नई दिल्ली । रविंदर उर्फ रवि गुगनानी के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी से पीछे हटने के बाद अजीत जालान की सक्रियता में खासी तेजी देखी जा रही है, जिसके चलते उम्मीदवारों की दौड़ में उनकी पोजीशन में अच्छा सुधार हुआ पहचाना जा रहा है । दरअसल रवि गुगनानी के उम्मीदवार रहते हुए, पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल के लिए अजीत जालान की उम्मीदवारी की खुलकर तरफदारी करना मुश्किल हो रहा था - जिस कारण अजीत जालान की उम्मीदवारी मुसीबत के भँवर जाल में फँसी हुई थी । लेकिन रवि गुगनानी के मैदान छोड़ देने के बाद विनोद बंसल के लिए अजीत जालान की उम्मीदवारी के समर्थन में खुलकर 'बैटिंग' करने का रास्ता साफ हो गया है । हालाँकि अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का बोझ भी विनोद बंसल के कंधे पर है, लेकिन कंधे के उस बोझ को झटक देना उनके लिए मुश्किल नहीं होगा । फिलबक्त अजीत जालान और अशोक कंतूर के रूप में विनोद बंसल के दोनों हाथों में लड्डू हैं; और उनके पास दोतरफा मौका है कि वह जिसका पलड़ा भारी देखें - उसकी उम्मीदवारी का झंडा उठा लें । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के बनने/बिगड़ने वाले समीकरणों को पहचानने/समझने वाले कुछेक लोगों का कहना यह भी है कि अशोक कंतूर और अजीत जालान में से कोई एक ही उम्मीदवार बना रह सकेगा; दोनों के बीच आपसी समझदारी बना कर किसी एक को आगे के लिए बढ़ा दिया जायेगा - क्योंकि इन दोनों में से एक ही उम्मीदवार होगा, तो उसके जीतने की संभावना बन सकती है; दोनों उम्मीदवार बने रहेंगे, तो दोनों ही हारेंगे । अन्य कुछेक लोगों का मानना/कहना लेकिन यह है कि अशोक कंतूर और अजीत जालान की स्थिति तीसरे उम्मीदवार महेश त्रिखा की स्थिति पर निर्भर करेगी - महेश त्रिखा उम्मीदवार के रूप में यदि मजबूती पा सके, तब तो अशोक कंतूर व अजीत जालान में से कोई एक मैदान में रहेगा; और यदि महेश त्रिखा पीछे अपने ही क्लब से उम्मीदवार बने अमरजीत सिंह वाली स्थिति में रहे, तब फिर अशोक कंतूर और अजीत जालान में ही चुनाव हो जायेगा ।
ऐसे में, अजीत जालान ने दोनों ही संभावनाओं में अपनी स्थिति को मजबूत करने/बनाने के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं । अजीत जालान के नजदीकियों का कहना/बताना है कि अजीत जालान अपने लिए ऐसा समर्थन जुटा और 'दिखा' देना चाहते हैं कि खेमे के नेता उन्हें और अशोक कंतूर में से किसी एक को उम्मीदवार के रूप में चुनने का फैसला करें, तो उनका पलड़ा भारी साबित हो; और यदि अशोक कंतूर के साथ ही चुनावी मुकाबले की नौबत आए, तो वह बेहतर स्थिति में हों । अजीत जालान और उनके साथियों को लगता है कि अशोक कंतूर पिछली बार जब हर तरह का हथकंडा आजमाने के बावजूद चुनाव नहीं जीत सके, तो आगे आने वाला चुनाव तो उनके लिए और भी मुश्किल होगा । सहानुभूति के 'रास्ते' से कुछेक लोगों को अशोक कंतूर को लाभ होता हुआ तो दिख रहा है, लेकिन उन्हीं लोगों का यह भी मानना/कहना है कि सहानुभूति का लाभ लेने के लिए अशोक कंतूर चूँकि कोई प्रयास करते नहीं दिख रहे हैं, इसलिए सहानुभूति का लाभ उन्हें अपने आप तो नहीं मिलेगा । सहानुभूति का लाभ लेने के मामले में उन्हें सबसे बड़ा झटका तो अजीत जालान और विनोद बंसल से ही लगा है । पिछले चुनाव में अशोक कंतूर को इन दोनों का समर्थन मिला था; आगे के चुनाव के लिए 'अपने' रहे इन्हीं दोनों को जब उनसे सहानुभूति नहीं रही है, तो दूसरों से वह क्या उम्मीद कर/रख सकते हैं ? रवि गुगनानी के उम्मीदवार रहते हुए तो विनोद बंसल के हाथ बँधे हुए थे, और वह अजीत जालान के लिए कुछ नहीं कर पाते और तब अजीत जालान की स्थिति कमजोर बनी हुई थी; रवि गुगनानी के चुनावी मैदान से बाहर होते ही चूँकि विनोद बंसल के बँधे हाथ खुल गए हैं - इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अजीत जालान को अपना मौका बनता नजर आ रहा है ।
हालाँकि सारा खेल महेश त्रिखा की स्थिति पर निर्भर करता है । मजे की बात यह है कि रवि गुगनानी के चुनावी मैदान से बाहर होने पर खेमेबाजी के नजरिये से सबसे ज्यादा फायदा महेश त्रिखा को होना चाहिए था, लेकिन वह मौके का फायदा उठाने से चूकते दिख रहे हैं । विडंबना की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट में जिन लोगों को महेश त्रिखा की उम्मीदवारी के स्वाभाविक सहयोगी व समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता है, महेश त्रिखा उनका भी सहयोग व समर्थन पक्का नहीं कर पा रहे हैं । ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच मजाक भी चलने लगा है कि महेश त्रिखा के क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट के सदस्यों के बीच संजय खन्ना की कामयाबी के बाद उम्मीदवार बनने को लेकर तो होड़ मच गई है, लेकिन उम्मीदवारी को लेकर सदस्य और पदाधिकारी गंभीरता नहीं दिखा पाते हैं; अमरजीत सिंह उम्मीदवार बने, लेकिन उन्हें अपने क्लब तक का वोट नहीं मिल पाया; राजीव सागर की उम्मीदवारी का बड़ा शोर था, लेकिन वह शोर बन कर ही रह गया; महेश त्रिखा उम्मीदवार बने हैं, लेकिन वह अपनी और अपने क्लब की पहचान व साख तक का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं । किसी भी उम्मीदवार की 'ताकत' को नापने/आँकने के जो भी पैमाने होते हैं, उनके आधार पर महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को सबसे ज्यादा दमदार 'दिखना' चाहिए - लेकिन विडंबना की बात यह है कि पहले चार उम्मीदवारों में और अब बचे तीन उम्मीदवारों में सबसे कमजोर उन्हीं को देखा/पहचाना जा रहा है । हालाँकि कुछेक लोगों को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का अगला चुनाव यदि पिछले चुनाव में बने दो खेमों के बीच ही हुआ, तो एक खेमे के उम्मीदवार महेश त्रिखा ही होंगे; और दूसरे खेमे से यदि अशोक कंतूर व अजीत जालान - दोनों ही उम्मीदवार हो गए, तो महेश त्रिखा के लिए मामला अनुकूल भी हो सकता है । दरअसल इसीलिए दूसरे खेमे में अशोक कंतूर व अजीत जालान में से किसी एक को ही उम्मीदवार बनाने के बारे में सोच-विचार चल रहा है - वह 'एक' हो सकने के लिए ही अजीत जालान की सक्रियता में तेजी देखी/पहचानी जा रही है ।