Saturday, March 30, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स में चलने वाली धाँधलियों और बेईमानियों के मुद्दे को गंभीर व व्यापक बनाने के उद्देश्य से सेंट्रल काउंसिल सदस्य तरुण घिया द्वारा अरुण जैतली को लिखा/भेजा गया आरोप पत्र सचमुच कुछ असर डालेगा या धूल खायेगा ?

नई दिल्ली । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के वरिष्ठ सदस्य तरुण घिया ने केंद्रीय मंत्री अरुण जैतली को संबोधित तथा भेजे गए पत्र में इंस्टीट्यूट में चलने वाली धाँधलियों की पोल खोलते हुए जो शिकायत की है, उसने इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल तथा उसके सदस्यों की बेईमानीपूर्ण कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं । हालाँकि तरुण घिया के 47 पृष्ठों में करीब 22 हजार शब्दों में फैले शिकायती विवरणों में शायद ही कोई बात ऐसी होगी, जो पहले से चर्चा में न रही हो; कई बातों/किस्सों को उदाहरण के साथ 'रचनात्मक संकल्प' ने भी प्रमुखता से प्रकाशित किया है - लेकिन यह पहली बार हुआ है कि खुद सेंट्रल काउंसिल का एक सदस्य तथ्यात्मक सुबूतों के साथ इंस्टीट्यूट में कदम-कदम पर होने वाली बेईमानियों को उद्घाटित कर रहा है; और सिर्फ उद्घाटित ही नहीं कर रहा है, बल्कि देश के एक बड़े मंत्री के सामने उन बेईमानियों को आधिकारिक रूप में रख रहा है और कार्रवाई करने की माँग कर रहा है । इस मामले में रोमांचपूर्ण बात यह है कि अरुण जैतली को संबोधित शिकायत पत्र में तरुण घिया ने इंस्टीट्यूट प्रशासन के पदाधिकारियों के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु को भी निशाने पर ले लिया है । सुरेश प्रभु चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं; और तरुण घिया के आरोप के अनुसार, उन्होंने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ के चुनाव अभियान में शामिल होकर सरकार की उस 'नीति' का उल्लंघन किया है, जिसके तहत सरकार इंस्टीट्यूट के किसी भी चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश से दूर रहती है । इस आरोप के संदर्भ में इस बात पर गौर करना प्रासंगिक होगा कि सेंट्रल काउंसिल के कुछेक सदस्य नेताओं और मंत्रियों के साथ फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया में 'दिखाते' रहते हैं और तरह तरह के 'फायदे' उठाते रहते हैं ।
तरुण घिया के आरोपों से भरे शिकायती पत्र में दिए गए विवरणों ने इंस्टीट्यूट में सेंट्रल काउंसिल सदस्यों तथा इंस्टीट्यूट में कार्यरत पदाधिकारियों के साथ-साथ सेंट्रल काउंसिल में सरकार द्वारा नामित किए गए सदस्यों की भी भूमिका को संदेह के घेरे में ला दिया है । माना/समझा जाता है, और तरुण घिया ने अपने पत्र में इसका खुलासा भी किया है कि इंस्टीट्यूट में होने वाली धाँधलियों, बेईमानियों और पक्षपातपूर्ण कार्रवाईयों पर सेंट्रल काउंसिल सदस्य तो प्रायः इसलिए चुप रह जाते हैं, क्योंकि उन्हें 'अच्छी' कमेटियों की चेयरमैनी, विदेश यात्राओं के मौके, अपने प्रोफेशनल हितों को बढ़ाने के अवसर तथा तरह तरह से लूट-खसोट करने के काम करने होते हैं; लेकिन सरकार द्वारा नामित सदस्य आखिर किस स्वार्थ में इंस्टीट्यूट में होने वाली धाँधलियों, बेईमानियों तथा पक्षपातपूर्ण कार्रवाईयों पर ऑंखें बंद किए रहते हैं ? अरुण जैतली को संबोधित तरुण घिया के शिकायती पत्र को देखने/पढ़ने से यह विश्वास भी मजबूत होता है कि यदि सरकार द्वारा नामित सदस्य ही अपनी जिम्मेदारियाँ ठीक से निभाएँ, तो सेंट्रल काउंसिल के बेईमान सदस्यों व पदाधिकारियों की कारस्तानियों पर काफी हद तक रोक लगाई जा सकती है । तरुण घिया के शिकायती पत्र को जिन लोगों ने देखा/पढ़ा है, उन्हें उम्मीद है कि खुद सेंट्रल काउंसिल सदस्य के द्वारा की गई शिकायत ने इंस्टीट्यूट में होने वाली धाँधलियों और बेईमानियों के मुद्दे को गंभीर बना दिया है; और माना/समझा जा सकता है कि इंस्टीट्यूट में चलने वाली धाँधलियों और बेईमानियों के सामने एक सेंट्रल काउंसिल सदस्य ही जब लाचार बना हुआ है, तो इंस्टीट्यूट में धाँधलियों व बेईमानियों की जड़ें कितनी गहरी होंगी और उन्हें रोक पाना कितना मुश्किल होगा ?
मजे की बात लेकिन यह है कि तरुण घिया के शिकायती पत्र पर सेंट्रल काउंसिल के उनके साथियों की हालत ऐसी हो गई है, जैसे कि उन्हें साँप सूँघ गया हो । इन पँक्तियों के लेखक ने जिन भी सेंट्रल काउंसिल सदस्यों से इस मामले में बात करने की कोशिश की, वह सभी आधिकारिक रूप से बात करने से कन्नी काट गए । अनौपचारिक बातचीत में दिलचस्पी लेते हुए कुछेक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने उलटे तरुण घिया के रवैये को ही दोषी ठहराया । उनका कहना है कि तरुण घिया ने जो बातें की हैं, उनमें कई शर्मनाक रूप से सच भी हैं और गंभीर भी हैं, लेकिन उन बातों को उठाने का उनका तरीका स्वार्थपूर्ण रहा है - और इसीलिए उनकी बातों को सेंट्रल काउंसिल में ही समर्थन नहीं मिल पाया है । उल्लेखनीय है कि सेंट्रल काउंसिल में तरुण घिया को लगातार सातवाँ वर्ष है; उनके साथ रहे सदस्य ही कहते/बताते हैं कि सेंट्रल काउंसिल में तरुण घिया का लगातार नकारात्मक रवैया ही रहा है और वह सिर्फ विरोध करने तथा आरोप लगाने का काम ही करते रहे हैं । वह कोई शिकायत करते और आरोप लगाते - और फिर चुप बैठ जाते; बाद में फिर अचानक वह उन शिकायतों/आरोपों को दोहराने लगते; उनके इस रवैये में बाकी सेंट्रल काउंसिल सदस्य उनका स्वार्थपूर्ण खेल देखते और उनका समर्थन करने से बचते । इस तरह तरुण घिया सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच अकेले और अलग-थलग पड़ गए । मनोज फडनिस तथा देवराज रेड्डी को (वाइस) प्रेसीडेंट चुनवाने में तरुण घिया की खासी भूमिका थी, लेकिन तरुण घिया को उन दोनों से भी बहुत शिकायतें रहीं और वह उनके खिलाफ आरोप लगाते रहे; इस कारण सेंट्रल काउंसिल सदस्य ही उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते हैं । लगता है कि सेंट्रल काउंसिल में अकेले और अलग-थलग पड़ जाने के कारण ही तरुण घिया अपने आरोपों के साथ इंस्टीट्यूट की 'चहारदीवारी' से बाहर खुले में आ गए हैं और अपनी 'लड़ाई'को उन्होंने व्यापक रूप देने का निश्चय किया है । कई लोगों को लगता है कि अपने निश्चय को क्रियान्वित करते हुए तरुण घिया ने अरुण जैतली को जो पत्र लिखा/भेजा है, वह इंस्टीट्यूट में चलने वाली धाँधलियों और बेईमानियों के मुद्दे को गंभीर व व्यापक बनाने का काम तो करेगा ही ।

Wednesday, March 27, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ से रवि गुगनानी के बाहर होने के बाद बने मौके का लाभ उठाने तथा अन्य दोनों उम्मीदवारों से आगे रहने के लिए अजीत जालान ने अपनी सक्रियता बढ़ाई

नई दिल्ली । रविंदर उर्फ रवि गुगनानी के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी से पीछे हटने के बाद अजीत जालान की सक्रियता में खासी तेजी देखी जा रही है, जिसके चलते उम्मीदवारों की दौड़ में उनकी पोजीशन में अच्छा सुधार हुआ पहचाना जा रहा है । दरअसल रवि गुगनानी के उम्मीदवार रहते हुए, पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल के लिए अजीत जालान की उम्मीदवारी की खुलकर तरफदारी करना मुश्किल हो रहा था - जिस कारण अजीत जालान की उम्मीदवारी मुसीबत के भँवर जाल में फँसी हुई थी । लेकिन रवि गुगनानी के मैदान छोड़ देने के बाद विनोद बंसल के लिए अजीत जालान की उम्मीदवारी के समर्थन में खुलकर 'बैटिंग' करने का रास्ता साफ हो गया है । हालाँकि अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का बोझ भी विनोद बंसल के कंधे पर है, लेकिन कंधे के उस बोझ को झटक देना उनके लिए मुश्किल नहीं होगा । फिलबक्त अजीत जालान और अशोक कंतूर के रूप में विनोद बंसल के दोनों हाथों में लड्डू हैं; और उनके पास दोतरफा मौका है कि वह जिसका पलड़ा भारी देखें - उसकी उम्मीदवारी का झंडा उठा लें । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के बनने/बिगड़ने वाले समीकरणों को पहचानने/समझने वाले कुछेक लोगों का कहना यह भी है कि अशोक कंतूर और अजीत जालान में से कोई एक ही उम्मीदवार बना रह सकेगा; दोनों के बीच आपसी समझदारी बना कर किसी एक को आगे के लिए बढ़ा दिया जायेगा - क्योंकि इन दोनों में से एक ही उम्मीदवार होगा, तो उसके जीतने की संभावना बन सकती है; दोनों उम्मीदवार बने रहेंगे, तो दोनों ही हारेंगे । अन्य कुछेक लोगों का मानना/कहना लेकिन यह है कि अशोक कंतूर और अजीत जालान की स्थिति तीसरे उम्मीदवार महेश त्रिखा की स्थिति पर निर्भर करेगी - महेश त्रिखा उम्मीदवार के रूप में यदि मजबूती पा सके, तब तो अशोक कंतूर व अजीत जालान में से कोई एक मैदान में रहेगा; और यदि महेश त्रिखा पीछे अपने ही क्लब से उम्मीदवार बने अमरजीत सिंह वाली स्थिति में रहे, तब फिर अशोक कंतूर और अजीत जालान में ही चुनाव हो जायेगा ।
ऐसे में, अजीत जालान ने दोनों ही संभावनाओं में अपनी स्थिति को मजबूत करने/बनाने के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं । अजीत जालान के नजदीकियों का कहना/बताना है कि अजीत जालान अपने लिए ऐसा समर्थन जुटा और 'दिखा' देना चाहते हैं कि खेमे के नेता उन्हें और अशोक कंतूर में से किसी एक को उम्मीदवार के रूप में चुनने का फैसला करें, तो उनका पलड़ा भारी साबित हो; और यदि अशोक कंतूर के साथ ही चुनावी मुकाबले की नौबत आए, तो वह बेहतर स्थिति में हों । अजीत जालान और उनके साथियों को लगता है कि अशोक कंतूर पिछली बार जब हर तरह का हथकंडा आजमाने के बावजूद चुनाव नहीं जीत सके, तो आगे आने वाला चुनाव तो उनके लिए और भी मुश्किल होगा । सहानुभूति के 'रास्ते' से कुछेक लोगों को अशोक कंतूर को लाभ होता हुआ तो दिख रहा है, लेकिन उन्हीं लोगों का यह भी मानना/कहना है कि सहानुभूति का लाभ लेने के लिए अशोक कंतूर चूँकि कोई प्रयास करते नहीं दिख रहे हैं, इसलिए सहानुभूति का लाभ उन्हें अपने आप तो नहीं मिलेगा । सहानुभूति का लाभ लेने के मामले में उन्हें सबसे बड़ा झटका तो अजीत जालान और विनोद बंसल से ही लगा है । पिछले चुनाव में अशोक कंतूर को इन दोनों का समर्थन मिला था; आगे के चुनाव के लिए 'अपने' रहे इन्हीं दोनों को जब उनसे सहानुभूति नहीं रही है, तो दूसरों से वह क्या उम्मीद कर/रख सकते हैं ? रवि गुगनानी के उम्मीदवार रहते हुए तो विनोद बंसल के हाथ बँधे हुए थे, और वह अजीत जालान के लिए कुछ नहीं कर पाते और तब अजीत जालान की स्थिति कमजोर बनी हुई थी; रवि गुगनानी के चुनावी मैदान से बाहर होते ही चूँकि विनोद बंसल के बँधे हाथ खुल गए हैं - इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अजीत जालान को अपना मौका बनता नजर आ रहा है ।
हालाँकि सारा खेल महेश त्रिखा की स्थिति पर निर्भर करता है । मजे की बात यह है कि रवि गुगनानी के चुनावी मैदान से बाहर होने पर खेमेबाजी के नजरिये से सबसे ज्यादा फायदा महेश त्रिखा को होना चाहिए था, लेकिन वह मौके का फायदा उठाने से चूकते दिख रहे हैं । विडंबना की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट में जिन लोगों को महेश त्रिखा की उम्मीदवारी के स्वाभाविक सहयोगी व समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता है, महेश त्रिखा उनका भी सहयोग व समर्थन पक्का नहीं कर पा रहे हैं । ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच मजाक भी चलने लगा है कि महेश त्रिखा के क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट के सदस्यों के बीच संजय खन्ना की कामयाबी के बाद उम्मीदवार बनने को लेकर तो होड़ मच गई है, लेकिन उम्मीदवारी को लेकर सदस्य और पदाधिकारी गंभीरता नहीं दिखा पाते हैं; अमरजीत सिंह उम्मीदवार बने, लेकिन उन्हें अपने क्लब तक का वोट नहीं मिल पाया; राजीव सागर की उम्मीदवारी का बड़ा शोर था, लेकिन वह शोर बन कर ही रह गया; महेश त्रिखा उम्मीदवार बने हैं, लेकिन वह अपनी और अपने क्लब की पहचान व साख तक का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं । किसी भी उम्मीदवार की 'ताकत' को नापने/आँकने के जो भी पैमाने होते हैं, उनके आधार पर महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को सबसे ज्यादा दमदार 'दिखना' चाहिए - लेकिन विडंबना की बात यह है कि पहले चार उम्मीदवारों में और अब बचे तीन उम्मीदवारों में सबसे कमजोर उन्हीं को देखा/पहचाना जा रहा है । हालाँकि कुछेक लोगों को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का अगला चुनाव यदि पिछले चुनाव में बने दो खेमों के बीच ही हुआ, तो एक खेमे के उम्मीदवार महेश त्रिखा ही होंगे; और दूसरे खेमे से यदि अशोक कंतूर व अजीत जालान - दोनों ही उम्मीदवार हो गए, तो महेश त्रिखा के लिए मामला अनुकूल भी हो सकता है । दरअसल इसीलिए दूसरे खेमे में अशोक कंतूर व अजीत जालान में से किसी एक को ही उम्मीदवार बनाने के बारे में सोच-विचार चल रहा है - वह 'एक' हो सकने के लिए ही अजीत जालान की सक्रियता में तेजी देखी/पहचानी जा रही है ।

