नई दिल्ली । विनोद बंसल के पहले प्रमुख कार्यक्रम पेट्स
(प्रेसीडेंट इलेक्ट ट्रेनिंग सेमिनार) में बदइंतजामी के कारण प्रेसीडेंट
इलेक्ट को बार-बार और अलग-अलग मौकों पर जिस तरह की फजीहत का और अपमान का
सामना करना पड़ा, उसे देख/जान कर उन लोगों को भारी निराशा हुई है जिन्हें
विनोद बंसल के कार्यक्रमों के बहुत ही व्यवस्थित तरीके से होने की उम्मीद
थी । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोगों का यह मानना रहा है
कि विनोद बंसल बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से काम करने वाले व्यक्ति हैं और इस
कारण उनके कार्यक्रमों की डिजाइनिंग और उस डिजाइनिंग पर अमल बहुत ही
व्यवस्थित तरीके से होगा । पेम और डीटीटीएस में जो गड़बड़ियाँ हुईं थीं,
उन्हें यह मान/सोच कर नजरअंदाज कर दिया गया था कि शुरू के कार्यक्रमों में
अनुभवहीनता के चलते कुछ कमियाँ रह ही जाती हैं, इसलिए उन्हें ज्यादा तवज्जो
नहीं देना चाहिए । माना/सोचा यह भी गया था कि इन गड़बड़ियों से सबक लेकर
विनोद बंसल पेट्स के आयोजन की डिजाइनिंग में सावधानी बरतेंगे । लेकिन पेट्स
में जो हुआ उससे ऐसा लगा जैसे विनोद बंसल ने पिछली गड़बड़ियों से कोई सबक
नहीं लिया और बहुत ही बेतरतीबी के साथ पेट्स का आयोजन किया । पेट्स में
विभिन्न मौकों पर जिस तरह की अराजकता और अव्यवस्था देखने को मिली उसने
प्रेसीडेंट इलेक्ट को तो नाराज और अपमानित-सा महसूस कराया ही, विनोद बंसल
से उम्मीद रखने वाले लोगों को भी बुरी तरह से निराश किया । विनोद बंसल ने
विभिन्न मौकों पर माफी मांग मांग कर हालात को ज्यादा बिगड़ने से बचाया तो,
लेकिन अपने इंप्रेशन को बिगड़ने से वह नहीं बचा सके ।
पेट्स में मौजूद कई लोगों का ध्यान इस बात पर गया और उन्हें यह
बात बड़ी हैरान करने वाली लगी कि विनोद बंसल के क्लब के लोगों की ही पेट्स
में ज्यादा भागीदारी नहीं थी और विनोद बंसल को कामकाज के लिए दूसरे क्लब के
लोगों की मदद लेनी पड़ रही थी । मदद तो उन्हें मिल गई लेकिन काम करने
वालों के बीच तालमेल नहीं बन पाया । समस्या यह हुई कि तालमेल बनाने की कोई
कोशिश ही नहीं की गई और इसी कारण से पेट्स में अफरातफरी का माहौल रहा । तालमेल
के अभाव के कारण ही कोई भी कार्यक्रम समय से शुरू नहीं हो सका - समय से जब
शुरू नहीं हो सका तो समय से ख़त्म भी नहीं हुआ और फिर अराजकता का राज हो
गया । इससे सभी को परेशानी हुई । विनोद बंसल के लिए एक तरफ तो इंतजाम और
व्यवस्था करना मुश्किल हो रहा था लेकिन दूसरी तरफ आयोजन कमेटी के कई लोगों
को करने के लिए कुछ काम ही नहीं मिला । उनके लिए यह समझना मुश्किल ही
रहा कि विनोद बंसल को उन्हें जब कोई काम सौंपना ही नहीं है, तो वह उन्हें
यहाँ लाये ही क्यों हैं ? यही सब देख कर लोगों ने निष्कर्ष निकाला कि विनोद
बंसल को चूँकि किसी पर भरोसा नहीं है इसलिए वह पेट्स के आयोजन के संबंध में न अपने क्लब के लोगों को और
न दूसरे क्लब के लोगों को लेकर टीम बना सके; और इसका नतीजा यह हुआ कि
पेट्स का आयोजन बेमतलब में बदइंतजामी का बुरी तरह शिकार हुआ और सभी को
परेशानी हुई तथा कई प्रेसीडेंट इलेक्ट ने अपने आप को अपमानित महसूस किया ।
पेट्स में पहुँचे कई प्रेसीडेंट इलेक्ट को पहला झटका तब लगा जब उन्हें लकी ड्रा के कूपन नहीं मिले । उन्हें
बताया गया कि कूपन ख़त्म हो गए हैं । शोर मचा तो विनोद बंसल सामने आये और
जिन प्रेसीडेंट इलेक्ट को कूपन नहीं मिले थे उनसे माफी मांगते हुए उन्होंने
कारण बताया कि जिन लोगों को कूपन देने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी उन्होंने
गलती से सभी लोगों को कूपन दे दिए, जबकि उन्हें सिर्फ प्रेसीडेंट इलेक्ट
को कूपन देने थे और इसलिए कूपन ख़त्म हो गए । विनोद बंसल का यह भी कहना
था कि लकी ड्रा में सिर्फ प्रेसीडेंट इलेक्ट के ड्रा ही निकलेंगे । लकी
