इंदौर । विकास जैन की कूड़ा बुहारते सार्वजनिक हुई तस्वीर ने एक मजेदार किस्म का प्रतीकात्मक संयोग बनाया - क्योंकि जिस समय उनकी यह तस्वीर लोगों के सामने आई, लगभग उसी समय इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए चल रही वोटों की गिनती में विकास जैन के 'बुहारे' जाने की सूचना लोगों को मिली । पहली वरीयता के वोटों की गिनती में 23 उम्मीदवारों के बीच विकास जैन के 847 वोटों के साथ दसवें नंबर पर रहने की सूचना मिली तो हर कोई हैरान रह गया । विकास जैन के समर्थकों व शुभचिंतकों के लिए ही नहीं, उनके विरोधियों के लिए भी यह नतीजा हैरान करने वाला था । इंदौर में यह मानने और कहने वाले लोग तो काफी थे कि विकास जैन चुनाव नहीं जीतेंगे, लेकिन उनकी इतनी बुरी हार की उम्मीद उनके घनघोर किस्म के विरोधियों को भी नहीं थी । कोढ़ में खाज वाली बात यह हुई कि केमिशा सोनी चुनाव जीत गईं - और अच्छे प्रदर्शन के साथ जीत गईं । 1328 वोटों के साथ पहली वरीयता के वोटों की गिनती में वह तीसरे नंबर पर थीं । विकास जैन की हार की तरह केमिशा सोनी की जीत भी इंदौर के लोगों के लिए किसी चमत्कार की तरह रही । वास्तव में, केमिशा सोनी के समर्थकों व शुभचिंतकों को भी उनकी इतनी बड़ी जीत की उम्मीद नहीं थी । इसलिए इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में विकास जैन की बड़ी हार तथा केमिशा सोनी की बड़ी जीत के कारणों को समझने/पहचानने के लिए गहन विश्लेषण की जरूरत है ।
पहली नजर में यह चुनावी नतीजा विष्णु झावर और मनोज फडनिस की हार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । विष्णु झावर उर्फ काका जी को इंदौर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के गॉडफादर के रूप में देखा/पहचाना जाता है; और मनोज फडनिस इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट हैं । इन दोनों का समर्थन विकास जैन को था । सिर्फ समर्थन होता, तो भी कोई बात नहीं थी - हर किसी का किसी न किसी को समर्थन होता ही है; विष्णु झावर और मनोज फडनिस की भूमिका लेकिन समर्थक से बड़ी - बहुत बड़ी थी । उन्होंने विकास जैन को चुनाव जितवाने के लिए जो भी, जैसी भी तीन-तिकड़म हो सकती थी - वह की; और इसके लिए अपनी वरिष्ठता, अपनी पोजीशन व अपने पद की गरिमा तक को दाँव पर लगाया हुआ था । मनोज फडनिस भूल गए थे कि वह एक उम्मीदवार के समर्थक कार्यकर्ता नहीं हैं; इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट हैं, और इस नाते उनकी कुछ नैतिक व प्रशासनिक जिम्मेदारी है । विष्णु झावर व मनोज फडनिस की देखरेख में चले विकास जैन की उम्मीदवारी के अभियान का सबसे शर्मनाक पहलू यह रहा कि कई मौकों पर केमिशा सोनी को बहुत ही अभद्र व अशालीन तरीके से निशाना बनाया गया । समझा जाता है कि इसी बात ने केमिशा सोनी के प्रति लोगों के बीच हमदर्दी पैदा की, जिसका उन्हें चुनावी फायदा मिला ।
विष्णु झावर को इंदौर में कई लोगों ने यह समझाने की कोशिश की थी कि सेंट्रल काउंसिल के लिए विकास जैन उपयुक्त व्यक्ति नहीं हैं; और विकास जैन की जगह किसी और को उन्हें उम्मीदवार बनाना चाहिए । विष्णु झावर ने लेकिन किसी की नहीं सुनी । उन्होंने माना और कहीं कहीं कहा भी कि भले ही विकास जैन सेंट्रल काउंसिल के लायक न हों, किंतु मैं उन्हें सेंट्रल काउंसिल में भिजवाऊँगा । विष्णु झावर की इस अहंकारपूर्ण सोच व कहन को लोगों ने लगता है कि दिल पर ले लिया; और उन्हें विष्णु झावर व मनोज फडनिस को यह 'बताना' जरूरी लगा कि सेंट्रल काउंसिल में किसी को भिजवाने का काम उनका नहीं, 'हमारा' है । कुछेक लोगों का कहना है कि इंदौर में विष्णु झावर और मनोज फडनिस ने चौधराहट दिखाने/ज़माने की जो कोशिश की है, उसके प्रति लोगों के बीच गहरी नाराजगी व विरोध का भाव है, जिसका शिकार विकास जैन को होना पड़ा है । इन दोनों की छाया में रहने के कारण विजेश खण्डेलवाल रीजनल काउंसिल तक का चुनाव हार गए । इसीलिए विकास जैन की हार को विकास जैन की हार के रूप में नहीं, बल्कि वास्तव में विष्णु झावर व मनोज फडनिस की हार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।