पानीपत
। रमेश बजाज ने वर्ष 2018-19 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी
उम्मीदवारी प्रस्तुत करके डिस्ट्रिक्ट 3080 की चुनावी राजनीति में भारी
उठा-पटक की स्थितियाँ पैदा कर दी हैं । रमेश बजाज को अभी हाल ही में
चुने गए वर्ष 2019-20 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा के उम्मीदवार
के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; दरअसल इसीलिए हर किसी को रमेश बजाज की
उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने पर हैरानी हुई है - क्योंकि दो दिन पहले तक
जितेंद्र ढींगरा का समर्थन कपिल गुप्ता को मिलने की चर्चा की जा रही थी ।
रोटरी क्लब यमुनानगर के कपिल गुप्ता को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश
सलूजा के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है - और सतीश सलूजा अपने
उम्मीदवार के रूप में कपिल गुप्ता के लिए समर्थन जुटाने को लेकर चंडीगढ़
के कुछेक 'बड़े' नेताओं की आलोचना का शिकार भी हो चुके हैं । माना जा रहा
था कि जितेंद्र ढींगरा की अगुआई में डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जो
विरोधी खेमा बना है, वह कपिल गुप्ता को समर्थन देकर राजा साबू के नेतृत्व
वाले खेमे में फूट की प्रक्रिया को तेज और बड़ा करेगा । जितेंद्र ढींगरा
यूँ भी सतीश सलूजा के नजदीक रहे हैं । कपिल गुप्ता ने उम्मीदवारी प्रस्तुत
करने से पहले स्थितियों की चूँकि खासी 'पड़ताल' कर ली थी; और जितेंद्र
ढींगरा भी 'टकराव' की बजाए 'शांति' के मार्ग पर चलने के संकेत दे रहे थे
- इसलिए कपिल गुप्ता को जितेंद्र ढींगरा की अगुआई वाले खेमे का समर्थन
मिलना पक्का माना जा रहा था । लेकिन अचानक से प्रस्तुत हुई रमेश बजाज की
उम्मीदवारी ने वर्ष 2018-19 के गवर्नर के लिए बनने वाले समीकरणों को
छिन्न-भिन्न कर दिया है ।
रमेश बजाज की उम्मीदवारी ने कपिल
गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए तो समस्या खड़ी की ही है, साथ ही जितेंद्र
ढींगरा के लिए भी चुनौती पैदा कर दी है । पानीपत में रमेश बजाज के
नजदीकियों का ही कहना है कि अचानक से प्रस्तुत हुई रमेश बजाज की उम्मीदवारी
से जितेंद्र ढींगरा खुश नहीं हैं; जितेंद्र ढींगरा ने उनसे कहा है कि वह
अभी यह नहीं चाहते हैं कि उनके साथ नजदीकी से जुड़े लोग उम्मीदवार बनें -
क्योंकि इससे डिस्ट्रिक्ट में टकराव बढ़ेगा । रमेश बजाज के इन्हीं
नजदीकियों का कहना है कि वह जितेंद्र ढींगरा के इस तर्क से सहमत तो हैं,
लेकिन कपिल गुप्ता ने पानीपत में जिस तरह से पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स -
प्रमोद विज और रंजीत भाटिया के साथ नजदीकी बनाने और 'दिखाने' की कोशिश की
है, उसके विरोध स्वरूप ही रमेश बजाज अपनी उम्मीदवारी के साथ आगे आए हैं ।
रमेश बजाज के नजदीकियों को भरोसा है कि रमेश बजाज यदि अपनी उम्मीदवारी पर
बने/टिके रहे तो जितेंद्र ढींगरा अंततः उनका समर्थन करने के लिए मजबूर हो
जायेंगे । रमेश बजाज के कुछेक नजदीकियों का यह भी कहना है कि कपिल गुप्ता
पानीपत में यदि प्रमोद विज और रंजीत भाटिया से 'दूर' रहें, तो रमेश बजाज
अपनी उम्मीदवारी पर पुनर्विचार करते हुए पीछे भी हट सकते हैं ।
यह सारा झंझट वास्तव
में इसलिए भी खड़ा हुआ है, क्योंकि जितेंद्र ढींगरा की अगुआई वाले खेमे के
लोगों में आगे की रणनीति को लेकर गंभीर मतभेद हैं : जितेंद्र ढींगरा कुछ
समय 'शांत' रहना चाहते हैं और राजा साबू के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के
बँटने का इंतजार करना तथा बँटवारे को तेज करने में मदद करना चाहते हैं;
अन्य कुछ लोग लेकिन जितेंद्र ढींगरा की जोरदार जीत से उत्साहित हैं और
चाहते हैं कि सत्ता खेमे के साथ उन्हें अपनी 'लड़ाई' जारी रखनी चाहिए ।
जितेंद्र ढींगरा को 'शांति के मार्ग' पर बढ़ता देख उनके अपने लोगों को भी
लगता है कि जितेंद्र ढींगरा की शायद सत्ता खेमे के कुछेक नेताओं से साठगाँठ
है; जितेंद्र ढींगरा ने पिछले दो वर्ष जो लड़ाई लड़ी है और जीती है, उसमें
सत्ता खेमे के लोगों की दबी-छिपी साठगाँठ का 'सहयोग' भी देखा/पहचाना गया
है; जितेंद्र ढींगरा खुद सत्ता खेमे के हिस्सा रहे ही हैं - इन्हीं सब
