चंडीगढ़ । रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के साथ 'मीट द प्रेसीडेंट' इंटरसिटी, रजिस्ट्रेशन चार्ज को लेकर गंभीर विवाद में फँस गई है । चंडीगढ़ ज्यूडिशियल एकेडमी में हाई टी के साथ 10 दिसंबर को होने वाली इस इंटरसिटी में भाग लेने वाले लोगों के लिए 600 रुपए का रजिस्ट्रेशन चार्ज रखा गया है, जो कई लोगों को बहुत ज्यादा लग रहा है । आपत्ति करने वाले लोगों का कहना है कि इंटरसिटी का आयोजन किसी स्टार होटल में हो रहा होता, तब तो 600 रुपए लेना समझ में आता, लेकिन चंडीगढ़ ज्यूडिशियल एकेडमी में तो चूँकि काफी कम पैसों में चाय-पानी हो जाता है - इसलिए यहाँ होने वाले कार्यक्रम के लिए इतने पैसे क्यों लिए जा रहे हैं ? कुछेक लोगों का यह भी कहना/पूछना है कि इंटरसिटी के आयोजन की जिम्मेदारी सँभालने वाले रोटरी क्लब चंडीगढ़ मिडटाउन के वरिष्ठ सदस्य बलराम गुप्ता चंडीगढ़ ज्यूडिशियल एकेडमी से जुड़े हुए हैं, इसलिए उम्मीद की जाती है कि यह और भी रियायती दरों पर उपलब्ध हो गया होगा - तब भी इंटरसिटी में भाग लेने वाले लोगों से ज्यादा पैसे क्यों लिए जा रहे हैं ? इंटरसिटी के आयोजन से जुड़े लोग लेकिन इस तरह की शिकायतों व आपत्तियों पर ध्यान देने और/या इनका जबाव देने की कोशिश करते नहीं देखे जा रहे हैं । अनौपचारिक बातचीत में उनका कहना है कि इस तरह की शिकायतें व आपत्तियाँ कार्यक्रम पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेंगी; और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के साथ फोटो खिंचवाने के लालच में लोग इस इंटरसिटी में भागे चले आयेंगे - इसलिए उन्हें इन शिकायतों व आपत्तियों की कोई परवाह नहीं है ।
कई लोगों का मानना और कहना लेकिन यह है कि रजिस्ट्रेशन चार्जेज को लेकर की जा रही शिकायतों व आपत्तियों से इंटरसिटी में भाग लेने वालों की संख्या पर भले ही कोई प्रतिकूल असर न पड़े, लेकिन इंटरसिटी की चमक तो धुँधली पड़ ही रही है और 'मीट द प्रेसीडेंट' इंटरसिटी विवाद में फँस गई है । लोगों का खुला आरोप है कि प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन की खातिरदारी में खर्च होने वाली रकम जुटाने के लिए रजिस्ट्रेशन चार्जेज बढ़ा-चढ़ा कर बसूला जा रहा है, और इस तरह लोगों के पैसे के बल पर कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने अपनी राजनीति चमकाने/दिखाने का जुगाड़ बैठाया है । इस संदर्भ में लोगों को सबसे ज्यादा निराशा पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू के रवैये से हुई है । रजिस्ट्रेशन चार्जेज के बाबत जो शिकायतें व आपत्तियाँ हैं, उन्हें राजा साबू तक भी पहुँचाया गया है, किंतु राजा साबू आँखों पर पट्टी बाँध धृतराष्ट्र बने हुए हैं और रोटरी के नाम पर लूट-खसोट होने दे रहे हैं । दरअसल जब से रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के वरिष्ठ सदस्य एमपी गुप्ता ने चिट्ठियाँ लिख लिख कर डिस्ट्रिक्ट के खर्चों का हिसाब माँगना शुरू किया है, तब से डिस्ट्रिक्ट के लोगों में जागरूकता आई है और वह अपने अपने तरीके से विभिन्न आयोजनों के आय और व्यय में दिलचस्पी लेने लगे हैं । उल्लेखनीय है कि एमपी गुप्ता के विभिन्न मौकों के हिसाब माँगने के प्रयासों को कुल मिलाकर अभी तक कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है; किंतु उनकी असफलता की बहुत बड़ी सफलता यह है कि अब दूसरे लोग भी सवाल करने/उठाने लगे हैं - और इस स्थिति ने डिस्ट्रिक्ट को अपनी बपौती समझने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को बेचैन व परेशान कर दिया है ।