Monday, March 25, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के प्रेसीडेंट्स इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार में ललित खन्ना ने प्रेसीडेंट्स इलेक्ट के साथ पर्सनल संबंध बनाने का ख्याल रखने के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट में बनी अपनी पहचान और महत्ता 'दिखाने' पर जोर देकर प्रेसीडेंट्स इलेक्ट तथा अन्य रोटेरियंस पर अच्छा प्रभाव बनाया

नई दिल्ली । 'धनक' शीर्षक से आयोजित हुए प्रेसीडेंट्स इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार में ललित खन्ना ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी के अभियान की जो धमक पैदा की, वह अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को एक तरफा बनाने/करने का काम करती दिख रही है । रोटरी में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति में   प्रेसीडेंट्स इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार को उम्मीदवारों के 'लॉन्चिंग पैड' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । माना/समझा जाता है कि आने वाले रोटरी वर्ष में जो जो लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करना चाहते हैं, उनके लिए प्रेसीडेंट्स इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार अपनी उम्मीदवारी के प्रस्तुतिकरण के लिए एक शानदार और प्रभावी मौका होता है । दरअसल यह एक बड़ा और प्रभावशाली कार्यक्रम होता है, जिसमें कि प्रेसीडेंट्स इलेक्ट अगले रोटरी वर्ष में प्रेसीडेंट के रूप में अपना अपना कार्य-व्यवहार तय करते हैं । उनके लिए अपने कार्य-व्यवहार को तय करने का यह चूँकि पहला मौका होता है, इसलिए 'पहले प्यार' की तर्ज पर यह मौका एक अलग तरह की छाप छोड़ता है - जो संभावित उम्मीदवारों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण, यहाँ तक कि निर्णायक भूमिका निभाता है । इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के संभावित उम्मीदवार इस मौके को बहुत ही गंभीरता से लेते हैं । जो उम्मीदवार इस मौके को गंभीरता से नहीं लेते हैं, और या इस मौके तक अपनी उम्मीदवारी को तय नहीं कर पाते हैं, उन्हें कन्फ्यूज उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है - और उन्हें प्रेसीडेंट्स इलेक्ट गंभीरता से नहीं लेते हैं । 
दरअसल प्रेसीडेंट्स इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार हो जाने के बाद जो कोई अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करता है, उसके बारे में मान लिया जाता है कि उम्मीदवारी को लेकर उसकी अपनी कोई तैयारी या सोच नहीं थी; वह तो बस 'इसके' या 'उसके' द्वारा सब्जबाग दिखाए जाने और या उकसाने पर उम्मीदवार बन गया है; और ऐसे में 'इसकी' या 'उसकी' कठपुतली बन कर ही रहेगा । ऐसे कठपुतली उम्मीदवारों को डिस्ट्रिक्ट के लोग, खासकर  प्रेसीडेंट्स इलेक्ट चूँकि गंभीरता से नहीं लेते हैं, इसलिए जो भी लोग अपनी खुद की सोच व अपने खुद के भरोसे उम्मीदवार बनना चाहते हैं, वह प्रेसीडेंट्स इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार से पहले ही अपनी उम्मीदवारी के बारे में फैसला कर लेते हैं, और प्रेसीडेंट्स इलेक्ट के साथ तालमेल बनाने लगते हैं । इसी 'परंपरा' और प्रक्रिया के तहत ललित खन्ना और सुनील मल्होत्रा ने अपनी अपनी उम्मीदवारी के अभियान पर जोर देने के इरादे के साथ प्रेसीडेंट्स इलेक्ट के बीच अच्छे से प्रभावी संपर्क अभियान चलाया । कई एक प्रेसीडेंट्स इलेक्ट ने बताया है कि ट्रेनिंग सेमीनार से पहले ही ललित खन्ना और सुनील मल्होत्रा उनसे मिल चुके थे; और इसलिए ट्रेनिंग सेमीनार के दौरान उन्हें उन दोनों को पहचानने तथा उनके साथ जुड़ने में कोई दिक्कत नहीं हुई ।
ट्रेनिंग सेमीनार से लौटे प्रेसीडेंट्स इलेक्ट लेकिन ललित खन्ना के प्रेजेंटेशन से काफी प्रभावित दिखे और सुनील मल्होत्रा का 'प्रदर्शन' उन्हें काफी फीका लगा । दरअसल ललित खन्ना ने ट्रेनिंग सेमीनार के विभिन्न अवसरों को प्रेसीडेंट्स इलेक्ट के साथ 'कनेक्ट' होने के लिए योजनाबद्ध व बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया, जिसे सुनील मल्होत्रा बिलकुल भी नहीं कर सके । ऐसा कर सकने के लिए सुनील मल्होत्रा को अपने क्लब के सदस्यों का भी सहयोग नहीं मिला, और वह दूसरे अनुभवी लोगों का सहयोग भी नहीं ले पाए । ट्रेनिंग सेमीनार में पहुँचे हुए सुनील मल्होत्रा के क्लब के कई एक सदस्य तो दूसरे दिन ही वापस लौट आये, जिस कारण वह अकेले और अलग-थलग पड़ गए । ललित खन्ना ने लेकिन अवसरों को पहले से पहचाना और उनका भरपूर इस्तेमाल किया । प्रेसीडेंट्स इलेक्ट को ललित खन्ना का वह तरीका खूब भाया और प्रभावित करने वाला लगा, जिसमें परफॉर्मेंस देने जाते समय और परफॉर्मेंस देकर लौटते समय प्रेसीडेंट्स इलेक्ट को ललित खन्ना शुभकामनाएँ और बधाई दे रहे थे । ललित खन्ना ने एक तरफ प्रेसीडेंट्स इलेक्ट के साथ पर्सनल संबंध बनाने का ख्याल रखा और दूसरी तरफ प्रेसीडेंट्स इलेक्ट को यह 'दिखाने'/जताने पर भी जोर दिया कि डिस्ट्रिक्ट में उनकी अपनी एक पहचान और महत्ता है, और इसके लिए उन्होंने हर उस अवसर का उपयोग किया जो संयोगवश उन्हें मिले । प्रेसीडेंट्स इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार में ललित खन्ना ने अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में अपनी सक्रियता को जिस तरह से संयोजित किया, उसका प्रेसीडेंट्स इलेक्ट के साथ-साथ दूसरे रोटेरियंस पर भी अच्छा प्रभाव पड़ा दिखा है; जो उनकी उम्मीदवारी को खासी बढ़त दिलवाने वाला माना/समझा जा रहा है ।

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में नोमीनेटिंग कमेटी के चेयरमैन पद से तथा कमेटी से हटाए जाने की लायंस इंटरनेशनल में शिकायत करते हुए संजय चोपड़ा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह पर सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाने का आरोप लगाया

लखनऊ । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के नामांकन को लेकर चल रहे विवाद में अब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह भी लपेटे में आ गए हैं, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनकी भूमिका को पक्षपातपूर्ण बताते हुए लायंस इंटरनेशनल कार्यालय में शिकायत दर्ज हो गई है । इस शिकायत को देखते/समझते हुए माना/कहा जा रहा है कि एके सिंह ने नोमीनेटिंग कमेटी के चेयरमैन पद से संजय चोपड़ा को हटा कर अपने लिए बड़ी मुसीबत आमंत्रित कर ली है । संजय चोपड़ा ने नोमीनेटिंग कमेटी के चेयरमैन पद से हटाये जाने को लायंस इंटरनेशनल में चुनौती दी है । संजय चोपड़ा का आरोप है कि जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के संदर्भ में नोमीनेटिंग कमेटी के निर्णय को प्रभावित करने के उद्देश्य से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह ने उन्हें कार्रवाई के बीच में ही नोमीनेटिंग कमेटी के चेयरमैन पद से हटा दिया है, जो न तो न्यायपूर्ण है और न लायंस इंटरनेशनल के नियमों के अनुरूप है । संजय चोपड़ा का कहना है कि नोमीनेटिंग कमेटी ने अपना काम करना शुरू कर दिया है, लेकिन जो अभी पूरा नहीं हुआ है - इसलिए कार्रवाई के बीच में उन्हें तथा बाकी तीन सदस्यों में से दो सदस्यों को हटा देने से उनकी पक्षपातपूर्ण भूमिका का संकेत और सुबूत मिलता है । संजय चोपड़ा का आरोप है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमीनेटिंग कमेटी पर जगदीश अग्रवाल के नामांकन पत्र को रिजेक्ट करने के लिए दबाव बना रहे थे, लेकिन चार सदस्यीय नोमीनेटिंग कमेटी के बहुमत सदस्यों ने जब उनके दबाव को मानने से इंकार कर दिया, तो एके सिंह ने चेयरमैन सहित तीन सदस्यों को हटा कर उनकी जगह नए सदस्य बना दिए हैं । 
डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगता है कि नोमीनेटिंग कमेटी के चेयरमैन के साथ-साथ दो और सदस्यों को हटा कर उनकी जगह नए सदस्यों को नियुक्त करने का कोई कारण न बता कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह ने अपने फैसले को संदेहास्पद व विवादग्रस्त बना लिया है - और इस तरह अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली है । उल्लेखनीय है कि मामले की पृष्ठभूमि में नोमीनेटिंग कमेटी के हटाये जा चुके चेयरमैन संजय चोपड़ा के जो भी किस्से/कहानियाँ चल रहे हों और जो भी आरोप/प्रत्यारोप लग रहे हों, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह ने आधिकारिक रूप से नोमीनेटिंग कमेटी के चेयरमैन के रूप में संजय चोपड़ा पर कोई आरोप नहीं लगाया है; और संजय चोपड़ा को चेयरमैन पद से हटाए जाने का भी उन्होंने कोई कारण नहीं बताया है । इसी तथ्य का वास्ता देकर संजय चोपड़ा ने लायंस इंटरनेशनल को लिखी/भेजी अपनी शिकायत में एके सिंह ने आरोप लगाया है कि नोमीनेटिंग कमेटी के चेयरमैन के रूप में वह तथा अन्य दो सदस्य चूँकि जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के नामांकन पत्र को रिजेक्ट करने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह के माँग को पूरा नहीं कर रहे थे, इसलिए बिना कोई कारण बताये उन्हें नोमीनेटिंग कमेटी से बाहर कर दिया गया है ।
संजय चोपड़ा ने लायंस इंटरनेशनल को लिखी/भेजी अपनी शिकायत में यह दावा भी किया है कि एके सिंह ने पहले नोमीनेटिंग कमेटी के चेयरमैन के रूप में उनके उस अधिकार को मानने/देने से इंकार किया था, जिसके तहत उन्होंने जगदीश अग्रवाल को अपने आधे-अधूरे कागजातों को पूरा करने का मौका दिया था । एके सिंह का कहना था कि नोमीनेटिंग कमेटी को जगदीश अग्रवाल की तरफ से जो कागजात मिले हैं, उनके आधार पर ही उनके नामांकन की स्वीकृति का फैसला करना है; जगदीश अग्रवाल को दोबारा से दूसरे कागजात प्रस्तुत करने का मौका नहीं दिया जा सकता है । संजय चोपड़ा ने लेकिन मल्टीपल काउंसिल द्वारा स्वीकृत किए गए नियमों का हवाला देकर एके सिंह को बताया कि नोमीनेटिंग कमेटी किसी भी उम्मीदवार को अपने कागजात दुरुस्त करने तथा पूरे करने का मौका दे सकती है । संजय चोपड़ा का आरोप है कि एके सिंह को जब लगा कि वह नियमतः वह नोमीनेटिंग कमेटी को जगदीश अग्रवाल का नामांकन रिजेक्ट करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं, तब उन्होंने चेयरमैन सहित चार सदस्यीय कमेटी के तीन सदस्यों को ही हटा दिया और उनकी जगह नए सदस्य नियुक्त कर दिए । इससे लेकिन मामला खत्म होने की बजाये भड़क और गया है, और निशाने पर अब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह खुद आ गए हैं । संजय चोपड़ा की शिकायत ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में एके सिंह की भूमिका को संदेहास्पद व विवादपूर्ण बना दिया है । एके सिंह के लिए मुसीबत व फजीहत की बात यह हो गई है कि उक्त मामले में उनके पक्ष के लोग भी मानने और कहने लगे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में एके सिंह ने मामले को होशियारी तथा उचित तरीके से हैंडल नहीं किया, जिस कारण मामला उलझ भी गया है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में एके सिंह के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो गईं हैं । 

Friday, March 22, 2019

रोटरी इंटरनेशनल के पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ने नेपाल के डिस्ट्रिक्ट 3292 की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में डब्ल्यूजी मील के लिए किए जा रहे आभा झा चौधरी के प्रयासों का उल्लेख करते हुए उनकी निरंतर सक्रियता और प्रभावी नतीजे हासिल करने की उनकी योग्यता को रेखांकित किया

