Friday, March 27, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में कोरोना वायरस से उपजे हालात एक तरफ तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज के लिए 'वरदान' बने हैं, तो दूसरी तरफ राजा साबू के लिए सीओएल के मामले में अपनी दाल गलाने का 'मौका'

पानीपत । कोरोना वायरस की आपदा से निपटने के लिए अपनाई गई लॉकडाउन व कर्फ्यू जैसी देशव्यापी व्यवस्था डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज के लिए वरदान साबित हुई है । दरअसल इस व्यवस्था के चलते अप्रैल के पहले सप्ताह में होने वाले पेट्स कार्यक्रम के स्थगित होने से रमेश बजाज ने बड़ी राहत की साँस ली है । वास्तव में, लॉकडाउन व कर्फ्यू जैसी व्यवस्था के चलते अधिकतर डिस्ट्रिक्ट्स में पेट्स आदि कार्यक्रम स्थगित ही हुए हैं - लेकिन इसके कारण अधिकतर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट उदाश व परेशान ही हुए हैं, क्योंकि अधिकतर डिस्ट्रिक्ट्स में पेट्स की तैयारियाँ काफी हद तक पूरा हो चुकी थीं, और पेट्स के स्थगित होने से न केवल उन तैयारियों पर पानी फिर गया है, बल्कि काफी नुकसान होने के भी अनुमान हैं । ऐसे में, पेट्स के स्थगित होने से एक अकेले रमेश बजाज के 'खुश' होने का कारण यह बताया/सुना जा रहा है कि पेट्स आयोजन को लेकर दरअसल उनकी कोई तैयारी ही नहीं थी । पेट्स की तैयारी को लेकर प्रेसीडेंट्स इलेक्ट के बीच इस बात को लेकर खासा असमंजस रहा था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट की तरफ से उन्हें कोई सूचना और जानकारी ही नहीं मिल रही थी कि पेट्स के संबंध में उन्हें क्या करना है ? प्रेसीडेंट्स इलेक्ट का ही कहना/बताना रहा कि उन्होंने रमेश बजाज और उनके नजदीकियों से भी पेट्स की तैयारी को लेकर पूछताछ की, लेकिन हर कहीं से उन्हें टालमटोल वाले जबाव ही सुनने को मिले । रमेश बजाज के कुछेक नजदीकियों का तो यहाँ तक कहना/बताना रहा कि पेट्स को लेकर क्या तैयारी है, इसका खुद उन्हें ही कुछ पता नहीं है । ऐसे में समझा जाता है कि पेट्स को लेकर रमेश बजाज की वास्तव में कोई तैयारी थी ही नहीं, और वह अभी सोच ही रहे थे कि उन्हें करना क्या है कि लॉकडाउन व कर्फ्यू जैसी व्यवस्था लागू हो गई । जाहिर तौर पर लॉकडाउन व कर्फ्यू की यह व्यवस्था रमेश बजाज के लिए 'वरदान' बन गई । 
पेट्स से पहले एजीटीएस का आयोजन भी रमेश बजाज को रद्द करना पड़ा था, हालाँकि उसके लिए लॉकडाउन या कर्फ्यू जिम्मेदार नहीं था; और उससे भी पहले प्री-पेट्स के आयोजन को लेकर भारी विवाद पैदा हो गया था और उसका हो पाना खतरे में पड़ गया था । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा ने मामला न संभाला होता, तो प्री-पेट्स का आयोजन भी नहीं ही हो पाता । पेट्स का आयोजन भी पहले कुफ्री में होना तय हुआ था, फिर वह कैंसिल हुआ और उसके पंचकुला में होने की बात सुनी गई - उसके बाद पेट्स के बारे में कुछ नहीं सुना गया । कोरोना वायरस दुनिया भर के लोगों के लिए भले ही अभिशाप साबित हो रहा हो, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में पेट्स करने को लेकर रमेश बजाज के लिए यह राहत पहुँचाने वाला साबित हुआ है ।  रमेश बजाज के कुछेक नजदीकियों का कहना है कि उन्हें अपनी टीम के सदस्यों का पर्याप्त सहयोग नहीं मिल रहा है, इसलिए उनके काम ठीक से संयोजित नहीं हो पा रहे हैं; लेकिन उनकी टीम के ही कुछेक सदस्यों का कहना है कि रमेश बजाज खुद कन्फ्यूज हैं और कार्यक्रमों को लेकर उनके पास कोई योजना या विजन ही नहीं है - और इसलिए उनके आयोजनों को लेकर अनिश्चिता बनी हुई है । मजे की बात यह है कि रमेश बजाज को अपने गवर्नर-वर्ष के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर अरुण शर्मा का ही उचित सहयोग नहीं मिल पा रहा है, हालाँकि अरुण शर्मा की तरफ से सुनने को मिल रहा है कि रमेश बजाज ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर तो बना दिया है - लेकिन अपने कार्यक्रमों को लेकर वह उनसे कोई विचार-विमर्श नहीं कर रहे हैं और न उनसे कोई सलाह ही ले रहे हैं । ऐसे में, लोगों के बीच चर्चा यह है कि रमेश बजाज आखिर सलाह ले किस से रहे हैं ?