मजे की और विडंबना की स्थिति यह है कि एमपी गुप्ता की मुहिम को कामयाब बनाने का काम खुद गवर्नर्स लोगों के रवैये ने ही किया है । शुरुआत निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दिलीप पटनायक के गवर्नर-काल के हिसाब माँगने से हुई । एमपी गुप्ता ने पिछले रोटरी वर्ष के हिसाब सार्वजनिक करने की माँग की, तो पहले तो उनकी माँग को अनसुना करके टाल दिया गया; एमपी गुप्ता जब चुप होते हुए नहीं दिखे तो हिसाब देना टालने के लिए बहानेबाजी शुरू कर दी गई । इस के बाद भी एमपी गुप्ता जब नियमों का हवाला देते हुए हिसाब माँगने की बात पर अड़े रहे, तो आधे-अधूरे हिसाब देने की कार्रवाई की गई । एमओपी के नियमों तथा दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए एमपी गुप्ता अभी भी विभिन्न सोर्सेज से जुटाए गए पैसों का, रोटरी फाउंडेशन से मिली ग्रांट्स के पैसों का, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को मिले तथा उसके जरिए खर्च हुए पैसों का जो हिसाब सार्वजनिक करने की माँग कर रहे हैं - उसे लगातार अनसुना किया जा रहा है, तथा जबाव को टाला जा रहा है । हद की बात यह है कि उत्तराखंड की त्रासदी के नाम पर जो रकम इकठ्ठा की गई, उसके खर्च के ब्यौरे को भी छिपाया जा रहा है । हिसाब-किताब संबंधी सवालों को अनसुना करने तथा जबाव टालने के मामले में राजा साबू की सहमति के संकेत मिलने से मामला और गर्मा गया है । लोगों के बीच चर्चा छिड़ी हुई है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और उसे अपने इशारों पर चलाने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स आखिर रोटरी के पैसों में इतनी क्या गड़बड़ी और हेराफेरी करते हैं कि हिसाब देने में उनकी नानी मरती है ? इस तरह एमपी गुप्ता को गवर्नर-ऑफिस से अपने सवालों के उचित और पर्याप्त जबाव भले ही न मिले हों, किंतु उनके सवालों तथा उनके सवालों से बचते/छिपते दिख रहे गवर्नर्स के रवैयों ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को सावधान व जागरूक बनाने का काम अवश्य किया है ।
लोगों की इसी जागरूकता का नतीजा है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के सानिध्य में होने वाली इंटरसिटी के लिए बसूले जा रहे चार्जेज सवालों के घेरे में आ गए हैं - और इस इंटरसिटी से जुड़े बड़े पदाधिकारियों में से किसी के लिए भी बसूली जा रही 600 रुपए की रकम को जस्टिफाई करने की हिम्मत नहीं हो रही है । अनौपचारिक बातचीतों में तो बताया/समझाया जा रहा है कि किसी भी आयोजन में कई तरह के काम होते हैं, जिसमें पैसे खर्च होते हैं और यह खर्च जोड़ कर ही रजिस्ट्रेशन चार्ज तय किया जाता है; लेकिन औपचारिक रूप से यह हिसाब देने/बताने से जिस तरह से बचा जा रहा है, उससे संदेह पुष्ट होता जा रहा है कि रजिस्ट्रेशन से जुटाए गए पैसे कुछेक बड़े नेताओं की जेब गर्म करने के काम भी आयेंगे । शिकायत और आपत्ति करने वाले लोगों का कहना है कि उन्हें भी पता है कि किसी भी आयोजन में कई तरह के खर्च होते ही हैं; हम यह कहाँ कह रहे हैं कि उन खर्चों को हमसे न लिया जाए - हम तो सिर्फ यह बताने के लिए कह रहे हैं कि जो पैसा लिया जा रहा है, वह कैसे कैसे और कहाँ कहाँ खर्च हो रहा है ? 'मीट द प्रेसीडेंट' के आयोजक पदाधिकारी चूँकि यह बताने से बच रहे हैं, इसलिए लोगों को यह कहने का मौका मिला है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के नाम पर कुछेक बड़े लोगों ने अपनी अपनी जेब भरने का जुगाड़ बैठा लिया है ।