नई दिल्ली । ताज पैलेस होटल में आयोजित डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के दूसरे और अंतिम दिन के आखिरी 'प्रोग्राम' में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव का नतीजा घोषित करते हुए जब सुभाष जैन के जीतने का ऐलान हुआ, तो मुकेश अरनेजा और उनके संगी-साथियों के तो जैसे होश उड़ गए । दरअसल उन्होंने तो दीपक गुप्ता की चुनावी जीत का जश्न मनाने की पूरी तैयारी कर ली थी । दीपक गुप्ता को पहनाने के लिए फूल-मालाएँ आ चुकीं थी - यह तय हो चुका था कि पहली बड़ी सी माला मुकेश अरनेजा, रूपक जैन और सतीश सिंघल मिल कर पहनायेंगे; और उसके बाद दूसरे लोग माला पहनायेंगे । माला पहनाने के साथ साथ लोगों का मुँह मीठा करवाने के लिए मिठाई आ चुकी थी । यह तय हो चुका था कि जीत का जुलूस ताज पैलेस होटल से शुरू होकर मयूर विहार स्थित होली डे इन पहुँचेगा, जहाँ फिर देर रात तक पार्टी होगी । इसके लिए होली डे इन में बुकिंग करा ली गई थी । मुकेश अरनेजा, सतीश सिंघल, दीपक गुप्ता व उनके अन्य कुछेक नजदीकी सुबह से जो कपड़े पहने हुए थे, उन्हें बदल कर नए सिरे से सूटेड-बूटेड होकर तैयार हो गए थे । किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर सुभाष जैन की जीत के चुनावी नतीजे ने उनकी सारी तैयारी पर पानी फेर दिया ।
मजे की बात यह रही कि दीपक गुप्ता की चुनावी जीत का भरोसा उनके समर्थकों को सतीश सिंघल की उस पड़ताल से हुआ, जिसे सतीश सिंघल ने वोट डालने वाले क्लब-अध्यक्षों से बात करके पूरा किया था । उल्लेखनीय है कि वोटिंग होने के बाद सतीश सिंघल ने कई एक क्लब-अध्यक्षों को फोन करके उनसे पूछा व इस बात की टोह ली कि उन्होंने किसे वोट दिया है । क्लब-अध्यक्षों से मिले फीडबैक के आधार पर सतीश सिंघल ने हिसाब जोड़ा और पाया कि दीपक गुप्ता को 67 से 72 के बीच वोट पड़े हैं । सतीश सिंघल के इस हिसाब से दीपक गुप्ता के समर्थकों का बम बम होना स्वाभाविक ही था । नतीजा घोषित होने से पहले दीपक गुप्ता के समर्थकों के बीच पैदा हुए जोश को देख कर कुछ समय के लिए तो सुभाष जैन के समर्थकों के बीच निराशा सी पैदा हुई, लेकिन जल्दी ही उन्हें आभास हो गया कि दीपक गुप्ता के समर्थकों के बीच दिख रहा यह जोश वास्तव में गलतफहमियों में तथा हवा में रहने की उनकी प्रवृत्ति का एक और सुबूत है । चुनावी नतीजा घोषित होने के साथ यह साबित भी हो गया ।
दीपक गुप्ता की चुनावी पराजय मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल जैसे उनके समर्थकों के गलतफहमी में तथा हवा में रहने का ही नतीजा है । एक नए उदाहरण से इसे समझा जा सकता है : दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में कॉन्करेंस जुटाने के उनके अभियान में जिन क्लब-अध्यक्षों ने उनकी 'उम्मीद' को पूरा नहीं किया, उनसे वह इस कदर नाराज हो गए कि एक डिस्ट्रिक्ट कार्यक्रम में उनमें से कुछेक ने उन्हें नमस्ते की; तो मुकेश अरनेजा ने उन्हें यह कह कर लताड़ा व अपमानित किया कि तुमने कॉन्करेंस तो दी नहीं, अब नमस्ते किस बात की ? मुकेश अरनेजा ने इस बात का जरा भी ख्याल नहीं रखा कि जिन क्लब-अध्यक्षों को वह लताड़ने व अपमानित करने का काम कर रहे हैं, उन्होंने कॉन्करेंस भले ही न दी हो - लेकिन उन्हें वोट देने के लिए तो राजी किया ही जा सकता है । मुकेश अरनेजा यदि यह कहते कि नमस्ते तो ठीक है, लेकिन इसके साथ आपका समर्थन भी चाहिए होगा ; तो क्लब-अध्यक्ष अपने आप को अपमानित न महसूस करते और दीपक गुप्ता के समर्थकों/वोटों की संख्या में इजाफा ही करते । लेकिन मुकेश अरनेजा का यह स्टाइल नहीं है । गलतफहमी में तथा हवा में रहने के चलते उन्होंने सोचा/माना तो यह था कि वह क्लब-अध्यक्षों से बदतमीजी करेंगे और उसके बाद भी वह क्लब-अध्यक्षों से वोट ले लेंगे । मुकेश अरनेजा ने अपने व्यवहार से अंतिम समय तक लोगों को इर्रिटेट करने का काम किया, जिसका बदला लोगों ने दीपक गुप्ता से लिया । