Thursday, October 4, 2018

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी के कारण वेस्टर्न रीजन में सुनील तलति के प्रभाव और उनकी अपील के कमजोर पड़ने का नुकसान अहमदाबाद में पुरुषोत्तम खंडेलवाल से आगे रहने की अनिकेत तलति की कोशिशों को सचमुच फेल करेगा क्या ?

अहमदाबाद । पराग रावल के ऐन मौके पर सेंट्रल काउंसिल की उम्मीदवारी से पीछे हटने ने अहमदाबाद में सेंट्रल काउंसिल की चुनावी राजनीति के समीकरणों में भारी उलटफेर कर दिया है, और बाकी दोनों उम्मीदवारों - पुरुषोत्तम खंडेलवाल व अनिकेत तलति तथा उनके समर्थकों के लिए यह समझना मुश्किल कर दिया है कि इससे उन्हें फायदा हुआ है या नुकसान ! मजे की बात यह है कि इस मामले में परस्पर विरोधी बातें देखने/सुनने  में आ रही हैं - कुछ लोगों को लगता है कि पराग रावल के उम्मीदवार न रहने से उन्हें मिलने वाले वोट अब पुरुषोत्तम खंडेलवाल व अनिकेत तलति में बटेंगे और इस तरह दोनों के लिए फायदे की स्थिति बनी है; लेकिन अन्य कई लोगों का मानना/कहना है कि पराग रावल की उम्मीदवारी के न रहने से अहमदाबाद और आसपास के शहरों में चुनावी गर्मी कम रहेगी, जिस कारण वोट कम पड़ेंगे और यह अहमदाबाद के दोनों उम्मीदवारों के लिए चिंता की बात होगी । अहमदाबाद - और अहमदाबाद क्या गैर-मुंबई के उम्मीदवारों के लिए दूसरी/तीसरी वरीयता के वोट जुटाना मुश्किल होता है, जिसका नतीजा पिछली बार यह देखने को मिला था कि पहली वरीयता में 2322 वोट के साथ 6ठे नंबर पर रहने के बावजूद पराग रावल ग्यारह विजेताओं की सूची में नहीं आ सके थे । इस बार उम्मीदवार भी कम हैं, जिसके चलते मुकाबला - खासकर गैर-मुंबई उम्मीदवारों के लिए और मुश्किल होगा । पुरुषोत्तम खंडेलवाल और अनिकेत तलति के बीच आगे रहने की होड़ भी चुनावी परिदृश्य को दिलचस्प बनायेगी । माना/समझा जा रहा है कि पहली वरीयता के वोटों की गिनती में इनमें से जो पीछे रह जायेगा, उसके लिए फिर मुकाबले में बचे/बने रहना मुश्किल ही नहीं - बल्कि असंभव ही होगा ।
इसी आकलन के चलते अनिकेत तलति के लिए चुनाव को मुश्किल और चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है । उनकी तरफ से हालाँकि उनके पिता, इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट सुनील तलति ने चुनावी मोर्चा संभाला हुआ है, लेकिन अभी तक के अनुभव के आधार पर सुनील तलति की सक्रियता को भी अनिकेत तलति के लिए बहुत आश्वस्तकारी नहीं माना जा रहा है । दरअसल अभी तक के चुनावों में, चाहें अहमदाबाद ब्रांच के चुनाव रहे हों और या वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का पिछली बार का चुनाव रहा हो, अनिकेत तलति को हर चुनाव में अपने पिता सुनील तलति का सक्रिय समर्थन मिला है - लेकिन फिर भी हर चुनाव में उन्हें पुरुषोत्तम खंडेलवाल से पीछे ही रहना पड़ा है । पिछली बार रीजनल काउंसिल की अनिकेत तलति की उम्मीदवारी की नाव को किनारे लगाने के लिए सुनील तलति ने खुद तो पूरा दमखम लगाया हुआ ही था, साथ ही उनके द्वारा सेंट्रल काउंसिल के मुंबई के उम्मीदवार अनिल भंडारी के साथ ऐसा चुनावी समझौता करने की चर्चा भी थी - जिसके तहत अनिल भंडारी ने रीजनल काउंसिल के लिए अनिकेत तलति को वोट दिलवाए थे, और तलति पिता-पुत्र ने सेंट्रल काउंसिल के लिए अनिल भंडारी को वोट दिलवाए थे । इतनी सब जुगाड़बाजी के बावजूद अनिकेत तलति को पुरुषोत्तम खंडेलवाल से पीछे रहना पड़ा था । पहली वरीयता के वोटों की गिनती में पुरुषोत्तम खंडेलवाल 1728 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे, जबकि अनिकेत तलति को 1469 वोटों के