Wednesday, April 17, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में झूठी-झूठी और बेसिरपैर की बातों से सुरेश जिंदल के समर्थकों की निराशा ही सामने आ रही है

नई दिल्ली । सुरेश जिंदल और उनके नजदीकियों के लिए यह पहेली समझना मुश्किल हो रहा है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले नेता मौजूदा स्थिति की सच्चाई उनसे छिपाने की कोशिश क्यों कर रहे हैं ? उल्लेखनीय है कि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले नेता सुरेश जिंदल को चुनावी जीत का सपना तो बढ़-चढ़ कर दिखा रहे हैं - लेकिन इसके तहत वे जो तथ्य दिखा/बता रहे हैं, उनका सच्चाई से दूर दूर तक का नाता नजर नहीं आ रहा है । जैसे, सुरेश जिंदल को उनकी जीत का भरोसा दिलाने के लिए जो गणित समझाया गया है उसमें उनके पक्ष में उन क्लब्स के वोट भी जोड़ लिए गए हैं जो अभी कैंसिल हैं - यह कहते/बताते हुए कि उन कैंसिल क्लब्स के बकाया ड्यूज जमा करके उन्हें पुनर्जीवित कर लिया जायेगा । कहने/सुनने में बात बड़ी सीधी सी लगती है और कोई शक भी नहीं कर सकता है कि इसमें किसी भी तरह का झूठ और धोखा छिपा है । लेकिन लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानूनों को जानने/समझने वाले लोग जानते हैं कि कैंसिल क्लब्स को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ नियम हैं - सिर्फ बकाया ड्यूज चुका देने भर से कैंसिल क्लब्स पुनर्जीवित नहीं हो जायेंगे । लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानून के अनुसार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दस कैंसिल क्लब्स को बकाया ड्यूज जमा करवा कर पुनर्जीवित करवा सकता है - इसके बाद उसे फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को विश्वास में लेना होगा । सुरेश जिंदल को चुनाव लड़वाने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन अभी तक आठ कैंसिल क्लब्स को पुनर्जीवित करवा चुके हैं - जाहिर तौर पर अब उनके पास दो और कैंसिल क्लब को पुनर्जीवित करवाने का मौका है । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता लेकिन उन्हें ग्यारह कैंसिल हुए पड़े क्लब्स के वोटों की गिनती बता रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन के पास दो कैंसिल क्लब को पुनर्जीवित करने का जो अधिकार है - उसमें भी एक लफड़ा है । विरोधी खेमे के पक्ष के समझे जाने वाले एक कैंसिल क्लब के बकाया ड्यूज पहले से ही लायंस इंटरनेशनल जा चुके हैं, इस कारण से पुनर्जीवित होने का पहला अधिकार उसका स्वतः बन जाता है - लेकिन उसके पुनर्जीवित होने से चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की 'राजनीति' पर प्रतिकूल असर पड़ता है तो क्या डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उस क्लब का अधिकार छीन कर 'अपने' उम्मीदवार को फायदा पहुँचाने की गरज से अपने समर्थक कैंसिल क्लब को पुनर्जीवित कराने की सिफारिश करेंगे ? विरोधी खेमे के लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने अपने उम्मीदवार को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से यदि कोई बेईमानी की तो वह विरोध करेंगे । सुरेश जिंदल के समर्थक नेता जिस तरह का गणित बता रहे हैं उसे देखते हुए लगता है कि सुरेश जिंदल को चुनाव जितवाने के लिए उनके पास बेईमानी के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं है । लायंस इंटरनेशनल से वोटों की जो अधिकृत सूची आई है उसके हिसाब से सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता 25 वोटों की कमी पा रहे हैं - विरोधी पक्ष के नेताओं के गणित के हिसाब से तो सुरेश जिंदल को 45 से 50 वोटों की कमी पड़ रही है । विरोधी पक्ष के नेताओं की बात पर यदि ध्यान न भी दें तो खुद सुरेश जिंदल के समर्थक नेता लायंस इंटरनेशनल की अधिकृत सूची के आधार पर अपने को पीछे पहचान रहे हैं । अपने को आगे करने/दिखाने के लिए उन्होंने इसी तरह की बातें करना शुरू की हैं जिन्हें बेईमानी और धोखे से ही पूरा किया जा सकेगा । जैसे कभी वह दावा करने लगते हैं कि विरोधी पक्ष के कई क्लब पेपर क्लब हैं और उन्हें वोट का अधिकार नहीं दिया जायेगा । सवाल यह है कि आप यदि पेपर क्लब के सचमुच खिलाफ हैं तो लायन वर्ष के शुरू होते ही आपने उन्हें बंद करवाने की कार्रवाई क्यों नहीं की - जिन क्लब्स के ड्यूज जमा हैं और लायंस इंटरनेशनल ने जिन्हें वोट का अधिकार दे दिया है, उनका वोट का अधिकार आप कैसे छीन सकते हैं ?
