नई
दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल सदस्यों के टीए/डीए बिल के लेजर
अकाउंट के जो दस्तावेज 'रचनात्मक संकल्प' को मिले हैं, वह काउंसिल के सत्ता
खेमे के कुछेक सदस्यों की लूट-खसोट का बड़ा दिलचस्प ब्यौरा देते हैं - और
बताते हैं कि टीए/डीए के नाम पर पैसों की लूट के मामले में इन्होंने तो
चिंदी चोरों को भी मात कर रखा है । उल्लेखनीय है कि मौजूदा रीजनल
काउंसिल में तीन सदस्य दीपक गर्ग, राजिंदर नारंग और पंकज पेरिवाल दिल्ली के
बाहर के हैं - इस नाते रीजनल काउंसिल की मीटिंग में शामिल होने के लिए
इनका टीए/डीए बसूलना तो एक बार के लिए फिर भी समझ में आता है; लेकिन
काउंसिल मुख्यालय से कुछ कदमों की दूरी पर स्थित - लक्ष्मी नगर, शकरपुर,
निर्माण विहार, दिलशाद गार्डन आदि कालोनियों में रहने तथा ऑफिस रखने वाले
राकेश मक्कड़, सुमित गर्ग, नितिन कँवर आदि का मीटिंग में शामिल होने के लिए
टीए/डीए बसूलना किसी की भी समझ से परे ही है । पिछले वर्ष के पहले छह महीने
के जो लेजर अकाउंट 'रचनात्मक संकल्प' को मिले हैं, उनके अनुसार राकेश मक्कड़ ने टीए/डीए के नाम पर आठ हजार रुपए तथा दैनिक भत्ते के नाम पर 23 हजार रुपए के बिल
दिए । इनका घर और ऑफिस निर्माण विहार में है । लक्ष्मी नगर में रहने और
शकरपुर में ऑफिस रखने वाले सुमित गर्ग ने उक्त समयावधि में टीए/डीए के नाम
पर 9 हजार रुपए बसूले । टीए/डीए बसूलने के मामले में सबसे लंबा हाथ नितिन
कँवर ने मारा है : उक्त समयावधि के लिए उन्होंने टीए/डीए के नाम पर
14,400 तो बसूल लिए और 38,200 रुपए का और बिल दिया । नितिन कँवर दिलशाद
गार्डन में रहते हैं, और शकरपुर में ऑफिस रखते हैं । टीए/डीए बसूलने में
लंबा हाथ मारने में उनकी मदद उनके दूसरे ऑफिस ने की, जो गुड़गाँव में है ।
नितिन कँवर वैसे तो अपने गुड़गाँव ऑफिस में कम ही आते/जाते हैं, लेकिन रीजनल काउंसिल की मीटिंग में उन्हें जब भी आना होता है - वह गुड़गाँव से ही 'आते' हैं, और वापस भी गुड़गाँव ही जाते हैं । इसीलिए उनका टीए/डीए बिल अपने 'साथियों' से ज्यादा बना । राजेंद्र अरोड़ा ने उक्त समयावधि में 9 हजार और 2 हजार के टीए/डीए बिल बसूल किए । शुक्र है कि इनके घर और ऑफिस काउंसिल के ऑफिस के पास ही हैं, कहीं यदि ज्यादा दूर होते तो काउंसिल का सारा बजट तो इनके टीए/डीए में ही खर्च हो जाना था । रीजनल काउंसिल की मीटिंग के अलावा भी, टीए/डीए के नाम पर उलटे/सीधे बिल बनाने और बसूलने के लिए इन लोगों ने बड़ा आसान सा तरीका यह बनाया हुआ है कि स्टडी सर्किल से लेकर ब्रांचेज तक में तथा अन्य सेमिनार्स में यह अपने आप को स्पीकर के रूप में आमंत्रित करवाते हैं । इन तथ्यों को देखते हुए रीजनल काउंसिल के ही सदस्यों के उक्त आरोपों में सच्चाई नजर आने लगती है, जिनमें बताया जाता है कि विभिन्न क्लासेज के लिए फैकल्टी तय करने में पैसे खाए जाते हैं, और सेमिनार्स आदि में खाने-पीने की व्यवस्था करने वाले वेंडर्स तक से रिश्वत ली जाती है । आरोपों के अनुसार, छोटे-मोटे काम करने वालों तक से हजार/पाँच सौ रुपए झटकने में भी यह लोग शर्म महसूस नहीं करते हैं ।