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की गरिमा को छोड़ कर मुकेश अरनेजा चुनाव से पहले हुई क्रिडेंशियल कमेटी की मीटिंग में एक आम रोटेरियन की तरह शामिल हुए, जिसमें अपने बेफालतू के व बेहूदगे सवालों से मीटिंग का माहौल खराब करने का ही काम किया । वोट पड़ने के दौरान वोटिंग-स्थल के बाहर ऊपर जाती सीढ़ियों पर बैठ कर वोट डालने जाते व वोट डाल कर बाहर निकलते अध्यक्षों पर फब्तियाँ कसने का काम करके भी उन्होंने क्लब-अध्यक्षों को वास्तव में दीपक गुप्ता से दूर करने का ही काम किया ।
दरअसल मुकेश अरनेजा ने जिस तरह की बेहूदगियों, बदतमीजियों व ओछी हरकतों से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम किया; तथा क्लब्स में तोड़-फोड़ मचाने व क्लब्स के पदाधिकारियों को आपस में लड़ाने के साथ-साथ सौदेबाजी का जाल फैला कर क्लब-अध्यक्षों को निशाना बनाया - उससे ही दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के खिलाफ माहौल बन गया था । मुकेश अरनेजा रूपी कोढ़ में सतीश सिंघल रूपी खाज ने मामला और खराब कर दिया । दीपक गुप्ता के पक्ष में वोट पक्के करने के लिए सतीश सिंघल जिस तरह अपने गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट-पदों को बेचने के लिए लोगों के घर घर घूमे, उसने रोटरी को तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा को तो कलंकित करने का काम किया ही, साथ ही लोगों को इर्रिटेट भी किया । सतीश सिंघल का जो रवैया रहा, उससे लग रहा है कि रोटरी को और डिस्ट्रिक्ट 3012 को एक दूसरा 'मुकेश अरनेजा' मिल गया है । नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ अपने क्लब की कॉन्करेंस दे/दिलवा कर, तथा दीपक गुप्ता के लिए वोट जुटाने में अपने को इन्वॉल्व करके सतीश सिंघल ने बता/जता/दिखा दिया कि रोटरी में 35 से अधिक वर्ष गुजारने/बिताने के बाद भी रोटरी के भाव व उसके उच्च आदर्शों को उन्होंने नहीं जाना/पहचाना है; तथा रोटरी उनके लिए हर तरह की सौदेबाजी करने का एक अड्डा भर है ।
मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल की हर सौदेबाजी को लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने फेल कर दिया और सुभाष जैन को एक अच्छे बहुमत से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव जितवा दिया । सुभाष जैन की जीत इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनकी जीत का साफ संदेश यह है कि डिस्ट्रिक्ट 3012 के लोगों को 'खरीद' कर चुनाव नहीं जीता सकता । डिस्ट्रिक्ट 3012 एक नया डिस्ट्रिक्ट है, इसलिए इस संदेश का और भी गहरा अर्थ व प्रभाव है । मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल की सौदेबाजियों को नकार कर डिस्ट्रिक्ट 3012 के सदस्यों ने रोटरी में अपने डिस्ट्रिक्ट की पहचान व प्रतिष्ठा को बनाने/बचाने का भी काम किया है ।
मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल की हर सौदेबाजी को लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने फेल कर दिया और सुभाष जैन को एक अच्छे बहुमत से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव जितवा दिया । सुभाष जैन की जीत इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनकी जीत का साफ संदेश यह है कि डिस्ट्रिक्ट 3012 के लोगों को 'खरीद' कर चुनाव नहीं जीता सकता । डिस्ट्रिक्ट 3012 एक नया डिस्ट्रिक्ट है, इसलिए इस संदेश का और भी गहरा अर्थ व प्रभाव है । मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल की सौदेबाजियों को नकार कर डिस्ट्रिक्ट 3012 के सदस्यों ने रोटरी में अपने डिस्ट्रिक्ट की पहचान व प्रतिष्ठा को बनाने/बचाने का भी काम किया है ।