Monday, January 18, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में सतीश सिंघल और रमणीक तलवार ने प्रसून चौधरी के खिलाफ अपनी निजी खुन्नस को निकालने के लिए मनोज भदोला का जैसा इस्तेमाल किया, उससे किरकिरी सिर्फ मनोज भदोला की ही हुई है

गाजियाबाद । रोटरी क्लब वैशाली के अध्यक्ष मनोज भदोला तथा उनके संगी-साथी अपनी फजीहत के लिए सतीश सिंघल और रमणीक तलवार को जिम्मेदार ठहराने लगे हैं, तथा अनौपचारिक बातचीतों में इस बात पर अफसोस व्यक्त करने लगे हैं कि नाहक ही सतीश सिंघल और रमणीक तलवार की बातों में फँस कर उन्होंने अपनी और क्लब की बेइज्जती करवाई । रोटरी क्लब वैशाली के मामले की पड़ताल कर रही डिस्ट्रिक्ट कमेटी के सदस्यों के सामने मनोज भदोला तथा उनके संगी-साथियों के तेवर काफी बदल गए हैं - पहले वह अपने 'पक्ष' को लेकर जहाँ कठोर रवैया अपनाए हुए थे, वहाँ समय बीतने के साथ साथ उनके तेवर ढीले पड़ने लगे हैं; तथा प्रसून चौधरी व विकास चोपड़ा के प्रति उनका अब पहले जैसा विरोध नहीं रह गया है । प्रसून चौधरी व विकास चोपड़ा को छोड़ कर उन्होंने हालाँकि प्रेम दास माहेश्वरी को निशाने पर लिया हुआ है, लेकिन कमेटी के सदस्यों से बातचीत में वह सतीश गुप्ता और रमणीक तलवार के प्रति अपनी नाराजगी को भी जाहिर करने से नहीं चूक रहे हैं । दूसरे अन्य लोगों से भी मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों ने कहा/दोहराया है कि सतीश सिंघल व रमणीक तलवार की निजी खुंदक के चक्कर में फँस कर उन्होंने अपना काफी नुकसान किया है । मजे की और विडंबना की बात यह रही कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की मदद करने के उद्देश्य से अध्यक्षों को अधिकार दिलाने के अभियान में जुड़ने पर रोटरी क्लब वैशाली के अध्यक्ष मनोज भदोला, दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी में कोई मदद करने लायक तो नहीं हो सके - बल्कि अपने कपड़े और 'उतरवा' बैठे !    
उल्लेखनीय है कि मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों के प्रसून चौधरी व विकास चोपड़ा के साथ मनमुटाव तो बने थे, लेकिन वह इतने गंभीर नहीं थे कि उनके बीच अप्रिय विवाद पैदा करते/बनाते । इस संबंध में बल्कि मनोज भदोला की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने बड़प्पन दिखाया हुआ था । यह इस तथ्य से जाहिर है कि विकास चोपड़ा काफी पहले क्लब के अपने पद से इस्तीफा दे चुके थे, जिसे लेकिन मनोज भदोला स्वीकार नहीं कर रहे थे । मनोज भदोला बल्कि उन्हें इस्तीफा वापस लेने के लिए राजी करने का प्रयास कर रहे थे । मनोज भदोला चाहते तो विकास चोपड़ा का इस्तीफा स्वीकार करके उनसे पीछा छुड़ा लेते । जाहिर है कि मनोज भदोला का दिमाग तब 'बिगड़ा' जब कॉन्करेंस के बदले में सतीश सिंघल के गवर्नर-काल के असिस्टेंट गवर्नर का पद उन्हें ऑफर हुआ । हालाँकि बात यदि कॉन्करेंस के लिए हुई सौदेबाजी तक ही रहती, तब भी बात इतना नहीं बिगड़ती । कॉन्करेंस देने का विरोध यदि प्रसून चौधरी और विकास चोपड़ा करते भी, तो उनके विरोध का असर नहीं होता - क्योंकि वह क्लब में अल्पमत में थे । प्रेम दास माहेश्वरी ने भी कॉन्करेंस का समर्थन किया ही था । लेकिन सतीश सिंघल और रमणीक तलवार ने अपना निजी एजेंडा खुसेड़ कर मामला बिगाड़ दिया । प्रसून चौधरी के साथ इनकी निजी खुन्नस जगजाहिर है - इन्हें जब लगा कि क्लब अध्यक्ष मनोज भदोला पूरी तरह से इनके कहे में है, तो इन्होंने प्रसून चौधरी का 'शिकार' कर लेने के लिए मनोज भदोला को राजी कर लिया । असिस्टेंट गवर्नर का पद 'पाकर' मनोज भदोला इतने जोश में आ गए थे कि उन्होंने सतीश सिंघल और रमणीक तलवार को यह 'दिखाना' शुरू कर दिया कि देखो, मैं प्रसून चौधरी की कैसी गत बनाता हूँ । 
मनोज भदोला व उनके संगी-साथियों की तरफ से प्रसून चौधरी के खिलाफ सोशल मीडिया में अभद्र व अशालीन भाषा के जरिए जो हमला हुआ, और जोश में जिसमें फिर विकास चोपड़ा को भी लपेट लिया गया - उससे सतीश सिंघल और रमणीक तलवार के कलेजे को भले ही ठंडक मिली हो, लेकिन मामला पटरी से उतर गया था । क्लब का जो माहौल था, उसमें प्रसून चौधरी और विकास चोपड़ा चुपचाप किनारे लगने को 'तैयार' हो गए दिख रहे थे; किंतु सोशल मीडिया के जरिए उन पर जब हमला हुआ तो वह भी जबाव देने के लिए तत्पर हो गए । इस मौके पर, मौके की तलाश कर रहे रमेश अग्रवाल का सहारा उन्हें मिल गया । दरअसल, रोटरी क्लब वैशाली में एक दूसरे को क्लब से डिलीट करने का जो खेल चला उसकी शुरुआत रमेश अग्रवाल की प्रेरणा और सलाह से ही हुई थी । सतीश सिंघल व मुकेश अरनेजा के संगसाथ के भरोसे मनोज भदोला व उनके संगी-साथी इस 'हमले' के लिए तैयार नहीं थे; सो जब तक वह सँभले और जबावी कार्रवाई पर उतरे, तब तक मामला लेकिन उनके हाथ से पूरी तरह फिसल चुका था - और वह बस लकीर पीटते रह गए । 
मनोज भदोला व उनके संगी-साथी अब महसूस कर रहे हैं कि सतीश सिंघल व रमणीक तलवार की बातों में वह न आते और प्रसून चौधरी के खिलाफ उनके निजी एजेंडे को पूरा करने के चक्कर में न फँसते/पड़ते तो दीपक गुप्ता के अभियान को भी वह कमजोर न करते, और अपनी फजीहत भी न कराते । मनोज भदोला व उनके संगी-साथी यदि अपनी शराफत का पर्दा ओढ़े रखते और बात को कॉन्करेंस के लिए हुई सौदेबाजी तक ही रखते, तो बात फिर बिगड़ती नहीं - वह लेकिन न तो शराफत का पर्दा ओढ़े रख सके, और न रमेश अग्रवाल के दिशा-निर्देशन में हुए प्रसून चौधरी के हमले को झेल सके । जाहिर है कि सतीश सिंघल और रमणीक तलवार ने प्रसून चौधरी के खिलाफ अपनी निजी खुन्नस को निकालने के लिए मनोज भदोला का जैसा इस्तेमाल किया, उससे नुकसान और किरकिरी सिर्फ मनोज भदोला की ही हुई है ।