नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य के रूप में गौरव गर्ग ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की भूमिका के लिए ज्ञान पेलते हुए एक बार फिर मुँह खोला, और अपनी फजीहत करा बैठे । गौरव गर्ग ने सोशल मीडिया में आज इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों से गुहार लगाई कि उन्हें नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की भूमिका के बारे में विचार करना चाहिए - जो सिर्फ सेमिनार्स कराने का प्लेटफॉर्म बनी हुई है । मजे की बात यह है कि इससे पहले, नबंवर महीने में सोशल मीडिया में ही गौरव गर्ग ने रीजन के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से गुहार लगाई थी कि वह रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों पर दबाव बनाये कि वह प्रोफेशन के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें । लोगों का पूछना/कहना है कि गौरव गर्ग को यदि यह लगता है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की दशा-दिशा सुधारने की जिम्मेदारी या तो रीजन के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की है, और या इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों की - तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि इस संदर्भ में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में उनकी खुद की जिम्मेदारी क्या है ? लोगों का पूछना/कहना है कि गौरव गर्ग को ऐसा क्यों लगता है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए बड़े बड़े वायदों के साथ चुनाव तो वह लड़ेंगे और काउंसिल के सदस्य बनेंगे - उसके बाद वह तो भौंडा सा नाच नाचेंगे और फूहड़ से ठुमके लगायेंगे/दिखायेंगे, तथा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की दशा-दिशा सुधारने का काम करने के लिए वह दूसरे लोगों से कहेंगे ।
गौरव गर्ग ने पिछले दिनों एक बेहूदा नाच नाचते हुए अपना एक वीडियो सोशल मीडिया में लगाया/दिखाया था, उसका संदर्भ देकर ही लोग गौरव गर्ग को निशाना बना रहे हैं । अन्य कई लोगों का भी कहना है कि गौरव गर्ग ने चूँकि नाचने की कोई शिक्षा या ट्रेनिंग नहीं ली है, इसलिए उनके नाच के भौंडे, फूहड़ व बेहूदा होने पर टीका-टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए - लेकिन एक वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट तथा रीजनल काउंसिल सदस्य होने के नाते उनसे कुछ मैच्योर व्यवहार की उम्मीद तो की ही जाती है, जिसे दिखाने/जताने में वह पूरी तरह असफल रहे हैं । इंस्टीट्यूट की 'व्यवस्था' से थोड़ा सा भी परिचित चार्टर्ड एकाउंटेंट जानता/समझता है कि रीजनल काउंसिल्स की भूमिका बहुत सीमित है; ऐसे में, करीब डेढ़ वर्ष रीजनल काउंसिल में रहने के बाद यदि गौरव गर्ग को अब यह पता चला है कि रीजनल काउंसिल्स की तो ज्यादा कोई भूमिका ही नहीं है - तो लोगों का यह पूछना स्वाभाविक ही है कि अभी तक क्या वह सो रहे थे, और रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में कर क्या रहे थे ? लोगों का यह भी कहना है कि अब जब उन्हें समझ में आ गया है कि रीजनल काउंसिल की सेमिनार्स करने/करवाने के अलावा कोई भूमिका ही नहीं है, और उसकी भूमिका के बारे में पुनर्विचार करने का काम इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों को ही करना है, तब रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में वह खुद क्या करेंगे - उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए; और नाचने का प्रशिक्षण लेना चाहिए, ताकि लोग उन्हें अच्छे से नाचते हुए देख सकें ।
कुछेक लोगों का हालाँकि कहना/बताना है कि ऐसा नहीं है कि गौरव गर्ग ने रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के हालात सुधारने के लिए प्रयास नहीं किए हैं । रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के तौर-तरीकों तथा उनके रवैये के विरोध में गौरव गर्ग ने पिछले वर्ष मई महीने में रीजनल काउंसिल के कार्यालय में धरना देने की घोषणा की थी - और जोरदार तरीके से उसकी तैयारी की थी । लेकिन जब धरना देने का समय आया, तो उनके धरने के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पहुँचे उनके समर्थक यह देख कर हक्के-बक्के रह गए कि गौरव गर्ग धरना देने की बजाए - पदाधिकारियों के साथ बैठ कर चाय पी रहे हैं और हँसी-मजाक कर रहे हैं । गौरव गर्ग की धरना देने की घोषणा तो नौटंकी साबित हुई ही, गौरव गर्ग ने कभी यह स्पष्ट करने की भी जरूरत नहीं समझी कि जिन मुद्दों को लेकर उन्होंने धरना देने की घोषणा की थी, उन मुद्दों का आखिर हुआ क्या ? हुआ सिर्फ यह कि उसके बाद गौरव गर्ग रीजनल काउंसिल की कामकाजी समस्याओं को लेकर कभी रीजन के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से तो कभी इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों से कुछ करने की गुहार लगाने लगे - और खुद नाच दिखाने में लग गए ।