Saturday, January 23, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दीपक गुप्ता की पुनर्प्रस्तुत उम्मीदवारी की संभावना के कारण ललित खन्ना तथा मनोज लाम्बा के लिए मामला चुनौतीपूर्ण हुआ

नई दिल्ली/गाजियाबाद । दीपक गुप्ता और मनोज लाम्बा की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए संभावित अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए रमेश अग्रवाल के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे का समर्थन पाने के लिए की जा रही कोशिशों ने डिस्ट्रिक्ट की ठंडी पड़ी चुनावी राजनीति में कुछ कुछ गर्मी पैदा करने का काम तो शुरू किया है । रमेश अग्रवाल के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के विरोध के कारण दीपक गुप्ता को पिछले चुनाव में जिस तरह से पराजित होना पड़ा है, उससे उन्होंने ही नहीं - बल्कि मनोज लाम्बा ने भी सबक लिया है कि मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल के भरोसे चुनाव जीतना तो मुश्किल ही है । मनोज लाम्बा ने सतीश सिंघल के भरोसे अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी की हुई थी - किंतु उनकी तैयारी को दो झटके लगे हैं : एक तो यही कि सतीश सिंघल के ऐड़ी-चोटी के जोर के बावजूद दीपक गुप्ता चुनाव में बुरी तरह हार गए; और दूसरा यह कि दीपक गुप्ता फिर से उम्मीदवार होने की तैयारी करने लगे । अन्य दूसरे लोगों की तरह मनोज लाम्बा को भी लगता था कि हारने के बाद दीपक गुप्ता उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर हो जायेंगे; दीपक गुप्ता ने लेकिन तिबारा से अपनी उम्मीदवारी के संकेत देकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अगले चुनावी परिदृश्य को दिलचस्प बना दिया है । मनोज लाम्बा की तरफ से होशियारी यह दिखाई गई कि जैसे ही दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने के संकेत उन्हें मिले, वैसे ही उनकी तरफ से रमेश अग्रवाल से तार जोड़ने के प्रयास शुरू हो गए । लोगों को उनके प्रयासों की भनक उनके क्लब के वरिष्ठ सदस्य सतीश गुप्ता की सक्रियता से मिली । 
दरअसल सतीश गुप्ता को सतीश सिंघल के कामकाज के तौर-तरीकों पर प्रतिकूल टिपण्णियाँ करते हुए लोगों ने जब सुना, तो लोगों को आश्चर्य हुआ और उनके कान खड़े हुए । इसका कारण यह है कि सतीश गुप्ता को सतीश सिंघल के बड़े घनघोर किस्म के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है । सतीश गुप्ता को कुछेक लोगों ने समझाया भी था कि सतीश सिंघल के ज्यादा नजदीक होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि सतीश सिंघल अपने सामने किसी को कुछ समझते नहीं हैं और सामने वाले को कभी भी अपमानित कर दे सकते हैं - लेकिन सतीश गुप्ता ने किसी की नहीं सुनी/मानी । इसीलिए अब अचानक से सतीश गुप्ता को सतीश सिंघल के खिलाफ टिपण्णियाँ करते सुन लोगों का माथा ठनका । सतीश गुप्ता कभी भी किसी के भी खिलाफ बहुत नकारात्मक बात करते हुए चूँकि नहीं सुने गए हैं, इसलिए भी सतीश सिंघल को लेकर कही गयी उनकी प्रतिकूल टिपण्णियों में राजनीति - मनोज लाम्बा की उम्मीदवारी से जुड़ी राजनीति को पहचानने की कोशिश की गई है । यह कोशिश इसलिए भी हुई, क्योंकि रमेश अग्रवाल को दिल्ली में कोई उम्मीदवार खोजते हुए 'देखा/पाया' गया । रमेश अग्रवाल को कुछेक मौकों पर कहते हुए सुना गया है कि उनका अगला उम्मीदवार दिल्ली से होगा । रमेश अग्रवाल की इस कहन में मनोज लाम्बा और उनकी उम्मीदवारी के शुभचिंतकों को अपनी दाल गलती हुई दिख रही है - और इसीलिए उन्होंने सतीश सिंघल से अपनी दूरियाँ बनानी तथा 'दिखानी' शुरू कर दी है । 
रमेश अग्रवाल खेमे से हालाँकि ललित खन्ना की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने की चर्चा भी है - चर्चा तो जोरदार है, लेकिन ललित खन्ना की उम्मीदवारी को लेकर कोई भरोसे का माहौल नहीं बन पा रहा है । चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों व जानकारों के बीच दरअसल चुनावी राजनीति के प्रेशर को झेल पाने की ललित खन्ना की स्थितियों को लेकर संदेह बना हुआ है । ललित खन्ना की तरफ से भी चूँकि अपनी उम्मीदवारी को लेकर अभी तक कोई बहुत उत्साह नहीं दिखाया गया है, इसलिए भी उनकी उम्मीदवारी लोगों के बीच बहुत विश्वास नहीं बना पा रही है । मनोज लाम्बा और उनके शुभचिंतक इस स्थिति का फायदा उठा लेने के लिए तैयार हो गए 'दिख' रहे हैं । मनोज लाम्बा तथा उनके शुभचिंतकों को विश्वास है कि रमेश अग्रवाल के नेतृत्व वाला सत्ता खेमा चूँकि किसी भी कीमत पर दीपक गुप्ता को आगे नहीं बढ़ने देना चाहेगा; और इसके लिए दिल्ली में किसी उम्मीदवार की तलाश कर रहा है तथा ललित खन्ना की उम्मीदवारी के प्रति भरोसा पैदा नहीं हो पा रहा है - इसलिए उनके लिए मौका है कि वह रमेश अग्रवाल के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे का समर्थन जुटा लें । उनके इस मौके में हालाँकि सतीश सिंघल के 'आदमी' होने की मनोज लाम्बा की पहचान बाधा बन सकती है; और इसके अलावा मनोज लाम्बा के सामने अपने आप को एक गंभीर उम्मीदवार 'दिखाने' की चुनौती भी है ही । यह चुनौती गंभीर इसलिए भी है क्योंकि दीपक गुप्ता की तरफ से भी सत्ता खेमे के नेताओं का समर्थन पाने/जुटाने के प्रयास शुरू हो गए हैं । सत्ता खेमे के दूसरी पंक्ति के कुछेक वरिष्ठ नेताओं को दीपक गुप्ता के प्रति हमदर्दी दिखाते तथा उनकी उम्मीदवारी के समर्थन की वकालत करते हुए जिस तरह से सुना/देखा जा रहा है, उससे लग रहा है कि दीपक गुप्ता ने यदि पिछली बार जैसी गलतियाँ नहीं कीं, तो इस बार वह अपने समर्थन आधार को अवश्य ही विस्तृत कर पायेंगे । जाहिर है कि सभी के अपने अपने तर्क हैं, लेकिन असली खेल तो तब शुरू होगा - जब उम्मीदवारों की तरफ से सक्रियता देखने/सुनने को मिलेगी ।