नई दिल्ली । राजेश शर्मा जिस तरह से वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए मुकेश कुशवाह की उम्मीदवारी के समर्थन की बात कर रहे हैं, उसे सुन/देख कर चरनजोत सिंह नंदा खासे भड़के हुए हैं । वह भड़के इसलिए हुए हैं क्योंकि राजेश शर्मा के इस कदम ने वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी राजनीति में चरनजोत सिंह नंदा की भूमिका को पूरी तरह खत्म कर दिया है । उल्लेखनीय है कि राजेश शर्मा को चरनजोत सिंह नंदा के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है, और इस नाते से वाइस प्रेसीडेंट पद के प्रायः सभी उम्मीदवार राजेश शर्मा के वोट के लिए चरनजोत सिंह नंदा से सिफारिश लगा रहे थे । चरनजोत सिंह नंदा भी राजेश शर्मा के वोट को लेकर अलग अलग लोगों को अलग अलग तरह के आश्वासन दे रहे थे । लेकिन जैसे जैसे भेद खुला कि राजेश शर्मा तो मुकेश कुशवाह की उम्मीदवारी का झंडा उठाए हुए हैं, वैसे वैसे लोगों ने राजेश शर्मा के वोट के लिए चरनजोत सिंह नंदा से बात करना छोड़ दिया है । इससे राजेश शर्मा के जरिए वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को एन्जॉय करने का चरनजोत सिंह नंदा का सारा प्लान चौपट हो गया है । चरनजोत सिंह नंदा का अपने नजदीकियों से कहना है कि राजेश शर्मा को चुनाव जितवाने में उन्होंने दिन-रात एक किया है, और उनके खुले व सक्रिय समर्थन के भरोसे ही राजेश शर्मा वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में भूमिका निभाने लायक बने हैं; इसलिए वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में अपना रवैया तय करने और 'दिखाने' से पहले राजेश शर्मा को उनसे पूछना/बताना तो चाहिए ही । राजेश शर्मा ने लेकिन उनसे पूछे/बताए बिना वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए मुकेश कुशवाह की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है, जिससे चरनजोत सिंह नंदा बुरी तरह भड़क गए हैं ।
चरनजोत सिंह नंदा के भड़कने का एक कारण राजेश शर्मा के नजदीकियों का यह प्रचारित करना भी है कि राजेश शर्मा की चुनावी जीत में चरनजोत सिंह नंदा की कोई भूमिका नहीं है, और राजेश शर्मा की जीत वास्तव में राजेश शर्मा तथा उनकी अपनी टीम के सदस्यों की मेहनत का नतीजा है । इस संबंध में उनका तर्क है कि चरनजोत सिंह नंदा जब अपने पार्टनर उमेश वर्मा को रीजनल काउंसिल का चुनाव नहीं जितवा सके हैं, तो सेंट्रल काउंसिल में वह राजेश शर्मा के ही क्या काम आए होंगे ? इस तरह की बातें चरनजोत सिंह नंदा को स्वाभाविक रूप से परेशान करने वाली बातें हैं । चरनजोत सिंह नंदा को लगता है कि इस तरह की बातें राजेश शर्मा की शह पर ही हो रही हैं और वही अपने लोगों को इस तरह की बातें करने के लिए उकसा रहे हैं । राजेश शर्मा के रवैये से चरनजोत सिंह नंदा को अपने ठगे जाने का अहसास हो रहा है । उन्हें लग रहा है कि 'यूज एंड थ्रो' रणनीति के तहत राजेश शर्मा ने उन्हें इस्तेमाल किया, और काम निकल जाने के बाद अब उनसे पीछा छुड़ा लेना चाहते हैं ।
इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि राजेश शर्मा को इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में यदि लंबी पारी खेलनी है, तो उन्हें चरनजोत सिंह नंदा की छाया से बाहर आना ही होगा - लगता है कि राजेश शर्मा ने इसके लिए प्रयास शुरू कर भी दिए हैं । दरअसल राजेश शर्मा को खतरा यह भी है कि बहुत संभव है कि चरनजोत सिंह नंदा इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल का अगला चुनाव लड़े, तब फिर अगला चुनाव उन्हें अपने भरोसे ही लड़ना पड़ेगा - लिहाजा उन्होंने अभी से उसके लिए तैयारी शुरू कर दी है । चरनजोत सिंह नंदा हालाँकि पंजाब के विधानसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाने के चक्कर में बताए जाते हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि वह अकाली दल और आम आदमी पार्टी में टिकट के लिए संभावनाएँ तलाश रहे हैं, और जिससे भी टिकट मिल गया उससे चुनाव लड़ लेंगे । जीत गए तो फिर इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति को राम राम कह देंगे । राजेश शर्मा भी भारतीय जनता पार्टी की तरफ से राज्यसभा में जाने के जुगाड़ में बताए जाते हैं । जब तक उनकी दाल वहाँ नहीं गलती है, तब तक वह इंस्टीट्यूट की राजनीति में शरण लिए रहेंगे । आगे क्या होगा, यह तो आगे पता चलेगा - अभी लेकिन वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव के चक्कर में राजेश शर्मा और चरनजोत सिंह नंदा के संबंधों में दिख रही दरार ने नॉर्दर्न रीजन में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प ट्विस्ट दिया है ।