Monday, October 1, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल की उम्मीदवारी के लिए एक अलग तरीके से, प्रोफेशन के प्रति अपनी सोच और अपने विचारों को प्रस्तुत करने के बावजूद, लोगों की तरफ से मिले ठंडे रिएक्शन ने संजय कुमार अग्रवाल और उनके साथियों को बुरी तरह से निराश किया है

नई दिल्ली । गुड़गाँव ब्राँच के पूर्व चेयरमैन संजय कुमार अग्रवाल ने सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करते हुए अपना 'विजनरी' रूप तो बहुत ही जोरदार ढंग से प्रस्तुत किया है, लेकिन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उनके 'विजन' से उनकी उम्मीदवारी के लिए अपील पैदा होती नहीं दिख रही है । संजय कुमार अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि लोग उनकी बातें सुनते/पढ़ते तो हैं, लेकिन 'रिएक्ट' नहीं करते हैं - उत्साहित नहीं होते हैं । नजदीकियों के अनुसार, संजय कुमार अग्रवाल और उनकी टीम के सदस्यों को उम्मीद थी कि वह एक अलग तरीके से, प्रोफेशन के प्रति अपनी सोच और अपने विचारों को लेकर लोगों के बीच जायेंगे - तो चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक नई ऊर्जा से भर जायेंगे और देखेंगे/सोचेंगे कि उनके बीच प्रोफेशनली उनकी फिक्र करने वाला उम्मीदवार आया है; और यह देख/सोच कर उन्हें हाथों-हाथ लेंगे । लेकिन लोगों की तरफ से मिले ठंडे रिएक्शन ने संजय कुमार अग्रवाल और उनकी टीम के सदस्यों को बुरी तरह से निराश किया है । किसी ने मजाक में कहा कि संजय कुमार अग्रवाल ने जिस तरह की बातें की हैं, उनमें प्रोफेशन में 'अच्छे दिन' लाने का वायदा है; लोग लेकिन 'अच्छे दिन' के वायदे से डरे हुए हैं - 'अच्छे दिन' के वायदे में ठगे जाने का उनका अनुभव चूँकि ताजा ताजा है, इसलिए संजय कुमार अग्रवाल की बातों में दिलचस्पी लेने में किसी ने जरूरत नहीं समझी । प्रोफेशन से जुड़े वरिष्ठ लोगों का यह भी कहना है कि तकनीकी विकास के चलते कई क्षेत्रों में कामकाज में जो परिवर्तन आए हैं, उसे और उसके प्रभाव को गहराई से समझे बिना उसकी चकाचौंध से प्रभावित होकर संजय कुमार अग्रवाल जिस तरह चार्टर्ड एकाउंटेंट प्रोफेशन में भी उसी फार्मूले को इस्तेमाल करने की बात कर रहे हैं - उससे वह साबित कर रहे हैं कि उन्होंने न उस 'परिवर्तन' को गहराई से समझा है और न चार्टर्ड एकाउंटेंट प्रोफेशन को तथा उससे जुड़े लोगों की जरूरतों को ही जाना/समझा है । 
संजय कुमार अग्रवाल 'बिना दुकान के सामान बेचने' और 'बिना कोई गाड़ी रखे टैक्सी की सर्विस देने' जैसे कामों का उदाहरण देते हुए आह्वान कर रहे हैं कि चार्टर एकाउंटेंट्स भी 'रिकॉर्डिंग' 'रिपोर्टिंग' के भरोसे कब तक काम करते रहेंगे ? बिना कैश के खरीदारी करने की सुविधा को वह बड़ी उपलब्धि की तरह पेश कर रहे हैं । उनके उदाहरण और तर्क से पहली ही नजर में लग गया है कि उन्हें मामलों की गहरी जानकारी नहीं है, और वह सिर्फ ऊपर ऊपर की बातों को लेकर जुमलेबाजी कर रहे हैं । दरअसल नई आर्थिक नीतियों और तकनीकी विकास ने कामकाज और समाज पर व्यापक असर डाला है, और कई कामकाज के रूपों में भारी बदलाव हुए हैं । इन बदलावों के चलते कामकाज की शक्ल तो बदली है, लेकिन बुनियादी समस्याएँ जहाँ की तहाँ ही बनी रही हैं । जैसे 'बिना दुकान के सामान बेचने' की व्यवस्था में बदलाव सिर्फ यही तो हुआ है कि दुकान वाले स्टॉक रखने वाले बन गए और दुकान में काम करने वाले कूरियर ब्यॉय बन गए । 'बिना कोई गाड़ी रखे टैक्सी की सर्विस देने' वाला इसीलिए तो सर्विस दे पा रहा है, क्योंकि अपने खून-पसीने की कमाई की बचत से गाड़ी खरीदने वाला और उसकी ड्राईवरी करने वाला मौजूद है । तकनीकी विकास ने चूँकि लोगों के बीच संपर्क और पहुँच को आसान बना दिया है, इसलिए उसका फायदा उठा कर कुछेक लोगों ने नेटवर्किंग का विस्तार करके कामकाज को एक नया रूप दिया है । किंतु यह नया रूप दिया तो उन लोगों के भरोसे ही है, जो पहले से ही काम कर रहे थे - और नया रूप देने का काम करने वाले भी कितने लोग हैं ? और इस नए रूप में जिन लोगों को फायदा भी हुआ है, उनकी संख्या भी कोई बहुत ज्यादा नहीं है - और उनका यह फायदा भी पहले के लोगों के नुकसान की कीमत पर ही हुआ है । इसे उपलब्धि भला कैसे माना जा सकता है ? कैश के बिना खरीदारी करने के दावे का भला क्या मतलब है ? यह ठीक है कि तकनीकी विकास के चलते कैश जेब में रखने की मजबूरी खत्म हो गई है, और कॉर्ड से खरीदारी करने की सुविधा है - लेकिन इस बात को 'बिना कैश के खरीदारी' करना कैसे कहा जा सकता है ? बिना कैश के खरीदारी करने का दूसरा तरीका - उधार लेना है । संजय कुमार अग्रवाल क्या इसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं ?