साथ छठा नंबर मिला था । अहमदाबाद ब्रांच से लेकर रीजनल काउंसिल के चुनाव तक चूँकि पुरुषोत्तम खंडेलवाल हमेशा ही अनिकेत तलति से आगे रहे हैं, इसलिए अनिकेत तलति के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर है कि पीछे रहने का यह रिकॉर्ड अनिकेत तलति ने यदि आगामी दिसंबर में हो रहे सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में भी 'बनाया' - तो फिर उन्हें सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी को सफल बनाने की बात को भूल ही जाना चाहिए ।
पुरुषोत्तम खंडेलवाल के लिए भी चुनौतियाँ और मुश्किलें हालाँकि कम नहीं हैं । दरअसल सेंट्रल काउंसिल के चुनाव की एक अलग ही केमिस्ट्री और गणित होता है । पुरुषोत्तम खंडेलवाल अहमदाबाद में सुनील तलति विरोधी खेमे के भरोसे हैं, जिनका प्रतिनिधित्व अभी दीनल शाह कर रहे हैं । दीनल शाह लेकिन सेंट्रल काउंसिल के लिए मुंबई की उम्मीदवार श्रुति शाह का समर्थन करते सुने जा रहे हैं । दीनल शाह की नजदीकी रिश्तेदार श्रुति शाह की लेकिन चूँकि अहमदाबाद में ज्यादा सक्रियता नहीं है, इसलिए दीनल शाह के सक्रिय समर्थन के बावजूद श्रुति शाह को यहाँ खास समर्थन मिलने की उम्मीद तो नहीं है - लेकिन उन्हें जो भी समर्थन मिलेगा, वह पुरुषोत्तम खंडेलवाल के वोटों को ही घटाने का काम करेगा । पुरुषोत्तम खंडेलवाल के साथ एक बड़ी समस्या यह भी है कि उनके साथ किसी बड़े नेता का नाम नहीं जुड़ा है - यानि उनका कोई गॉडफादर नहीं है । सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में गॉडफादर कोई व्यावहारिक फायदा तो नहीं दिलवाता है, लेकिन लोगों के बीच मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालने और माहौल बनाने का काम जरूर करता है । ऐसे में, पुरुषोत्तम खंडेलवाल के समर्थकों व शुभचिंतकों को इस आधार पर ही उम्मीद दिखाई दे रही है कि अनिकेत तलति के फादर भले ही उनके चुनावी गॉडफादर भी बने हुए हैं - लेकिन चूँकि अभी तक वह पुरुषोत्तम खंडेलवाल से पीछे ही रहते आए हैं, तो इस बार भी उनसे कोई बड़े चमत्कार की उम्मीद नहीं की जा सकती है । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी से भी पुरुषोत्तम खंडेलवाल को मनोवैज्ञनिक फायदा मिलता नजर आ रहा है । दरअसल प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी पूर्व प्रेसीडेंट के रूप में सुनील तलति के ऑरा और प्रभाव को कम करने का काम करती है । प्रफुल्ल छाजेड़ यदि वाइस प्रेसीडेंट नहीं होते, तो उनके मुकाबले सुनील तलति का पलड़ा भारी रहता । लेकिन इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट बनने जा रहे प्रफुल्ल छाजेड़ के उम्मीदवार होते हुए कोई भी पूर्व प्रेसीडेंट सुनील तलति की अपील को भला क्यों तवज्जो देगा ? प्रफुल्ल छाजेड़ की उम्मीदवारी के कारण सुनील तलति के प्रभाव और उनकी अपील के कमजोर पड़ने का सीधा फायदा पुरुषोत्तम खंडेलवाल को मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है ।
चुनावी लड़ाई में यह सब बातें तो किताबी बातें हैं, जो महौल को बनाने/बिगाड़ने का काम जरूर करती हैं - लेकिन चुनावी लड़ाई का नतीजा वास्तव में इस बात पर निर्भर करता है कि इन किताबी बातों को कौन कितने प्रभावी तरीके से इस्तेमाल कर पाता है - या नहीं कर पाता है । इसलिए अहमदाबाद में पुरुषोत्तम खंडेलवाल और अनिकेत तलति के बीच इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए होने वाले मुकाबले का नतीजा इस बात पर निर्भर करेगा कि कौन अपने चुनाव अभियान को कैसे संयोजित करता है और चुनाव के दिन तक उसे कैसे आगे बढ़ाता है ।