शिमला । डिस्ट्रिक्ट डियूज के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज को घेरने की कोशिशों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी समीकरणों को जिस तरफ से डिस्टर्ब करना तथा बिगाड़ना शुरू किया है, उससे अरुण मोंगिया तथा उनके समर्थकों को चिंता होना शुरू हुई है - तथा पहली बार पंकज डडवाल के नजदीकियों व समर्थकों के बीच उम्मीद व उत्साह की लहर पैदा होती हुई देखी गई है । अरुण मोंगिया और पंकज डडवाल के बीच होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को अभी तक एकतरफ ही झुका हुआ माना/देखा जा रहा था, लेकिन पहली बार उक्त चुनाव को लेकर बने समीकरण डगमगाते हुए दिख रहे हैं । दरअसल, डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के नाम पर की जा रही मनमानी और मचाई जा रही 'लूट' को लेकर लोगों के बीच जिस तरह की नाराजगी पैदा हुई है, उसे कई एक ऐसे लोगों ने भी समर्थन दिया है - जो सत्ता खेमे के नजदीक हैं । इससे माना/समझा जा रहा है कि लोगों के बीच पैदा हुई नाराजगी को रोकने/संभालने के लिए सत्ता खेमे के नेताओं ने यदि जल्दी ही प्रयास नहीं किए, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में कहीं लेने के देने न पड़ जाएँ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट अजय मदान के गवर्नर वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी बनाये गए संदीप गोयल के एक बयान ने आग में घी डालने का जो काम किया है, उससे भी सत्ता खेमे के नेताओं की मुश्किलें बढ़ी हैं और इसका सीधा असर अरुण मोंगिया की चुनावी जीत पर पड़ने का डर पैदा हुआ है ।
असल में, सत्ता खेमे के पदाधिकारियों व नेताओं की मनमानियों ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ-साथ सत्ता खेमे के नेताओं के नजदीकियों व समर्थकों को भी अलग अलग कारणों से नाराज किया हुआ है । डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के मामले ने उन नाराजगियों को मुखर बना दिया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज की तरफ से डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के नाम पर प्रत्येक सदस्य से 750 रुपये बसूलने की तैयारी की गई है, जिसमें 150 रुपये जीएसटी के बताये/माने गए हैं । लोगों का कहना/पूछना यह है कि डिस्ट्रिक्ट जब दो वर्ष पहले ही जीएसटी के घेरे से बाहर आ गया है, तो जीएसटी के नाम पर पैसा क्यों लिया जा रहा है, और यह पैसा आखिर जायेगा कहाँ ? डिस्ट्रिक्ट ड्यूज में 250 रुपये पेट्स/सेट्स के नाम पर लिए जाते हैं, जो हुई ही नहीं हैं । वर्चुअल प्लेटफॉर्म जूम पर इनके नाम पर महज खानापूर्ति ही हुई है, जिसमें कोई खर्च नहीं हुआ । बाकी बची अन्य रकम को लेकर भी लोगों के सवाल और आपत्तियाँ हैं । आरोप यह भी है कि रमेश बजाज ने अपने गवर्नर वर्ष का बजट गुपचुप रूप से पेट्स में 'पास' तो करा लिया, लेकिन वह लोगों को उपलब्ध नहीं करवाया । लोगों के सवालों और आपत्तियों पर रमेश बजाज ने चुप्पी साधी हुई है । लोगों ने डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के नाम पर होने वाली लूट को लेकर जितेंद्र ढींगरा से बात की, तो उन्होंने यह कह कर हाथ झाड़ लिए कि इस बारे में जो पूछना है रमेश बजाज से ही पूछो ।
संदीप गोयल ने लेकिन यह कह कर मामले को भड़का दिया है कि डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के नाम पर 750 रुपये ही तो लिए जा रहे हैं, इतनी मामूली रकम को लेकर लोग सवाल ही क्यों उठा रहे हैं । लोगों का कहना है कि 750 रुपये के हिसाब से रमेश बजाज के पास 25 लाख रुपये पहुँच गए हैं, और संदीप गोयल कह रहे हैं कि लोगों को यह जानने/पूछने की जरूरत नहीं है कि रमेश बजाज इस रकम का आखिर करेंगे क्या ? संदीप गोयल अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी बनाये गए है, इसलिए लोगों को शक है कि संदीप गोयल ने जो कहा है, वह कहीं अजय मदान ने तो उनसे नहीं कहलवाया है और इस तरह कहीं अजय मदान भी तो वही सब करने की तैयारी नहीं कर रहे हैं, जो रमेश बजाज कर रहे हैं ?
यह नजारा देख कर पंकज डडवाल के नजदीकियों और समर्थकों के बीच पहली बार उम्मीद व उत्साह पैदा होता हुआ नजर आया है । पंकज डडवाल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव रखने वाले लोगों को लगने लगा है कि पंकज डडवाल के समर्थक यदि 'चुनावी जरूरतों' को समझते/पहचानते हुए अपनी सक्रियता को दिखाएँ/बढ़ाएँ, तो डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के मामले में लोगों के बीच बढ़ती नाराजगी का फायदा उठाते हुए वह एकपक्षीय नजर आ रहे चुनावी परिदृश्य को पलट भी सकते हैं । पंकज डडवाल की उम्मीदवारी के कई समर्थकों व शुभचिंतकों को लगातार यह लगता रहा है कि इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश बजाज की कार्यप्रणाली ने जिस तरह से सिर्फ डिस्ट्रिक्ट के आम लोगों को ही नहीं, बल्कि सत्ता खेमे के आम तथा खास नेताओं तक को नाराज किया हुआ है, उसके कारण इस वर्ष पंकज डडवाल के लिए जीतने की अच्छी संभावना थी - लेकिन उनकी तरफ से प्रभावी रूप में अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के प्रयास ही नहीं किए गए । पंकज डडवाल के नजदीकियों को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के मामले में सत्ता खेमे के पदाधिकरियों तथा नेताओं के खिलाफ डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जो नाराजगी पैदा हुई है, और खुद सत्ता खेमे से जुड़े लोग भी अपनी नाराजगी को खुलकर आवाज देने लगे हैं, उसने चुनावी राजनीति के समीकरणों पर असर डालना/दिखाना शुरू कर दिया है - और इसमें पंकज डडवाल की उम्मीदवारी की सफलता का 'रास्ता' बन सकता है । देखना दिलचस्प होगा कि पंकज डडवाल और उनके समर्थकों को अचानक से जो मौका मिला है, उसका फायदा उठाने के लिए वह कोई तैयारी कर पाते हैं या इस मौके को यूँ ही गवाँ देंगे ?