नई
दिल्ली । राजेश शर्मा अपनी फरेबी व तिकड़मी चालबाजियों से राकेश मक्कड़ को
अंततः नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन चुनवाने में कामयाब हुए -
उनकी इन कामयाबी को संभव बनाने में विरोधियों के बीच एकजुटता और विश्वास के अभाव ने भी हालाँकि महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । कहा
जाता है न कि समाज बुरे लोगों की बुरी हरकतों से खराब नहीं होता है, वह
अच्छे लोगों के अपनी जिम्मेदारी न निभाने यानि कुछ न करने से खराब होता है ।
इस फलसफ़े को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के संदर्भ में देखें तो देखने
में आया कि नार्दर्न रीजन के कई सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने रीजनल काउंसिल
के पॉवर ग्रुप की हरकतों को जी भर कर कोसा और उनकी हरकतों को इंस्टीट्यूट व
प्रोफेशन को बदनाम करने वाला बताया, लेकिन पॉवर ग्रुप को सत्ता से बाहर
करने के लिए प्रयास करने का जब समय आया - तो वह ऊँची नैतिकता और ऊँचे आदर्शों का हवाला देते हुए पीछे हट गए । सेंट्रल
काउंसिल सदस्यों का यह व्यवहार इसलिए सवालों के घेरे में है, क्योंकि
इन्हीं सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने दो वर्ष पहले राज चावला के चेयरमैन चुने
जाने के समय रीजनल काउंसिल के कामकाज में सीधा हस्तक्षेप किया था - ऊँची
नैतिकता व ऊँचे आदर्शों ने उस समय तो इन्हें हस्तक्षेप करने से नहीं रोका
था ? इसलिए नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में पॉवर ग्रुप की करतूतों
की कुछेक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों द्धारा की जा रही आलोचना बेमानी है -
क्योंकि पॉवर ग्रुप को पॉवर में बनाए रखने के लिए 'कुछ न करने वाले' यह
सेंट्रल काउंसिल सदस्य भी जिम्मेदार हैं ।
राकेश मक्कड़ नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ऐसे पहले चेयरमैन हैं, जिनके चेयरमैन बनने पर अधिकतर लोगों ने प्रतिकूल प्रतिक्रिया ही दी है; अधिकतर लोगों की तरफ से यही सुनने को मिला है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अब अगले वर्ष भी घटियापन और टुच्चापन व बेईमानियाँ देखने को मिलेंगी । उल्लेखनीय है कि रीजनल काउंसिल में हर वर्ष एक नया चेयरमैन चुना जाता है - जो चुना जाता है, उसकी खूबियों और कमियों को अधिकतर लोग जानते/पहचानते हैं; लेकिन फिर भी लोग उससे उम्मीद करते हैं कि चेयरमैन पद पर बैठने के बाद यह अपनी कमियों को कम करने तथा खूबियों को बढ़ाने पर ध्यान देगा और अच्छा काम करेगा । राकेश मक्कड़ का मामला ऐसा है कि किसी को उनसे कुछ अच्छा करने की उम्मीद ही नहीं है । दरअसल पिछले महीनों में उनकी ऐसी ऐसी हरकतें रही हैं कि अधिकतर लोगों ने उनके चेयरमैन बनने को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की बदनसीबी के रूप में ही देखा/माना है । कुछेक लोगों ने तो इसे चुनावी सिस्टम की कमी के रूप में भी देखा/समझा - उनका कहना है कि यह चुनावी सिस्टम की कोई बहुत बड़ी कमी ही है कि इसमें फूलन देवी जैसी डकैत सांसद चुन ली जाती है और राकेश मक्कड़ जैसे लोग नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन चुन लिए जाते हैं ।
