नई दिल्ली । रमेश अग्रवाल पिछले करीब चार महीने से रूठे रहने और डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों से दूर दूर रहने के बाद, झक मार कर अंततः डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच वापस लौटते दिख रहे हैं । हाल-फिलहाल के दिनों में रमेश अग्रवाल को दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता के साथ अपने विरोध-पूर्ण रवैये को भूल कर उनके साथ अपने संबंध सुधारने के प्रयास करते हुए देखा गया है । उल्लेखनीय है कि रमेश अग्रवाल यूँ तो पहले से ही इन दोनों के खिलाफ थे, लेकिन डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन कमेटी) के चेयरमैन बनने के उनके प्रयासों में दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता ने जो अड़ंगा लगाया, उसके चलते रमेश अग्रवाल इन दोनों से और बुरी तरह नाराज हो गये । डीआरएफसी चेयरमैन बनना रमेश अग्रवाल की एक पुरानी हसरत है । संयुक्त डिस्ट्रिक्ट 3010 में भी उन्होंने इसके लिए प्रयास किया था, लेकिन वहाँ विनोद बंसल ने उनकी इस हसरत को पूरा नहीं होने दिया था । इस वर्ष तो रमेश अग्रवाल ने डीआरएफसी चेयरमैन बनने के लिए जी-तोड़ प्रयास किए थे - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन तो उनके नाम पर सहमत थे, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में दीपक गुप्ता और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के रूप में आलोक गुप्ता ने उनके नाम का विरोध किया । रमेश अग्रवाल ने इन दोनों की बड़ी खुशामदें/मिन्नतें भी कीं, और इन्हें तरह तरह की धमकियाँ भी दीं - दीपक गुप्ता के बारे में रमेश अग्रवाल ने कहा कि वह देखेंगे कि दीपक गुप्ता कैसे गवर्नरी करेगा; जबकि आलोक गुप्ता के लिए उन्होंने धमकी दी कि वह जानते हैं कि वह कैसे सतीश सिंघल को पैसे खिलाकर बेईमानी से जल्दी चुनाव करवा कर गवर्नर बना है, उसका तो मैं चुनाव ही रद्द करवा दूँगा । दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता पर लेकिन न रमेश अग्रवाल की खुशामदों का असर हुआ और न उनकी धमकियों का । रमेश अग्रवाल के लिए फजीहत की बात यह हुई कि डिस्ट्रिक्ट में उनके कट्टर 'दुश्मन' के रूप में देखे/पहचाने जा रहे जेके गौड़ डीआरएफसी चेयरमैन बन गए । इससे बौखला कर रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट से ही 'कुट्टी' कर ली और वह डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों से अनुपस्थित रहने लगे ।
लेकिन लगता है कि चार महीनों में रमेश अग्रवाल की अक्ल ठिकाने आ गई, और उन्होंने समझ लिया कि अपनी इस हरकत से तो फिर वह डिस्ट्रिक्ट क्या, रोटरी से ही बाहर हो जायेंगे । दरअसल रमेश अग्रवाल अपने आपको इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हैं; लेकिन इस प्रोजेक्शन के चलते उन्हें दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों के साथ-साथ बड़े रोटरी नेताओं से भी सुनने को मिला कि उनकी जब अपने ही डिस्ट्रिक्ट में कोई पूछ और सक्रियता नहीं है, तो दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स से समर्थन मिलने/पाने की वह कैसे और क्या उम्मीद कर सकते हैं ? इस आलोचना को सुनकर रमेश अग्रवाल को लगता है कि अपनी बेवकूफी का आभास हुआ । उनकी बेवकूफी वास्तव में यह थी कि उन्होंने समझा था कि वह डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे, तो डिस्ट्रिक्ट चल नहीं पायेगा - और तब डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारी मदद के लिए उनके पास दौड़े आयेंगे और डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में शामिल होने के लिए उनकी खुशामद करेंगे । रमेश अग्रवाल लेकिन यह देख कर और परेशान हो गए कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं और किसी ने भी उनकी परवाह नहीं की । डिस्ट्रिक्ट के लोगों और पदाधिकारियों का उनके प्रति रवैया रहा कि 'तुम रूठे, हम छूठे ।' रमेश अग्रवाल को सबसे तगड़ा झटका शरत जैन के रवैये से लगा । शरत जैन उनके ही क्लब के सदस्य हैं और इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद पर हैं । रमेश अग्रवाल को उम्मीद रही कि शरत जैन डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में उनकी उपस्थिति को सम्मानजनक तरीके से संभव बनाने में उनकी मदद करेंगे । लेकिन रमेश अग्रवाल के रूठे रहने में शरत जैन को अपना फायदा दिखा - डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में रमेश अग्रवाल उपस्थित होते/रहते, तो डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर होने के बावजूद शरत जैन को ज्यादा तवज्जो नहीं मिलती; लिहाजा अपने स्वार्थ में शरत जैन ने रमेश अग्रवाल की कोई परवाह ही नहीं की और उन्हें डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग ही पड़ा रहने दिया ।
डिस्ट्रिक्ट में खुद को अलग-थलग पड़ा देख तथा इसके चलते दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों व बड़े रोटरी नेताओं के बीच हो रही किरकिरी का सामना करते हुए रमेश अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में अपनी उपस्थिति बनाने/दिखाने के लिए खुद से प्रयास करने के लिए मजबूर होना पड़ा । अपने इस प्रयास के तहत रमेश अग्रवाल ने एक तरफ तो दीपक गुप्ता व आलोक गुप्ता जैसे आने वाले वर्षों के पदाधिकारियों से अपने बिगड़े संबंधों को सुधारने का काम शुरू किया, और दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में शामिल होना/दिखना शुरू किया । इसी के चलते हाल ही में वह सुभाष जैन के क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल - के दीवाली उत्सव कार्यक्रम में लोगों को नजर आए । इस कार्यक्रम को क्लब की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले अमित गुप्ता के चुनाव-अभियान के कार्यक्रम के रूप में देखा/पहचाना गया था; इस नाते इस कार्यक्रम में रमेश अग्रवाल की उपस्थिति को राजनीतिक रंग भी मिला । रमेश अग्रवाल ने अपनी चिढ़-भरी बातों से अपनी उपस्थिति को लेकिन राजनीतिक रंग देने के साथ-साथ विवादपूर्ण भी बना लिया । हुआ दरअसल यह कि कार्यक्रम में मौजूद लोग गाजियाबाद के कविनगर रामलीला मैदान में आयोजित दशहरा मेले में लगे रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3012 के स्टॉल से रोटरी को होने वाले फायदे की चर्चा कर रहे थे । उक्त स्टॉल की गतिविधियाँ चूँकि चल रही थीं, इसलिए वह और उसकी कामयाबी हर किसी की जुबान पर थी । लोगों के बीच चर्चा थी कि रोटरी में ऐसा अभिनव प्रयोग पहली बार हुआ है, और इसके चलते आम लोगों के बीच रोटरी की तथा रोटरी समाज में डिस्ट्रिक्ट 3012 की पहचान और साख में खासा इजाफा हुआ है । लोगों के बीच इस तरह की चर्चा सुनकर रमेश अग्रवाल के पता नहीं क्यों तन-बदन में जैसे आग लग गई, जिसकी जलन में अपने भाषण में उन्होंने लोगों को आदर्श पेला कि हमें सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना चाहिए, और उसकी तारीफ या उसका गुणगान या उसका दिखावा नहीं करना चाहिए । रमेश अग्रवाल से इस तरह की बातें सुनकर लोग भड़क गए और उनके बीच चर्चा चल पड़ी कि यह आदमी खुद तो नल की चार टोटियाँ लगवाता है, तो उसका उद्घाटन मंत्रियों से करवाता है, उसकी फोटो सोशल मीडिया में जगह जगह प्रचारित करता है, और जगह जगह उसका बखान करता फिरता है - और यहाँ भाषण दे रहा है कि हमें सिर्फ काम पर ध्यान देना चाहिए और उसकी तारीफ या उसका गुणगान या उसका दिखावा नहीं करना चाहिए ।
लोगों की इस तरह की बातों से डिस्ट्रिक्ट में अपनी उपस्थिति और सक्रियता दिखाने की रमेश अग्रवाल की कोशिशों में एक नया विवाद जुड़ गया है । उन्हें जानने वाले लोगों का कहना है कि अपनी बातों और अपनी हरकतों से तमाम लोगों को अपना 'दुश्मन' और विरोधी बना चुके रमेश अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट में पूरी तरह अलग-थलग पड़ चुके है, लेकिन अभी भी वह कोई सबक नहीं सीख रहे हैं और अपने पुराने ढर्रे पर ही बने हुए हैं - और लोगों के बीच अपनी फजीहत करवा रहे हैं ।