रोहतक । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के अभियान को लेकर मिलने वाली सलाह पर नाराजगी प्रकट करके रविंदर उर्फ रवि गुगनानी अपने समर्थकों व शुभचिंतकों को ही नाराज करके अपने लिए मुश्किलों को बढ़ा रहे हैं क्या ? मजे की बात यह है कि यह सवाल रवि गुगनानी की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच ही उठ रहा है, और उन्हें परेशान कर रहा है । समर्थकों का मानना/कहना है कि रवि गुगनानी का रवैया उन्हें उनके संभावित सहयोगियों/समर्थकों से दूर करने का काम कर रहा है; और समस्या की बात यह है कि रवि गुगनानी इस बात को समझ/पहचान भी नहीं रहे हैं । पिछले दिनों दरअसल हुआ यह कि रवि गुगनानी को उनके कुछेक शुभचिंतकों ने बताने/समझाने की कोशिश की कि अपनी उम्मीदवारी के लिए लोगों के बीच माहौल बनाने तथा समर्थन जुटाने के लिए वह पर्याप्त सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं, और इस कारण लोग उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं । शुभचिंतकों की इस तरह की बातों को फीडबैक की तरह लेने तथा सावधान होने की बजाये रवि गुगनानी शुभचिंतकों पर ही यह कहते हुए भड़क उठे कि वह उन्हें डरा रहे हैं । रवि गुगनानी का कहना रहा कि उन्हें पता है कि उन्हें अपनी उम्मीदवारी के लिए कैसे अभियान चलाना है, और वह अपने अभियान पर पूरा ध्यान दिए हुए हैं; लेकिन उनके नजदीकी और शुभचिंतक जानते/समझते कुछ हैं नहीं - और उन्हें डराते रहते हैं । रवि गुगनानी के इस रवैये से नाराज उनके कुछेक नजदीकियों व शुभचिंतकों ने इन पंक्तियों के लेखक तक से बताया/कहा कि अब वह आगे से रवि गुगनानी को न कोई फीडबैक देंगे और न कोई सलाह या सुझाव !
विडंबना और मुसीबत की बात यह है कि रवि गुगनानी के कुछेक शुभचिंतकों की इस नाराजगी ने उनके अन्य समर्थकों व शुभचिंतकों को परेशान किया हुआ है; जिनका कहना है कि रवि गुगनानी का यह रवैया उनकी उम्मीदवारी को कैसा और कितना नुकसान पहुँचा सकता है - रवि गुगनानी इस बात को नहीं समझ रहे हैं । समर्थकों व शुभचिंतकों को लग रहा है कि रवि गुगनानी का यह मानना/समझना कि वह जो समझ रहे हैं और कर रहे हैं - वह ठीक है, तथा उन्हें किसी की सलाह की कोई जरूरत नहीं है, उनकी उम्मीदवारी के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है । उनके कुछेक शुभचिंतकों का ही कहना है कि अपने इसी रवैये के चलते रवि गुगनानी अभी पिछले दिनों ही विनोद बंसल और विनय भाटिया के हाथों 'इस्तेमाल' हो चुके हैं; हालाँकि कई लोगों ने उन्हें समझाया था कि यह दोनों अपने मतलब के लिए उन्हें इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन रवि गुगनानी ने पहले तो किसी की मानी/सुनी नहीं - और जब खुद उन्हें पता चला कि वह 'ठग' लिए गए हैं तो विनोद बंसल व विनय भाटिया की फजीहत करके डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में उन्होंने तमाशा और खड़ा कर दिया । उस पूरे एपीसोड में रवि गुगनानी ही हर तरह से घाटे में रहे - अपने शुभचिंतकों की चेतावनी और सलाह पर वह यदि समय रहते ध्यान देते तो उससे बच सकते थे । कुछेक लोगों का कहना है कि रवि गुगनानी को एक मोटी सी बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि अब जब वह उम्मीदवार बन रहे हैं, तो लोग उन्हें तरह तरह