नई दिल्ली । रोटरी फाउंडेशन पोलियो फंड के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए डब्ल्यूजी मील कार्यक्रम की भारत और नेपाल की कंट्री को-ऑर्डिनेटर आभा झा चौधरी ने नेपाल के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3292 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट किरनलाल श्रेष्ठा की पत्नी गीता श्रेष्ठा को इस कदर प्रभावित किया कि उन्होंने अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट की फर्स्ट लेडी के रूप में डब्ल्यूजी मील के लिए काम करने को अपनी पहली प्राथमिकता में शामिल करने की घोषणा की है । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के विभिन्न कार्यक्रमों के दौरान गीता श्रेष्ठा द्वारा की गई इस घोषणा का डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ने खासी प्रशंसा की । गीता श्रेष्ठा की घोषणा की प्रशंसा करते हुए मनोज देसाई ने डब्ल्यूजी मील के लिए किए जा रहे आभा झा चौधरी के प्रयासों का उल्लेख किया और रेखांकित किया कि आभा झा चौधरी की निरंतर सक्रियता और प्रभावी नतीजे हासिल करने की उनकी योग्यता दूसरे लोगों को भी डब्ल्यूजी मील कार्यक्रम से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है । गीता श्रेष्ठा ने मनोज देसाई की इस बात का समर्थन करते हुए ही बताया कि डब्ल्यूजी मील कार्यक्रम के बारे में उन्हें आभा झा चौधरी से ही विस्तार से जानने का मौका मिला और आभा झा चौधरी के काम करने के तरीकों तथा उनके अनुभवों ने ही 'मुझे डब्ल्यूजी मील कार्यक्रम पर' फोकस करने तथा इसके लिए खास तौर से कुछ करने के लिए प्रेरित किया है । उल्लेखनीय है कि नेपाल के बुटवाल में आयोजित हुई डिस्ट्रिक्ट 3292 की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में बाहर के लोगों में मनोज देसाई के साथ आभा झा चौधरी को मुख्य अतिथि तथा मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था । 
नेपाल के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3292 की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में कंट्री को-ऑर्डिनेटर के रूप में निभाई गई आभा झा चौधरी की भूमिका तथा उनकी उपलब्धियों ने डब्ल्यूजी मील के पदाधिकारियों को खासा प्रभावित किया; और डब्ल्यूजी मील की मुख्य कर्ताधर्ता सुजेन रे ने कई मौकों पर अलग अलग तरीकों से आभा झा चौधरी की भूमिका व उपलब्धियों को प्रशंसाभाव से विशेष रूप से रेखांकित किया । वास्तव में, नेपाल के डिस्ट्रिक्ट की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में आभा झा चौधरी की उपलब्धियाँ डब्ल्यूजी मील कार्यक्रम के लिए महत्त्वपूर्ण इसलिए रहीं - क्योंकि वहाँ उन्होंने रोटेरियंस को कार्यक्रम के लिए डोनेशन देने के लिए तो प्रेरित किया ही, जिसके चलते अच्छी-खासी रकम कार्यक्रम को मिली; साथ ही एक समर्पित कार्यकर्ता के रूप में कार्यक्रम से जुड़ने के लिए भी रोटेरियंस को उत्साहित और प्रेरित किया । इसी संदर्भ में, अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने जा रहे किरनलाल श्रेष्ठा की पत्नी गीता श्रेष्ठा का डिस्ट्रिक्ट की फर्स्ट लेडी के रूप में डब्ल्यूजी मील के लिए काम करने को अपनी पहली प्राथमिकता में शामिल करने की घोषणा करने का खास महत्त्व है - और गीता श्रेष्ठा की यह घोषणा आभा झा चौधरी की एक बड़ी उपलब्धि है । मजे की बात यह रही कि बुटवाल में आयोजित हुई डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में आभा झा चौधरी की सक्रियता तथा उनकी भूमिका को मिलने वाली प्रशंसा को देख कर तथा उससे उत्साहित व प्रेरित होकर बुटवाल के मिथिला समाज संगठन ने आभा झा चौधरी के सम्मान का कार्यक्रम आयोजित कर लिया ।  
इससे भी बड़ी बात यह हुई कि नेपाल के डिस्ट्रिक्ट की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई की मौजूदगी में आभा झा चौधरी की सक्रियता व उपलब्धियों को मिली प्रशंसा की ख्याति तमिलनाडु के विझुपुरम में मल्टी-डिस्ट्रिक्ट्स के पब्लिक इमेज सेमीनार के आयोजकों तक पहुँची, तो उन्होंने आभा झा चौधरी को अपने सेमीनार में मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित कर लिया । डिस्ट्रिक्ट 2980, 2981, 3000 व 3231 द्वारा मिल कर किए गए उक्त सेमीनार में डब्ल्यूजी मील के प्रतिनिधि के रूप में आभा झा चौधरी की उपस्थिति तथा उनके द्वारा निभाई गई उनकी भूमिका ने डब्ल्यूजी मील कार्यक्रम की पहचान को व्यापक बनाने तथा विस्तार देने का काम किया ।इससे पहले रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3170 के एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम में तथा रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3250 के रोटरी क्लब मिथिला के एक बड़े स्थानीय आयोजन में आभा झा चौधरी को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जा चुका है । आभा झा चौधरी की जो सक्रियता व उपलब्धियाँ रहीं हैं, वह तो उल्लेखनीय हैं ही; रोटरी के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में उन्हें आमंत्रित किए जाने और सम्मान दिए जाने का भी अपना एक अलग महत्व है । उल्लेखनीय है कि गवर्नर्स के अलावा किसी रोटेरियन को - किसी पूर्व क्लब प्रेसीडेंट को रोटरी जगत में और दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में ऐसी पहचान व सम्मान मिला हो, जैसा सम्मान आभा झा चौधरी को मिला है - ऐसा देखने/सुनने में नहीं आया है । रोटरी के बाहर भी विभिन्न सामाजिक संस्थाओं में आभा झा चौधरी ने अपनी सक्रियता से न सिर्फ अपनी पहचान बनाई है, बल्कि विभिन्न रूपों में सम्मानित भी हुई हैं । कुछ ही समय पहले एक भव्य कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह व अन्य प्रमुख लोगों के हाथों वह सम्मानित हुई हैं, जिससे उनकी सामाजिक पहचान का दायरा न सिर्फ बढ़ा हुआ दिखा है - बल्कि उसमें प्रतिष्ठित होने का सुबूत भी लोगों को देखने को मिला है । 

Thursday, March 21, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में सुनीता बंसल की उम्मीदवारी की बागडोर संभालने को लेकर उनके समर्थक नेताओं के बीच मचे झगड़े ने श्याम बिहारी अग्रवाल की स्थिति को बेहतर बनाया

आगरा । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए सुनीता बंसल की उम्मीदवारी को मिल रहे समर्थन को 'दिखलाने' के उद्देश्य से हुए होली मिलन समारोह में जुटे लोगों को देख/जान कर श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थक डिस्ट्रिक्ट के सत्ता खेमे के लोगों ने राहत की साँस ली है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट के सत्ता खेमे के नेताओं ने जब से श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा उठाया है, तब ही से विरोधी खेमे के नेताओं ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यह हवा बनाने की कोशिश की है कि सत्ता खेमे के कई नेता श्याम बिहारी अग्रवाल को उम्मीदवार बनाये जाने से खुश नहीं हैं और श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी को लेकर सत्ता खेमे में फूट पड़ गई है । यह हवा बनाने के लिए विरोधी खेमे के नेताओं ने तर्क दिया कि सत्ता खेमे के जो नेता पिछली बार श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे थे, उन्होंने अचानक से इस बार जिस तरह से श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है - उसे देख कर उन नेताओं के संगी-साथी ही खफा हैं, और इससे सत्ता खेमे की राजनीतिक ताकत कमजोर हुई है । सत्ता खेमे की राजनीतिक ताकत कमजोर हुई है या नहीं, यह तो निश्चित रूप से अभी नहीं पता है; लेकिन सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के लिए हुए आयोजन से यह जरूर पता चल गया है कि विरोधी खेमे को उसका कोई लाभ मिलता हुआ नहीं दिख रहा है । सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थन में कमोवेश वही लोग दिख रहे हैं, जो पिछले वर्ष श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थन में थे । ऐसे में लोगों को कहने का मौका मिला है कि 'वह लोग' पिछले वर्ष जब श्याम बिहारी अग्रवाल को नहीं जितवा सके थे, तब फिर वह इस वर्ष सुनीता बंसल को भला कैसे चुनाव जितवा सकेंगे ?
मजे की बात यह हुई है कि विरोधी खेमे के नेता जिस तर्क से सत्ता खेमे के नेताओं को 'लपेटने' की कोशिश कर रहे हैं, वह तर्क पलट कर खुद उनके लिए ही मुसीबत बन गया है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों का कहना/पूछना है कि विरोधी खेमे के जो नेता पिछले वर्ष श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे थे, उन्हें तो यह देख/जान कर खुश होना चाहिए कि 'उनके' श्याम बिहारी अग्रवाल को अब पिछले वर्ष विरोधी रहे लोगों ने भी स्वीकार कर लिया है - और इस तरह 'उनके' श्याम बिहारी अग्रवाल के लिए तो इस वर्ष निर्विरोध सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जाने की स्थितियाँ बनी हैं । इस स्थिति पर खुश होने की बजाये 'समर्थक' रहे विरोधी खेमे के नेता जिस तरह से श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी के विरोधी बन गए हैं, उससे वास्तव में वह यही साबित कर रहे हैं कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति में उन्हें उम्मीदवार से कोई लगाव नहीं है, वह तो बस उम्मीदवार को इस्तेमाल करते हुए अपनी राजनीति करना चाहते हैं । पिछले वर्ष उन्होंने उम्मीदवार के रूप में श्याम बिहारी अग्रवाल को इस्तेमाल किया, इस बार वह सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के सहारे विरोध की अपनी राजनीति दिखा रहे हैं । विरोधी खेमे के नेता पिछले वर्ष भी सत्ता खेमे के नेताओं की तथाकथित फूट के तथा श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थन में होने वाले आयोजनों में जुटे लोगों के आधार पर अपनी स्थिति मजबूत देखा/बताया करते थे, और इस बार सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के मामले में भी उनका वैसा ही रंग-ढंग है । सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के पक्ष में पिछले दिनों हुए होली मिलन में यही नजारा देखने को मिला कि वहाँ या तो ऐसे लोग थे, जो प्रायः हर आयोजन में होते हैं और या फिर वह लोग थे जो पिछली बार श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी के साथ थे - लेकिन जो श्याम बिहारी अग्रवाल को चुनाव जितवा नहीं सके थे ।
सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं में से ही कुछेक का मानना/कहना है कि सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के मामले में सबसे बड़ी समस्या यह है कि डिस्ट्रिक्ट में उनकी कोई सक्रियता नहीं रही है, जिसके चलते न तो डिस्ट्रिक्ट के लोग उन्हें जानते/पहचानते हैं, और न वह ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों को जानती/पहचानती हैं । सुनीता बंसल की चूँकि अपने क्लब के कार्यक्रमों में भी कोई खास भागीदारी नहीं रही/दिखी है; मौजूदा लायन वर्ष में क्लब के जो महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम हुए, उनमें सुनीता बंसल की कोई खास सक्रियता न दिखी, न रही - इसलिए उनकी उम्मीदवारी को लेकर क्लब के लोगों तथा पदाधिकारियों के बीच कोई उत्साह नहीं नजर आ रहा है, जिसका खामियाजा उनकी उम्मीदवारी को झेलना पड़ रहा है । सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थक बने विरोधी खेमे के नेताओं के बीच के आपसी 'झगड़े' भी सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के लिए मुसीबत बने हुए हैं; दरअसल विरोधी खेमे के नेताओं के बीच सुनीता बंसल की उम्मीदवारी की बागडोर संभालने को लेकर जो होड़ मची है, उससे भी सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के सामने सबसे बड़ी समस्या खड़ी हो रही है । दूसरी तरफ सत्ता खेमे में श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करने को लेकर शुरू में जो हिचक और असमंजस दिख रहा था, वह काफी हद तक दूर होता नजर आ रहा है । विरोधी खेमे के नेताओं के बीच बनी/फैली असमंजसता और बिखराव की स्थिति ने भी श्याम बिहारी अग्रवाल की चुनावी स्थिति को बेहतर बनाया है ।

Monday, March 18, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में चौतरफा षड्यंत्रों और विरोध के बावजूद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय मित्तल ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए गौरव गर्ग को बड़ी जीत दिलवा कर लायन राजनीति में इतिहास रचा

मसूरी । डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में गौरव गर्ग ने जोरदार और ऐतिहासिक जीत हासिल की है । कुल पड़े 330 वोट में गौरव गर्ग को 316 वोट मिले; उनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार राजेश गुप्ता को कुल 13 वोट मिले और एक वोट निरस्त हुआ । इतनी बड़ी जीत इससे पहले डिस्ट्रिक्ट में क्या, मल्टीपल में - और संभवतः देश में किसी को नहीं मिली होगी । 330 में से 13 वोट पाने वाले राजेश गुप्ता को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनीता गुप्ता, सुनील जैन तथा लायन समाज में 'चोर' गवर्नर के रूप में कुख्यात एक अन्य पूर्व गवर्नर का समर्थन प्राप्त था; 'चोर' गवर्नर ने तो राजेश गुप्ता को समर्थन दिलवाने के उद्देश्य से मुकेश गोयल व विनय मित्तल के खिलाफ सोशल मीडिया में गाली-गलौच से भरा भारी अभियान चलाया हुआ था - तीन तीन पूर्व गवर्नर्स की मेहनत के बावजूद राजेश गुप्ता को मात्र 13 वोट ही मिल पाए । चुनाव से पहले के करीब दस दिनों में राजेश गुप्ता का चुनाव अभियान हालाँकि दम तोड़ता दिखने लगा था; वह और उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स ठंडे पड़ते और अपनी हार स्वीकार करते नजर आने लगे थे; लेकिन उनकी तरफ से डिस्ट्रिक्ट के लोगों को कन्फ्यूज करने तथा बरगलाने का काम जारी था; मुकेश गोयल और विनय मित्तल के बीच बनी एकता को तोड़ने के लिए तरह तरह के उपाय किए जा रहे थे और वोटिंग शुरू होने से ठीक पहले होने उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले उद्बोधनों में राजेश गुप्ता बता रहे थे कि यदि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने तो वह आधिकारिक ड्यूज के अलावा लोगों से कोई पैसा नहीं लेंगे । चुनाव से ठीक पहले की जा रही राजेश गुप्ता और उनके समर्थक गवर्नर्स की कोशिशों को दरअसल बुरी हार से बचने की तरकीबों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था; लेकिन अंततः उनकी कोई तरकीब काम न आई और कुल पड़े 330 वोटों में मात्र 13 वोट पाकर राजेश गुप्ता एक बड़ी पराजय को प्राप्त हुए ।            
गौरव गर्ग को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय मित्तल के उम्मीदवार के रूप में 'चित्रित' करते हुए मुकेश गोयल को भड़का कर उन्हें विनय मित्तल से अलग करने की कोशिशें चुनाव से ऐन पहले तक खूब हुईं, लेकिन एक अनुभवी व कुशल नेता के रूप में मुकेश गोयल ने डिस्ट्रिक्ट में विनय मित्तल की प्रशासनिक व राजनीतिक हैसियत को पहचान लिया था और समझ लिया था कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की 'नब्ज' इस समय विनय मित्तल के हाथ में है, और विनय मित्तल के विरोध में होने का मतलब अपने आप को राजनीतिक रूप से खत्म कर लेना होगा - लिहाजा मुकेश गोयल किसी झाँसे में नहीं आए । गौर करने वाला तथ्य यह है कि कॉल आने और नामांकन होने से ठीक पहले तक मुकेश गोयल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए गौरव गर्ग की उम्मीदवारी के पक्ष में बिल्कुल भी नहीं थे; वह एक तरफ तो गौरव गर्ग को हर तरह से डराने व हतोत्साहित करने के काम में लगे थे, दूसरी तरफ अन्य लोगों को उम्मीदवार बनने के लिए 'तैयार' करने के काम में जुटे थे, और तीसरी तरफ विनय मित्तल पर दबाव बना रहे थे कि वह गौरव गर्ग की जगह अपनी पसंद के और किसी को उम्मीदवार बना लें । विनय मित्तल ने लेकिन ऐसी व्यूह रचना तैयार की कि मुकेश गोयल को फिर गौरव गर्ग की उम्मीदवारी के समर्थन के लिए ही राजी होना पड़ा । इसीलिए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी प्रक्रिया के पूरे घटनाक्रम को देखने वाले लोग गौरव गर्ग की भारी जीत को वास्तव में विनय मित्तल की जीत के रूप में देख रहे हैं । लायन राजनीति में ऐसा शायद ही कभी/कहीं हुआ होगा कि एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'अपने' उम्मीदवार को जीत - और वह भी भारी भरकम जीत दिलवा दे ।  
गौरव गर्ग की उम्मीदवारी के अभियान को आगे बढ़ाना विनय मित्तल के लिए भारी चुनौती का काम था । दरअसल गौरव गर्ग की एक तो डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच कोई पहचान नहीं थी, और दूसरे वह बहुत महँगा चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं थे; मुकेश गोयल तो गौरव गर्ग की उम्मीदवारी के खिलाफ थे ही, गौरव गर्ग के अपने क्षेत्र मसूरी/देहरादून के दो प्रमुख पूर्व गवर्नर्स अनीता गुप्ता और सुनील जैन भी उनकी उम्मीदवारी के मुखर रूप में खिलाफ थे । सबसे बड़ी मुसीबत की बात यह हुई कि गौरव गर्ग को शुरु में ही विनय मित्तल के उम्मीदवार के रूप में पहचान लिया गया था - जिस कारण विनय मित्तल से किसी भी कारण से थोड़ी बहुत नाराजगी रखने वाले लोग भी गौरव गर्ग की खिलाफत करने लगे थे; दरअसल गौरव गर्ग की खिलाफत में वह विनय मित्तल से 'बदला लेने' का सुख पा रहे थे । ऐसे में, विनय मित्तल के लिए गौरव गर्ग की उम्मीदवारी की राह बनाना तथा उसे कामयाबी दिलवाना एक बड़ी चुनौती थी । यह बड़ी चुनौती इसलिए और भी ज्यादा बड़ी थी, क्योंकि विनय मित्तल खुद की पहचान सिर्फ एक 'चुनावबाज' नेता के रूप में नहीं बनाना चाहते हैं; वह एक अच्छे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर भी 'बनना' चाहते हैं, जो लायनिज्म के उच्च आदर्शों का पालन करते हुए लायनिज्म के काम-काज को भी न सिर्फ प्रमुखता देता है, बल्कि ईमानदारी के साथ अपना काम भी करता है । डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में 'चोर' गवर्नर की हरकतों - आपदा पीड़ितों की मदद के नाम पर मिले पैसों के साथ-साथ ड्यूज तक के पैसों को हड़पने की उसकी हरकतों के चलते - लोगों ने यह मान लिया था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का काम हर तरह से पैसा लूटना ही होता है; और इस तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जैसे महत्त्वपूर्ण व प्रतिष्ठा के पद की साख गर्त में जा पड़ी थी; उसे सुधारने की जरूरी जिम्मेदारी भी विनय मित्तल ने ली हुई थी ।  
विनय मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दोहरी जिम्मेदारी ली हुई थी - एक तरफ उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद को लोगों के बीच पुनर्प्रतिष्ठित करना था, और दूसरी तरफ हर तरह से कमजोर समझे जा रहे गौरव गर्ग की उम्मीदवारी को कामयाबी दिलवाना था । इन जिम्मेदारियों को निभाने में उन्हें तमाम लोगों - खुद 'अपने' लोगों के 'षड्यंत्रों' तथा तगड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा था; सिर्फ सामना ही नहीं करना पड़ रहा था, हर पल खतरा बना हुआ था कि कब कौन 'अपना' उनके लिए मुसीबत खड़ी कर दे । विरोधियों और अपनों के बनाये गए चक्रव्यूह में विनय मित्तल अकेले ही थे, और उन्हें अकेले ही उसमें से बाहर निकलना था । लेकिन ठहरिये - यहाँ कुछ बताना छूट रहा है । यहाँ फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीवा अग्रवाल की भूमिका को रेखांकित न करना उनके साथ अन्याय करना होगा । एक अकेले संजीवा अग्रवाल ही हैं, जो हर तरह से और पूरे भरोसे के साथ विनय मित्तल के साथ रहे । संजीवा अग्रवाल के सहयोग के साथ विनय मित्तल ने एक साथ युधिष्ठिर और अर्जुन की भूमिका निभाई और इतिहास रचा ।  

