गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुनील निगम ने जिस सहजता और तत्परता से कॉन्फ्रेंस के रजिस्ट्रेशन चार्ज कम रखने की मुकेश गोयल की सलाह को मान लिया, उसे देख कर रेखा गुप्ता के सहारे राजनीति जमाने की कोशिश करने वाले लोगों के तो जैसे तोते ही उड़ गए हैं । 'वे' दरअसल सुनील निगम को अपने साथ मान रहे थे; और इस नाते उम्मीद कर रहे थे कि मुकेश गोयल के सुझाव को तो सुनील निगम कतई स्वीकार नहीं करेंगे । लेकिन सुनील निगम ने उल्टा ही नजारा पेश किया । हुआ यह कि डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट की नोएडा में आयोजित तीसरी मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुनील निगम ने कॉन्फ्रेंस के रजिस्ट्रेशन चार्ज के रूप में 1200 रुपए तय करने का प्रस्ताव रखा; मीटिंग में मौजूद दूसरे लोग इस प्रस्ताव पर सहमति प्रगट करते दिखे, लेकिन एक अकेले मुकेश गोयल ने 1200 रुपए की रकम को आम लायन सदस्यों के लिए ज्यादा बताते हुए पिछली कॉन्फ्रेंस के रजिस्ट्रेशन चार्ज को ही रखने का सुझाव दिया । पिछले लायन वर्ष की कॉन्फ्रेंस में रजिस्ट्रेशन के रूप में 800 रुपए बसूल किए गए थे । सुनील निगम ने बिना कोई समय गवाएँ मुकेश गोयल के सुझाव को स्वीकार कर लिया । मंच पर यह जो 'काम' हुआ, इसे तो सभी ने देखा - लेकिन इसके पीछे छिपे राजनीतिक मंतव्य को कुछ ही लोगों ने 'पढ़ा'; डिस्ट्रिक्ट में पूरी तरह तहस-नहस हो चुके मुकेश गोयल विरोधी मंच को फिर से जमाने की कोशिश करने वाले लोगों ने तो इस मंतव्य को खासी निराशा के साथ 'पढ़ा' ।
दरअसल, रेखा गुप्ता को शिखंडी की तरह इस्तेमाल करते हुए जिन लोगों ने मुकेश गोयल विरोधी मंच फिर से बनाने/सजाने का प्रयत्न शुरू किया है, उन्होंने सुनील निगम को अपने साथ माना था; किंतु रजिस्ट्रेशन चार्ज तय करने के मामले में सुनील निगम ने जिस तरह से मुकेश गोयल की बात मान ली, उससे उन्हें सुनील निगम - मुकेश गोयल के साथ जाते हुए 'दिख' रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में एक सदाबहार और शाश्वत सा दृश्य अक्सर बनता रहता है, जिसके केंद्र में मुकेश गोयल रहते हैं । डिस्ट्रिक्ट में अक्सर मुकेश गोयल विरोधी मंच बनाने की सुगबुगाहट चलती है, जो इस तथ्य से खाद-पानी पाती है कि डिस्ट्रिक्ट में बहुत से लोग मुकेश गोयल के तौर-तरीकों को पसंद नहीं करते हैं और उन्हें निपटाना चाहते हैं । यह सच्चाई भी है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों में 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिनका वश चले तो वह पहला काम मुकेश गोयल को निपटाने का करें । इस 'सच्चाई' के चलते मुकेश गोयल को तो वर्षों पहले निपट जाना चाहिए था; किंतु प्रायः हर बार के सत्ता संघर्ष में मुकेश गोयल और और ज्यादा मजबूत होकर उभरे हैं तथा मुकेश गोयल विरोधी मंच छिन्न-भिन्न होता रहा है । इस बार भी नए सिरे से मुकेश गोयल विरोधी मंच की नींव रखने की तैयारी करते हुए रेखा गुप्ता को सब्जबाग तो यही दिखाया गया कि मुकेश गोयल का तो चौतरफा विरोध है - जो घोषित विरोधी हैं, वह तो हैं ही; मुकेश गोयल के जो नजदीकी हैं, वह भी उनसे नाराज हैं और उनके साथ नहीं जायेंगे । इस संबंध में उन्हें खास तौर से सुनील निगम, अरुण मित्तल और अजय सिंघल का नाम बताया गया । किंतु डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के रजिस्ट्रेशन चार्ज को तय करने में मुकेश गोयल की जो भूमिका देखने को मिली, उससे प्रतीकात्मक संदेश यही गया है कि रेखा गुप्ता को झूठे आश्वासनों से बहला कर उम्मीदवार बना/बनवा दिया गया है ।
