Friday, February 3, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं की दखलंदाजी को रोकने के लिए देवराज रेड्डी द्धारा आजमाई जा रही तरकीब सफल होगी क्या ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं की दखलंदाजी को रोकने के लिए मौजूदा प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी ने जो कदम उठाया है, उससे नेतागिरी झाड़ने वाले पूर्व प्रेसीडेंट्स बेचारे बड़े बौखलाए हुए हैं - और अपनी बौखलाहट में वह देवराज रेड्डी को तरह-तरह के आरोपों की आड़ में निशाना बना रहे हैं । मजे की बात लेकिन यह है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के मौजूदा अधिकतर सदस्य पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं की नकेल कसने की देवराज रेड्डी की कार्रवाई से बहुत खुश हैं । उनका कहना है कि देवराज रेड्डी का काम करने का तरीका हालाँकि काफी मनमाना सा रहा है, और उनके कई फैसलों को लेकर आपत्ति की जा सकती है - लेकिन कुछेक पूर्व प्रेसीडेंट्स की नेतागिरी दिखाने की कोशिशों पर लगाम लगाने की उन्होंने जो कार्रवाई की है, वह बहुत ही उचित है और यह कार्रवाई करके देवराज रेड्डी ने नेतागिरी करने वाले पूर्व प्रेसीडेंट्स को एक बड़ा संदेश दिया है । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में नेतागिरी करने वाले पूर्व प्रेसीडेंट्स ने देवराज रेड्डी के संदेश को 'पढ़' तो लिया है - और इसीलिए वह बौखलाए हुए हैं; लेकिन देखने की बात यह होगी कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट से मिले इस संदेश के बावजूद वह बाज आते हैं या नहीं ?
उल्लेखनीय है कि कुछेक पूर्व प्रेसीडेंट्स की नेतागिरी को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ही इस वर्ष इंस्टीट्यूट का वार्षिक समारोह 8 फरवरी को करने का फैसला किया गया है, हालाँकि पिछले वर्षों में यह 11 फरवरी को होता रहा है । हर वर्ष फरवरी की 12 तारीख को इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव होता है, इस वर्ष भी वह 12 फरवरी को ही होगा । पिछले वर्षों में होता यह रहा है कि 11 फरवरी को वार्षिक समारोह में शामिल होने के नाम पर इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों से मिलने-जुलने का मौका बनाने की आड़ में कुछेक पूर्व प्रेसीडेंट्स वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में दखलंदाजी करते रहे हैं । देवराज रेड्डी ने इस वर्ष वार्षिक समारोह चुनाव की तारीख से चार दिन पहले आयोजित करके पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं की चालबाजी को फेल करने की तैयारी की है । आठ फरवरी को आयोजित हो रहे इंस्टीट्यूट के 67वें वार्षिक समारोह में शामिल होकर - यदि शामिल हुए तो - ग्यारह फरवरी की शाम/रात तक काउंसिल सदस्यों से मिलने का बहाना पाना अब पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं के लिए मुश्किल होगा; और इसलिए उम्मीद की जा रही है कि पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं के लिए वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में इस वर्ष पिछले वर्षों की तरह दखलंदाजी करना संभव - और/या आसान नहीं होगा ।
इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं की भूमिका की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है । अधिकतर वाइस प्रेसीडेंट यह 'देख/सुन' कर आश्चर्य से भर जाते हैं कि उन्हें वाइस प्रेसीडेंट चुनवाने/बनवाने के लिए कितने कितने पूर्व प्रेसीडेंट्स मेहनत कर रहे थे ! दरअसल हर वर्ष चुने जाने वाले वाइस प्रेसीडेंट को चुनवाने का श्रेय लेने के लिए कई कई पूर्व प्रेसीडेंट्स आगे आ जाते हैं और वह खुद ही अपनी पीठ थपथपाते हुए दावा करने लगते हैं कि 'इसे' मैंने ही तो जितवाया है । वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी राजनीति के जाल-जंजाल में शामिल रहे सेंट्रल काउंसिल के भूतपूर्व व मौजूदा सदस्यों का कहना है कि जो पूर्व प्रेसीडेंट्स नेता बने फिरते हैं, तथा 'इस' को और 'उस' को जितवाने का दावा करते हैं - वास्तव में उनकी कोई राजनीतिक औकात नहीं होती है - वह सिर्फ दलाल टाइप के लोग होते हैं; जो अपना स्वार्थ साधने के लिए चुनावी राजनीति में जबर्दस्ती घुस जाते हैं और निर्णय को प्रभावित करने का दावा करते हैं । हर वर्ष की चुनावी जीत का वह इस उम्मीद से खुद ही श्रेय ले लेते हैं, ताकि अगले वर्ष सफल होने की इच्छा रखने वाले उम्मीदवार उन्हें तवज्जो दें और उनके स्वार्थ पूरे करने में सहायक बनें ।
इंस्टीट्यूट के वार्षिक समारोह के अगले दिन ही वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव होने की व्यवस्था ने पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं को अपना उक्त खेल जमाने की सुविधा दे रखी थी; जिसे लेकिन इस वर्ष देवराज रेड्डी ने वार्षिक समारोह को चार दिन पहले करने की व्यवस्था करके छीन लिया है । माना जा रहा है कि देवराज रेड्डी के इस फैसले के चलते पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं के लिए इस वर्ष वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में अपनी सक्रियता 'दिखा' पाना मुश्किल होगा । हालाँकि पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं की चालबाजियों से परिचित लोगों का यह भी मानना और कहना है कि वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में अपनी सक्रियता और भूमिका दिखाने वाले पूर्व प्रेसीडेंट्स चूँकि दलाल किस्म के लोग हैं, इसलिए वह अपनी हरकत से बाज तो नहीं ही आयेंगे - और वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में अपनी भूमिका को किसी न किसी तरीके से 'दिखाने' का प्रयास तो करेंगे ही - वह क्या प्रयास करेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा ।