Thursday, January 30, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के अगले वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ तथा वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता के अपने अपने उम्मीदवारों के साथ चुनावी मैदान में कूद पड़ने से वाइस प्रेसीडेंट पद का चुनावी मुकाबला रोचक हुआ

नई दिल्ली । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ तथा वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता जिस तरह से आपने-सामने खड़े हो गए हैं, उसके चलते वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है ।  उल्लेखनीय है कि प्रफुल्ल छाजेड़ ने वेस्टर्न रीजन के अनिल भंडारी की उम्मीदवारी का झंडा उठाया हुआ है, जबकि अतुल गुप्ता ने ईस्टर्न रीजन के सुशील गोयल की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का अभियान छेड़ा हुआ है । सुशील गोयल को इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट सुबोध अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । सुबोध अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में सुशील गोयल को लोग ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रहे थे, लेकिन जब से अतुल गुप्ता ने उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की जिम्मेदारी सँभाली है, तब से सुशील गोयल की उम्मीदवारी को गंभीरता से लिया जाने लगा है । संभावना यह भी व्यक्त की जा रही है कि सुशील गोयल यदि सचमुच प्रफुल्ल छाजेड़  उम्मीदवार अनिल भंडारी को टक्कर देते हुए नजर आए, तो इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल का समर्थन भी उन्हें मिल जायेगा । वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में उत्तम अग्रवाल का एकमात्र एजेंडा दरअसल प्रफुल्ल छाजेड़ के उम्मीदवार को सफल होने से रोकने का है, और इसीलिए सुशील गोयल की उम्मीदवारी को उत्तम अग्रवाल का समर्थन मिल सकने का भरोसा जताया जा रहा है ।
अतुल गुप्ता की तरफ से लेकिन मजे की बात यह देखने में आ रही है कि वह सुशील गोयल की उम्मीदवारी को उत्तम अग्रवाल के समर्थन से बचाने की कोशिश कर रहे हैं । अतुल गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, अतुल गुप्ता दो वजहों से ऐसा कर रहे हैं : एक तो उन्हें डर है कि सुशील गोयल की उम्मीदवारी के साथ उत्तम अग्रवाल का नाम जुड़ा तो सुशील गोयल का बनता दिख रहा 'काम' बिगड़ जायेगा, और दूसरी बात यह कि सुशील गोयल की सफलता में यदि उत्तम अग्रवाल की भूमिका बनी/दिखी, तो इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति तथा व्यवस्था में उत्तम अग्रवाल को महत्त्व मिलने लगेगा । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में उत्तम अग्रवाल अभी पूरी तरह अलग-थलग पड़े हुए हैं; वह उछल-कूद तो खूब मचाये रखते हैं, लेकिन उन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता है - उनके अपने भी नहीं । यही कारण है कि उत्तम अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में जो धीरज खंडेलवाल वाइस प्रेसीडेंट बनने की लाइन में हैं, उन धीरज खंडेलवाल की उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है - खुद धीरज खंडेलवाल भी अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं । इसीलिए, अब जब चुनाव सिर पर है तब भी धीरज खंडेलवाल चुनावी परिदृश्य से 'दूर' दूसरे कामों में व्यस्त हैं ।
सुशील गोयल की उम्मीदवारी को अतुल गुप्ता के समर्थन से जो ताकत मिलती है, वह उत्तम अग्रवाल के समर्थन की संभावना से बिगड़ भी जाती है - और यही बात अनिल भंडारी की उम्मीदवारी को बढ़त दिलाती लग रही है । लेकिन उनके साथ भी मुश्किलें कम नहीं हैं । दरअसल प्रफुल्ल छाजेड़ के भरोसे एक अनिल भंडारी ही नहीं हैं, बल्कि वेस्टर्न रीजन के एनसी हेगड़े तथा सेंट्रल रीजन के मनु अग्रवाल भी चुनावी मैदान में कूदे हुए हैं । इन्हें प्रफुल्ल छाजेड़ के उम्मीदवार 'बी' और उम्मीदवार 'सी' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । इसके चलते प्रफुल्ल छाजेड़ के समर्थकों व नजदीकियों के बीच असमंजस बन गया है, और इस असमंजस के चलते प्रफुल्ल छाजेड़ ग्रुप में एकता बने रह पाने को लेकर संदेह पैदा हो गया है । अनिल भंडारी और सुशील गोयल को अलग अलग कारणों से मुसीबत में घिरा पाकर वेस्टर्न रीजन के निहार जंबुसारिया व जय छैरा तथा सदर्न रीजन के अब्राहम बाबु व जी शेखर अपनी अपनी दाल गलाने की कोशिशों में हैं । दरअसल अलग अलग कारणों से इनके लिए काउंसिल सदस्यों के बीच समर्थन का 'भाव' तो है, लेकिन इस भाव को वोट में बदलने के लिए जो मैकेनिज्म चाहिए होता है - उसका इनके पास नितांत अभाव है । यह तो बस किस्मत के भरोसे हैं । इन्हें भी पता है कि इंस्टीट्यूट को कई (वाइस) प्रेसीडेंट किस्मत के चलते ही मिले हैं ।