नई दिल्ली । बैंक में अटकी/फँसी पड़ी डिस्ट्रिक्ट ग्रांट की रकम को लेकर लंबी-चौड़ी सफाई देती ईमेल लिख/भेज कर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन रोटेरियंस के बीच न सिर्फ मजाक का विषय बन गए हैं, बल्कि खासी फजीहत के शिकार हो बैठे हैं । एक तरफ लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि शरत जैन को दीपक गुप्ता के 'फटे में अपना पैर घुसाने' की जरूरत आखिर क्यों पड़ी, तो दूसरी तरफ उनके नजदीकियों का कहना/बताना है कि शरत जैन ने उक्त ईमेल इसलिए लिखी है ताकि दीपक गुप्ता अपनी जेब से खर्च की गई डिस्ट्रिक्ट ग्रांट की रकम उनसे लेने पर जोर न दें । शरत जैन के नजदीकियों का कहना है कि अपनी जेब से खर्च की गई रकम को डूबता देख कर दीपक गुप्ता ने शरत जैन से तकादा करना शुरू किया है कि डिस्ट्रिक्ट ग्रांट को चूँकि उन्हें सीओएल का चुनाव जितवाने के लिए 'खर्च' किया गया था, इसलिए वह रकम उन्हें चुकाना चाहिए । दीपक गुप्ता ने यहाँ तक ऑफर दिया है कि पूरी न सही, तो कम से कम आधी रकम तो शरत जैन को देना ही चाहिए । दीपक गुप्ता का तर्क है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीतने के लिए जिस तरह से ललित खन्ना ने मोटी रकम खर्च की है, वैसे ही शरत जैन को भी सीओएल प्रतिनिधि बनने की कुछ तो कीमत चुकाना ही चाहिए । दीपक गुप्ता ने भी कुछेक लोगों के बीच रोना रोया है कि शरत जैन के लिए वोट पक्के करने के लिए ही उन्हें डिस्ट्रिक्ट ग्रांट की रकम अपने अकाउंट से देने की जरूरत पड़ी थी, अन्यथा उन्हें क्या जरूरत थी कि वह डिस्ट्रिक्ट ग्रांट की रकम अपने अकाउंट से देते ?
शरत जैन ने लेकिन रकम देने से बचने के लिए दीपक गुप्ता के प्रति हमदर्दी दिखाती हुई ईमेल लिखने व तमाम लोगों को भेजने का 'रास्ता' पकड़ा है । शरत जैन की ईमेल ने दीपक गुप्ता की बेवकूफी के चलते गंभीर होते गए एक सामान्य से मामले को और भी ज्यादा गंभीर बना दिया है, जिसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आलोक गुप्ता से भी उन्हें लताड़ सुनने को मिली है । मामले की क्रोनोलॉजी बड़ी सामान्य सी है, जो शरत जैन ने भी अपनी ईमेल में बताई है - पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता ने कुछेक क्लब्स के लिए डिस्ट्रिक्ट ग्रांट्स के प्रस्ताव स्वीकार किए, जिन्हें रोटरी फाउंडेशन ने भी मंजूर कर लिया और ग्रांट्स का पैसा डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अकाउंट में आ गया; डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अकाउंट से पैसे क्लब्स को दिए जाने थे, लेकिन दीपक गुप्ता ने चूँकि डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अकाउंट में अपने हस्ताक्षर मान्य नहीं करवाए थे और न उक्त अकाउंट की केवाईसी प्रक्रिया पूरी करवाई थी - इसलिए डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अकाउंट से पैसे ट्रांसफर नहीं हो सकते थे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में इसे दीपक गुप्ता के निकम्मेपन की हद ही कहा जायेगा कि 365 दिन के अपने गवर्नर-काल में वह डिस्ट्रिक्ट ग्रांट अकाउंट में अपना नाम नहीं डलवा सके । विडंबना यह है कि जब यह बात सामने आई, तब भी दीपक गुप्ता ने बैंक अकाउंट में अपने हस्ताक्षर मान्य करवाने में दिलचस्पी नहीं ली । दरअसल उस समय वह शरत जैन की सीओएल की उम्मीदवारी के पक्ष में वोटों की सौदेबाजी करने में व्यस्त थे । रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के पदाधिकारियों को झूठे ही 'अर्जेन्टली रिक्वायर्ड' का वास्ता देकर दीपक गुप्ता ने पैसों के ऐडजस्टमेंट का आश्वासन ले लिया था । लेकिन अब पोल खुल रही है कि उनके लिए 'अर्जेन्टली रिक्वायर्ड' दरअसल सीओएल के चुनाव के लिए वोटों का सौदा करना था, और वह बैंक अकाउंट को नियमानुसार लाने/बनाने में समय बर्बाद नहीं कर सकते थे । मामले में शरत जैन द्वारा गैरजरूरी रूप से दखल देने से लोगों को यह और 'नजर' आ रहा है कि डिस्ट्रिक्ट ग्रांट का पैसा उनके चुनाव में ही 'इस्तेमाल' हुआ है ।