राकेश मक्कड़ को चेयरमैन चुनवाने में सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा ने जैसी जो तिकड़म की, उससे वाइस चेयरमैन बने विवेक खुराना ने अपने आप को ठगा हुआ पाया है । उल्लेखनीय है कि विवेक खुराना भी चेयरमैन पद के उम्मीदवार थे, और राजेश शर्मा को भनक थी कि विवेक खुराना ने विरोधी खेमे के लोगों के साथ भी तार जोड़े हुए हैं और यदि मौजूदा पॉवर ग्रुप में उन्हें चेयरमैन बनने की संभावना नहीं दिखी तो वह विरोधी खेमे के समर्थन से चेयरमैन बन जायेंगे । विवेक खुराना चेयरमैन तो बनना चाहते थे, लेकिन राकेश मक्कड़ की तरह 'किसी भी तरह' नहीं - बल्कि एक स्वस्थ व लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत ही वह चेयरमैन बनना चाहते थे । उनके नजदीकियों का कहना था कि विवेक खुराना के तार विरोधी खेमे के लोगों से जुड़े हुए तो थे, लेकिन वह सिर्फ चेयरमैन बनने के लिए विरोधी खेमे में जाने के लिए तैयार नहीं थे; लेकिन हाँ, अपने खेमे में उन्हें यदि अपने साथ नाइंसाफी और बेईमानी होते हुए दिखी, तो वह विरोधी खेमे में जा सकते थे । ऐसे में, राजेश शर्मा और राकेश मक्कड़ की जोड़ी ने उन्हें इस तरह उल्लू बनाया कि जब तक उन्हें समझ में आया कि उनके साथ धोखा हो गया है, तब तक विरोधी खेमे में जाने का उनका रास्ता बंद हो चुका है । मनमार कर विवेक खुराना को वाइस चेयरमैन पद स्वीकारने में ही अपनी भलाई दिखी ।
राजेश शर्मा और राकेश मक्कड़ से विवेक खुराना को मिले धोखे की पीड़ा को कई लोगों ने विवेक खुराना की फेसबुक टाइमलाइन से भी 'पहचाना' । कई लोगों ने बताया/दिखाया कि विवेक खुराना ने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर जिस तरह सिर्फ अपने वाइस चेयरमैन चुने जाने की सूचना चस्पां की है, और चेयरमैन सहित बाकी पदाधिकारियों के जिक्र से वह बचे हैं - उससे स्पष्ट झलकता है कि जिस तरह से चुनाव हुए हैं, उससे वह खासे नाराज हैं । यह निष्कर्ष निकालने/लगाने वाले लोगों का तर्क रहा कि पिछले दिनों इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट/वाइस प्रेसीडेंट से लेकर विभिन्न ब्रांचेज तक के पदाधिकारियों के जो चुनावी नतीजे आए हैं, उनके विजेताओं का जिक्र करते हुए विवेक खुराना ने अपनी टाइमलाइन पर सभी को बधाई दी है - लेकिन नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में विजेता बने अपने ही साथियों के मामले में वह चुप्पी साध गए हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के विजेता पदाधिकारियों के प्रति विवेक खुराना के इस सौतेलेपन को लोगों ने उनकी नाराजगी के पुख्ता सुबूत के रूप में ही देखा/पहचाना है । राकेश मक्कड़ के लिए मुसीबत और चुनौती की बात यही है कि उनके चेयरमैन बनने को लेकर जब उनकी अपनी टीम के सदस्यों में ही नाराजगी और असंतोष है, तो फिर बाकी लोगों की नाराजगी व असंतोष का तो कहना ही क्या ? राकेश मक्कड़ के चेयरमैन बनने को लेकर जिस तरह लोगों के बीच निराशा है, उससे लग रहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में बदनामी के दाग अभी और गहरे होंगे ।
राकेश मक्कड़ नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ऐसे पहले चेयरमैन हैं, जिनके चेयरमैन बनने पर अधिकतर लोगों ने प्रतिकूल प्रतिक्रिया ही दी है; अधिकतर लोगों की तरफ से यही सुनने को मिला है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अब अगले वर्ष भी घटियापन और टुच्चापन व बेईमानियाँ देखने को मिलेंगी । उल्लेखनीय है कि रीजनल काउंसिल में हर वर्ष एक नया चेयरमैन चुना जाता है - जो चुना जाता है, उसकी खूबियों और कमियों को अधिकतर लोग जानते/पहचानते हैं; लेकिन फिर भी लोग उससे उम्मीद करते हैं कि चेयरमैन पद पर बैठने के बाद यह अपनी कमियों को कम करने तथा खूबियों को बढ़ाने पर ध्यान देगा और अच्छा काम करेगा । राकेश मक्कड़ का मामला ऐसा है कि किसी को उनसे कुछ अच्छा करने की उम्मीद ही नहीं है । दरअसल पिछले महीनों में उनकी ऐसी ऐसी हरकतें रही हैं कि अधिकतर लोगों ने उनके चेयरमैन बनने को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की बदनसीबी के रूप में ही देखा/माना है । कुछेक लोगों ने तो इसे चुनावी सिस्टम की कमी के रूप में भी देखा/समझा - उनका कहना है कि यह चुनावी सिस्टम की कोई बहुत बड़ी कमी ही है कि इसमें फूलन देवी जैसी डकैत सांसद चुन ली जाती है और राकेश मक्कड़ जैसे लोग नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन चुन लिए जाते हैं ।
