Thursday, January 30, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के अगले वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ तथा वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता के अपने अपने उम्मीदवारों के साथ चुनावी मैदान में कूद पड़ने से वाइस प्रेसीडेंट पद का चुनावी मुकाबला रोचक हुआ

नई दिल्ली । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ तथा वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता जिस तरह से आपने-सामने खड़े हो गए हैं, उसके चलते वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है ।  उल्लेखनीय है कि प्रफुल्ल छाजेड़ ने वेस्टर्न रीजन के अनिल भंडारी की उम्मीदवारी का झंडा उठाया हुआ है, जबकि अतुल गुप्ता ने ईस्टर्न रीजन के सुशील गोयल की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का अभियान छेड़ा हुआ है । सुशील गोयल को इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट सुबोध अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । सुबोध अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में सुशील गोयल को लोग ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रहे थे, लेकिन जब से अतुल गुप्ता ने उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की जिम्मेदारी सँभाली है, तब से सुशील गोयल की उम्मीदवारी को गंभीरता से लिया जाने लगा है । संभावना यह भी व्यक्त की जा रही है कि सुशील गोयल यदि सचमुच प्रफुल्ल छाजेड़  उम्मीदवार अनिल भंडारी को टक्कर देते हुए नजर आए, तो इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल का समर्थन भी उन्हें मिल जायेगा । वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में उत्तम अग्रवाल का एकमात्र एजेंडा दरअसल प्रफुल्ल छाजेड़ के उम्मीदवार को सफल होने से रोकने का है, और इसीलिए सुशील गोयल की उम्मीदवारी को उत्तम अग्रवाल का समर्थन मिल सकने का भरोसा जताया जा रहा है ।
अतुल गुप्ता की तरफ से लेकिन मजे की बात यह देखने में आ रही है कि वह सुशील गोयल की उम्मीदवारी को उत्तम अग्रवाल के समर्थन से बचाने की कोशिश कर रहे हैं । अतुल गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, अतुल गुप्ता दो वजहों से ऐसा कर रहे हैं : एक तो उन्हें डर है कि सुशील गोयल की उम्मीदवारी के साथ उत्तम अग्रवाल का नाम जुड़ा तो सुशील गोयल का बनता दिख रहा 'काम' बिगड़ जायेगा, और दूसरी बात यह कि सुशील गोयल की सफलता में यदि उत्तम अग्रवाल की भूमिका बनी/दिखी, तो इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति तथा व्यवस्था में उत्तम अग्रवाल को महत्त्व मिलने लगेगा । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में उत्तम अग्रवाल अभी पूरी तरह अलग-थलग पड़े हुए हैं; वह उछल-कूद तो खूब मचाये रखते हैं, लेकिन उन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता है - उनके अपने भी नहीं । यही कारण है कि उत्तम अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में जो धीरज खंडेलवाल वाइस प्रेसीडेंट बनने की लाइन में हैं, उन धीरज खंडेलवाल की उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है - खुद धीरज खंडेलवाल भी अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं । इसीलिए, अब जब चुनाव सिर पर है तब भी धीरज खंडेलवाल चुनावी परिदृश्य से 'दूर' दूसरे कामों में व्यस्त हैं ।
सुशील गोयल की उम्मीदवारी को अतुल गुप्ता के समर्थन से जो ताकत मिलती है, वह उत्तम अग्रवाल के समर्थन की संभावना से बिगड़ भी जाती है - और यही बात अनिल भंडारी की उम्मीदवारी को बढ़त दिलाती लग रही है । लेकिन उनके साथ भी मुश्किलें कम नहीं हैं । दरअसल प्रफुल्ल छाजेड़ के भरोसे एक अनिल भंडारी ही नहीं हैं, बल्कि वेस्टर्न रीजन के एनसी हेगड़े तथा सेंट्रल रीजन के मनु अग्रवाल भी चुनावी मैदान में कूदे हुए हैं । इन्हें प्रफुल्ल छाजेड़ के उम्मीदवार 'बी' और उम्मीदवार 'सी' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । इसके चलते प्रफुल्ल छाजेड़ के समर्थकों व नजदीकियों के बीच असमंजस बन गया है, और इस असमंजस के चलते प्रफुल्ल छाजेड़ ग्रुप में एकता बने रह पाने को लेकर संदेह पैदा हो गया है । अनिल भंडारी और सुशील गोयल को अलग अलग कारणों से मुसीबत में घिरा पाकर वेस्टर्न रीजन के निहार जंबुसारिया व जय छैरा तथा सदर्न रीजन के अब्राहम बाबु व जी शेखर अपनी अपनी दाल गलाने की कोशिशों में हैं । दरअसल अलग अलग कारणों से इनके लिए काउंसिल सदस्यों के बीच समर्थन का 'भाव' तो है, लेकिन इस भाव को वोट में बदलने के लिए जो मैकेनिज्म चाहिए होता है - उसका इनके पास नितांत अभाव है । यह तो बस किस्मत के भरोसे हैं । इन्हें भी पता है कि इंस्टीट्यूट को कई (वाइस) प्रेसीडेंट किस्मत के चलते ही मिले हैं । 

Wednesday, January 29, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में अपनी कमजोर स्थिति से बौखलाए पंकज बिजल्वान ने वोटों की खरीद-फरोख्त का जो हथकंडा अपनाया, वह उनकी स्थिति को और कमजोर करने वाला ही साबित हो रहा है

