्रेशर को झेल पाने की ललित खन्ना की स्थितियों को लेकर संदेह बना हुआ है । ललित खन्ना की तरफ से भी चूँकि अपनी उम्मीदवारी को लेकर अभी तक कोई बहुत उत्साह नहीं दिखाया गया है, इसलिए भी उनकी उम्मीदवारी लोगों के बीच बहुत विश्वास नहीं बना पा रही है । मनोज लाम्बा और उनके शुभचिंतक इस स्थिति का फायदा उठा लेने के लिए तैयार हो गए 'दिख' रहे हैं । मनोज लाम्बा तथा उनके शुभचिंतकों को विश्वास है कि रमेश अग्रवाल के नेतृत्व वाला सत्ता खेमा चूँकि किसी भी कीमत पर दीपक गुप्ता को आगे नहीं बढ़ने देना चाहेगा; और इसके लिए दिल्ली में किसी उम्मीदवार की तलाश कर रहा है तथा ललित खन्ना की उम्मीदवारी के प्रति भरोसा पैदा नहीं हो पा रहा है - इसलिए उनके लिए मौका है कि वह रमेश अग्रवाल के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे का समर्थन जुटा लें । उनके इस मौके में हालाँकि सतीश सिंघल के 'आदमी' होने की मनोज लाम्बा की पहचान बाधा बन सकती है; और इसके अलावा मनोज लाम्बा के सामने अपने आप को एक गंभीर उम्मीदवार 'दिखाने' की चुनौती भी है ही । यह चुनौती गंभीर इसलिए भी है क्योंकि दीपक गुप्ता की तरफ से भी सत्ता खेमे के नेताओं का समर्थन पाने/जुटाने के प्रयास शुरू हो गए हैं । सत्ता खेमे के दूसरी पंक्ति के कुछेक वरिष्ठ नेताओं को दीपक गुप्ता के प्रति हमदर्दी दिखाते तथा उनकी उम्मीदवारी के समर्थन की वकालत करते हुए जिस तरह से सुना/देखा जा रहा है, उससे लग रहा है कि दीपक गुप्ता ने यदि पिछली बार जैसी गलतियाँ नहीं कीं, तो इस बार वह अपने समर्थन आधार को अवश्य ही विस्तृत कर पायेंगे । जाहिर है कि सभी के अपने अपने तर्क हैं, लेकिन असली खेल तो तब शुरू होगा - जब उम्मीदवारों की तरफ से सक्रियता देखने/सुनने को मिलेगी ।

Friday, January 22, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में अरविंद संगल की पत्नी को डिस्ट्रिक्ट लायनेस चेयरपरसन बनाने का ऑफर देकर अरविंद संगल को अपनी तरफ करने का शिवकुमार चौधरी का दाँव अभी तो सफल होता हुआ नहीं दिख रहा है

गाजियाबाद । अरविंद संगल की पत्नी को डिस्ट्रिक्ट लायनेस चेयरपरसन बनाने का लालच देकर शिवकुमार चौधरी ने अरविंद संगल को अपनी तरफ करने का जो दाँव चला है, उसने उन महिलाओं को खासा भड़का दिया है - शिवकुमार चौधरी जिन्हें पिछले कुछ समय से डिस्ट्रिक्ट लायनेस चेयरपरसन बनाने की बात कह/कर रहे थे । इसी से भेद खुला कि शिवकुमार चौधरी तो पिछले कुछ समय से तीन-चार महिलाओं को डिस्ट्रिक्ट लायनेस चेयरपरसन बनाने का झाँसा दे रहे थे । यह भेद खुलने से अरविंद संगल भी सावधान हो गए हैं, और उनके सावधान होने से शिवकुमार चौधरी का गेम-प्लान भी बिगड़ गया है । अरविंद संगल के रवैये ने दरअसल शिवकुमार चौधरी के 'मुकेश गोयल विरोधी मंच' को शुरू से ही झटका दिया हुआ है । शिवकुमार चौधरी ने उम्मीद की थी कि वह जैसे ही मुकेश गोयल विरोधी मंच की घोषणा करेंगे, वैसे ही उन्हें पहला समर्थन अरविंद संगल का मिलेगा - अरविंद संगल ने लेकिन उनके अभियान के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई । अरविंद संगल के नजदीकियों के अनुसार इसके दो कारण रहे : एक यह कि शिवकुमार चौधरी ने जिस गुपचुप तरीके से रेखा गुप्ता को उम्मीदवार बनाया, उससे अरविंद संगल को लगा कि शिवकुमार चौधरी ने अपने कुछेक स्वार्थों की पूर्ति के लिए रेखा गुप्ता को मोहरा बनाया है; दूसरे, उनका आकलन है कि रेखा गुप्ता चुनाव-अभियान के प्रेशर को झेल नहीं पायेंगी और अंततः चुनावी दौड़ से बाहर ही होंगी । इसके अलावा, अरविंद संगल इस बात को लेकर शिवकुमार चौधरी से खफा भी थे कि अपने गवर्नर-काल के तमाम महत्वपूर्ण पद वह मुकेश गोयल के कहने से पहले ही बाँट चुके हैं, तथा उसके पैसे भी बसूल कर चुके हैं; और इस बारे में उन्हें पूछा तक नहीं । शिवकुमार चौधरी जिस तरह मुकेश गोयल के प्रति अपना अवसरवादी रवैया दिखाते रहे हैं - कभी उन्हें गाली देने लगते हैं, और कभी उनकी खुशामद में लगे नजर आते हैं; उससे भी अरविंद संगल ने शिवकुमार चौधरी को भरोसा करने लायक नहीं समझा ।
अरविंद संगल का भरोसा जीतने के लिए ही शिवकुमार चौधरी ने अरविंद संगल की पत्नी को डिस्ट्रिक्ट लायनेस चेयरपरसन बनाने का ऑफर दिया । शिवकुमार चौधरी की बदकिस्मती रही कि अपने नजदीकियों के बीच अभी वह यह दावा कर ही रहे थे कि अपने इस ऑफर के जरिए वह अरविंद संगल को अपने साथ ले आयेंगे कि तभी यह भेद खुल गया कि डिस्ट्रिक्ट लायनेस चेयरपरसन का ऑफर तो वह पहले ही तीन-चार महिलाओं को दे चुके हैं । यह भेद खुलने के बाद अरविंद संगल की तरफ से शिवकुमार चौधरी को कोई उत्साहित करने वाला जबाव नहीं मिला, और शिवकुमार चौधरी के लिए भी यह मुश्किल हुआ कि अरविंद संगल के सामने वह अपने ऑफर को विश्वसनीय रूप दे सकें । डिस्ट्रिक्ट लायनेस चेयरपरसन के मामले में ही नहीं, बल्कि अन्य कई महत्वपूर्ण पदों के मामले में शिवकुमार चौधरी के सामने यही समस्या है । अगले लायन वर्ष के अपने गवर्नर-काल के अधिकतर महत्वपूर्ण पद वह पहले ही 'बेच' चुके हैं - जिन्हें वह दोबारा दोबारा 'बेचने' के प्रयास कर रहे हैं । लायन राजनीति में पद 'बेच' कर वोट खरीदने का फार्मूला बड़ा पुराना फार्मूला है - शिवकुमार चौधरी ने भी इस फार्मूले को अपनाया; उनके सामने समस्या लेकिन यह पैदा हुई कि पदों का सौदा तो वह पहले ही कर चुके हैं । लोगों के बीच चर्चा है कि वह चार-पाँच लोगों को तो वह कैबिनेट सेक्रेटरी ही बना चुके हैं । उल्लेखनीय है कि लायंस इंटरनेशनल सिर्फ एक कैबिनेट सेक्रेटरी को ही मान्यता देता है; कुछेक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर लेकिन पैसा उगाहने के लिए एक से अधिक कैबिनेट सेक्रेटरी बना लेते/देते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'जानते' हैं कि लोग डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में अपना नाम/फोटो छपा देखने के लिए इतने उत्साहित होते हैं कि उन्हें 'शिकारपुर का' बनाना बड़ा आसान होता है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपनी धाक जमाने के लिए शिवकुमार चौधरी ने भी यही आसान रास्ता चुन लिया है ।
इस आसान रास्ते को अपनाने के मामले में शिवकुमार चौधरी के सामने किंतु बड़ी मुसीबत यह आ रही है कि डिस्ट्रिक्ट में लोग यह जानते हैं कि वह अपने गवर्नर-काल के अधिकतर महत्वपूर्ण पद 'बेच' चुके हैं, और पैसा भी बसूल कर चुके हैं - लिहाजा अब लोग आसानी से उनके झाँसे में नहीं आ रहे हैं । इससे भी बड़ी समस्या है कि अब जिन लोगों को जो भी और जैसे भी पद मिल भी रहे हैं, वह पद के बदले में माँगे जा रहे पैसे देने से बचने की कोशिश कर रहे हैं । लोगों का कहना है कि शिवकुमार चौधरी उनका वोट पाने/लेने के लिए उन्हें पद दे रहे हैं, इसलिए पैसे की उम्मीद क्यों कर रहे हैं ? शिवकुमार चौधरी पैसा छोड़ने को भी तैयार नहीं दिख रहे हैं । इस चक्कर में उन्हें फिलहाल पद लेने वाले लोग मिल नहीं पा रहे हैं । हालाँकि वह आश्वस्त हैं कि डिस्ट्रिक्ट में 'शिकारपुर के' लोगों की कमी नहीं है, उन्हें ऐसे लोग अवश्य ही मिलेंगे जो पद के बदले में पैसा भी देंगे और वोट भी देंगे । यह देखना सचमुच दिलचस्प होगा कि शिवकुमार चौधरी के हाथों कौन कौन 'शिकारपुर का' बनता है ?

Monday, January 18, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में सतीश सिंघल और रमणीक तलवार ने प्रसून चौधरी के खिलाफ अपनी निजी खुन्नस को निकालने के लिए मनोज भदोला का जैसा इस्तेमाल किया, उससे किरकिरी सिर्फ मनोज भदोला की ही हुई है