राकेश मक्कड़ को चेयरमैन चुनवाने में सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा ने जैसी जो तिकड़म की, उससे वाइस चेयरमैन बने विवेक खुराना ने अपने आप को ठगा हुआ पाया है । उल्लेखनीय है कि विवेक खुराना भी चेयरमैन पद के उम्मीदवार थे, और राजेश शर्मा को भनक थी कि विवेक खुराना ने विरोधी खेमे के लोगों के साथ भी तार जोड़े हुए हैं और यदि मौजूदा पॉवर ग्रुप में उन्हें चेयरमैन बनने की संभावना नहीं दिखी तो वह विरोधी खेमे के समर्थन से चेयरमैन बन जायेंगे । विवेक खुराना चेयरमैन तो बनना चाहते थे, लेकिन राकेश मक्कड़ की तरह 'किसी भी तरह' नहीं - बल्कि एक स्वस्थ व लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत ही वह चेयरमैन बनना चाहते थे । उनके नजदीकियों का कहना था कि विवेक खुराना के तार विरोधी खेमे के लोगों से जुड़े हुए तो थे, लेकिन वह सिर्फ चेयरमैन बनने के लिए विरोधी खेमे में जाने के लिए तैयार नहीं थे; लेकिन हाँ, अपने खेमे में उन्हें यदि अपने साथ नाइंसाफी और बेईमानी होते हुए दिखी, तो वह विरोधी खेमे में जा सकते थे । ऐसे में, राजेश शर्मा और राकेश मक्कड़ की जोड़ी ने उन्हें इस तरह उल्लू बनाया कि जब तक उन्हें समझ में आया कि उनके साथ धोखा हो गया है, तब तक विरोधी खेमे में जाने का उनका रास्ता बंद हो चुका है । मनमार कर विवेक खुराना को वाइस चेयरमैन पद स्वीकारने में ही अपनी भलाई दिखी ।
राजेश शर्मा और राकेश मक्कड़ से विवेक खुराना को मिले धोखे की पीड़ा को कई लोगों ने विवेक खुराना की फेसबुक टाइमलाइन से भी 'पहचाना' । कई लोगों ने बताया/दिखाया कि विवेक खुराना ने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर जिस तरह सिर्फ अपने वाइस चेयरमैन चुने जाने की सूचना चस्पां की है, और चेयरमैन सहित बाकी पदाधिकारियों के जिक्र से वह बचे हैं - उससे स्पष्ट झलकता है कि जिस तरह से चुनाव हुए हैं, उससे वह खासे नाराज हैं । यह निष्कर्ष निकालने/लगाने वाले लोगों का तर्क रहा कि पिछले दिनों इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट/वाइस प्रेसीडेंट से लेकर विभिन्न ब्रांचेज तक के पदाधिकारियों के जो चुनावी नतीजे आए हैं, उनके विजेताओं का जिक्र करते हुए विवेक खुराना ने अपनी टाइमलाइन पर सभी को बधाई दी है - लेकिन नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में विजेता बने अपने ही साथियों के मामले में वह चुप्पी साध गए हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के विजेता पदाधिकारियों के प्रति विवेक खुराना के इस सौतेलेपन को लोगों ने उनकी नाराजगी के पुख्ता सुबूत के रूप में ही देखा/पहचाना है । राकेश मक्कड़ के लिए मुसीबत और चुनौती की बात यही है कि उनके चेयरमैन बनने को लेकर जब उनकी अपनी टीम के सदस्यों में ही नाराजगी और असंतोष है, तो फिर बाकी लोगों की नाराजगी व असंतोष का तो कहना ही क्या ? राकेश मक्कड़ के चेयरमैन बनने को लेकर जिस तरह लोगों के बीच निराशा है, उससे लग रहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में बदनामी के दाग अभी और गहरे होंगे ।