Tuesday, November 14, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी द्वारा की गई बदतमीजी के मामले में जाँच अधिकारी के रूप में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियन ने तथ्यों की जैसी जो अनदेखी की है, उसने जाँच के काम को पूरी तरह मजाक बनाते हुए मामले को बिगाड़ और दिया है

नई दिल्ली । वरिष्ठ रोटेरियन आभा झा चौधरी के साथ की गई बदतमीजी के मामले में रोटरी इंटरनेशनल द्वारा गठित की गई जाँच कमेटी का जिम्मा डॉक्टर सुब्रमणियन को मिलने से आरोपी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने जिस तरह से राहत महसूस की थी, वह सचमुच उन्हें मिल भी गई है । रवि चौधरी की उम्मीदों के अनुसार, डॉक्टर सुब्रमणियन ने अपनी जाँच में रवि चौधरी को तो क्लीन चिट दे ही दी है, उलटे आभा झा चौधरी को ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा को गिराने का जिम्मेदार ठहरा दिया है । डॉक्टर सुब्रमणियन के इस फैसले से उन रोटेरियंस को गहरी निराशा हुई है जो ईमानदारी से और जी-जान लगाकर रोटरी का काम करते हैं और उसके बाद भी बड़े पदाधिकारियों की प्रताड़ना का शिकार होते हैं - और फिर जिन्हें न्याय भी नहीं मिलता है; तथा अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की शिकायत करने के लिए दोषी और ठहरा दिए जाते हैं। इस प्रकरण ने असित मित्तल कांड की याद को पुनर्जीवित कर दिया है । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर असित मित्तल ने अपनी प्रोफेशनल लूट-खसोट में रोटेरियंस को भी शिकार बनाया था; रोटरी के नेताओं और पदाधिकारियों के बीच कई बार बात हुई थी कि असित मित्तल की हरकतें रोटरी को बदनाम करने वाली हैं, इसलिए रोटरी में उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए - किंतु रोटरी के तुर्रमखाँ समझे जाने वाले नेता कार्रवाई करने का साहस नहीं कर सके और आँखों पर पट्टी बाँधे धृतराष्ट्र बने रहे । लेकिन पाप का घड़ा तो फूटता ही है - असित मित्तल की हरकतों के प्रति रोटरी के नेताओं ने भले ही आँखें बंद कर ली हों, लेकिन देश के कानून ने असित मित्तल को जेल के सींखचों के पीछे पहुँचा दिया । रोटरी के लिए शर्मनाक स्थिति यह बनी कि एक 'अपराधी' को उसने पालने/पोसने और बचाने का काम किया - जो अब अपनी करतूतों के कारण जेल में बंद होने के चलते डिस्ट्रिक्ट के साथ-साथ रोटरी की पहचान, गरिमा और प्रतिष्ठा को कलंकित करने का कारण बन रहा है ।
मजेदार संयोग है कि रवि चौधरी उसी असित मित्तल के बड़े नजदीकी यार रहे हैं । असित मित्तल के गवर्नर-काल में ही रवि चौधरी पहली बार उम्मीदवार बने थे, और रवि चौधरी को चुनवाने के लिए असित मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की सारी मर्यादा को तार-तार कर दिया था - और इस प्रक्रिया में प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार संजय खन्ना को तरह तरह से नीचा दिखाने और अपमानित करने की हद तक गए थे । तमाम तिकड़मों के बावजूद रवि चौधरी उस वर्ष लेकिन चुनाव नहीं जीत पाए थे, और संजय खन्ना अच्छे बहुमत से चुनाव जीते थे । यह तथ्य क्या यह संकेत दे रहा है कि असित मित्तल के मामले में रोटरी पदाधिकारी जिस तरह से न्याय करने और अपनी गरिमा व प्रतिष्ठा बचाने में असफल रहे थे, ठीक वही कहानी अब रवि चौधरी के मामले में दोहराई जा रही है । असित मित्तल के मामले में न्याय की गुहार लगाने वालों को जिस तरह से देश के कानून से मदद मिली थी, रवि चौधरी के मामले में भी न्याय अब क्या देश का कानून ही करेगा ? आभा झा चौधरी की तरफ से संकेत मिले हैं कि रोटरी में न्याय न मिलने की सूरत में वह देश के कानून से न्याय पाने की कोशिश करेंगी ।
आभा झा चौधरी की शिकायत पर रोटरी इंटरनेशनल ने न्याय करने के नाम पर जो तमाशा किया, वह इस बात का सुबूत भी है कि इस मामले में रोटरी के जिन भी पदाधिकारियों ने फैसला किया/लिया - उनकी मंशा न्याय करने की थी ही नहीं । न्याय करने के 'काम' की पहली जरूरत यही समझी/पहचानी जाती है कि न्याय हो - और न्याय होता हुआ 'दिखे' भी । आभा झा चौधरी की शिकायत की जाँच करवाने के मामले में पहला घपला तो यही हुआ कि जाँच की जिम्मेदारी रवि चौधरी से ठीक पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे डॉक्टर सुब्रमणियन को सौंप दी गई । इस फैसले पर लोगों को हैरानी भी हुई - क्योंकि न्याय करते हुए 'दिखने' के लिए जरूरी था कि जाँच का काम किसी दूसरे डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर को सौंपा जाता । और यदि घटना वाले डिस्ट्रिक्ट में ही किसी को जिम्मेदारी सौंपनी थी, तो किसी वरिष्ठ पूर्व गवर्नर को सौंपनी चाहिए थी । डॉक्टर सुब्रमणियन और रवि चौधरी पिछले तीन वर्षों से डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था साथ-साथ देखते/सँभालते रहे हैं; ऐसे में रवि चौधरी पर लगे आरोपों के मामले में डॉक्टर सुब्रमणियन से निष्पक्ष जाँच की उम्मीद कैसे की जा सकती है ? इससे भी बड़े झमेले का कारण यह रहा कि रवि चौधरी के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर रहते हुए जाँच की गई । जाँच न्यायपूर्ण और पक्षपातरहित होते हुए 'दिखे' - इसके लिए जरूरी था कि जाँच की कार्रवाई होने तक की अवधि के लिए रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटाया जाता । आभा झा चौधरी ने इसकी माँग भी की थी, लेकिन उनकी माँग को यह कहते हुए अनसुना कर दिया गया कि रोटरी में इस तरह की व्यवस्था नहीं है । अब होने या न होने की बात तो यह है कि रोटरी में तो यह व्यवस्था भी नहीं है कि कोई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अपनी ही टीम की वरिष्ठ महिला पदाधिकारी के साथ बदतमीजी करे । इसलिए यदि ऐसी स्थिति बनती है तो उससे निपटने के लिए भी तो रोटरी को व्यवस्था करना पड़ेगी ।
जाँच अधिकारी के रूप में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियन ने तथ्यों की जैसी जो अनदेखी की है, उसने रवि चौधरी द्वारा की गई बदतमीजी की शिकायत की जाँच को पूरी तरह मजाक बना दिया है । रवि चौधरी को उन्होंने जिस एकतरफा तरीके से क्लीन चिट दे दी है, उससे साबित हुआ है कि जाँच अधिकारी के रूप में उन्होंने न तो घटना की परिस्थिति पर गौर किया है और न ही मौके पर मौजूद लोगों की गवाही का संज्ञान लिया है । कुछ लोगों को उम्मीद थी कि रवि चौधरी पर बदतमीजी करने के आरोप की जाँच के जरिए/बहाने दोनों पक्षों के सम्मान को बनाये रखते हुए मामले को वास्तव में निपटाने की कोशिश की जाएगी - लेकिन जिस एकतरफा तरीके से रवि चौधरी को क्लीन चिट देने तथा उलटे आभा झा चौधरी पर ही आरोप मढ़ देने का काम किया गया है - उससे मामला हल होने की बजाये और बिगड़ता नजर आ रहा है ।