गाजियाबाद । रोटरी क्लब वैशाली के अध्यक्ष मनोज भदोला तथा उनके संगी-साथी अपनी फजीहत के लिए सतीश सिंघल और रमणीक तलवार को जिम्मेदार ठहराने लगे हैं, तथा अनौपचारिक बातचीतों में इस बात पर अफसोस व्यक्त करने लगे हैं कि नाहक ही सतीश सिंघल और रमणीक तलवार की बातों में फँस कर उन्होंने अपनी और क्लब की बेइज्जती करवाई । रोटरी क्लब वैशाली के मामले की पड़ताल कर रही डिस्ट्रिक्ट कमेटी के सदस्यों के सामने मनोज भदोला तथा उनके संगी-साथियों के तेवर काफी बदल गए हैं - पहले वह अपने 'पक्ष' को लेकर जहाँ कठोर रवैया अपनाए हुए थे, वहाँ समय बीतने के साथ साथ उनके तेवर ढीले पड़ने लगे हैं; तथा प्रसून चौधरी व विकास चोपड़ा के प्रति उनका अब पहले जैसा विरोध नहीं रह गया है । प्रसून चौधरी व विकास चोपड़ा को छोड़ कर उन्होंने हालाँकि प्रेम दास माहेश्वरी को निशाने पर लिया हुआ है, लेकिन कमेटी के सदस्यों से बातचीत में वह सतीश गुप्ता और रमणीक तलवार के प्रति अपनी नाराजगी को भी जाहिर करने से नहीं चूक रहे हैं । दूसरे अन्य लोगों से भी मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों ने कहा/दोहराया है कि सतीश सिंघल व रमणीक तलवार की निजी खुंदक के चक्कर में फँस कर उन्होंने अपना काफी नुकसान किया है । मजे की और विडंबना की बात यह रही कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की मदद करने के उद्देश्य से अध्यक्षों को अधिकार दिलाने के अभियान में जुड़ने पर रोटरी क्लब वैशाली के अध्यक्ष मनोज भदोला, दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी में कोई मदद करने लायक तो नहीं हो सके - बल्कि अपने कपड़े और 'उतरवा' बैठे !    
उल्लेखनीय है कि मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों के प्रसून चौधरी व विकास चोपड़ा के साथ मनमुटाव तो बने थे, लेकिन वह इतने गंभीर नहीं थे कि उनके बीच अप्रिय विवाद पैदा करते/बनाते । इस संबंध में बल्कि मनोज भदोला की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने बड़प्पन दिखाया हुआ था । यह इस तथ्य से जाहिर है कि विकास चोपड़ा काफी पहले क्लब के अपने पद से इस्तीफा दे चुके थे, जिसे लेकिन मनोज भदोला स्वीकार नहीं कर रहे थे । मनोज भदोला बल्कि उन्हें इस्तीफा वापस लेने के लिए राजी करने का प्रयास कर रहे थे । मनोज भदोला चाहते तो विकास चोपड़ा का इस्तीफा स्वीकार करके उनसे पीछा छुड़ा लेते । जाहिर है कि मनोज भदोला का दिमाग तब 'बिगड़ा' जब कॉन्करेंस के बदले में सतीश सिंघल के गवर्नर-काल के असिस्टेंट गवर्नर का पद उन्हें ऑफर हुआ । हालाँकि बात यदि कॉन्करेंस के लिए हुई सौदेबाजी तक ही रहती, तब भी बात इतना नहीं बिगड़ती । कॉन्करेंस देने का विरोध यदि प्रसून चौधरी और विकास चोपड़ा करते भी, तो उनके विरोध का असर नहीं होता - क्योंकि वह क्लब में अल्पमत में थे । प्रेम दास माहेश्वरी ने भी कॉन्करेंस का समर्थन किया ही था । लेकिन सतीश सिंघल और रमणीक तलवार ने अपना निजी एजेंडा खुसेड़ कर मामला बिगाड़ दिया । प्रसून चौधरी के साथ इनकी निजी खुन्नस जगजाहिर है - इन्हें जब लगा कि क्लब अध्यक्ष मनोज भदोला पूरी तरह से इनके कहे में है, तो इन्होंने प्रसून चौधरी का 'शिकार' कर लेने के लिए मनोज भदोला को राजी कर लिया । असिस्टेंट गवर्नर का पद 'पाकर' मनोज भदोला इतने जोश में आ गए थे कि उन्होंने सतीश सिंघल और रमणीक तलवार को यह 'दिखाना' शुरू कर दिया कि देखो, मैं प्रसून चौधरी की कैसी गत बनाता हूँ । 
मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों की तरफ से प्रसून चौधरी के खिलाफ सोशल मीडिया में अभद्र व अशालीन भाषा के जरिए जो हमला हुआ, और जोश में जिसमें फिर विकास चोपड़ा को भी लपेट लिया गया - उससे सतीश सिंघल और रमणीक तलवार के कलेजे को भले ही ठंडक मिली हो, लेकिन मामला पटरी से उतर गया था । क्लब का जो माहौल था, उसमें प्रसून चौधरी और विकास चोपड़ा चुपचाप किनारे लगने को 'तैयार' हो गए दिख रहे थे; किंतु सोशल मीडिया के जरिए उन पर जब हमला हुआ तो वह भी जबाव देने के लिए तत्पर हो गए । इस मौके पर, मौके की तलाश कर रहे रमेश अग्रवाल का सहारा उन्हें मिल गया । दरअसल, रोटरी क्लब वैशाली में एक दूसरे को क्लब से डिलीट करने का जो खेल चला उसकी शुरुआत रमेश अग्रवाल की प्रेरणा और सलाह से ही हुई थी । सतीश सिंघल व मुकेश अरनेजा के संगसाथ के भरोसे मनोज भदोला व उनके संगी-साथी इस 'हमले' के लिए तैयार नहीं थे; सो जब तक वह सँभले और जबावी कार्रवाई पर उतरे, तब तक मामला लेकिन उनके हाथ से पूरी तरह फिसल चुका था - और वह बस लकीर पीटते रह गए । 
मनोज भदोला व उनके संगी-साथी अब महसूस कर रहे हैं कि सतीश सिंघल व रमणीक तलवार की बातों में वह न आते और प्रसून चौधरी के खिलाफ उनके निजी एजेंडे को पूरा करने के चक्कर में न फँसते/पड़ते तो दीपक गुप्ता के अभियान को भी वह कमजोर न करते, और अपनी फजीहत भी न कराते । मनोज भदोला व उनके संगी-साथी यदि अपनी शराफत का पर्दा ओढ़े रखते और बात को कॉन्करेंस के लिए हुई सौदेबाजी तक ही रखते, तो बात फिर बिगड़ती नहीं - वह लेकिन न तो शराफत का पर्दा ओढ़े रख सके, और न रमेश अग्रवाल के दिशा-निर्देशन में हुए प्रसून चौधरी के हमले को झेल सके । जाहिर है कि सतीश सिंघल और रमणीक तलवार ने प्रसून चौधरी के खिलाफ अपनी निजी खुन्नस को निकालने के लिए मनोज भदोला का जैसा इस्तेमाल किया, उससे नुकसान और किरकिरी सिर्फ मनोज भदोला की ही हुई है । 

Saturday, January 16, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में 'वीटीटी कम मेडिकल मिशन' के कामकाज को तथा उसके हिसाब-किताब को छिपाए रखने में राजा साबू का स्वार्थ आखिर क्या है ?

चंडीगढ़ । राजेंद्र उर्फ राजा साबू के अपनी पत्नी के साथ मेडिकल मिशन में वॉलिंटियर बन कर जाने तथा मिशन के खर्चे से जुड़े तथ्यों को छिपाने के प्रयासों के चलते 'वीटीटी कम मेडिकल मिशन' जैसा शानदार प्रोजेक्ट संदेहों के घेरे में आ गया है । उल्लेखनीय है कि इस मिशन के तहत वीटीटी कम मेडिकल टीम अफ्रीकी देशों में जाती है, और इस टीम में जाने वाले अनुभवी डॉक्टर्स वहाँ के स्थानीय डॉक्टर्स को अलग अलग तरह की सर्जरी के लिए ट्रेंड करते हैं - और ट्रेंड करने की प्रक्रिया में वहाँ के मरीजों की सर्जरी करते हैं । टीम में शामिल डॉक्टर्स की मदद करने तथा स्थानीय रोटेरियंस के साथ मिलकर उनके काम को संयोजित करने के लिए टीम में कुछेक रोटरी वॉलिंटियर्स भी होते हैं । अभी पिछले सितंबर में मलावी तथा उसके बाद नवंबर में इथिओपिया वीटीटी कम मेडिकल टीम गई थी । अगले माह, फरवरी में एक टीम के रवांडा जाने की योजना सुनी जा रही है । इस कार्यक्रम को अपनी ही तरह के एक अनोखे कार्यक्रम के रूप में देखा/पहचाना गया तथा इसे खासी प्रशंसा भी मिली है । प्रशंसा के साथ साथ लेकिन लोगों के बीच लेकिन अब यह सवाल भी उठने लगे हैं कि टीम में वॉलिंटियर्स के रूप में राजा साबू और उनकी पत्नी क्यों जुड़ जाते हैं ? पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जैसे उनके ओहदे को तथा उनकी उम्र को देखते हुए उनके वॉलिंटियर्स बनने का सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है । पहली बात तो यह भी है कि टीम के डॉक्टर्स को आखिर ऐसी क्या मदद की जरूरत पड़ती होगी, जिसके लिए वॉलिंटियर्स चाहिए होते हों - और वह भी राजा साबू व उषा साबू जैसे वॉलिंटियर्स ? इस सवाल में ही सवाल का जबाव छिपा है - जिसे 'पढ़ने' में लोगों ने कोई गलती नहीं की और मान लिया गया है कि वॉलिंटियर्स तो लगता है कि सिर्फ पिकनिक मनाने और या अपना धंधा जमाने के चक्कर में ही जाते हैं । 
टीम में जाने वाले वॉलिंटियर्स का चयन कैसे होता है, यह भी एक रहस्य है । लोगों की शिकायत है कि उन्हें तो पता ही नहीं चलता है कि कहीं जाने के लिए कोई टीम बन रही है, जिसके लिए वॉलिंटियर्स चाहिए हैं । सारा कुछ बहुत ही गोपनीय तरीके से कर लिया जाता है । मजे की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डेविड हिल्टन तक को 'वीटीटी कम मेडिकल मिशन' की गतिविधियों की पूरी जानकारी नहीं है । इसके बारे में जब भी उनसे पूछा गया, पूछने वाले को यही जबाव सुनने को मिला कि इसके बारे में साबू जी से ही पूछो । डेविड हिल्टन का कहना रहा कि उन्हें तो उतना ही पता है, जितना साबू जी बताते हैं और वह उसी कार्यक्रम में शामिल हो पाते हैं - जिसमें शामिल होने के लिए साबू जी उनसे कहते हैं । डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स तो इस कार्यक्रम को लेकर पूरी तरह ही अनजान हैं । एक मधुकर मल्होत्रा जरूर इस कार्यक्रम के बारे में जानते हुए 'दिखते' हैं, लेकिन लोगों का कहना है कि उनसे भी जब इसके बारे में पूछो तो वह जबाव देने से बचने लगते हैं । वीटीटी कम मेडिकल मिशन से जुड़ी बातों को - उसकी गतिविधियों की विस्तृत जानकारी तथा उसके खर्च संबंधी ब्यौरों पर जिस तरह से पर्दा डाल कर रखा जा रहा है, उससे लोगों के बीच संदेह और सवाल लगातार बढ़ते जा रहे हैं । 
वीटीटी कम मेडिकल मिशन को राजा साबू के 'मिशन' के रूप में प्रचारित किया जाता है; और इसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की जो थोड़ी सी भूमिका है भी वह सिर्फ इस कारण से है कि उनके इस मिशन के लिए जो पैसे आते हैं उसके आने को संभव करने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं । इस मिशन से जुड़े सभी तथ्यों को अपने सीने से चिपकाए रखने तथा वॉलिंटियर्स टीम में अपनी पत्नी सहित अपने को शामिल कर लेने के कारण राजा साबू लोगों के निशाने पर हैं । राजा साबू ने इस मिशन को टीआरएफ से अलग रखने की जो 'होशियारी' दिखाई है, उससे भी मामला संदेहास्पद बना है । दरअसल इस मिशन के लिए टीआरएफ से पैसा मिलता तो उसका बाकायदा हिसाब देना पड़ता, राजा साबू ने इस पचड़े में पड़ने की बजाए दूसरे देशों के क्लब्स से संपर्क साध कर पैसा उगाहने को ज्यादा सुरक्षित समझा - जिसमें 'ठीक' से हिसाब देने/बताने की कोई जरूरत ही नहीं होती है । इससे ही लोगों को लग रहा है कि वीटीटी कम मेडिकल मिशन की आड़ में कहीं पैसा कमाने/बनाने, अपने काम-धंधों के लिए मौका देखने/बनाने और अपनी पिकनिक मनाने का काम तो नहीं किया जा रहा है । 
वीटीटी कम मेडिकल मिशन को लेकर लोगों के बीच पैदा हो रहे संदेहों को दूर करने का एक ही तरीका है - और वह यह कि राजा साबू इस मिशन के काम करने के तरीके को पारदर्शी बना दें, तथा इसके खर्चे के हिसाब को सबके सामने रख दें । राजा साबू लेकिन ऐसा कुछ करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं । मिशन के लिए दूसरे देशों के क्लब्स से पैसा मिलने की बात की जाती है - वह कितना होता है और वह कैसे खर्च होता है, इसे पूछे जाने वाले सवालों का जबाव किसी को नहीं मिला है । राजा साबू ने अपने इस रवैये से वीटीटी कम मेडिकल मिशन जैसे एक शानदार प्रोजेक्ट को विवाद का और संदेहों का मिशन बना दिया है ।