देहरादून । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की रजनीश गोयल की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने और 'दिखाने' के उद्देश्य से मेरठ में हुई मीटिंग की जोरदार सफलता से तिलमिलाए पंकज बिजल्वान ने महँगे होटल में ठहराने का ऑफर देकर वोट 'खरीदने' की जो योजना बनाई, वह उन्हें उल्टी पड़ गई दिख रही है और उनके लिए दोहरी मुसीबत का कारण बन गई है । पंकज बिजल्वान के लिए दोहरी मुसीबत की बात यह हुई है कि जिनके वोट खरीदने के लिए महँगे होटल में ठहराने का ऑफर उन्होंने दिया, वह तो 'बिके' नहीं; दूसरी तरफ उनके लोगों की तरफ से महँगे होटल में ठहरने की माँग होने लगी है । कई लोगों ने पंकज बिजल्वान पर साफ साफ दबाव बनाना शुरू कर दिया है कि उन्हें ठहरने के लिए महँगा होटल ही चाहिए । पंकज बिजल्वान के लिए समस्या की बात यह हुई है कि महँगे होटल में उनके पास कुल करीब 60 कमरे ही हैं; ऐसे में वह किसे महँगे होटल में कमरे दें और किसे न दें ? महँगे होटल में कमरे लेने को लेकर लोगों की तरफ से पंकज बिजल्वान पर जिस तरह का दबाव बन/पड़ रहा है, उसे देखते हुए साफ लग रहा है कि जिसे महँगे होटल में कमरा नहीं मिला वह पंकज बिजल्वान को 'सबक' सिखा कर ही मानेगा । विडंबना की बात यह है कि यह मुसीबत पंकज बिजल्वान ने खुद ही आमंत्रित की है । उनके नजदीकियों का ही कहना है कि पंकज बिजल्वान यदि वोट 'खरीदने' के लिए महँगे कमरों का ऑफर न दिए होते, तो यह बबाल पैदा न होता । पंकज बिजल्वान के समर्थकों का कहना है कि जैसे जैसे चुनाव का समय नजदीक आ रहा है, पंकज बिजल्वान को अपनी कमजोरी तथा अपनी पराजय का तेजी से आभास होता जा रहा है, और वह बौखलाहट में ऐसे काम कर रहे हैं - जो उनकी मुसीबत को बढ़ाने वाले ही साबित हो रहे हैं ।
दरअसल, मेरठ में रजनीश गोयल की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग में जितने क्लब्स के पदाधिकारी व प्रमुख लोग इकट्ठा हुए, उसे देख/जान कर पंकज बिजल्वान तथा उनके समर्थकों की सारी व्यूह रचना बुरी तरह ध्वस्त हो गई है । उल्लेखनीय है कि रजनीश गोयल की मीटिंग से कुछ ही दिन पहले मेरठ में पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के समर्थन में मीटिंग हुई थी - लेकिन रजनीश गोयल की मीटिंग में पंकज बिजल्वान की मीटिंग के मुकाबले ढाई/तीन गुना लोगों के जुटने से पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के अभियान को बहुत ही जोर का झटका लगा । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मेरठ को मुकेश गोयल के मजबूत आधार के रूप में देखा/पहचाना जाता है; और अब से पहले डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मेरठ को मुकेश गोयल से कोई नहीं 'छीन' सका है । अबकी बार लेकिन विनय मित्तल ने मेरठ में मुकेश गोयल को न सिर्फ घेर लिया है, बल्कि उनके मुकाबले रजनीश गोयल के लिए करीब तीन गुना बड़ी मीटिंग करके मुकेश गोयल की राजनीति तथा पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी को तगड़ी चोट दी । मेरठ में रजनीश गोयल की उम्मीदवारी के समर्थन में हुई मीटिंग को मिले समर्थन को देख कर पंकज बिजल्वान तथा उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों के तोते उड़ गए । उड़े तोतों को वापस लाने/पाने के लिए पंकज बिजल्वान वोटों की खरीद-फरोख्त पर उतर आए हैं ।
लेकिन वोटों की खरीद-फरोख्त वाला रास्ता भी पंकज बिजल्वान के लिए काँटों भरा साबित होता नजर आ रहा है । कई लोगों ने पंकज बिजल्वान के ऑफर पर उन्हें मुँह पर ही कह दिया है कि तुमने हमें बिकाऊ समझा है क्या ? पंकज बिजल्वान ने यह ऑफर दरअसल उन 'वोटरों' को दिए हैं, जिन्हें रजनीश गोयल के समर्थन में देखा/पहचाना जाता है । इससे पहले पंकज बिजल्वान और या उनके समर्थकों ने लोगों को अपने समर्थन में लाने के लिए कोई जेनुइन प्रयास चूँकि नहीं किए, इसलिए अब दिए जा रहे उनके ऑफर लोगों को अपमानजनक लग रहे हैं; और उन्हें अहसास हो रहा है कि जैसे पंकज बिजल्वान उन्हें 'खरीदने' की कोशिश कर रहे हैं । लोग चूँकि पंकज बिजल्वान के इरादे भाँप रहे हैं, और उन्हें मुँह पर ही लताड़ भी रहे हैं - इसलिए पंकज बिजल्वान की यह तरकीब काम करती नहीं दिख रही है । यह तरकीब अपनाये जाने की चर्चा ने लेकिन उनके अपने नजदीकियों व समर्थकों को महँगे होटल में कमरा लेने के लिए भड़का दिया है, और वह पंकज बिजल्वान पर दबाव बनाने लगे हैं कि उन्हें तो महँगे होटल में ही कमरा चाहिए । यह मामला मेरठ में हुई पंकज बिजल्वान की मीटिंग में बनी स्थिति को ही दोहराता लग रहा है - जहाँ मीटिंग शुरू होने से पहले कुछेक लोग तो शराब पीने बैठ गए, लेकिन जब पंकज बिजल्वान के अन्य नजदीकियों व समर्थकों ने शराब पीने की तरफ बढ़ना शुरू किया तो उन्हें रोका गया, जिसके चलते बबाल हो गया और तोड़फोड़ तक मच गई । महँगे होटल में ठहरने को लेकर पंकज बिजल्वान के नजदीकियों व समर्थकों के बीच जिस तरह की होड़ मची दिख रही है, उसमें पंकज बिजल्वान के नजदीकियों व समर्थकों के बीच आपस में ही भिड़ंत होने के संकेत मिल रहे है - जो पंकज बिजल्वान के पहले से ही कमजोर पड़े अभियान को और कमजोर करने का काम कर रहे हैं ।

Tuesday, January 28, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में उम्मीदवार के रूप में बिना कुछ किए-धरे इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की जितेंद्र चौहान की कोशिशों में मल्टीपल की चुनावी राजनीति के बड़े नेता अपने आप को ठगा हुआ पा रहे हैं 