की सलाह देंगे ही; बहुत संभव है कि उनमें से कई फालतू, बेमतलब और बेकार ही हों - लेकिन एक अच्छे 'लीडर' के रूप में उन्हें सभी को सुनना चाहिए और उन्हें महत्त्व देते हुए 'दिखना' चाहिए; करें/अपनाएँ वह जो उन्हें उचित जान पड़े । हमारे यहाँ सयानों ने कहा भी है कि 'सुनो सब की, करो मन की ।' रवि गुगनानी अभी लेकिन जिस तरह 'सुनने' से ही इंकार कर रहे हैं, और कुछ कहने/बताने वाले अपने समर्थकों व शुभचिंतकों पर ही भड़क रहे हैं - उससे वह अपनी स्थिति को ही कमजोर कर रहे हैं ।
रवि गुगनानी के नजदीकियों के अनुसार, रवि गुगनानी ऐसा दरअसल अति-आत्मविश्वासी होने के कारण भी कर रहे हैं । उन्हें लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के बाकी तीनों संभावित उम्मीदवारों की अलग अलग कारणों से बहुत ही खराब स्थिति है, इसलिए उम्मीदवार के रूप में उनकी स्थिति स्वतः ही मजबूत है - और इसलिए उन्हें ज्यादा कुछ करने की और या किसी के सलाह/मशविरे की जरूरत ही नहीं है । रवि गुगनानी के नजदीकियों का कहना/बताना है कि रवि गुगनानी को रोहतक व गुड़गाँव में एकतरफा समर्थन मिलने का विश्वास है; फरीदाबाद में भी करीब पचास प्रतिशत वोटों पर वह अपना हक दिखा/जता रहे हैं; ऐसे में उन्हें भरोसा है कि जीत के लिए बाकी जरूरी वोटों का इंतजाम दिल्ली में आसानी से हो ही जायेगा । रवि गुगनानी को अशोक कंतूर व अजीत जालान की आपसी भिड़ंत में अपनी उम्मीदवारी के लिए फायदा होता दिख रहा है, और महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को वह गंभीरता से नहीं ले रहे हैं । महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को लेकर रवि गुगनानी के नजदीकियों से बड़ा दिलचस्प किस्म का कमेंट सुनने को मिल रहा है - जिसमें कहा/बताया जा रहा है कि महेश त्रिखा के क्लब को 'अपने ही' उम्मीदवार को अकेला छोड़ देने और निपटा देने का अनोखा शौक है - जैसा कि क्लब के लोगों ने अमरजीत सिंह के साथ किया था, वैसा ही वह महेश त्रिखा के साथ करते हुए दिख रहे हैं; इस कहने/बताने में यह और जोड़ा जा रहा है कि महेश त्रिखा को जब अपने क्लब के ही प्रमुख लोगों/नेताओं का समर्थन मिलता नहीं दिख रहा है, तो डिस्ट्रिक्ट के बाकी लोगों को क्या जरूरत पड़ी है कि वह महेश त्रिखा की उम्मीदवारी के साथ जुड़े । उल्लेखनीय है कि महेश त्रिखा के क्लब में दो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर - सुरेश जैन और संजय खन्ना सदस्य हैं, लेकिन दोनों में से किसी को भी महेश त्रिखा की उम्मीदवारी की वकालत करते हुए नहीं सुना/देखा गया है । ऐसे में, महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को रवि गुगनानी अपने लिए किसी चुनौती के रूप में नहीं देख रहे हैं और इसीलिए रवि गुगनानी एक उम्मीदवार के रूप में अभी ज्यादा सक्रिय होने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं - और ऐसे में रवि गुगनानी का कोई शुभचिंतकों जब उन्हें यह बताने/समझाने की कोशिश करता है कि वह अपनी उम्मीदवारी के लिए लोगों के बीच माहौल बनाने तथा समर्थन जुटाने के लिए पर्याप्त सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं, और इस कारण लोग उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं - तो रवि गुगनानी को लगता है कि वह उन्हें डरा रहा है ।