Thursday, January 14, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी घपलेबाजियों से जुड़ीं बैंक प्रबंधन की अनुशासनात्मक कार्रवाइयों का सामना कर रहे उनके पति राजेश गुप्ता के लिए दोहरी मुसीबत बन कर आई है

नई दिल्ली । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में कार्यरत उनके पति राजेश गुप्ता की मुसीबतों को और बढ़ाने का कारण बन गई है । उल्लेखनीय है कि राजेश गुप्ता पिछले कुछ समय से घपलेबाजियों से जुड़ीं अपनी कामकाजी अनिमितताओं के कारण बैंक प्रबंधन की अनुशासनात्मक कार्रवाइयों का सामना कर रहे हैं, और कई तरह की सजाएँ पा रहे हैं । सजाओं से बचने की राजेश गुप्ता की तमाम कोशिशें फेल हो जा रही हैं । अभी हाल ही में नई दिल्ली स्थित सेंट्रल इंफॉर्मेशन कमीशन ने उनकी एक एप्लीकेशन को रिजेक्ट किया है । इंफॉर्मेशन कमिश्नर शरत सभरवाल ने बैंक प्रबंधन के तर्क को सही ठहराते हुए राजेश गुप्ता की अपील को न सिर्फ खारिज कर दिया, बल्कि उनके संदर्भित मामले में हस्तक्षेप करने से भी स्पष्ट इंकार इंकार कर दिया । कमीशन के इस फैसले ने राजेश गुप्ता के दावों तथा आरोपों व सजाओं से बचने के प्रयासों को तगड़ा झटका दिया है - तथा उनके दावों व प्रयासों को कमजोर साबित किया है । कमीशन के इस फैसले ने राजेश गुप्ता के खिलाफ कार्रवाई कर रहे बैंक प्रबंधन के हाथ स्वाभाविक रूप से और मजबूत किए हैं । 
राजेश गुप्ता की पत्नी रेखा गुप्ता के लायंस इंटरनेशनल में डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारी बनने के प्रयासों की खबरों ने बैंक प्रबंधन के कान और खड़े कर दिए हैं । दरअसल प्रबंधन के लोगों को पता है कि डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारी बनने को लेकर होने वाले चुनाव में पचासों लाख रुपए खर्च होते हैं । उल्लेखनीय है कि राजेश गुप्ता घपलेबाजियों से जुड़ी कामकाजी अनियमितताओं में अपने फँसने के लिए बैंक प्रबंधन की टॉप मैनेजमेंट कमेटी के लोगों की आपसी प्रतिस्पर्द्धात्मक लड़ाई को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं । वह बताते/कहते रहे हैं कि टॉप मैनेजमेंट कमेटी के लोगों की लड़ाई में बलि का बकरा वह बन गए हैं, तथा उक्त कमेटी के कुछेक सदस्यों से नजदीकी की कीमत उन्हें चुकानी पड़ रही है । समझा जाता है कि बैंक के जिन उच्चाधिकारियों का हाथ राजेश गुप्ता को फँसाने में है, उन्हीं उच्चाधिकारियों ने प्रबंधन के कान भरे हैं कि घपलेबाजी से राजेश गुप्ता ने जो पैसे बनाए हैं, उसी पैसे से वह अपनी पत्नी को लायंस इंटरनेशनल में डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारी बनवा रहे हैं । इस खबर से बैंक अधिकारियों व राजेश गुप्ता के साथी-सहयोगियों में यह चर्चा भी चल पड़ी है कि राजेश गुप्ता ने घपलेबाजी से आखिर इतनी कितनी रकम बना ली है, कि वह अपनी पत्नी को एक इंटरनेशनल संगठन के डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारी बनाने/बनवाने के चुनाव में पचासों लाख रुपए बहाने के लिए तैयार हो गए हैं । 
बैंक प्रबंधन में जो पदाधिकारी राजेश गुप्ता से हमदर्दी रखते हैं, तथा आरोपों से उन्हें बचाने में उनकी मदद करते रहे हैं - उनका कहना है कि राजेश गुप्ता की पत्नी के एक इंटरनेशनल संगठन के डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारी बनने के प्रयासों की खबर ने राजेश गुप्ता के केस को और गंभीर बना दिया है, तथा उन पर लगे आरोपों को और मजबूती दी है; जिससे राजेश गुप्ता का बचाव करने वाले लोग भी दबाव में आए हैं । सबसे बड़ी बात यह हुई है कि जिन लोगों को राजेश गुप्ता से हमदर्दी रही है, राजेश गुप्ता के प्रति उनका विश्वास डांवाडोल हुआ है । राजेश गुप्ता की तरफ से शेयरहोल्डर डायरेक्टर्स दिनेश कुमार अग्रवाल व अशोक कुमार शर्मा से मदद मिलने का इंप्रेशन दिया जाता रहा है, किंतु अब लग रहा है कि इन दोनों को भी डर हुआ है कि राजेश गुप्ता के हमदर्दों व मददगारों के रूप में उनकी चर्चा होगी तो बदनामी के छींटे उन पर भी पड़ेंगे । रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी की खबर मिलने के बाद से घपलेबाजियों से जुड़ीं अपनी कामकाजी अनिमितताओं के कारण बैंक प्रबंधन की अनुशासनात्मक कार्रवाइयों का सामना कर रहे राजेश गुप्ता पर लगे आरोपों को जिस तरह से स्वीकार्यता मिलती दिख रही है, उसे जान/पहचान कर राजेश गुप्ता से हमदर्दी रखने वाले लोगों ने जिस तरह से राजेश गुप्ता से 'बचना' शुरू कर दिया है - उससे लग रहा है कि रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी राजेश गुप्ता के लिए दोहरी मुसीबत बन कर आई है ।

Wednesday, January 13, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में दीपक गुप्ता की पुनर्प्रस्तुत उम्मीदवारी की आशंका से सत्ता खेमा अपने उम्मीदवार को लेकर असमंजस में

गाजियाबाद/नई दिल्ली । सुभाष जैन की बड़ी जीत से उत्साहित, उनकी जीत के सूत्रधारों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अगले उम्मीदवार की तलाश शुरू कर दी है - जो बार बार घूम फिर कर फिलहाल रवींद्र सिंह और ललित खन्ना पर टिक जा रही है । सुभाष जैन की उम्मीदवारी के संचालन में लगे कुछेक लोगों को लग रहा है कि इस बार के चुनाव में रोटरी क्लब गाजियाबाद हैरिटेज के रवींद्र सिंह की जिस तरह की संलग्नता रही है, उसे देखते हुए रवींद्र सिंह ही उपर्युक्त उम्मीदवार होंगे - क्योंकि सुभाष जैन की उम्मीदवारी के एक अत्यंत सक्रिय समर्थक के रूप में रवींद्र सिंह का लोगों के बीच प्रभावी परिचय बन ही गया है, और डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के तमाम समीकरणों को उन्होंने नजदीक से देख/समझ भी लिया है । सुभाष जैन की उम्मीदवारी के संचालन में लगे अन्य कुछेक लोग रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के वरिष्ठ सदस्य ललित खन्ना की बात कर रहे हैं - उन्हें लगता है कि ललित खन्ना को आगे करके मुकेश अरनेजा को उनके अपने क्लब में तथा सतीश सिंघल को नोएडा में एक साथ घेरा जा सकेगा । उल्लेखनीय है कि रवींद्र सिंह और ललित खन्ना पहले भी एक एक बार अपनी अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत कर चुके हैं - रवींद्र सिंह ने दोस्ती निभाने के चक्कर में विनोद बंसल के पक्ष में अपनी उम्मीदवारी को वापस ले लिया था; और ललित खन्ना नोमीनेटिंग कमेटी में नहीं चुने जाने के कारण चुनावी दौड़ से बाहर हो गए थे । इन दोनों के बारे में एक मजे की कॉमन बात यह भी है कि एक समय यह दोनों मुकेश अरनेजा के बड़े खास हुआ करते थे, लेकिन अब दोनों ही मुकेश अरनेजा के धुर विरोधी हैं । 
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अगले उम्मीदवार के रूप में सत्ता पक्ष के लोग भले ही रवींद्र सिंह और ललित खन्ना का नाम ले रहे हों, लेकिन इन दोनों ने अपनी अपनी उम्मीदवारी को लेकर अभी तक कोई बहुत उत्सुकता नहीं दिखाई है । इसके बावजूद इनका नाम चर्चा में है, तो इसका कारण यह है कि इन्होंने अपनी उम्मीदवारी की संभावना से इंकार भी नहीं किया है । इनके नजदीकियों का कहना है कि अभी जल्दबाजी में यह कोई फैसला नहीं करना चाहते हैं, तथा 'देखो और इंतजार करो' की रणनीति अपनाते हुए अभी यह देखना चाहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनावी परिदृश्य किस रास्ते पर आगे बढ़ता है ? सत्ता खेमे के नेता दरअसल पहले दीपक गुप्ता के रवैये को देखना चाहते हैं : असल में हर किसी के सामने यह सवाल तो है, पर उसका कोई जबाव नहीं है कि दीपक गुप्ता फिर से अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेंगे या नहीं ? पहले लोगों को लग रहा था कि दीपक गुप्ता का जोश ठंडा पड़ गया है और वह दोबारा पचड़े में नहीं पड़ेंगे, किंतु दीपक गुप्ता की तरफ से लोगों को जो एसएमएस मिला है - उसका मिलना और उसकी भाषा से संकेत मिला है कि दीपक गुप्ता पिछली बार वाली गलती से सबक लेकर नए दमखम के साथ मैदान में उतर सकते हैं । इस संकेत ने सत्ता खेमे के नेताओं को सावधान किया है । वह भी मान रहे हैं कि दीपक गुप्ता ने यदि पिछली गलतियों को नहीं दोहराया तो अब की बार उनका मुकाबला करना आसान नहीं होगा । सत्ता खेमे के नेताओं को यह डर भी है कि दीपक गुप्ता ने जिस तैयारी के साथ यह चुनाव लड़ा था, उसे देखते हुए फिर से उनके उम्मीदवार होने पर हो सकता है कि सत्ता खेमे को कोई उम्मीदवार ही न मिले । इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए होने वाली अगली लड़ाई का समीकरण दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की संभावना और पिछली गलतियों के प्रति उनके रवैये पर निर्भर करेगा ।
सत्ता पक्ष के नेता और उनके संभावित उम्मीदवार इसीलिए अभी उम्मीदवारी को लेकर कोई स्पष्ट फैसला करने से बच रहे हैं । सत्ता पक्ष के नेताओं के सामने यह समझने/पहचानने की दुविधा भी है कि दीपक गुप्ता यदि सचमुच उम्मीदवार होते हैं, तो उन्हें अपना उम्मीदवार गाजियाबाद/उत्तरप्रदेश से चुनना चाहिए या दिल्ली से ? दीपक गुप्ता के उम्मीदवार न होने की स्थिति में तो उनके लिए मैदान साफ है - फिर तो कोई भी उम्मीदवार हो सकता । इस सारे झमेले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एकमात्र 'घोषित' उम्मीदवार मनोज लाम्बा के लिए हालात खासे मुश्किल हो गए हैं । रोटरी क्लब दिल्ली रिवरसाइड के मनोज लाम्बा को सतीश सिंघल के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । दीपक गुप्ता और सुभाष जैन के बीच हुए चुनाव में सबसे ज्यादा फजीहत सतीश सिंघल की ही हुई है - जिसके बाद सतीश सिंघल के भरोसे उम्मीदवारी प्रस्तुत करना मनोज लाम्बा के लिए आत्मघाती ही होगा । मनोज लाम्बा के नजदीकियों का कहना भी है कि सतीश सिंघल अपनी तमाम सक्रियता के बावजूद दीपक गुप्ता के समर्थन में कोई इजाफा कर पाने में जिस तरह से नाकाम रहे/दिखे हैं, उससे अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में मनोज लाम्बा के हौंसले पस्त पड़ते नजर आ रहे हैं । जाहिर है कि तमाम अगर-मगर के बीच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अगले उम्मीदवारों को लेकर मामला अभी उलझा हुआ है । हालाँकि उम्मीद की जा रही है कि जल्दी ही यह उलझन दूर हो जाएगी । सत्ता पक्ष में जिस तरह से रवींद्र सिंह और ललित खन्ना का नाम चला है, उससे लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में हलचल जरूर मची है ।