Sunday, March 17, 2019

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट प्रशासन के साफ निर्देश के बावजूद इंदौर ब्रांच के चेयरमैन पंकज शाह टैक्स प्रैक्टिशनर एसोसिएशन के साथ मिलकर होली मिलन समारोह करने पर अड़े हुए हैं

इंदौर । इंदौर ब्रांच के चेयरमैन पंकज शाह तथा ब्रांच के अन्य पदाधिकारियों ने 18 मार्च के होली मिलन समारोह को लेकर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों को जिस तरह से छकाया हुआ है, उसमें इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों की घटती/गिरती साख के संकेत और सुबूत को देखा/पहचाना जा सकता है । इंस्टीट्यूट की यूँ तो काफी अहमियत है और इसके पदाधिकारी बड़े बड़े नेताओं और कॉर्पोरेट क्षेत्र के पदाधिकारियों के साथ प्रसन्न मुद्रा में तस्वीरें खिंचवाते और उन्हें दिखाते रहते हैं; लेकिन अपने 'घर' में उन बेचारों की हालत यह रहती है कि घर के 'छोटे-मोटे लोग' तक उनकी सुनते/मानते नहीं हैं । इसका बिलकुल ताजा उदाहरण इंदौर में देखने को मिल रहा है । इंदौर ब्रांच ने 18 मार्च को होली मिलन समारोह के आयोजन की घोषणा की हुई है, जबकि इंस्टीट्यूट प्रशासन की तरफ से स्पष्ट हिदायत है कि ब्रांचेज किसी भी नॉन-एजुकेशनल कार्यक्रम पर पैसा खर्च नहीं करेंगी । इंस्टीट्यूट में हालाँकि देखने में आता है कि 'नीचे' से 'ऊपर' तक के पदाधिकारी इंस्टीट्यूट के पैसे को अपने 'बाप' का पैसा समझते हैं और उसे मनमाने तरीके से खर्च करते हैं । इसी 'परंपरा' का पालन करते हुए इंदौर ब्रांच के पदाधिकारियों ने होली मिलन समारोह के आयोजन की घोषणा कर दी । इंस्टीट्यूट में इसकी शिकायत हो गई । इंस्टीट्यूट प्रशासन ने इंदौर ब्रांच के चेयरमैन पंकज शाह को साफ निर्देश दिए कि वह यह कार्यक्रम नहीं कर सकते हैं; लेकिन आरोपों के अनुसार, पंकज शाह के कानों पर जूँ रेंगती हुई नहीं दिख रही है । 
इंदौर में कई लोग इस आयोजन के पीछे पंकज शाह की 'बिजनेस एप्रोच' को भी देख/पहचान रहे हैं, जिसके कारण इंस्टीट्यूट के मुख्यालय से मिले निर्देश की भी वह परवाह करते हुए नहीं दिख रहे हैं । उल्लेखनीय है कि पंकज शाह प्रोफेशनली इनकम टैक्स की प्रैक्टिस करते हैं, और 18 मार्च का होली मिलन समारोह वह इंदौर की टैक्स प्रैक्टिशनर एसोसिएशन के साथ मिलकर कर रहे हैं - जिसके चलते लोग मान रहे हैं कि उक्त कार्यक्रम वास्तव में पंकज शाह का डिपार्टमेंट से जुड़े लोगों के बीच अपनी लॉबिइंग के लिए है; होली मिलन तो बस बहाना है । ऐसे में, यदि वह कार्यक्रम रद्द करते हैं, तो डिपार्टमेंट से जुड़े लोगों के बीच उनकी बड़ी फजीहत होगी । अपने आप को फजीहत से बचाने के लिए पंकज शाह इंस्टीट्यूट और उसके पदाधिकारियों की फजीहत करने को तैयार हो गए हैं । लोगों का कहना है कि अपने आप को और इंस्टीट्यूट व उसके पदाधिकारियों को फजीहत से बचाने का पंकज शाह के पास एक बड़ा आसान तरीका यह है कि वह इंस्टीट्यूट को सूचित कर दें कि उक्त कार्यक्रम वह ब्रांच/इंस्टीट्यूट के पैसे से नहीं कर रहे हैं, लेकिन पंकज शाह ऐसा नहीं कर रहे हैं - जिसके चलते मामला भड़का हुआ है ।
पंकज शाह को इंस्टीट्यूट प्रशासन की तरफ से लिखा/भेजा गया निर्देश इस प्रकार है :


इंस्टीट्यूट प्रशासन के स्पष्ट निर्देश के बाद भी पंकज शाह मनमाने तरीके से 18 मार्च को होली मिलन समारोह कर रहे हैं, इसकी शिकायत की प्रति यह है :    
     

Saturday, March 16, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में जगदीश अग्रवाल के नामांकन को स्वीकार करने के मामले में विशाल सिन्हा द्वारा 'सेट' किए गए इंटरनेशनल डायरेक्टर जेपी सिंह से हरी झंडी मिलने के बाद ही संजय चोपड़ा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह की फजीहत करने वाले हालात बनाये

लखनऊ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह को अंततः पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स - संजय चोपड़ा, विशाल सिन्हा, अनुपम बंसल की तिकड़ी के सामने झुकने/दबने के लिए मजबूर होना पड़ा है, और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए फर्जी और अधूरे तथ्यों पर आधारित जगदीश अग्रवाल का नामांकन स्वीकार हो गया है । जगदीश अग्रवाल इसके लिए खुलकर नोमीनेटिंग कमेटी के चेयरमैन संजय चोपड़ा का आभार व्यक्त कर रहे हैं, और लोगों को बता रहे हैं कि एके सिंह की तरफ से मिलने वाली धमकियों की परवाह न करते हुए संजय चोपड़ा ने उनके नामांकन को स्वीकार करने का साहसिक फैसला किया है । जगदीश अग्रवाल बता रहे हैं कि एके सिंह की तरफ से लगातार यह संदेश दिया जा रहा था कि संजय चोपड़ा ने यदि जगदीश अग्रवाल का नामांकन स्वीकार किया तो वह संजय चोपड़ा को नोमीनेटिंग कमेटी के चेयरमैन पद से हटा देंगे; संजय चोपड़ा ने लेकिन इस संदेश की परवाह नहीं की और उनके नामांकन को हरी झंडी दे दी । जगदीश अग्रवाल अपने नामांकन के नियमविरुद्ध होने के बावजूद स्वीकृत होने के लिए संजय चोपड़ा के साथ-साथ विशाल सिन्हा को भी श्रेय देते हैं । लोगों को उन्होंने बताया है कि इस मामले में संजय चोपड़ा से लेकर दिल्ली में बैठे इंटरनेशनल डायरेक्टर जेपी सिंह तक को 'साधने' का काम विशाल सिन्हा ने ही किया है । विशाल सिन्हा ने ही जेपी सिंह से यह आश्वासन लिया है कि नामांकन स्वीकार करने में हुई 'बेईमानी' को लेकर लायंस इंटरनेशनल में यदि शिकायत होती है, तो जेपी सिंह वहाँ मामला 'संभाल' लेंगे । जेपी सिंह से यह आश्वासन मिलने के बाद ही संजय चोपड़ा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह की धमकी को अनसुना करते हुए जगदीश अग्रवाल के नामांकन को स्वीकार कर लिया । जगदीश अग्रवाल द्वारा बताई जा रही बातों में यह बात लेकिन और भी खासी गंभीर है कि अपनी उम्मीदवारी का नामांकन स्वीकार करवाने के लिए उन्हें बड़ी मोटी रकम खर्च करना पड़ी है - जो लखनऊ व शाहजहाँपुर से लेकर दिल्ली तक के मुख्य पात्रों के बीच बँटी बताई/सुनी जा रही है । 
जगदीश अग्रवाल के नामांकन के मामले में हुआ दरअसल यह है कि उम्मीदवार होने के लिए नियमानुसार जिन शर्तों का पालन करना जरूरी था, जगदीश अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत किए गए कागज उन शर्तों को पूरा नहीं करते थे, जिसके चलते नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग में उनका नामांकन रद्द हो जाना चाहिए था; किंतु विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल द्वारा दिए गए 'ऑफर' के दबाव के चलते नोमीनेटिंग कमेटी के चेयरमैन के रूप में संजय चोपड़ा ने जगदीश अग्रवाल को दूसरे कागज प्रस्तुत करने के लिए समय दे दिया । लायंस इंटरनेशनल के नियमों में हालाँकि इस तरह की कोई व्यवस्था ही नहीं है कि किसी उम्मीदवार के पेपर यदि आधे-अधूरे हैं, तो उसे 'सही' पेपर प्रस्तुत करने के लिए समय दिया जाए । वास्तव में, उम्मीदवारी के पेपर तैयार करने की प्रक्रिया ही ऐसी है कि उसमें नए पेपर देने/लेने का कोई मौका ही नहीं बनता है । लेकिन अपने बड़े 'लालच' को पूरा करने के ऐवज में संजय चोपड़ा ने नियम और प्रक्रिया को ही अनदेखा कर दिया । संजय चोपड़ा के फैसले को पक्षपातपूर्ण माना गया और इसमें 'सौदेबाजी' होने की आशंका देखी/पहचानी गई है । संजय चोपड़ा की यह कार्रवाई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह को उचित नहीं लगी और उन्होंने संजय चोपड़ा को बहुत समझाने की कोशिश की कि उन्हें यह नियमविरुद्ध काम नहीं करना चाहिए, अन्यथा उनके साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट की भी बहुत बदनामी होगी । एके सिंह ने यह संकेत भी दिए कि संजय चोपड़ा ने यदि नियमों का पालन नहीं किया, तो वह उन्हें नोमीनेटिंग कमेटी के चेयरमैन पद से हटा देंगे । लोगों के बीच चर्चा है कि जगदीश अग्रवाल और विशाल सिन्हा की तरफ से नामांकन स्वीकार करने के बदले में उन्हें इतना जोरदार और उनकी 'पसंद' का ऑफर था कि संजय चोपड़ा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह की समझाइस व धमकी तक की परवाह नहीं की ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह के लिए फजीहत की बात यह रही कि उनके द्वारा नियुक्त किए गए नोमीनेटिंग कमेटी चेयरमैन संजय चोपड़ा ने तो नियमविरुद्ध कार्रवाई करके 'बेईमानी' की ही, इंटरनेशनल डायरेक्टर जेपी सिंह तक ने संजय चोपड़ा की इस बेईमानी को हरी झंडी दी । इस मामले को 'देखने' वाले मल्टीपल के बड़े और लायंस इंटरनेशनल के नियमों को अच्छे से समझने वाले लोगों का मानना और कहना है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर जेपी सिंह से हरी झंडी मिले बिना संजय चोपड़ा उक्त फैसला करने का साहस नहीं कर सकते थे । इस मामले में दिलचस्प पहलू यह भी है कि पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना पहले ही यह स्पष्ट कर चुके थे कि नियमानुसार जगदीश अग्रवाल का नामांकन स्वीकार नहीं हो सकता है । दरअसल लखनऊ में हुई नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग में जगदीश अग्रवाल के पेपर्स को जब आधा-अधूरा देखा/पाया गया था, तब विनोद खन्ना से ही सलाह ली गई थी कि नियमानुसार क्या किया जाना चाहिए । विनोद खन्ना का साफ कहना था कि जगदीश अग्रवाल की तरफ से जो पेपर दिए गए हैं, उनके आधार पर तो उनका नामांकन स्वीकार नहीं हो सकता है । विशाल सिन्हा और संजय चोपड़ा ने तब विनोद खन्ना को छोड़ कर जेपी सिंह का दामन पकड़ा और जेपी सिंह की तरफ से हरी झंडी मिलते ही संजय चोपड़ा ने जगदीश अग्रवाल द्वारा मुहैय्या कराये गए नए पेपर्स के आधार पर उनकी उम्मीदवारी को स्वीकार कर लिया - और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह के लिए फजीहत वाली स्थिति बना दी ।

Thursday, March 14, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तेजपाल खिल्लन के खिलाफ कार्रवाई करने/करवाने से नरेश अग्रवाल को बचता देख, जेपी सिंह ने भी केएम गोयल को अधर में छोड़ा और फजीहत का शिकार बनाया

