Saturday, March 30, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स में चलने वाली धाँधलियों और बेईमानियों के मुद्दे को गंभीर व व्यापक बनाने के उद्देश्य से सेंट्रल काउंसिल सदस्य तरुण घिया द्वारा अरुण जैतली को लिखा/भेजा गया आरोप पत्र सचमुच कुछ असर डालेगा या धूल खायेगा ?

नई दिल्ली । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के वरिष्ठ सदस्य तरुण घिया ने केंद्रीय मंत्री अरुण जैतली को संबोधित तथा भेजे गए पत्र में इंस्टीट्यूट में चलने वाली धाँधलियों की पोल खोलते हुए जो शिकायत की है, उसने इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल तथा उसके सदस्यों की बेईमानीपूर्ण कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं । हालाँकि तरुण घिया के 47 पृष्ठों में करीब 22 हजार शब्दों में फैले शिकायती विवरणों में शायद ही कोई बात ऐसी होगी, जो पहले से चर्चा में न रही हो; कई बातों/किस्सों को उदाहरण के साथ 'रचनात्मक संकल्प' ने भी प्रमुखता से प्रकाशित किया है - लेकिन यह पहली बार हुआ है कि खुद सेंट्रल काउंसिल का एक सदस्य तथ्यात्मक सुबूतों के साथ इंस्टीट्यूट में कदम-कदम पर होने वाली बेईमानियों को उद्घाटित कर रहा है; और सिर्फ उद्घाटित ही नहीं कर रहा है, बल्कि देश के एक बड़े मंत्री के सामने उन बेईमानियों को आधिकारिक रूप में रख रहा है और कार्रवाई करने की माँग कर रहा है । इस मामले में रोमांचपूर्ण बात यह है कि अरुण जैतली को संबोधित शिकायत पत्र में तरुण घिया ने इंस्टीट्यूट प्रशासन के पदाधिकारियों के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु को भी निशाने पर ले लिया है । सुरेश प्रभु चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं; और तरुण घिया के आरोप के अनुसार, उन्होंने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ के चुनाव अभियान में शामिल होकर सरकार की उस 'नीति' का उल्लंघन किया है, जिसके तहत सरकार इंस्टीट्यूट के किसी भी चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश से दूर रहती है । इस आरोप के संदर्भ में इस बात पर गौर करना प्रासंगिक होगा कि सेंट्रल काउंसिल के कुछेक सदस्य नेताओं और मंत्रियों के साथ फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया में 'दिखाते' रहते हैं और तरह तरह के 'फायदे' उठाते रहते हैं ।
तरुण घिया के आरोपों से भरे शिकायती पत्र में दिए गए विवरणों ने इंस्टीट्यूट में सेंट्रल काउंसिल सदस्यों तथा इंस्टीट्यूट में कार्यरत पदाधिकारियों के साथ-साथ सेंट्रल काउंसिल में सरकार द्वारा नामित किए गए सदस्यों की भी भूमिका को संदेह के घेरे में ला दिया है । माना/समझा जाता है, और तरुण घिया ने अपने पत्र में इसका खुलासा भी किया है कि इंस्टीट्यूट में होने वाली धाँधलियों, बेईमानियों और पक्षपातपूर्ण कार्रवाईयों पर सेंट्रल काउंसिल सदस्य तो प्रायः इसलिए चुप रह जाते हैं, क्योंकि उन्हें 'अच्छी' कमेटियों की चेयरमैनी, विदेश यात्राओं के मौके, अपने प्रोफेशनल हितों को बढ़ाने के अवसर तथा तरह तरह से लूट-खसोट करने के काम करने होते हैं; लेकिन सरकार द्वारा नामित सदस्य आखिर किस स्वार्थ में इंस्टीट्यूट में होने वाली धाँधलियों, बेईमानियों तथा पक्षपातपूर्ण कार्रवाईयों पर ऑंखें बंद किए रहते हैं ? अरुण जैतली को संबोधित तरुण घिया के शिकायती पत्र को देखने/पढ़ने से यह विश्वास भी मजबूत होता है कि यदि सरकार द्वारा नामित सदस्य ही अपनी जिम्मेदारियाँ ठीक से निभाएँ, तो सेंट्रल काउंसिल के बेईमान सदस्यों व पदाधिकारियों की कारस्तानियों पर काफी हद तक रोक लगाई जा सकती है । तरुण घिया के शिकायती पत्र को जिन लोगों ने देखा/पढ़ा है, उन्हें उम्मीद है कि खुद सेंट्रल काउंसिल सदस्य के द्वारा की गई शिकायत ने इंस्टीट्यूट में होने वाली धाँधलियों और बेईमानियों के मुद्दे को गंभीर बना दिया है; और माना/समझा जा सकता है कि इंस्टीट्यूट में चलने वाली धाँधलियों और बेईमानियों के सामने एक सेंट्रल काउंसिल सदस्य ही जब लाचार बना हुआ है, तो इंस्टीट्यूट में धाँधलियों व बेईमानियों की जड़ें कितनी गहरी होंगी और उन्हें रोक पाना कितना मुश्किल होगा ?