Tuesday, January 12, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव के संदर्भ में चरनजोत सिंह नंदा को लग रहा है कि 'यूज एंड थ्रो' रणनीति के तहत राजेश शर्मा ने उन्हें इस्तेमाल किया, और अब वह उनसे पीछा छुड़ा लेना चाहते हैं

नई दिल्ली । राजेश शर्मा जिस तरह से वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए मुकेश कुशवाह की उम्मीदवारी के समर्थन की बात कर रहे हैं, उसे सुन/देख कर चरनजोत सिंह नंदा खासे भड़के हुए हैं । वह भड़के इसलिए हुए हैं क्योंकि राजेश शर्मा के इस कदम ने वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी राजनीति में चरनजोत सिंह नंदा की भूमिका को पूरी तरह खत्म कर दिया है । उल्लेखनीय है कि राजेश शर्मा को चरनजोत सिंह नंदा के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है, और इस नाते से वाइस प्रेसीडेंट पद के प्रायः सभी उम्मीदवार राजेश शर्मा के वोट के लिए चरनजोत सिंह नंदा से सिफारिश लगा रहे थे । चरनजोत सिंह नंदा भी राजेश शर्मा के वोट को लेकर अलग अलग लोगों को अलग अलग तरह के आश्वासन दे रहे थे । लेकिन जैसे जैसे भेद खुला कि राजेश शर्मा तो मुकेश कुशवाह की उम्मीदवारी का झंडा उठाए हुए हैं, वैसे वैसे लोगों ने राजेश शर्मा के वोट के लिए चरनजोत सिंह नंदा से बात करना छोड़ दिया है । इससे राजेश शर्मा के जरिए वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को एन्जॉय करने का चरनजोत सिंह नंदा का सारा प्लान चौपट हो गया है । चरनजोत सिंह नंदा का अपने नजदीकियों से कहना है कि राजेश शर्मा को चुनाव जितवाने में उन्होंने दिन-रात एक किया है, और उनके खुले व सक्रिय समर्थन के भरोसे ही राजेश शर्मा वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में भूमिका निभाने लायक बने हैं; इसलिए वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में अपना रवैया तय करने और 'दिखाने' से पहले राजेश शर्मा को उनसे पूछना/बताना तो चाहिए ही । राजेश शर्मा ने लेकिन उनसे पूछे/बताए बिना वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए मुकेश कुशवाह की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है, जिससे चरनजोत सिंह नंदा बुरी तरह भड़क गए हैं । 
चरनजोत सिंह नंदा के भड़कने का एक कारण राजेश शर्मा के नजदीकियों का यह प्रचारित करना भी है कि राजेश शर्मा की चुनावी जीत में चरनजोत सिंह नंदा की कोई भूमिका नहीं है, और राजेश शर्मा की जीत वास्तव में राजेश शर्मा तथा उनकी अपनी टीम के सदस्यों की मेहनत का नतीजा है । इस संबंध में उनका तर्क है कि चरनजोत सिंह नंदा जब अपने पार्टनर उमेश वर्मा को रीजनल काउंसिल का चुनाव नहीं जितवा सके हैं, तो सेंट्रल काउंसिल में वह राजेश शर्मा के ही क्या काम आए होंगे ? इस तरह की बातें चरनजोत सिंह नंदा को स्वाभाविक रूप से परेशान करने वाली बातें हैं । चरनजोत सिंह नंदा को लगता है कि इस तरह की बातें राजेश शर्मा की शह पर ही हो रही हैं और वही अपने लोगों को इस तरह की बातें करने के लिए उकसा रहे हैं । राजेश शर्मा के रवैये से चरनजोत सिंह नंदा को अपने ठगे जाने का अहसास हो रहा है । उन्हें लग रहा है कि 'यूज एंड थ्रो' रणनीति के तहत राजेश शर्मा ने उन्हें इस्तेमाल किया, और काम निकल जाने के बाद अब उनसे पीछा छुड़ा लेना चाहते हैं । 
इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि राजेश शर्मा को इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में यदि लंबी पारी खेलनी है, तो उन्हें चरनजोत सिंह नंदा की छाया से बाहर आना ही होगा - लगता है कि राजेश शर्मा ने इसके लिए प्रयास शुरू कर भी दिए हैं । दरअसल राजेश शर्मा को खतरा यह भी है कि बहुत संभव है कि चरनजोत सिंह नंदा इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल का अगला चुनाव लड़े, तब फिर अगला चुनाव उन्हें अपने भरोसे ही लड़ना पड़ेगा - लिहाजा उन्होंने अभी से उसके लिए तैयारी शुरू कर दी है । चरनजोत सिंह नंदा हालाँकि पंजाब के विधानसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाने के चक्कर में बताए जाते हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि वह अकाली दल और आम आदमी पार्टी में टिकट के लिए संभावनाएँ तलाश रहे हैं, और जिससे भी टिकट मिल गया उससे चुनाव लड़ लेंगे । जीत गए तो फिर इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति को राम राम कह देंगे । राजेश शर्मा भी भारतीय जनता पार्टी की तरफ से राज्यसभा में जाने के जुगाड़ में बताए जाते हैं । जब तक उनकी दाल वहाँ नहीं गलती है, तब तक वह इंस्टीट्यूट की राजनीति में शरण लिए रहेंगे । आगे क्या होगा, यह तो आगे पता चलेगा - अभी लेकिन वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव के चक्कर में राजेश शर्मा और चरनजोत सिंह नंदा के संबंधों में दिख रही दरार ने नॉर्दर्न रीजन में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प ट्विस्ट दिया है ।

Monday, January 11, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल की सौदेबाजियाँ भी दीपक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव नहीं जितवा सकीं

नई दिल्ली । ताज पैलेस होटल में आयोजित डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के दूसरे और अंतिम दिन के आखिरी 'प्रोग्राम' में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव का नतीजा घोषित करते हुए जब सुभाष जैन के जीतने का ऐलान हुआ, तो मुकेश अरनेजा और उनके संगी-साथियों के तो जैसे होश उड़ गए । दरअसल उन्होंने तो दीपक गुप्ता की चुनावी जीत का जश्न मनाने की पूरी तैयारी कर ली थी । दीपक गुप्ता को पहनाने के लिए फूल-मालाएँ आ चुकीं थी - यह तय हो चुका था कि पहली बड़ी सी माला मुकेश अरनेजा, रूपक जैन और सतीश सिंघल मिल कर पहनायेंगे; और उसके बाद दूसरे लोग माला पहनायेंगे । माला पहनाने के साथ साथ लोगों का मुँह मीठा करवाने के लिए मिठाई आ चुकी थी । यह तय हो चुका था कि जीत का जुलूस ताज पैलेस होटल से शुरू होकर मयूर विहार स्थित होली डे इन पहुँचेगा, जहाँ फिर देर रात तक पार्टी होगी । इसके लिए होली डे इन में बुकिंग करा ली गई थी । मुकेश अरनेजा, सतीश सिंघल, दीपक गुप्ता व उनके अन्य कुछेक नजदीकी सुबह से जो कपड़े पहने हुए थे, उन्हें बदल कर नए सिरे से सूटेड-बूटेड होकर तैयार हो गए थे । किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर सुभाष जैन की जीत के चुनावी नतीजे ने उनकी सारी तैयारी पर पानी फेर दिया ।
मजे की बात यह रही कि दीपक गुप्ता की चुनावी जीत का भरोसा उनके समर्थकों को सतीश सिंघल की उस पड़ताल से हुआ, जिसे सतीश सिंघल ने वोट डालने वाले क्लब-अध्यक्षों से बात करके पूरा किया था । उल्लेखनीय है कि वोटिंग होने के बाद सतीश सिंघल ने कई एक क्लब-अध्यक्षों को फोन करके उनसे पूछा व इस बात की टोह ली कि उन्होंने किसे वोट दिया है । क्लब-अध्यक्षों से मिले फीडबैक के आधार पर सतीश सिंघल ने हिसाब जोड़ा और पाया कि दीपक गुप्ता को 67 से 72 के बीच वोट पड़े हैं । सतीश सिंघल के इस हिसाब से दीपक गुप्ता के समर्थकों का बम बम होना स्वाभाविक ही था । नतीजा घोषित होने से पहले दीपक गुप्ता के समर्थकों के बीच पैदा हुए जोश को देख कर कुछ समय के लिए तो सुभाष जैन के समर्थकों के बीच निराशा सी पैदा हुई, लेकिन जल्दी ही उन्हें आभास हो गया कि दीपक गुप्ता के समर्थकों के बीच दिख रहा यह जोश वास्तव में गलतफहमियों में तथा हवा में रहने की उनकी प्रवृत्ति का एक और सुबूत है । चुनावी नतीजा घोषित होने के साथ यह साबित भी हो गया । 
दीपक गुप्ता की चुनावी पराजय मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल जैसे उनके समर्थकों के गलतफहमी में तथा हवा में रहने का ही नतीजा है । एक नए उदाहरण से इसे समझा जा सकता है : दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में कॉन्करेंस जुटाने के उनके अभियान में जिन क्लब-अध्यक्षों ने उनकी 'उम्मीद' को पूरा नहीं किया, उनसे वह इस कदर नाराज हो गए कि एक डिस्ट्रिक्ट कार्यक्रम में उनमें से कुछेक ने उन्हें नमस्ते की; तो मुकेश अरनेजा ने उन्हें यह कह कर लताड़ा व अपमानित किया कि तुमने कॉन्करेंस तो दी नहीं, अब नमस्ते किस बात की ? मुकेश अरनेजा ने इस बात का जरा भी ख्याल नहीं रखा कि जिन क्लब-अध्यक्षों को वह लताड़ने व अपमानित करने का काम कर रहे हैं, उन्होंने कॉन्करेंस भले ही न दी हो - लेकिन उन्हें वोट देने के लिए तो राजी किया ही जा सकता है । मुकेश अरनेजा यदि यह कहते कि नमस्ते तो ठीक है, लेकिन इसके साथ आपका समर्थन भी चाहिए होगा ; तो क्लब-अध्यक्ष अपने आप को अपमानित न महसूस करते और दीपक गुप्ता के समर्थकों/वोटों की संख्या में इजाफा ही करते । लेकिन मुकेश अरनेजा का यह स्टाइल नहीं है । गलतफहमी में तथा हवा में रहने के चलते उन्होंने सोचा/माना तो यह था कि वह क्लब-अध्यक्षों से बदतमीजी करेंगे और उसके बाद भी वह क्लब-अध्यक्षों से वोट ले लेंगे । मुकेश अरनेजा ने अपने व्यवहार से अंतिम समय तक लोगों को इर्रिटेट करने का काम किया, जिसका बदला लोगों ने दीपक गुप्ता से लिया । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की गरिमा को छोड़ कर मुकेश अरनेजा चुनाव से पहले हुई क्रिडेंशियल कमेटी की मीटिंग में एक आम रोटेरियन की तरह शामिल हुए, जिसमें अपने बेफालतू के व बेहूदगे सवालों से मीटिंग का माहौल खराब करने का ही काम किया । वोट पड़ने के दौरान वोटिंग-स्थल के बाहर ऊपर जाती सीढ़ियों पर बैठ कर वोट डालने जाते व वोट डाल कर बाहर निकलते अध्यक्षों पर फब्तियाँ कसने का काम करके भी उन्होंने क्लब-अध्यक्षों को वास्तव में दीपक गुप्ता से दूर करने का ही काम किया ।   
दरअसल मुकेश अरनेजा ने जिस तरह की बेहूदगियों, बदतमीजियों व ओछी हरकतों से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम किया; तथा क्लब्स में तोड़-फोड़ मचाने व क्लब्स के पदाधिकारियों को आपस में लड़ाने के साथ-साथ सौदेबाजी का जाल फैला कर क्लब-अध्यक्षों को निशाना बनाया - उससे ही दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के खिलाफ माहौल बन गया था । मुकेश अरनेजा रूपी कोढ़ में सतीश सिंघल रूपी खाज ने मामला और खराब कर दिया । दीपक गुप्ता के पक्ष में वोट पक्के करने के लिए सतीश सिंघल जिस तरह अपने गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट-पदों को बेचने के लिए लोगों के घर घर घूमे, उसने रोटरी को तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा को तो कलंकित करने का काम किया ही, साथ ही लोगों को इर्रिटेट भी किया । सतीश सिंघल का जो रवैया रहा, उससे लग रहा है कि रोटरी को और डिस्ट्रिक्ट 3012 को एक दूसरा 'मुकेश अरनेजा' मिल गया है । नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ अपने क्लब की कॉन्करेंस दे/दिलवा कर, तथा दीपक गुप्ता के लिए वोट जुटाने में अपने को इन्वॉल्व करके सतीश सिंघल ने बता/जता/दिखा दिया कि रोटरी में 35 से अधिक वर्ष गुजारने/बिताने के बाद भी रोटरी के भाव व उसके उच्च आदर्शों को उन्होंने नहीं जाना/पहचाना है; तथा रोटरी उनके लिए हर तरह की सौदेबाजी करने का एक अड्डा भर है ।
मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल की हर सौदेबाजी को लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने फेल कर दिया और सुभाष जैन को एक अच्छे बहुमत से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव जितवा दिया । सुभाष जैन की जीत इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनकी जीत का साफ संदेश यह है कि डिस्ट्रिक्ट 3012 के लोगों को 'खरीद' कर चुनाव नहीं जीता सकता । डिस्ट्रिक्ट 3012 एक नया डिस्ट्रिक्ट है, इसलिए इस संदेश का और भी गहरा अर्थ व प्रभाव है । मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल की सौदेबाजियों को नकार कर डिस्ट्रिक्ट 3012 के सदस्यों ने रोटरी में अपने डिस्ट्रिक्ट की पहचान व प्रतिष्ठा को बनाने/बचाने का भी काम किया है ।