नई दिल्ली । इंटरनेशनल डायरेक्टर जेपी सिंह के ऐन मौके पर 'पीछे हटने' के कारण डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की कॉल को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तेजपाल खिल्लन को घेरने/फँसाने की पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर केएम गोयल की कोशिशों में पलीता लग गया लगता है । केएम गोयल के नजदीकियों का कहना है कि तेजपाल खिल्लन को फँसाने के लिए जेपी सिंह ने पहले तो केएम गोयल को इस्तेमाल किया, लेकिन फिर लगता है कि उन्होंने तेजपाल खिल्लन से कोई 'सौदा' कर लिया है - और केएम गोयल के साथ मिलकर की जा रही कार्रवाई से अपने आपको अलग कर लिया है । कुछेक लोगों को इस मामले में पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल की भूमिका भी नजर आ रही है, जिसके चलते जेपी सिंह के लिए भी कुछ कर सकना असंभव हुआ है । केएम गोयल के कुछेक नजदीकियों को यह भी लग रहा है कि जेपी सिंह के बस की कुछ करना/करवाना है नहीं; और केएम गोयल नाहक ही उनकी बातों में आ गए । केएम गोयल के नजदीकियों को यह भी शक है कि जेपी सिंह चूँकि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव से जुड़ी अदालती कार्रवाई से परेशान हैं, और इस परेशानी से मुक्त होना चाहते हैं - और उन्हें लगता है कि तेजपाल खिल्लन उन्हें उक्त झमेले से मुक्ति दिला सकते हैं, इसलिए वह तेजपाल खिल्लन से कभी 'गर्म' तो कभी 'सर्द' संबंध बनाते रहते हैं । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की कॉल को लेकर तेजपाल खिल्लन ने लायंस इंटरनेशनल व मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के नियम-कानूनों की जैसी जो ऐसीतैसी की, उसमें जेपी सिंह को तेजपाल खिल्लन की 'गर्दन मरोड़ने' का मौका दिखा, और इस मौके का इस्तेमाल करने की कार्रवाई में उन्होंने केएम गोयल को शामिल कर लिया । एक ही डिस्ट्रिक्ट में होने के बावजूद केएम गोयल और तेजपाल खिल्लन के बीच वर्षों से चलती रहने वाली उठापटक लायन समाज में जगजाहिर है ही; लिहाजा केएम गोयल को जेपी सिंह के 'खेल' में शामिल होने में गुरेज नहीं हुआ । 
जेपी सिंह की योजना थी कि केएम गोयल डिस्ट्रिक्ट के किसी लायन से कॉल को लेकर हुए नियमों के उल्लंघन की शिकायत लायंस इंटरनेशनल में दर्ज करवाएँ/भिजवाएँ - लायंस इंटरनेशनल से कार्रवाई वह करवायेंगे । शिकायत दर्ज होने के बाद जेपी सिंह की तरफ से तेजपाल खिल्लन के खिलाफ लायंस इंटरनेशनल की कार्रवाई का भरोसा केएम गोयल को लगातार मिलता रहा, लेकिन जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है - उससे केएम गोयल और उनके नजदीकियों को लग रहा है कि जेपी सिंह ने उनका पोपट बना दिया है - और तेजपाल खिल्लन से हाथ मिला लिया है ।  उल्लेखनीय है कि तेजपाल खिल्लन की तरफ से पहले 5 जनवरी को ऑफिशियल कॉल निकाली गई, जिसमें 8 मार्च को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस करने की बात कही गई थी । उक्त कॉल में रही/बनी खामियों की शिकायत लायंस इंटरनेशनल कार्यालय तक जा पहुँची, तब तेजपाल खिल्लन ने आनन/फानन में दूसरी कॉल निकाल दी, जिसके अनुसार डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के लिए 30 मार्च की नई तारीख और फरीदाबाद के रूप में नई जगह का ऐलान किया गया । तेजपाल खिल्लन द्वारा निकाली गई दूसरी कॉल को लेकर आरोप यह लगा कि इसके लिए तेजपाल खिल्लन ने डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट की मंजूरी नहीं ली है, और मनमाने तरीके से इसे जारी कर दिया है । लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानूनों के अनुसार, ऑफिशियल कॉल के लिए डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट की मंजूरी जरूरी होती है; और ऑफिशियल कॉल में बाद में यदि कोई संशोधन/परिवर्तन करने की जरूरत होती है तो उसके लिए भी कैबिनेट की मंजूरी की जरूरत होती है । तेजपाल खिल्लन ने ऑफिशियल कॉल में संशोधन/परिवर्तन ही नहीं किया है, बल्कि पूरी कॉल ही बदल दी है - और एक तरीके से दूसरी नई कॉल जारी की है, और इसके लिए कैबिनेट की मंजूरी ही नहीं ली है । इस तरह, इस दूसरी ऑफिशियल कॉल को भी अवैधानिक माना/बताया गया । इस पर लायंस इंटरनेशनल से कार्रवाई करवाने के लिए ही जेपी सिंह ने केएम गोयल से हाथ मिलाया था - केएम गोयल के नजदीकियों का कहना है कि जेपी सिंह ने अपना मतलब निकालने के लिए अपना दूसरा हाथ तेजपाल खिल्लन से मिला लिया और इस तरह लायंस इंटरनेशनल की तरफ से तेजपाल खिल्लन के खिलाफ हो सकने वाली कार्रवाई अधर में लटक गई है ।
लायन लीडर्स के नजदीकियों का इस मामले में यह भी कहना है कि पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल के हस्तक्षेप के कारण जेपी सिंह और केएम गोयल की तेजपाल खिल्लन को फँसाने की योजना में पंक्चर हुआ है । नरेश अग्रवाल दरअसल चेन्नई व मुंबई के कुछेक लायंस द्वारा लायंस को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया एसोसिएशन के खिलाफ छेड़ी गई 'लड़ाई' से ही परेशान हैं, और वह अभी दिल्ली में कोई और लड़ाई का माहौल नहीं बनाना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने तेजपाल खिल्लन की 'हरकत' को लायंस इंटरनेशनल द्वारा नजरअंदाज करने/करवाने का काम किया है । नरेश अग्रवाल को डर हुआ कि कॉल के मामले में नियमों का उल्लंघन करने को लेकर तेजपाल खिल्लन के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई, तो तेजपाल खिल्लन चेन्नई व मुंबई के विरोधी बने लायन नेताओं से तार जोड़ लेंगे और दिल्ली में उनके खिलाफ मोर्चा खोल देंगे, इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई को टाल दिए जाने में ही भलाई है । लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारी भी 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' वाले अंदाज में फैसले करते हैं, इसलिए तेजपाल खिल्लन की नियम विरुद्ध हरकत पर वह चुप्पी मार कर बैठ गए हैं । नरेश अग्रवाल के रवैये को देख/जान कर जेपी सिंह ने भी मामले से अपने हाथ खींच लिए हैं । मजे की बात यह हुई है कि केएम गोयल के साथ मिल कर तेजपाल खिल्लन की गर्दन दबोचने की तैयारी कर रहे जेपी सिंह अब इस जुगाड़ में लग गए हैं कि तेजपाल खिल्लन उनके मामले में चल रही अदालती कार्रवाई के मसले को निपटवाएँ - ताकि इंटरनेशनल डायरेक्टरी वह चैन से कर सकें । जेपी हालाँकि अभी केएम गोयल को तेजपाल खिल्लन के खिलाफ कार्रवाई होने का झाँसा भी दे रहे हैं, जिसके चलते लेकिन केएम गोयल को फजीहत का शिकार होना पड़ रहा है । 

Wednesday, March 13, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी छोड़ने के रवि गुगनानी के फैसले ने बाकी उम्मीदवारों के लिए तो मुकाबले को आसान बना दिया है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया को रवि गुगनानी से एकेएस सदस्यता का पैसा मिलना खतरे में दिख रहा है

रोहतक/नई दिल्ली । रविंदर उर्फ रवि गुगनानी के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी से पीछे हटने से बाकी तीनों उम्मीदवार - अशोक कंतूर, अजीत जालान और महेश त्रिखा खासे खुश हैं; और अलग अलग कारणों से अपनी अपनी चुनावी स्थिति को खासा मजबूत हुआ मान रहे हैं । दिलचस्प बात यह है कि अगले रोटरी वर्ष में होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए ताल ठोक रहे चारों उम्मीदवारों में रवि गुगनानी की स्थिति को ही सबसे मजबूत माना/समझा जा रहा था, और उनकी उम्मीदवारी ने बाकी तीनों उम्मीदवारों के लिए समर्थन जुटाने के अवसरों को छीना तथा सीमित किया हुआ था । उम्मीदवारी घोषित करते ही रवि गुगनानी जिस अचानक तरीके से डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के कन्वेनर बन कर डिस्ट्रिक्ट के सत्ताधारियों के लाड़ले बन गए थे, उसे देख कर बाकी तीनों उम्मीदवारों ने अपने आपको भारी मुसीबत में पाया था । पहले तो ऐसा लग रहा था कि रवि गुगनानी को सिर्फ उन लोगों का समर्थन प्राप्त होगा, जिन्होंने इस वर्ष के चुनाव में अनूप मित्तल को जितवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी; लेकिन डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के कन्वेनर बन कर रवि गुगनानी ने संकेत और सुबूत 'दिखाए' कि वह अनूप मित्तल के खिलाफ अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले विनोद बंसल का भी समर्थन जुटा सकते हैं । इस तरह, डिस्ट्रिक्ट के दोनों खेमों के नेताओं के बीच अपनी पैठ दिखा/जता कर रवि गुगनानी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ में अपने आपको बाकी तीनों उम्मीदवारों से काफी आगे बना लिया था । लेकिन अचानक से सामने आए एक नाटकीय घटनाचक्र में रवि गुगनानी ने अगले वर्ष की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ से हटने की घोषणा करके बाकी तीनों उम्मीदवारों को एक बड़ी चुनावी राहत दी है ।
रवि गुगनानी ने 'रचनात्मक संकल्प' की एक रिपोर्ट से आहत होकर यह फैसला किया । रवि गुगनानी के नजदीकियों का कहना हालाँकि यह भी है कि रवि गुगनानी के इस फैसले को अंतिम न माना जाए - और बहुत संभव है कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करें और फिर से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ में शामिल हो जाएँ । ऐसा सोचने और कहने वाले रवि गुगनानी के नजदीकियों का तर्क है कि रवि गुगनानी ने ऐसा ही 'तमाशा' डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में भी किया था - जहाँ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया व डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर विनोद बंसल के रवैये से खफा होकर पहले तो उन्होंने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के बहिष्कार की घोषणा कर दी थी, और उससे जुड़े एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम का उन्होंने बहिष्कार भी कर दिया था - लेकिन अगले ही दिन फिर वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में आ गए थे । रवि गुगनानी के नजदीकियों का कहना है कि रवि गुगनानी थोड़े तुनकमिजाज व्यक्ति हैं; वह कब किस बात पर तुनक जाएँ - यह पहचानना/समझना बड़ा मुश्किल है । अपनी तुनकमिजाजी में वह कई बार ऐसे फैसले कर लेते हैं कि बाद में उन्हें खुद पछताना पड़ता है और फिर वह अपने ही फैसले पर नहीं टिकते हैं - जैसा कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के मामले में हुआ । नजदीकियों को भले ही लगता हो कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के मामले की तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के मामले में भी रवि गुगनानी पलटी मार सकते हैं - लेकिन दूसरे लोगों का मानना/कहना है कि अब की बार घोषित किए गए अपने फैसले से पलटी मारना रवि गुगनानी के लिए मुश्किल होगा । कई लोगों का मानना और कहना है कि दरअसल इस बार, रवि गुगनानी ने अपनी तुनकमिजाजी में 'रायता' कुछ ज्यादा फैला लिया है, जिसे समेटना आसान नहीं होगा ।
हालाँकि कई लोग अलग अलग तरीकों से रवि गुगनानी को मनाने का प्रयास कर रहे हैं कि उन्हें इस तरह से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ से बाहर नहीं हो जाना चाहिए, और अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए । हालाँकि दिलचस्प बात यह भी देखने में आई है कि 'रचनात्मक संकल्प' की रिपोर्ट से आहत होकर अपनी ही उम्मीदवारी के दुश्मन बन बैठे रवि गुगनानी के - डिस्ट्रिक्ट व रोटरी को अपनी हरकतों व कारस्तानियों से बार बार शर्मशार करने वाले कुछेक लोग - हमदर्द बन बैठे हैं । रवि गुगनानी से हमदर्दी दिखा/जता कर यह लोग दरअसल अपने अपने चेहरों पर लगी 'कालिख' को साफ करने की कोशिश कर रहे हैं । एक और मजे की बात यह है कि रवि गुगनानी द्वारा अचानक लिए उक्त फैसले ने उन्हें 'लेकर' बनाई गईं डिस्ट्रिक्ट के कई नेताओं की अलग अलग तरह की 'प्लानिंग्स' को खतरे में डाल दिया है । नेताओं को डर हुआ है कि रवि गुगनानी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का 'सपना' यदि सचमुच छोड़ दिया, तो उनके उस सपने के 'भरोसे' बनाई गईं उनकी प्लानिंग्स का क्या होगा ? सबसे बड़ा संकट रवि गुगनानी की एकेएस सदस्यता को लेकर पैदा हुआ है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया ने चेन्नई इंस्टीट्यूट में एकेएस सदस्यता को लेकर रवि गुगनानी से हामी भरवाई थी, जिसके चलते रोटरी के बड़े नेताओं की मौजूदगी में उनका स्वागत हुआ था । विनय भाटिया को डर यह लग रहा है कि ताजा घटनाचक्र के चलते रवि गुगनानी का मन यदि रोटरी से विमुख हो गया तो कहीं वह एकेएस सदस्यता का पैसा देने से इंकार न कर दें । रोहतक में रोटरी का एक बड़ा हिस्सा रवि गुगनानी के 'भरोसे' है - रवि गुगनानी की नाराजगी के बने रहने से उसके अस्तित्व पर भी खतरा पैदा हो सकता है । इसलिए कई तरह के लोग अलग अलग कारणों से और अपने अपने तरीके से रवि गुगनानी को मनाने/समझाने का प्रयास कर रहे हैं । यह देखना दिलचस्प होगा कि रवि गुगनानी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की तरह अपनी उम्मीदवारी के मामले में भी यू-टर्न लेते हैं या अपनी नाराजगी को बनाए रखते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के बाकी उम्मीदवारों के लिए मुकाबले को सचमुच आसान बना देंगे ।

Tuesday, March 12, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के एंडोर्समेंट के लिए विनय गर्ग के 'इंटेंशन' देने के चलते छिड़े विवाद ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की दिनेश जोशी की उम्मीदवारी के अभियान को मुसीबत में फँसाया