आगरा । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर ढीलाढाला रवैया अपनाने के चलते जितेंद्र चौहान ने मल्टीपल के बड़े नेताओं को खासा संकट में डाल दिया है, और उन्हें इस संकट से निकलने का कोई उपाय भी नहीं सूझ रहा है । मल्टीपल में यूँ तो जितेंद्र चौहान को ही इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के सबसे मजबूत उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, और मल्टीपल के बड़े नेताओं का भी समर्थन उन्हें है - लेकिन चूँकि वह खुद अपनी उम्मीदवारी को लेकर सक्रिय नहीं हैं, इसलिए मल्टीपल के नेताओं को डर हो रहा है कि जितेंद्र चौहान के ढीलेढाले रवैये के कारण कहीं कोई विरोधी उम्मीदवार फायदा न उठा ले जाए । इसीलिए मल्टीपल के बड़े नेताओं ने वैकल्पिक उम्मीदवार की तलाश भी शुरू कर दी है; हालाँकि उनकी तलाश में कई 'अगर' और 'मगर' जुड़े हुए हैं और फिलहाल उनकी तलाश पूरी होती हुई नहीं दिख रही है । मल्टीपल के बड़े नेता अपनी तलाश में अच्छे से इसलिए जुट भी नहीं पा रहे हैं, क्योंकि जितेंद्र चौहान ने अभी मैदान छोड़ा नहीं है और नेता लोग भी अभी जितेंद्र चौहान को छोड़ना नहीं चाहते हैं । मजे की बात यह भी है कि जितेंद्र चौहान के ढीलेढाले रवैये और मल्टीपल के बड़े नेताओं की असमंजसता के कारण बनी स्थिति का फायदा उठाने की कोई कोशिश तेजपाल खिल्लन और या अरविंद संगल जैसे विरोधी उम्मीदवारों की तरफ से भी होती नहीं दिख रही है । मल्टीपल के बड़े नेताओं की वैकल्पिक उम्मीदवार की तलाश में अरुण मित्तल के नाम की चर्चा चली भी थी, लेकिन अपने डिस्ट्रिक्ट में मुकेश गोयल के साथ राजनीतिक नजदीकियत रखने/'दिखाने' की उनकी कोशिशों को देखते हुए उक्त चर्चा में उनका नाम तुरंत से कट भी गया ।
जितेंद्र चौहान के ढीलेढाले रवैये ने मल्टीपल के बड़े नेताओं के साथ-साथ उनके नजदीकियों को भी हैरान किया हुआ है । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि जितेंद्र चौहान के लिए सारा मामला जब पूरी तरह से आसान बना हुआ है, तब फिर वह कोई सक्रियता नहीं दिखा कर - अपने लिए खुद ही मुश्किलें क्यों पैदा कर रहे हैं ? उनके कुछेक नजदीकियों का अनुमान है कि चूँकि सारा मामला बहुत आसान है, इसलिए जितेंद्र चौहान को लग रहा है कि उन्हें कुछ भी करने की जरूरत भला क्या है - और वह तो घर बैठे ही इंटरनेशनल डायरेक्टर बन जायेंगे । नजदीकियों को लगता है कि जितेंद्र चौहान इसलिए भी चुप बैठे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि वह यदि उम्मीदवार के रूप में सक्रिय होते हैं, तो छोटे/बड़े नेता उनकी जेब ढीली करवाने में लग जायेंगे । नजदीकियों का कहना है कि जितेंद्र चौहान इंटरनेशनल डायरेक्टर तो बनना चाहते हैं, लेकिन उसके लिए अपना ज्यादा समय और पैसा खर्च नहीं करना चाहते हैं । जितेंद्र चौहान को यह भी समझ में आ रहा है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद को लेकर मल्टीपल में राजनीतिक समीकरण के जो हालात बने हुए हैं, उनमें बड़े नेताओं के सामने उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने/बनवाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है - इसलिए वह निश्चिंत होकर बैठे हैं ।
मल्टीपल में तेजपाल खिल्लन, अरविंद संगल तथा अरुण मित्तल को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के अन्य संभावित उम्मीदवारों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । इन तीनों में तेजपाल खिल्लन और अरविंद संगल मल्टीपल के बड़े नेताओं की आँखों में बुरी तरह खटकते हैं; और माना/समझा जाता है कि बड़े नेता इन्हें तो किसी भी कीमत पर इंटरनेशनल डायरेक्टर नहीं बनने देंगे । इन दोनों को भी इस बात का पता है, और इसी कारण से यह दोनों अपनी अपनी उम्मीदवारी बनाये रखने के बावजूद उम्मीदवार के रूप में जरा भी सक्रिय नहीं हैं । अरुण मित्तल के जरूर मल्टीपल के बड़े नेताओं के साथ अच्छे संबंध हैं और इन्हीं अच्छे संबंधों के कारण बड़े नेताओं के बीच जब जितेंद्र चौहान के अलावा दूसरे उम्मीदवार की खोज शुरू हुई, तो अरुण मित्तल का नाम लिया/सुना गया । लेकिन अपने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अरुण मित्तल जिस तरह से मुकेश गोयल के नजदीक होते गए और 'दिख' रहे हैं, उसके चलते बड़े नेताओं ने उनके नाम पर फिर विराम लगा दिया । उल्लेखनीय है कि अपने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अरुण मित्तल ने पहले तटस्थ रहने के संकेत दिए थे, और वह दोनों खेमों के आयोजनों में नजर आ रहे थे - लेकिन फिर वह मुकेश गोयल की तरफ ही पूरी तरह शिफ्ट हो गए । मल्टीपल की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के बीच चूँकि मुकेश गोयल का खासा विरोध है, इसलिए मुकेश गोयल के साथ दिखने के चक्कर में उनके बीच अरुण मित्तल का पत्ता भी कट गया । इन स्थितियों ने जितेंद्र चौहान को इस बात के लिए और भी आश्वस्त कर दिया है कि वह बिना कुछ किए-धरे ही इंटरनेशनल डायरेक्टर बन जायेंगे । जितेंद्र चौहान के इस रवैये से मल्टीपल के बड़े नेता अपने आप को ठगा हुआ पा रहे हैं । 

Tuesday, January 21, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रोटरी क्लब दिल्ली अशोका की सदस्यता आधी होने से रमेश अग्रवाल की डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप कमेटी के चेयरमैन के रूप में तो फजीहत हुई ही है, उनके सामने बड़ी मुसीबतें भी खड़ी हो गई हैं

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप कमेटी के चेयरमैन के रूप में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल के लिए फजीहत की स्थिति यह बनी है कि उनके अपने क्लब की मेंबरशिप बुरी तरह से घट गई है और करीब आधे सदस्यों ने क्लब छोड़ दिया है । क्लब छोड़ने वाले सदस्यों ने इससे पहले रमेश अग्रवाल को अपनी हरकतों के लिए माफी माँगने के लिए मजबूर किया, और इस तरह रमेश अग्रवाल की दोहरी फजीहत की । डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के इतिहास में डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप कमेटी के किसी चेयरमैन की ऐसी फजीहत नहीं हुई है, और इस तरह रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट ही नहीं, बल्कि रोटरी के इतिहास में एक अनोखा रिकॉर्ड बनाया है । डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप कमेटी के चेयरमैन के रूप में रमेश अग्रवाल को जिम्मेदारी मिली थी कि वह डिस्ट्रिक्ट में सदस्यता वृद्धि के लिए काम करेंगे; लेकिन उनकी हरकतों के चलते उनके अपने क्लब में सदस्यता बुरी तरह घट कर आधी ही रह गई है । उल्लेखनीय है कि रमेश अग्रवाल के क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली अशोका - में 80 के करीब सदस्य थे, लेकिन अब उनकी संख्या 40 के करीब ही रह गई है । रोटरी क्लब दिल्ली अशोका छोड़ने वाले सदस्यों ने अपना नया क्लब बना लिया है । 
रमेश अग्रवाल ने अपने क्लब में हुए विभाजन के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को जिम्मेदार ठहराया है । उल्लेखनीय है कि उन्होंने दीपक गुप्ता पर खासा दबाव बनाया था कि वह नए क्लब के प्रस्ताव को हरी झंडी न दें, ताकि नए क्लब में जाने की तैयारी करने वाले रोटरी क्लब दिल्ली अशोका के सदस्य क्लब में बने रहने के लिए मजबूर होंगे । लेकिन दीपक गुप्ता ने नए क्लब्स की संख्या बढ़ाने के लालच में रमेश अग्रवाल की एक न सुनी और रमेश अग्रवाल को ऐतिहासिक फजीहत का शिकार बना दिया । रमेश अग्रवाल के क्लब को छोड़ कर गए सदस्यों ने रमेश अग्रवाल की दोहरी फजीहत की; क्लब छोड़ने से पहले उन्होंने रमेश अग्रवाल को अपनी हरकतों के लिए माफी माँगने के लिए मजबूर किया । उल्लेखनीय है कि अन्य हरकतों के साथ-साथ क्लब के पदाधिकारियों को जब तब तरह तरह से बेइज्जत करते रहने की रमेश अग्रवाल की आदत से क्लब के कई लोग परेशान थे, और इस वर्ष उन्होंने संगठित होकर रमेश अग्रवाल को क्लब से निकालने/निकलवाने की तैयारी कर ली थी । रमेश अग्रवाल की तरफ से पहले तो दादागिरी दिखा कर उक्त तैयारी को फेल करने की कोशिश की गई; लेकिन रमेश अग्रवाल को जब अपनी कोशिश सफल होती हुई नहीं नजर आई तो फिर वह माफी माँगने के लिए मजबूर हुए ।
रमेश अग्रवाल को लगा था कि माफी माँग कर वह क्लब में बने रहेंगे और मुसीबतों से बच जायेंगे । लेकिन उनकी हरकतों से परेशान क्लब के सदस्यों ने जो सोच कर रखा हुआ था, रमेश अग्रवाल को उसकी कल्पना तक नहीं थी - रमेश अग्रवाल ने दरअसल सपने में भी नहीं सोचा था कि माफी माँगने की शर्मिंदगी के बाद उन्हें दूसरी बड़ी फजीहत का शिकार बनना है । क्लब के करीब आधे सदस्यों के क्लब छोड़ देने से रमेश अग्रवाल की डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन के रूप में जो फजीहत हुई है, वह तो हुई ही है - क्लब के कमजोर हो जाने से उनके लिए मुसीबतें बढ़ीं है । सबसे बड़ी समस्या रमेश अग्रवाल के सामने क्लब के उस बड़े प्रोजेक्ट को बचाने की है, जिसके शुभारंभ की पूजा में क्लब के पदाधिकारियों को धोखा देकर रमेश अग्रवाल अपनी पत्नी के साथ बैठ गए थे, और जिसके बाद क्लब में खासा बड़ा बबाल पैदा हो गया था - और जो रमेश अग्रवाल के माफी माँगने तथा क्लब के विभाजित होने तक आ पहुँचा । जाहिर है कि रोटरी क्लब दिल्ली अशोका की सदस्यता घटने ने रमेश अग्रवाल की भारी फजीहत तो की ही है, उनके सामने बड़ी मुसीबतें भी खड़ी कर दी हैं ।