रीजनल काउंसिल में पॉवर ग्रुप के चौगुटे की हरकतों के चलते हो रही बदनामी से परेशान दूसरे सदस्य जब मीटिंग में हिसाब-किताब रखने/देने की बात करते/उठाते हैं, तो यह झगड़ा करने पर उतारू हो जाते हैं । काउंसिल के बाकी सदस्यों तथा स्टॉफ हावी होने के लिए इन्होंने फार्मूला यह निकाला हुआ है कि सामने वाला इन्हें जब भी सवाल करता/उठाता दिखता है, यह तुरंत आक्रामक हो जाते हैं और गाली-गलौच करने लगते हैं । माँ/बहनों से जुड़ी अश्लील व अशालीन किस्म की गालियाँ तो इनकी जुबाँ पर हमेशा चढ़ी रहती हैं । एक महिला स्टॉफ से की गई बदतमीजी का मामला तो इतना बढ़ गया था कि पुलिस तक में रिपोर्ट हो गई थी । तब माफी-वाफी मांग कर इन्होंने मामले को खत्म करवाया था । अपने इस व्यवहार से यह काउंसिल के दूसरे सदस्यों तथा स्टॉफ के लोगों के साथ-साथ वेंडर्स लोगों पर हावी हो जाते हैं, जिससे कि इनकी मनमानियों पर सवाल करने/उठाने वाले लोग फिर चुप लगा जाते हैं - और इन्हें बेरोकटोक रूप से अपनी मनमानियाँ और लूट करते रहने का मौका मिलता रहता है ।
नितिन कँवर वैसे तो अपने गुड़गाँव ऑफिस में कम ही आते/जाते हैं, लेकिन रीजनल काउंसिल की मीटिंग में उन्हें जब भी आना होता है - वह गुड़गाँव से ही 'आते' हैं, और वापस भी गुड़गाँव ही जाते हैं । इसीलिए उनका टीए/डीए बिल अपने 'साथियों' से ज्यादा बना । राजेंद्र अरोड़ा ने उक्त समयावधि में 9 हजार और 2 हजार के टीए/डीए बिल बसूल किए । शुक्र है कि इनके घर और ऑफिस काउंसिल के ऑफिस के पास ही हैं, कहीं यदि ज्यादा दूर होते तो काउंसिल का सारा बजट तो इनके टीए/डीए में ही खर्च हो जाना था । रीजनल काउंसिल की मीटिंग के अलावा भी, टीए/डीए के नाम पर उलटे/सीधे बिल बनाने और बसूलने के लिए इन लोगों ने बड़ा आसान सा तरीका यह बनाया हुआ है कि स्टडी सर्किल से लेकर ब्रांचेज तक में तथा अन्य सेमिनार्स में यह अपने आप को स्पीकर के रूप में आमंत्रित करवाते हैं । इन तथ्यों को देखते हुए रीजनल काउंसिल के ही सदस्यों के उक्त आरोपों में सच्चाई नजर आने लगती है, जिनमें बताया जाता है कि विभिन्न क्लासेज के लिए फैकल्टी तय करने में पैसे खाए जाते हैं, और सेमिनार्स आदि में खाने-पीने की व्यवस्था करने वाले वेंडर्स तक से रिश्वत ली जाती है । आरोपों के अनुसार, छोटे-मोटे काम करने वालों तक से हजार/पाँच सौ रुपए झटकने में भी यह लोग शर्म महसूस नहीं करते हैं ।
रीजनल काउंसिल में पॉवर ग्रुप के चौगुटे की हरकतों के चलते हो रही बदनामी से परेशान दूसरे सदस्य जब मीटिंग में हिसाब-किताब रखने/देने की बात करते/उठाते हैं, तो यह झगड़ा करने पर उतारू हो जाते हैं । काउंसिल के बाकी सदस्यों तथा स्टॉफ हावी होने के लिए इन्होंने फार्मूला यह निकाला हुआ है कि सामने वाला इन्हें जब भी सवाल करता/उठाता दिखता है, यह तुरंत आक्रामक हो जाते हैं और गाली-गलौच करने लगते हैं । माँ/बहनों से जुड़ी अश्लील व अशालीन किस्म की गालियाँ तो इनकी जुबाँ पर हमेशा चढ़ी रहती हैं । एक महिला स्टॉफ से की गई बदतमीजी का मामला तो इतना बढ़ गया था कि पुलिस तक में रिपोर्ट हो गई थी । तब माफी-वाफी मांग कर इन्होंने मामले को खत्म करवाया था । अपने इस व्यवहार से यह काउंसिल के दूसरे सदस्यों तथा स्टॉफ के लोगों के साथ-साथ वेंडर्स लोगों पर हावी हो जाते हैं, जिससे कि इनकी मनमानियों पर सवाल करने/उठाने वाले लोग फिर चुप लगा जाते हैं - और इन्हें बेरोकटोक रूप से अपनी मनमानियाँ और लूट करते रहने का मौका मिलता रहता है ।