पानीपत । विनय गर्ग के इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एंडोर्समेंट लेने की 'इंटेंशन' प्रकट करने से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति तो भड़क ही उठी है, उसकी आँच ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को भी गर्मी दे दी है । मजे की बात यह है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विनय गर्ग का समर्थन प्राप्त कर रहे दिनेश जोशी की उम्मीदवारी के समर्थक इस बात पर बँटे हुए हैं कि विनय गर्ग की यह इंटेंशन उन्हें फायदा पहुँचायेगी या नुकसान ? दिनेश जोशी के कुछेक समर्थकों को विनय गर्ग की इस इंटेंशन में दिनेश जोशी की उम्मीदवारी को फायदा पहुँचता 'दिख' रहा है; उनका दावा तो बल्कि यह है कि दिनेश जोशी की उम्मीदवारी को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से ही विनय गर्ग ने यह चाल चली है - अन्यथा इस 'इंटेंशन' के लिए अभी किसी भी लिहाज से उचित समय नहीं है; दूसरी तरफ लेकिन दिनेश जोशी के अन्य कुछेक समर्थकों को लगता है और उनका कहना है कि विनय गर्ग की इस घोषणा ने पहले से ही मुसीबत का शिकार बनी दिनेश जोशी की उम्मीदवारी को और ज्यादा मुसीबत में फँसा दिया है । दरअसल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दूसरे उम्मीदवार दिनेश बत्रा के समर्थकों ने यह कहते हुए मामले को भड़काया है कि जिन विनय गर्ग की लायन सदस्यता तक खतरे में है और जो सिर्फ अदालती कार्रवाई के चलते बची हुई है, वह विनय गर्ग इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने का सपना क्यों और कैसे देख रहे हैं ? विनय गर्ग को लेकर कही/सुनाई जा रहीं इस तरह की बातें डिस्ट्रिक्ट के लोगों को नकारात्मक रूप में प्रभावित कर ही सकती हैं; और यह चीज दिनेश जोशी की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का काम कर सकती है ।
विनय गर्ग पिछले वर्ष मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन थे । चेयरमैन के रूप में उनके कुछेक फैसले और रवैये पर लायंस इंटरनेशनल के साथ उनका कुछ खटराग हुआ, जिसके चलते लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारी उनकी लायन सदस्यता के ही दुश्मन बन बैठे । लायंस इंटरनेशनल के मनमाने व तानाशाहीपूर्ण फैसले के खिलाफ विनय गर्ग ने अदालत की शरण ली, जिसके चलते लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों की मनमानी पर अमल करने की रोक तो लग गई - लेकिन विनय गर्ग की सदस्यता पर लटकी तलवार अभी भी लटकी हुई ही है । लायंस इंटरनेशनल की तरफ से लायंस को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इंडिया एसोसिएशन द्वारा भारत के लायन लीडर्स की जो डायरेक्टरी प्रकाशित है, उसमें विनय गर्ग की जहाँ फोटो छपना चाहिए थी, वहाँ इस आशय की जानकारी प्रकाशित की गई है । ऐसे में, इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के एंडोर्समेंट के लिए दी गई उनकी 'इंटेंशन' ने उनके विरोधियों को उनके खिलाफ बयानबाजी करने का मौका दिया है, और इस मौके के इस्तेमाल के चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी पैदा हो गई है । इस गर्मी ने लेकिन सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विनय गर्ग के समर्थित उम्मीदवार दिनेश जोशी को मुसीबत में डाल दिया है । उनके लिए लोगों के इस सवाल का जबाव देना कई कारणों से मुश्किल बना हुआ है कि जब विनय गर्ग की लायन सदस्यता ही संकट में फँसी हुई है, तब विनय गर्ग आखिर किस बिना पर इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एंडोर्समेंट लेने की सोच रहे हैं ?
विनय गर्ग के इस नए विवाद में फँस जाने से दिनेश जोशी की उम्मीदवारी के अभियान पर भी प्रतिकूल असर पड़ने का डर पैदा हुआ है । दरअसल दिनेश जोशी की उम्मीदवारी के दो ही बड़े समर्थक सक्रिय रहे हैं - एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि मेहरा और दूसरे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व निवर्त्तमान मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि मेहरा थाईलैंड में हुए अधिष्ठापन समारोह में हुई बदइंतजामी और लूट-खसोट के झमेले से अभी तक उबर नहीं पाए हैं, इसलिए ले-दे कर एक अकेले विनय गर्ग ही दिनेश जोशी की उम्मीदवारी के एक बड़े समर्थक बचे रह गए थे - लेकिन अब उनके भी खामख्वाह एक विवाद को आमंत्रित कर लेने से दिनेश जोशी के लिए मुसीबत की स्थिति बन गई है । दिनेश जोशी की उम्मीदवारी के साथ यूँ तो सब कुछ अच्छा ही अच्छा है; दिनेश बत्रा के मुकाबले हर तुलना में दिनेश जोशी का पलड़ा भारी है, लेकिन फिर भी उनकी उम्मीदवारी की वैसी हवा नहीं बन पा रही है, जैसी कि बनना चाहिए थी - तो इसका एक ही कारण दिखता है और वह यह कि उनकी उम्मीदवारी के साथ चुनावी नजरिये से कोई बड़ा नाम सक्रिय नहीं है । दिनेश जोशी की उम्मीदवारी का सारा बोझ एक अकेले सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन गुप्ता के कंधे पर डला/पड़ा हुआ है । विनय गर्ग तथा खेमे के अन्य पूर्व गवर्नर्स की छत्रछाया में रमन गुप्ता अच्छे से दिनेश जोशी की उम्मीदवारी की कमान सँभाले हुए थे भी - लेकिन इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के एंडोर्समेंट के लिए विनय गर्ग के 'इंटेंशन' देने के चलते छिड़े विवाद ने दिनेश जोशी की उम्मीदवारी के अभियान में अलग तरह की समस्या पैदा कर दी है ।

Monday, March 11, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में आयोजित हुए डिस्ट्रिक्ट टीम ट्रेनिंग सेमीनार में ललित खन्ना ने अपने आपको एक जिम्मेदार, प्रभावी और सक्रिय रोटेरियन के रूप में 'दिखाने' पर ध्यान देकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाया

नई दिल्ली । ललित खन्ना ने डिस्ट्रिक्ट टीम ट्रेनिंग सेमीनार में उपस्थित लोगों के बीच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी का सक्रियताभरा प्रमोशन करके जो धाक बनाई, उससे उनकी उम्मीदवारी अचानक व तेजी से चर्चा का विषय बन गई है - और इसका नतीजा यह हुआ है कि उनकी उम्मीदवारी को लेकर लोगों के बीच बना संशय समाप्त हुआ है । उल्लेखनीय है कि पिछले कुछेक दिनों से उनके नजदीकियों की तरफ से तो दावा किया जा रहा था कि ललित खन्ना उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन ललित खन्ना खुद अपनी उम्मीदवारी को लेकर चुप्पी साधे हुए थे । उनके कुछेक नजदीकियों का कहना/बताना था कि ललित खन्ना खुद अपनी उम्मीदवारी घोषित करने से पहले डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक हालात और चुनावी समीकरणों को समझ लेना चाहते थे; और इसके बाद ही अपनी उम्मीदवारी को घोषित करना चाहते थे । मजे की बात यह थी कि ललित खन्ना ही नहीं, तीन-चार अन्य रोटेरियंस भी अपनी अपनी उम्मीदवारी की संभावनाओं को तलाश रहे थे और अपनी अपनी संभावित उम्मीदवारी के लिए समर्थन-आधार 'बनाने' का प्रयास कर रहे थे - जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक माहौल में असमंजस बना हुआ था । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी को लेकर जो नाम चल रहे थे, उनमें हालाँकि एक अकेले ललित खन्ना ही ऐसे थे, जिन्हें अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने को लेकर कोई निजी या संगठनात्मक समस्या नहीं थी - बाकी अन्य संभावित उम्मीदवारों में किसी को अपने क्लब से हरी झंडी पाने के लिए जूझना पड़ रहा था, तो कोई बिना किसी समर्थन-आधार के उम्मीदवार बनने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था और इस चक्कर में 'इस' या 'उस' नेता को अपनी उम्मीदवारी के समर्थन के लिए राजी करने के प्रयासों में लगा था । हालाँकि प्रयासों में लगे संभावित उम्मीदवारों में किसी उम्मीदवार के साथ पैसों की 'ताकत' देखी जा रही थी, तो किसी के पास लंबे रोटरी जीवन के अनुभवों की पूँजी थी, और किसी के पास सहानुभूति-कॉर्ड था । 
ऐसे माहौल में ललित खन्ना अपनी उम्मीदवारी का फैसला सोच-समझ कर ही लेना चाहते थे । उनके नजदीकी कहते/बताते थे कि उम्मीदवारी को लेकर ललित खन्ना को उस तरह की किसी समस्या से तो नहीं जूझना पड़ रहा था, जिस तरह की समस्याओं से दूसरे संभावित उम्मीदवार जूझ रहे थे - लेकिन फिर भी ललित खन्ना यह 'देख' लेना चाहते थे कि संभावित उम्मीदवारों में कौन सचमुच में चुनावी मैदान में बना/टिका रहता है और उसे किसका भरोसा/सहारा मिलता है ? संयोग से डिस्ट्रिक्ट टीम ट्रेनिंग सेमीनार के आयोजन से पहले ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद को लेकर डिस्ट्रिक्ट का चुनावी परिदृश्य स्पष्ट होने लगा और कई संभावित उम्मीदवारों की चुनावी दौड़ दम तोड़ती नजर आने लगी । एक अकेले सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी ने तो अपने क्लब में ही पैदा हुई मुसीबत से निपटने में सफलता प्राप्त की और अपनी उम्मीदवारी के लिए क्लब की हरी झंडी हासिल कर ली; लेकिन बाकी उम्मीदवार अपने लिए समर्थन-आधार नहीं खोज सके - और इसके चलते पीछे हटते हुए दिखे । ऐसे में, ललित खन्ना को डिस्ट्रिक्ट टीम ट्रेनिंग सेमीनार में अपनी उम्मीदवारी को लोगों के बीच प्रमोट करने का अच्छा मौका नजर आया, और उन्होंने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया । यह इत्तफाक रहा और या यह सोची-समझी रणनीति थी - यह तो अभी कोई समझ नहीं पाया है - लेकिन सेमीनार में ललित खन्ना को मंच पर आने/दिखने और और लोगों को संबोधित करने का जो मौका मिला, ललित खन्ना ने उस मौके का भी बड़ी होशियारी से अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में सदुपयोग किया ।
सेमीनार में मौजूद लोगों के अनुसार, ललित खन्ना ने ट्रेनिंग सेशन में भी अपनी सक्रियता दिखा/जता कर लोगों का ध्यान खींचने का जो प्रयास किया, उसका भी उन्हें सुफल मिला ।लोगों का कहना रहा कि ललित खन्ना को लोगों के बीच अपने आपको 'दिखाना' आता है और डिस्ट्रिक्ट टीम ट्रेनिंग सेमीनार में औपचारिक व अनौपचारिक रूप से उन्होंने अपनी इस खूबी का जमकर इस्तेमाल किया । लोगों के साथ अलग अलग ग्रुप्स में की जाने वाली अनौपचारिक बातचीत में उन्होंने अपनी उम्मीदवारी की चर्चा की, और अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने/बनाने का माहौल बनाया; तो सेमीनार के औपचारिक सत्रों में ललित खन्ना ने अपने आपको एक जिम्मेदार, प्रभावी और सक्रिय रोटेरियन के रूप में 'दिखाने' पर ध्यान दिया । इस मिलीजुली रणनीति का ललित खन्ना को अच्छा फायदा मिलता भी नजर आया, और चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले तथा भूमिका निभाने वाले डिस्ट्रिक्ट के नेताओं/लोगों ने ललित खन्ना की उपस्थिति का खास नोटिस लिया - जिसके कारण डिस्ट्रिक्ट टीम ट्रेनिंग सेमीनार में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए ललित खन्ना की उम्मीदवार के अभियान का जोरदार तरीके से श्रीगणेश हुआ । 

Sunday, March 10, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी को फर्जी तरीके से स्वीकृति दिलवाने की संजय चोपड़ा, विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल की कोशिशों को देखते हुए लोगों को डर हुआ है कि कहीं डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह का हाल दीपक राज आनंद जैसा न हो जाए

लखनऊ । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के उम्मीदवार के रूप में जगदीश अग्रवाल के नामांकन पत्र में 'झूठे' और 'फर्जी' दावे पाए जाने के आरोपों से मुसीबत में पड़ी उनकी उम्मीदवारी को बचाने के लिए नोमीनेटिंग कमेटी के चेयरमैन संजय चोपड़ा ने लायंस इंटरनेशनल के नियमों की जो ऐसी-तैसी कर दी है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह भारी दबाव में आ गए हैं - जिस कारण डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में पिछले वर्ष डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में बने जैसे हालात पैदा हो गए हैं । डिस्ट्रिक्ट के बड़े नेताओं और पूर्व गवर्नर्स को डर हुआ है कि एके सिंह कहीं दीपक राज आनंद की दशा को प्राप्त न हो जाएँ । आरोपपूर्ण चर्चाओं के अनुसार, डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग में झूठे व फर्जी दावों के आधार पर प्रस्तुत किया गया जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी का नामांकन पत्र रद्द हो जाना चाहिए था, लेकिन मीटिंग में अनधिकृत रूप से उपस्थित पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल ने संजय चोपड़ा पर दबाव बना कर जगदीश अग्रवाल को अपने पेपर्स 'दुरुस्त' करने के लिए समय दिलवा दिया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह ने हालाँकि यह कहते हुए इसका विरोध किया कि नोमीनेटिंग कमेटी जगदीश अग्रवाल का नामांकन या तो स्वीकार करे और या रिजेक्ट करे - पेपर दुरुस्त करने के लिए उन्हें समय देना लायंस इंटरनेशनल के नियमों का तथा उसकी व्यवस्था का मजाक बनाना होगा । विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल के दबाव के सामने एके सिंह की लेकिन एक न चली - और संजय चोपड़ा ने जगदीश अग्रवाल को अपने पेपर 'दुरुस्त' करने के लिए समय दे दिया ।
उल्लेखनीय है कि जगदीश अग्रवाल के नामांकन पत्र के साथ प्रस्तुत किए गए पेपर 'पूरे' दो वर्ष क्लब में उनके डायरेक्टर रहने की शर्त को पूरा नहीं करते हैं । जगदीश अग्रवाल और विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल ने तर्क दिया कि लायंस इंटरनेशनल किसी भी पद पर छह महीने से एक दिन भी अधिक रहने पर उस पद पर रहने की मान्यता देता है । लेकिन सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए जो न्यूनतम शर्ते हैं, उनमें 'पूरे' दो वर्ष डायरेक्टर रहने की बात की गई है । इस पर विवाद बढ़ा तो तुरंत से ही पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना से सलाह ली गई । विनोद खन्ना ने भी बताया कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के लिए 'पूरे' दो वर्ष डायरेक्टर रहना/होना जरूरी है । विनोद खन्ना से मिले स्पष्टीकरण के बाद जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी का नामांकन रद्द हो जाना चाहिए था, लेकिन नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग में अनधिकृत रूप से बैठे विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल द्वारा दिखाई दादागिरी का सहारा लेकर संजय चोपड़ा ने जगदीश अग्रवाल को अपने पेपर दुरुस्त करने के लिए समय दे दिया । इसका सीधा सा मतलब यही निकाला/लगाया जा रहा है कि जगदीश अग्रवाल को मौका दिया गया है कि वह किसी भी क्लब से 'पूरे' दो वर्ष डायरेक्टर होने के फर्जी कागजात तैयार करवा लें । इस पूरे प्रकरण में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह की भूमिका चुपचाप तमाशा देखने वाले पदाधिकारी की बन गई है । गौर करने वाली बात यह है कि इसी तरह से, पिछले वर्ष डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक राज आनंद ने पूर्व गवर्नर्स के दबाव में कुछेक तरह की बेईमानियों को होने दिया और नतीजे में फजीहत का शिकार बन बैठे । डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में लोगों को डर हुआ है कि संजय चोपड़ा, विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल के चक्कर में एके सिंह का भी कहीं दीपक राज आनंद जैसा हाल न हो जाए ।
जगदीश अग्रवाल का नामांकन रद्द हो सकने की संभावना ने पराग गर्ग और बीएम श्रीवास्तव के समर्थकों व शुभचिंतकों में अलग अलग कारणों से खासा जोश भर दिया है । पराग गर्ग के समर्थकों व शुभचिंतकों को उम्मीद बँधी है कि जगदीश अग्रवाल का नामांकन रद्द होने की स्थिति में जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले नेता पराग गर्ग की उम्मीदवारी का झंडा उठा लेंगे और तब पराग गर्ग की चुनावी नैय्या आराम से पार हो जायेगी । बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी के समर्थकों को लेकिन विश्वास है कि जगदीश अग्रवाल का नामांकन रद्द होने की स्थिति में विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल जैसे नेता तो राजनीतिक रूप से 'अनाथ' ही हो जायेंगे - और तब बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी के लिए अच्छी बढ़त बना लेना आसान हो जायेगा । बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगता है कि पराग गर्ग और बीएम श्रीवास्तव के बीच मुकाबला होने की स्थिति में बीएम श्रीवास्तव का पलड़ा और भारी हो जायेगा । संजय चोपड़ा, विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल की तिकड़ी यदि झूठ/फरेब का इस्तेमाल करके और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह को दबाव में लेकर जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी को हरी झंडी दे/दिलवा भी देते हैं, तो भी ताजा विवाद से जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी की साख और विश्वसनीयता को जो चोट पहुँची है - उसका फायदा बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी को मिलता दिख रहा है । दरअसल पराग गर्ग की उम्मीदवारी के अभियान के लिए प्रभावी लोगों की कोई 'टीम' काम करती हुई नहीं 'दिख' रही है; इसलिए मुख्य चुनावी मुकाबला जगदीश अग्रवाल और बीएम श्रीवास्तव के बीच ही होता दिखता रहा है । ऐसे में, जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के हटने और या हटने की चर्चाओं के चलते कमजोर पड़ने का फायदा बीएम श्रीवास्तव के हिस्से में ही जुड़ता नजर आ रहा है । हालाँकि फिलहाल सभी की निगाह इस बात पर टिकी है कि संजय चोपड़ा, विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल की तिकड़ी जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी को मान्य करवाने के लिए क्या फरेब करती है - और उनके फरेब के बावजूद जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी बची रह पाती है या रद्द हो जाती है ?

