गाजियाबाद ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर दीपक गुप्ता की जीत का नतीजा आने के
तुरंत बाद से रोटरी क्लब गाजियाबाद शताब्दी के वरिष्ठ सदस्य आलोक गुप्ता ने
अगले रोटरी वर्ष के लिए अपनी उम्मीदवारी की प्रस्तुति को लेकर जो तैयारी
शुरू की है, उसने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में फिर से साँसें भरने का
काम किया है । आलोक गुप्ता की तरफ से पिछले
काफी समय से लोगों को हालाँकि संकेत तो मिलते रहे थे कि वह अगले रोटरी
वर्ष में अपनी उम्मीदवारी के बारे में संभावना देख रहे हैं, लेकिन अंतिम
फैसला इस वर्ष का चुनावी नतीजा आने के बाद ही उन्हें लेना था । दरअसल इस
वर्ष का चुनावी नतीजा आने से पहले अगले वर्ष की अपनी उम्मीदवारी के बारे
में पक्का फैसला करने की आलोक गुप्ता की राह में सबसे बड़ा रोड़ा रोटरी क्लब
गाजियाबाद नॉर्थ के आलोक गर्ग थे । आलोक गर्ग प्रतिद्धंद्धी खेमे में
अत्यंत सक्रिय रहे हैं, और उनकी सक्रियता देख कर ही लोगों को लगता था कि इस
वर्ष यदि अशोक जैन जीते, तो अगले उम्मीदवार आलोक गर्ग होंगे । आलोक गर्ग
चूँकि आलोक गुप्ता के मान्य रिश्तेदार हैं, इसलिए आलोक गर्ग की उम्मीदवारी
के सामने उन्हें अपनी उम्मीदवारी के प्लान को छोड़ना ही पड़ता । हाँ,
प्रतिद्धंद्धी खेमे से लेकिन यदि कोई और उम्मीदवार होता तो आलोक गुप्ता फिर
सोचते ! इसी गफलत के चलते आलोक गुप्ता अगले वर्ष की अपनी उम्मीदवारी पर
मोहर लगाने के लिए इस वर्ष के चुनावी नतीजे का इंतजार करने के लिए मजबूर थे
।
बहरहाल, अगले रोटरी वर्ष की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति का खेल यूँ तो अभी शुरू होना है - लेकिन आलोक गुप्ता ने 'मैं आ रहा हूँ' का संकेत देकर प्रतिद्धंद्धी खेमे के नेताओं को दबाव में ला देने तथा अपनी बढ़त बनाने का काम तो कर ही दिया है ।
इस वर्ष के चुनावी नतीजे ने
आलोक गुप्ता में दोहरा जोश भरा है - उनके खेमे के उम्मीदवार दीपक गुप्ता न
सिर्फ जीते हैं, बल्कि भारी अंतर से जीते हैं । इस वर्ष के चुनावी नतीजे
ने उम्मीदवार के रूप में आलोक गुप्ता को एक बड़ा साफ संदेश/सबक दिया है कि
उम्मीदवार के रूप में उन्हें न प्रतिद्धंद्धी खेमे के नेताओं के प्रभाव से
डरने की जरूरत है, और न अपने खेमे के नेताओं की बेवकूफीभरी कारस्तानियों से
घबराने की जरूरत है - उन्हें जो कुछ भी पाना है, उसे अपने भरोसे ही पाना
है । उम्मीदवार के रूप में आलोक गुप्ता के सामने सबसे बड़ी समस्या मुकेश
अरनेजा और सतीश सिंघल जैसे अपने समर्थक नेता ही हैं, जो अपनी अपनी हरकतों
से किसी का काम बनवाने नहीं, बल्कि बिगड़वाने के लिए कुख्यात हैं । समस्या
की बात इसलिए और बड़ी है, क्योंकि आलोक गुप्ता को इन्हीं की मदद भी लेनी है ।
ऐसे में, जाहिर तौर पर उनके सामने उम्मीदवार के रूप में चुनौती यही होगी
कि वह इन दोनों की मदद तो लें, लेकिन इनके कारण हो सकने वाले नुकसान से
अपने को बचाएँ ! मुकेश अरनेजा पर पूरी तरह निर्भर होने/रहने का खामियाजा
आलोक गुप्ता पीछे एक बार भुगत चुके हैं - उस बार मुकेश अरनेजा से उन्हें अप्रत्याशित रूप से धोखा
ही मिला था ।
इस बार
आलोक गुप्ता के लिए स्थितियाँ चूँकि बेहतर हैं, इसलिए 'उस' बार की तरह वह
इस बार मुकेश अरनेजा पर पूरी तरह निर्भर भी नहीं हैं । एक अंतर तो यही है
कि इस बार के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सतीश सिंघल उनके साथ वैसा खेल
नहीं खेलेंगे, जैसा खेल उस बार के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल ने उनके
साथ खेला था । दूसरा बड़ा अंतर डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक माहौल का है :
अशोक जैन की बुरी हार के कारण प्रतिद्धंद्धी खेमे में निराशा और अफरातफरी
का माहौल है । इस बार का चुनावी नतीजा आने से पहले अगले उम्मीदवार के रूप
में जो कई लोग उछल रहे थे, चुनावी नतीजा आने के बाद वह सभी दुबक गए हैं ।
यह ठीक है कि प्रतिद्धंद्धी खेमे से भी कोई न कोई उम्मीदवार आयेगा ही,
किंतु जब तक वहाँ की निराशा और अफरातफरी दूर होगी और कोई उम्मीदवार बनने के
लिए तैयार होगा, तब तक आलोक गुप्ता के लिए लोगों के बीच बढ़त बनाने का
अच्छा मौका है । पिछले दो चुनाव बताते हैं कि उम्मीदवारी 'दिखाने' में पहल
करने वाले उम्मीदवार को फायदा मिला है । संभव है कि आलोक गुप्ता ने इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवार की जगह खाली होते ही उस जगह को अपनी उम्मीदवारी से भर दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट
के मौजूदा राजनीतिक माहौल तथा राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए आलोक गुप्ता
की उम्मीदवारी के लिए रास्ता अभी भले ही आसान नजर आ रहा हो, लेकिन असली
खेल तो तब शुरू होता है जब प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार भी सामने आ गया हो और
उसने अपनी तैयारी का आभास दे दिया हो । आलोक गुप्ता के सामने अपने खेमे
के लोगों को भी एकजुट बनाए रखने की चुनौती होगी; उनके खेमे में कई लोग हैं
जो अपनी अपनी नॉनसेंस वैल्यूज के लिए खासे कुख्यात हैं - ऐसे लोग हालाँकि
उपयोगी भी होते हैं, लेकिन यदि इन्हें ज्यादा ढील मिल जाती है तो फिर यही
भस्मासुर भी साबित होते हैं । ऐसे लोगों से 'ज्यादा दूर भी न जाएँ, और ज्यादा पास भी न आएँ' वाले फार्मूले से ही निपटा जा सकता है । बहरहाल, अगले रोटरी वर्ष की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति का खेल यूँ तो अभी शुरू होना है - लेकिन आलोक गुप्ता ने 'मैं आ रहा हूँ' का संकेत देकर प्रतिद्धंद्धी खेमे के नेताओं को दबाव में ला देने तथा अपनी बढ़त बनाने का काम तो कर ही दिया है ।