Friday, January 8, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में विनय भाटिया की जीत का अवार्ड विनोद बंसल की बजाए संजय खन्ना को 'मिलने' की आहट में सत्ता समीकरणों के बदलने के संकेत छिपे हैं क्या ?

नई दिल्ली । विनय भाटिया को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनवाने/चुनवाने के लिए पर्दे के पीछे जो खेल चला, उसमें क्या सचमुच विनोद बंसल और अशोक कंतूर के साथ रवि चौधरी की 'राजनीतिक बलि' चढ़ने जा रही है ? यह सवाल लोगों के बीच इसलिए महत्वपूर्ण हो उठा है क्योंकि पिछले काफी समय से विनोद बंसल के अगले डीआरएफसी बनने तथा रवि चौधरी के 'आदमी' के रूप में अशोक कंतूर के अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी उम्मीदवार बनने की चर्चा सुनी जाती रही है, लेकिन अब इस चर्चा के पात्र बदल गए हैं और विनोद बंसल की जगह संजय खन्ना तथा अशोक कंतूर की जगह संजीव राय मेहरा ने ले ली है । रवि चौधरी की जगह अशोक घोष आ गए हैं । मजे की और विडंबना की बात यह है कि विनय भाटिया की उम्मीदवारी के सबसे घनघोर समर्थक विनोद बंसल व रवि चौधरी ही थे, और बिलकुल शुरू से थे; विनय भाटिया की उम्मीदवारी को दिल्ली में समर्थन दिलवाना इन्हीं दोनों के जिम्मे था; और तमाम बदनामियों का सामना करते हुए इन्होंने अपनी अपनी जिम्मेदारी निभाई भी - लेकिन विनय भाटिया की जीत के साथ जब 'मिठाई' बँटने का नंबर आया, तो देखा/पाया जा रहा है कि इन दोनों को लाइन से बाहर कर दिया गया है, और इनकी जगह संजय खन्ना व अशोक घोष को लाइन में शामिल कर लिया गया है । विनोद बंसल और रवि चौधरी का अचानक से जो तख्तापलट होता हुआ दिख रहा है, उससे इन दोनों के नजदीकियों व शुभचिंतकों को खासा झटका लगा है; किंतु उन्हें समझाया जा रहा है कि वह यदि सचमुच विनय भाटिया के समर्थक और शुभचिंतक हैं, तो उन्हें अपना स्वार्थ छोड़ कर यह कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए । 
विनोद बंसल और रवि चौधरी के नजदीकियों व शुभचिंतकों को बताया/समझाया जा रहा है कि यह ठीक है कि विनोद बंसल और रवि चौधरी ने विनय भाटिया की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने के लिए अथक प्रयास किए, किंतु विनय भाटिया को जीत इनके अथक प्रयासों के कारण नहीं मिली है - बल्कि संजय खन्ना और अशोक घोष से मिले 'गुप्त' सहयोग के कारण मिली है; इसलिए 'मिठाई' के सही हकदार वह हैं । दिलचस्प बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में संजय खन्ना और अशोक घोष की भूमिका थी तो तटस्थ - लेकिन यही तटस्थता विनय भाटिया के लिए बड़ी मददगार साबित हुई । दरअसल किसी भी लड़ाई में - किसी भी चुनावी लड़ाई में तटस्थता जैसी कोई भूमिका होती ही नहीं है, तटस्थता भी वास्तव में एक 'पक्ष' होता है : संजय खन्ना और अशोक घोष ने तटस्थ होकर वास्तव में विनय भाटिया का पक्ष 'लिया' और उनके काम आए । मजे की बात यह रही कि विनय भाटिया और रवि दयाल के बीच संगठित हुई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में जो खेमेबाजी बनी, उसमें संजय खन्ना और अशोक घोष देखे/पहचाने तो उस खेमे में जा रहे थे, जो रवि दयाल की उम्मीदवारी के साथ था; लेकिन इन्होंने रवि दयाल की उम्मीदवारी के लिए सक्रियता न दिखा कर 'गुप्त' रूप से विनय भाटिया की मदद की । नोमीनेटिंग कमेटी में कई लोग संजय खन्ना के बड़े नजदीकी थे, और उन्होंने रवि दयाल के समर्थकों से कहा भी था कि संजय खन्ना यदि उनसे रवि दयाल का साथ देने को कहेंगे, तो वह रवि दयाल का ही साथ देंगे । रवि दयाल के समर्थकों ने संजय खन्ना से कई बार यह बात कही भी, लेकिन संजय खन्ना ने उनकी एक न सुनी । विनय भाटिया के समर्थकों ने संजय खन्ना से एक ही बात कही हुई थी कि हम समझते हैं कि आप जहाँ हैं वहाँ होते हुए आपके लिए विनय भाटिया का खुला समर्थन करना मुश्किल होगा, लिहाजा हम तो सिर्फ यह चाहते हैं कि आप रवि दयाल का भी खुला समर्थन न करें । संजय खन्ना ने उनकी यह बात मान ली । विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने इसी तरीके को अपनाकर अशोक घोष का भी समर्थन जुटाया । 
विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं का मानना और कहना है कि विनय भाटिया की जीत में यूँ तो बहुत से लोगों के सहयोग और समर्थन का योगदान है, लेकिन संजय खन्ना और अशोक घोष से मिले 'गुप्त' सहयोग ने वास्तव में निर्णायक भूमिका अदा की है । इसलिए विनय भाटिया की जीत की 'मिठाई' पाने वालों में पहला नंबर इन्हीं दोनों का होगा । संजय खन्ना को डीआरएफसी से नवाजे जाने की चर्चा है । डीआरएफसी पद पर सुशील खुराना का कार्यकाल मौजूदा रोटरी वर्ष में पूरा हो रहा है; उनके बाद इस पद पर विनोद बंसल के सुशोभित होने की चर्चा थी । विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थन में वह जिस संलग्नता के साथ लगे हुए थे, उसे देख कर सभी मान रहे थे कि विनय भाटिया यदि जीत गए तो डीआरएफसी पद विनोद बंसल को मिलना पक्का है । विनय भाटिया की जीत के साथ लेकिन हालात बदले हुए लग रहे हैं । डीआरएफसी पद के लिए अब विनोद बंसल की बजाए संजय खन्ना का नाम सुना जा रहा है । कुछेक लोग हालाँकि विनोद बंसल के लिए दबाव बनाए हुए हैं, लेकिन संजय खन्ना के वकालती ज्यादा हैं; उनका तर्क है कि पिछले वर्ष भी संजय खन्ना का 'गुप्त' सहयोग न मिला होता, तो रवि चौधरी को चुनाव जितवाना मुश्किल होता - इसलिए संजय खन्ना को 'अवार्ड' देना जरूरी है । 
विनय भाटिया की जीत से डिस्ट्रिक्ट के सत्ता समीकरणों में जो बदलाव आता दिख रहा है, उसमें रवि चौधरी व अशोक कंतूर की जोड़ी को जोर का झटका लगता नजर आ रहा है । उल्लेखनीय है कि रवि चौधरी ने बहुत पहले से अशोक कंतूर को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अगले उम्मीदवार के रूप में प्रमोट कर रखा है । रोटरी की चुनावी राजनीति का एक मजेदार पहलू यह भी है कि यहाँ रवि चौधरी टाइप के लोग देखने को खूब मिलते हैं, जो अपना खुद का चुनाव तो किसी तरह मुश्किल से जीत पाते हैं, लेकिन जीतने के तुरंत बाद गॉडफादर वाली भूमिका में आ जाते हैं और दूसरों को जितवाने का ठेका ले लेते हैं । इसी तर्ज पर रवि चौधरी ने ऐलान किया हुआ था कि विनय भाटिया को जितवाने के बाद वह अशोक कंतूर को जितवायेंगे । विनय भाटिया की जीत के बाद लेकिन जिस तरह से संजीव राय मेहरा का नाम अगले उम्मीदवर के रूप में सामने आया है, उससे अशोक कंतूर की उम्मीदवारी की बात गर्दिश में ही दिख रही है । संजीव राय मेहरा को अशोक घोष के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, और इसी कारण से संजीव राय मेहरा की उम्मीदवारी की चर्चा गंभीर हो उठी है । खेमे के नेताओं की बातों से भी लग रहा है कि अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को लेकर कोई भी गंभीर नहीं है । रवि चौधरी व अशोक कंतूर की तरफ से हालाँकि कहा जा रहा है कि संजीव राय मेहरा के लिए उम्मीदवार 'बनना' संभव ही नहीं होगा, और इसलिए फिर सभी अशोक कंतूर की उम्मीदवारी पर सहमत हो ही जायेंगे । लेकिन संजीव राय मेहरा के उम्मीदवार न बन 'पाने' की संभावना को देखते हुए जिस तरह से अन्य कुछेक लोग अपने अपने लिए मौके तलाशने में जुटे हैं, उसे देख/सुन कर अशोक कंतूर के लिए मामला मुश्किल बनता हुआ नजर आ रहा है । 
विनय भाटिया की जीत के साथ ही डिस्ट्रिक्ट के सत्ता समीकरणों में जो बदलाव आता दिख रहा है, और इस बदलाव में विनोद बंसल और रवि चौधरी जिस तरह अलग-थलग पड़ते हुए नजर आ रहे हैं, उसमें डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में दिलचस्प नजारे बनने/दिखने के संकेत साफ पढ़े जा सकते हैं ।