Saturday, March 9, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में डिस्ट्रिक्ट व लायनिज्म के बेहतर भविष्य के लिए विनय मित्तल, संजीवा अग्रवाल और अश्वनी काम्बोज के बीच बने तालमेल को आगे भी जारी रखने के लिए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर गौरव गर्ग का चुना जाना डिस्ट्रिक्ट के लोगों को जरूरी लग रहा है

मसूरी । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में गौरव गर्ग ने जिस शालीनता और गरिमा के साथ अपना चुनाव अभियान चलाया हुआ है, उसके चलते उन्होंने उन लोगों को भी प्रभावित किया है, जो खेमेबाजी के नजरिये से उनके विरोधियों के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं; और इस तरह से गौरव गर्ग ने अनुभव की कमी की शिकायत को निष्प्रभावी करने में भी सफलता प्राप्त की है । उल्लेखनीय है कि राजेश गुप्ता और उनके कुछेक समर्थकों व शुभचिंतकों ने सीनियर/जूनियर का हवाला देते हुए दोनों उम्मीदवारों के बीच तुलना करने की कोशिश की और तर्क दिया कि राजेश गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट व लायनिज्म में काफी समय हो गया है, जिस कारण उन्हें अच्छा अनुभव है - जबकि गौरव गर्ग को डिस्ट्रिक्ट व लायनिज्म में कम समय हुआ है और इस नाते उनका अनुभव कम है । इस तर्क से राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास किया गया; लेकिन यह प्रयास इसलिए कामयाबी की राह पर नहीं बढ़ सका क्योंकि लोगों ने यह देखने/समझने/परखने की कोशिश की कि ज्यादा अनुभवी होने के बावजूद राजेश गुप्ता ने दिया/किया क्या है - डिलीवर क्या किया है ? इस कोशिश में राजेश गुप्ता का ट्रेक रिकॉर्ड जब बहुत ही खराब देखा/पाया गया, तो उनके सीनियर होने के नाते बढ़त बनाने के प्रयास की सारी हवा निकल गई । हमारे यहाँ एक बड़ी मशहूर कहावत भी है - 'बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खुजूर/ पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ।' लोगों ने माना/पाया कि राजेश गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म में समय चाहें बहुत हो गया हो, पर उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया - जो दूसरों के लिए अनुकरणीय हो; और इस तरह वह डिस्ट्रिक्ट के लिए कोई 'ऐसेट' नहीं हैं, बल्कि एक 'लायबिलिटी' हैं - और ऐसा व्यक्ति यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन भी गया तो वह डिस्ट्रिक्ट पर एक बोझ ही साबित होगा । 
दूसरी तरफ गौरव गर्ग को डिस्ट्रिक्ट व लायनिज्म में ज्यादा समय भले ही न हुआ हो, लेकिन उन्हें जितना भी समय हुआ है - उतने समय में उन्होंने अपने व्यवहार और अपने आचरण से लोगों के दिल में जगह बनाई है ।सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार में गौरव गर्ग के सामने आने के बाद कई लोगों ने जिक्र किया है कि मसूरी जाने पर गौरव गर्ग से मिलने पर गौरव गर्ग ने अपनी सामर्थ्यानुसार उनकी मदद की और उनका आदर-सत्कार किया था । लोगों का यह अनुभव इसलिए और ज्यादा महत्त्वपूर्ण है - क्योंकि गौरव गर्ग ने अपना दोस्तानापूर्ण और सहयोगात्मक व्यवहार उस समय दिखाया, जब अपनी उम्मीदवारी के बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं था । निस्वार्थ भाव से दिखाए दोस्तानापूर्ण व सहयोगपूर्ण व्यवहार के कारण ही गौरव गर्ग ने लोगों के बीच अपनी एक सच्चे लायन की पहचान बनाई है । एक सच्चे लायन के साथ-साथ एक जेनुइन लीडर वाले गुण गौरव गर्ग ने पिछले दिनों तब दिखाए, जब अपनी उम्मीदवारी के समर्थन के लिए वह डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ और प्रभावी नेता मुकेश गोयल से मिलते थे । मुकेश गोयल ने खुद ही लोगों को बताया है कि दो/तीन महीने पहले तक वह गौरव गर्ग की उम्मीदवारी के पक्ष में नहीं थे; और इसलिए गौरव गर्ग जब भी उनसे मिलते - वह उन्हें हतोत्साहित ही करते थे; कुछेक बार तो मुकेश गोयल ने गौरव गर्ग को अपनी नाराजगी और गुस्से का भी शिकार बनाया - लेकिन मुकेश गोयल खुद ही कहते/बताते हैं कि गौरव गर्ग ने उन्हें कभी पलट कर जबाव नहीं दिया, और हमेशा ही उनके प्रति सम्मान प्रकट किया । दरअसल गौरव गर्ग के इसी गरिमापूर्ण और सम्मानपूर्ण रवैये ने मुकेश गोयल को अपना मन और अपनी राय बदलने के लिए मजबूर किया और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए गौरव गर्ग की उम्मीदवारी का विरोध करने वाले मुकेश गोयल को डिस्ट्रिक्ट व लायनिज्म के बेहतर भविष्य के लिए गौरव गर्ग की उम्मीदवारी का समर्थन करना जरूरी लगा ।
विडंबना की बात यह रही कि मुकेश गोयल के प्रति राजेश गुप्ता के व्यवहार ने भी मुकेश गोयल को गौरव गर्ग की उम्मीदवारी के समर्थन के प्रति राय बदलने के लिए 'प्रेरित' किया । दरअसल तीन महीने पहले तक मुकेश गोयल ने तरह तरह से राजेश गुप्ता को उम्मीदवार बनने के लिए राजी करने का भरसक प्रयास किया था; लेकिन राजेश गुप्ता ने निहायत बदतमीजीपूर्ण तरीके से उनसे दो-टूक कह दिया कि उनके समर्थन के भरोसे तो वह उम्मीदवार हरगिज नहीं बनेंगे - और यह बदतमीजी करते हुए राजेश गुप्ता ने न तो मुकेश गोयल की वरिष्ठता व प्रभावी हैसियत का ख्याल किया; न मुकेश गोयल के साथ रहे अपने वर्षों के संबंधों का लिहाज किया; और न इस बात पर ध्यान दिया कि एक वरिष्ठ लायन होने के नाते उन्हें मुकेश गोयल जैसे नेता के साथ ही नहीं, बल्कि किसी के साथ भी ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए । आज/अब बार बार अपने साथ किए गए वायदे की याद दिलाने और संबंधित पत्रों की फोटो दिखाने वाले राजेश गुप्ता यदि लायन वर्ष के शुरु से उम्मीदवार के रूप में सक्रिय रहते, लोगों से मिलते/जुलते, विभिन्न क्लब्स तथा डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में अपनी उपस्थिति दिखाते - और समय रहते मुकेश गोयल की बात मान लेते, तो हो सकता है कि डिस्ट्रिक्ट का चुनावी परिदृश्य आज कुछ और होता । लेकिन राजेश गुप्ता ने अपने व्यवहार से बार बार दिखाया/जताया है कि सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता और समझ उनमें है ही नहीं; और वह सिर्फ अपने ही साथियों के साथ धोखेबाजी कर सकते हैं तथा अपने वरिष्ठों के साथ बदतमीजी कर सकते हैं । अपने साथ किए गए वायदे की बात बार बार करके राजेश गुप्ता वास्तव में अपने 'धोखेबाजी'भरे रवैये को ही दिखा/जता रहे हैं, और इसीलिए उनकी यह चालाकी उनकी उम्मीदवारी को कोई फायदा पहुँचाती हुई नहीं दिख रही है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लग रहा है कि कुछेक लोगों की हरकतों के कारण डिस्ट्रिक्ट में जो बदमजगी फैली है और डिस्ट्रिक्ट की लायन समुदाय में जो भारी बदनामी हुई है; जिसे सुधारने की अजय सिंघल के गवर्नर-काल से शुरू हुई कोशिशों को विनय मित्तल के गवर्नर-काल में नई ऊँचाई व दृढ़ता मिली है - उन कोशिशों को जारी रखने के लिए गौरव गर्ग जैसे व्यक्ति को ही गवर्नर चुना जाना चाहिए । विनय मित्तल, संजीवा अग्रवाल, अश्वनी काम्बोज यूँ तो अलग अलग क्षमताओं व सोच के लोग हैं - लेकिन डिस्ट्रिक्ट व लायनिज्म की भलाई के लिए इन्होंने आपस में जिस तरह का तालमेल बनाया है; उस तालमेल को आगे भी जारी रखने के लिए - डिस्ट्रिक्ट के लोगों को लग रहा है कि गौरव गर्ग का सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुना जाना जरूरी है ।

Thursday, March 7, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की एक्जीक्यूटिव कमेटी में शामिल होने के कारण, धोखाधड़ी से चेयरमैन बनने/बनवाने की हरकत में अविनाश गुप्ता को हरीश चौधरी के सहयोगी की भूमिका में 'पहचाना' गया

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में बनी आठ सदस्यीय एक्जीक्यूटिव कमेटी में अविनाश गुप्ता के शामिल होने से हरीश चौधरी के धोखेबाजी से चेयरमैन बनने के किस्से में सातवें वोटर की पहचान से जुड़ी पहेली लोगों को हल होती हुई दिखी है । लोगों ने मान लिया है कि धोखेबाजी से चेयरमैन बनने/बनाने के खेल में हरीश चौधरी के अभी तक छिपे बैठे सहयोगी अविनाश गुप्ता ही हैं । उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के अभी तक के इतिहास में इस वर्ष पहला मौका है, जबकि पक्के तौर पर यह स्पष्ट नहीं है कि चेयरमैन के चुनाव में जीते उम्मीदवार को काउंसिल के 13 सदस्यों में से किस किस के वोट मिले हैं । डेमोक्रेटिक सिस्टम में चुनाव की अवधारणा के नजरिये से देखें, तो यह अच्छी बात है - दरअसल इसीलिए चुनाव में गोपनीयता को महत्त्व दिया जाता है । उम्मीद की जाती है कि जीता हुआ पदाधिकारी सिर्फ अपने वोटरों का ही पदाधिकारी नहीं होता है, बल्कि सभी का पदाधिकारी होता है । किंतु यह बात आदर्श और नैतिकता की किताबी बात बन कर ही रह गई है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में भी हर कोई हमेशा ही कुर्सी पाने की तिकड़मों में लगा नजर आता है और इसके चलते चुनाव से संबद्ध डेमोक्रेटिक वैल्यूज मजाक बन कर रह गए हैं । यहाँ ग्रुप बनाना, ईश्वर और बच्चों के नाम पर सौगंधे खाना, ग्रुप के सदस्यों को छिपा कर रखना, साजिशें करना, दोहरे खेल खेलना, धोखाधड़ी करना आदि आम बातें हैं । दरअसल इसीलिए करीब डेढ़ महीना पहले बन चुके ग्रुप के साथ धोखा करके हरीश चौधरी के चेयरमैन बनने की हरकत में उनके सहयोगी की पहचान का मामला महत्त्वपूर्ण हो उठा था - और हर कोई यह जानने को उत्सुक था कि धोखाधड़ी के खेल में उनका सहयोगी वास्तव में है कौन ?
हरीश चौधरी के धोखाधड़ी से चेयरमैन बनने की हरकत में उनके सहयोगी के रूप में दो लोगों - अविनाश गुप्ता और अजय सिंघल के नाम चर्चा में थे । रीजनल काउंसिल की कार्यप्रणाली से परिचित लोगों का मानना और कहना था कि धोखाधड़ी से चेयरमैन बने हरीश चौधरी का दूसरा सहयोगी छिपने की चाहें कितनी भी कोशिश करें - लेकिन अपराधशास्त्र के अनुसार जिस तरह हर अपराधी कोई न कोई सुबूत/संकेत छोड़ ही देता है - ठीक वैसे ही एक्जीक्यूटिव कमेटी का गठन होने पर हरीश चौधरी का दूसरा सहयोगी खुद-ब-खुद सामने आ ही जायेगा । ऐसा मानने और कहने वालों का तर्क रहा कि हरीश चौधरी को चेयरमैन बनवाने की धोखाधड़ी में शामिल उनका दूसरा सहयोगी खुद को एक्जीक्यूटिव कमेटी में रखने के लोभ से बच नहीं पायेगा । चूँकि हर 'अपराध' और या हर 'धोखे' के पीछे कोई ठोस कारण या स्वार्थ होता ही है; इसलिए माना/समझा गया कि धोखाधड़ी से चेयरमैन बनने की हरकत में हरीश चौधरी का साथ देने वाले का भी कोई बड़ा स्वार्थ होगा ही - जिसे वह सत्ता खेमे में शामिल होकर ही पूरा कर सकेगा; और इसके लिए उसे एक्जीक्यूटिव कमेटी में रहना ही होगा । इसीलिए एक्जीक्यूटिव कमेटी में अविनाश गुप्ता का नाम आते/देखते ही लोगों ने मान लिया कि धोखाधड़ी से चेयरमैन बनने की हरीश चौधरी की हरकत में अविनाश गुप्ता ही उनके सहयोगी हैं । अविनाश गुप्ता को चेयरमैन बनने की जल्दी में देखा/पहचाना जाता रहा है; इसलिए माना/समझा जाता है कि अविनाश गुप्ता ने इस उम्मीद में धोखाधड़ी से चेयरमैन बनने की हरीश चौधरी की हरकत में सहयोगी बनना स्वीकार कर लिया होगा - ताकि अगले वर्ष वह चेयरमैन बन सकें । एक्जीक्यूटिव कमेटी में शामिल होने के कारण, धोखाधड़ी से चेयरमैन बनने/बनवाने की हरकत में सहयोगी की भूमिका निभाते 'पहचाने' जाने से अविनाश गुप्ता के लिए अगले वर्ष चेयरमैन बनने का 'सपना' लेकिन फिलहाल मुसीबत में फँसता दिख रहा है ।

Wednesday, March 6, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के बाकी तीनों संभावित उम्मीदवारों को अलग अलग कारणों से बहुत ही खराब स्थिति में देखने के चलते अपनी स्थिति को मजबूत मानने के कारण ही रवि गुगनानी सलाह/सुझाव देने वाले अपने समर्थकों व शुभचिंतकों पर भड़क रहे हैं क्या ?