Friday, January 8, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में विनय भाटिया की जीत का अवार्ड विनोद बंसल की बजाए संजय खन्ना को 'मिलने' की आहट में सत्ता समीकरणों के बदलने के संकेत छिपे हैं क्या ?

नई दिल्ली । विनय भाटिया को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनवाने/चुनवाने के लिए पर्दे के पीछे जो खेल चला, उसमें क्या सचमुच विनोद बंसल और अशोक कंतूर के साथ रवि चौधरी की 'राजनीतिक बलि' चढ़ने जा रही है ? यह सवाल लोगों के बीच इसलिए महत्वपूर्ण हो उठा है क्योंकि पिछले काफी समय से विनोद बंसल के अगले डीआरएफसी बनने तथा रवि चौधरी के 'आदमी' के रूप में अशोक कंतूर के अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी उम्मीदवार बनने की चर्चा सुनी जाती रही है, लेकिन अब इस चर्चा के पात्र बदल गए हैं और विनोद बंसल की जगह संजय खन्ना तथा अशोक कंतूर की जगह संजीव राय मेहरा ने ले ली है । रवि चौधरी की जगह अशोक घोष आ गए हैं । मजे की और विडंबना की बात यह है कि विनय भाटिया की उम्मीदवारी के सबसे घनघोर समर्थक विनोद बंसल व रवि चौधरी ही थे, और बिलकुल शुरू से थे; विनय भाटिया की उम्मीदवारी को दिल्ली में समर्थन दिलवाना इन्हीं दोनों के जिम्मे था; और तमाम बदनामियों का सामना करते हुए इन्होंने अपनी अपनी जिम्मेदारी निभाई भी - लेकिन विनय भाटिया की जीत के साथ जब 'मिठाई' बँटने का नंबर आया, तो देखा/पाया जा रहा है कि इन दोनों को लाइन से बाहर कर दिया गया है, और इनकी जगह संजय खन्ना व अशोक घोष को लाइन में शामिल कर लिया गया है । विनोद बंसल और रवि चौधरी का अचानक से जो तख्तापलट होता हुआ दिख रहा है, उससे इन दोनों के नजदीकियों व शुभचिंतकों को खासा झटका लगा है; किंतु उन्हें समझाया जा रहा है कि वह यदि सचमुच विनय भाटिया के समर्थक और शुभचिंतक हैं, तो उन्हें अपना स्वार्थ छोड़ कर यह कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए । 
विनोद बंसल और रवि चौधरी के नजदीकियों व शुभचिंतकों को बताया/समझाया जा रहा है कि यह ठीक है कि विनोद बंसल और रवि चौधरी ने विनय भाटिया की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने के लिए अथक प्रयास किए, किंतु विनय भाटिया को जीत इनके अथक प्रयासों के कारण नहीं मिली है - बल्कि संजय खन्ना और अशोक घोष से मिले 'गुप्त' सहयोग के कारण मिली है; इसलिए 'मिठाई' के सही हकदार वह हैं । दिलचस्प बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में संजय खन्ना और अशोक घोष की भूमिका थी तो तटस्थ - लेकिन यही तटस्थता विनय भाटिया के लिए बड़ी मददगार साबित हुई । दरअसल किसी भी लड़ाई में - किसी भी चुनावी लड़ाई में तटस्थता जैसी कोई भूमिका होती ही नहीं है, तटस्थता भी वास्तव में एक 'पक्ष' होता है : संजय खन्ना और अशोक घोष ने तटस्थ होकर वास्तव में विनय भाटिया का पक्ष 'लिया' और उनके काम आए । मजे की बात यह रही कि विनय भाटिया और रवि दयाल के बीच संगठित हुई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में जो खेमेबाजी बनी, उसमें संजय खन्ना और अशोक घोष देखे/पहचाने तो उस खेमे में जा रहे थे, जो रवि दयाल की उम्मीदवारी के साथ था; लेकिन इन्होंने रवि दयाल की उम्मीदवारी के लिए सक्रियता न दिखा कर 'गुप्त' रूप से विनय भाटिया की मदद की । नोमीनेटिंग कमेटी में कई लोग संजय खन्ना के बड़े नजदीकी थे, और उन्होंने रवि दयाल के समर्थकों से कहा भी था कि संजय खन्ना यदि उनसे रवि दयाल का साथ देने को कहेंगे, तो वह रवि दयाल का ही साथ देंगे । रवि दयाल के समर्थकों ने संजय खन्ना से कई बार यह बात कही भी, लेकिन संजय खन्ना ने उनकी एक न सुनी । विनय भाटिया के समर्थकों ने संजय खन्ना से एक ही बात कही हुई थी कि हम समझते हैं कि आप जहाँ हैं वहाँ होते हुए आपके लिए विनय भाटिया का खुला समर्थन करना मुश्किल होगा, लिहाजा हम तो सिर्फ यह चाहते हैं कि आप रवि दयाल का भी खुला समर्थन न करें । संजय खन्ना ने उनकी यह बात मान ली । विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने इसी तरीके को अपनाकर अशोक घोष का भी समर्थन जुटाया । 
विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं का मानना और कहना है कि विनय भाटिया की जीत में यूँ तो बहुत से लोगों के सहयोग और समर्थन का योगदान है, लेकिन संजय खन्ना और अशोक घोष से मिले 'गुप्त' सहयोग ने वास्तव में निर्णायक भूमिका अदा की है । इसलिए विनय भाटिया की जीत की 'मिठाई' पाने वालों में पहला नंबर इन्हीं दोनों का होगा । संजय खन्ना को डीआरएफसी से नवाजे जाने की चर्चा है । डीआरएफसी पद पर सुशील खुराना का कार्यकाल मौजूदा रोटरी वर्ष में पूरा हो रहा है; उनके बाद इस पद पर विनोद बंसल के सुशोभित होने की चर्चा थी । विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थन में वह जिस संलग्नता के साथ लगे हुए थे, उसे देख कर सभी मान रहे थे कि विनय भाटिया यदि जीत गए तो डीआरएफसी पद विनोद बंसल को मिलना पक्का है । विनय भाटिया की जीत के साथ लेकिन हालात बदले हुए लग रहे हैं । डीआरएफसी पद के लिए अब विनोद बंसल की बजाए संजय खन्ना का नाम सुना जा रहा है । कुछेक लोग हालाँकि विनोद बंसल के लिए दबाव बनाए हुए हैं, लेकिन संजय खन्ना के वकालती ज्यादा हैं; उनका तर्क है कि पिछले वर्ष भी संजय खन्ना का 'गुप्त' सहयोग न मिला होता, तो रवि चौधरी को चुनाव जितवाना मुश्किल होता - इसलिए संजय खन्ना को 'अवार्ड' देना जरूरी है । 
विनय भाटिया की जीत से डिस्ट्रिक्ट के सत्ता समीकरणों में जो बदलाव आता दिख रहा है, उसमें रवि चौधरी व अशोक कंतूर की जोड़ी को जोर का झटका लगता नजर आ रहा है । उल्लेखनीय है कि रवि चौधरी ने बहुत पहले से अशोक कंतूर को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अगले उम्मीदवार के रूप में प्रमोट कर रखा है । रोटरी की चुनावी राजनीति का एक मजेदार पहलू यह भी है कि यहाँ रवि चौधरी टाइप के लोग देखने को खूब मिलते हैं, जो अपना खुद का चुनाव तो किसी तरह मुश्किल से जीत पाते हैं, लेकिन जीतने के तुरंत बाद गॉडफादर वाली भूमिका में आ जाते हैं और दूसरों को जितवाने का ठेका ले लेते हैं । इसी तर्ज पर रवि चौधरी ने ऐलान किया हुआ था कि विनय भाटिया को जितवाने के बाद वह अशोक कंतूर को जितवायेंगे । विनय भाटिया की जीत के बाद लेकिन जिस तरह से संजीव राय मेहरा का नाम अगले उम्मीदवर के रूप में सामने आया है, उससे अशोक कंतूर की उम्मीदवारी की बात गर्दिश में ही दिख रही है । संजीव राय मेहरा को अशोक घोष के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, और इसी कारण से संजीव राय मेहरा की उम्मीदवारी की चर्चा गंभीर हो उठी है । खेमे के नेताओं की बातों से भी लग रहा है कि अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को लेकर कोई भी गंभीर नहीं है । रवि चौधरी व अशोक कंतूर की तरफ से हालाँकि कहा जा रहा है कि संजीव राय मेहरा के लिए उम्मीदवार 'बनना' संभव ही नहीं होगा, और इसलिए फिर सभी अशोक कंतूर की उम्मीदवारी पर सहमत हो ही जायेंगे । लेकिन संजीव राय मेहरा के उम्मीदवार न बन 'पाने' की संभावना को देखते हुए जिस तरह से अन्य कुछेक लोग अपने अपने लिए मौके तलाशने में जुटे हैं, उसे देख/सुन कर अशोक कंतूर के लिए मामला मुश्किल बनता हुआ नजर आ रहा है । 
विनय भाटिया की जीत के साथ ही डिस्ट्रिक्ट के सत्ता समीकरणों में जो बदलाव आता दिख रहा है, और इस बदलाव में विनोद बंसल और रवि चौधरी जिस तरह अलग-थलग पड़ते हुए नजर आ रहे हैं, उसमें डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में दिलचस्प नजारे बनने/दिखने के संकेत साफ पढ़े जा सकते हैं ।

