नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में बनी आठ सदस्यीय एक्जीक्यूटिव कमेटी में अविनाश गुप्ता के शामिल होने से हरीश चौधरी के धोखेबाजी से चेयरमैन बनने के किस्से में सातवें वोटर की पहचान से जुड़ी पहेली लोगों को हल होती हुई दिखी है । लोगों ने मान लिया है कि धोखेबाजी से चेयरमैन बनने/बनाने के खेल में हरीश चौधरी के अभी तक छिपे बैठे सहयोगी अविनाश गुप्ता ही हैं । उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के अभी तक के इतिहास में इस वर्ष पहला मौका है, जबकि पक्के तौर पर यह स्पष्ट नहीं है कि चेयरमैन के चुनाव में जीते उम्मीदवार को काउंसिल के 13 सदस्यों में से किस किस के वोट मिले हैं । डेमोक्रेटिक सिस्टम में चुनाव की अवधारणा के नजरिये से देखें, तो यह अच्छी बात है - दरअसल इसीलिए चुनाव में गोपनीयता को महत्त्व दिया जाता है । उम्मीद की जाती है कि जीता हुआ पदाधिकारी सिर्फ अपने वोटरों का ही पदाधिकारी नहीं होता है, बल्कि सभी का पदाधिकारी होता है । किंतु यह बात आदर्श और नैतिकता की किताबी बात बन कर ही रह गई है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में भी हर कोई हमेशा ही कुर्सी पाने की तिकड़मों में लगा नजर आता है और इसके चलते चुनाव से संबद्ध डेमोक्रेटिक वैल्यूज मजाक बन कर रह गए हैं । यहाँ ग्रुप बनाना, ईश्वर और बच्चों के नाम पर सौगंधे खाना, ग्रुप के सदस्यों को छिपा कर रखना, साजिशें करना, दोहरे खेल खेलना, धोखाधड़ी करना आदि आम बातें हैं । दरअसल इसीलिए करीब डेढ़ महीना पहले बन चुके ग्रुप के साथ धोखा करके हरीश चौधरी के चेयरमैन बनने की हरकत में उनके सहयोगी की पहचान का मामला महत्त्वपूर्ण हो उठा था - और हर कोई यह जानने को उत्सुक था कि धोखाधड़ी के खेल में उनका सहयोगी वास्तव में है कौन ?
हरीश चौधरी के धोखाधड़ी से चेयरमैन बनने की हरकत में उनके सहयोगी के रूप में दो लोगों - अविनाश गुप्ता और अजय सिंघल के नाम चर्चा में थे । रीजनल काउंसिल की कार्यप्रणाली से परिचित लोगों का मानना और कहना था कि धोखाधड़ी से चेयरमैन बने हरीश चौधरी का दूसरा सहयोगी छिपने की चाहें कितनी भी कोशिश करें - लेकिन अपराधशास्त्र के अनुसार जिस तरह हर अपराधी कोई न कोई सुबूत/संकेत छोड़ ही देता है - ठीक वैसे ही एक्जीक्यूटिव कमेटी का गठन होने पर हरीश चौधरी का दूसरा सहयोगी खुद-ब-खुद सामने आ ही जायेगा । ऐसा मानने और कहने वालों का तर्क रहा कि हरीश चौधरी को चेयरमैन बनवाने की धोखाधड़ी में शामिल उनका दूसरा सहयोगी खुद को एक्जीक्यूटिव कमेटी में रखने के लोभ से बच नहीं पायेगा । चूँकि हर 'अपराध' और या हर 'धोखे' के पीछे कोई ठोस कारण या स्वार्थ होता ही है; इसलिए माना/समझा गया कि धोखाधड़ी से चेयरमैन बनने की हरकत में हरीश चौधरी का साथ देने वाले का भी कोई बड़ा स्वार्थ होगा ही - जिसे वह सत्ता खेमे में शामिल होकर ही पूरा कर सकेगा; और इसके लिए उसे एक्जीक्यूटिव कमेटी में रहना ही होगा । इसीलिए एक्जीक्यूटिव कमेटी में अविनाश गुप्ता का नाम आते/देखते ही लोगों ने मान लिया कि धोखाधड़ी से चेयरमैन बनने की हरीश चौधरी की हरकत में अविनाश गुप्ता ही उनके सहयोगी हैं । अविनाश गुप्ता को चेयरमैन बनने की जल्दी में देखा/पहचाना जाता रहा है; इसलिए माना/समझा जाता है कि अविनाश गुप्ता ने इस उम्मीद में धोखाधड़ी से चेयरमैन बनने की हरीश चौधरी की हरकत में सहयोगी बनना स्वीकार कर लिया होगा - ताकि अगले वर्ष वह चेयरमैन बन सकें । एक्जीक्यूटिव कमेटी में शामिल होने के कारण, धोखाधड़ी से चेयरमैन बनने/बनवाने की हरकत में सहयोगी की भूमिका निभाते 'पहचाने' जाने से अविनाश गुप्ता के लिए अगले वर्ष चेयरमैन बनने का 'सपना' लेकिन फिलहाल मुसीबत में फँसता दिख रहा है ।