तथ्यों के आलोक में समझा जाता है कि जितेंद्र ढींगरा सत्ता खेमे के ही एक
ग्रुप के साथ मिल कर अपनी आगे की 'यात्रा' जारी रखना चाहते हैं; और इसीलिए
वह चाहते हैं कि पिछले दो वर्षों की लड़ाई में जो लोग घोषित रूप से उनके साथ
थे, वह सब अपनी अपनी तलवारें अब म्यानों में वापस रख लें - लेकिन उनके साथ
रहे लोग जीत से इतने उत्साहित हैं कि वह तलवारें चमकाते हुए अभी और
'मारकाट' मचाना चाहते हैं । इस नजारे को नजदीक से देख/पहचान रहे लोगों
का कहना है कि जितेंद्र ढींगरा के साथी तो जोश के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं,
लेकिन जितेंद्र ढींगरा जोश के साथ होश भी बनाए रखना चाहते हैं । जीत के जोश
से भरे अपने ही साथियों को 'नियंत्रण' में रखना जितेंद्र ढींगरा की आगे की राजनीति के लिए
गंभीर चुनौती है ।
रमेश बजाज के नजदीकियों का ही
कहना/बताना है कि जितेंद्र ढींगरा ने रमेश बजाज की उम्मीदवारी को लेकर
नाखुशी इसी कारण से प्रकट की है, क्योंकि इससे राजा साबू की छत्रछाया में
चल रहे सत्ता खेमे को अपनी एकजुटता बनाए रखने में मदद मिलेगी । रमेश बजाज
की उम्मीदवारी से निपटने के लिए, अभी चंडीगढ़ और उत्तराखंड के जो नेता कपिल
गुप्ता की उम्मीदवारी को हजम नहीं कर पा रहे हैं - वह सभी कपिल गुप्ता की
उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए मजबूर हो जायेंगे । दरअसल वर्ष
2018-19 के गवर्नर पद के लिए बाकी जो नाम चर्चा में हैं, जो पिछले वर्षों
में भी उम्मीदवार रहे हैं, उनमें ज्यादा एनर्जी नहीं देखी/पहचानी जा रही है
- उनके मुकाबले कपिल गुप्ता का 'वजन' ज्यादा देखा/पहचाना जा रहा है ।
कपिल गुप्ता को अभी चंडीगढ़ और उत्तराखंड के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की
जिस नापसंदगी तथा विरोध का सामना करना पड़ रहा है, उसका कारण खेमे के लोगों
के बीच की आपसी ईर्ष्या व प्रतिस्पर्धा है; चंडीगढ़ व उत्तराखंड के पूर्व
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को यह बात हजम करना मुश्किल हो रहा है कि वह जिन
उम्मीदवारों को पिछले दो दो और चार चार वर्षों से ढो रहे हैं, उन्हें दस
दिन पहले उम्मीदवार बने कपिल गुप्ता किनारे धकेल कर आगे आ जाएँ । समझा
जाता है कि जितेंद्र ढींगरा सत्ता खेमे की इसी 'लड़ाई' का फायदा उठाने की
कोशिश के चलते कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन करने की तैयारी कर रहे
थे, जिसे लेकिन रमेश बजाज की अचानक से प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने फेल कर
दिया है ।
रमेश बजाज की उम्मीदवारी को एक स्थानीय
'झगड़े' की प्रतिक्रिया के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है, और इसलिए अभी
उनकी उम्मीदवारी को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है । दरअसल पिछले
दो वर्षों की 'लड़ाई' ने जगह जगह के स्थानीय झगड़ों को मुखर बनाने का काम
किया है, जिसकी सबसे तीखी प्रतिक्रिया पानीपत में देखने को मिल रही है । यहाँ
रंजीत भाटिया और प्रमोद विज से नाराज रहने वालों की एक बड़ी संख्या है, जो
जितेंद्र ढींगरा की जीत से खासे उत्साहित हैं - और जो रंजीत भाटिया व
प्रमोद विज को किनारे लगाने/रखने का काम जारी रखना चाहते हैं । कपिल गुप्ता
पानीपत के लोगों के इस मूड को भाँपने में लगता है कि चूक गए और रंजीत
भाटिया व प्रमोद विज के साथ अपनी नजदीकी बनाने/दिखाने में लग गए । रमेश बजाज के नजदीकियों का ही कहना है कि रमेश बजाज की उम्मीदवारी कपिल गुप्ता के इसी व्यवहार के प्रति नाराजगी का प्रकटीकरण भी है । इसी कारण से उनकी उम्मीदवारी के बने रहने को लेकर लोगों के बीच सवाल है । रमेश बजाज की उम्मीदवारी बनी रहेगी या नहीं, यह तो अगले कुछ दिनों में साफ हो जायेगा; अभी लेकिन उनकी उम्मीदवारी ने कपिल गुप्ता के लिए मुसीबत यह तो बढ़ाई है कि अब
उन्हें चंडीगढ़ व उत्तराखंड के रूठे हुए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को
मनाने में जुटना पड़ेगा, और जितेंद्र ढींगरा के लिए चुनौती यह पैदा की है
कि उनकी जोरदार जीत ने लोगों के बीच उनसे राजनीतिक किस्म की जो उम्मीदें लगाई हैं, उन पर वह कैसे खरे उतरें ?