सुरेश जिंदल से सचमुच की हमदर्दी रखने वाले लोगों को लगता है कि सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता भी जानते हैं कि ड्यूज जमा न होने के कारण कैंसिल हुए 'अपने' क्लब्स को पुनर्जीवित करवाने का भरोसा हो या विरोधी पक्ष के तथाकथित पेपर क्लब्स को वोट का अधिकार न देने का उनका दावा हो - होना जाना कुछ नहीं है; वह तो बस सुरेश जिंदल को हौंसला देने के कारण से ऐसा प्रचार कर रहे हैं । सुरेश जिंदल का हौंसला बनाये रखना उनके लिए इसलिए जरूरी है ताकि कहीं सुरेश जिंदल चुनाव से पहले ही मैदान न छोड़ दें ? सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी को बनाये रखना उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के लिए बहुत ही जरूरी है जिससे कि उनके क्लब्स के ड्यूज जमा हो सकें और उनके दूसरे खर्चे पूरे हो सकें । इसलिए कोई भी झूठ-सच बोल कर वह सुरेश जिंदल की हिम्मत बनाये रखने की कोशिश कर रहे हैं । सुरेश जिंदल के समर्थक नेता अपनी इस कोशिश में अक्सर ही बड़े मनोरंजक सीन भी बना दे रहे हैं - जैसे लोगों को मिले एक एसएमएस में सुरेश जिंदल को 'असली हरियाणवी' बताया गया है । इस बात से एक किस्सा याद आया -
एक सर्कस वालों ने एक बार एक साथ दो शेर दिखाने की योजना बनाई । समस्या लेकिन यह आई कि शेर उनके पास एक ही था । शेर भले ही उनके पास एक था लेकिन खुशकिस्मती उनकी यह थी कि उनके पास हर्ष बंसल, अजय बुद्धराज, चंद्रशेखर मेहता की तरह के चतुर लोग थे - जिन्होंने तुरंत सुझाव दिया कि दूसरे पिंजरे में शेर की खाल पहना कर एक आदमी को रख देना, जिसे सख्त हिदायत दी जाये कि वह पिंजरे में सिर्फ इधर से उधर टहले और कभी-कभार दर्शकों की तरफ घूर कर देख ले । सर्कस वालों को यह आईडिया अच्छा लगा और उन्होंने इस पर अमल किया । दर्शकों के सामने दो पिंजरों में दो शेर थे जो अपने अपने पिंजरे में बस टहलकदमी कर रहे थे । अचानक जो असली वाला शेर था वह जोर से दहाड़ा । दर्शकों ने उत्सुकता बस दूसरे पिंजरे की तरफ देखा । दूसरे पिंजरे में शेर की खाल पहने आदमी को चूँकि हिदायत थी कि उसे सिर्फ टहलते ही रहना है इसलिए उसने अपनी तरफ देख रहे दर्शकों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया । तभी अचानक से एक व्यक्ति उसके पिंजरे के पास आकर खड़ा हुआ और धीरे से कुछ कह कर चला गया । वह व्यक्ति शायद हर्ष बंसल टाइप का होगा क्योंकि उसके जाते ही शेर की खाल पहने आदमी ने चिल्ला चिल्ला कर कहना शुरू किया कि 'असली शेर मैं हूँ'' 'असली शेर मैं हूँ' - उसने दर्शकों से कहा कि दहाड़ भले ही दूसरा रहा है, लेकिन असली मैं हूँ ।
सुरेश जिंदल को 'असली हरियाणवी' 'घोषित' करने की कार्रवाई भी कुछ ऐसी ही बात हो गई है - उन्हें असली घोषित करने/करवाने वालों ने इतना धैर्य भी नहीं रखा कि असली-नकली का भेद सभी जानते हैं और वह अपनी-अपनी समझ से तय कर लेंगे - उन्हें चिल्ला चिल्ला कर कहने की जरूरत नहीं है कि असली कौन है ? इस बात से वास्तव में सुरेश जिंदल के समर्थकों के बीच की निराशा ही सामने आई है ।