मुकेश गोयल विरोधी मंच बनाने की इस बार की तैयारी का मजेदार पहलू यह है कि इस तैयारी के मुख्य सूत्रधार शिवकुमार चौधरी, मुकेश गोयल के शरणागत होकर ही गवर्नर की लाइन में आ सके हैं । नोएडा में आयोजित तीसरी कैबिनेट मीटिंग में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिवकुमार चौधरी ने जब यह फरमाया कि वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में ठेकेदारी प्रथा खत्म करने आए हैं - तो बिलकुल सही फरमाया । वह आए तो ठेकेदारी प्रथा खत्म करने ही थे, किंतु उन्होंने यह नहीं बताया कि फिर बाद में उन्होंने यू-टर्न ले लिया था । उल्लेखनीय है कि उन्होंने अपना पहला चुनाव 'ठेकेदार' के खिलाफ ही लड़ा था, और उसमें वह बुरी तरह पराजित हुए थे । दूसरी बार चुनाव लड़ने का जब मौका आया तो शिवकुमार चौधरी की 'समझ' में आ गया था कि 'ठेकेदार' के खिलाफ बातें करना तो आसान है, लेकिन उससे लड़ना मुश्किल है - लिहाजा शिवकुमार चौधरी ने 'ठेकेदार' के सामने समर्पण करने में जरा भी देर नहीं लगाई और उनकी जी-हुजूरी करने लगे । उसका सुफल भी उन्हें मिला और 'ठेकेदार' की कृपा से चुनाव में जीत कर वह गवर्नर वाली लाइन में लगे । ऐसे में, अब जब वह फिर से ठेकेदारी के विरोध का जुमला उछालने लगे हैं तो लोगों का कहना/पूछना स्वाभाविक ही है कि इतना ही दम था तो गवर्नर बनने के लिए खुद 'ठेकेदार' की शरण में क्यों चले गए थे ? हालाँकि यह सच्चाई शिवकुमार चौधरी को नहीं समझनी है - उन्हें तो रेखा गुप्ता को इस्तेमाल करके अपनी राजनीति करने का मौका मिला है; यह सच्चाई तो रेखा गुप्ता को समझनी है - चुनावी घमासान में आखिर समय, एनर्जी और पैसा तो उनका खर्च होना है ।
मुकेश गोयल के सुझाव पर रजिस्ट्रेशन चार्ज कम करने/रखने पर सुनील निगम ने जो तत्परता दिखाई, उसमें अरुण मित्तल की सहमति होने की संभावना ने रेखा गुप्ता के लिए ज्यादा बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है । रेखा गुप्ता को भरोसा दिलाया गया था कि अरुण मित्तल को चूँकि गवर्नर के नजदीक रहने का शौक है, और वह कोई न कोई तिकड़म भिड़ा कर गवर्नर के नजदीक हो ही जाते हैं - इसलिए वह शिवकुमार चौधरी के भी नजदीक रहेंगे । अरुण मित्तल के दोस्ताना व्यवहार को शिवकुमार चौधरी और उनके नजदीकियों ने नजदीकी बनाने की उनकी तिकड़मों के रूप में 'देखा' भी और बहुत ही अभद्र व अपमानजनक तरीके से जगह जगह टिपण्णियाँ भी कीं । अरुण मित्तल ने चूँकि उनका कभी संज्ञान नहीं लिया और शिवकुमार चौधरी व उनके नजदीकियों से सहज संबंध बनाए रखे, जिसे शिवकुमार चौधरी व उनके नजदीकियों ने उनकी 'कमजोरी' के रूप में देखा/पहचाना । इसी बिना पर उन्होंने अरुण मित्तल को अपने साथ माना और 'दिखाया' । अरुण मित्तल की तरफ से हालाँकि सफाई भी आई कि रेखा गुप्ता के परिवार के साथ उनके पुराने संबंध हैं, इसलिए रेखा गुप्ता की महत्वाकांक्षा के प्रति उनकी सहानुभूति होना स्वाभाविक ही है - किंतु इस सहानुभूति को चुनावी राजनीति से जोड़ कर देखना जल्दबाजी करना होगा । अरुण मित्तल की तरफ से कहा गया है कि रेखा गुप्ता की उम्मीदवारी को हवा देने में उनका हाथ बताना कुछेक लोगों का दुष्प्रचार है । अरुण मित्तल की इस तरह की सफाईयों के बीच सुनील निगम का मुकेश गोयल का सुझाव तत्परता से स्वीकार करना रेखा गुप्ता के लिए 'सिर मुंडाते ही ओले पड़ने' जैसा साबित हुआ है ।