Thursday, January 7, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में सोनीपत वाले दीपक कुमार गुप्ता की बनी बुरी चुनावी-गत ने गाजियाबाद वाले दीपक गुप्ता की मुसीबतों को बढ़ाने का काम तो किया ही है

सोनीपत । मुकेश अरनेजा के चक्कर में सोनीपत वाले दीपक कुमार गुप्ता की जैसी चुनावी दुर्गति हुई है, उसने गाजियाबाद वाले दीपक गुप्ता तथा उनके समर्थकों को बुरी तरह डरा दिया है । उल्लेखनीय है कि सोनीपत वाले दीपक कुमार गुप्ता ने इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी, जिसमें वह अपनी जमानत तक नहीं बचा सके और बुरी तरह चुनाव हारे । चुनाव में उनकी बुरी स्थिति का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि कुल पड़े वैध 23 हजार 28 वोटों में से दीपक कुमार गुप्ता को मात्र 196 वोट मिले । दीपक कुमार गुप्ता की यह शर्मनाक पराजय खबर इसलिए नहीं है कि उन्हें कुल पड़े वोटों में एक प्रतिशत से भी कम वोट मिले - उनकी पराजय खबर इसलिए है क्योंकि अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए उन्होंने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स पर भरोसा करने की बजाए मुकेश अरनेजा पर भरोसा करने की मूर्खता की । दीपक कुमार गुप्ता चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सोनीपत ब्रांच के चेयरमैन रहे हैं, इस नाते उम्मीद की जाती है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति के अंदरूनी समीकरणों की उन्हें इतनी समझ तो होगी ही कि वह मुकेश अरनेजा की बातों में न फँसते । दीपक कुमार गुप्ता लेकिन मुकेश अरनेजा की बातों में फँसे और ऐसा फँसे कि चारों खाने चित्त होकर धूल फाँकने की स्थिति को प्राप्त हुए । 
उल्लेखनीय है कि दीपक कुमार गुप्ता के सामने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए बेहतर विकल्प थे । दिलचस्प संयोग रहा कि जिस समय दीपक कुमार गुप्ता को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में अभियान चलाना था, उसी समय उनके रोटरी डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अभियान चला रहे चार उम्मीदवारों में से तीन - अशोक गर्ग, प्रवीन निगम और सुभाष जैन ऑडीटर फर्म के पार्टनर थे । दीपक कुमार गुप्ता अपने चुनाव में फायदा लेने के लिए इन तीनों के साथ और/या इनमें से किसी एक के साथ जुड़ सकते थे । ऑडीटर फर्म के पार्टनर के रूप में यह दीपक कुमार गुप्ता के लिए उपयोगी साबित हो सकते थे । दीपक कुमार गुप्ता ने लेकिन इनसे जुड़ने की और इन पर भरोसा करने की बजाए मुकेश अरनेजा पर भरोसा किया । दरअसल मुकेश अरनेजा उन्हें यह समझाने में कामयाब रहे कि वह उन्हें रोटेरियन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का समर्थन दिलवायेंगे; और सिर्फ दिल्ली के ही नहीं हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश के रोटेरियन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का समर्थन भी उनके लिए जुटायेंगे । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में दिल्ली के साथ साथ हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश भी आता है; लिहाजा जाहिर है कि इन प्रदेशों के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स भी नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों के लिए वोट डालते हैं । मुकेश अरनेजा 'फेंकने' की कला के तो उस्ताद खिलाड़ी हैं ही; इस कला की अपनी उस्तादी का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने दीपक कुमार गुप्ता को समझाया कि तुम तो जानते ही हो कि मेरे तो दिल्ली के साथ साथ हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश के रोटेरियंस के साथ कैसे नजदीकी संबंध हैं; और इन चारों राज्यों में करीब ढाई-तीन हजार रोटेरियन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स हैं - जिनके वोट तो मैं तुम्हें घर बैठे ही दिलवा दूँगा; तुम्हें कहीं किसी और के पास जाने की और कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । 
यह ऑफर यूँ तो हर किसी को अच्छा लगेगा, लेकिन जो लोग मुकेश अरनेजा की 'असलियत' को जानते/पहचानते हैं - उनसे तो उम्मीद की ही जाती है कि वह मुकेश अरनेजा के 'फेंकने' में नहीं फँसेंगे । इसके बावजूद दीपक कुमार गुप्ता उनके झाँसे में फँसे । दीपक कुमार गुप्ता लंबे समय से रोटरी में सक्रिय हैं, और मुकेश अरनेजा के बड़े नजदीक रहे हैं - इसके बावजूद वह मुकेश अरनेजा की 'असलियत' से परिचित नहीं हो सके हैं और उनके झाँसे में फँसे, तो उनसे किसी को हमदर्दी भी नहीं है । मुकेश अरनेजा खुशकिस्मत हैं कि उनकी सारी पोल-पट्टी जगजाहिर है, लेकिन फिर भी कुछ अंधभक्त लुटने-पिटने के लिए उन्हें मिल ही जाते हैं । मुकेश अरनेजा ने दीपक कुमार गुप्ता को जो सब्जबाग दिखाए, वह दरअसल अपना काम निकालने के उद्देश्य से दिखाए; उन्हें गाजियाबाद वाले दीपक गुप्ता को दिखाना था कि सोनीपत वाला उनका पट्ठा उनके साथ बना हुआ है । अब 'पट्ठा' यदि मूर्ख बन रहा है, तो इसमें मुकेश अरनेजा की भला क्या गलती है ? दीपक कुमार गुप्ता को रोटेरियन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का समर्थन दिलवाने की मुकेश अरनेजा की झाँसा-पट्टी का असली हाल यह रहा कि हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश तो छोड़िये - दिल्ली तक में रोटेरियन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का समर्थन दीपक कुमार गुप्ता को नहीं मिला । मुकेश अरनेजा के नजदीकी के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले रोटेरियन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स तक दीपक कुमार गुप्ता की बजाए नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के दूसरे उम्मीदवारों के समर्थन में देखे जा रहे थे । जाहिर है कि मुकेश अरनेजा ने अपना काम निकालने के लिए दीपक कुमार गुप्ता को जमकर उल्लू बनाया । 
दीपक कुमार गुप्ता की शर्मनाक पराजय ने, जिसमें कि वह एक प्रतिशत से भी कम वोट पाने के कारण अपनी जमानत तक नहीं बचा सके हैं, दो दिन बाद होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को दिलचस्प बना दिया है । दीपक गुप्ता के समर्थकों के बीच डर पैदा हुआ है कि मुकेश अरनेजा के 'फेंकने' में फँसने से दीपक कुमार गुप्ता की जो फजीहत हुई है, उसके कारण अब वह मुकेश अरनेजा से बदला लेना चाहेंगे तथा इसके लिए वह दीपक गुप्ता के समर्थन से पीछे हटेंगे । मुकेश अरनेजा हालाँकि अभी भी दीपक गुप्ता के समर्थकों को आश्वस्त कर रहे हैं कि दीपक कुमार गुप्ता उनके पक्के वाले चेले हैं; आप देखियेगा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में वह उनके साथ सक्रिय नजर आयेंगे । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में मुकेश अरनेजा की झाँसा-पट्टी में आकर अपनी फजीहत कराने वाले दीपक कुमार गुप्ता, दीपक गुप्ता के समर्थकों के डर को सच साबित करेंगे या मुकेश अरनेजा के भरोसे को - यह तो दस जनवरी को ही पता चलेगा; लेकिन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के चुनाव में सोनीपत वाले दीपक कुमार गुप्ता की बनी बुरी गत ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में गाजियाबाद वाले दीपक गुप्ता की मुसीबतों को बढ़ाने का काम तो कर ही दिया है । 

Wednesday, January 6, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में बार बार तहस-नहस होते रहे मुकेश गोयल विरोधी मंच को फिर से खड़ा करने की कोशिश में रेखा गुप्ता मोहरा बनीं