Monday, January 20, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में रजनीश गोयल के साथ अश्वनी काम्बोज को खड़ा देख कर पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच गहरी निराशा पैदा हुई है और उक्त तस्वीर में उन्हें पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी का अभियान कमजोर पड़ता दिखा है

मेरठ । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए रजनीश गोयल तथा पंकज बिजल्वान के बीच छिड़ी चुनावी लड़ाई में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अश्वनी काम्बोज के लिए हालात इस समय, बकौल मिर्जा ग़ालिब 'ईमां मुझे रोके है, तो खींचे है मुझे कुफ्र' जैसे हो रहे हैं । उनकी यह दुविधापूर्ण हालत पंकज बिजल्वान के कारण हो रही है । पंकज बिजल्वान चूँकि उन्हीं के क्लब के सदस्य हैं, और इस नाते दोनों के बीच नजदीकी संबंध है - इसलिए 'ईमां' तो उन्हें पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के पक्ष में रोकने की कोशिश कर रहा है; लेकिन लायनिज्म की व्यावहारिकता उन्हें 'कुफ्र' करने के लिए मजबूर कर रही है, जिसके चलते वह रजनीश गोयल की उम्मीदवारी के साथ खड़े नजर आते हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले काफी समय से पंकज बिजल्वान और उनके समर्थक अश्वनी काम्बोज को अपने साथ खड़े 'दिखाने' के प्रयासों में थे, लेकिन अश्वनी कम्बोज उनके प्रयासों में फँस ही नहीं रहे थे; किंतु अभी हाल ही में नामांकन पत्र जमा कराने में जब पंकज बिजल्वान और अश्वनी काम्बोज साथ-साथ खड़े हुए - तो पंकज बिजल्वान के समर्थकों ने इसे अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया । उनके इस प्रचार पर लेकिन उस समय पानी फिर गया, जब अश्वनी काम्बोज को रजनीश गोयल की उम्मीदवारी के पक्ष में मेरठ में हुई मीटिंग में उपस्थित देखा गया ।
अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों का कहना है कि अश्वनी काम्बोज को अगले लायन वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनना है, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्हें डिस्ट्रिक्ट के सभी लोगों का समर्थन चाहिए होगा - इसलिए वह किसी एक खेमे के साथ बँध कर नहीं रह सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'बनने' के लिए भी उन्हें दोनों खेमों का समर्थन चाहिए होगा । यह बात सिद्धांततः कितनी भी उचित व तर्कपूर्ण लगे, लेकिन व्यावहारिक रूप में यह पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के अभियान को चोट पहुँचाती है । पंकज बिजल्वान के समर्थकों का ही कहना है कि अश्वनी काम्बोज यदि दोनों खेमों में दिखेंगे, तो इसका अर्थ यही लगाया जायेगा कि पंकज बिजल्वान को अश्वनी काम्बोज का समर्थन नहीं है और इससे पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी का अभियान कमजोर साबित होगा । तब तो और भी जबकि रजनीश गोयल को निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय मित्तल, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीवा अग्रवाल तथा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गौरव गर्ग का एकतरफा समर्थन प्राप्त है । पंकज बिजल्वान तथा उनके समर्थकों की लगातार कोशिशों के बावजूद अश्वनी काम्बोज जिस तरह से पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी एकतरफा समर्थन करने से बच रहे हैं, उसे देख कर डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह भी लग रहा है कि अश्वनी काम्बोज को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में पंकज बिजल्वान की स्थिति काफी कमजोर लग रही है, और वह एक हारते हुए उम्मीदवार के साथ खड़े नहीं दिखना चाहते हैं । 
डिस्ट्रिक्ट में लोगों को कुछ समय पहले का वह मौका भी याद है, जब अश्वनी काम्बोज ने पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के झंडाबरदार मुकेश गोयल को सार्वजनिक रूप से उनके गवर्नर-वर्ष के पद न बाँटने के लिए कहा था । मुकेश गोयल की राजनीति का यह पुराना फंडा है, जिसमें वह पदों का लालच देकर अपने उम्मीदवार के लिए वोट जुटाने का काम करते हैं । इसी फंडे के तहत मुकेश गोयल ने पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से अश्वनी काम्बोज के गवर्नर वर्ष के पद बाँटने शुरू कर दिए थे ।अश्वनी काम्बोज ने इस पर सख्त ऐतराज किया और सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि उन्होंने अपने गवर्नर-वर्ष के पद बाँटने का अधिकार किसी को नहीं दिया है । अश्वनी काम्बोज ने हालाँकि किसी का नाम नहीं लिया था, लेकिन हर किसी ने - और खुद मुकेश गोयल ने भी समझ लिया था कि अश्वनी काम्बोज ने उन्हें ही निशाना बनाया है । इसीलिए मुकेश गोयल ने तुरंत ही इसका जबाव दिया और दावा किया कि वह कोई पद नहीं बाँट रहे हैं । मुकेश गोयल ने सार्वजनिक किए अपने पत्र में अश्वनी काम्बोज को बेइज्जत करते हुए यह दावा भी किया कि वह तो उनसे बात भी नहीं करते हैं और उन्हें फोन भी नहीं करते हैं । अश्वनी काम्बोज और मुकेश गोयल के बीच हुए इस घमासान को वास्तव में पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा गया था । पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के अभियान से दूर-दूर रहने की अश्वनी काम्बोज की कोशिशों को उस झटके के असर के बने रहने के सुबूत के तौर पर ही देखा जा रहा है । नामांकन पत्र जमा कराने के मौके पर पंकज बिजल्वान के साथ खड़े होने को कहीं उनका समर्थन न मान/समझ लिया जाए, इसलिए अश्वनी काम्बोज ने रजनीश गोयल के साथ खड़े होने/दिखने का काम भी जल्दी से कर लिया । रजनीश गोयल के साथ अश्वनी काम्बोज को खड़ा देख कर पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच गहरी निराशा पैदा हुई है और उक्त तस्वीर में उन्हें पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी का अभियान कमजोर पड़ता दिखा है ।

Friday, January 17, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में दिनेश शर्मा के पक्ष में पूर्व गवर्नर जीएस धामा की दिलचस्पी व सक्रियता के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट मनीष शारदा के लिए अशोक गुप्ता का समर्थन करना मुश्किल हुआ

