लखनऊ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संदीप सहगल की जल्दी चुनाव कराने की घोषणा से विशाल सिन्हा के लिए कमल शेखर को 'लूटना' मुश्किल हुआ है, और इसी मुश्किल में विशाल सिन्हा ने लायन सदस्यों और लायंस क्लब्स की अपनी 'उधारी' चुकाने के लिए कमल शेखर पर दबाव बढ़ा दिया है - जिसके चलते कमल शेखर अपने आप को घिरा/फँसा हुआ महसूस कर रहे हैं । उल्लेखनीय
है कि पिछले लायन वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विशाल सिन्हा को
एमजेएफ बने लोगों को बीस-बीस हजार रुपए वापस करना थे, जो उन्होंने अभी तक
वापस नहीं किए हैं । इसके अलावा अम्ब्रेला प्रोजेक्ट के नाम पर विशाल
सिन्हा ने कई क्लब्स से पैसे तो ले लिए थे, लेकिन उन्हें उसके बदले
अम्ब्रेला नहीं दिए - वह क्लब्स लगातार अपना पैसा वापस माँग रहे हैं, लेकिन
विशाल सिन्हा उन्हें लगातार 'गोली' देते आ रहे हैं । अब जब सेकेंड वाइस
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में कमल शेखर पूरी तरह विशाल
सिन्हा की गिरफ्त में फँस गए हैं, तो विशाल सिन्हा उन पर लायन सदस्यों और
क्लब्स की उक्त 'उधारी' चुकाने के लिए दबाव बना रहे हैं । कमल शेखर के
नजदीकियों के अनुसार, उन्होंने हालाँकि कमल शेखर को समझाया हुआ है कि
उन्हें विशाल सिन्हा के झाँसे में नहीं आना चाहिए, वह एक बार फँसे तो फिर
विशाल सिन्हा उन्हें फँसाता ही जायेगा; लेकिन नजदीकियों को भी लग रहा है कि
'बकरे की माँ आखिर कब तक ख़ैर मनाएगी' । मजे की बात है कि कमल शेखर को हर
किसी ने समझाया है कि विशाल सिन्हा की लप्पेबाजी और लफ्फाजी में मत फँसना;
क्योंकि उसका उद्देश्य सिर्फ पैसे ऐंठना ही रहेगा - जैसे उसने पिछली बार
अशोक अग्रवाल से ऐंठे थे । पिछली बार 'ठोकर' खा कर और 'ठगी' का शिकार बन कर अशोक
अग्रवाल तो संभल गए, और इस बार विशाल सिन्हा के चक्कर में फँसने से अपने आपको बचा ले गए ।
लेकिन जिस तरह शिकारी को और ठग को 'शिकार' मिल ही जाता है, उसी तरह विशाल
सिन्हा को भी कमल शेखर मिल गए ।
विशाल सिन्हा को कमल शेखर मिल तो गए, लेकिन कमल शेखर उनके कहे अनुसार अपनी जेब ढीली करने के लिए अभी तक तैयार नहीं हो रहे हैं । विशाल सिन्हा हालाँकि आश्वस्त थे कि अप्रैल में जब तक चुनाव होने का मौका आएगा, वह कमल शेखर को 'तैयार' कर लेंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संदीप सहगल ने लेकिन फरवरी में ही चुनाव की घोषणा कर के विशाल सिन्हा की योजना पर पानी फेर दिया है । विशाल सिन्हा ने कमल शेखर को 'हलाल' करने की योजना बनाई थी, लेकिन संदीप सहगल की चाल ने उनके सामने कमल शेखर को 'झटके' का शिकार बनाने की मजबूरी पैदा कर दी है । इसी मजबूरी में विशाल सिन्हा को कमल शेखर से अभी ही कहना पड़ा है कि एमजेएफ बने सदस्यों और अम्ब्रेला प्रोजेक्ट में पैसे देने वाले क्लब्स के पैसे वापस नहीं किए गए, तो उन क्लब्स के वोट लेने मुश्किल हो जायेंगे । विशाल सिन्हा को विश्वास है कि कमल शेखर उनकी 'उधारी' भरेगा, नहीं भरेगा तो 'मरेगा' - उनका क्या जायेगा । कमल शेखर के नजदीकियों के अनुसार, कमल शेखर के लिए चिंता और सोचने की बात यह है कि विशाल सिन्हा की 'उधारी' चुकाने के बाद भी क्या वह चुनाव जीत सकेंगे ? लोगों ने पहले भी उन्हें समझाया है और अब फिर उन्हें समझा रहे हैं कि जो विशाल सिन्हा अपना खुद का चुनाव नहीं जीत सका था, वह उन्हें क्या चुनाव जितवायेगा ? पिछले कुछेक वर्षों का रिकॉर्ड देख लो - सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वही बन सका है, जिसको केएस लूथरा का समर्थन मिला है । विशाल सिन्हा सिर्फ सब्ज़बाग दिखायेगा, ताकि पैसे ऐंठ सके - जैसा कि उसने अशोक अग्रवाल के साथ किया था ।