मजे की बात लेकिन यह है कि तरुण घिया के शिकायती पत्र पर सेंट्रल काउंसिल के उनके साथियों की हालत ऐसी हो गई है, जैसे कि उन्हें साँप सूँघ गया हो । इन पँक्तियों के लेखक ने जिन भी सेंट्रल काउंसिल सदस्यों से इस मामले में बात करने की कोशिश की, वह सभी आधिकारिक रूप से बात करने से कन्नी काट गए । अनौपचारिक बातचीत में दिलचस्पी लेते हुए कुछेक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने उलटे तरुण घिया के रवैये को ही दोषी ठहराया । उनका कहना है कि तरुण घिया ने जो बातें की हैं, उनमें कई शर्मनाक रूप से सच भी हैं और गंभीर भी हैं, लेकिन उन बातों को उठाने का उनका तरीका स्वार्थपूर्ण रहा है - और इसीलिए उनकी बातों को सेंट्रल काउंसिल में ही समर्थन नहीं मिल पाया है । उल्लेखनीय है कि सेंट्रल काउंसिल में तरुण घिया को लगातार सातवाँ वर्ष है; उनके साथ रहे सदस्य ही कहते/बताते हैं कि सेंट्रल काउंसिल में तरुण घिया का लगातार नकारात्मक रवैया ही रहा है और वह सिर्फ विरोध करने तथा आरोप लगाने का काम ही करते रहे हैं । वह कोई शिकायत करते और आरोप लगाते - और फिर चुप बैठ जाते; बाद में फिर अचानक वह उन शिकायतों/आरोपों को दोहराने लगते; उनके इस रवैये में बाकी सेंट्रल काउंसिल सदस्य उनका स्वार्थपूर्ण खेल देखते और उनका समर्थन करने से बचते । इस तरह तरुण घिया सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच अकेले और अलग-थलग पड़ गए । मनोज फडनिस तथा देवराज रेड्डी को (वाइस) प्रेसीडेंट चुनवाने में तरुण घिया की खासी भूमिका थी, लेकिन तरुण घिया को उन दोनों से भी बहुत शिकायतें रहीं और वह उनके खिलाफ आरोप लगाते रहे; इस कारण सेंट्रल काउंसिल सदस्य ही उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते हैं । लगता है कि सेंट्रल काउंसिल में अकेले और अलग-थलग पड़ जाने के कारण ही तरुण घिया अपने आरोपों के साथ इंस्टीट्यूट की 'चहारदीवारी' से बाहर खुले में आ गए हैं और अपनी 'लड़ाई'को उन्होंने व्यापक रूप देने का निश्चय किया है । कई लोगों को लगता है कि अपने निश्चय को क्रियान्वित करते हुए तरुण घिया ने अरुण जैतली को जो पत्र लिखा/भेजा है, वह इंस्टीट्यूट में चलने वाली धाँधलियों और बेईमानियों के मुद्दे को गंभीर व व्यापक बनाने का काम तो करेगा ही ।