मेरठ । दिनेश शर्मा और अशोक गुप्ता के बीच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए छिड़ी लड़ाई में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट मनीष शारदा के लिए हालात इस समय, बकौल मिर्जा ग़ालिब 'ईमां मुझे रोके है, तो खींचे है मुझे कुफ्र' जैसे हो रहे हैं । उनके लिए यह हालात दरअसल पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जीएस धामा के कारण बने हैं । जीएस धामा को दिनेश शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थन में देखा/पहचाना जा रहा है । मनीष शारदा चूँकि जीएस धामा के ही क्लब के सदस्य हैं, और क्लब में जीएस धामा का ही प्रभाव है - इसलिए 'ईमां' तो उन्हें दिनेश शर्मा के समर्थन में रहने के लिए मजबूर कर रहा है; लेकिन कई तरह के दबावों व स्वार्थों के चलते 'कुफ्र' उन्हें अशोक गुप्ता की तरफ खींच रहा है । अशोक गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी राजीव सिंघल के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; दोनों नजदीकी रिश्तेदार हैं - और अशोक गुप्ता ने समर्थन जुटाने के लिए ठीक वैसे ही हथकंडे अपनाए हुए हैं, जिनके सहारे/भरोसे राजीव सिंघल ने अपनी चुनावी नैय्या पार लगाई थी । राजीव सिंघल की चुनावी नैय्या पार करवाने में मनीष शारदा का बड़ा योगदान था । उस समय जीएस धामा चूँकि विदेश में थे, इसलिए मनीष शारदा को अपनी मनमानी करने तथा राजनीति चलाने का मौका मिल गया था । अपने चुनाव के समय मनीष शारदा के साथ बनी नजदीकी का राजीव सिंघल अब अशोक गुप्ता के लिए भी फायदा उठाना चाहते हैं । मनीष शारदा उन्हें फायदा देना/पहुँचाना भी चाहते हैं, लेकिन अब की बार उनके लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि जीएस धामा यहीं पर हैं और दिनेश शर्मा की चुनावी नैय्या को पार लगवाने की कुछ छिपी व कुछ खुली कोशिशों में जुटे हुए हैं ।
दिनेश शर्मा की उम्मीदवारी की कामयाबी जीएस धामा के लिए दो कारणों से बहुत महत्त्व की है । पहला कारण तो यह है कि दिनेश शर्मा को रोटरी इंटरनेशनल के जिस 'अन्याय' का सामना करना पड़ा है, उसमें दिनेश शर्मा को न्याय दिलवाने के लिए जीएस धामा ने रोटरी इंटरनेशनल के बड़े नेताओं के सामने दिनेश शर्मा के पक्ष में खासी वकालत की थी । उनकी वकालत उस समय तो कई कारणों से दिनेश शर्मा के काम नहीं आ सकी थी, लेकिन अब जब दिनेश शर्मा दोबारा से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) पद की चुनावी दौड़ में शामिल हुए हैं, तो जीएस धामा के लिए दिनेश शर्मा को 'न्याय' दिलवाने का मामला जरूरी बन गया है; दरअसल इसके जरिये वह अपनी पिछली असफलता को भी ढक लेना चाहते हैं । दूसरा कारण राजनीतिक है । जीएस धामा के नजदीकियों का कहना है कि पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने के तुरंत बाद राजीव सिंघल जिस तरह से अपने रिश्तेदार अशोक गुप्ता को उम्मीदवार बना बैठे हैं, उसे देख कर जीएस धामा को ही नहीं, बल्कि कई अन्य लोगों को भी लग रहा है कि राजीव सिंघल डिस्ट्रिक्ट पर कब्जा करके डिस्ट्रिक्ट के नेता बनना चाहते हैं । जीएस धामा के नजदीकियों का कहना/बताना है कि दिनेश शर्मा की उम्मीदवारी को सफल बनाने के जरिये जीएस धामा वास्तव में राजीव सिंघल के मंसूबों पर भी पानी फेरना चाहते हैं । 
दिनेश शर्मा की उम्मीदवारी को लेकर जीएस धामा की सक्रियता ने मनीष शारदा के लिए लेकिन बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है । मेरठ के रोटेरियंस को लगता है कि दिनेश शर्मा की उम्मीदवारी को जीएस धामा का जैसा समर्थन प्राप्त है, उसे देखते/समझते हुए मनीष शारदा के लिए अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन करना मुश्किल ही होगा । इसके चलते अशोक गुप्ता को सत्ता का एकतरफा समर्थन मिलना मुश्किल ही दिख रहा है ।अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक अभी तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हरि गुप्ता, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट मनीष शारदा तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी राजीव सिंघल का समर्थन पाने की उम्मीद पाले बैठे थे - लेकिन मनीष शारदा को 'ईमां' में फँसा देख अशोक गुप्ता के समर्थकों को अपना पक्ष कमजोर पड़ता दिख रहा है । शक उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हरि गुप्ता के रवैये पर भी है । हालाँकि हरि गुप्ता को अभी तक अशोक गुप्ता के समर्थन में ही देखा/पहचाना जा रहा है; लेकिन अशोक गुप्ता के समर्थक उन सूचनाओं से भी डरे हुए हैं, जिनमें कहा/बताया जा रहा है कि हरि गुप्ता कुछेक प्रमुख लोगों के जरिये दिनेश शर्मा से भी सौदेबाजी करने में लगे हैं । दरअसल अभी तक हरि गुप्ता यदि अशोक गुप्ता के समर्थन में दिख रहे हैं, तो इसे हरि गुप्ता के कई आयोजनों में अशोक गुप्ता द्वारा खुलकर किए गए खर्च के परिणाम के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । अशोक गुप्ता के समर्थकों को लेकिन सुनने को अब यह भी मिल रहा है कि दिनेश शर्मा की तरफ से भी हरि गुप्ता को खर्च का ऑफर मिला है । मजे की बात यह है कि अशोक गुप्ता के समर्थक यह भी कहते/बताते रहते हैं कि हरि गुप्ता के पास वोट तो कोई नहीं है, वह अपने क्लब का वोट भी नहीं दिलवा सकते हैं - लेकिन फिर भी वह अशोक गुप्ता के लिए हरि गुप्ता का समर्थन 'बनाये' रखना चाहते हैं, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के समर्थन का एक मनोवैज्ञानिक फायदा तो मिलता ही है । अशोक गुप्ता के समर्थकों को डर है कि मनीष शारदा के बाद यदि हरि गुप्ता का समर्थन भी संशय में पड़ा और गड़बड़ाया - तब तमाम तीन तिकड़म व सौदेबाजियों के बावजूद अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी खतरे में पड़ जा सकती है ।

Thursday, January 16, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में आलोक गुप्ता की होशियारी तथा उपयुक्त उम्मीदवार के अभाव के चलते प्रियतोष गुप्ता नेताओं की चौधराहटी-लड़ाई के शिकार बनने से बचते और चुनावी मुकाबले में वॉकओवर पाते हुए दिख रहे हैं

