नई दिल्ली
। संजीव राय मेहरा की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए
उनकी उम्मीदवारी के प्रस्तोता और समर्थक ही जैसे दुश्मन हो गए हैं । संजीव
राय मेहरा के नजदीकियों के अनुसार, चुनाव के निर्णायक दौर में संजीव राय
मेहरा लोगों के बीच अपने समर्थन को मजबूत करने तथा बढ़ाने का प्रयास करने की
बजाए अपने समर्थक नेताओं को कोसने में अपना ज्यादा समय और एनर्जी लगा रहे
हैं । उनकी शिकायत है कि चुनाव के निर्णायक दौर में उनके समर्थक नेताओं ने
उन्हें अकेला छोड़ दिया है और उनकी बिलकुल मदद नहीं कर रहे हैं । संजीव राय
मेहरा की यह शिकायत इस समय इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि उनके समर्थक नेताओं
का शुरू से ही मदद न करने वाला रवैया रहा है । उनके समर्थक नेता अलग अलग
मौकों पर हमेशा उन्हें यही कहते रहे कि - तुम काम करो, उचित समय पर हम आगे
आयेंगे । संजीव राय मेहरा की शिकायत है कि अब जब चुनाव में महीने भर से
भी कम समय रह गया है, उनके समर्थक नेता यही राग आलापे जा रहे हैं और उनकी
मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं । वह अभी भी यही कहते हुए बच निकल रहे हैं
कि - तुम काम करो, हम उचित समय पर आगे आते हैं ।
संजीव राय मेहरा की नाराजगी के शिकार अशोक घोष, राजेश बत्रा, दीपक कपूर जैसे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स हो रहे हैं । संजीव राय मेहरा की शिकायत है कि इन्होंने उन्हें उम्मीदवार तो बनवा दिया, लेकिन अब जब उनकी उम्मीदवारी को उनके 'दिखने' वाले समर्थन की जरूरत है, तब वह बचते/छिपते फिर रहे हैं । राजेश बत्रा ने तो बीच में दो-एक बार संजीव राय मेहरा के लिए कुछ कहने/करने का काम किया भी था, लेकिन फिर वह भी पीछे हट गए । इन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के इस रवैये से संजीव राय मेहरा को वास्तव में दोहरा नुकसान हो रहा है : एक तरफ तो उन्हें इनकी मदद नहीं मिल रही है, और दूसरी तरफ लोगों के बीच संदेश यह जा रहा है कि इन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को संजीव राय मेहरा के लिए लोगों के बीच चूँकि कोई समर्थन नहीं दिख रहा है इसलिए वह सामने आ कर अपनी फजीहत नहीं कराना चाहते हैं । इन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के रवैये से लोगों के बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि संजीव राय मेहरा को इनका समर्थन है भी, या संजीव राय मेहरा इनके समर्थन का झूठा दावा ही करते रहे हैं । लोगों को यह कहने का मौका भी मिल रहा है कि संजीव राय मेहरा एक उम्मीदवार के रूप में किए गए अपने काम से अपने समर्थक नेताओं तक को आश्वस्त नहीं कर पाए हैं, और इसीलिए उनके समर्थक नेताओं ने उनकी उम्मीदवारी से अपनी दूरी बनाई हुई है । संजीव राय मेहरा के लिए मुसीबत की बात यह बनी है कि उनके क्लब में दो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं - अशोक घोष और आशीष घोष; लेकिन दोनों में से कोई भी उनकी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन 'दिखाता' और लोगों का समर्थन जुटाता नजर नहीं आ रहा है । आशीष घोष को तो बल्कि उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार रवि दयाल की उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
संजीव राय मेहरा के नजदीकियों के अनुसार, संजीव राय मेहरा चूँकि बहुत पुराने रोटेरियन हैं और पिछले कई वर्षों से वह लोगों के बीच ज्यादा सक्रिय भी नहीं रहे हैं - इसलिए उन्हें क्लब्स के मौजूदा सक्रिय व प्रभावी सदस्यों तथा पदाधिकारियों के साथ कनेक्ट करने और तालमेल बैठाने में समस्या आ रही है । पुरानी बातें याद करके और उन्हें बता बता कर क्लब्स के नए सदस्यों व पदाधिकारियों के बीच सम्मान तो पाया जा सकता है, लेकिन उनके वोट पाना मुश्किल लग रहा है । संजीव राय मेहरा की रोटरी में सक्रियता का इतिहास भी कोई उत्साहित करने वाला नहीं है, और वह बड़ी सुस्त रफ़्तार का शिकार रहा है । संजीव राय मेहरा ने रोटरी क्लब दिल्ली के सदस्य के रूप में वर्ष 1978 में रोटरी ज्वाइन की थी, लेकिन क्लब का अध्यक्ष बनने में उन्हें 25 वर्ष लग गए । वह वर्ष 