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील निगम ने जिस सहजता और तत्परता से कॉन्फ्रेंस के रजिस्ट्रेशन चार्ज कम रखने की मुकेश गोयल की सलाह को मान लिया, उसे देख कर रेखा गुप्ता के सहारे राजनीति जमाने की कोशिश करने वाले लोगों के तो जैसे तोते ही उड़ गए हैं । 'वे' दरअसल सुनील निगम को अपने साथ मान रहे थे; और इस नाते उम्मीद कर रहे थे कि मुकेश गोयल के सुझाव को तो सुनील निगम कतई स्वीकार नहीं करेंगे । लेकिन सुनील निगम ने उल्टा ही नजारा पेश किया । हुआ यह कि डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट की नोएडा में आयोजित तीसरी मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुनील निगम ने कॉन्फ्रेंस के रजिस्ट्रेशन चार्ज के रूप में 1200 रुपए तय करने का प्रस्ताव रखा; मीटिंग में मौजूद दूसरे लोग इस प्रस्ताव पर सहमति प्रगट करते दिखे, लेकिन एक अकेले मुकेश गोयल ने 1200 रुपए की रकम को आम लायन सदस्यों के लिए ज्यादा बताते हुए पिछली कॉन्फ्रेंस के रजिस्ट्रेशन चार्ज को ही रखने का सुझाव दिया । पिछले लायन वर्ष की कॉन्फ्रेंस में रजिस्ट्रेशन के रूप में 800 रुपए बसूल किए गए थे । सुनील निगम ने बिना कोई समय गवाएँ मुकेश गोयल के सुझाव को स्वीकार कर लिया । मंच पर यह जो 'काम' हुआ, इसे तो सभी ने देखा - लेकिन इसके पीछे छिपे राजनीतिक मंतव्य को कुछ ही लोगों ने 'पढ़ा'; डिस्ट्रिक्ट में पूरी तरह तहस-नहस हो चुके मुकेश गोयल विरोधी मंच को फिर से जमाने की कोशिश करने वाले लोगों ने तो इस मंतव्य को खासी निराशा के साथ 'पढ़ा' ।
दरअसल, रेखा गुप्ता को शिखंडी की तरह इस्तेमाल करते हुए जिन लोगों ने मुकेश गोयल विरोधी मंच फिर से बनाने/सजाने का प्रयत्न शुरू किया है, उन्होंने सुनील निगम को अपने साथ माना था; किंतु रजिस्ट्रेशन चार्ज तय करने के मामले में सुनील निगम ने जिस तरह से मुकेश गोयल की बात मान ली, उससे उन्हें सुनील निगम - मुकेश गोयल के साथ जाते हुए 'दिख' रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में एक सदाबहार और शाश्वत सा दृश्य अक्सर बनता रहता है, जिसके केंद्र में मुकेश गोयल रहते हैं । डिस्ट्रिक्ट में अक्सर मुकेश गोयल विरोधी मंच बनाने की सुगबुगाहट चलती है, जो इस तथ्य से खाद-पानी पाती है कि डिस्ट्रिक्ट में बहुत से लोग मुकेश गोयल के तौर-तरीकों को पसंद नहीं करते हैं और उन्हें निपटाना चाहते हैं । यह सच्चाई भी है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों में 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिनका वश चले तो वह पहला काम मुकेश गोयल को निपटाने का करें । इस 'सच्चाई' के चलते मुकेश गोयल को तो वर्षों पहले निपट जाना चाहिए था; किंतु प्रायः हर बार के सत्ता संघर्ष में मुकेश गोयल और और ज्यादा मजबूत होकर उभरे हैं तथा मुकेश गोयल विरोधी मंच छिन्न-भिन्न होता रहा है । इस बार भी नए सिरे से मुकेश गोयल विरोधी मंच की नींव रखने की तैयारी करते हुए रेखा गुप्ता को सब्जबाग तो यही दिखाया गया कि मुकेश गोयल का तो चौतरफा विरोध है - जो घोषित विरोधी हैं, वह तो हैं ही; मुकेश गोयल के जो नजदीकी हैं, वह भी उनसे नाराज हैं और उनके साथ नहीं जायेंगे । इस संबंध में उन्हें खास तौर से सुनील निगम, अरुण मित्तल और अजय सिंघल का नाम बताया गया । किंतु डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के रजिस्ट्रेशन चार्ज को तय करने में मुकेश गोयल की जो भूमिका देखने को मिली, उससे प्रतीकात्मक संदेश यही गया है कि रेखा गुप्ता को झूठे आश्वासनों से बहला कर उम्मीदवार बना/बनवा दिया गया है । 
मुकेश गोयल विरोधी मंच बनाने की इस बार की तैयारी का मजेदार पहलू यह है कि इस तैयारी के मुख्य सूत्रधार शिवकुमार चौधरी, मुकेश गोयल के शरणागत होकर ही गवर्नर की लाइन में आ सके हैं । नोएडा में आयोजित तीसरी कैबिनेट मीटिंग में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिवकुमार चौधरी ने जब यह फरमाया कि वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में ठेकेदारी प्रथा खत्म करने आए हैं - तो बिलकुल सही फरमाया । वह आए तो ठेकेदारी प्रथा खत्म करने ही थे, किंतु उन्होंने यह नहीं बताया कि फिर बाद में उन्होंने यू-टर्न ले लिया था । उल्लेखनीय है कि उन्होंने अपना पहला चुनाव 'ठेकेदार' के खिलाफ ही लड़ा था, और उसमें वह बुरी तरह पराजित हुए थे । दूसरी बार चुनाव लड़ने का जब मौका आया तो शिवकुमार चौधरी की 'समझ' में आ गया था कि 'ठेकेदार' के खिलाफ बातें करना तो आसान है, लेकिन उससे लड़ना मुश्किल है - लिहाजा शिवकुमार चौधरी ने 'ठेकेदार' के सामने समर्पण करने में जरा भी देर नहीं लगाई और उनकी जी-हुजूरी करने लगे । उसका सुफल भी उन्हें मिला और 'ठेकेदार' की कृपा से चुनाव में जीत कर वह गवर्नर वाली लाइन में लगे । ऐसे में, अब जब वह फिर से ठेकेदारी के विरोध का जुमला उछालने लगे हैं तो लोगों का कहना/पूछना स्वाभाविक ही है कि इतना ही दम था तो गवर्नर बनने के लिए खुद 'ठेकेदार' की शरण में क्यों चले गए थे ? हालाँकि यह सच्चाई शिवकुमार चौधरी को नहीं समझनी है - उन्हें तो रेखा गुप्ता को इस्तेमाल करके अपनी राजनीति करने का मौका मिला है; यह सच्चाई तो रेखा गुप्ता को समझनी है - चुनावी घमासान में आखिर समय, एनर्जी और पैसा तो उनका खर्च होना है । 
मुकेश गोयल के सुझाव पर रजिस्ट्रेशन चार्ज कम करने/रखने पर सुनील निगम ने जो तत्परता दिखाई, उसमें अरुण मित्तल की सहमति होने की संभावना ने रेखा गुप्ता के लिए ज्यादा बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है । रेखा गुप्ता को भरोसा दिलाया गया था कि अरुण मित्तल को चूँकि गवर्नर के नजदीक रहने का शौक है, और वह कोई न कोई तिकड़म भिड़ा कर गवर्नर के नजदीक हो ही जाते हैं - इसलिए वह शिवकुमार चौधरी के भी नजदीक रहेंगे । अरुण मित्तल के दोस्ताना व्यवहार को शिवकुमार चौधरी और उनके नजदीकियों ने नजदीकी बनाने की उनकी तिकड़मों के रूप में 'देखा' भी और बहुत ही अभद्र व अपमानजनक तरीके से जगह जगह टिपण्णियाँ भी कीं । अरुण मित्तल ने चूँकि उनका कभी संज्ञान नहीं लिया और शिवकुमार चौधरी व उनके नजदीकियों से सहज संबंध बनाए रखे, जिसे शिवकुमार चौधरी व उनके नजदीकियों ने उनकी 'कमजोरी' के रूप में देखा/पहचाना । इसी बिना पर उन्होंने अरुण मित्तल को अपने साथ माना और 'दिखाया' । अरुण मित्तल की तरफ से हालाँकि सफाई भी आई कि रेखा गुप्ता के परिवार के साथ उनके पुराने संबंध हैं, इसलिए रेखा गुप्ता की महत्वाकांक्षा के प्रति उनकी सहानुभूति होना स्वाभाविक ही है - किंतु इस सहानुभूति को चुनावी राजनीति से जोड़ कर देखना जल्दबाजी करना होगा । अरुण मित्तल की तरफ से कहा गया है कि रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी को हवा देने में उनका हाथ बताना कुछेक लोगों का दुष्प्रचार है । अरुण मित्तल की इस तरह की सफाईयों के बीच सुनील निगम का मुकेश गोयल का सुझाव तत्परता से स्वीकार करना रेखा गुप्ता के लिए 'सिर मुंडाते ही ओले पड़ने' जैसा साबित हुआ है । 

Tuesday, January 5, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में क्लब्स के सदस्यों को एक दूसरे के खिलाफ भड़काने तथा उन्हें आपस में लड़वाने की मुकेश अरनेजा वाली रणनीति खुद अपना कर दीपक गुप्ता दोहरी मुसीबत में फँसे

गाजियाबाद । दीपक गुप्ता के नजदीकी मुकेश अरनेजा के तौर-तरीकों को अपनाते हुए क्लब्स में झगड़े कराने के प्रयासों में जिस तरह की बातें कर रहे हैं, उनमें से कुछ के रिकॉर्ड पर आने की खबर से दीपक गुप्ता के नजदीकियों व समर्थकों के बीच खलबली मच गई है । हुआ यह कि दीपक गुप्ता के नजदीकी विभिन्न क्लब्स के सदस्यों को उनके पदाधिकारियों के खिलाफ पट्टी पढ़ाने की कोशिश में बेसिरपैर की तथा बदनामीभरी ऐसी ऐसी बातें कर रहे हैं, जिनसे क्लब्स के लोगों के बीच मनमुटाव पैदा हो तथा उनके बीच झगड़े हों । क्लब्स में झगड़े करवा कर अपना उल्लू सीधा करने की उनकी यह चाल लेकिन यह जान कर मुश्किल में पड़ गई कि फोन पर की गईं उनकी इस तरह की कुछेक बातें रिकॉर्ड कर ली गईं हैं । इससे लोगों के बीच यह बहुत स्पष्ट हो गया है कि दीपक गुप्ता के नजदीकी दीपक गुप्ता की चुनावी पराजय को सामने देख कर क्लब्स के पदाधिकारियों को बदनाम करने तथा क्लब्स में झगड़े करवाने के घटिया स्तर तक पर उतर आए हैं । 
यह मुकेश अरनेजा की चुनावी राजनीति का ही नहीं, उनके सामान्य व्यवहार का बड़ा पुराना और घिसपिट चुका तरीका है - जिसमें सामने वाले को तरह तरह से बदनाम करने का प्रयास किया जाता है । मुकेश अरनेजा के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि इस तरीके को इस्तेमाल करने के बावजूद उन्हें हासिल कुछ नहीं हुआ, और उन्होंने बदनामियों का जो घोल दूसरों के लिए तैयार किया वह घोल उन्हीं पर चढ़ता रहा । दीपक गुप्ता के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि मुकेश अरनेजा के हाल से दीपक गुप्ता ने लगता है कि कोई सबक नहीं सीखा है और बदनामी पाने वाले काम वह खुद भी करने लगे हैं । यह बात सामने आने के बाद दीपक गुप्ता के शुभचिंतकों को यह जान कर धक्का लगा है कि चुनावी हार को सामने देख कर दीपक गुप्ता और उनके नजदीकी इस कदर बदहवास हो गए हैं कि मुकेश अरनेजा के स्तर के घटियापने पर उतर आए हैं । दीपक गुप्ता के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का ही मानना और कहना है कि इस तरह की बातों व हरकतों से अपनी हार को तो वह जीत में नहीं ही बदल पायेंगे, अपनी साख व प्रतिष्ठा और हार के कारण लोगों के बीच पैदा होने वाली सहानुभूति को लेकिन वह जरूर खो देंगे । इन लोगों का दीपक गुप्ता के लिए सुझाव है कि सामने दिख रही अपनी चुनावी पराजय को उन्हें खिलाड़ी-भावना  के साथ स्वीकार करना चाहिए और गंभीरता के साथ अपने चुनाव अभियान में रह गई कमियों की पड़ताल करना चाहिए और उन्हें दूर करते हुए आगे के वर्षों में फिर प्रयास करना चाहिए । इस तरह के रिएक्शन से साबित हुआ कि क्लब्स के सदस्यों व पदाधिकारियों को भड़काने की रणनीति से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी को दोतरफा नुकसान हुआ : पोल खुलने से एक तरफ तो लोगों के बीच नाराजगी पैदा हुई कि दीपक गुप्ता के नजदीकी उन्हें एक दूसरे से लड़ाने के प्रयास कर रहे हैं; और दूसरी तरफ उनके शुभचिंतक भी इस तरह की बातों से भड़के हैं तथा उनके खिलाफ होते नजर आ रहे हैं । 
दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के अभियान के साथ मजेदार किस्म की बुरी बात यह हुई कि उसे डिस्ट्रिक्ट में लोगों का समर्थन तो नहीं ही मिला, टेक्नोलॉजी ने भी उसकी मदद नहीं की - उलटे बल्कि उनकी पोल ही खोली । रोटरी क्लब वैशाली की एक मीटिंग में क्लब के पदाधिकारियों की पदों के बदले अपना समर्थन 'बेचने' की स्वीकारोक्ति रिकॉर्ड न हुई होती, तो यह सच्चाई कभी लोगों के सामने न आ पाती कि सतीश सिंघल के गवर्नर-काल के पद बेच कर मुकेश अरनेजा - दीपक गुप्ता के लिए समर्थन जुटाने का काम कर रहे हैं । इसी तरह, क्लब्स के सदस्यों व पदाधिकारियों को एक दूसरे के खिलाफ भड़का कर उन्हें आपस में लड़ाने की कोशिश करना दीपक गुप्ता के अभियान को भारी पड़ा है । इस प्रसंग ने दिखाया/जताया है कि सामने दिख रही हार ने दीपक गुप्ता के नजदीकियों व समर्थकों को बुरी तरह से हताश व निराश कर दिया है और अपनी हताशा/निराशा में वह क्लब्स के पदाधिकरियों को बदनाम करने की हद तक जा पहुँचे हैं । 

Sunday, January 3, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में विकास जैन को इंदौर में विष्णु झावर व मनोज फडनिस की चौधराहट के खिलाफ फैली नाराजगी का शिकार होना पड़ा