गाजियाबाद । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के लिए प्रियतोष गुप्ता के अलावा अन्य किसी उम्मीदवार को सक्रिय न होता देख प्रियतोष गुप्ता को चुनावी मुकाबले में वॉकओवर मिलता लग रहा है । हालाँकि संभावित उम्मीदवारों के रूप में कुछेक नाम लोगों के बीच चर्चा में तो हैं, लेकिन वह नाम चूँकि चर्चा से आगे ही नहीं बढ़ पा रहे हैं - इसलिए डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगने लगा है कि उनके लिए सचमुच उम्मीदवार 'बन पाना' मुश्किल ही होगा । लोगों को ऐसा डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ी नेताओं के रवैये को देख/भाँप कर भी लगने लगा है । दरअसल कोई भी खिलाड़ी नेता संभावित उम्मीदवारों में से किसी का भी झंडा उठाता हुआ नहीं दिख रहा है । बल्कि दिख यह रहा है कि जो खिलाड़ी नेता किसी उम्मीदवार के 'इंतजार' में थे, और या 'खोजबीन' में लगे थे और या संभावित उम्मीदवारों को 'परख' रहे थे, वह भी प्रियतोष गुप्ता के समर्थन के संकेत देने लगे हैं । इससे डिस्ट्रिक्ट में लोगों को आभास मिला है कि चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को प्रियतोष गुप्ता को टक्कर देने लायक कोई उम्मीदवार नहीं मिला है, और इसीलिए अगले रोटरी वर्ष में होने वाले चुनाव के लिए प्रियतोष गुप्ता अकेले उम्मीदवार के रूप में नजर आ रहे हैं ।
कुछेक लोगों को हालाँकि अभी भी भरोसा है कि प्रियतोष गुप्ता के अकेले उम्मीदवार रहने की स्थिति चुनावी नेताओं को हजम नहीं होगी, और इसलिए वह जरूर ही किसी न किसी को उम्मीदवार के रूप में लायेंगे तथा चुनावी मुकाबले को रोमांचपूर्ण बनायेंगे । कुछेक लोगों का यह भरोसा लेकिन अधिकतर लोगों को ख्यालीपुलाव ही लग रहा है । उनका तर्क है कि यदि कोई और दमदार उम्मीदवार आना होता, तो अभी तक आ चुका होता । उनका कहना है कि यह ठीक है कि अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अभी काफी समय है, लेकिन अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर जिस तरह बिसात बिछ चुकी है, और उम्मीदवार के रूप में प्रियतोष गुप्ता उस पर जितना आगे बढ़ चुके हैं - उसे देखते हुए अब कोई उम्मीदवार बनने की हिम्मत नहीं करेगा, और प्रियतोष गुप्ता को चुनावी मैदान खाली ही मिलेगा । लोगों के बीच यह समझ दरअसल डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों को हथियार डालते देख बन रही है । उल्लेखनीय है कि जो नेता कुछ दिन पहले तक प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में नहीं थे, और तरह तरह से उम्मीदवार के रूप में प्रियतोष गुप्ता की कमजोरियों को बता/गिना रहे थे, वह भी अब प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी का झंडा उठाते हुए दिख रहे हैं । प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी से हालाँकि किसी नेता को कोई बड़ी शिकायत नहीं थी । वह तो डिस्ट्रिक्ट के नेताओं तथा अन्य कुछेक लोगों के निशाने पर सिर्फ इसलिए आ गए थे, क्योंकि उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आलोक गुप्ता के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था ।
उल्लेखनीय है कि प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी की चर्चा शुरू होने के साथ ही आलोक गुप्ता ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन के पद पर बैठा दिया, जिसके चलते इस चर्चा को हवा मिली कि आलोक गुप्ता ने प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है । रोटरी की चुनावी राजनीति में इस तरह के दृश्य आमतौर पर देखने को मिलते हैं, जहाँ नेता लोग अपनी अपनी चौधराहट की लड़ाई में उम्मीदवारों का समर्थन या विरोध करते हैं । प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी भी उसी 'चौधराहटी-लड़ाई' में फँसती दिखी, लेकिन कुछ आलोक गुप्ता की होशियारी तथा कुछ उपयुक्त उम्मीदवार के अभाव के चलते प्रियतोष गुप्ता उक्त चौधराहटी-लड़ाई के शिकार बनने से बचते हुए दिख रहे हैं । आलोक गुप्ता की तरफ से सावधानी यह रखी गई कि प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी के साथ वह 'दिखे' न, और किसी को आरोप लगाने के लिए कोई तथ्य न मिलें । इसी सावधानी के चलते, आरोपपूर्ण चर्चाओं को हवा देने की कोशिशें सिरे नहीं चढ़ सकीं । प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी से दूरी 'दिखा' कर आलोक गुप्ता न सिर्फ आरोपों से बच सकने में सफल रहे, बल्कि प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी को दूसरे नेताओं का समर्थन दिलवाने का मौका भी दे सके । यही कारण है कि दूसरे नेताओं को जब कोई 'दमदार' उम्मीदवार नहीं दिखा, तो वह प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन करते हुए दिखने लगे हैं । इस स्थिति ने दूसरे उम्मीदवारों के लिए संभावनाएँ और कमजोर कर दी हैं, तथा प्रियतोष गुप्ता को चुनावी मुकाबले में वॉकओवर मिलता दिख रहा है । 

Saturday, January 11, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में महेश त्रिखा की डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच बनी पहचान व प्रतिष्ठा को देखते हुए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी की तरफ मुड़ने का संकेत देकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अजीत जालान की उम्मीदवारी के लिए संकट खड़ा किया 