2003 में क्लब के अध्यक्ष बने । इसके दो वर्ष बाद, वर्ष 2005 में वह असिस्टेंट गवर्नर बने और उसके बाद फिर गुम हो गए । ग्यारह वर्ष बाद वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए सामने आए हैं । रोटरी में उनकी सक्रियता का 'यह' इतिहास किसी को भी उत्साहित और प्रेरित करने में तो फेल है ही, साथ ही मुसीबत का कारण भी है - क्योंकि ग्यारह वर्ष बाद डिस्ट्रिक्ट और रोटरी की मुख्यधारा में शामिल होने आए संजीव राय मेहरा न तो पिछले ग्यारह वर्षों में डिस्ट्रिक्ट में आए लोगों को जानते/पहचानते हैं और न इन ग्यारह वर्षों में रोटरी में आए 'बदलावों' से ही परिचित हैं । दरअसल यही कारण है कि वह लोगों के साथ कनेक्ट नहीं कर पा रहे हैं - और इस स्थिति को जानते/पहचानते हुए उनके समर्थक भी उनसे दूरी बनाए हुए हैं ।
संजीव राय मेहरा अपनी कमजोरियों को जानते/पहचानते हुए भी उम्मीदवार के रूप में कुछ समय पहले तक हालाँकि ज्यादा परेशान नहीं थे । उनका और उनके नजदीकियों का आकलन था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उम्मीदवार भले ही और तीन लोग भी हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला उनके और रवि दयाल के बीच ही है; और डिस्ट्रिक्ट के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का एक बड़ा समूह चूँकि रवि दयाल के खिलाफ है - इसलिए तमाम कमजोरियों के बावजूद उनकी चुनावी दाल गल जाएगी । लेकिन चुनावी लड़ाई में अचानक से हुई अनूप मित्तल की एंट्री ने उनका आकलन गड़बड़ा दिया है । अनूप मित्तल की उम्मीदवारी की प्रस्तुति तथा ताबड़तोड़ तरीके से चलाए गए उनके अभियान ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के लिए बन रहे समीकरणों को छिन्न-भिन्न कर दिया है । संजीव राय मेहरा के नजदीकियों का कहना है कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच रवि दयाल के जिस विरोध को संजीव राय मेहरा अपनी 'पूँजी' मान/समझ रहे थे, उस पूँजी के अनूप मित्तल की तरफ भी आकर्षित होने का खतरा बढ़ गया है । समझा जाता है कि इस खतरे को भाँप कर ही संजीव राय मेहरा के समर्थक पूर्व गवर्नर्स 'आगे' बढ़ने से रुक गए हैं, वह अभी और देखना/समझना चाहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में डिस्ट्रिक्ट के लोगों तथा नेताओं का मूड किस दिशा में बढ़ रहा है ? समर्थक पूर्व गवर्नर्स के इस रवैये ने संजीव राय मेहरा की उम्मीदवारी को तगड़ी चोट पहुँचाई है, और इसीलिए संजीव राय मेहरा चुनाव के निर्णायक दौर में लोगों के बीच अपने समर्थन को मजबूत करने तथा बढ़ाने का प्रयास करने की बजाए अपने समर्थक नेताओं के खिलाफ भड़ास निकालने में अपना ज्यादा समय और एनर्जी लगा रहे हैं ।
संजीव राय मेहरा की नाराजगी के शिकार अशोक घोष, राजेश बत्रा, दीपक कपूर जैसे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स हो रहे हैं । संजीव राय मेहरा की शिकायत है कि इन्होंने उन्हें उम्मीदवार तो बनवा दिया, लेकिन अब जब उनकी उम्मीदवारी को उनके 'दिखने' वाले समर्थन की जरूरत है, तब वह बचते/छिपते फिर रहे हैं । राजेश बत्रा ने तो बीच में दो-एक बार संजीव राय मेहरा के लिए कुछ कहने/करने का काम किया भी था, लेकिन फिर वह भी पीछे हट गए । इन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के इस रवैये से संजीव राय मेहरा को वास्तव में दोहरा नुकसान हो रहा है : एक तरफ तो उन्हें इनकी मदद नहीं मिल रही है, और दूसरी तरफ लोगों के बीच संदेश यह जा रहा है कि इन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को संजीव राय मेहरा के लिए लोगों के बीच चूँकि कोई समर्थन नहीं दिख रहा है इसलिए वह सामने आ कर अपनी फजीहत नहीं कराना चाहते हैं । इन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के रवैये से लोगों के बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि संजीव राय मेहरा को इनका समर्थन है भी, या संजीव राय मेहरा इनके समर्थन का झूठा दावा ही करते रहे हैं । लोगों को यह कहने का मौका भी मिल रहा है कि संजीव राय मेहरा एक उम्मीदवार के रूप में किए गए अपने काम से अपने समर्थक नेताओं तक को आश्वस्त नहीं कर पाए हैं, और इसीलिए उनके समर्थक नेताओं ने उनकी उम्मीदवारी से अपनी दूरी बनाई हुई है । संजीव राय मेहरा के लिए मुसीबत की बात यह बनी है कि उनके क्लब में दो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं - अशोक घोष और आशीष घोष; लेकिन दोनों में से कोई भी उनकी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन 'दिखाता' और लोगों का समर्थन जुटाता नजर नहीं आ रहा है । आशीष घोष को तो बल्कि उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार रवि दयाल की उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