ड्रा कूपन का जैसे तैसे इंतजाम करके विनोद बंसल ने कूपन प्राप्त करने से
वंचित रह गए लोगों का उस समय तो गुस्सा शांत करवा दिया, लेकिन कई
प्रेसीडेंट इलेक्ट उस समय फिर भड़क गए जब उन्होंने देखा/पाया कि लकी ड्रा
में ईनाम प्रेसीडेंट इलेक्ट ही नहीं, दूसरों के भी निकल रहे हैं । विनोद
बंसल को उन्हें शांत करने के लिए तर्क देना पड़ा कि गलती से लकी ड्रा कूपन
जिन्हें दिए जा चुके हैं उनके नाम तो ड्रा में आयेंगे ही और इसे प्रेसीडेंट
इलेक्ट को माफ़ करना ही होगा । यह झगड़ा अभी पूरी तरह शांत भी नहीं हुआ था
कि कुछेक प्रेसीडेंट इस बात पर उखड़ गए कि प्रेसीडेंट इलेक्ट द्धारा
प्रस्तुत किये जाने वाले कार्यक्रमों के लिए पाँच मिनट की जो समय-सीमा
निर्धारित की गई थी, उसका धड़ल्ले से उल्लंघन हो रहा है और इस बात पर
निर्णायकों का कोई ध्यान ही नहीं है । निर्णायकों का यह कहना था कि
उन्हें यह बताया ही नहीं गया कि पाँच मिनट की समय सीमा का उल्लंघन करने
वाली स्क्रिप्ट पर उन्हें नेगेटिव मार्किंग करनी है ।
प्रेसीडेंट इलेक्ट को मिलने वाली टीशर्ट के साइज को लेकर बहुत ही
अफरातफरी रही और साइज के अनुरूप टीशर्ट न मिलने को लेकर बहुत से प्रेसीडेंट
इलेक्ट खासे नाराज हुए और दिखे । उनका कहना रहा कि जब पहले से उनसे
उनके साइज पूछे गए थे और सभी ने अपने अपने साइज बता दिए थे, तब फिर उन्हें
उनके साइज के अनुसार टीशर्ट क्यों नहीं दी जा रहे हैं । मजे की बात यह थी
कि टीशर्ट की कोई कमी नहीं थी और सभी साइजों में टीशर्ट पर्याप्त संख्या
में उपलब्ध थीं - लेकिन फिर भी लोगों को उनके साइज के अनुसार टीशर्ट नहीं
दी जा रही थीं और ऐसा माहौल बना कि जैसे टीशर्ट हैं ही नहीं । यह नौबत
इसलिए आई क्योंकि इस काम को अंजाम देने की कोई व्यवस्थित तैयारी की ही नहीं
गई थी । जिन लोगों को टीशर्ट मिलनी थीं उनके साइज दिए/लिए जा चुके थे, जिस
जिस साइज में जितनी जितनी टीशर्ट की जरूरत थी वह उपलब्ध थीं - फिर भी
अफरातफरी पैदा हुई, तो इसका कारण यही था कि साइज लेने/देने और टीशर्ट देने
के काम के बीच कोई तालमेल ही नहीं था । दरअसल पेट्स में जो भी समस्याएँ
पैदा हुईं, वह सब तालमेल की कमी के कारण ही पैदा हुईं । तालमेल का अभाव
इसलिए रहा क्योंकि विनोद बंसल पेट्स की व्यवस्था को संभालने के लिए कोई टीम
नहीं बना सके । पेट्स कार्यक्रम में अपने माता-पिता के साथ आये बच्चों के पैसे बसूलने को लेकर काम करने वाले लोगों के रवैये के चलते तो ऐसा फजीता हुआ कि विनोद बंसल को माफी मांग कर मामला ख़त्म करवाना पड़ा । इस किस्से में भी बात सिर्फ तालमेल के आभाव की ही थी । प्रेसीडेंट इलेक्ट को पहले से ही बता दिया गया था कि बड़े बच्चों की उपस्थिति पर अलग से कुछ पैसा देना होगा; जिन लोगों के साथ बड़े बच्चे गए थे, वह अतिरिक्त पैसा देने के लिए तैयार भी थे - लेकिन उनसे पैसा लेने का कोई उचित मैकेनिज्म तैयार नहीं किया गया । जिस तरफ से बैंक और लोन देने वाली संस्थाएँ लोन की किस्तें बसूलने के लिए भाड़े पर लोग रख लेते हैं, विनोद बंसल ने भी उसी तर्ज पर बच्चों को साथ ले गए प्रेसीडेंट इलेक्ट से अतिरिक्त पैसे बसूलने की 'व्यवस्था' की - पैसे वसूलने में लगे लोगों के व्यवहार और तरीके को कई प्रेसीडेंट इलेक्ट ने आपत्तिजनक और अपमानपूर्ण माना और विरोध किया - जिसके चलते जमकर हंगामा हुआ । विनोद बंसल ने प्रेसीडेंट इलेक्ट से माफी मांग कर मामले को किसी तरह ख़त्म करवाया । पेट्स में जिन भी बातों पर झमेला हुआ, वह कोई बड़ी बातें नहीं थीं और जरा सी सावधानी से उन्हें घटने से रोका जा सकता था - लेकिन काम को अंजाम देने के लिए टीम बनाने में विनोद बंसल द्धारा की गई लापरवाही के कारण बात बात में तमाशे हुए और सभी को अलग अलग तरीके से मुसीबतों का सामना करना पड़ा ।