नई दिल्ली । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए एक बार फिर अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का झंडा उठाने की तैयारी करते दिख रहे हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि अशोक कंतूर ने रवि चौधरी से माफी माँग कर उनका समर्थन लेने/पाने का प्रयास किया है, जिस पर रवि चौधरी ने सकारात्मक रवैया दिखाया है । रवि चौधरी के बदले रवैये पर अजीत जालान ने अपने नजदीकियों के बीच चिंता जताई है । दरअसल रवि चौधरी अभी तक अजीत जालान की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कोशिशें करते देखे/सुने गए हैं । अजीत जालान के लिए चिंता की बात यह है कि रवि चौधरी ने यदि उन्हें छोड़ दिया, तो उनकी उम्मीदवारी की वकालत करने वाला कोई नहीं रह जायेगा । अजीत जालान पूर्व गवर्नर विनोद बंसल से मिले धोखे से उबरने की कोशिश अभी कर ही रहे थे, कि रवि चौधरी उन्हें झटका देते हुए दिख रहे हैं । अजीत जालान के लिए फजीहत की बात यह हुई है कि यूँ तो उन्हें विनोद बंसल के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है, और वह खुद ही लोगों को कहते/बताते रहे हैं कि वह तो विनोद बंसल के ही कहने पर उम्मीदवार बने हैं - लेकिन अब विनोद बंसल ही उनकी उम्मीदवारी में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं । अजीत जालान ने अपने नजदीकियों को बताया है कि विनोद बंसल ने उन्हें आश्वस्त किया है कि उनके पास डिस्ट्रिक्ट में जो छह/आठ वोट हैं, वह उन्हें दिलवा देंगे - लेकिन उनके पक्ष में खुलकर कोई काम नहीं करेंगे । विनोद बंसल ने अजीत जालान को उम्मीदवार तो बना/बनवा दिया, लेकिन फिर उन्हें इस बार डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में तटस्थ 'दिखने' की जरूरत महसूस हुई और उन्होंने अपने आप को पीछे कर लिया । विनोद बंसल से मिले झटके के बाद अजीत जालान को रवि चौधरी का समर्थन मिला, तो अजीत जालान के चुनावी अभियान में कुछ जान पड़ी । लेकिन अब जब रवि चौधरी भी उनको छोड़ कर अशोक कंतूर के साथ जाने की तैयारी करते देखे जा रहे हैं, तो अजीत जालान को अपनी उम्मीदवारी का अभियान मुसीबत में फँसता/पड़ता नजर आ रहा है ।
रवि चौधरी के नजदीकियों का कहना/बताना है कि रवि चौधरी को दरअसल यह समझ में आ गया है कि वह अजीत जालान के लिए चाहें जितना/जो कर लें, उनकी उम्मीदवारी के लिए कोई माहौल नहीं बना सकते हैं; उन्होंने पाया है कि डिस्ट्रिक्ट में कोई भी अजीत जालान की उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहा है । इसके अलावा, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव राय मेहरा तथा निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया के अशोक कंतूर के समर्थन में होने का दबाव भी रवि चौधरी पर है । रवि चौधरी के रवैये को बदलने का सबसे बड़ा कारण लेकिन अशोक कंतूर के रवि चौधरी के साथ अपने बिगड़े संबंधों को सुधारने के प्रयास रहे हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष में अपनी पराजय के लिए अशोक कंतूर ने रवि चौधरी को जिम्मेदार ठहराया था; और कई मौकों पर कहा था कि रवि चौधरी की नॉनसेंस हरकतों तथा उनकी बदनामी के कारण वह चुनाव हार गए । बाद में जब रवि चौधरी को क्लब से निकलने के लिए मजबूर होना पड़ा, तब भी यही चर्चा रही कि अशोक कंतूर ने इस वर्ष की अपनी उम्मीदवारी को रवि चौधरी की छाया से बचाने के लिए उन्हें क्लब से निकलवा दिया है । रवि चौधरी के नजदीकियों का कहना है कि लेकिन अब अशोक कंतूर ने रवि चौधरी से अपने कहे/किए की माफी माँग ली है, जिसके बाद रवि चौधरी ने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के लिए काम करने की तैयारी शुरू कर दी है । अशोक कंतूर के नजदीकियों का कहना है कि पिछले वर्ष उन्होंने अपनी उम्मीदवारी की कमान पूरी तरह रवि चौधरी को सौंप दी थी, जिसके कारण रवि चौधरी की बदनामी अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को ले डूबी थी । अशोक कंतूर ने लेकिन अब इस बात को समझ लिया है कि उन्हें रवि चौधरी की 'नॉनसेंस वैल्यू' का कैसे फायदा उठाना है । वह समझ गए हैं कि चुनावी राजनीति में 'नॉनसेंस' की भी एक 'वैल्यू' तो होती ही है, पिछले वर्ष लेकिन इस 'वैल्यू' पर पूरी तरह निर्भर हो जाने कारण उनकी लुटिया डूब गई थी । इसलिए अशोक कंतूर इस बार रवि चौधरी की मदद तो लेंगे, लेकिन अपनी उम्मीदवारी की कमान पूरी तरह उन्हें नहीं सौपेंगे ।
रवि चौधरी भी इस बात को समझ तो रहे हैं, लेकिन वह इस बात को ज्यादा अहमियत नहीं दे रहे हैं । रवि चौधरी का इस वर्ष का एजेंडा दरअसल यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में वह महेश त्रिखा को जीतने नहीं देना चाहते हैं । उन्होंने हाल ही दिनों में यह कहना भी शुरू किया है कि वह अजीत जालान व अशोक कंतूर में से उस उम्मीदवार को समर्थन देंगे, जो महेश त्रिखा को हराता हुआ दिखेगा । वास्तव में उनकी इस बात में ही, लोगों ने उन्हें अशोक कंतूर की तरफ लौटने की तैयारी करते हुए 'देखा' है । दरअसल, कई पूर्व गवर्नर्स के समर्थन तथा निरंतर सक्रियता के बल पर महेश त्रिखा ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जो पैठ बनाई है, उसे देखते/पहचानते हुए रवि चौधरी को विश्वास हो चला है कि अजीत जालान के लिए तो महेश त्रिखा को हरा पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव ही है । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता ने दिल्ली में हुए अपने सम्मान समारोह में रोटरी के लिट्रेसी प्रोग्राम में महेश त्रिखा की निरंतर संलग्नता की जैसी प्रशंसा की, उसके बाद तो महेश त्रिखा की पहचान व साख लोगों के बीच और बढ़ गई है । लोगों ने इस बात को बड़ी तारीफ के योग्य माना/पाया है कि महेश त्रिखा के रूप में उनके बीच एक ऐसा रोटेरियन भी है, जो बिना ढिंढोरा पीटे पिछले कई वर्षों से लगातार रोटरी का काम करता आ रहा है । अधिकतर लोगों ने स्वीकार किया कि शेखर मेहता अपने भाषण में यदि महेश त्रिखा के काम का उल्लेख नहीं करते तो उन्हें तो इस बारे में पता ही नहीं चलता । शेखर मेहता से मिली प्रशंसा के बाद महेश त्रिखा की डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच बनी प्रतिष्ठा को देखते हुए रवि चौधरी को उन्हें हरा पाना और मुश्किल लगने लगा है । इस बात का तो उन्हें पक्का यकीन हो गया है कि अजीत जालान के भरोसे तो वह महेश त्रिखा को नहीं ही हरा सकेंगे । इसीलिए वह अब अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए तैयार होते नजर आ रहे हैं । विनोद बंसल के बाद अब रवि चौधरी की तरफ से भी मिलने जा रहे इस झटके ने अजीत जालान की उम्मीदवारी के लिए संकट खड़ा कर दिया है । 

Monday, January 6, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित किए गए स्पीकर्स के चयन को लेकर आरोपों में घिर गए हैं, और इसके चलते डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस पर संकट के बदल छाए

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित किए गए स्पीकर्स के चयन को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता गंभीर आरोपों के शिकार बन गए हैं । स्पीकर्स के नामों को देख कर लोग भड़के हुए हैं; उनका कहना है कि दीपक गुप्ता कई दिनों से डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की तैयारियों में अपने आप को जिस तरह से व्यस्त 'दिखा' रहे थे, उससे लग रहा था कि इस बार की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में कुछ खास देखने/सुनने को मिलेगा - लेकिन मामला 'खोदा पहाड़ और निकला चूहा' वाला बना है । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में डिस्ट्रिक्ट के लोग उम्मीद करते हैं कि उन्हें लोकप्रिय चेहरों को देखने तथा उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने का मौका मिलेगा । लोकप्रिय चेहरों में भी लोग ऐसे चेहरों की उम्मीद करते हैं, जो मौजूदा समय में चर्चा में रहते हों और लोगों के बीच लोकप्रिय हों । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में 'कीनोट स्पीकर' के रूप में जिन सलमान खुर्शीद को आमंत्रित किया गया है, वह वैसे तो देश की राजनीति का जाना-पहचाना चेहरा हैं, लेकिन लोगों का कहना है कि वह एक 'चुके हुए कारतूस' की तरह हैं । उन्हें अब उनकी पार्टी में ही कोई गंभीरता से नहीं लेता और अपने चुनाव क्षेत्र में भी वह अपना असर खो चुके हैं, जिस कारण वह लगातार चुनावी हार का सामना करते आ रहे हैं । एक सामान्य ज्ञान, सिद्धांत व व्यवहार की बात है कि किसी कार्यक्रम में यदि एक नेता ही बुलाया जा रहा हो, तो  वह सत्ता पक्ष का होना चाहिए - यदि वह विरोधी पक्ष का होगा तो कार्यक्रम सत्ता विरोधी आयोजन बन कर जायेगा । सलमान खुर्शीद को मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित करके दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को सड़क-छाप सत्ता विरोधी आयोजन बना दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में तीन डॉक्टर्स आमंत्रित किए गए हैं, जिससे कन्फ्यूजन पैदा हो रहा है कि दीपक गुप्ता एक सामाजिक संगठन का वार्षिक आयोजन कर रहे हैं, या आईएमए (इंडियन मेडीकल एसोसिएशन) का कोई सेमीनार आयोजित कर रहे हैं । आमंत्रित किए गए डॉक्टर्स यदि ऐसे डॉक्टर्स होते, जिनकी सामाजिक पहचान भी होती - तब भी लोग उनके साथ कनेक्ट कर पाते; लेकिन आमंत्रित डॉक्टर्स को लोग अजनबियों की तरह ही देख रहे हैं और उन्हें स्पीकर्स के रूप में देख कर उत्साहित नहीं हैं । संभव है कि जो डॉक्टर्स आमंत्रित हैं, वह अपने अपने विषय के बड़े होशियार डॉक्टर्स हों - जो भी किसी पोजीशन में होगा और पद्मश्री या पद्मभूषण होगा, स्वाभाविक है कि वह होशियार तो होगा ही; लेकिन कतई जरूरी नहीं है कि जो होशियार होगा वह लोगों के साथ कनेक्ट भी करेगा । लोगों का मानना और कहना है कि दीपक गुप्ता को स्पीकर्स के रूप में यदि डॉक्टर्स को ही बुलाना था और पोजीशन वाले तथा पद्मश्री व पद्मभूषण ही चुनने थे, तो भी ऐसे डॉक्टर्स चुन सकते थे जो व्यापक समाज में जाने/पहचाने जाते हैं ।
लेकिन इसके लिए दीपक गुप्ता को खासी मेहनत करना पड़ती और व्यापक नजरिया रखना होता - और दूसरे पदाधिकारियों के साथ विचार/विमर्श करना होता । दीपक गुप्ता लेकिन कोई भी काम ऐसे छिप/छिपाकर करते हैं कि उनके साथियों को भी पता नहीं होता है कि वह कर क्या रहे हैं ? दरअसल इसी कारण से उनके सभी कार्यक्रम न सिर्फ फेल रहे हैं बल्कि फजीहत का शिकार भी बने हैं ।  जिस मामले में देश की प्रमुख डांस परफॉर्मेंस व प्रोडक्शन कंपनी डांस स्मिथ ने उनके और उनकी पत्नी रीना गुप्ता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की हुई है, वह यदि पारदर्शिता व सहभागिता से काम करते होते तो उस मामले में पत्नी के साथ न फँसते । मनमाने तरीके से काम करने के कारण ही दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित किए गए स्पीकर्स के चयन को लेकर आरोपों में घिर गए हैं । लोगों को हद की बात यह लगी है कि मनोरंजन क्षेत्र के जिन लोगों को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित किया गया है, वह भी कोई जाने/पहचाने लोग नहीं हैं । इस तरह दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को लेकर लोगों के उत्साह पर बुरी तरह से पानी फेर दिया है और डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को संकट के बादलों की गिरफ्त में फँसा दिया है ।

