लखनऊ । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के उम्मीदवार के रूप में जगदीश अग्रवाल के नामांकन पत्र में 'झूठे' और 'फर्जी' दावे पाए जाने के आरोपों से मुसीबत में पड़ी उनकी उम्मीदवारी को बचाने के लिए नोमीनेटिंग कमेटी के चेयरमैन संजय चोपड़ा ने लायंस इंटरनेशनल के नियमों की जो ऐसी-तैसी कर दी है, उसके चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह भारी दबाव में आ गए हैं - जिस कारण डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में पिछले वर्ष डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में बने जैसे हालात पैदा हो गए हैं । डिस्ट्रिक्ट के बड़े नेताओं और पूर्व गवर्नर्स को डर हुआ है कि एके सिंह कहीं दीपक राज आनंद की दशा को प्राप्त न हो जाएँ । आरोपपूर्ण चर्चाओं के अनुसार, डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग में झूठे व फर्जी दावों के आधार पर प्रस्तुत किया गया जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी का नामांकन पत्र रद्द हो जाना चाहिए था, लेकिन मीटिंग में अनधिकृत रूप से उपस्थित पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल ने संजय चोपड़ा पर दबाव बना कर जगदीश अग्रवाल को अपने पेपर्स 'दुरुस्त' करने के लिए समय दिलवा दिया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह ने हालाँकि यह कहते हुए इसका विरोध किया कि नोमीनेटिंग कमेटी जगदीश अग्रवाल का नामांकन या तो स्वीकार करे और या रिजेक्ट करे - पेपर दुरुस्त करने के लिए उन्हें समय देना लायंस इंटरनेशनल के नियमों का तथा उसकी व्यवस्था का मजाक बनाना होगा । विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल के दबाव के सामने एके सिंह की लेकिन एक न चली - और संजय चोपड़ा ने जगदीश अग्रवाल को अपने पेपर 'दुरुस्त' करने के लिए समय दे दिया ।
उल्लेखनीय है कि जगदीश अग्रवाल के नामांकन पत्र के साथ प्रस्तुत किए गए पेपर 'पूरे' दो वर्ष क्लब में उनके डायरेक्टर रहने की शर्त को पूरा नहीं करते हैं । जगदीश अग्रवाल और विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल ने तर्क दिया कि लायंस इंटरनेशनल किसी भी पद पर छह महीने से एक दिन भी अधिक रहने पर उस पद पर रहने की मान्यता देता है । लेकिन सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए जो न्यूनतम शर्ते हैं, उनमें 'पूरे' दो वर्ष डायरेक्टर रहने की बात की गई है । इस पर विवाद बढ़ा तो तुरंत से ही पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना से सलाह ली गई । विनोद खन्ना ने भी बताया कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के लिए 'पूरे' दो वर्ष डायरेक्टर रहना/होना जरूरी है । विनोद खन्ना से मिले स्पष्टीकरण के बाद जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी का नामांकन रद्द हो जाना चाहिए था, लेकिन नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग में अनधिकृत रूप से बैठे विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल द्वारा दिखाई दादागिरी का सहारा लेकर संजय चोपड़ा ने जगदीश अग्रवाल को अपने पेपर दुरुस्त करने के लिए समय दे दिया । इसका सीधा सा मतलब यही निकाला/लगाया जा रहा है कि जगदीश अग्रवाल को मौका दिया गया है कि वह किसी भी क्लब से 'पूरे' दो वर्ष डायरेक्टर होने के फर्जी कागजात तैयार करवा लें । इस पूरे प्रकरण में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह की भूमिका चुपचाप तमाशा देखने वाले पदाधिकारी की बन गई है । गौर करने वाली बात यह है कि इसी तरह से, पिछले वर्ष डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक राज आनंद ने पूर्व गवर्नर्स के दबाव में कुछेक तरह की बेईमानियों को होने दिया और नतीजे में फजीहत का शिकार बन बैठे । डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में लोगों को डर हुआ है कि संजय चोपड़ा, विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल के चक्कर में एके सिंह का भी कहीं दीपक राज आनंद जैसा हाल न हो जाए ।
जगदीश अग्रवाल का नामांकन रद्द हो सकने की संभावना ने पराग गर्ग और बीएम श्रीवास्तव के समर्थकों व शुभचिंतकों में अलग अलग कारणों से खासा जोश भर दिया है । पराग गर्ग के समर्थकों व शुभचिंतकों को उम्मीद बँधी है कि जगदीश अग्रवाल का नामांकन रद्द होने की स्थिति में जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले नेता पराग गर्ग की उम्मीदवारी का झंडा उठा लेंगे और तब पराग गर्ग की चुनावी नैय्या आराम से पार हो जायेगी । बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी के समर्थकों को लेकिन विश्वास है कि जगदीश अग्रवाल का नामांकन रद्द होने की स्थिति में विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल जैसे नेता तो राजनीतिक रूप से 'अनाथ' ही हो जायेंगे - और तब बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी के लिए अच्छी बढ़त बना लेना आसान हो जायेगा । बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को लगता है कि पराग गर्ग और बीएम श्रीवास्तव के बीच मुकाबला होने की स्थिति में बीएम श्रीवास्तव का पलड़ा और भारी हो जायेगा । संजय चोपड़ा, विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल की तिकड़ी यदि झूठ/फरेब का इस्तेमाल करके और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह को दबाव में लेकर जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी को हरी झंडी दे/दिलवा भी देते हैं, तो भी ताजा विवाद से जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी की साख और विश्वसनीयता को जो चोट पहुँची है - उसका फायदा बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी को मिलता दिख रहा है । दरअसल पराग गर्ग की उम्मीदवारी के अभियान के लिए प्रभावी लोगों की कोई 'टीम' काम करती हुई नहीं 'दिख' रही है; इसलिए मुख्य चुनावी मुकाबला जगदीश अग्रवाल और बीएम श्रीवास्तव के बीच ही होता दिखता रहा है । ऐसे में, जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के हटने और या हटने की चर्चाओं के चलते कमजोर पड़ने का फायदा बीएम श्रीवास्तव के हिस्से में ही जुड़ता नजर आ रहा है । हालाँकि फिलहाल सभी की निगाह इस बात पर टिकी है कि संजय चोपड़ा, विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल की तिकड़ी जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी को मान्य करवाने के लिए क्या फरेब करती है - और उनके फरेब के बावजूद जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी बची रह पाती है या रद्द हो जाती है ?