कामकाज के जो तौर-तरीके बदले हैं, उसका प्रभाव तो चार्टर्ड एकाउंटेंट के काम पर भी पड़ा है । संजय कुमार अग्रवाल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को 'रिकॉर्डिंग' और 'रिपोर्टिंग' के झंझट से मुक्ति दिलवाने का जो आह्वान कर रहे हैं, एंट्री का काम करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स तो उससे पहले से ही मुक्त हैं । सेंट्रल काउंसिल में पुनर्निर्वाचन के लिए उम्मीदवार बने राजेश शर्मा के बारे में तो लोग कहते ही हैं कि वह 'रिकॉर्डिंग' और रिपोर्टिंग' करते हुए एक चार्टर्ड एकाउंटेंट की तरह काम कहाँ करते हैं ? लेकिन सभी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स राजेश शर्मा जैसे तो नहीं हो सकते हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पंकज पेरिवाल के ऑफिस में पिछले दिनों इनकम टैक्स विभाग के अधिकारियों के आ धमकने के बाद पता चला कि पंकज पेरिवाल ने अपने दो क्लाइंट्स को अपने ऑफिस का पता इस्तेमाल करने का अधिकार दिया हुआ था । यह मुफ्त में तो नहीं ही दिया गया होगा, और इसके लिए कोई अधिकृत 'रिपोर्टिंग' और 'रिकॉर्डिंग' भी नहीं की गई होगी । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को 'रिकॉर्डिंग' और 'रिपोर्टिंग' से मुक्त करने/करवाने की इच्छा रखने वाले संजय कुमार अग्रवाल कहीं पंकज पेरिवाल से भी तो प्रेरणा नहीं ले रहे हैं ? उल्लेखनीय है कि कुछेक चार्टेड एकाउंटेंट्स जुगाड़ और तिकड़म से काम जुटा लेते हैं, और फिर उस काम को दूसरे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से करवाते हैं । निस्संदेह इससे काम करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को काम तो मिलता है, लेकिन इसे क्या आदर्श स्थिति कह सकते हैं ? संजय कुमार अग्रवाल जिस तकनीकी विकास पर 'उछल' रहे हैं, उसने देश में अमीर और गरीब के बीच की खाई को चौड़ी करने का ही काम किया है । प्रोफेशन में भी यही हुआ है - फर्जी और जुगाड़ू का काम करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स 'बड़े' बनते गए हैं, जबकि जेनुइन काम करने वाले लोगों की सिर्फ मुश्किलें ही बढ़ी हैं । संजय कुमार अग्रवाल अपने विजन में 'बिना दुकान के सामान बेचने' और 'बिना कोई गाड़ी रखे टैक्सी की सर्विस देने' जैसे जो उदाहरण दे रहे हैं, उसमें क्या सभी के लिए फलने-फूलने के मौके हैं ? यदि होते तो छोटे और मंझले दुकानदारों को बड़े स्टोर्स के कारण और शहरों में टैक्सी चालकों को टैक्सी सर्विस प्रोवाईडरों के कारण कामधंधे में नुकसान क्यों उठाना पड़ता ? 
तो क्या संजय कुमार अग्रवाल के विजन में सभी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए फलने-फूलने के मौके नहीं हैं, और उनका विजन तकनीकी विकास का सहारा लेकर सिर्फ कुछेक लोगों के लिए ही प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है ? दरअसल इसीलिए संजय अग्रवाल का विजन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच कोई दिलचस्पी और उत्साह पैदा करता हुआ नजर नहीं आया है । संजय कुमार अग्रवाल के कुछेक शुभचिंतकों का हालाँकि कहना है कि यह संजय कुमार अग्रवाल के विजन की नहीं, बल्कि संजय कुमार अग्रवाल की विफलता है - और वह इसलिए क्योंकि संजय कुमार अग्रवाल अपने विजन को लोगों के बीच प्रभावी व कन्विंसिंग तरीके से नहीं रख पा रहे हैं । कुछेक लोगों का यह भी मानना/कहना है कि अपने विजन के प्रति अपील पैदा करने के लिए संजय कुमार अग्रवाल को प्रमुखता से जिन बातों को रखना चाहिए, उनका चयन करने में वह विफल रहे हैं - और इस कारण लोगों के बीच उन्हें लेकर कोई उत्सुकता या समर्थन का भाव पैदा नहीं हुआ है और उनकी सारी कवायद बेकार जाती नजर आ रही है ।