डिस्ट्रिक्ट में एक तरफ तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज की आयोजनों को लेकर फजीहत हो रही है, तो दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा की कुछेक गतिविधियों को लेकर खूब वाहवाही हो रही है । लोगों को यह देख/सुन/जान कर और मजा आ रहा है कि जितेंद्र ढींगरा की तारीफ करने में पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं । कोरोना से मुकाबले को लेकर जितेंद्र ढींगरा ने सोशल मीडिया में एक संदेश प्रसारित किया, जिसकी राजा साबू ने भरपूर तरीके से तारीफ की - ऐसी तारीफ, जैसी किसी और ने नहीं की । जितेंद्र ढींगरा के नजदीकियों के अनुसार, राजा साबू आजकल जितेंद्र ढींगरा की तारीफ करने के बहाने व मौके ढूँढ़ते रहते हैं - और जैसे ही कोई मौका मिलता है, तड़ से उनकी तरफ कर देते हैं । कोरोना से मुकाबले को लेकर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने भी सोशल मीडिया में दो/एक संदेश प्रसारित किए हैं, लेकिन वह जितेंद्र ढींगरा जैसे खुशकिस्मत नहीं 'दिखे' कि राजा साबू की तारीफ उन्हें भी मिले । अच्छे कामों की तारीफ के मामले में राजा साबू की यह पक्षपातपूर्ण भूमिका दरअसल उनके स्वार्थ से जुड़ी देखी जा रही है । राजा साबू के तौर-तरीकों से परिचित लोगों का कहना/बताना है कि राजा साबू किसी की तब ही तारीफ करते हैं, जब उन्हें अपना कोई काम निकालना होता है - अन्यथा तो वह आदमी को 'आदमी' भी नहीं समझते । समझा जा रहा है कि राजा साबू अपने किसी आदमी को सीओएल के लिए चयनित करवाने के उद्देश्य से जितेंद्र ढींगरा की तारीफों में लगे हुए हैं - उन्हें 'पता' है कि जितेंद्र ढींगरा ही सीओएल के लिए चयन होने/करने में निर्णायक भूमिका निभायेंगे । सीओएल के लिए अभी हालाँकि किसी/किन्हीं नामों की चर्चा नहीं है, पर माना/समझा जा रहा है कि राजा साबू और जितेंद्र ढींगरा की जिस नाम पर सहमति बन जायेगी - वह सीओएल के लिए 'चुन' लिया जायेगा । ऐसे में, मनमोहन सिंह का पलड़ा भारी लग रहा है, क्योंकि एक वही हैं जिनकी दोनों तरफ अच्छी पैठ है । वह हालाँकि सीओएल में एक बार जा चुके हैं, लेकिन इससे क्या होता है - नेता लोग राजी हो जाएँ, तो वह दूसरी बार भी सीओएल में चले जायेंगे !