कमल शेखर की उम्मीदवारी को दो कारणों से भारी मुश्किल में देखा/पहचाना जा रहा है - एक कारण तो यही जो पीछे बताया गया है कि पिछले वर्षों में वही उम्मीदवार, जिनमें खुद विशाल सिन्हा भी शामिल है, सफल हुआ है - जिसे केएस लूथरा का समर्थन मिला है; यह कारण और गहरा व मजबूत बना है क्योंकि लगातार मिलती पराजयों से गुरनाम सिंह खेमे की ताकत और घट गई है । दूसरा कारण डिस्ट्रिक्ट का चुनावी इतिहास है : इसके अनुसार, हारा हुआ उम्मीदवार अगली बार अवश्य ही कामयाब होता है । यह इतिहास गुरनाम सिंह से शुरू हुआ; पहली बार वह हारे, लेकिन अगले वर्ष वह सफल हुए । यह इतिहास फिर विनय भारद्वाज, मंजु सक्सेना, जीएल गुप्ता से होता हुआ विशाल सिन्हा तक चला आया है - और अब अशोक अग्रवाल के साथ फिर घटित होने की तैयारी में है । कमल शेखर को उनके शुभचिंतकों की तरफ से समझाया जा रहा है कि उन्हें यह मान/समझ कर चुनाव लड़ना चाहिए कि उन्हें हारना ही है, ताकि वह अगली बार के लिए अपनी जीत को सुनिश्चित कर सकें - विशाल सिन्हा उन्हें जीत का सपना दिखाते हुए उनसे अनाप-शनाप पैसे खर्च करवाने की कोशिश करेगा, उससे उन्हें बचना चाहिए । कमल शेखर के नजदीकियों के अनुसार, कमल शेखर सावधान तो बहुत हैं - लेकिन चुनाव जल्दी होने की घोषणा के कारण विशाल सिन्हा ने उन पर दबाव बनाना भी तेज कर दिया है । देखना दिलचस्प होगा कि विशाल सिन्हा की लूट-खसोट से कमल शेखर बच पाते हैं या उसका 'शिकार' बनते हैं ।
विशाल सिन्हा को कमल शेखर मिल तो गए, लेकिन कमल शेखर उनके कहे अनुसार अपनी जेब ढीली करने के लिए अभी तक तैयार नहीं हो रहे हैं । विशाल सिन्हा हालाँकि आश्वस्त थे कि अप्रैल में जब तक चुनाव होने का मौका आएगा, वह कमल शेखर को 'तैयार' कर लेंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संदीप सहगल ने लेकिन फरवरी में ही चुनाव की घोषणा कर के विशाल सिन्हा की योजना पर पानी फेर दिया है । विशाल सिन्हा ने कमल शेखर को 'हलाल' करने की योजना बनाई थी, लेकिन संदीप सहगल की चाल ने उनके सामने कमल शेखर को 'झटके' का शिकार बनाने की मजबूरी पैदा कर दी है । इसी मजबूरी में विशाल सिन्हा को कमल शेखर से अभी ही कहना पड़ा है कि एमजेएफ बने सदस्यों और अम्ब्रेला प्रोजेक्ट में पैसे देने वाले क्लब्स के पैसे वापस नहीं किए गए, तो उन क्लब्स के वोट लेने मुश्किल हो जायेंगे । विशाल सिन्हा को विश्वास है कि कमल शेखर उनकी 'उधारी' भरेगा, नहीं भरेगा तो 'मरेगा' - उनका क्या जायेगा । कमल शेखर के नजदीकियों के अनुसार, कमल शेखर के लिए चिंता और सोचने की बात यह है कि विशाल सिन्हा की 'उधारी' चुकाने के बाद भी क्या वह चुनाव जीत सकेंगे ? लोगों ने पहले भी उन्हें समझाया है और अब फिर उन्हें समझा रहे हैं कि जो विशाल सिन्हा अपना खुद का चुनाव नहीं जीत सका था, वह उन्हें क्या चुनाव जितवायेगा ? पिछले कुछेक वर्षों का रिकॉर्ड देख लो - सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वही बन सका है, जिसको केएस लूथरा का समर्थन मिला है । विशाल सिन्हा सिर्फ सब्ज़बाग दिखायेगा, ताकि पैसे ऐंठ सके - जैसा कि उसने अशोक अग्रवाल के साथ किया था ।
कमल शेखर की उम्मीदवारी को दो कारणों से भारी मुश्किल में देखा/पहचाना जा रहा है - एक कारण तो यही जो पीछे बताया गया है कि पिछले वर्षों में वही उम्मीदवार, जिनमें खुद विशाल सिन्हा भी शामिल है, सफल हुआ है - जिसे केएस लूथरा का समर्थन मिला है; यह कारण और गहरा व मजबूत बना है क्योंकि लगातार मिलती पराजयों से गुरनाम सिंह खेमे की ताकत और घट गई है । दूसरा कारण डिस्ट्रिक्ट का चुनावी इतिहास है : इसके अनुसार, हारा हुआ उम्मीदवार अगली बार अवश्य ही कामयाब होता है । यह इतिहास गुरनाम सिंह से शुरू हुआ; पहली बार वह हारे, लेकिन अगले वर्ष वह सफल हुए । यह इतिहास फिर विनय भारद्वाज, मंजु सक्सेना, जीएल गुप्ता से होता हुआ विशाल सिन्हा तक चला आया है - और अब अशोक अग्रवाल के साथ फिर घटित होने की तैयारी में है । कमल शेखर को उनके शुभचिंतकों की तरफ से समझाया जा रहा है कि उन्हें यह मान/समझ कर चुनाव लड़ना चाहिए कि उन्हें हारना ही है, ताकि वह अगली बार के लिए अपनी जीत को सुनिश्चित कर सकें - विशाल सिन्हा उन्हें जीत का सपना दिखाते हुए उनसे अनाप-शनाप पैसे खर्च करवाने की कोशिश करेगा, उससे उन्हें बचना चाहिए । कमल शेखर के नजदीकियों के अनुसार, कमल शेखर सावधान तो बहुत हैं - लेकिन चुनाव जल्दी होने की घोषणा के कारण विशाल सिन्हा ने उन पर दबाव बनाना भी तेज कर दिया है । देखना दिलचस्प होगा कि विशाल सिन्हा की लूट-खसोट से कमल शेखर बच पाते हैं या उसका 'शिकार' बनते हैं ।