इंदौर । विकास जैन की कूड़ा बुहारते सार्वजनिक हुई तस्वीर ने एक मजेदार किस्म का प्रतीकात्मक संयोग बनाया - क्योंकि जिस समय उनकी यह तस्वीर लोगों के सामने आई, लगभग उसी समय इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए चल रही वोटों की गिनती में विकास जैन के 'बुहारे' जाने की सूचना लोगों को मिली । पहली वरीयता के वोटों की गिनती में 23 उम्मीदवारों के बीच विकास जैन के 847 वोटों के साथ दसवें नंबर पर रहने की सूचना मिली तो हर कोई हैरान रह गया । विकास जैन के समर्थकों व शुभचिंतकों के लिए ही नहीं, उनके विरोधियों के लिए भी यह नतीजा हैरान करने वाला था । इंदौर में यह मानने और कहने वाले लोग तो काफी थे कि विकास जैन चुनाव नहीं जीतेंगे, लेकिन उनकी इतनी बुरी हार की उम्मीद उनके घनघोर किस्म के विरोधियों को भी नहीं थी । कोढ़ में खाज वाली बात यह हुई कि केमिशा सोनी चुनाव जीत गईं - और अच्छे प्रदर्शन के साथ जीत गईं । 1328 वोटों के साथ पहली वरीयता के वोटों की गिनती में वह तीसरे नंबर पर थीं । विकास जैन की हार की तरह केमिशा सोनी की जीत भी इंदौर के लोगों के लिए किसी चमत्कार की तरह रही । वास्तव में, केमिशा सोनी के समर्थकों व शुभचिंतकों को भी उनकी इतनी बड़ी जीत की उम्मीद नहीं थी । इसलिए इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में विकास जैन की बड़ी हार तथा केमिशा सोनी की बड़ी जीत के कारणों को समझने/पहचानने के लिए गहन विश्लेषण की जरूरत है । 
पहली नजर में यह चुनावी नतीजा विष्णु झावर और मनोज फडनिस की हार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । विष्णु झावर उर्फ काका जी को इंदौर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के गॉडफादर के रूप में देखा/पहचाना जाता है; और मनोज फडनिस इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट हैं । इन दोनों का समर्थन विकास जैन को था । सिर्फ समर्थन होता, तो भी कोई बात नहीं थी - हर किसी का किसी न किसी को समर्थन होता ही है; विष्णु झावर और मनोज फडनिस की भूमिका लेकिन समर्थक से बड़ी - बहुत बड़ी थी । उन्होंने विकास जैन को चुनाव जितवाने के लिए जो भी, जैसी भी तीन-तिकड़म हो सकती थी - वह की; और इसके लिए अपनी वरिष्ठता, अपनी पोजीशन व अपने पद की गरिमा तक को दाँव पर लगाया हुआ था । मनोज फडनिस भूल गए थे कि वह एक उम्मीदवार के समर्थक कार्यकर्ता नहीं हैं; इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट हैं, और इस नाते उनकी कुछ नैतिक व प्रशासनिक जिम्मेदारी है । विष्णु झावर व मनोज फडनिस की देखरेख में चले विकास जैन की उम्मीदवारी के अभियान का सबसे शर्मनाक पहलू यह रहा कि कई मौकों पर केमिशा सोनी को बहुत ही अभद्र व अशालीन तरीके से निशाना बनाया गया । समझा जाता है कि इसी बात ने केमिशा सोनी के प्रति लोगों के बीच हमदर्दी पैदा की, जिसका उन्हें चुनावी फायदा मिला । 
विष्णु झावर को इंदौर में कई लोगों ने यह समझाने की कोशिश की थी कि सेंट्रल काउंसिल के लिए विकास जैन उपयुक्त व्यक्ति नहीं हैं; और विकास जैन की जगह किसी और को उन्हें उम्मीदवार बनाना चाहिए । विष्णु झावर ने लेकिन किसी की नहीं सुनी । उन्होंने माना और कहीं कहीं कहा भी कि भले ही विकास जैन सेंट्रल काउंसिल के लायक न हों, किंतु मैं उन्हें सेंट्रल काउंसिल में भिजवाऊँगा । विष्णु झावर की इस अहंकारपूर्ण सोच व कहन को लोगों ने लगता है कि दिल पर ले लिया; और उन्हें विष्णु झावर व मनोज फडनिस को यह 'बताना' जरूरी लगा कि सेंट्रल काउंसिल में किसी को भिजवाने का काम उनका नहीं, 'हमारा' है । कुछेक लोगों का कहना है कि इंदौर में विष्णु झावर और मनोज फडनिस ने चौधराहट दिखाने/ज़माने की जो कोशिश की है, उसके प्रति लोगों के बीच गहरी नाराजगी व विरोध का भाव है, जिसका शिकार विकास जैन को होना पड़ा है । इन दोनों की छाया में रहने के कारण विजेश खण्डेलवाल रीजनल काउंसिल तक का चुनाव हार गए । इसीलिए विकास जैन की हार को विकास जैन की हार के रूप में नहीं, बल्कि वास्तव में विष्णु झावर व मनोज फडनिस की हार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । 

Friday, January 1, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में रमन अनेजा की बदनामी से जुड़े मामले में राजा साबू को शामिल कर लेने से रमन अनेजा के लिए स्थिति और विवादपूर्ण व फजीहतभरी बनी

पानीपत । राजेंद्र उर्फ राजा साबू को संबोधित एक पत्र के मजमून ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी रमन अनेजा के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है । इस पत्र ने करीब चार वर्ष पहले की रमन अनेजा की बदनामी से जुड़ी धूल खा रही एक घटना की धूल को झाड़ कर एक बार फिर रमन अनेजा के सामने ला खड़ा किया है । पत्र में राजा साबू से अनुरोध किया गया है कि वह रमन अनेजा से उक्त घटना के सही सही तथ्य जानें और उन्हें लोगों के बीच प्रसारित करें, ताकि उस घटना को लेकर चल रही बदनामीपूर्ण चर्चाओं पर विराम लग सके । अपने आप को पानीपत में पिछले कई वर्षों से सक्रिय रोटेरियन बताने वाले लोगों की तरफ से लिखे इस पत्र में कहा गया है कि उक्त घटना की चर्चा से न सिर्फ रमन अनेजा की बदनामी हो रही है, बल्कि डिस्ट्रिक्ट व रोटरी का भी नाम खराब हो रहा है । पत्र में कहा गया है कि उक्त घटना की चर्चा से चूँकि डिस्ट्रिक्ट व रोटरी की भी बदनामी हो रही है, इसलिए हम आपसे अनुरोध कर रहे हैं कि आपको इस मामले से जुड़े सही तथ्यों को सामने लाने के लिए कार्रवाई करना चाहिए और रमन अनेजा से कहना चाहिए कि इस मामले में वह अपना पक्ष स्पष्ट रूप से लोगों के बीच रखें - जिससे कि लोगों द्वारा की जा रही बदनामीपूर्ण चर्चाओं पर विराम लग सके । पत्र में कहा गया है कि उक्त घटना को लेकर चूँकि रमन अनेजा ने पूरी तरह से चुप्पी साधी हुई है, और उनकी चुप्पी के कारण उक्त घटना की चर्चा को और बल मिल रहा है, इसलिए मामले में हस्तक्षेप करने के लिए हमें आपसे अनुरोध करना पड़ रहा है । 
लोगों के बीच जो चर्चा है उसके अनुसार करीब चार वर्ष पहले रमन अनेजा पानीपत में एक होटल में पकड़े गए थे - क्यों पकड़े गए थे, इसे लेकर जितने मुँह उतनी बातें हैं । उनके पकड़े जाने की बात चूँकि रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हुई थी, इसलिए रमन अनेजा की तरफ से औपचारिक तरीके से कभी भी उसका कोई जबाव नहीं दिया गया । औपचारिक रूप से जबाव देने की हालाँकि उन्हें कभी जरूरत भी नहीं पड़ी । लोग उनके पकड़े जाने की बात पर चर्चा करते रहे, और रमन अनेजा इस चर्चा को इग्नोर करते रहे । दो वर्ष पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उन्होंने जब अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की, तब यह मामला पानीपत की सीमा से बाहर निकल कर डिस्ट्रिक्ट में चर्चा का विषय बना । रमन अनेजा की तरफ से हालाँकि तब भी औपचारिक रूप से इस मामले में कुछ नहीं कहा/बताया गया । उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों ने अपनी अपनी समझ के हिसाब से जरूर इसका जबाव दिया : किसी ने कहा कि पानीपत में रमन अनेजा के विरोधियों ने षड्यंत्र करके उन्हें पकड़वा दिया था; किसी ने कहा कि पुलिस की गलतफहमी के चलते वह पुलिस का शिकार हो गए थे; किसी ने कहा कि उनके पकड़े जाने की बात जब रिकॉर्ड पर ही नहीं है तो इसे लेकर बात क्यों की जा रही है; आदि-इत्यादि । डिस्ट्रिक्ट के बड़े नेताओं/पदाधिकारियों के सामने भी यह मामला आया और उनसे माँग की गई कि रमन अनेजा की बदनामी को देखते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी के नामांकन को रद्द किया जाए । रमन अनेजा के समर्थकों की तरफ से इस माँग का विरोध करने के लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मनमोहन सिंह का उदाहरण दिया गया । कहा गया कि मनमोहन सिंह के खिलाफ तो रिपोर्ट दर्ज है और उनके खिलाफ तो कोर्ट में केस चल रहा है, लेकिन फिर भी उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने ने नहीं रोका गया; रमन अनेजा के खिलाफ तो कोई रिपोर्ट भी दर्ज नहीं है - लिहाजा उनकी उम्मीदवारी को कैसे रोका जा सकता है ? 
बदनामीपूर्ण चर्चाओं के बावजूद रमन अनेजा की उम्मीदवारी का नामांकन न सिर्फ स्वीकार हुआ, बल्कि उनकी उम्मीदवारी सफल भी हुई । बदनामीपूर्ण चर्चा डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में रमन अनेजा के बढ़ते कदमों को तो नहीं रोक पाई; लेकिन उनके लिए बुरी बात यह हुई कि जैसे जैसे उन्होंने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की सीढ़ियाँ चढ़ना शुरू कीं, वैसे वैसे उक्त घटना के संदर्भ में उनकी बदनामी का दायरा भी फैलता गया । पहले यह बात पानीपत में कुछेक लोगों को पता थी और उनके बीच चर्चा का विषय थी । रमन अनेजा ने लेकिन जैसे ही रोटरी में अपने कदम पानीपत से बाहर निकाले और डिस्ट्रिक्ट में उन्होंने अपनी जगह व पोजीशन पाने के प्रयास शुरू किए, वैसे ही यह मामला भी डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपनी जगह बनाता गया । राजा साबू को लिखे पत्र में कहा गया है कि डिस्ट्रिक्ट में अनौपचारिक बातचीत में लोग रमन अनेजा के लिए प्रायः 'होटल वाले' संबोधन का प्रयोग करते हैं । 
रमन अनेजा से सहानुभूति रखने वाले लोगों का कहना है कि रमन अनेजा की सफलता को हजम न कर पाने वाले लोग अब रमन अनेजा को बदनाम करने पर उतर आए हैं, और किसी न किसी तरह से मामले को चर्चा में बनाए रखने का प्रयत्न कर रहे हैं । ऐसे लोगों ने ही राजा साबू को पत्र लिख कर इस मामले में अब राजा साबू को भी घसीट लिया है । सहानुभूति रखने वाले ही कुछेक लोगों का यह भी मानना और कहना है कि इस मामले में रमन अनेजा की होशियारी ही अब उन्हें महँगी पड़ रही है । उनके लिए एक समय तक तो चर्चा को इग्नोर करना ठीक फैसला था; लेकिन जब वह आगे बढ़े तो उन्हें समझना चाहिए कि उनके साथ साथ यह चर्चा आगे न बढ़े और इसके लिए उन्हें अपनी तरफ से सही तथ्य प्रस्तुत करना चाहिए था । उन्होंने सोचा था कि मामले को लेकर वह चुप बने रहेंगे तो मामला अपने आप शांत हो जायेगा । उनकी बदकिस्मती से लेकिन ऐसा नहीं हो सका । रमन अनेजा की इस चुप्पी ने उक्त घटना को लेकर उनकी स्थिति को और विवादपूर्ण बना दिया है, जो उनके लिए भारी फजीहत का सबब बन सकती है ।