संजीव राय मेहरा के नजदीकियों के अनुसार, संजीव राय मेहरा चूँकि बहुत पुराने रोटेरियन हैं और पिछले कई वर्षों से वह लोगों के बीच ज्यादा सक्रिय भी नहीं रहे हैं - इसलिए उन्हें क्लब्स के मौजूदा सक्रिय व प्रभावी सदस्यों तथा पदाधिकारियों के साथ कनेक्ट करने और तालमेल बैठाने में समस्या आ रही है । पुरानी बातें याद करके और उन्हें बता बता कर क्लब्स के नए सदस्यों व पदाधिकारियों के बीच सम्मान तो पाया जा सकता है, लेकिन उनके वोट पाना मुश्किल लग रहा है । संजीव राय मेहरा की रोटरी में सक्रियता का इतिहास भी कोई उत्साहित करने वाला नहीं है, और वह बड़ी सुस्त रफ़्तार का शिकार रहा है । संजीव राय मेहरा ने रोटरी क्लब दिल्ली के सदस्य के रूप में वर्ष 1978 में रोटरी ज्वाइन की थी, लेकिन क्लब का अध्यक्ष बनने में उन्हें 25 वर्ष लग गए । वह वर्ष 2003 में क्लब के अध्यक्ष बने । इसके दो वर्ष बाद, वर्ष 2005 में वह असिस्टेंट गवर्नर बने और उसके बाद फिर गुम हो गए । ग्यारह वर्ष बाद वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए सामने आए हैं । रोटरी में उनकी सक्रियता का 'यह' इतिहास किसी को भी उत्साहित और प्रेरित करने में तो फेल है ही, साथ ही मुसीबत का कारण भी है - क्योंकि ग्यारह वर्ष बाद डिस्ट्रिक्ट और रोटरी की मुख्यधारा में शामिल होने आए संजीव राय मेहरा न तो पिछले ग्यारह वर्षों में डिस्ट्रिक्ट में आए लोगों को जानते/पहचानते हैं और न इन ग्यारह वर्षों में रोटरी में आए 'बदलावों' से ही परिचित हैं । दरअसल यही कारण है कि वह लोगों के साथ कनेक्ट नहीं कर पा रहे हैं - और इस स्थिति को जानते/पहचानते हुए उनके समर्थक भी उनसे दूरी बनाए हुए हैं ।
संजीव राय मेहरा अपनी कमजोरियों को जानते/पहचानते हुए भी उम्मीदवार के रूप में कुछ समय पहले तक हालाँकि ज्यादा परेशान नहीं थे । उनका और उनके नजदीकियों का आकलन था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उम्मीदवार भले ही और तीन लोग भी हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला उनके और रवि दयाल के बीच ही है; और डिस्ट्रिक्ट के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का एक बड़ा समूह चूँकि रवि दयाल के खिलाफ है - इसलिए तमाम कमजोरियों के बावजूद उनकी चुनावी दाल गल जाएगी । लेकिन चुनावी लड़ाई में अचानक से हुई अनूप मित्तल की एंट्री ने उनका आकलन गड़बड़ा दिया है । अनूप मित्तल की उम्मीदवारी की प्रस्तुति तथा ताबड़तोड़ तरीके से चलाए गए उनके अभियान ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के लिए बन रहे समीकरणों को छिन्न-भिन्न कर दिया है । संजीव राय मेहरा के नजदीकियों का कहना है कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच रवि दयाल के जिस विरोध को संजीव राय मेहरा अपनी 'पूँजी' मान/समझ रहे थे, उस पूँजी के अनूप मित्तल की तरफ भी आकर्षित होने का खतरा बढ़ गया है । समझा जाता है कि इस खतरे को भाँप कर ही संजीव राय मेहरा के समर्थक पूर्व गवर्नर्स 'आगे' बढ़ने से रुक गए हैं, वह अभी और देखना/समझना चाहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में डिस्ट्रिक्ट के लोगों तथा नेताओं का मूड किस दिशा में बढ़ रहा है ? समर्थक पूर्व गवर्नर्स के इस रवैये ने संजीव राय मेहरा की उम्मीदवारी को तगड़ी चोट पहुँचाई है, और इसीलिए संजीव राय मेहरा चुनाव के निर्णायक दौर में लोगों के बीच अपने समर्थन को मजबूत करने तथा बढ़ाने का प्रयास करने की बजाए अपने समर्थक नेताओं के खिलाफ भड़ास निकालने में अपना ज्यादा समय और एनर्जी लगा रहे हैं ।