मेरठ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक जैन ने वर्ष 2020-21 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव की प्रक्रिया अचानक से शुरू करके मनीष शारदा की उम्मीदों को खासा तगड़ा झटका दिया है । मनीष शारदा की उम्मीद और कोशिश थी कि उक्त चुनाव मार्च में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में हों, ताकि वह अच्छे से तैयारी कर लें और लोगों के बीच अपनी पैठ बना लें । अभी तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक जैन का रवैया भी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में ही उक्त चुनाव करवाने का था, जिसके चलते मनीष शारदा निश्चिंत बैठे थे । पिछले दिनों सुना गया था कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता के कहने पर रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारी जितेंद्र सिंह ने दीपक जैन से उक्त चुनाव करवाने को लेकर बात की थी, लेकिन दीपक जैन के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी । सुशील गुप्ता का कहना दरअसल यह था कि प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट में वर्ष 2020-21 के गवर्नर हैं, और उनकी ट्रेनिंग हो रही है - इसलिए डिस्ट्रिक्ट 3100 में भी वर्ष 2020-21 का गवर्नर हो जाना चाहिए, ताकि वह भी अपने समकालीन गवर्नर्स के साथ अभी से परिचित और प्रशिक्षित हो सके । जितेंद्र सिंह ने इसी तर्क के साथ दीपक जैन को उक्त चुनाव जल्दी करवाने के लिए राजी करने का प्रयास किया । दीपक जैन ने लेकिन बहानेबाजी करके उनकी बात को अनसुना कर दिया । दीपक जैन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारियों को अभी तक भले ही न समझे हों, लेकिन यह बात वह अच्छे से समझ गए हैं कि रोटरी इंटरनेशनल का बड़े से बड़ा पदाधिकारी उन्हें चुनाव करवाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है - और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्हें यह अधिकार है कि वह जब चाहें तब चुनाव करवाएँ । इसीलिए वह वर्ष 2020-21 के गवर्नर के चुनाव को लेकर डिस्ट्रिक्ट में तथा रोटरी के बड़े पदाधिकारियों की तरफ से उठ रही माँग को लगातार अनसुना करते आ रहे थे ।
दीपक जैन की तरफ से कहा/सुना जा रहा था कि वह उक्त चुनाव यदि जल्दी करवा लेंगे तो डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की रौनक खत्म हो जाएगी; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह चाहेंगे कि उनकी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस अच्छे से हो - इसलिए उक्त चुनाव वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के दौरान और या उसके बाद ही करवायेंगे । दीपक जैन को अपने गवर्नर-काल में वर्ष 2021-22 के गवर्नर का भी चुनाव करवाना है, जिसकी आड़ में अपनी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को अच्छे से करवा सकने का मौका उनके पास है ही, लेकिन फिर भी वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को अच्छे से करने/करवाने की आड़ में वर्ष 2020-21 के गवर्नर के चुनाव को टालते रहे - जिसके चलते लोगों को लगा कि यह सब वह मनीष शारदा को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से कर रहे हैं । लोगों का यह लगना स्वाभाविक भी माना/समझा गया, क्योंकि मनीष शारदा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की पिछले वर्ष दीपक जैन को चुनाव जितवाने में महत्त्वपूर्ण व निर्णायक भूमिका थी, इसलिए हर किसी को लग रहा था कि मनीष शारदा की सुविधानुसार दीपक जैन वर्ष 2020-21 के गवर्नर के चुनाव को टाल कर मनीष शारदा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के अहसान का बदला चुका रहे हैं । लेकिन अचानक तरीके से वर्ष 2020-21 के गवर्नर के चुनाव की प्रक्रिया शुरू करके दीपक जैन ने तमाम कयासों और आलोचनाओं का मुँह बंद कर दिया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक जैन द्वारा अचानक से शुरू की गई चुनाव की प्रक्रिया ने दूसरों को तो हैरान किया है, लेकिन मनीष शारदा को खासा तगड़ा झटका दिया है ।
मनीष शारदा दरअसल आराम से बैठे थे और मान कर चल रहे थे कि उक्त चुनाव मार्च में और या उसके बाद होंगे, इसलिए अभी से ज्यादा कुछ करने की जरूरत भला क्या है ? वर्ष 2020-21 के गवर्नर पद के लिए अपनी इच्छा दिखाने वाले उम्मीदवारों में एक अकेली दीपा खन्ना ही लगातार सक्रिय बनी हुईं थीं, और लगातार डिस्ट्रिक्ट में लोगों से मिलजुल रही थीं तथा अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के प्रयासों में लगीं हुईं थीं । इसलिए अचानक शुरू हुई चुनावी प्रक्रिया से एक अकेले दीपा खन्ना और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों की तरफ से परेशानी होने की बात नहीं सुनी गई है, बल्कि उनकी तरफ से तो चुनावी प्रक्रिया शुरू होने का स्वागत होने की बात ही सुनी गई है । इसके विपरीत, मनीष शारदा और शशिकांत गोयल के खेमे में चुनावी प्रक्रिया शुरू होने की घोषणा से निराशा और हताशा के स्वर सुनाई दे रहे हैं । इन दोनों खेमों में इस बात पर भी हैरानी प्रकट की जा रही है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में चुनाव करवाने की लगातार रट लगाए जा रहे दीपक जैन का अचानक से हृदय परिवर्तन कैसे और क्यों हो गया कि आनन-फानन में उन्होंने चुनाव की प्रक्रिया ही शुरू कर दी है ? बिना चुनावी तैयारी के 'पकड़े' गए मनीष शारदा और शशिकांत गोयल के सामने मुसीबत की बात यह भी है कि दोनों ही मेरठ के होने के नाते चुनाव में एक-दूसरे को ही नुकसान पहुँचाते नजर आ रहे हैं । दोनों के समर्थक नेता हालाँकि चाह तो रहे थे कि दोनों के बीच ऐसा कोई समझौता हो जाये - जिसके तहत एक पहले और दूसरा उसके बाद उम्मीदवार बन जाए; लेकिन इस समझौते के लिए बातचीत अभी यह सोच कर शुरू नहीं की गई थी कि चुनाव तो अभी दूर हैं; दोनों ही लोग इस उम्मीद में थे कि हो सकता है कि चुनाव होने तक दूसरा थक-हार कर खुद ही मैदान छोड़ दे, इसलिए अभी बात क्या और क्यों करना ? लेकिन अचानक से शुरू हुई चुनावी प्रक्रिया ने मेरठ के दोनों उम्मीदवारों को मुसीबत में फँसा दिया है और उनके समर्थक व शुभचिंतक ही दोनों को दीपा खन्ना के सामने कमजोर पा/समझ रहे हैं ।