रोहतक । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के अभियान को लेकर मिलने वाली सलाह पर नाराजगी प्रकट करके रविंदर उर्फ रवि गुगनानी अपने समर्थकों व शुभचिंतकों को ही नाराज करके अपने लिए मुश्किलों को बढ़ा रहे हैं क्या ? मजे की बात यह है कि यह सवाल रवि गुगनानी की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच ही उठ रहा है, और उन्हें परेशान कर रहा है । समर्थकों का मानना/कहना है कि रवि गुगनानी का रवैया उन्हें उनके संभावित सहयोगियों/समर्थकों से दूर करने का काम कर रहा है; और समस्या की बात यह है कि रवि गुगनानी इस बात को समझ/पहचान भी नहीं रहे हैं । पिछले दिनों दरअसल हुआ यह कि रवि गुगनानी को उनके कुछेक शुभचिंतकों ने बताने/समझाने की कोशिश की कि अपनी उम्मीदवारी के लिए लोगों के बीच माहौल बनाने तथा समर्थन जुटाने के लिए वह पर्याप्त सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं, और इस कारण लोग उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं । शुभचिंतकों की इस तरह की बातों को फीडबैक की तरह लेने तथा सावधान होने की बजाये रवि गुगनानी शुभचिंतकों पर ही यह कहते हुए भड़क उठे कि वह उन्हें डरा रहे हैं । रवि गुगनानी का कहना रहा कि उन्हें पता है कि उन्हें अपनी उम्मीदवारी के लिए कैसे अभियान चलाना है, और वह अपने अभियान पर पूरा ध्यान दिए हुए हैं; लेकिन उनके नजदीकी और शुभचिंतक जानते/समझते कुछ हैं नहीं - और उन्हें डराते रहते हैं । रवि गुगनानी के इस रवैये से नाराज उनके कुछेक नजदीकियों व शुभचिंतकों ने इन पंक्तियों के लेखक तक से बताया/कहा कि अब वह आगे से रवि गुगनानी को न कोई फीडबैक देंगे और न कोई सलाह या सुझाव !
विडंबना और मुसीबत की बात यह है कि रवि गुगनानी के कुछेक शुभचिंतकों की इस नाराजगी ने उनके अन्य समर्थकों व शुभचिंतकों को परेशान किया हुआ है; जिनका कहना है कि रवि गुगनानी का यह रवैया उनकी उम्मीदवारी को कैसा और कितना नुकसान पहुँचा सकता है - रवि गुगनानी इस बात को नहीं समझ रहे हैं । समर्थकों व शुभचिंतकों को लग रहा है कि रवि गुगनानी का यह मानना/समझना कि वह जो समझ रहे हैं और कर रहे हैं - वह ठीक है, तथा उन्हें किसी की सलाह की कोई जरूरत नहीं है, उनकी उम्मीदवारी के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है । उनके कुछेक शुभचिंतकों का ही कहना है कि अपने इसी रवैये के चलते रवि गुगनानी अभी पिछले दिनों ही विनोद बंसल और विनय भाटिया के हाथों 'इस्तेमाल' हो चुके हैं; हालाँकि कई लोगों ने उन्हें समझाया था कि यह दोनों अपने मतलब के लिए उन्हें इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन रवि गुगनानी ने पहले तो किसी की मानी/सुनी नहीं - और जब खुद उन्हें पता चला कि वह 'ठग' लिए गए हैं तो विनोद बंसल व विनय भाटिया की फजीहत करके डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में उन्होंने तमाशा और खड़ा कर दिया । उस पूरे एपीसोड में रवि गुगनानी ही हर तरह से घाटे में रहे - अपने शुभचिंतकों की चेतावनी और सलाह पर वह यदि समय रहते ध्यान देते तो उससे बच सकते थे । कुछेक लोगों का कहना है कि रवि गुगनानी को एक मोटी सी बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि अब जब वह उम्मीदवार बन रहे हैं, तो लोग उन्हें तरह तरह की सलाह देंगे ही; बहुत संभव है कि उनमें से कई फालतू, बेमतलब और बेकार ही हों - लेकिन एक अच्छे 'लीडर' के रूप में उन्हें सभी को सुनना चाहिए और उन्हें महत्त्व देते हुए 'दिखना' चाहिए; करें/अपनाएँ वह जो उन्हें उचित जान पड़े । हमारे यहाँ सयानों ने कहा भी है कि 'सुनो सब की, करो मन की ।' रवि गुगनानी अभी लेकिन जिस तरह 'सुनने' से ही इंकार कर रहे हैं, और कुछ कहने/बताने वाले अपने समर्थकों व शुभचिंतकों पर ही भड़क रहे हैं - उससे वह अपनी स्थिति को ही कमजोर कर रहे हैं ।
रवि गुगनानी के नजदीकियों के अनुसार, रवि गुगनानी ऐसा दरअसल अति-आत्मविश्वासी होने के कारण भी कर रहे हैं । उन्हें लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के बाकी तीनों संभावित उम्मीदवारों की अलग अलग कारणों से बहुत ही खराब स्थिति है, इसलिए उम्मीदवार के रूप में उनकी स्थिति स्वतः ही मजबूत है - और इसलिए उन्हें ज्यादा कुछ करने की और या किसी के सलाह/मशविरे की जरूरत ही नहीं है । रवि गुगनानी के नजदीकियों का कहना/बताना है कि रवि गुगनानी को रोहतक व गुड़गाँव में एकतरफा समर्थन मिलने का विश्वास है; फरीदाबाद में भी करीब पचास प्रतिशत वोटों पर वह अपना हक दिखा/जता रहे हैं; ऐसे में उन्हें भरोसा है कि जीत के लिए बाकी जरूरी वोटों का इंतजाम दिल्ली में आसानी से हो ही जायेगा । रवि गुगनानी को अशोक कंतूर व अजीत जालान की आपसी भिड़ंत में अपनी उम्मीदवारी के लिए फायदा होता दिख रहा है, और महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को वह गंभीरता से नहीं ले रहे हैं । महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को लेकर रवि गुगनानी के नजदीकियों से बड़ा दिलचस्प किस्म का कमेंट सुनने को मिल रहा है - जिसमें कहा/बताया जा रहा है कि महेश त्रिखा के क्लब को 'अपने ही' उम्मीदवार को अकेला छोड़ देने और निपटा देने का अनोखा शौक है - जैसा कि क्लब के लोगों ने अमरजीत सिंह के साथ किया था, वैसा ही वह महेश त्रिखा के साथ करते हुए दिख रहे हैं; इस कहने/बताने में यह और जोड़ा जा रहा है कि महेश त्रिखा को जब अपने क्लब के ही प्रमुख लोगों/नेताओं का समर्थन मिलता नहीं दिख रहा है, तो डिस्ट्रिक्ट के बाकी लोगों को क्या जरूरत पड़ी है कि वह महेश त्रिखा की उम्मीदवारी के साथ जुड़े । उल्लेखनीय है कि महेश त्रिखा के क्लब में दो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर - सुरेश जैन और संजय खन्ना सदस्य हैं, लेकिन दोनों में से किसी को भी महेश त्रिखा की उम्मीदवारी की वकालत करते हुए नहीं सुना/देखा गया है । ऐसे में, महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को रवि गुगनानी अपने लिए किसी चुनौती के रूप में नहीं देख रहे हैं और इसीलिए रवि गुगनानी एक उम्मीदवार के रूप में अभी ज्यादा सक्रिय होने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं - और ऐसे में रवि गुगनानी का कोई शुभचिंतकों जब उन्हें यह बताने/समझाने की कोशिश करता है कि वह अपनी उम्मीदवारी के लिए लोगों के बीच माहौल बनाने तथा समर्थन जुटाने के लिए पर्याप्त सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं, और इस कारण लोग उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं - तो रवि गुगनानी को लगता है कि वह उन्हें डरा रहा है ।

Monday, March 4, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स रंजीत भाटिया, प्रमोद विज व रमन अनेजा की तिकड़ी की तरफ से क्लब में मुसीबत खड़ी करने की आशंका के कारण ही नवीन गुलाटी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करने से बच रहे हैं क्या ?

पानीपत । अजय मदान की जोरदार तथा एकतरफा जीत से उत्साहित उनके समर्थकों व नेताओं ने अगले वर्ष होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के लिए रोटरी क्लब पानीपत मिडटाउन के वरिष्ठ सदस्य नवीन गुलाटी की उम्मीदवारी को जोरशोर से घोषित कर दिया है । मजे की बात हालाँकि यह है कि नवीन गुलाटी अभी हालाँकि अपनी उम्मीदवारी को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं, और उनकी तरफ से उम्मीदवारी को लेकर अभी कोई बात सुनने को नहीं मिली है । नवीन गुलाटी के नजदीकियों का कहना है कि उन्होंने अपनी उम्मीदवारी को लेकर अपना मन तो बना लिया है, लेकिन चुनाव संबंधी सक्रियताओं की जरूरतों को एक बार वह अच्छे से समझ कर ही फाइनल फैसला करना चाहते हैं - इसलिए उनकी तरफ से अपनी उम्मीदवारी को लेकर सहमति 'घोषित' करने से अभी बचा जा रहा है । दरअसल कुछ समय पहले दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण ज्यादा ट्रैवलिंग कर सकना उनके लिए मुश्किल की बात है, इसलिए उनके लिए अभी से यह समझना बहुत जरूरी है कि पहले उम्मीदवार के रूप में और फिर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्हें आखिर कितनी ट्रैवलिंग करना पड़ेगी और उतनी ट्रैवलिंग वह सचमुच कर सकेंगे क्या ? इसके अलावा, उम्मीदवार बनने के लिए उन्हें अपने क्लब में भी हरी झंडी लेना है । नवीन गुलाटी के क्लब में रंजीत भाटिया, प्रमोद विज व रमन अनेजा के रूप में तीन तीन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स हैं - और यह बात नवीन गुलाटी के लिए मुसीबत और चुनौती की इसलिए है, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में बनी खेमेबाजी के नजरिये से यह तीनों नवीन गुलाटी के विरोधी हैं; और कुछेक लोगों को लगता है कि यह तीनों डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की नवीन गुलाटी की उम्मीदवारी को क्लब की हरी झंडी मिलने में रोड़ा अटकाने का काम कर सकते हैं ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति जब आज जैसी/जितनी तल्ख़ और घमासानभरी नहीं थी, तब भी नवीन गुलाटी और रंजीत भाटिया व प्रमोद विज के रास्ते अलग अलग होते थे, और नवीन गुलाटी की इन लोगों से कभी नहीं बनी । करीब चार वर्ष पहले, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा अधिकृत उम्मीदवार के रूप में टीके रूबी के चुने जाने के बाद डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में तथा डिस्ट्रिक्ट के माहौल में जो गर्मी पैदा हुई, और जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट दो खेमों में बँटता चला गया - उसमें टीके रूबी खेमे की पानीपत में बागडोर नवीन गुलाटी के हाथ में ही रही और टीके रूबी खेमे के मुख्य कर्ताधर्ताओं में नवीन गुलाटी की गिनती व पहचान होने लगी । दरअसल इसी पहचान के चलते कुछेक लोगों को आशंका है कि रंजीत भाटिया, प्रमोद विज व रमन अनेजा की तिकड़ी नवीन गुलाटी की उम्मीदवारी को क्लब में ही रोकने की कोशिश करेगी । क्लब के कुछेक वरिष्ठ सदस्यों का यद्यपि यह भी कहना है कि खेमेबाजी के लिहाज से रंजीत भाटिया, प्रमोद विज और नवीन गुलाटी के बीच भले ही विरोध के संबंध रहे हों, लेकिन यह विरोध कटुता के स्तर पर पहुँचा हुआ कभी नहीं दिखा - इसलिए इस बात की संभावना दिखती नहीं है कि रंजीत भाटिया व प्रमोद विज की तरफ से नवीन गुलाटी की उम्मीदवारी के सामने क्लब में कोई मुसीबत खड़ी करने की कोशिश की जाएगी । कुछेक लोगों का कहना है कि तीनों/चारों लोग सयाने लोग हैं, इसलिए लगता तो नहीं है कि नवीन गुलाटी की उम्मीदवारी को क्लब में किसी भी तरह की समस्या और या अड़चन का सामना करना पड़ेगा - बाकी राजनीति तो राजनीति है, कौन दावा कर सकता है कि कल क्या होगा या नहीं होगा ? टीके रूबी को लेकर डिस्ट्रिक्ट में जो तमाशा हुआ, वह जब तक नहीं हुआ  था - तब तक कौन सोच भी सकता था कि ऐसा तमाशा हो सकता है ?
संभवतः इसीलिए अपनी उम्मीदवारी को घोषित करना और या उसे जताना/दिखाना नवीन गुलाटी ने टाला हुआ हो । वह पहले अपने क्लब में अपनी उम्मीदवारी को लेकर एक राय बना लेना चाहते होंगे और क्लब के सभी सदस्यों का समर्थन ले लेना चाहते होंगे - और उसके बाद ही एक उम्मीदवार के रूप में सामने आना चाहते होंगे । इसके साथ ही, नवीन गुलाटी अगले रोटरी वर्ष के संभावित राजनीतिक माहौल का भी आकलन कर लेना चाहते होंगे । इस वर्ष अजय मदान को जैसी धमाकेदार जीत मिली है, उसे देख कर अगले रोटरी वर्ष में दूसरे खेमे की तरफ से कोई चुनौती मिलने का डर या खतरा किसी को नहीं है । कपिल गुप्ता को लेकर भी लोगों को लग रहा है कि इस बार मिली करारी हार से कपिल गुप्ता ने सबक ले लिया होगा कि उनका जो रवैया है, उसके चलते और उसके कारण उनका डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुना जा पाना मुश्किल क्या, असंभव ही है । अजय मदान की भारी-भरकम जीत के बाद तो 'उस' तरफ जो थोड़े बहुत लोग बचे रह भी गए हैं, उनमें से कईयों के 'इस' तरफ आने के संकेत मिल रहे हैं; और यह सब देख कर माना जा रहा है कि 'इस' तरफ के उम्मीदवार को अगली बार तो अजय मदान से भी बड़ी जीत मिलेगी । इस कारण से, नवीन गुलाटी के नजदीकियों व शुभचिंतकों को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने के संदर्भ में अगला वर्ष नवीन गुलाटी के लिए सुनहरा मौका है, और उन्हें इस मौके का फायदा उठा लेना चाहिए । नवीन गुलाटी के नजदीकियों तथा उनके समर्थक व शुभचिंतक नेताओं के दावों पर यकीन करें, तो अगले रोटरी वर्ष में नवीन गुलाटी निश्चित ही उम्मीदवार हो रहे हैं - और खुद नवीन गुलाटी ही/भी जल्दी ही इस संबंध में घोषणा कर देंगे ।