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के अभियान को फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अश्वनी काम्बोज से मिले झटके से नाराज हुए पंकज बिजल्वान के नजदीकियों ने अश्वनी काम्बोज को क्लब से निकालने की माँग करके डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक परिदृश्य में गर्मी पैदा की तथा उसे और दिलचस्प बनाया  

देहरादून । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने और 'दिखाने' के उद्देश्य से पंकज बिजल्वान द्वारा मेरठ में आयोजित की गई मीटिंग में न पहुँच कर फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अश्वनी काम्बोज ने एक बार फिर पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के प्रचार अभियान को झटका दे दिया है । पंकज बिजल्वान के नजदीकियों व समर्थकों के बीच अश्वनी काम्बोज के इस रवैये को लेकर गहरी नाराजगी पैदा हुई है और उन्होंने अश्वनी काम्बोज को क्लब से निकालने की माँग करना शुरू कर दिया है । उल्लेखनीय है कि दोनों एक ही क्लब के सदस्य हैं; पंकज बिजल्वान के नजदीकियों व समर्थकों का कहना है कि अश्वनी काम्बोज यदि अपने ही क्लब के उम्मीदवार के समर्थन में खड़े नहीं हो सकते हैं तो उन्हें क्लब में रहने/रखने का अधिकार नहीं है और उन्हें तुरंत क्लब से निकाल देना चाहिए । दरअसल मेरठ में हुई मीटिंग में अश्वनी काम्बोज की उपस्थिति को लेकर पंकज बिजल्वान तथा उनके समर्थकों को खासी उम्मीद थी; उन्हें इसकी जरूरत भी थी । पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी का अभियान जिस तरह की ढीलमढाल, अराजकता और असफलता का शिकार हुआ पड़ा है, उसमें अश्वनी काम्बोज के सहारे जान फूँकने की कोशिश की गई थी । पंकज बिजल्वान तथा उनके समर्थकों को विश्वास रहा कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अश्वनी काम्बोज उनकी मीटिंग में उपस्थित 'दिखेंगे', तो उनकी उम्मीदवारी के अभियान में कुछ जान पड़ेगी - लेकिन अश्वनी काम्बोज ने उनके विश्वास को धूल चटा दी ।
अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों का कहना लेकिन यह है कि अश्वनी काम्बोज को अगले लायन वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डिस्ट्रिक्ट के सभी आम और खास लायन सदस्यों का सहयोग चाहिए होगा, इसलिए वह इस बार के चुनाव में तटस्थ रहना और 'दिखना' चाहते हैं - ताकि चुनावी चक्कर में वह एक पक्ष के आम व खास लोगों का सहयोग/समर्थन खो न दें । अश्वनी काम्बोज के इन्हीं नजदीकियों का कहना/बताना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अश्वनी काम्बोज ने कुछ बड़ा व महत्त्वपूर्ण काम करने का निश्चय किया हुआ है और अपने गवर्नर-वर्ष में वह कुछेक बड़े प्रोजेक्ट करना चाहते हैं; स्वाभाविक रूप से इसके लिए उन्हें सभी का सहयोग/समर्थन चाहिए होगा; उन्हें लेकिन डर यह है कि वह यदि चुनावी चक्कर में पड़े तो अपने गवर्नर-वर्ष की योजनाओं को पूरा करने का मौका खो देंगे - और इसीलिए उन्होंने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से अपने आप को दूर रखने का फैसला किया हुआ है और यही कारण है कि वह मेरठ में हुई पंकज बिजल्वान की मीटिंग में नहीं पहुँचे । कई लोगों को लेकिन यह भी लगता है कि अश्वनी काम्बोज को चूँकि समझ में आ गया है कि पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के सफल होने की कोई संभावना नहीं है, इसलिए उन्होंने अपने आप को पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के अभियान से दूर कर लिया है । अश्वनी काम्बोज नहीं चाहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट में लोगों को कहने का मौका मिले कि अश्वनी काम्बोज के समर्थन के बावजूद पंकज बिजल्वान चुनाव हार गए - अश्वनी काम्बोज को लगता है कि इससे उनकी फजीहत ही होगी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्हें कोई भी गंभीरता से नहीं लेगा तथा उनसे सहयोग नहीं करेगा । इसलिए उन्होंने पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के प्रचार अभियान से दूरी बना लेने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी है ।
मेरठ मीटिंग को लेकर पंकज बिजल्वान के लिए मुसीबत तथा फजीहत की बात यह भी रही कि उनके समर्थकों के रूप में देखे/पहचाने जा रहे देहरादून के पूर्व गवर्नर्स सुनील जैन तथा अनीता गुप्ता भी मीटिंग में नहीं पहुँचे । पिछले दिनों अचानक से प्रस्तुत हुई मुकुल अग्रवाल की उम्मीदवारी का सुनील जैन ने जिस तत्परता से समर्थन करने की घोषणा की थी, उससे ही लग गया था कि पंकज बिजल्वान का समर्थन वह मजबूरी में ही कर रहे थे । पंकज बिजल्वान के समर्थकों का हालाँकि कहना है कि अब जब मुकुल अग्रवाल की उम्मीदवारी सोडावाटर का उफान साबित हो कर चुपचाप बैठ गई है, तो सुनील जैन फिर से पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी का झंडा उठाने के लिए मजबूर होंगे । पंकज बिजल्वान तथा उनके समर्थकों के विश्वास के अनुरूप सुनील जैन पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी का झंडा उठाने के लिए दोबारा से मजबूर होंगे या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन पंकज बिजल्वान के नजदीकियों ने अश्वनी काम्बोज को क्लब से निकालने की जो माँग करना शुरू की है, उसने डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक परिदृश्य को दिलचस्प बना दिया है ।